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इन 27 हजार बच्चों का भविष्य क्या बारूद है?
04-Jun-2021 3:38 PM
इन 27 हजार बच्चों का भविष्य क्या बारूद है?

आईएस खत्म हो चुका है. पर उसकी विरासत जिंदा है. और सीरिया में सुलग रही है. अल होल कैंप में रह रहे हजारों बच्चे, जिनकी परवाह किसी को नहीं है, इस सुलगती विरासत को शोलों में बदल सकते हैं.

  (dw.com)

सीरिया का अल होल कैंप. देश के उत्तर पूर्व में स्थित इस कैंप में जगह-जगह बच्चे खेलते दिख जाएंगे. दिनभर वे कच्ची सड़कों पर इधर से उधर भागते रहते हैं. बाहर से आया कोई व्यक्ति उनके खेल देखकर चौंक सकता है लेकिन इस्लामिक स्टेट आतंकवादियों का रूप धरकर जब वे नकली तलवारें और काले झंडे उठाए दिखते हैं, तो वहां रहने वाले वयस्क नहीं चौंकते. इन बच्चों को यही शिक्षा मिल रही है. ज्यादातर पढ़ना-लिखना नहीं जानते. जिन्हें थोड़ी-बहुत शिक्षा अपनी मांओं से मिली है, वह आईएस का प्रोपेगैंडा ही है.

दो साल पहले आईएस को खत्म किया जा चुका है. लेकिन उसकी विरासत अल होल कैंप में मौजूद है. इस कैंप में इस्लामिक स्टेट के लिए लड़ने वाले लोगों के परिवार रह रहे हैं, 27 हजार बच्चों के साथ. इनमें से ज्यादातर अभी किशोर नहीं हुए हैं. उनका बचपन, अधर में लटका है. जिन हालात में वे रह रहे हैं, उनका कोई भविष्य नहीं है. वर्तमान के नाम पर न स्कूल है, न खेल का मैदान. और किसी की भी उनकी हालत में कोई दिलचस्पी भी नहीं है. उनके पास अगर कुछ है तो इस्लामिक स्टेट नाम का गुजरा वक्त, जिसमें यदा-कदा वर्तमान की आहट सुनती रहती है. आज भी इस्लामिक स्टेट से सहानुभूति रखने वाले लोग और कार्यकर्ता इस कैंप में मौजूद हैं. पूर्वी सीरिया में इस्लामिक स्टेट के लोग थोड़े बहुत सक्रिय रहते हैं. और बहुत से निष्क्रिय हैं, लेकिन सिर्फ सही मौके की तलाश में.

यहां बचपन नहीं है
कुर्द अधिकारियों और सहायता समूहों को डर है कि यह कैंप उग्रवादियों की नर्सरी न बन जाए. उन देशों से बार-बार गुहार लगाई जा रही है कि अपनी नागरिक महिलाओं और बच्चों को यहां से ले जाएं. लेकिन वे देश भी इस डर में हैं कि इन बच्चों और महिलाओं के रूप में उनके यहां आतंकवादी न घुस जाएं. सेव द चिल्ड्रन्स की सीरिया रेस्पॉन्स निदेशक सोनिया खुश कहती हैं कि ये बच्चे आईएसआईएस के पीड़ित हैं.

वह बताती हैं, "चार साल के बच्चे की कोई विचारधारा नहीं होती. उसकी जरूरतें होती हैं. उसे सुरक्षा चाहिए और वह सीखना चाहता है. कैंप बच्चों के बड़े होने की जगह नहीं हो सकते. वहां उन्हें सीखने, समझने और अपना बचपन जी पाने का कोई मौका ही नहीं मिलता. जिस तरह के अनुभवों से वे गुजरे हैं, उनके घावों को भरने का मौका नहीं मिलता.”

कैंप के चारों ओर बाड़ लगी है. अंदर टेटों की लंबी कतारें हैं जो करीब एक वर्गमील में फैले हैं. हालात बुरे हैं. कई कई परिवार अक्सर एक ही टेंट में रहने को मजबूर होते हैं. स्वास्थ्य सुविधाएं नाम मात्र हैं. साफ पानी की उपलब्धता नगण्य है. सर्दी में बारिश होती है तो पानी टेंटों में भर जाता है. कई बार आग लग चुकी है. और इन हालात में 50 हजार सीरियाई और इराकी लोग रहने को मजबूर हैं जिनमें से 20 हजार बच्चे और बाकी ज्यादातर महिलाएं हैं. ये महिलाएं आईएस लड़ाकों की पत्नियां और विधवाएं हैं.

