राष्ट्रीय
मनोज पाठक
पटना, 22 दिसम्बर | बिहार में पक्षियों के प्रति जागरूकता लाने और युवाओं में 'पक्षी प्रेम' जगाने के उद्देश्य से पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग ने राज्य में राजकीय पक्षी महोत्सव 'कलरव' मनाने का निर्णय लिया है। 'कलरव' का आयोजन अगले साल जनवरी महीने में बिहार के सबसे सुरम्य पक्षी स्थल जमुई जिले के नागी-नकटी पक्षी अभयारण्य में किया जाएगा।
वन विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि पक्षी हमारे पर्यावरण में किसी भी बदलाव का सूचक होते हैं, हमारी कृषि को उन्नत रखते हैं, वनाच्छादन में अहम भूमिका निभाते हैं।
पक्षी के जानकारों का भी कहना है कि बिहार में पक्षियों की अद्भुत विविधता है, मगर यहां पक्षियों का अध्ययन करने वालों की संख्या बहुत कम है। पक्षियों के प्रति लोगों में जागरूकता का अभाव रहने के कारण यहां पक्षियों का शिकार-व्यापार भी अधिक होता है। इसका मुख्य कारण यहां के दुर्लभ पक्षी जगत को प्रसारित नहीं किया जा सका है।
ऐसे में कहा जा रहा है कि पक्षियों के अध्ययन और संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए इस 'राजकीय पक्षी महोत्सव- कलरव' का आयोजन बिहार में पक्षियों की सुरक्षा की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा।
वन विभाग के अधिकारी कहते हैं, "इस महोत्सव के माध्यम से विशेष रूप से युवाओं को प्रेरित और प्रशिक्षित करना है। उन्हें कई तकनीकी सत्रों के माध्यम से पक्षियों को पहचानने के तरीके बताए जाएंगें और वैज्ञानिक तरीकों से उनके आहार व्यवहार आदि से परिचित कराया जायगा।"
युवाओं को फील्ड में ले जाकर भी पक्षियों के सम्बन्ध में जानकारियां दी जाएंगी। इन सत्रों में राज्य और देश के अनुभवी पक्षी वैज्ञानिक और बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के वैज्ञानिकों द्वारा आम लोगों और युवाओं को प्रशिक्षित किया जाएगा।
राज्य के महत्वपूर्ण पक्षी स्थलों के आस-पास के युवाओं को विशेष रूप से इस राजकीय पक्षी महोत्सव में आमंत्रित किया जाएगा, साथ ही स्वयंसेवी संस्थाओं, एनसीसी के कैडेट, विद्यार्थियों, ग्रामीणों, मछुआरों और अन्य समुदाओं को शामिल किया जाएगा, जो पक्षियों के अध्ययन और संरक्षण में अपनी भूमिका निभा सकते हैं।
कार्यक्रम की रूपरेखा तय करने के लिए जमुई के वन प्रमंडल पदाधिकारी सत्यजीत कुमार, आईएफएस अधिकारी भरत चिंतापल्लली और मंदार नेचर क्लब, भागलपुर के संस्थापक अरविन्द मिश्रा अभी नागी, नकटी और जिले के पक्षियों के अन्य महत्वपूर्ण स्थलों का दो दिवसीय भ्रमण कर रहे हैं।
अरविंद मिश्रा ने आईएएनएस को बताया कि इस दल ने नकटी पक्षी अभयारण्य का दौरा करते हुए इलाके में 'यूरेशियन राईनेक' पक्षी को पहली बार देखा और 21 वर्षो के बाद 'इंडियन कोर्सर' पक्षी को देखा।
मिश्रा ने बताया, "1998 में पहली बार दो की संख्या में ये 'इंडियन कोर्सर' यहां दिखे थे, उसके बाद वर्षो तक पठारों में मीलों भटकने के बाद भी इनके दर्शन नहीं हुए थे। अब चार की संख्या में इनका दिखना किसी सपने के पूरा होने से कम नहीं है। ये पक्षी बिहार में अब तक बस जमुई के इसी क्षेत्र ही दिखे हैं।"
उन्होंने कहा कि फाल्केटेड डक का भी 2018, 2019 और 2020 में इस क्षेत्र में लगातार दिखना इस प्रजाति के व्यवहार की विचित्रता रही है। इस आयोजक दल ने कहा कि बिहार राज्य का पहला राजकीय पक्षी महोत्सव मनाने के लिए जमुई जिले के नागी, नकटी से बेहतर स्थल की कल्पना नहीं की जा सकती। (आईएएनएस)
धनंजय झा
बेगूसराय: बिहार के बेगूसराय में मंगलवार को महिला की हत्या कर भाग रहे बदमाश की ग्रामीणों ने पीट-पीटकर हत्या कर दी. इधर, घटना की सूचना पर सिंघौल थाना पुलिस मौके पर पहुंच पूरे मामले की जांच में जुट गई है. पुलिस ने घटनास्थल से एक पिस्टल एक खोखा और आरोपी का क्षतिग्रस्त बाइक बरामद किया है.
दरअसल, जिले सिंघौल थाना क्षेत्र के उलाव गांव निवासी सुबोध साह और मचहा गांव निवासी जयशंकर सिंह उर्फ गेठो सिंह के बीच जमीन पर रास्ता बनाने को लेकर विवाद था. आरोप है कि इसी विवाद में आज सुबह जयशंकर सिंह सुबोध साह के घर पहुंचे और उसकी पत्नी नीतू देवी की गोली मारकर हत्या कर दी.
हत्या के बाद भागने के दौरान परिजनों और ग्रामीणों ने जयशंकर सिंह की पीट-पीटकर हत्या कर दी. इधर, घटना की सूचना पर सिंघोल थाने की पुलिस मौके पर पहुंची और दोनों शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया. हालांकि, इस दौरान आरोपी की मौत को लेकर संशय भी बरकरार रहा.
सदर अस्पताल के चिकित्सकों ने पहले आरोपी को जिंदा घोषित करते हुए अस्पताल में भर्ती कराया लेकिन कुछ देर के बाद डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. मृतका के परिजनों ने बताया कि रास्ता विवाद को लेकर आरोपी ने महिला की गोली मारकर हत्या की और भागने के दौरान भीड़ ने पीट-पीटकर उसकी हत्या कर दी. फिलहाल पुलिस हर बिंदु पर जांच कर रही है.
-रजनीश कुमार
चंद्रदेव सिंह 2004 में बिहार के औरंगाबाद में हाई स्कूल के हेडमास्टर से रिटायर हुए.
1965 में इन्होंने जब नौकरी जॉइन की थी तब इनकी सैलरी प्रति महीने 90 रुपए थी और गेहूं की कीमत थी प्रति क्विंटल 80 रुपए. 2004 में जब रिटायर हुए तो इनकी सैलरी 31 हज़ार थी और गेहूं की क़ीमत 700 रुपए प्रति क्विंटल. यानी सैलरी क़रीब 4000 गुना बढ़ी लेकिन गेहूं की कीमत क़रीब 10 गुना ही बढ़ी.
चंद्रदेव सिंह बिहार में खेती-किसानी के संकट को समझाने के लिए अपना ही उदाहरण देते हैं. वो कहते हैं कि अनाज की क़ीमत उनकी सैलरी की गति से नहीं बढ़नी चाहिए लेकिन कम से कम किसानों को इतना तो मिले कि लागत निकल जाए और अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए क़र्ज़ नहीं लेना पड़े. चंद्रदेव सिंह कहते हैं कि बिहार में अनाज और भूसे के भाव में कोई फ़र्क़ नहीं है.
मोदी सरकार के नए कृषि क़ानून का विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि जो काम नरेंद्र मोदी ने प्रधानमत्री बनने के बाद अब किया है उसे नीतीश कुमार ने 14 साल पहले ही कर दिया था.
नीतीश कुमार ने 2005 में मुख्यमंत्री बनने के एक साल बाद ही बिहार में एपीएमसी यानी एग्रीक्लचर प्रोड्यूस मार्केट कमिटी ख़त्म कर दिया था.
मतलब अभी तीन नए कृषि क़ानूनों के तहत केंद्र सरकार किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी से बाहर अपनी उपज को बेचने की जो मंज़ूरी अभी दे रही है वो बिहार में 2006 से ही लागू है. .
नीतीश कुमार ने मंडी सिस्टम को ख़त्म कर दिया था. कहा जाता है कि इसका असर किसानों पर बहुत अच्छा नहीं हुआ जबकि उस वक़्त इसे कृषि सुधार के तौर पर देखा गया था. किसान बिहार में निजी व्यापारियों को अपना अनाज बेचते हैं लेकिन उनके लिए लागत निकालना भी चुनौती है.
जब नीतीश कुमार ने ये फ़ैसला लिया तो बिहार में कोई विरोध-प्रदर्शन नहीं हुआ था. तब कहा गया कि किसानों में जागरूकता नहीं थी और इस वजह से लोग समझ नहीं पाए. इसके अलावा बिहार में 97 फ़ीसदी छोटी जोत वाले किसान हैं और उनके पास बेचने के लिए बहुत अनाज नहीं बचता है.
भारत के उपभोक्ता मामले और खाद्य मंत्रालय के अनुसार जून 2020 में सरकार की अलग-अलग एजेंसियों ने 389.92 लाख मिट्रिक टन गेहूँ की ख़रीदारी की इसमें बिहार का गेहूं महज़ पाँच हज़ार मिट्रिक टन था जो कि पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की तुलना में न के बराबर है.
पटना यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर रहे नवल किशोर चौधरी कहते हैं, ''बिहार में छोटी जोत वाले किसान ज़्यादा हैं. यहाँ अनाज का सरप्लस उत्पादन नहीं होता है. 97 फ़ीसदी यहाँ वैसे किसान हैं जो अनाज अपने परिवार के खाने से ज़्यादा पैदा नहीं कर पाते हैं क्योंकि सीमित जम़ीन है. ऐसे में नीतीश कुमार ने जब सरकारी मंडियों को ख़त्म किया तो इसका किसानों पर बहुत असर नहीं पड़ा. बिहार में लोग अनाज बेचने से ज़्यादा खाने के लिए उगाते हैं. या फिर यूं कहें कि खाने से ज़्यादा नहीं उगा पाते हैं.''
एनके चौधरी कहते हैं कि बिहार में खेती-किसानी की समस्या पंजाब से बिल्कुल अलग है.
photo by barkhaa dutt, twitter
वो कहते हैं, ''पंजाब की खेती पूंजीवादी है जबकि बिहारी की खेती-किसानी अर्द्ध-सामंती है. पंजाब में उत्पादन का एकमात्र लक्ष्य है मुनाफ़ा कमाना. मुनाफ़े के लालच का असर वहाँ की मिट्टी और भूजल स्तर पर भी पड़ा है. बिहार में खेती की असली समस्या भूमि का स्वामित्व, सिंचाई, तकनीक, श्रम, बाढ़ और सूखा है. बिहार की खेती वहां के किसानों के लिए घाटे का सौदा इसलिए है क्योंकि यहाँ बुनियादी खेती करने वालों के पास ज़मीन नहीं है, सिंचाई की व्यवस्था नहीं है और बाढ़-सूखा को लेकर कोई तैयारी नहीं है.''
प्रोफ़ेसर चौधरी बिहार की खेती-किसानी को अर्द्ध सामंती कहने की वजह बताते हुए कहते हैं क्योंकि यहाँ भूमि पर मालिकाना हक़, श्रम को नियंत्रित करने की शक्ति और आर्थिक क्षमता एक ही वर्ग के पास है.
पटना स्थित एनके सिन्हा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर डीएम दिवाकर कहते हैं कि अगर प्रधानमंत्री की बात सही होती कि कृषि क़ानून से किसानों की हालत अच्छी हो जाएगी तो बिहार में पिछले 14 सालों में किसानों की हालत बदतर क्यों हुई?
डीएम दिवाकर कहते हैं, ''बिहार में धान एक हज़ार रुपए प्रति क्विंटल बिक रहा है. देश भर में 94 फ़ीसदी किसान अपना अनाज मंडी से बाहर ही बेच रहे हैं. इन्हें कोई एमएसपी नहीं मिलता. ऐसे में तो इनकी हालत अच्छी हो जानी चाहिए थी.
"बिहार की खेती-किसानी की असली समस्या ये नहीं है कि उनके लिए बाज़ार नहीं है बल्कि समस्या ये है कि यहां के किसानों के पास भूस्वामित्व नहीं है, बाढ़ और सूखा को लेकर सरकार की कोई योजना नहीं है और सिंचाई की मुकम्मल व्यवस्था नहीं है. मैं ये नहीं कह सकता कि 2006 से पहले बिहार में किसानों की स्थिति अच्छी थी. उसके पहले भी बहुत बुरी थी लेकिन प्रधानमंत्री दावा कर रहे हैं कि कृषि क़ानून से किसानों की हालत सुधर जाएगी तो ये बिहार में पिछले 14 सालों से नहीं हो पाया.''
अरविंद पनगढ़िया मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में नीति आयोग के उपाध्यक्ष थे. वो अभी कोलंबिया यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर हैं और एशियन डेवलपमेंट बैंक के चीफ़ इकनॉमिस्ट भी रहे हैं. अरविंद पनगढ़िया ने मोदी सरकार के कृषि क़ानूनों का समर्थन किया है. उन्हें लगता कि नीतीश कुमार ने बिहार को एपीएमसी से बाहर किया तो उसका असर वहाँ की कृषि पर सकारात्मक पड़ा.
अरविंद पनगढ़िया ने 19 दिसंबर को टाइम्स ऑफ इंडिया में एक लेख लिखा और बताया कि एपीएमएसी से बाहर होने वाले राज्यों में कृषि वृद्धि दर बढ़ गई.
