अंतरराष्ट्रीय

उत्तर कोरियाः किम जोंग-उन ने विदेशी फ़िल्मों और फटी जीन्स के ख़िलाफ़ छेड़ी जंग
07-Jun-2021 4:08 PM
उत्तर कोरियाः किम जोंग-उन ने विदेशी फ़िल्मों और फटी जीन्स के ख़िलाफ़ छेड़ी जंग

-लॉरा बिकर

उत्तर कोरिया में दक्षिण कोरिया के टीवी सीरियल बहुत लोकप्रिय हैं
उत्तर कोरिया ने हाल ही में एक नया क़ानून लागू किया है जिसके तहत विदेशी फ़िल्में, कपड़े या गालियाँ देने तक पर कड़ी सज़ा हो सकती है. मगर क्यों?

यून मी-सो कहती हैं वो तब 11 साल की थीं जब उन्होंने पहली बार एक व्यक्ति को मौत की सज़ा दिए जाते देखा क्योंकि उन्हें दक्षिण कोरिया के एक ड्रामे का वीडियो पास रखने के लिए पकड़ा गया था.

इलाक़े के सारे लोगों को फ़रमान जारी किया गया था कि वो इस सज़ा को देखें. सरकार सबको ये स्पष्ट कर देना चाहती थी कि अवैध वीडियो रखने की सज़ा क्या है.

दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल में अपने घर से उन्होंने बीबीसी को बताया, "ऐसा नहीं करने पर इसे देशद्रोह समझा जाता".

"मुझे अच्छी तरह से याद है कि उस व्यक्ति की आँखों पर पट्टी बाँध दी गई, मैं देख सकती थी कि वो रो रहा था. पट्टी पूरी तरह भीग गई थी. मैं ये देख हिल गई. उन्होंने उसे एक लकड़ी के खंभे से बाँधा, और गोली मार दी."

'बिना हथियारों के जंग'
कल्पना करिए कि आप हमेशा के लिए लॉकडाउन में हैं, ना इंटरनेट है, ना सोशल मीडिया, बस कुछ सरकारी टीवी चैनल हैं जो बताते हैं कि नेता क्या कह रहे हैं - ये उत्तर कोरिया है.

और अब वहाँ के नेता किम जोंग-उन ने इसे और सख़्त कर दिया है, वहाँ एक नया क़ानून लाया गया है. सरकार का कहना है कि इसे प्रतिक्रियावादी सोच को रोकने के लिए लाया गया है.

इसके तहत यदि किसी के पास दक्षिण कोरिया, अमेरिका या जापान के वीडियो का संग्रह मिला, तो उसे मौत की सज़ा मिलेगी.

अगर कोई ये वीडियो देखते पकड़ा गया तो उसे 15 साल जेल में बिताने पड़ सकते हैं.

और बात केवल देखने भर की नहीं है.

किम जोंग-उन ने हाल ही में सरकारी मीडिया को एक चिट्ठी लिखी जिसमें देश की युवा लीग से आह्वान किया कि वो युवाओं में "अप्रिय, व्यक्तिवादी, समाज-विरोधी बर्ताव" के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ें.

वो विदेशी भाषणों, हेयरस्टाइल और कपड़ों पर भी रोक लगाना चाहते हैं जिन्हें वो "ख़तरनाक ज़हर" बताते हैं.

दक्षिण कोरिया से चलने वाले एक ऑनलाइन प्रकाशन द डेली ने उत्तर कोरिया में अपने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि तीन लड़कों को इसलिए पुनर्शिक्षा शिविरों यानी एक तरह से बंदीगृहों में भेज दिया गया क्योंकि उन्होंने कोरियाई-पॉप के गायकों की तरह बाल रखे थे और घुटनों के ऊपर उनकी जींस फटी थी. हालाँकि बीबीसी इस दावे की पुष्टि नहीं कर सकता.

और ये इसलिए हो रहा है क्योंकि किम जोंग-उन एक ऐसे युद्ध में जुटे हैं जो परमाणु हथियारों से नहीं लड़ी जा रही है. विश्लेषकों का कहना है, वो उत्तर कोरिया में बाहर से सूचनाओं को पहुँचने पर रोक लगाने की कोशिश कर रहे हैं.

बताया जा रहा है कि उत्तर कोरिया में मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं, लाखों लोग भूखे हैं और किम उनका पेट सरकारी प्रचार से भरने की कोशिश कर रहे हैं. वो नहीं चाहते कि लोगों को उनके पड़ोसी दक्षिण कोरिया की चमक-दमक से भरी ज़िंदगी वाले टीवी सीरियल देखें जो एशिया के सबसे अमीर मुल्क़ों में से एक है.

