बेमेतरा

बोलचाल में छत्तीसगढ़ी के ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल पर जोर
17-Jan-2024 3:50 PM
बोलचाल में छत्तीसगढ़ी के ज्यादा  से ज्यादा इस्तेमाल पर जोर

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बेमेतरा, 17 जनवरी।
जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान डाइट में छत्तीसगढ़ी भाषा एवं संस्कृति के विकास पर पाँच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला प्रारम्भ हुआ। जिसमें प्राथमिक शालाओं में अध्यापनरत बेमेतरा, साजा, बेरला, नवागढ़ ब्लाक से कुल 100 शिक्षक, शिक्षिकाएं भाग ले रहे है। कार्यशाला में छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रयोग को लेकर चर्चा की गई। 
प्रशिक्षकों ने बताया कि हमें अपनी स्थानीय भाषा का दैनिक जीवन में इस्तेमाल करना चाहिए। छत्तीसगढ़ी बोलने से हम अपनी संस्कृति की ओर अग्रसर होते हैं। यह हमारी पहचान है। इसे ज्यादा से ज्यादा उपयोग में लाना चाहिए।

मास्टर ट्रेनर्स शीतल बैस ने छत्तीसगढ़ की संस्कृति रहन-सहन, वेशभूषा, पहनावा खान-पान, गहना, रुपया, ऐंठी, सुतिया, नागमोरी, बिछिया, करधन, छत्तीसगढ़ के विविध प्रकार के खेलकूद जैसे डंडा पिच रंगा, सुर, गेड़ी दौड़, छत्तीसगढ़ के व्यंजन खुरमी, ठेठरी आदि के बारे बताया गया। 

छत्तीसगढ़ी भाषा एवं संस्कृति के विकास के ऊपर डाइट व्याख्याता और इतिहासकार डॉ.बसुबंधु दीवान ने छत्तीसगढ़ की माटी की महक को संरक्षित और संवर्धन करने की दिशा में जोरदार प्रयास करने पर बल दिया। इस अवसर पर भुवन लाल साहू व्याख्याता लावातारा, गजानंद शर्मा व्याख्याता मटका, शीतल बैस सहायक शिक्षिका मगरघटा, शांत कुमार पटेल सहायक शिक्षक लालपुर का विशेष योगदान रहा। इस कार्यशाला में प्राचार्य जे के घृतलहरे डाइट बेमेतरा, व्याख्याता जी.एल खुटियारे, राजकुमार वर्मा आदि उपस्थित थे।

छत्तीसगढ़ी भाषा व संस्कृति हमारी आत्मा है
जिला नोडल अधिकारी थलज कुमार साहू ने बताया कि छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृति हमारी आत्मा है। हमें स्कूली बच्चों को स्थानीय बोलचाल की भाषा व संस्कृति के प्रति जागरूक करना है। जिसमें छत्तीसगढ़ी बोली ,भाषा लोक गीत, लोक कला, लोक चित्रकला, लोकनाट्य, लोक नृत्य, लोरिक चंदा, ढोला मारु, पंडवानी, नाचा गम्मत, सुआ गीत, करमा, ददरिया, राऊत आदि छत्तीसगढ़ी लोकगीत, लोक नृत्य, पंथी गीत राऊत नृत्य आदि के बारे में विस्तार से जानकारी दी।
 

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