पनगढ़िया ने अपने लेख में लिखा है, ''प्रधानमंत्री वाजपेयी ने पहली बार इसकी शुरुआत मॉडल-एपीएमसी एक्ट, 2003 से की थी. इसके बाद की सभी केंद्र सरकारों ने इन सुधारों को प्रोत्साहित किया. 20 राज्यों ने एपीएमसी एक्ट में संशोधन किया. इनमें से 16 राज्यों ने एक क़ानून लागू किया जिसमें कई और चीज़ें जोड़ी गईं. बिहार ने तो 2006 में एपीएमसी से ख़ुद को अलग कर लिया.''
''आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात और मध्य प्रदेश ने मॉडल एक्ट को अपनाया और इसका नतीजा कृषि वृद्धि दर में भी देखने को मिला. 2006-07 और 2018-19 के बीच इन राज्यों में औसत कृषि वृद्धि दर क्रमशः 7.1%, 5.3%, 3.9% और 6.8% रही जबकि पंजाब में वृद्धि दर महज़ 1.8% रही. कृषि क़ानून की आलोचना करने वाले बिहारी किसानों की ग़रीबी और पंजाबी किसानों की अमीरी के लिए एपीएमसी एक्ट को ज़िम्मेदार बता रहे है. इनका कहना है कि बिहारी किसान इसलिए ग़रीब हुए क्योंकि वहाँ की सरकार ने एपीएमसी एक्ट से ख़ुद को अलग कर लिया.''
पनगढ़िया कहते हैं, ''कृषि में उच्च वृद्धि दर के बावजूद बिहारी किसान पंजाबी किसानों की तुलना में इसलिए ग़रीब हैं क्योंकि बिहारी किसान पहले से ही बहुत ग़रीब थे और उन्होंने अपनी शुरुआत बहुत निचले स्तर से की है. 1992-93 तक पंजाब सकल घरेलू उत्पाद में भारत के सभी राज्यों में दूसरे नंबर था जो 2018-19 में दसवें नंबर पर आ गया.
अरविंद पनगढ़िया के इस तर्क को डीएम दिवाकर सिरे से ख़ारिज करते हैं. वो कहते हैं कि कृषि वृद्धि दर बढ़ने का मतलब ये क़तई नहीं है कि उसका फ़ायदा किसानों को मिला.
दिवाकर कहते हैं, ''बिहार में 20 से ज़्यादा ऐसे ज़िले हैं जहां लोगों की प्रति व्यक्ति आय हर साल 10 हज़ार रुपए से भी कम है जबकि पटना में प्रति व्यक्ति आय 65 हज़ार रुपए हैं. नालंदा में अच्छी फसल हुई इसका मतलब ये नहीं है कि पूरे बिहार में अच्छी फसल हुई. ग्रोथ का बेस इयर क्या है ये मायने रखता है. जहाँ ज़ीरो से शुरुआत होगी वहाँ प्रतिशत में डेटा ख़ूब बड़ा दिखता है.''
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एनके चौधरी कहते हैं कि बिहार की खेती-किसानी की समझ के लिए पनगढ़िया को बिहार आकर देखना होगा.
वो कहते हैं, ''पनगढ़िया कोलंबिया यूनिवर्सिटी से बिहार के किसानों के संकट को नहीं समझ सकते. बिहार और पंजाब के किसानों में जम़ीन आसमान का फ़र्क़ है. पंजाब के किसान इस बात के लिए लड़ रहे हैं कि मार्केट पर कंट्रोल विक्रेता का हो या ख़रीदार का. मोदी सरकार के क़ानून से बाज़ार पर नियंत्रण बड़े ख़रीदारों का हो जाएगा और एमएसपी जैसी व्यवस्था बिना मारे मर जाएगी. वहीं बिहार के किसान तो अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. यहां तो जो काम आज़ादी के बाद हो जाने चाहिए थे वो अब तक नहीं हुए हैं.''
पनगढ़िया ने लिखा है, ''जो कह रहे हैं कि इस क़ानून से निजी कंपनियों को किसानों का शोषण करने की छूट मिल जाएगी उन्हें बताना चाहिए ये कैसे होगा? शोषण निजी कंपनियाँ करेंगी या एपीएमसी के भारी-भरकम एजेंट कर रहे हैं जो थोक होलसेलर्स मिले होते हैं और बिना कोई परामर्श के क़ीमत तय करते हैं. इसके साथ ही वो भारी कमीशन भी खाते हैं. ये तर्क दे रहे हैं कि कॉर्पोरेट घराना एपीएमसी मंडियों को ख़त्म कर देगा और फिर किसानों से वे औने-पौने दाम पर अनाजों की ख़रीदारी करेंगे. अर्थशास्त्री रमेश चाँद और अशोक गुलाटी जैसे अर्थशास्त्रियों ने बताया कि नेस्ले जैसी कंपनियाँ सालों से सरकारी सहकारी संगठनों के साथ मिलकर छोटे दूध उत्पादकों से दूध ख़रीद रही हैं. इन्होंने दूध उत्पादकों का शोषण करने के बजाय उनके दूध की माँग बढ़ाने और मार्केट को बड़ा बनाने में मदद की.''
इंडिया टुडे हिन्दी पत्रिका के संपादक और आर्थिक मामलों के जानकार अंशुमान तिवारी पनगढ़िया के इस तर्क से सहमत नहीं हैं.
वो कहते हैं, ''पनगढ़िया को पता होना चाहिए कि भारत में जिन पशुपालकों से दूध ख़रीदे जा रहे हैं उन्हें कोई अच्छी क़ीमत नहीं मिल रही है. लेकिन नेस्ले जैसी कंपनियाँ डेयरी उत्पाद मोटी क़ीमत पर बेच रही हैं. भारत में पैक्ड दूध विदेशों की तुलना में महंगा है. मतलब दूध का मार्केट बढ़ा लेकिन उसका फ़ायदा न तो दुग्ध उत्पादकों को मिल रहा है और न ही उपभोक्ताओं को. फ़ायदा बड़े कॉर्पोरेट घराने ले रहे हैं और यही डर इस कृषि क़ानून से भी है.''
तिवारी कहते हैं कि भारत में दूध का कारोबार अब भी सहकारी संस्थाओं के ज़रिए हो रहा है.
वो कहते हैं, ''अगर भारत में न्यूज़ीलैंड के डेयरी उत्पाद आ जाएं तो यहां के उपभोक्ताओं को फ़ायदा होगा. संभव है कि मार्केट में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी तो यहाँ के पशुपालकों को भी फ़ायदा हो लेकिन सरकार ऐसा नहीं होने दे रही. भारत ने आरसीईपी इसलिए जॉइन नहीं किया कि भारत का डेयरी उद्योग चौपट हो जाएगा. ऐसे में सवाल उठता है कि आपने अपने डेयरी उद्योग को अब तक ऐसा क्यों नहीं बनाया कि वो विदेशी कंपनियों को टक्कर दे सकें.''
मोदी सरकार के कृषि क़ानून का समर्थन करते हुए अरविंद पनगढ़िया ने कांग्रेस समर्थित अर्थशास्त्रियों पर सवाल उठाए हैं. उनका कहना है कि राजनीतिक पार्टियों का रुख़ तो समझ में आता है लेकिन जिन अर्थशास्त्रियों ने यूपीए सरकार में मुख्य आर्थिक सलाहकार रहते हुए कृषि में नए बदलावों का समर्थन किया था वो भी अब कृषि क़ानून का विरोध कर रहे हैं.
हालाँकि कांग्रेस नेता इस पर कई बार सफ़ाई दे चुके हैं. पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम भी कह चुके हैं कि उनकी सरकार इस तरह के कृषि क़ानून के पक्ष में कभी नहीं थी.
अरविंद पनगढ़िया ने मनमोहन सिंह सरकार में मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे कौशिक बासु और रिज़र्व बैंक के पूर्व अध्यक्ष रघुराम राजन पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि सरकार में रहते हुए इन दोनों अर्थशास्त्रियों ने नए कृषि क़ानून की वकालत की थी.
अरविंद पनगढ़िया को अर्थशास्त्री कौशिक बासु ने जवाब दिया है. इन्होंने लिखा है कि भारतीय कृषि में सुधार की ज़रूत है लेकिन छोटे किसानों की आजीविका की क़ीमत पर नहीं. कौशिक बासु ने ट्वीट कर कहा है, ''हमें राजनीति किनारे रख देनी चाहिए और नए सिरे से क़ानून बनाने पर विचार करना चाहिए, जिसमें व्यापक पैमाने पर विमर्श हो.''
अरविंद पनगढ़िया के जवाब में कौशिक बासु ने टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखा है, ''ये सही बात है कि मैंने और रघुराम राजन ने कहा था कि भारत के कृषि क़ानून पुराने पड़ गए हैं और एपीएमसी एक्ट में सुधार की ज़रूरत है. किसानों को विकल्प देने की ज़रूरत है लेकिन उससे पहले हमें ये सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि छोटे किसानों को शोषण से बचाया जा सके. मुक्त बाज़ार में छोटे किसानों की जो मुश्किलें हैं उनको गंभीरता से देखने की ज़रूरत है.''
''सरकार ने इसकी कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं है जिससे किसानों के शोषण को रोका जा सकेगा. एपीएमसी एक्ट में वर्तमान संशोधन बहुत प्रभावी नहीं है. इस सुधार में बड़े कॉर्पोरेट घरानों को व्यापक पैमाने पर स्टोर करने की अऩुमति दे दी गई है. इससे बड़े कॉर्पोरेट घराने सामने आएंगे और स्टोर व्यापक पैमाने पर करेंगे. इसके मार्केट पर इनका नियंत्रण बढ़ेगा. अगर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में किसानों के साथ किसी भी तरह का कोई विवाद होता है कि उनके मसले को सुलझाने के लिए कोई प्रभावी व्यवस्था नहीं है.'' (bbc.com)
बेगूसराय, 22 दिसंबर | बिहार के बेगूसराय जिले के सिंघौल सहायक थाना (ओपी) क्षेत्र में मंगलवार को एक महिला की हत्या कर भाग रहे एक बदमाश को आक्रोशित लोगों ने पकड़ लिया और फिर उसकी जमकर पिटाई कर दी, जिससे उसकी भी मौत हो गई। दो हत्या के बाद क्षेत्र में तनाव बना हुआ है। पुलिस के एक अधिकारी ने बताया की भूमि विवाद में मंगलवार की सुबह मचहा गांव के रहने वाले जयशंकर सिंह उर्फ घेटो सिंह पास के ही उलाव गांव निवासी सुबोध साह की पत्नी नीतू देवी (35) की गोली मारकर हत्या कर दी और भागने की कोशिश की।
गोली की आवाज सुनकर घर के बाहर पहुंचे मृतक के परिजन और गांव वाले हंगामा करने लगे और जयशंकर सिंह को पकड़ लिया। इसके बाद सिंह की जमकर पिटाई कर दी।
सिंघौल ओपी प्रभारी मनीष कुमार ने बताया कि भीड़ से बचाकर सिंह को इलाज के लिए सदर अस्पताल ले जाया गया, जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।
उन्होंने कहा कि दोनों शवों को पुलिस ने बरामद कर लिया है और पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है। पुलिस मामले की छानबीन कर रही है। हत्या का कारण भूिम विवाद बताया जा रहा है। (आईएएनएस)
जम्मू, 22 दिसंबर जम्मू और कश्मीर में जिला विकास परिषद (डीडीसी) के लिए हुए चुनाव की मतगणना मंगलवार को शुरू हो गई। शुरुआती रुझानों में भाजपा 39 निर्वाचन क्षेत्रों में और गुपकर समूह (पीएजीडी) 38 निर्वाचन क्षेत्रों में आगे चल रही है। डीडीसी के परिणाम 2,178 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे, जिन्होंने आठ चरण के चुनावों में अपना भाग्य आजमाया है।
शुरूआती रुझानों के अनुसार, भाजपा और पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकर डेक्लेरेशन (पीएजीडी ) के बीच कांटे की टक्कर दिख रही है। 119 निर्वाचन क्षेत्रों के शुरुआती रूझान के अनुसार भाजपा के उम्मीदवार 39 सीटों पर जबकि पीएजीडी के उम्मीदवार 38 निर्वाचन क्षेत्रों में आगे चल रहे हैं।
केंद्रशासित प्रदेश में सभी आठ चरणों में कुल मतदान प्रतिशत 51.42 प्रतिशत है और 30 लाख से अधिक मतों की गणना जम्मू और कश्मीर में मतगणना केंद्रों पर की जा रही है।
डीसी जम्मू, सुषमा चौहान ने आईएएनएस को बताया कि मतगणना केंद्रों पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। कानून और व्यवस्था बनाए रखना प्रशासन की प्राथमिकता है।
उन्होंने कहा, "विजय जुलूसों को रेगुलेट किया जा रहा है। मतगणना के दौरान कोई विजय जुलूस नहीं होगा या प्रक्रिया में गड़बड़ी की अनुमति नहीं दी जाएगी।" (आईएएनएस)
बदायूं (उप्र), 22 दिसंबर | उत्तर प्रदेश में दो व्यक्तियों को संपत्ति विवाद को लेकर अपने माता-पिता की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। बेटों ने न केवल अपने माता-पिता की हत्या की थी, बल्कि इसे एक दुर्घटना के रूप में दिखाने के लिए उनके शवों को जलाने की भी कोशिश की थी।
गौरतलब है कि 61 वर्षीय राजेन्द्र और उनकी पत्नी राजवती (57) जो अपने बदायूं स्थित घर पर रहते थे, के शव 15 दिसंबर को उनके कमरे में बुरी तरह से जले पाए गए थे। यह घटना संजरपुर गुलाल गांव की है।
उनके चार बेटे थे लेकिन उनमें से कोई भी बुजुर्ग दंपति के साथ नहीं रहता था।
बुजुर्ग दंपति के दो बेटे दिल्ली में काम करते हैं, जबकि दो अन्य बदायूं में रहते हैं। परिवार के पास गांव में एक घर और लगभग 10 एकड़ खेत था।
शुरू में, जांच के दौरान, दोनों बेटों ने दावा किया था कि एक कंबल में आग लग गई थी और उनके माता-पिता जिंदा जल गए थे।
हालांकि, शव परीक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि दंपति की गला घोंटने से मौत हो गई थी और उनके शवों को बाद में आग लगा दी गई थी।
एसएसपी संकल्प शर्मा ने कहा, "शव परीक्षण के बाद, हमने एक निगरानी टीम तैनात की और संदिग्धों से पूछताछ शुरू की। हमें पता चला कि दोनों बेटों विक्रम और सुमित का अपने पिता के साथ झगड़ा हुआ था क्योंकि पिता ने अपनी संपत्ति बेचने और उन्हें हिस्सा देने से मना कर दिया था।"
उन्होंने कहा कि विक्रम और सुमित से पूछताछ की गई और बाद में उन्होंने अपराध कबूल कर लिया। दोनों को सोमवार को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है।
आरोपियों पर आईपीसी की धारा 302 (हत्या) और 201 (सबूत गायब करने) के तहत मामला दर्ज किया गया है। (आईएएनएस)
आनंद सिंह
नई दिल्ली/हाथरस (उत्तर प्रदेश), 22 दिसंबर | ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) ने सीबीआई को दी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 19 वर्षीय हाथरस पीड़िता के साथ यौन उत्पीड़न से इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि यौन हिंसा के दौरान लगी चोटों के पैटर्न में काफी भिन्नताएं देखी जा सकती हैं। यह खुलासा हाथरस की अदालत में सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के आरोपियों के खिलाफ दायर केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की चार्जशीट से हुआ है।
आरोपी के वकील ने संवाददाताओं को बताया कि अदालत ने आरोप पत्र का संज्ञान लिया है।
आईएएनएस द्वारा देखी गई 19 पन्नों की चार्जशीट बताती है कि डॉ. आदर्श कुमार की अगुवाई में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के मल्टी इंस्टीट्यूशनल मेडिकल बोर्ड (एमआईएमबी) ने एजेंसी को अपनी रिपोर्ट पेश की है। डॉ. कुमार फोरेंसिक मेडिसीन एंड टॉक्सिकॉलोजी के प्रोफेसर हैं।
