अंतरराष्ट्रीय
बीजिंग, 6 जून| चीन में हर साल बड़ी संख्या में स्कूली बच्चे राष्ट्रीय कॉलेज प्रवेश परीक्षा में बैठते हैं, जिसे 'काओखाओ' कहा जाता है। दो दिनों तक चलने वाली इस काओखाओ परीक्षा में बैठने वाले लाखों चीनी छात्र देश के सबसे बेहतरीन और नामी विश्वविद्यालयों में दाखिला पाने के लिए सबसे ज्यादा अंक पाने की कोशिश करते हैं। इस परीक्षा के जरिए छात्रों को उनके शैक्षिक और पेशेवर भविष्य तय करने में मदद मिलती है। साल में एक बार होने वाली इस परीक्षा को देश का हर प्रांत अपने-अपने ढंग से करवाता है। यह परीक्षा पूरे देश में हर साल 7 जून को शुरू होती है और 2 दिन तक जारी रहती है। इस परीक्षा को देने वाले छात्रों के लिए तीन विषय सबसे ज्यादा जरूरी होते हैं, पहला चीनी भाषा, दूसरा गणित और तीसरा विदेशी भाषा। आमतौर पर विदेशी भाषा में अंग्रेजी की ही परीक्षा होती है, लेकिन उसमें जापानी, रूसी या फ्रेंच भाषा का भी विकल्प होता है। यह परीक्षा इतनी आसान नहीं होती है। यह दुनिया की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक मानी जाती है।
चूंकि काओखाओ की परीक्षा पास करने के बाद ही छात्रों को कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में दाखिला मिल पाता है, इसलिए इसका दबाव चीनी छात्रों के साथ-साथ उनके माता-पिता पर भी रहता है। चीन में हाईस्कूल की पढ़ाई तीन साल की होती है, इसलिए हाई स्कूल के तीसरे साल के छात्र ही आम तौर पर इस परीक्षा में बैठते हैं। परीक्षा के 20 दिन बाद परिणाम घोषित कर दिए जाते हैं।
यहां चीनी विश्वविद्यालयों में आवेदन करने के दो तरीके होते हैं। पहला तरीका यह है कि छात्र काओखाओ से पहले 6 विश्वविद्यालयों का चुनाव कर, उन विश्वविद्यालयों में आवेदन करते हैं, जिनका चुनाव किया गया है। दूसरा तरीका है कि काओखाओ का परिणाम घोषित होने के बाद छात्र अपने अंक के आधार पर 6 विश्वविद्यालयों का चुनाव कर, उनमें विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिए आवेदन करते हैं। परीक्षा के परिणाम घोषित होने के बाद हरेक विश्वविद्यालय अपना कट-ऑफ लिस्ट निकालता है और उसी के आधार पर छात्रों को दाखिला दिया जाता है।
दरअसल, साल 1949 से पहले चीन में काओखाओ की व्यवस्था नहीं थी। देश में सभी विश्वविद्यालय अपनी जरूरतों के आधार पर छात्रों को दाखिला देते थे। साल 1966 में महान सांस्कृतिक क्रांति होने के कारण इस परीक्षा को बंद कर दिया गया, लेकिन साल 1976 में इस क्रांति की समाप्ति के साथ ही 1977 से यह परीक्षा फिर से शुरू की गई।
साल 1977 में चीन में कॉलेज के लिए प्रवेश परीक्षा को बहाल किए जाने से आज तक पीढ़ी दर पीढ़ी मेधावी लोगों को निखारा गया है, जिन्होंने सुधार व खुलेपन की नीति लागू होने के बाद पिछले 40 सालों के स्थिर और तेज विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। माना जाता है कि काओखाओ की बहाली ने चीनी जनता के ज्ञान सीखने के उत्साह को न केवल प्रेरणा दी, बल्कि सारे समाज में ज्ञान का समादर करने का माहौल बनाया।
(लेखक : अखिल पाराशर, चाइना मीडिया ग्रुप, बीजिंग में पत्रकार हैं) (आईएएनएस)