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नई दिल्ली. प्रशासकों की समिति के प्रमुख रहे विनोद राय के अनुसार अनिल कुंबले को लगता था कि उनके साथ अनुचित व्यवहार किया गया. इतना नहीं उन्हें टीम इंडिया के मुख्य कोच के पद से इस्तीफा देने के लिए बाध्य किया गया. वहीं तत्कालीन कप्तान विराट कोहली का मानना था कि खिलाड़ी अनुशासन लागू करने की उनकी डराने वाली शैली से खुश नहीं थे. राय ने अपनी हाल में प्रकाशित किताब ‘नॉट जस्ट ए नाइटवाचमैन: माइ इनिंग्स विद बीसीसीआई’ में अपने 17 महीने के कार्यकाल के विभिन्न पहलुओं का जिक्र किया है. इसमें यह भी बताया कि आखिर क्यों बतौर कोच रवि शास्त्री के कार्यकाल के दौरान राहुल द्रविड़ और जहीर खान टीम इंडिया से नहीं जुड़ सके थे.
सबसे बड़ा मुद्दा और संभवत: सबसे विवादास्पद मामला उस समय हुआ, जब कोहली ने कुंबले के साथ मतभेद की शिकायत की, जिन्होंने 2017 में चैंपियंस ट्रॉफी के बाद सार्वजनिक रूप से इस्तीफे की घोषणा की. कुंबले को 2016 में एक साल का अनुबंध दिया गया था. पूर्व कैग प्रमुख विनोद राय ने अपनी किताब में लिखा, ‘कप्तान और टीम मैनेजमेंट के साथ मेरी बातचीत में यह पता चला कि कुंबले काफी अधिक अनुशासन लागू करते हैं और इसलिए टीम के सदस्य उनसे काफी अधिक खुश नहीं थे.’
सीएसी ने अनुबंध बढ़ाने की सिफारिश की
उन्होंने लिखा कि मैंने इस मुद्दे पर विराट कोहली के साथ बात की और उन्होंने कहा कि टीम के युवा सदस्य उनके साथ काम करने के उनके तरीके से डरते थे. राय ने खुलासा किया कि सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण की क्रिकेट सलाहकार समिति ने कुंबले का अनुबंध बढ़ाने की सिफारिश की थी. उन्होंने कहा कि इसके बाद लंदन में सीएसी की बैठक हुई और इस मुद्दे को सलुझाने के लिए दोनों के साथ अलग-अलग बात की गई. 3 दिन तक बातचीत के बाद उन्होंने मुख्य कोच के रूप में कुंबले की पुन: नियुक्ति की सिफारिश करने का फैसला किया.
कोहली की बात को तवज्जो दी गई
हालांकि बाद में जो हुआ उससे जाहिर था कि कोहली के नजरिए को अधिक सम्मान दिया गया था और इसलिए कुंबले की स्थिति अस्थिर हो गई थी. राय ने लिखा कि कुंबले के ब्रिटेन से लौटने के बाद हमने उनके साथ लंबी बातचीत की. जिस तरह पूरा प्रकरण हुआ उससे वह स्पष्ट रूप से निराश थे. उन्हें लगा कि उनके साथ गलत व्यवहार किया गया है और एक कप्तान या टीम को इतना महत्व नहीं दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि कोच का कर्तव्य था कि वह टीम में अनुशासन और पेशेवरपन लाए. एक वरिष्ठ के रूप में खिलाड़ियों को उनके विचारों का सम्मान करना चाहिए था.
अनुबंध बढ़ाने का नियम नहीं था
राय ने यह भी लिखा कि कुंबले ने महसूस किया कि प्रोटोकॉल और प्रक्रिया का पालन करने पर अधिक भरोसा किया गया और उनके मार्गदर्शन में टीम ने कैसा प्रदर्शन किया, इसे कम महत्व दिया गया. राय ने कहा कि उन्होंने कुंबले को समझाया था कि उनके कार्यकाल को विस्तार क्यों नहीं मिला. उन्होंने लिखा, ‘मैंने उन्हें समझाया कि इस तथ्य पर विचार करते हुए कि 2016 में उनके पहले के चयन में भी एक प्रक्रिया का पालन किया गया था. उनके एक साल के अनुबंध में कार्यकाल के विस्तार का कोई नियम नहीं था. हम उनकी पुन: नियुक्ति के लिए भी प्रक्रिया का पालन करने के लिए बाध्य थे और ठीक यही किया गया.’