एमआईएमबी की रिपोर्ट में कहा गया है, ".. यौन उत्पीड़न की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। यौन हिंसा की घटना के दौरान लगी चोट के पैटर्न में काफी भिन्नताएं देखी जा सकती हैं। यह चोटों की पूर्ण अनुपस्थिति (अधिक बार) से लेकर गंभीर चोटों (बहुत दुर्लभ) तक हो सकती है। इस मामले में, चूंकि यौन उत्पीड़न के लिए रिपोर्टिग या फोरेंसिक जांच में देरी हुई थी, इसलिए ये कारक जननांग की चोट के महत्वपूर्ण लक्षण दिखाई नहीं देने के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं।"
सीबीआई ने कहा कि एमआईएमबी ने यह भी पाया कि पीड़ित की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में 'हाइमन' में कई पुराने 'हील्ड टीयर्स' का भी उल्लेख है।
सीबीआई की चार्जशीट में कहा गया है कि पीड़ित के मरते समय दिया गया बयान एक 'महत्वपूर्ण सबूत' था। यह अन्य सबूतों को सपोर्ट करता है और यह आरोपी संदीप, लवकुश, रवि और रामू के खिलाफ आरोप स्थापित करता है।
इसी साल 14 सितंबर को हाथरस में चार उच्च-जाति के पुरुषों ने दलित महिला के साथ कथित रूप से सामूहिक दुष्कर्म किया था। इलाज के दौरान 29 सितंबर को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में पीड़िता की मौत हो गई थी।
पुलिस ने परिवार की मंजूरी के बिना पीड़िता का देर रात दाह संस्कार कर दिया था।
हालांकि, अधिकारियों ने कहा कि अंतिम संस्कार 'परिवार की इच्छा के अनुसार' किया गया था।
सीबीआई अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने न्यायिक हिरासत में बंद आरोपी संदीप, लवकुश, रवि और रामू की भूमिका की जांच की है और उनका गांधीनगर के फॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरी में विभिन्न परीक्षण किया गया।
सीबीआई ने मामले की जांच के लिए एक विशेष टीम का गठन किया था और इसे उसकी गाजियाबाद इकाई को सौंप दिया गया था। टीम ने पीड़ित परिवार के बयान दर्ज किए। (आईएएनएस)
विशाल गुलाटी
धर्मशाला, 22 दिसंबर (आईएएनएस)| निर्वासित तिब्बती सरकार के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि के तौर पर अमेरिकी सीनेट ने मंगलवार को सर्वसम्मति से तिब्बती नीति और सहायता अधिनियम (टीपीएसए) 2020 को पारित कर दिया, जो मई से सीनेट की विदेश संबंध समिति में अटका हुआ था।
एक ऐतिहासिक निर्णय के रूप में बताते हुए, केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के अध्यक्ष लोबसांग सांगे, जो वर्तमान में वाशिंगटन में हैं, ने फोन पर आईएएनएस को बताया कि तिब्बती नीति और समर्थन अधिनियम इस बात को आधिकारिक बनाता है कि अमेरिकी नीति दलाई लामा के रीइनकॉर्नेशन के संबंध में निर्णय मौजूदा दलाई लामा (तिब्बती धर्मगुरु) के अथॉरिटी के भीतर विशेष रूप से हैं।
उन्होंने कहा, "चीनी सरकार के अधिकारियों के किसी भी हस्तक्षेप की परिणिती गंभीर प्रतिबंधों के रूप में होगी और अमेरिका में इसे अस्वीकार्य माना जाएगा।"
टीपीएसए अप्रोप्रिएशन बिल का हिस्सा था जिस पर बहस हुई और पारित किया गया।
सांगे ने एक ट्वीट में कहा, "मैं पिछले पांच दिनों से वाशिंगटन डीसी में हूं और आखिरकार प्रयासों को फलीभूत होते देख अच्छा लग रहा है।"
सांगे ने एक बयान में कहा, "टीपीएसए पास करके, कांग्रेस ने अपना संदेश जोर से और स्पष्ट रूप से भेजा है कि अमेरिका के लिए तिब्बत एक प्राथमिकता है और वह दलाई लामा और सीटीए के लिए अपना समर्थन जारी रखेगा।"
उन्होंने कहा, "यह तिब्बती लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।"
बाइपार्टिजन बिल लोकतांत्रिक शासन को लागू करने के निर्णय के लिए दलाई लामा की सराहना करता है और नेताओं को चुनने के लिए लोकतांत्रिक संस्थानों के साथ स्व-शासन की प्रणाली को सफलतापूर्वक अपनाने के लिए तिब्बती निर्वासित समुदाय की भी अनुशंसा करता है।
इसके अलावा, यह औपचारिक रूप से सीटीए को वैध संस्था के रूप में स्वीकार करता है।
टीपीसीए तिब्बती पठार पर पर्यावरण और जल संसाधनों की रक्षा करने के उद्देश्य से नए प्रमुख प्रावधानों को भी पेश करता है। यह चीनी सरकार द्वारा तिब्बती खानाबदोशों के जबरन पुनर्वास के विरोध में इस क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों को कम करने में पारंपरिक तिब्बती घास के मैदान के विकास के महत्व को स्वीकार करता है।
इसके अलावा, यह तिब्बती पठार पर पर्यावरण की निगरानी के लिए अधिक से अधिक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का आह्वान करता है।
नई दिल्ली, 22 दिसंबर | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के शताब्दी समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की। इस दौरान उन्होंने बताया कि 2014 तक 70 फीसदी मुस्लिम छात्राएं अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देती थी। वहीं अब नए और बेहतर माहौल में केवल 30 प्रतिशत छात्राएं ही पढ़ाई बीच में छोड़ती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, एक समय था जब हमारे देश में मुस्लिम बेटियों का स्कूल ड्रॉपआउट रेट 70 फीसदी से ज्यादा था। मुस्लिम समाज की प्रगति में बेटियों का इस तरह पढ़ाई बीच में छोड़ना हमेशा से बहुत बड़ी बाधा रहा है। 70 साल से हमारे यहां 70 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम बेटियां अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पा रहीं थी। स्वच्छ भारत मिशन शुरू हुआ, गांव गांव शौचालय बने। सरकार ने मिशन मोड पर शौचालय बनवाए। आज देश के सामने क्या स्थिति है। पहले मुस्लिम बेटियों का जो स्कूल ड्रॉपआउट रेट 70 फीसदी से ज्यादा था, वह अब घटकर 30 प्रतिशत रह गया है। पहले लाखों मुस्लिम बेटियां शौचालय की कमी की वजह से पढ़ाई छोड़ देती थी। अब हालात बदल रहे हैं। मुस्लिम छात्राओं का ड्रॉपआउट रेट कम हो रहा है। मुझे एक और बात बताई गई है एएमयू में अब महिला छात्राओं की संख्या बढ़कर 35 फीसदी हो गई है।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों एवं शिक्षकों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि मुस्लिम बेटियों की शिक्षा पर, उनके सशक्तिकरण पर सरकार का बहुत ध्यान है। पिछले 6 साल में सरकार द्वारा करीब करीब एक करोड़ मुस्लिम बेटियों को स्कॉलरशिप दी गई है। जेंडर के आधार पर भेदभाव न हो, सबको बराबर अधिकार मिले। देश के विकास का लाभ सबको मिले, यह एएमयू की स्थापना की प्राथमिकताओं में भी था।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस दौरान तीन तलाक का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि तीन तलाक जैसी कुप्रथा का अंत करके देश ने महिलाओं के लिए समान अधिकार की बात को आगे बढ़ाया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह कहा जाता है कि घर की महिला शिक्षित हो तो पूरा परिवार शिक्षित हो जाता है। लेकिन शिक्षा के और भी गहरे मायने हैं। महिलाओं को शिक्षित होना है ताकि वह अपने अधिकारों का सही इस्तेमाल कर सकें, अपना भविष्य खुद बना सकें।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि एक सशक्त महिला का हर स्तर पर हर फैसले में बराबर का योगदान होता है। फिर चाहे बात परिवार को राय देने की हो या फिर देश को दिशा देने की। आज जब मैं आपसे बात कर रहा हूं तो देश के अन्य शिक्षा संस्थानों से भी कहूंगा कि ज्यादा से ज्यादा बेटियों को शिक्षा से जोड़ें और उन्हें सामान्य एजुकेशन ही नहीं बल्कि उच्च शिक्षा तक लेकर जाएं।
एएमयू के पाठ्यक्रम की प्रशंसा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, साथियों, एएमयू ने हायर एजुकेशन में अपने पाठ्यक्रम में बहुतों को आकर्षित किया है। आपकी यूनिवर्सिटी में इंटर डिसीप्लिनरी विषय पहले से पढ़ाए जाते हैं। छात्र के लिए ऐसी मजबूरी क्यों हो कि वह किसी एक ही चीज को ही चुन सके। यही नई शिक्षा नीति में है। इसमें छात्र की रुचि को सबसे ज्यादा ध्यान में रखा गया है। हमारे देश का युवा नेशन फस्र्ट के आवाहन के साथ नए-नए स्टार्टअप के जरिए देश की चुनौतियों का समाधान निकाल रहा है। नेशन फस्र्ट और वैज्ञानिक सोच उसकी प्राथमिकता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारत की युवाओं की आकांक्षाओं को प्राथमिकता दी गई है। हमारी कोशिश भी है कि भारत का एजुकेशन इको सिस्टम दुनिया की आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में से एक हो। नई शिक्षा नीति में जो मल्टीपल एंट्री है और एग्जिट की व्यवस्था है उससे छात्र को अपनी शिक्षा के बारे में फैसले लेने में आसानी होगी।
प्रधानमंत्री ने इस दौरान बताया कि देश में बिना किसी भेदभाव के सभी को विकास का लाभ मिल रहा है। उन्होंने कहा, आज देश उस मार्ग पर बढ़ रहा है जहां प्रत्येक नागरिक को बिना किसी भेदभाव के देश में हो रहे विकास का लाभ मिले। देश आज उस मार्ग पर चल पड़ा है जहां प्रत्येक नागरिक संविधान से मिले अपने अधिकारों को लेकर निश्चिंत रहे। अपने भविष्य को लेकर निश्चिंत रहे। देश आज उस मार्ग पर बढ़ रहा है जहां मजहब की वजह से कोई पीछे न छूटे। सभी को आगे बढ़ने के समान अवसर मिले। सभी अपने सपने पूरे करें। सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास यह मंत्र आधार है। जिसकी नियत और नीतियों में यही संकल्प झलकता है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि गरीबों के लिए जो योजनाएं बनाई जा रही हैं वह बिना किसी मजहबी भेदभाव के हर वर्ग तक पहुंच रही हैं। बिना किसी भेदभाव के 40 करोड़ से ज्यादा गरीबों के बैंक खाते खोले। बिना किसी भेदभाव के दो करोड़ से ज्यादा गरीबों को पक्के घर दिए गए। बिना किसी भेदभाव के 8 करोड़ से ज्यादा महिलाओं को गैस कनेक्शन मिले। बिना किसी भेदभाव के कोरोना के समय 80 करोड़ देशवासियों को मुफ्त राशन सुनिश्चित किया गया। बिना किसी भेदभाव के आयुष्मान योजना के तहत 50 करोड़ लोगों को 5 लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज संभव हुआ।
प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत इस देश में 10 करोड़ से ज्यादा शौचालय बने। इसका लाभ सभी को हुआ। यह शौचालय भी बिना भेदभाव के ही बने थे। (आईएएनएस)
श्रीनगर, 22 दिसंबर | जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में मंगलवार को भी भीषण ठंड जारी रही। मौसम विभाग ने शुक्रवार और शनिवार के बीच यहां बारिश और बर्फबारी होने का अनुमान लगाया है। मौसम विभाग के एक अधिकारी ने बताया, "ठंड और शुष्क मौसम 26 दिसंबर की शाम तक जारी रहेगा। 26 दिसंबर की शाम से 27 दिसंबर की शाम के बीच कश्मीर घाटी और कारगिल में हल्की से मध्यम बर्फबारी होने की संभावना है।"
राज्य में 40 दिनों की भीषण सर्दी का समय 'चिल्लई कलां' शुरू हो चुकी है, जो 31 जनवरी तक चलेगा।
इस दौरान श्रीनगर में दिन का न्यूनतम तापमान माइनस 5.2 डिग्री सेल्सियस, पहलगाम में माइनस 5.8 और गुलमर्ग में माइनस 7.4 दर्ज किया गया।
लद्दाख के लेह शहर में रात का न्यूनतम तापमान माइनस 16.4 डिग्री, कारगिल में माइनस 18.4 और द्रास में माइनस 18.6 दर्ज किया गया।
वहीं जम्मू शहर में न्यूनतम तापमान 6.2, कटरा में 7.6, बटोटे में माइनस 2.8, बेनिहाल में माइनस 0.4 और भद्रवाह में माइनस 1.1 रहा। (आईएएनएस)
भोपाल, 22 दिसंबर | मध्य प्रदेश के दमोह जिले की मासूम बच्ची की हरियाणा के झज्जर में दुष्कर्म के बाद नृशंस हत्या कर दी गई। इस घटना पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दुख व्यक्त करते हुए दोषी को कड़ी सजा दिए जाने की पैरवी करते हुए प्रभावित परिवार को चार लाख रुपए की आर्थिक मदद का ऐलान किया है। मिली जानकारी के अनुसार, हरियाणा के झज्जर में मध्य प्रदेश के दमोह जिले का परिवार रहता है, पांच साल की मासूम का 20 दिसंबर को पांचवां जन्म दिन था। उसी दिन आरोपी विनोद ने उसे घर से अगवा किया और अपने घर ले जाकर मासूम से दुष्कर्म किया और निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी। इस वारदात को अंजाम तब दिया गया जब बालिका घर के अंदर से चीखती रही और बच्ची के माता-पिता घर के बाहर असहाय खड़े रहे। आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हरियाणा के झज्जर में एक मासूम बच्ची के साथ हुई दरिंदगी की घटना को हृदय विदारक बताते हुए इसकी निंदा की। मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि पीड़िता से किए गए बर्ताव के दोषी को कड़ी से कड़ी सजा देने की जरूरत है। उन्होंने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर खट्टर से चर्चा की। खट्टर ने आश्वस्त किया कि अपराधी को सख्त सजा दी जाएगी।
मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि प्रभावित परिवार को मप्र सरकार की ओर से 4 लाख रुपए की सहायता राशि दी जा रही है। प्रभावित परिवार को आवश्यक मदद के साथ ही न्याय भी दिलवाया जाएगा।
बताया गया है कि मध्य प्रदेश का पुलिस दल भी हरियाणा जा रहा है। दल झज्जर रवाना हो गया है। (आईएएनएस)
जब हम पर्यावरण पर अपने पदचिन्हों की बात करते हैं तो हमारा ध्यान घर के कचरे तक ही सीमित रहता है. लेकिन उस कचरे और प्रदूषण का क्या करें जो हमारे इस्तेमाल की चीजों को बनाने के दौरान पैदा होता है?
