ताजा खबर

महाराष्ट्र में कुपोषण से तीन सालों में 6,852 बच्चों की मौत
27-Apr-2022 5:12 PM
महाराष्ट्र में कुपोषण से तीन सालों में 6,852 बच्चों की मौत

महाराष्ट्र सरकार ने माना है कि राज्य में पिछले तीन सालों में कुपोषण से 6,852 बच्चों की मौत हो गई. इनमें से कम से कम 601 बच्चे ऐसे थे जिन्हें जन्म देते समय उनकी माएं नाबालिग थीं.

डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट- 

ये आंकड़े राज्य सरकार द्वारा बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश पर बनाई गई एक रिपोर्ट में सामने आए हैं. अदालत ने मार्च में जिला कलेक्टरों और जिला मजिस्ट्रेटों को सर्वे कर राज्य में ऐसे इलाकों को चिन्हित करने का आदेश दिया था जहां आज भी बाल विवाह कराए जाते हैं.

2019 से लेकर 2022 तक राज्य के 16 आदिवासी जिलों में सर्वे कर इन आंकड़ों को इकट्ठा किया गया. सर्वे आंगनवाड़ी सेविकाओं और आशा सेविकाओं ने किए. रिपोर्ट में जो हकीकत सामने आई है वो दिखाती है कि बाल विवाह और कुपोषण जैसी समस्याएं आज भी भारत में विकराल रूप में मौजूद हैं.

15,253 बाल विवाह, 1.36 लाख कुपोषित बच्चे

राज्य सरकार ने अदालत को बताया कि राज्य में बाल विवाह और कुपोषण के आंकड़ों का पता लगाने के लिए पहले कुपोषित बच्चों की जानकारी इकट्ठा की गई और फिर उनके माता पिता का पता लगाया गया. उद्देश्य यह पता लगाना था कि कितनी माएं नाबालिग यानी 18 साल से कम उम्र की थी.

रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले तीन सालों में कुल 1,33,863 आदिवासी परिवारों में 15,253 बाल विवाह हुए हैं. सर्वे में 1.36 लाख से भी ज्यादा बच्चे कुपोषित पाए गए, जिनमें से 14,000 से भी ज्यादा बच्चों की माएं नाबालिग थीं.

इन 1.36 लाख बच्चों में से कुल 26,059 बच्चे कुपोषण से बुरी तरह से प्रभावित पाए गए जिनमें से 3,000 की माएं नाबालिग थीं. नांदरबार जिले में कुपोषण की वजह से सबसे ज्यादा बच्चों की मौत हो गई (1,270). नाशिक में 1,050 बच्चे और पालघर में 810 बच्चे कुपोषण से मर गए.

परंपरा जरूरी या स्वास्थ्य?

राज्य सरकार ने यह भी बताया कि कई मामलों में सरकारी अधिकारी समय रहते हस्तक्षेप करने में सफल हुए, जिसके फलस्वरूप इन तीन सालों में 1,541 बाल विवाह रोके जा सके. लेकिन अदालत ने इतनी बड़ी संख्या में हो रहे बाल विवाह के मामलों पर गहरी चिंता जताई और आंकड़ों को 'दिमाग चकरा देने वाला' बताया.

अदालत ने आदिवासियों को सलाह भी दी कि यहां लोगों के स्वास्थ्य का प्रश्न है और ऐसे में उन्हें अपनी प्रथाओं और परंपराओं को त्याग देना चाहिए. राज्य सरकार ने अदालत को बताया कि वो ऐसे मामलों में बल का प्रयोग नहीं कर सकती है लेकिन बुजुर्ग आदिवासियों को समझा कर उनसे अपील कर सकती हो.

सरकार ने यह भी कहा कि इसमें उसे एनजीओ और सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद की जरूरत होगी. अदालत मामले में आगे सुनवाई 20 जून को करेगी.  (dw.com)

 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news