आईएस जिंदाबाद बोलने वाले
एक अलग भाग है, जहां पहरा बेहद कड़ा है. इस हिस्से में 57 देशों की दो हजार महिलाएं रहती हैं. इन्हें आईएस की सबसे कट्टर समर्थक माना जाता है. इन महिलाओं के साथ लगभग आठ हजार बच्चे भी हैं.

देखने भर से पता चल जाता है कि इन बच्चों पर इस्लामिक स्टेट का प्रभाव कितना ज्यादा है. जब रिपोर्टर्स वहां पहुंचे तो बच्चों ने पथराव शुरू कर दिया. दस साल का लगने वाला एक बच्चा चिल्लाया, "हम तुम्हें मार देंगे क्योंकि तुम काफिर हो. तुम अल्लाह के दुश्मन हो. हम इस्लामिक स्टेट हैं. तुम शैतान हो और मैं तुम्हें एक चाकू से मार दूंगा. मैं तुम्हें ग्रेनेड के धमाके से उड़ा दूंगा.”

एक अन्य बच्चे ने हाथ से गर्दन काटने का इशारा किया. कैंप के अंदर एक बाजार में महिलाएं शैंपू, बोतलबंद पानी और पुराने कपड़े बेच रही हैं. एक महिला ने रिपोर्टर को देखकर कहा, "इस्लामिक स्टेट जिंदाबाद.”

सीरिया और इराक के हिस्सों पर आईएस का अधिपत्य करीब पांच साल रहा. इस दौरान आईएस ने बच्चों को इस्लामिक स्टेट का पाठ पढ़ाने पर पूरा जोर दिया था. वे बच्चों को इस्लामिक कानून की बेहद क्रूर व्याख्या बता रहे थे. उन्होंने बच्चों को लड़ाके बनने की ट्रेनिंग दी, गुड़ियाओं का इस्तेमाल कर उन्हें सिर काटने सिखाए और प्रोपेगैंडा वीडियो में उनसे कत्ल तक करवाए.

बच्चों का क्या कसूर?
कैंप में सभी लोग कट्टर समर्थक नहीं हैं. वहां अलग-अलग तरह की महिलाएं हैं. कुछ आज भी आईएस जिंदाबाद बोलती हैं तो बहुत सी महिलाओं का मोहभंग हो चुका है. कुछ ऐसी भी हैं जिन्हें इस्लामिक स्टेट से कोई लेना-देना नहीं था और उनके पति या परिवार वाले जबरन ले गए थे.

कैंप में रूसी मूल की एक महिला खुद को मदीना बकराव बताती है. वह कहती हैं कि उन्हें इन बच्चों के भविष्य के लिए डर लगता है, जिनमें उनका अपना एक बेटा और एक बेटी है. 42 साल की बकराव कहती हैं, "हम अपने बच्चों के लिए पढ़ाई चाहते हैं. उन्हें लिखना और गिनना आना चाहिए. हम अपने घर जाना चाहते हैं, जहां हमारे बच्चे अपना बचपन गुजार सकें.” बकराव पूरी तरह काले रंग से ढकी थीं. उनके हाथ पांव तक नजर नहीं आ रहे थे. उन्होंने बताया कि उनके पति की मौत हो चुकी है. लेकिन मौत कैसे हुई, यह नहीं बताया.

मार्च 2019 में आखिरी इलाके पर आईएस का कब्जा खत्म होने के बाद से कुर्द अधिकारी विदेशियों को उनके घर वापस भेजने का संघर्ष कर रहे हैं. इस साल की शुरुआत में सैकड़ों सीरियाई परिवार कैंप से अपने घर चले गए क्योंकि उनके कबीलों के साथ समझौता हो गया था जिसके तहत उन्हें स्वीकार कर लिया गया. पिछले महीने ही सौ इराकी परिवार सीरियाई कैंप छोड़कर इराक के एक कैंप में रहने चले गए. सोवियत रूस में शामिल रहे कुछ देशों ने अपने नागरिकों को वापस आने की इजाजत दी है. लेकिन अरब, यूरोपीय और अफ्रीकी देश आज भी इन लोगों को लेने को तैयार नहीं हैं.

यूएन की बच्चों की लिए काम करने वाली एजेंसी यूनिसेफ के मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के निदेशक टेड चाईबान कहते हैं कि इन बच्चों की तो कोई गलती नहीं है और इन्हें इनके माता-पिताओं के किए की सजा नहीं मिलनी चाहिए.

वीके एए (एपी)

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