ज्यादातर लोगों को लगता है उन्हें मालूम कि कचरा क्या होता है. वो अपनी ब्रोक्कोली पर से उतारी गई पन्नी या उनका नया लैपटॉप जिस गत्ते के डब्बे में आया था उसी को कचरा समझते हैं. कुछ लोग यह भी समझते हैं कि वो लैपटॉप खुद जब किसी काम का नहीं रहेगा तब कचरा बन जाएगा. हर साल दुनिया में करीब दो अरब मीट्रिक टन कचरा पैदा होता है, लेकिन ये सिर्फ वो कचरा है जो हम देख सकते हैं.
डिजिटल टेक्नोलॉजी को बनाने के वैश्विक असर पर एक किताब के लेखक जॉश लेपॉस्की कहते हैं, "बतौर उपभोक्ता हमारा जिस कचरे से आमना सामना होता है, वो दुनिया के पूरे कचरे के सिर्फ दो से तीन प्रतिशत के बराबर है." दुनिया भर के कचरे का सबसे बड़ा हिस्सा हम जिन चीजों को खरीदते हैं उन्हें बनाने में होने वाले संसाधनों के इस्तेमाल, उत्पादन, लाने-ले जाने और बिजली उत्पादन में छिपा हुआ रहता है और इसका आसानी से पता नहीं लगाया जा सकता.
इलेक्ट्रॉनिक उपकरण इस तरह के कचरे के लिए विशेष रूप से जिम्मेदार हैं. यह दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता हुआ कचरे का स्त्रोत है और अदृश्य कचरे के सबसे बड़े स्त्रोतों में से एक है. लेपॉस्की बताते हैं, "इलेक्ट्रॉनिक्स से निकलने वाला अधिकतर कचरा और प्रदूषण उन उपकरणों के लोगों के पास पहुंचने से बहुत पहले निकल चुका होता है."
इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बनाने में खतरनाक रसायन और ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं और बहुत पानी भी बहाना पड़ता है, लेकिन ये सब आम उपभोक्ता को दिखाई नहीं देता है और इसे परिमाणित करना भी मुश्किल है. इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में कई तरह के पुर्जे होते हैं जिनमें से अधिकतर दुनिया के अलग-अलग कोनों में बनते हैं और फिर उन्हें एक जगह लाकर जोड़ा जाता है.
बहुमूल्य धातुओं का खनन
मिसाल के तौर पर एक स्मार्टफोन के अंदर 62 धातु हो सकते हैं. एक आईफोन के कई पुर्जों में सोना, चांदी और पैलेडियम जैसे धातु भी होते हैं. इन धातुओं का मुख्य रूप से एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में उत्खनन होता है. इन्हें खदानों में से निकालना पड़ता है.
स्वीडन के कचरा प्रबंधन और रीसाइक्लिंग संगठन एवफॉल स्वेरिज ने हिसाब लगाया है कि एक स्मार्टफोन को बनाने में करीब 86 किलो और एक लैपटॉप को बनाने में लगभग 1,200 किलो अदृश्य कचरा निकलता है. इस अध्ययन की सह-लेखक एना करिन ग्रिपवॉल कहती हैं, "इसमें पत्थर, कंकड़ और धातु का मैल जैसी चीजें भी शामिल हैं. इसमें इस्तेमाल किए गए ईंधन और बिजली भी शामिल है, हालांकि खनन से संबंधित कचरे के सामने ये बहुत ही काम मात्रा का कचरा है."
सर्वे किए गए सभी उत्पादों में ये सबसे ज्यादा है. इन उत्पादों में एक किलो बीफ और कॉटन की एक जोड़ी पतलूनें भी शामिल हैं, जो चार किलो और 25 किलो कचरा निकालते हैं.
एक गंदा उद्योग
बहुमूल्य धातुओं के खनन, कटाई, ड्रिल करना, धमाके करना और यहां से वहां ले जाने में नुकसानदेह धातुओं वाली धूल उड़ सकती है. रसायन भी उड़ कर हवा में और आस पास के पानी के स्रोतों में मिल सकते हैं. अमेरिका के इंडियाना में पर्ड्यू विश्वविद्यालय में मैकेनिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर फू हाओ ने बताया, "कच्चे धातु को निकाल लेने के बाद, आपको कॉन्सेंट्रेटेड पदार्थों को अलग करना पड़ता है.
इन्हें अलग करना मुश्किल होता है, इसलिए आपको रसायन और ऊंचे तापमान का इस्तेमाल करना पड़ता है." उन्होंने यह भी बताया कि यह जब बड़े स्तर पर करना हो तो यह विशेष रूप से जटिल हो जाता है. ठीक से निगरानी के बिना ये विषैले अंश भूजल को दूषित कर सकते हैं, घाटियों और नदी-नालों में उतर सकते हैं और मिट्टी, पौधों और पशुओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं. इस तरह ये इंसानी आबादी के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा बन सकते हैं.
अमेरिका के डेलावेर विश्वविद्यालय में ऊर्जा और पर्यावरण के प्रोफेसर सलीम अली का कहना है कि इसका यह मतलब नहीं है कि बहुमूल्य धातुओं का खनन हमेशा पर्यावरण के लिए बुरा ही होता है. उन्होंने कहा, "चुनौती इसे इस तरह से करने में है जिससे पर्यावरण को नुकसान ना पहुंचे. आपको ऐसे तरीके ढूंढने हैं जिनसे ये विषैले पदार्थ ग्राउंडवाटर सप्लाई में ना पहुंचे. इसके अलावा इन इलाकों में काम करने वाले लोगों को सुरक्षात्मक उपकरण दिए जाएं ताकि वो वाष्पशील पदार्थों को सूंघने से बच सकें."
अली का मानना है कि यह निवेश बढ़ा कर किया जा सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि एक और बेहतर उपाय यह है कि इन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बनाने के लिए और ज्यादा नवीकरणीय ऊर्जा के स्त्रोतों का इस्तेमाल किया जाए.
अमेरिका से चीन, हांग कांग और फिर वापस
लेपॉस्की कहते हैं, "कुछ इलेक्ट्रॉनिक पुर्जों को बनाने में जिन गैसों का इस्तेमाल होता है उनमें से कई "कार्बन डाइऑक्साइड से कई गुना ज्यादा शक्तिशाली होती हैं." इनमें स्क्रीनों को बनाने में इस्तेमाल की जाने वाली फ्लोरिनेटेड ग्रीनहाउस गैसें शामिल हैं. अब अधिकतर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उत्पादन चीन, हांग कांग, अमेरिका और दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों में होता है.
अदृश्य कचरे का हिसाब लगाने में आने वाली मुश्किलों का एक कारण यह भी है कि विशेष रूप से इलक्ट्रोनिक जैसे कई आधुनिक उत्पादों की सप्लाई चेन लंबी और पेचीदा होती है. एप्पल 27 अलग अलग देशों में स्थित उसके चोटी के 200 सप्लायरों की सूची जारी करता है, लेकिन इनमें से अधिकतर सप्लायरों के ठिकाने ऐसे स्थानों पर हैं जहां विषैले प्रदूषकों पर नजर रखने वाले सार्वजनिक रजिस्टर नहीं है.
रिसाइकिल करने की सीमा
जहां तक उन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का सवाल है जिन्हें हम फेंक देते हैं, आजकल इनमें से सिर्फ 17.4 प्रतिशत इकट्ठा और रिसाइकिल किए जाते हैं. लेकिन लेपॉस्की का कहना है कि अगर सभी उपकरणों को भी सफलतापूर्वक रिसाइकिल कर लिया जाए तो भी उससे उत्पादन के समय पैदा हुए कचरे और प्रदूषण की भरपाई नहीं की जा सकती. वो कहते हैं कि इससे खनन के कचरे पर भी सिर्फ हल्का सा असर पड़ेगा.
चिली के रांकागुआ में मिनेरा वाले सेंट्रल माइनिंग कंपनी तांबे की एक खदान में से गंदा पानी एक झील में डाल रही है.
हां ई-वेस्ट के रिसाइकिल ना होने से समस्या का एक हिस्सा रेखांकित जरूर होता है. हाओ के अनुसार, "अगर आप इलेक्ट्रॉनिक्स को देखें, तो उन्हें फिर से इस्तेमाल करने या फिर से बनाने के लिए डिजाईन ही नहीं किया जाता है." एप्पल ने प्रण लिया है कि वो 2030 तक 100 प्रतिशत कार्बन न्यूट्रल हो जाएगी. कंपनी ने ई-वेस्ट को लेकर बढ़ रही चिंताओं को देखते हुए यह भी कहा है कि वो हर आईफोन के साथ इयरफोन और चार्जर नहीं बेचेगी.
उसने अपने उत्पादन में रिसाइकिल किए हुए पदार्थों के इस्तेमाल को बढ़ाने का भी वादा किया है. लेकिन हाओ का कहना है कि तकनीक में तेजी से बदलाव हो रहे हैं और इन्हें जटिल और मुश्किल से अलग करने वाले एक उपकरण में डालने से इन लक्ष्यों को हासिल करना एक चुनौती बन जाता है. वो कहते हैं कि आपका सेल फोन कुछ ही सालों में पुराना हो जाएगा और इस वजह से फिर से इस्तेमाल करना और फिर से बनाना लगभग असंभव हो जाता है.
