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अफगानिस्तान: पहले किया विदेशी सैनिकों के साथ काम, अब जान पर बन आई
04-Jun-2021 3:36 PM
अफगानिस्तान: पहले किया विदेशी सैनिकों के साथ काम, अब जान पर बन आई

अफगानिस्तान में नाटो और अमेरिकी सेना के लिए अनुवादक के रूप में काम करने वाले कई अफगान अंतरराष्ट्रीय सैनिकों की वापसी के साथ खुद भी देश छोड़ना चाहते हैं. वे डरे हुए हैं कि तालिबान उन्हें मार डालेगा.

  (dw.com)

कई पश्चिमी दूतावासों ने हजारों अफगान अनुवादकों और उनके परिवारों को वीजा जारी किया है, लेकिन कई अनुवादकों के वीजा आवेदन भी खारिज कर दिए गए हैं. कई आवेदक कहते हैं कि वीजा नहीं दिए जाने का उन्हें उचित कारण तक नहीं बताया गया. साल 2018 से लेकर 2020 तक अमेरिकी सेना के लिए अनुवादक रहे ओमीद महमूदी सवाल करते हैं, "जब एक मस्जिद में एक इमाम सुरक्षित नहीं है, एक स्कूल में 10 साल की बच्ची सुरक्षित नहीं है, तो हम कैसे सुरक्षित हो सकते हैं?"

विदेशी सैनिकों के साथ कर चुके हैं काम
नियमित पॉलीग्राफ टेस्ट में फेल होने के बाद महमूदी की नौकरी खत्म कर दी गई. दूतावास ने उसी आधार पर उनका अमेरिका के लिए वीजा आवेदन खारिज कर दिया. वैज्ञानिक भी इस बात को मानते हैं कि एक पॉलीग्राफ टेस्ट, जो यह जानने की कोशिश करता है कि कोई व्यक्ति सच बोल रहा है या झूठ, जरूरी नहीं कि हर बार सटीक परिणाम दे. हालांकि, अमेरिका आज भी इस जांच का इस्तेमाल करता है, खास तौर से अत्यधिक संवेदनशील नौकरियों की भर्ती प्रक्रिया में.

कई अफगान जो वीजा हासिल करने में विफल रहे, उनका कहना है कि तालिबान उन्हें दोषी मानता है. महमूदी कहते हैं, "वे हमारे बारे में सब कुछ जानते हैं, तालिबान हमें माफ नहीं करेगा. वे हमें मार डालेंगे. वे हमारा सिर कलम कर देंगे."

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि जिन लोगों को विदेशी सैनिकों ने काम से हटा दिया है, उनके वीजा मामलों पर दोबारा से विचार किया जाना चाहिए क्योंकि तालिबान उन सभी लोगों के साथ अमेरिका के सहयोगी के रूप में व्यवहार करेगा.

उमर नाम के एक अनुवादक ने दस साल तक अमेरिकी दूतावास के साथ काम किया, लेकिन उनका भी करार रद्द कर दिया गया क्योंकि वह भी पॉलीग्राफ टेस्ट में फेल हो गए. उमर कहते हैं, "मुझे अमेरिका के लिए काम करने का अफसोस है, यह मेरी सबसे बड़ी गलती थी." उमर कहते हैं कि उनके चाचा और चचेरे भाई उन्हें "अमेरिकी एजेंट" मानते हैं.

परिवार के सदस्यों को नहीं मिलता वीजा
बीते दिनों काबुल में एक विरोध प्रदर्शन के दौरान 32 साल के वहीदुल्ला हनीफी ने कहा कि उनके वीजा आवेदन को फ्रांसीसी अधिकारियों ने खारिज कर दिया था क्योंकि उनका मानना था कि उनकी जान को कोई खतरा नहीं है. हनीफी ने 2010 से 2012 तक फ्रांसीसी सेना के साथ काम किया. हनीफी के मुताबिक, "हम अफगानिस्तान में फ्रांसीसी सैनिकों की आवाज थे, लेकिन अब उन्होंने हमें तालिबान के हवाले कर दिया है. अगर मैं इस देश में रहता हूं, तो मेरे बचने की कोई उम्मीद नहीं है. फ्रांसीसी सेना ने हमें धोखा दिया है."  

कई अफगान नागरिक भी हैं जिन्हें वीजा तो मिल गया लेकिन उनके परिवार के सदस्यों को वीजा नहीं जारी नहीं किया गया. ऐसी ही है 29 साल के जमाल की कहानी. जमाल ने ब्रिटिश सेना के साथ अनुवादक के रूप में काम किया. उन्हें 2015 में यूके में रेजीडेंसी दी गई थी, लेकिन छह साल बाद सिर्फ उनकी पत्नी को यूके आने की इजाजत दी गई. जमाल के पिता एक ब्रिटिश सैन्य अड्डे पर काम करते थे और अभी भी अफगानिस्तान में हैं. जमाल के मुताबिक, "जब आप ब्रिटिश सैनिकों के साथ काम करते हैं, तो आपको उनसे उम्मीद बंधी रहती है."

एए/वीके (एएफपी)

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