राजनांदगांव
कलेक्टर ने बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए अभिभावकों को दिए सुझाव
राजनांदगांव, 4 मई। कलेक्टर संजय अग्रवाल ने अध्ययनरत छात्र-छात्राओं के ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान प्रायोजना कार्य से घर पर बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए अभिभावकों एवं परिवारजनों को आवश्यक सुझाव दिए हैं। कलेक्टर ने कहा कि शैक्षणिक सत्र 2023-24 की समाप्ति के बाद आगामी 45 दिन अध्ययनरत छात्र-छात्राओं का ग्रीष्मकालीन अवकाश रहेगा। इन अवकाश के दिनों में बच्चे अभिभावकों एवं परिवारजनों के साथ ही रहेंगे और अवकाश में बच्चों के सर्वांगीण विकास के उद्देश्य से प्रायोजना कार्य करवाया जाएगा। जिसके लिए परिवारजनों की सक्रिय सहभागिता की आवश्यकता है। बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक सुझावों पर अभिभावकों एवं परिवारजनों से सहयोग की अपेक्षा की गई है।
कलेक्टर ने कहा कि बच्चों में परिवार के प्रति प्रेमभाव व लगाव तथा सामूहिकता की भावना विकसित करने अभिभावक बच्चों के साथ प्रतिदिन एक समय का भोजन अवश्य करें। निवास स्थान के निकटवर्ती प्राकृतिक स्थानों एवं प्राकृतिक संसाधनों से भी बच्चों को अवगत कराएं। जिससे बच्चे प्रकृति के अधिक निकट हो सकें और उनका सांसारिक विकास भी हो सके। अभिभावक एवं बच्चे प्रतिदिन एक घंटा मोबाईल से दूर रहकर आपसी चर्चा, उनके द्वारा किए जाने वाले कार्य और उसमें आने वाली चुनौतियों और जीवन के हर क्षेत्र में सफलता कैसे अर्जित करें, इस पर अपने जीवन के अच्छे अनुभव बच्चों से साझा करें।
बच्चों को बड़े बुजुर्ग, दादा-दादी, नाना-नानी के साथ अधिक से अधिक समय बिताने का अवसर प्रदान करें। जिससे बच्चे अपने बड़ों के जीवन के अनुभव से अच्छे सार ग्रहण कर सकें। अपने आसपास एवं जिले के सफल व अच्छे व्यक्तित्व के लोगों की जीवनी से बच्चों को अवगत कराएं। अभिभावक अपने बच्चों से मित्रता स्थापित करने का प्रयास करें और उनकी पसंद उनकी कमजोरियों, उनके भय को पहचानने का प्रयास करें और उसका अपने स्तर पर निदान करने का प्रयास करें। स्थानीय स्तर पर स्थानीय गीत, संगीत, कला से बच्चों को जोडऩे का प्रयास करें। प्रतिदिन कुछ समय खेलकूद, योग व ध्यान में देना बेहतर है। कलेक्टर ने कहा कि जिला शिक्षा विभाग द्वारा बच्चों को ग्रीष्मकालीन प्रायोजना कार्य उपलब्ध कराया जा रहा हैं। जिसमें अभिभावकों की सहभागिता बच्चों के सर्वांगीण विकास में सहायक होगी। सुझावों का मुख्य उद्देश्य आगामी पीढ़ी का शैक्षणिक विकास के साथ-साथ उनका सांस्कृतिक एवं सामाजिक विकास भी करना है। जिससे बच्चे मानसिक रूप से स्वयं को अधिक मजबूत बना सके एवं समाज में अपनी अधिक सकारात्मक भूमिका का निवर्हन कर सकें।