- चार्ली शील्ड
भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी को बढ़ाने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लीजन ऑफ मेरिट से सम्मानित किया गया है. राजदूत तरणजीत सिंह संधू ने पदक स्वीकार किया.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी का लिखा-
प्रधानमंत्री मोदी को राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा अमेरिका-भारत रणनीतिक साझेदारी को बढ़ाने में उनके नेतृत्व के लिए लीजन ऑफ मेरिट से सम्मानित किया गया है. वॉशिंगटन में अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रॉबर्ट ओ' ब्रायन ने भारतीय राजदूत को मेडल सौंपा. लीजन ऑफ मेरिट एक शीर्ष सम्मान है जो किसी देश या सरकार के प्रमुख को दिया जाता है. मोदी को यह सम्मान उनके दृढ़ नेतृत्व, भारत को वैश्विक शक्ति के रूप में उभारने के लिए गति देने, वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने और अमेरिका और भारत के बीच रणनीतिक साझेदारी को बढ़ाने के लिए दिया गया है. रॉबर्ट ओ' ब्रायन ने मेडल देने वाली तस्वीर ट्वीट कर लिखा, "राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लीजन ऑफ मेरिट से सम्मानित किया है. उन्होंने जिस तरह से भारत को वैश्विक मंच पर पहुंचाया है और भारत-अमेरिका के रिश्तों को मजबूत किया है उसके लिए ये सम्मान दिया गया है."
क्या है लीजन ऑफ मेरिट
यह मेडल अमेरिकी सेना के सदस्यों, विदेशी सैन्य सदस्यों और उन राजनीतिक हस्तियों को दिया जाता है, जिन्होंने उत्कृष्ट सेवाओं और उपलब्धियों का प्रदर्शन किया है. अमेरिकी संसद ने 20 जुलाई 1942 को इस मेडल की शुरुआत की थी. लीजन ऑफ मेरिट सर्वोच्च सैन्य पदकों में से एक है. गौरतलब है कि ट्रंप के कार्यकाल के दौरान दोनों देशों के बीच रिश्ते आगे बढ़े हैं और दोनों नेता एक साथ कार्यक्रम में भी नजर आ चुके हैं.
मोदी के अलावा इस बार ये सम्मान ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन और जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे को भी दिया गया है. ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ भी अमेरिका के रिश्ते बीते सालों में मजबूत हुए हैं. गौरतलब है कि अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया क्वाड सदस्य हैं जो कि चीन की रणनीति की काट के लिए बनाया गया है.
आगरा, 22 दिसंबर | उत्तर प्रदेश के आगरा में मंगलवार को यमुना एक्सप्रेस-वे पर एक कार कंटेनर से टकरा गई, जिससे कार में आग लग गई। हादसे में कार सवार पांच लोगों की जिंदा जलकर मौत हो गई। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) बब्लू कुमार ने पत्रकारों को बताया कि आगरा से नोएडा की ओर जा रही कार 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से आगे जा रहे कंटेनर के डीजल टैंक से टकरा गई। टक्कर के बाद कार में आग लग गई। इसमें सवार 5 लोगों की जलने से मौत हो गयी है।
हादसा थाना खंदौली क्षेत्र में तड़के तकरीबन 4.30 बजे हुआ। कार आगरा से नोएडा की ओर जा रही थी। यमुना एक्सप्रेसवे के माइल स्टोन 160 के नजदीक आगे चल रहे कंटेनर से कार टकरा गई। एक्सप्रेसवे के बूथ के कर्मचारी ने पुलिस को सूचना दी। जब तक पुलिस मौके पर पहुंची, तब तक चालक कंटेनर छोड़कर भाग चुका था।
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, आसपास के लोगों ने पुलिस को सूचना दी। तब तक टैंकर का ड्राइवर और क्लीनर फरार हो गया था। कार लपटों में घिरी थी। उसमें बैठे लोग मदद की गुहार लगा रहे थे, लेकिन फायर ब्रिगेड की एक गाड़ी करीब एक घंटे बाद पहुंची। तब तक कार और उसमें सवार लोग जल चुके थे। हादसे के बाद करीब एक घंटे तक एक्सप्रेस-वे पर यातायात रुका रहा।
उधर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस भीषण हादसे पर गहरा दुख जताया। उन्होंने दिवंगत आत्मा की शांति की कामना करते हुए मृतकों के शोक संतृप्त परिजनों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की है।(आईएएनएस)
कानपुर, 22 दिसंबर| उत्तर प्रदेश के कानपुर में पड़ोसी की गाय को डंडे से हांकने के विवाद में एक 46 वर्षीय शख्स को उसकी पत्नी और बच्चों के सामने पीट-पीटकर मार डाला गया। घटना सोमवार शाम को गोविंद नगर पुलिस थाने के अंतर्गत आने वाले महादेव नगर बस्ती में हुई।
संदिग्ध हत्यारा आयुष यादव अब अपने परिवार के साथ फरार है।
खबरों के मुताबिक, आयुष यादव की गाय रमन गुप्ता के घर के सामने आकर खड़ी हो गई थी।
चूंकि रमन गुप्ता के बच्चे, तीन बेटियां और एक बेटा घर के सामने खेल रहे थे, इसलिए उन्होंने गाय को वहां से भगाने की कोशिश की।
रमन और उनके परिवार ने गाय को हांकने के लिए डंडे का इस्तेमाल किया जिसे आयुष ने देख लिया और मौके पर पहुंचकर कथित रूप से रमन और उनके परिवार के साथ गालीगलौच की और धमकाया।
रमन की पत्नी माया ने पत्रकारों से कहा, "उसने हमें गाय को डंडे से मारने के लिए दोषी ठहराया। जल्द ही, यह मेरे पति और आयुष के बीच झगड़े में बदल गया।"
कुछ मिनटों बाद, आयुष डंडा लेकर मौके पर लौट आया।
माया ने कहा, "आयुष सबके सामने बार-बार डंडे से मेरे पति के सिर और शरीर के अन्य महत्वपूर्ण अंगों पर वार करता रहा। जब हमने उन्हें बचाने की कोशिश की, तो आरोपी ने हम पर भी हमला किया।"
रमन का खून बहना शुरू हो गया और मौके पर ही गिर पड़े जबकि आयुष हाथ में डंडा लेकर चला गया।
पड़ोसियों ने पुलिस को सूचित किया, जबकि रमन का परिवार उन्हें पास के नर्सिग होम में ले गया, जहां से उसे लाला लाजपत राय अस्पताल में रेफर कर दिया गया। वहां के डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
बिहार के दरभंगा के रहने वाले रमन बेरोजगार थे और उनकी पत्नी माया घरों में काम करके घर चलाती थी।
आरोपी आयुष एक डेरी मालिक है और इलाके में अपने परिवार के साथ रहता है।
एसपी, दक्षिण, दीपक भुकर ने कहा, "मृतक के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है और प्राथमिकी दर्ज कर ली गई है। हमने अपने परिवार संग फरार आरोपी की गिरफ्तारी के लिए टीमों का गठन किया है।" (आईएएनएस)
जम्मू, 22 दिसंबर| पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले में नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर लगातार चौथे दिन मंगलवार को संघर्ष विराम उल्लंघन जारी रखा। अधिकारियों ने यह जानकारी दी। रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता, कर्नल देवेंद्र आनंद ने कहा कि मंगलवार को सुबह लगभग 9.30 बजे पाकिस्तान ने पुंछ जिले के मनकोट सेक्टर में नियंत्रण रेखा के पास छोटे हथियारों से फायरिंग करके और मोर्टार से गोले दागकर संघर्ष विराम का उल्लंघन किया।
प्रवक्ता ने कहा कि भारतीय सेना ने भी मुंहतोड़ जवाब दिया है।
पाकिस्तान पिछले चार दिनों से नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम का लगातार उल्लंघन कर रहा है।
पाकिस्तान द्वारा मंगलवार को संघर्षविराम का उल्लंघन ऐसे समय पर हुआ है जब अधिकारी जिला विकास परिषद (डीडीसी) के चुनाव के लिए वोटों की गिनती में व्यस्त हैं।
5 अगस्त, 2019 को धारा 370 को निरस्त करने के बाद जम्मू-कश्मीर में डीडीसी चुनाव हुआ है।
इस वर्ष की शुरुआत के बाद से, पाकिस्तान ने 1999 में दोनों देशों द्वारा हस्ताक्षरित द्विपक्षीय संघर्षविराम समझौते का लगातार उल्लंघन करता आया है।
जनवरी 2020 से नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान द्वारा 3,200 से अधिक इस तरह के संघर्ष विराम उल्लंघन में कम से कम 30 नागरिक मारे गए हैं और 100 से अधिक घायल हुए हैं। (आईएएनएस)
गगन सभरवाल
पिछले कुछ हफ़्तों से भारत में चल रहे किसान आंदोलन की तस्वीरें और वीडियो दुनियाभर में प्रकाशित की गईं. दुनिया भर के कई नेताओं और भारतीय मूल के लोगों से इनपर अपनी प्रतिक्रियाएं दीं.
इस मुद्दे को ब्रिटेन की संसद में भी उठाया गया, सांसद तनमनजीन सिंह धेसी ने इससे जुड़ा सवाल ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन से पूछा और ब्रिटिश प्रधानमंत्री के जवाब की काफ़ी चर्चा हुई.
मुद्दे से अनजान लग रहे पीएम बोरिस ने कहा था कि 'यह भारत-पाकिस्तान के बीच का कोई मुद्दा है और कहा कि दोनों देशों को द्विपक्षीय बातचीत के ज़रिए सुलझाना चाहिए'.
इसके अलावा ब्रिटेन के लंदन और बर्मिंघम जैसे शहरों में भी भारतीय मूल के ख़ासतौर पर सिख समुदाय के लोगों ने कई विरोध प्रदर्शन किए.
लेबर पार्टी के वीरेंद्र शर्मा एक ब्रिटिश राजनेता हैं जो कि लंदन के ईस्ट साउथॉल से सांसद हैं. वहां 31 प्रतिशत आबादी भारतीय मूल के लोगों की है और अंग्रेज़ी के बाद सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा पंजाबी है.
35 सांसदों ने उठाया मुद्दा
शर्मा समेत 35 सांसदों ने विदेश मंत्री डॉमिनिक राब से गुज़ारिश की है कि वो किसानों के मुद्दे को भारत सरकार के सामने उठाएं.
ब्रिटेन के लेबर पार्टी के सिख सांसद धेसी ने ये चिट्ठी लिखी और इसपर भारतीय मूल के वीरेंद्र शर्मा के अलावा लेबर सांसद सीमा मलहोत्रा और वैलेरी वाज़ ने भी दस्तखत किए.
बीबीसी से बात करते हुए वीरेंद्र शर्मा कहते हैं, "हम ब्रिटिश संसद के सदस्य हैं और एक ब्रिटिश सांसद के रूप में, भारत हमारे लिए एक विदेशी देश है और इसका प्रशासन एक आंतरिक मामला है. हम इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं और न ही हमें इसके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करना चाहिए और न ही हम करेंगे, जैसे कि हम नहीं चाहते कि ब्रिटेन के मामलों में कोई दूसरा देश दखल दे."
"लेकिन इसके साथ ही, मैं यहां पहली पीढ़ी का भारतीय हूं जो पंजाब के एक गाँव में पैदा हुआ, पला-बढ़ा, ब्रिटेन चला गया और मैं यहाँ की राजनीति में शामिल हो गया. लेकिन मेरे संसदीय क्षेत्र के ज़्यादातर लोगों के भारत के साथ मज़बूत संबंध हैं, वैसे ही जैसे मेरे."
भारतीय मूल के लोगों का जुड़ाव
शर्मा जैसे पहली पीढ़ी के भारतीय आप्रवासी अच्छी तरह जानते हैं कि भारतीय मूल लोग भारत के मुद्दों से जुड़े हुए हैं. उनके इलाके के वोटर्स के परिवार अभी भी भारत में रहते हैं और इस मुद्दे को लेकर गंभीर हैं.
वो कहते हैं, "हम इस समस्या का समाधान नहीं दे रहे हैं और न ही हम यह कह रहे हैं कि भारत में जो कुछ भी हो रहा है वह सही है या ग़लत है. हम सभी चाहते हैं कि विदेश सचिव भारतीय उच्चायोग और दिल्ली में ब्रिटिश उच्चायोग से बात करें और उन्हें बताएं कि भारत में जो कुछ भी हो रहा है उसके बारे में हमारे संसदीय क्षेत्र के लोग कैसा महसूस कर रहे हैं?"
भारतीय किसानों के मुद्दे को उठाने वाले केवल यही 36 सांसद नहीं हैं.
हाउस ऑफ लॉर्ड्स के इंद्रजीत सिंह ने संसद के ऊपरी सदन में भी इस मुद्दे को उठाया. लेकिन ब्रिटेन के कैबिनेट कार्यालय मंत्री, लॉर्ड निकोलस ट्रू ने सदन में जवाब देते हुए किसी भी राष्ट्र की "व्यापक निंदा" से इनकार कर दिया.
उन्होंने कहा, "हमारे मूल्य लोकतांत्रिक हैं, वे बहुत व्यापक रूप से साझा किए जाते हैं और दुनिया भर में प्रचलित हैं. हम चाहते हैं कि उन्हें कायम रखा जाए."
इसके अलावा, लगभग 25 सामुदायिक और चैरिटी प्रतिनिधियों, धार्मिक और व्यापारिक नेताओं, भारतीय पृष्ठभूमि के पार्षदों और पेशेवर लोगों ने लंदन में भारतीय उच्चायुक्त गायत्री इस्सर कुमार और ब्रिटेन के विदेश मंत्री डॉमिनिक राब को एक संयुक्त पत्र भी भेजा है.
इस्सर कुमार को लिखे अपने पत्र में, उन्होंने भारतीय किसानों के प्रति अपनी एकजुटता व्यक्त की है और "उन किसान और मजदूरों पर प्रशासन द्वारा आंसू गैस और वॉटर कैनन के उपयोग की निंदा की है, जो दिल्ली पहुंच कर सिर्फ शांतिपूर्ण विरोध करना चाहते हैं."
ब्रिटेन के लोगों की क्या है राय?
