महासमुन्द
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद,15 दिसंबर। शासकीय कन्या उ.मा.शाला महासमुंद की व्याख्याता डॉ. ज्योति किरण चंद्राकर ने बताया कि छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति में तीज त्योहारों का विशेष महत्व होता है। अगहन माह में अगहन बृहस्पति व्रत गुरुवार को लक्ष्मी जी की पूजा कर कठिन व्रत रखा जाता है। इस व्रत में लक्ष्मी जी के पद चिन्ह मुख्य दरवाजे से पूजा कक्ष तक बनाये जाते हंै। यह व्रत महिलाएं अगहन माह के प्रत्येक गुरुवार को सुख-समृद्धि की कामना एवं धन-धान्य से परिपूर्ण रहने के लिए रखती हैं। गुरुवार की पहली रात्रि बुधवार को घर साफ करके लक्ष्मी जी के पद चिन्ह बनाए जाते हैं और विशेष रूप से माता लक्ष्मी की पूजा जाती है।
उन्होंने बताया कि अगहन गुरुवार में सीता चौक बनाने का विशेष महत्व है। वह अल्पना से मनाया जाता है। रात्रि को जूठे बर्तन साफ कर रखा जाता है। बुधवार को रात में सोने से पहले पूजा कक्ष व मुख्य दरवाजे के बाहर दीपक जलाया जाता है। प्रथम गुरुवार के दिन पूजा कक्ष में धान का चौक बनाकर पाटा रखकर आसन पर माता लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित की जाती है।
साथ ही चढ़ाने के लिए रखिया, आंवला की टहनी, नया धान, चावल व मिष्ठान चढ़ाया जाता हैं। कलश स्थापित कर पूजा की जाती है। इस व्रत में व्रति महिलाओं को घर में झाडू लगाना, पैसे खर्च करना, बाल धोना, नाखून काटना, अन्न बिखरना, सूप का उपयोग करना वर्जित होता है।
वहीं अंतिम गुरुवार को पूजा की सारी सामग्री तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है। साथ ही लक्ष्मी जी पर चढ़े हुए सामग्री को घर के लोगों द्वारा उपयोग किया जाता है। इस व्रत में यह मान्यता है कि महालक्ष्मी जी का व्रत रखकर कामना करने से घर में सुख शांति समृद्धि धन.धन्य वैभव बना रहता है। यह व्रत छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति में विशेष महत्व रखता है। चिन्ह को बनाने के लिए चावल को भिगाकर, पीसकर उसके घोल से माता लक्ष्मी के पद चिन्ह पूजा कक्ष व भंडार गृह तक बनाये जाते हैं। आंगन में सीता चौक बनाया जाता है। सीता चौक में विशेषत: लक्ष्मी पांव, गाय का खुर, शंख, कमल आदि बनाए जाते हैं।