कोहली और कुंबले दोनों चुप रहे
राय ने हालांकि कोहली और कुंबले दोनों की ओर से इस मुद्दे पर गरिमापूर्ण चुप्पी बनाए रखना परिपक्व और विवेकपूर्ण पाया. नहीं तो यह विवाद जारी रहता. उन्होंने लिखा कि कप्तान कोहली के लिए सम्मानजनक चुप्पी बनाए रखना वास्तव में बहुत ही विवेकपूर्ण है. उनके किसी भी बयान से विचारों का अंबार लग जाता. राय ने कहा कि कुंबले ने भी अपनी तरफ से चीजों को अपने तक रखा और किसी भी मुद्दे पर सार्वजनिक प्रतिक्रिया नहीं दी. यह ऐसी स्थिति से निपटने का सबसे परिपक्व और सम्मानजनक तरीका था, जो इसमें शामिल सभी पक्षों के लिए अप्रिय हो सकता था.
द्रविड़ की नियुक्ति नहीं हो सकी
वर्ष 2017 में जब रवि शास्त्री को मुख्य कोच के रूप में फिर से नियुक्त किया गया था, तो बीसीसीआई ने अपने शुरुआती ईमेल में कहा था कि राहुल द्रविड़ और जहीर खान को क्रमशः बल्लेबाजी और गेंदबाजी सलाहकार नियुक्त किया गया था. हालांकि इस फैसले को बदलना पड़ा और बाद में शास्त्री के विश्वासपात्र भरत अरुण को भी गेंदबाजी कोच के रूप में दोबारा नियुक्त किया गया. राय ने अपनी किताब में उल्लेख किया है कि कुछ व्यावहारिक कठिनाइयां थी, जिसके कारण द्रविड़ और जहीर इस भूमिका से नहीं जुड़ पाए.
लक्ष्मण को लगा था झटका
उन्होंने लिखा कि लक्ष्मण ने यह कहने के लिए फोन किया कि रिपोर्ट सामने आ रही थी कि सीओए ने कथित तौर पर यह धारणा दी थी कि सीएसी ने द्रविड़ और जहीर के नाम की सलाहकार/ कोच के रूप में सिफारिश करके अपनी सीमा को पार किया था. राय ने लिखा कि उन्होंने सीएसी की पीड़ा को बताने के लिए फोन किया था. मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि ये मीडिया की अटकलें थीं और कोई अनावश्यक रूप से प्रक्रिया में अपना अवांछित नजरिया जोड़ रहा था.
द्रविड़ के पास नहीं था समय
तथ्य यह था कि द्रविड़ अंडर-19 टीम के साथ बहुत अधिक व्यस्त थे और उनके पास सीनियर टीम के लिए समय नहीं था. जहीर दूसरी टीम के साथ अनुबंधित थे और उन्हें नहीं जोड़ा जा सकता था. और इसलिए उस सिफारिश पर कार्रवाई नहीं की जा सकती थी. इसलिए पूरी प्रक्रिया रुक गई. हालांकि राय का पक्ष उस समय इस मुद्दे को कवर करने वाले लोगों को थोड़ा गलत लगता है.
उस समय सक्रिय रहे एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘अगर उन्हें पता होता कि द्रविड़ और जहीर पदभार ग्रहण करने में असमर्थ हैं. तो राय ने उनकी नियुक्तियों को मंजूरी क्यों दी होती.’ अधिकारी ने कहा, सच्चाई यह है कि शास्त्री ने अपनी नियुक्ति के बाद यह स्पष्ट कर दिया था कि वह तभी काम करेंगे, जब उनकी पसंद का सहयोगी स्टाफ दिया जाएगा और उस सूची में भरत अरुण होना चाहिए.