लेकिन क्या ब्रिटेन में रहने वाले भारतीय मूल के लोग चाहते हैं कि ब्रिटिश सांसद इस मुद्दे को उच्चतम स्तर पर भी उठाएं? इस पर कोई आम सहमति नहीं है.
ओवरसीज़ फ्रेंड्स ऑफ़ बीजेपी यूके के अध्यक्ष कुलदीप शेखावत ने बीबीसी को बताया, "भारतीय किसान भारत में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं,ये उनका अधिकार है, और अगर उनके पास कोई मुद्दा है तो वे इसे भारत सरकार के साथ उठा सकते हैं. भारत एक संप्रभु लोकतांत्रिक राष्ट्र है जिसके पास एक बहुत ही जीवंत लोकतंत्र है और ब्रिटेन के सांसदों को यूके में भारतीय किसानों के बारे में बोलने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि यह एक संप्रभु राष्ट्र के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने जैसा है."
"डोमिनिक राब को लिखना या यूके के पीएम से भारत में विरोध कर रहे किसानों के बारे में एक सवाल पूछना अनुचित है. पीएम मोदी का किसानों की आय को दोगुना करने का एक स्पष्ट एजेंडा है और इस गलत सूचना वाले अभियान को जल्द ख़त्म कर दिया जाएगा."
लंदन निवासी और भारतीय मूल की रश्मि मिश्रा ने भी इसी तरह की चिंताओं को उठाया है. वो कहती हैं, "क्या ब्रिटिश सांसदों और पार्षदों ने किसान के बिल को पढ़ा है? क्या वे किसानों की पहले की पीड़ाओं को समझते हैं? क्या वे जानते हैं कि 1947 आजादी मिलने के बाद से भारतीय किसानों की आत्महत्या दर क्या है? क्या किसी ने इसे हल करने की कोशिश और मदद की? भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का उन्हें क्या अधिकार है?"
क्या अमीर देश कोविड वैक्सीन की जमाख़ोरी कर रहे हैं?
किसानों के विरोध प्रदर्शन पर क्या कह रहे हैं अन्य राज्यों के किसान
राब को लिखी चिट्ठी पर वकील वैशाली नागपाल कहती हैं,"यह उनके द्वारा गलत सूचना फैलाने और हस्तक्षेप करने वाला आधारहीन कार्य है. संभवतः उन्होंने भारत में नए खेती के बिल के बुलेट पॉइंट भी नहीं पढ़े हैं. उनका पत्र पंजाब पर केंद्रित है, उनके मुताबिक वहीं इसका सबसे अधिक प्रभाव पड़ेगा क्योंकि यह भारत की 'ब्रेड बास्केट' है. कृपया गूगल करें और इसकी जाँच कर लें क्योंकि भारत का सबसे अधिक कृषि उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश है और उत्तर प्रदेश के किसान विरोध प्रदर्शन में हिस्सा नहीं ले रहे."
वूल्वरहैम्प्टन में रहने वाले एंड्रयू थॉमस, उन लोगों में से एक हैं जो ब्रिटिश सांसदों द्वारा इस मुद्दे को उठाए जाने से खुश नहीं है.
वो कहते हैं, ''यूके में दूसरे अहम मुद्दे हैं जैसे कि कोरोना वायरस महामारी और ब्रेक्सिट. मुझे समझ में नहीं आता है कि हमारे राजनेता एक ऐसे मुद्दे को क्यों उठा रहे हैं जिसका संबंध दूसरे देश से है."
"हमारे सांसदों को हमारे लिए काम करना चाहिए और हमारे मुद्दों और चिंताओं को सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए. हो सकता है कि वे अपने कुछ मतदाताओं को खुश रखने के लिए ऐसा कर रहे हों, लेकिन मुझे नहीं लगता कि यह किसी अन्य देश को प्रभावित करने वाले मुद्दों से निपटने के लिए वो ब्रिटेन की संसद में बैठे है. यूके और यहां के लोगों की मदद उनकी प्राथमिकता होनी चाहिए''
कुछ लोग सांसदों के कदम से खुश हैं, तो कुछ नाराज़
भारतीय व्यापारी संदीप बिष्ट कहते हैं, "भारतीय किसानों को ब्रिटेन सहित दुनिया भर से समर्थन मिलता देख अच्छा लगता है. किसानों के समर्थन में ब्रिटेन में जो कुछ भी हो रहा है, वह किसी तरह भारत सरकार पर दबाव डालेगा. भारत में जिस भी पार्टी की सरकार रही है, हमेशा किसानों की अनदेखी की जाती रही और यह पहला मौका है जब पूरे भारत के किसान एकजुट हुए हैं और एक साथ एक आम मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं."
"हमारे ब्रिटिश सांसदों को भी समर्थन करते हुए देखना अच्छा है, लेकिन मैंने सांसद तनमनजीत सिंह धेसी की टिप्पणियों को सुना, जहां वह किसानों का समर्थन करने से ज्यादा भारत सरकार पर आरोप लगा रहे थे. ये सही नहीं है. उन्हें संतुलित होना चाहिए और अच्छी कूटनीति बनाए रखनी चाहिए"
लीड्स के बलबीर सिंह को भी लगता है कि ब्रिटेन की सरकार को भारतीय अधिकारियों के साथ इस मुद्दे को उठाना चाहिए क्योंकि भारतीयों ने यूके और इसकी अर्थव्यवस्था के निर्माण में एक अहम भूमिका निभाई है.
उन्होंने कहा, "ब्रिटिश सरकार को किसानों के बारे में चिंतित होना चाहिए क्योंकि मेरे जैसे भारतीयों ने इस देश के लिए बहुत योगदान दिया है और ब्रिटेन के साथ भारत के व्यापार ने भी. इसके अलावा, भारतीयों ने इस देश में इस्पात और कार उद्योग को बचाया है"
वेस्ट मिडलैंड्स के इतिहासकार और क्यूरेटर राजविंदर पाल भारत में पैदा हुए थे.
बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने कहा, "सांसद तनमनजीत सिंह धेसी खुद पंजाबी पृष्ठभूमि से हैं, उनके क्षेत्र में भी ऐसे ही लोग हैं, जिनका वो प्रतिनिधित्व करते हैं, इन मुद्दों को संसद में उठाना सही है. लेकिन हमारे पीएम को इस बात की जानकारी नहीं है कि ढेसी किस बारे में बात कर रहे हैं और यह बहुत ही शर्म की बात है."
भारत के मामलों में ब्रिटिश नेताओं को बोलना कितना सही?
लेकिन ब्रिटिश सांसद और स्थानीय पार्षद भारत के मामलों में खुद को शामिल करके क्या हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं और क्या वे ऐसा करने में सही हैं?
डॉ मुकुलिका बनर्जी, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में एसोसिएट प्रोफेसर हैं. उनके पास भारत की कृषि पर 20 वर्षों से अधिक शोध का अनुभव है, वो कहती हैं कि भारत में विरोध प्रदर्शन चिंताजनक हैं.
डॉक्टर बनर्जी ने कहा, "ब्रिटिश राजनेताओं ने हमेशा दुनिया के मुद्दों को उठाया है,और इस मामले में, उनके क्षेत्र के लोग भारत में किसानों के परिवार के माध्यम से सीधे जुड़े हुए हैं. एक सांसद अपने क्षेत्र की लोगों की चिंताओं का जवाब देने के लिए बाध्य है, इसी तरह संसदीय लोकतंत्र काम करता है. इसके अलावा, ब्रेक्सिट के बाद, ग्लोबल ब्रिटेन को प्रत्येक राष्ट्र के साथ द्विपक्षीय संबंध बनाने होंगे और भारत के साथ संबंध ज़रूरी है. इंडियन डायस्पोरा दो देशों के बीच एक प्रमुख जीवित पुल है और भारत सरकार इसी कारण से अपने डायस्पोरा के साथ लगातार जुड़ी रहती है और काम करती है."
वह कहती हैं कि प्रदर्शनकारियों ने इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि भारतीय किसानों के साथ कैसा व्यवहार किया जा रहा है जिसे हस्तक्षेप नहीं कहा जा सकता. डॉ बनर्जी ने बताया कि यहां रह रहे भारतीय मूल के लोगों ने भारत की सत्ताधारी पार्टी का चुनाव के दौरान पैसे और अभियानों की मदद से समर्थन किया था.
उन्होंने कहा, "भारतीय मूल के विदेशी नागरिकों द्वारा व्यक्तिगत नेताओं और दलों को वित्तीय समर्थन देना, वो भी तब जब वो खुद उसका हिस्सा नहीं है, इसे विदेशी दखल समझा जा सकता है. लेकिन ब्रिटेन और भारतीय मूल के नागरिक जिनके भारत में परिवार और निवेश हैं, वे जाहिर तौर पर भारत में मामलों से जुड़े रहना चाहते हैं और विकास को करीब से देखेंगे."
2019 के बाद से भारतीय मुद्दों पर यूके में कई विरोध प्रदर्शन हुए हैं - चाहे वह कश्मीर पर हो या नागरिकता कानूनों पर. डॉ बनर्जी कहती हैं," यह अचानक नहीं हुआ है, और इस घटना के पीछे एक कारण है, हाल के वर्षों में ब्रिटेन में आने वाले छात्रों की एक बड़ी संख्या."
बनर्जी के मुताबिक " स्नातकोत्तर छात्र, विशेष रूप से जिन्होंने भारत में अपनी पहली डिग्री के लिए अध्ययन किया है, मुखर हैं और भारतीय होने पर गर्व करते हैं - ये जानकार भारतीय हैं जो भारत के समाचारों को बारीकी से देखते हैं. भारत में क्या हो रहा है इसकी परवाह करते हैं. वो भारत के नागरिकों के साथ अन्याय को नहीं स्वीकार सकते.छात्र हमेशा दुनिया भर में न्याय की लड़ाई में सबसे आगे रहे हैं" (bbc.com)
पश्चिम बंगाल में चल रहे राजनीतिक घटनाक्रम पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने कहा है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को एनसीपी प्रमुख शरद पवार से बात की है और केंद्र सरकार द्वारा बंगाल की सरकार को अस्थिर करने के प्रयासों पर चर्चा की है। उन्होंने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि बंगाल चुनाव से पहले केंद्र की तरफ से उन्हें निशाना बनाया जा रहा है।
शरद पवार की पार्टी एनसीपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्य मंत्री नवाब मलिक ने कहा कि ममता बनर्जी ने शरद पवार को बताया कि कैसे बीजेपी बंगाल को अस्थिर करने की कोशिश कर रही है। केंद्र सरकार सरकारी अधिकारियों को अपनी मर्जी से वापस ले रही है और राज्य के अधिकारों का उल्लंघन कर रही है। बीजेपी जिस तरह से केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है वह सही नहीं है।"
उन्होंने कहा कि एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार पहले ही बनर्जी के साथ मुद्दों पर चर्चा कर चुके हैं और अन्य सभी राष्ट्रीय विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश करेंगे। उन्होंने कहा, "ममता बनर्जी और शरद पवार अन्य राष्ट्रीय नेताओं के साथ भी बैठक करेंगे। अगर जरूरत पड़ी तो पवार बंगाल भी जाएंगे।"
बता दें कि बंगाल चुनाव से चार महीने पहले राज्य का घटनाक्रम अचानक तेजी से बदला है। बीजेपी लगातार ममता बनर्जी की सरकार और पार्टी पर हमलावर है। हाल ही में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर हमले को लेकर केंद्र सरकार ने राज्य के तीन आईपीएस अधिकारियों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर बुला लिया था, जिसे ममता सरकार ने राज्य में दखल बताया है। ममता बीजेपी पर किसी भी तरह सत्ता में आने की कोशिश करने और उनकी सरकार और पार्टी को कमजोर करने का आरोप लगाया है। (navjivan)
नई दिल्ली, 22 दिसंबर | उत्तर प्रदेश के किसान नेता राकेश टिकैत ने किसान आंदोलन समाप्त करने को लेकर सरकार की मंशा पर सवाल उठाया है। उनका कहना है कि सरकार आंदोलन को लंबा खींचना चाहती है, इसलिए किसान नेताओं से बातचीत करना नहीं चाहती है। वह कहते हैं कि सरकार जहां भी चाहे वहां किसान नेता बातचीत के लिए आ जाएंगे। भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) नेता राकेश टिकैत पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के साथ गाजीपुर बॉर्डर पर डेरा डाले हुए हैं और उनका कहना है कि सरकार जब तक नये कृषि कानून को वापस नहीं लेगी, किसान तब तक वापस नहीं होंगे।
उन्होंने आईएएनएस से बातचीत में कहा, "ये (सरकार) कह रहे हैं कि हम कानून वापस नहीं लेंगे और हमने कह दिया है हम घर वापस नहीं जाएंगे।"
राकेश टिकैत कहते हैं कि, "देश का किसान कमजोर नहीं है और वह अपने हक की लड़ाई में पीछे नहीं हटने वाला है। सरकार ने किसान संगठनों के नेताओं को उनकी सभी मांगों के संबंध में बिंदुवार प्रस्ताव भेजा है और उन्हें अगले दौर की बातचीत के लिए बुलाने के लिए उनसे तारीख बताने को कहा है।"
इस संबंध में पूछे गए सवाल पर भाकियू नेता टिकैत ने आईएएनएस से खास बातचीत में कहा, सरकार के पास सारे तंत्र हैं वह जब जाहे बात कर सकती है, लेकिन सरकार बात नहीं करना चाहती है। उन्होंने इस संबंध में सरकार पर झूठ फैलाने का आरोप आरोप लगाया।