कोरोना महामारी की वजह से उत्तर कोरिया, बाक़ी दुनिया से और ज़्यादा कट गया है. चीन से ज़रूरी चीज़ों की सप्लाई और व्यापार थम गया है. कुछ सप्लाई अब शुरू हो रही है, मगर वो काफ़ी सीमित है.

इस वजह से देश की पहले से बदहाल अर्थव्यवस्था और बुरी हालत में पहुँच गई है जहाँ ज़्यादातर पैसा परमाणु हथियार बनाने में लगा दिया जाता है.

किम जोंग उन ने इस साल के आरंभ में ये स्वीकार किया था कि लोग "अब तक की सबसे बुरी स्थिति का सामना कर रहे हैं जिस पर हमें क़ाबू पाना है".

क़ानून क्या कहता है?
डेली एनके को इस क़ानून की एक प्रति मिली है जिसके संपादक ली सांग यॉन्ग ने बीबीसी को इसकी जानकारी दी.

उन्होंने कहा,"इसमें कहा गया है कि अगर किसी कामगार को पकड़ा गया, तो फ़ैक्टरी के प्रमुख को सज़ा मिलेगी, और अगर कोई बच्चा समस्या करता है तो उसके माता-पिता को सज़ा दी जाएगी."

वो कहते हैं कि इसका इरादा युवाओं के मन में दक्षिण कोरिया को लेकर किसी भी सपने या अरमान को ख़त्म कर देना है.

यॉन्ग ने कहा, "दूसरे शब्दों में, सरकार ने ये तय कर लिया है कि अगर दूसरे देशों की संस्कृति का यहाँ के युवाओं को पता चला तो वो विरोध में बदल सकता है."

पिछले साल उत्तर कोरिया से भाग निकलने में कामयाब रहे कुछ लोगों में शामिल चोइ जोंग-हून ने बीबीसी को बताया कि वक़्त जितना कठिन होता है, नियम, क़ानून और सज़ा भी वैसे ही सख़्त होते जाते हैं.

वो कहते हैं, "मनोविज्ञान के हिसाब से अगर आपका पेट भरा हो और आप दक्षिण कोरिया की कोई फ़िल्म देखते होंगे तो ये मनोरंजन होगा. मगर खाना ना हो, लोग जूझ रहे हों, तो ऐसे में लोगों के मन में असंतोष जन्म ले सकता है."

इसका फ़ायदा होगा?
इसके पहले उत्तर कोरिया में जब-जब सख़्ती की गई, लोगों ने विदेशी फ़िल्में देखने का नया रास्ता निकाल लिया जो आम तौर पर चीन से स्मगल होकर आती हैं.

चोई कहते हैं वर्षों से ये फ़िल्में पेनड्राइव से आती रही हैं जिन्हें आसानी से छिपाया भी जा सकता है और जिन्हें पासवर्ड से सुरक्षित भी रखा जा सकता है.

उत्तर कोरिया में दक्षिण कोरिया के टीवी सीरियल बहुत लोकप्रिय हैं
वो कहते हैं, "अगर तीन बार ग़लत पासवर्ड डाला तो यूएसबी सारा डेटा उड़ा देता है. अगर सामग्री ज़्यादा संवेदनशील है तो आप ऐसी भी सेटिंग कर सकते हैं कि एक ही ग़लत पासवर्ड से वो डिलीट हो जाए."

"कई बार ऐसी भी सेटिंग कर दी जाती है कि वो वीडियो एक ही कंप्यूटर पर चले, यानी उसे केवल आप देख सकते हैं, दूसरों को नहीं दे सकते."

मी-सो बताती हैं कि कैसे उनके घर के पास लोग फ़िल्में देखने के लिए उपाय निकाला करते थे. वो बताती हैं कि कैसे एक बार उन्होंने कार की बैट्री को एक जेनरेटर से जोड़ टीवी चलाया.

वो याद करती हैं कि उन्होंने तब एक दक्षिण कोरियाई ड्रामा "स्टेयरवेय टू हेवेन" देखा था. ये एक लड़की की प्रेम कथा है जो पहले अपनी सौतेली माँ और फिर कैंसर से लड़ती है. ये ड्राम उत्तर कोरिया में 20 साल पहले काफ़ी लोकप्रिय हुआ था.

चोई बताते हैं कि विदेशी वीडियो को लेकर लोगों में दिलचस्पी और बढ़ने लगी जब चीन से सस्ते सीडी और डीवीडी आने शुरू हुए.

सख़्ती की शुरूआत
लेकिन धीरे-धीरे उत्तर कोरिया सरकार को इसका पता चलने लगा. चोई बताते हैं कि कैसे 2002 में सुरक्षाकर्मियों ने एक यूनिवर्सिटी पर छापा मार 20,000 सीडी ज़ब्त किए.

