राजनांदगांव
इलाज के लिए भटक रहे मरीज, मेडिकल कॉलेज बना सहारा
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 6 जुलाई। स्वास्थ्य कर्मचारियों के हड़ताल से स्वास्थ्य सुविधाएं चरमरा गई है। जिला अस्पताल की हालत पिछले दो दिनों से हड़ताल के चलते बेपटरी हो गई है। अस्पताल में कार्यरत लगभग 500 से ज्यादा कर्मियों ने अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू कर दी है। हड़ताल से ओपीड़ी के अलावा वैक्सीनेशन समेत अन्य रोग से पीडि़त मरीज भटक रहे हैं। साथ ही टीबी की जांच भी जिले में बंद कर दी गई है। मैदानी अमले को टीकाकरण नहीं करने की सख्त हिदायत कर्मचारी संघ ने दी है। टीकाकरण बंद होने से नवजात शिशु और गर्भवती महिलाओं को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। अस्पतालों में ताला लगने की नौबत है। जिला अस्तपाल में ब्लड जांच भी बंद पड़ा है। वहीं हड़ताल से शिशु मातृ अस्पताल में बिस्तरें खाली हो रही है।
गौरतबल है कि नियमितीकरण समेत 24 सूत्रीय मांगों को लेकर स्वास्थ्य विभाग का लगभग स्टॉफ हड़ताल पर चला गया है। जीवनदीप समिति के कर्मचारी भी इसमें शामिल हैं। मंगलवार से शुरू हुई इस हड़ताल के चलते जिलेभर में लोग परेशान हो रहे हैं। अस्पताल में भर्ती मरीजों को इलाज के लिए रिफर कर दूसरे जगह शिफ्ट कराना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में प्रशासन भी लाचार नजर आ रहा है। हालांकि कुछ डॉक्टरों के भरोसे व्यवस्था संभालने की कोशिश की जा रही है, लेकिन हड़ताल के प्रभाव को कम नहीं किया जा सका है।
संघ मांगों पर अड़ा, हड़ताल खत्म होने की उम्मीद नहीं
स्वास्थ्य कर्मचारी संघ अपनी मांगों को जायज ठहराते हुए हड़ताल पर अड़ा हुआ है। यानी फिलहाल आंदोलनरत कर्मियों के काम में लौटने की गुंजाईश नहीं है। बारिश के मौसम में हड़ताल में जाने से मौसमी बीमारियों का भी खतरा बढ़ गया है। मैदानी अमला फिलहाल हड़ताल की वजह से अस्पतालों से गायब है। आने वाले दिनों में हड़ताल खत्म नहीं होने से स्थिति भयावह साबित हो सकती है। एक साथ हड़ताल में चले जाने से अस्पतालों में सिर्फ चिकित्सक ही नजर आ रहे हैं। स्टॉफ नर्स, लैब टेक्निशियन, वार्ड ब्वाय, एक्सरे टेक्निशियन के अलावा मैदानी अमले में शामिल एएनएम और एलएचबी भी हड़ताल पर चली गई है। इस तरह हड़ताल से स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह से प्रभावित हो गई है। संघ के उप प्रांताध्यक्ष पीसी जेम्स ने कहा कि हमारी मांग पूरी तरह से जायज है। सरकार से कई दफे मांगों को लेकर ध्यान आकृष्ट कराया गया। ऐसे में कर्मियों के पास हड़ताल के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था।