टिकैत से जब पूछा गया कि क्या फिक्की सभागार में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से किसान बातचीत करने को तैयार हैं। इस पर उन्होंने कहा, हमने कहा है कि हमें जहां भी कहेंगे हम वहां आ जाएंगे, लेकिन सरकार तो बात करना ही नहीं चाहती है।
भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत 26 नवंबर से शुरू हुए किसानों के इस आंदोलन में लाइम लाइट में रहे हैं। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि वह देश में किसानों की सबसे बड़ी आबादी वाले प्रदेश से आते हैं और किसानों के हक की लड़ाई लड़ने वाले नेता की पहचान उनको विरासत में मिली है।
राकेश टिकैत के पिता और उत्तर प्रदेश में भाकियू के संस्थापक महेंद्र सिंह टिकैत की अगुवाई में 1988 में दिल्ली में हुई बोर्ट क्लब रैली, किसानों के आंदोलन के इतिहास में दर्ज है, जब केंद्र सरकार को किसानों की मागें माननी पड़ी थी।
राकेश टिकैत के बड़े भाई और इस समय भाकियू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत भी बीते दिनों किसानों के आंदोलन में हिस्सा लेने गाजीपुर बॉर्डर आए थे, लेकिन संगठन की ओर से यहां आंदोलन की कमान राकेश टिकैत ही संभाले हुए हैं। राकेश टिकैत को एक दिसंबर को विज्ञान-भवन में किसान संगठनों के साथ हुई मंत्रि-स्तरीय वार्ता में आमंत्रित नहीं किया गया, लेकिन बाद में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कृषि भवन में उसी शाम उनको आमंत्रित किया था। हालांकि बाद की वार्ताओं में वह शामिल रहे हैं।
राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार जब फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करती है तो उस पर फसलों की खरीद भी होनी चाहिए। उन्होंने कहा, हम चाहते हैं कि सरकार तीनों नये कानूनों का वापस ले और किसानों को एमएसपी की गारंटी के लिए नया कानून बनाए।
--आईएएनएस
तिरुवनंतपुरम, 22 दिसम्बर | केरल के बहुचर्चित नन (सिस्टर) अभया 'हत्या' मामले में 28 साल बाद यहां सीबीआई की विशेष अदालत मंगलवार को अपना फैसला सुनाएगी। इस चर्चित मुकदमे का सामना कर रहे कैथोलिक पादरी थॉमस एम. कोट्टुर पहले आरोपी हैं और एक नन सेफी तीसरी आरोपी हैं।
साल 2018 में मामले के दूसरे आरोपी एक अन्य कैथोलिक पादरी जोस पूथृक्कयिल को अदालत ने बरी कर दिया था।
कोट्टायम में पायस एक्स कॉन्वेंट की एक नन अभया को 27 मार्च 1992 को परिसर के भीतर के कुएं में मृत पाया गया था।
इस मामले को क्राइम ब्रांच और सीबीआई ने शुरूआत में आत्महत्या करार देते हुए खारिज कर दिया था, लेकिन एक कार्यकर्ता जोमन पुथेनपुरकल ने एक एक्टन काउंसिल का गठन किया, जिसके बाद मामला आगे बढ़ा।
पुथेनपुरकल द्वारा मामले को दूसरी बार फिर से खोलने में कामयाब होने के बाद बदलाव आया, जिसके बाद सीबीआई अधिकारियों के 13वें बैच ने 19 नवंबर, 2008 को पूथृक्कयिल सहित तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया।
पूथृक्कयिल पूर्व में कोट्टायम कॉलेज में एक मलयालम प्रोफेसर थे, जहां अभया ने अध्ययन किया था, जबकि कोट्टुर कोट्टायम में कैथोलिक चर्च के डायोकेसन चांसलर थे और सेफी कॉन्वेंट निवासी थी, जहां यह घटना घटी थी।
तीनों आरोपियों को एक जनवरी, 2009 को जमानत दे दी गई थी।
--आईएएनएस
सीतापुर, 22 दिसंबर | समाजवादी पार्टी के सांसद आजम खान की पत्नी डॉ. ताजीन फातिमा सोमवार को जिला कारागार से रिहा की गईं। रामपुर शहर की विधायक ताजीन अपने बेटे और पति के साथ इस साल 26 फरवरी से यहां की जेल में बंद थीं। उनके खिलाफ शत्रु संपत्ति समेत 34 मामलों में कोर्ट में सुनवाई चल रही थी। कोर्ट ने अब सभी मामलों में उनकी जमानत मंजूर कर ली है। हालांकि उनके पति आजम खां और बेटे अब्दुल्ला को अभी जेल में ही रहना होगा।
डॉ. ताजीन अपने पति व छोटे बेटे के साथ जेल में 298 दिन रहीं। बुजुर्ग विधायक जेल के महिला बैरक में थीं। जेल प्रशासन ने काफी सुरक्षा व्यवस्था के बीच इन्हें देर शाम को रिहा कर दिया गया। 70 वर्षीय विधायक की रिहाई पर उनकी बहन तनवीर फातिमा और बड़े बेटे अदीब आजम व बहू सिदरा के साथ दोनों पोतयिां भी सीतापुर आई थीं। हालांकि, इस दौरान परिवारजन ने मीडिया से कोई बात नहीं की।
डॉ. फातिमा की रिहाई पर गाजियाबाद के एमएलसी आशु मलिक भी जिला कारागार पहुंचे। जेल अधीक्षक डीसी मिश्र ने बताया कि कोर्ट से जमानत का आदेश मिलने के बाद प्रक्रिया पूरी की गई और डॉ. ताजीन को रिहा कर दिया गया।
उन्होंने मीडिया से कहा कि उन्हें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है। वह कॉलेज में प्रोफेसर थीं। 60 साल तक उनके चरित्र पर कोई दाग नहीं लगा, लेकिन उसके बाद उन पर दर्जनों मुकदमें लाद दिए गए।
उन्होंने कहा, "जेल में मुझे कोई सुविधा नहीं मिलती थी। जैसे आम कैदी रहते थे, उसी तरह खाना, पीना, रहन-सहन सामान्य कैदियों की तरह था। मैं 10 महीनों बाद जेल से रिहा हुई हूं, इसका पूरा श्रेय मैं न्यायपालिका को देती हूं, न्यायपालिका ने मेरे साथ इंसाफ किया।"
वह पति सांसद आजम खां और बेटे अब्दुल्ला आजम के साथ 26 फरवरी से जेल में बंद थीं। विधायक के खिलाफ कुल 34 मुकदमे दर्ज हैं। 32 मुकदमों में पहले ही जमानत मंजूर हो गई थी। अब जौहर यूनिवर्सिटी के लिए शत्रु संपत्ति को कब्जाने और धोखाधड़ी कर रामपुर पब्लिक स्कूल के लिए एनओसी लेने के मामले में भी जमानत मिल गई है। उनके पति आजम खां के खिलाफ 85 मामले सक्रिय हैं, जिनमें 73 में चार्जशीट लग चुकी है और 12 की विवेचना चल रही है। उनकी 13 मामलों में जमानत होना बाकी है, जबकि उनके पुत्र अब्दुल्ला आजम खां के खिलाफ 44 मुकदमे दर्ज हैं। उनकी तीन मुकदमों में जमानत होना शेष है। आजम खां और उनके समर्थकों के खिलाफ पिछले साल बड़े पैमाने पर मुकदमे दर्ज हुए थे।
--आईएएनएस
बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पश्चिम बंगाल के दो दिन के दौरे के आखिरी दिन क्या बाहरी का तमगा हटाने के लिए ही बीरभूम जिले में शांति निकेतन स्थित विश्वभारती विश्वविद्यालय पहुंचे थे?
क्या इसका एक मकसद रवींद्रनाथ टैगोर की प्रशंसा कर बीते लोकसभा चुनावों से पहले ईश्वर चंद्र विद्यासागर की प्रतिमा टूटने से हुए नुकसान की भरपाई भी थी? शाह के दौरे से गरमाती राजनीति के बीच यहां राजनीतिक हलकों में यही सवाल उठ रहे हैं.
सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस की मानें तो इसका जवाब 'हां' है और बीजेपी के नेताओं की सुनें तो इसका जवाब 'ना' है.
ध्यान रहे कि ममता बनर्जी और टीएमसी के तमाम नेता बीजेपी और उसके नेताओं को बाहरी बताते रहे हैं. ममता बार-बार कहती रही हैं कि बंगाल के लोग ही यहां राज करेंगे, गुजरात के नहीं.
माना जा रहा है कि अमित शाह अपने दौरे में इस रणनीति की काट के लिए ही राज्य की तमाम विभूतियों से जुड़ी जगहों का दौरा कर रहे हैं. इनमें विश्वभारती विश्वविद्यालय का स्थान सबसे ऊपर है.
सियासी फायदे के लिए दौरा
अपने दौरे के आखिरी दिन अमित शाह ने विश्वभारती में जाकर रवींद्रनाथ टैगोर और महात्मा गांधी के आवासों को देखा और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की.
उसके बाद उन्होंने उपासना गृह का दौरा किया और बाद में अपने सम्मान में आयोजित एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में हिस्सा लिया. विश्वविद्यालय परिसर से बाहर निकलने से पहले पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कविगुरू की भूरि-भूरि सराहना की थी.
शाह ने पत्रकारों से कहा, "विश्वभारती में पहुंच कर दो महापुरुषों रवींद्रनाथ टैगोर और महात्मा गांधी के आवास को देखने और उनको श्रद्धांजलि अर्पित करने का सौभाग्य मिला. उन्होंने भारतीय ज्ञान, दर्शन, कला और साहित्य की गूंज पूरी दुनिया में पहुंचाई और विश्वभारती के जरिए इनके संरक्षण और संवर्धन में अहम भूमिका निभाई."
गृह मंत्री ने कहा कि रवींद्रनाथ ने दुनिया के कई देशों की भाषा, साहित्य, कला और संस्कृति के साथ भारतीय भाषाओं के सामंजस्य के लिए विश्वभारती को केंद्र बनाया.
शाह का रोड शो
वहां से निकलने के बाद उन्होंने पार्टी के कुछ अन्य नेताओं के साथ बाउल कलाकार बासुदेव दास के घर दोपहर का भोजन किया और उसके बाद रोड शो किया.
रोड शो में शाह ने दावा किया कि बंगाल में बदलाव की बयार तेज़ हो गई है और रोड शो में जुटी भीड़ इसका सबूत है. बाउल कलाकार के घर भोजन के बाद उन्होंने अपने एक ट्वीट में कहा, "बाउल कला बहुमुखी बांग्ला संस्कृति का सही प्रतिबिंब है."
लेकिन क्या शाह का बीरभूम दौरा बाहरी के तमगे से निजात पाने के लिए था? प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ऐसा नहीं मानते. उनका कहना है कि रवींद्रनाथ सिर्फ बंगाल के ही नहीं पूरे देश के गौरव हैं. अमित शाह का दौरा सामान्य दौरा था. पहले दिन वे मेदिनीपुर गए और दूसरे दिन विश्व भारती गए. इसका कोई सियासी निहितार्थ नहीं था.
लेकिन दूसरी ओर, टीएमसी ने कहा है कि गुरुदेव के विचारों को जाने बिना बीजेपी अपने सियासी फायदे के लिए उनका इस्तेमाल करने का प्रयास कर रही है.
पार्टी के नेता सुब्रत मुखर्जी कहते हैं, "बीजेपी बाहरी है. वह बंगाल के महापुरुषों का महत्व समझे बिना उनका राजनीतिक इस्तेमाल करने का प्रयास कर रही है. उसे बंगाल की संस्कृति की समझ नहीं है."
शांतिनिकेतन से दिल्ली
वैसे, शांतिनिकेतन से दिल्ली के लिए निकलने से पहले शाह ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो कहा उससे साफ हो गया कि पार्टी बाहरी के तमगे को हटाने के लिए जूझ रही है.
उनका कहना था, "बीजेपी अगर बंगाल की सत्ता में आती है तो मुख्यमंत्री इसी माटी का लाल बनेगा, कोई बाहरी नहीं."
शाह यहीं नहीं रुके. उन्होंने सवाल किया कि क्या ममता एक ऐसा देश चाहती हैं जहां एक राज्य के लोग दूसरे राज्य में नहीं जा सकें? क्या वे इंदिरा गांधी औऱ नरसिंह राव के बंगाल आने पर भी उनको बाहरी कहती थीं?
शाह ने कहा, "आप चिंता न करें. आपको हराने के लिए दिल्ली से कोई नहीं आएगा. बंगाल का ही कोई व्यक्ति राज्य का अगला मुख्यमंत्री बनेगा और वह बंगाली ही होगा."
केंद्रीय गृह मंत्री का कहना था कि राज्य सरकार की नाकामियों से ध्यान हटाने के लिए ममता और उनकी पार्टी बाहरी और स्थानीय का मुद्दा उठा रही है. उन्होंने आंकड़ों के हवाले कहा कि शिक्षा और स्वास्थ्य समेत विकास के तमाम सूचकांकों पर बंगाल का प्रदर्शन दयनीय रहा है.
निराधार आरोप
लेकिन रविवार को ही तृणमूल कांग्रेस ने आंकड़ें जारी करते हुए शाह की ओर से पेश आंकड़ों को निराधार और गलत करार दिया.
पार्टी के प्रवक्ता डेरेक ओ ब्रायन ने सोशल मीडिया पर जारी आंकड़ों में बंगाल में तीन सौ बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या के शाह के दावे को निराधार बताते हुए कहा है कि इनमें से ज्यादा लोग निजी दुश्मनी की वजह से मारे गए हैं. कई मामलों में तो आत्महत्या को भी हत्या में शामिल कर लिया गया है. इसके उलट 1997 से अब तक टीएमसी के 1027 कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है.