वो कहते हैं, "ये केवल एक यूनिवर्सिटी थी. आप सोच सकते हैं कि पूरे देश में क्या हुआ होगा? सरकार हैरान रह गई. और फिर उन्होंने सख़्ती शुरू कर दी."

किम गेउम-ह्योक कहते हैं वो 2009 में 16 साल के थे जब उन्हें अवैध वीडियो शेयर करने वाले लोगों की धर-पकड़ के लिए बनाए गए एक विशेष दस्ते ने पकड़ लिया.

उन्होंने अपने एक दोस्त को दक्षिण कोरिया के पॉप गानों के कुछ वीडियो दिए थे जो उनके पिता चीन से स्मगल कर लाए थे.

वो बताते हैं कि उनके साथ वयस्कों जैसा बर्ताव हुआ, एक सीक्रेट कमरे में पूछताछ की गई जहाँ गार्डों ने उन्हें सोने नहीं दिया, लगातार चार दिन उन्हें पीटा जाता रहा.

अभी सोल में रह रहे किम कहते हैं, "वो जानना चाहते थे कि मुझे ये वीडियो कैसे मिले और मैंने कितने लोगों को दिखाया. मैं कैसे बताता कि ये मेरे पिता लेकर आए थे. मैं बस कहता रहा, मुझे नहीं मालूम, मुझे जाने दीजिए."

किम एक अमीर घर से आते हैं. बाद में उनके पिता ने गार्डों को घूस देकर अपने बेटे को रिहा करवा लिया. अब नए क़ानून आने के बाद इसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता.

तब ऐसे जुर्म में पकड़े जाने वाले कई लोगों को लेबर-कैंपों में भेज दिया गया. मगर इससे ये कम नहीं हुआ, तो सज़ा बढ़ा दी गई.

चोई बताते हैं कि पहले लेबर कैंप में एक साल रहने की सज़ा थी जिसे बढ़ाकर तीन साल कर दिया गया.

वो कहते हैं, "आज अगर आप वहाँ जाएँ तो पाएँ कि वहाँ बंद 50% से ज़्यादा लोग इसलिए बंद हैं क्योंकि उन्होंने विदेशी फ़िल्में देखी थीं."

बीबीसी को कई सूत्रों ने बताया कि पिछले एक साल में उत्तर कोरिया में जेलों का दायरा बढ़ा दिया गया है जिससे पता चलता है कि सख़्त क़ानून का असर हो रहा है.

पर लोग विदेशी फ़िल्में क्यों देखते हैं?
किम कहते हैं कि वो जानना चाहते थे कि बाहर की दुनिया में क्या हो रहा है.

और सच जानने के बाद उनकी ज़िंदगी बदल गई. वो चंद ख़ुशकिस्मत लोगों में से आते हैं जिन्हें बीजिंग में पढ़ने की अनुमति मिल सकी जहाँ उन्होंने पहली बार इंटरनेट को जाना.

वो बताते हैं, "पहले मुझे लगता था कि पश्चिम के लोग मेरे देश के बारे में झूठ बोलते हैं. विकीपीडिया पर कैसे भरोसा करूं? मगर मेरा दिल और दिमाग़ अलग बातें कह रहे थे."

"तो मैंने उत्तर कोरिया पर कई डॉक्यूमेंट्री देखीं, लेख पढ़े और तब मुझे लगा कि शायद ये सही है क्योंकि उनकी बातें समझ में आ रही थीं."

"और ये पता चलने तक बहुत देर हो चुकी थी, मैं वापस नहीं लौट सका."

आख़िर में किम गुएम-ह्योग सोल भाग गए.

मी-सो अब एक फ़ैशन एडवाइज़र हैं. सोल पहुँचने के बाद वो सबसे पहले उन जगहों पर गईं जिन्हें उन्होंने ड्रामे में देखा था.

मगर सबकी कहानी उनके जैसी नहीं होती.

अब वहाँ से भागना लगभग नामुमकिन है क्योंकि वहाँ सीमा पर "देखते ही गोली मारने" के आदेश लागू हैं.

चोई का परिवार उत्तर कोरिया में ही रह गया. वो नहीं मानते कि एकाध ड्रामा देखने से वहाँ दशकों से जारी सख़्त शासन बदल जाएगा. मगर उन्हें लगता है कि उत्तर कोरिया में लोग शक करने लगे हैं कि सरकार जो कहती है वो सच नहीं है.

वो कहते हैं, "उत्तर कोरिया के लोगों के मन में शिकायतें हैं, मगर उन्हें नहीं पता कि उसका क्या करें. वहाँ ज़रूरत है कि उन्हें जगाया जाए, बताया जाए."(bbc.com)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news