बीरभूम जिला तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष अणुब्रत मंडल कहते हैं, "बीजेपी के नेता चुनावों के समय नौटंकी करने लगते हैं. शाह का यह दौरा भी उसी नौटंकी का हिस्सा है. उनको बंगाल की संस्कृति और विभूतियों के बारे में कोई जानकारी नहीं है. बीजेपी कविगुरु जैसी हस्ती को भी सियासी हित में इस्तेमाल करने का प्रयास कर रही है."
टीएमसी नेता सुब्रत मुखर्जी कहते हैं, "बीजेपी बाहरी है. वह बंगाल के महापुरुषों का महत्व समझे बिना उनका राजनीतिक इस्तेमाल करने का प्रयास कर रही है. उसे बंगाल की संस्कृति की समझ नहीं है."
शांतिनिकेतन दौरे पर विवाद
शाह के शांतिनिकेतन दौरे पर विवाद भी पैदा हो गया है. दरअसल, शाह के दौरे से पहले एक स्थानीय संगठन की ओर से जो बैनर और कट-आउट लगाए गए थे उनमें रवींद्रनाथ से ऊपर शाह की तस्वीर थी.
विश्व भारती के छात्रों के विरोध के बाद हालांकि बाद में उनको हटा लिया गया था.
लेकिन तृणमूल कांग्रेस ने इस मुद्दे पर शाह और बीजेपी पर जम कर हमले किए.
इसके विरोध में पार्टी की ओर से कविगुरु के जन्म स्थान जोड़ासांको में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन भी किया गया.
शांतिनिकेतन और विश्वभारती में तृणमूल कांग्रेस छात्र परिषद् और गैर-शिक्षक कर्मचारी संगठन की ओर से इसके विरोध में रैली निकाली गई.
बंगाल का अपमान
टीएमसी नेताओं ने इस मुद्दे पर शाह और बीजेपी पर हमला करते हुए उन पर टैगोर का अपमान करने का आरोप लगाया है.
ग्रामीण विकास मंत्री सुब्रत मुखर्जी ने पत्रकारों से कहा, "जो लोग बंगाल की संस्कृति नहीं समझते और बंगाल के गौरव विद्यासागर और रवींद्रनाथ टैगोर का सम्मान नहीं करते, वही बंगाल पर कब्जा करने का सपना देख रहे हैं."
शहरी विकास मंत्री फिरहाद हकीम कहते हैं, "बीजेपी ने रवींद्रनाथ का ही नहीं बल्कि बंगाल की जनता का अपमान किया है. हम कविगुरु को माथे पर बिठा कर रखते हैं. लेकिन बैनरों में उनको अमित शाह के नीचे दिखाया गया है. यह बंगाल की संस्कृति का अपमान है."
उन्होंने कहा कि बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी कविगुरु का जन्मस्थान जोड़ासांको के बदले शांतिनिकेतन बताया था.
टीएमसी सांसद काकोली घोष दस्तीदार कहती हैं, "बीजेपी की निगाहों में बंगाल की विभूतियों का कोई सम्मान नहीं है. इसलिए कभी वह विद्यासागर की प्रतिमा तोड़ती है तो कभी अपने नेता की तस्वीर कविगुरु से ऊपर लगाती है."
स्थानीय बनाम बाहरी विवाद
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में शाह की खिंचाई करते हुए कहा कि उन्होंने अपने दौरे में झूठों का पुलिंदा पेश किया है. केंद्रीय गृह मंत्री के पद पर बैठे किसी नेता को ऐसे झूठे दावे और बयान शोभा नहीं देते.
ममता ने भी बोलपुर में 29 दिसंबर को रैली का एलान किया है.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है इस बार बीजेपी के नेता समझ गए हैं कि ममता के बांग्ला राष्ट्रवाद का मुद्दा हिंदू राष्ट्रवाद की पार्टी की अवधारणा पर भारी पड़ेगा. इसलिए पार्टी के तमाम नेता चुन-चुन कर ऐसी जगहों पर जा रहे हैं. इससे एक तो बाहरी के तमगे से निजात मिल सकती है और दूसरे पार्टी यह दिखा सकती है कि राज्य के मनीषियों के प्रति उसके मन में भारी सम्मान है.
राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर रहे सुनील कुमार कर्मकार कहते हैं, "बीते लोकसभा चुनावों में बीजेपी ईश्वर चंद्र विद्यासागर की प्रतिमा टूटने का खामियाजा भर चुकी है. आखिरी दौर के मतदान से पहले कोलकाता में शाह के रोड शो के दौरान उस प्रतिमा के टूटने की वजह से उस दौर में पार्टी का खाता तक नहीं खुल सका था. ममता ने उस मुद्दे को अपने सियासी हक में बेहतर तरीके से भुना लिया. यही वजह है कि पार्टी के नेताओं ने इस बार अपनी रणनीति में बदलाव किया है."
एक अन्य पर्यवेक्षक विश्वनाथ चक्रवर्ती भी कहते हैं, "बंगाल की सत्ता पर कब्जे के लिए पार्टी अब टीएमसी के बाहरी बनाम स्थानीय मुद्दे को गंभीरता से लेकर इसकी काट की रणनीति के तहत ही मनीषियों से जुड़ी जगहों का दौरा कर रही है. शायद उसने बीते साल की घटना से सबक सीखा है. क्या उसे इसका कोई फायदा मिलेगा, इस सवाल का जवाब तो आने वाले दिनों में मिलेगा. लेकिन चुनावों से पहले स्थानीय बनाम बाहरी विवाद के और गहराने की संभावना है." (bbc)
गुवाहाटी, 22 दिसंबर । दो साल पहले पांच साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म और हत्या के आरोपी को सोमवार को उत्तरी असम की एक जिला अदालत ने को फांसी की सजा सुनाई। आरोपी मंगल पाइक को विश्वनाथ जिला अतिरिक्त सत्र न्यायालय के न्यायाधीश दीपांकर बोरा ने भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (ए) के तहत पाइक को दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई। यह मामला धारा 302 (हत्या) के साथ यौन अपराधों से संबंधित है।
अदालत ने उसे प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंशन (पॉक्सो) एक्ट की धारा 6 के तहत उम्रकैद की सजा सुनाई और 7,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है।
आईपीसी की धारा 363 (अपहरण) के तहत अदालत ने आरोपी को 3,000 रुपये का जुर्माना लगाने के अलावा सात साल की जेल की सजा भी सुनाई।
इस शख्स ने छोटी बच्ची को चॉकलेट देकर बहला-फुसलाकर एक चाय बागान (सूतेना थाना क्षेत्र के अंतर्गत) एक सुनसान जगह पर ले गया था, जहां नवंबर 2018 में गला घोंटकर उसके साथ दुष्कर्म किया।
पुलिस के अनुसार निकटवर्ती सोनितपुर जिले के लोहरा बुरहागांव क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाला दोषी पीड़िता का रिश्तेदार था और कुछ कामों के लिए कभी-कभार ही उसके घर आता था।
लोक अभियोजक जाह्न्वी कलिता ने मीडिया को बताया कि ट्रायल के दौरान डॉक्टर, पुलिसकर्मी और ग्रामीणों सहित सभी 16 गवाहों से पूछताछ की गई।
--आईएएनएस
जम्मू, 22 दिसंबर | जम्मू एवं कश्मीर के चुनाव आयुक्त (एसईसी) के. के. शर्मा ने सोमवार को कहा कि जिला विकास परिषद (डीडीसी) के चुनाव परिणामों को ऑनलाइन एक्सेस किया जा सकता है। वेबसाइट एचटीटीपी : सीईओजेके डॉट एनआईसी डॉट इन पर चुनाव परिणामों की उपलब्धता के बारे में मीडिया को जानकारी देते हुए एसईसी ने कहा कि राज्य चुनाव प्राधिकरण लोगों और मीडिया को समान रूप से एक गतिशील आधार पर चुनाव परिणामों और रुझानों तक पहुंचने की सुविधा प्रदान करेगा। जम्मू-कश्मीर में कई चरणों में हाल ही में संपन्न हुए डीडीसी चुनाव की मतगणना मंगलवार को होगी।
उन्होंने कहा कि रैंडमाइजेशन और टाइम-टेस्टिड प्रोटोकॉल के तुरंत बाद मतपेटियों को खोला जाएगा और मतगणना के लिए मतपत्रों को आपस में मिला दिया जाएगा और आगे की जानकारी वेबसाइट पर लोगों को दी जाएगी।
एसईसी ने कहा कि मंगलवार की गिनती 280 डीडीसी सीटों के लिए चुनावी मैदान में उतरे 2,178 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेगी।
उन्होंने यह भी बताया कि केंद्र शासित प्रदेश में सभी आठ चरणों में कुल 51.42 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया है और मंगलवार को मतगणना केंद्रों पर 30 लाख से अधिक मतों की गणना की जाएगी।
राज्य चुनाव आयोग के सचिव अनिल सलगोत्रा ने मीडियाकर्मियों को वेबसाइट के कामकाज के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि मीडिया के साथ सभी 280 डीडीसी निर्वाचन क्षेत्रों के लिए मतगणना के रुझानों, अंतिम परिणामों और पार्टी-वार रुझानों तक लोगों की पहुंच होगी।
उन्होंने कहा कि वेबसाइट को किसी दिए गए जिले में एक विशेष निर्वाचन क्षेत्र और एक विशेष पार्टी के संबंध में रुझानों के लिए भी एक्सेस किया जा सकता है, इसके अलावा शीर्ष दो प्रमुख उम्मीदवारों के लिए जानकारी और सभी उम्मीदवारों के लिए मतदान किए गए समग्र वोट भी एक्सेस किए जा सकते हैं।
--आईएएनएस
जयपुर, 22 दिसंबर | सीबीएसई बोर्ड के 12वीं कक्षा के छात्रों को मनोवैज्ञानिकों और काउंसलरों का दौरा करना पड़ रहा है, क्योंकि अभी तक परीक्षा की तारीख, परीक्षा पैटर्न और प्रैक्टिकल परीक्षा को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है।
12वीं कक्षा के लिए बोर्ड परीक्षा की तैयारी कर रहे एक छात्र की परिजन अंकिता ने कहा कि पिछले साल दिसंबर की तुलना में इस बार कोरोना महामारी के साथ चीजें काफी अनिश्चित हो गई हैं।
उन्होंने कहा कि अधिकांश समय छात्र व्हाट्सएप से जुड़े होते हैं, क्योंकि कोचिंग और अन्य अपडेट के लिए उन्हें वहां सभी लिंक मिल जाते हैं। जिस क्षण वे यह नहीं कर पाते, वे अपनी कक्षा नहीं ले पाते, जो उनके लिए बहुत बड़ा नुकसान है। अंकिता ने कहा, आखिरकार वे अपना सारा समय मोबाइल पर बिता रहे हैं, व्हाट्सएप अपडेट की जांच कर रहे हैं, कक्षाओं में भाग ले रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने कहा कि जब इससे छात्रों को कुछ फुर्सत मिलती है, तब वह वेब सीरीज देख रहे होते हैं।
जयपुर की मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक डॉ. अनामिका पापारीवाल ने कहा, ऐसे कई छात्र हैं, जो काउंसलिंग के लिए हमारे पास आते हैं और वे लॉकडाउन के बाद से व्यथित हैं। पिछले 10 महीनों से वे न तो दोस्तों से मिल पा रहे हैं और न ही शिक्षकों से अपनी शंकाओं को स्पष्ट करने के लिए मिल पा रहे हैं। वह बताती हैं कि परीक्षा की तारीखों, प्रश्नपत्रों के पैटर्न और प्रैक्टिकल के बारे में अनिश्चितता उनकी परेशानी में इजाफा कर रही है, जो उनके लिए तनाव जैसी स्थिति पैदा कर रही है।
उन्होंने कहा कि कई छात्र अपनी पढ़ाई छोड़ देते हैं और हार मानते हुए कहते हैं, अब जो भी होगा, देखा जाएगा, 'जो उनके माता-पिता को समान रूप से चिंतित कर रहा है और वे भी काउंसलिंग सत्र के लिए आ रहे हैं।
12वीं कक्षा में गणित के विद्यार्थी अंकित ने कहा, हमारी कक्षा बारहवीं की परीक्षा की स्थिति स्पष्ट नहीं है, जबकि कई इंजीनियरिंग संस्थानों ने अगले सत्र के लिए अपने प्रवेश पत्र पहले ही जारी कर दिए हैं।
छात्र ने परीक्षा को लेकर अस्पष्टता पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि सीबीएसई ने 30 प्रतिशत पाठ्यक्रम को कम कर दिया है, उनके लिए महत्वपूर्ण था और एक स्कोरिंग हिस्सा था। अंकित ने कहा, अब, जब हमने किसी भी कक्षा में भाग नहीं लिया है तो एक पूर्ण सत्र में हम किस तरह से प्रैक्टिकल में भाग लेंगे और बोर्ड परीक्षा देंगे। इसके बाद वर्तमान परिस्थितियों में प्रतिस्पर्धी और अन्य प्रवेश परीक्षाओं को पास करना भी एक चुनौती है।
डॉ. अनामिका कहती हैं, हम यहां आने वाले छात्रों की काउंसलिंग कर रहे हैं और उन्हें बता रहे हैं कि हर कोई मौजूदा चुनौतियों का हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। इसलिए वे भी लंबे समय में विजेता बनकर उभरेंगे।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ने 10 दिसंबर को एक लाइव इंटरेक्टिव सत्र में छात्रों को आश्वासन दिया कि वे जल्द ही स्कूल लौटेंगे, क्योंकि देश में कोविड-19 की स्थिति में सुधार हो रहा है। वर्तमान में 17 राज्यों ने स्कूलों को फिर से खोलने का फैसला किया है।
पोखरियाल अब 22 दिसंबर को शिक्षकों के साथ लाइव जुड़ेंगे।
--आईएएनएस