अंतरराष्ट्रीय
-क्रिस मेसन
लिज़ ट्रस के राजनीतिक करियर की सबसे अहम घड़ी आ गई है. लेबर पार्टी के वर्चस्व वाली एक लोकल अथॉरिटी में विपक्ष में बैठने से लेकर देश के सबसे बड़े पद तक पहुंचना, ट्रस ने एक लंबा सफ़र तय किया है.
वेस्टमिंस्टर के आस-पास महत्वकांक्षाओं की कमी नहीं है. प्रधानमंत्री बनने का सपना कई लोग देखते हैं. लेकिन ट्रस का सपना कल सच होने जा रहा है. मैं पहली बार उनसे 13 साल पहले मिला था, जब मैं बीबीसी रेडियो फ़ाइव का एक रिपोर्टर था.
वो ग्रीनविच काउंसल में थीं और साल 2001 में आम चुनावों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.
साल 2005 के चुनावों में लेबर पार्टी के वर्चस्व वाले इलाक़े में उन्होंने टक्कर तो दी, लेकिन चुनाव नहीं जीत पाईं. इसके बावजूद उनकी पार्टी ने उन्हें साउद वेस्ट नॉरफ़ोक की सुरक्षित सीट से चुनाव मैदान में उतारा.
लेकिन आफ़त तब आई जब वो पार्टी के सांसद मार्क फ़ील्ड के साथ उनके अफ़ेयर की ख़बरें बाहर आईं.
कोरोना वायरस
डेविड कैमरून के पार्टी को मॉडर्न बनाने और पार्टी की छवि को बदलने की कोशिश के बीच इस ख़बर से विवाद हुआ और कार्यकर्ता खुद को ठगा हुई महसूस करने लगे.
लेकिन लिज़ ट्रस को एक बार फिर ख़ुद को साबित करना था. वो पहले भी ऐसा कर चुकी थीं कि वो राजनीति में रहने के लिए फ़िट हैं. विवादों के बावजूद वो फिर कंज़र्वेटिव पार्टी की सांसद बनीं और अब एक दशक तक मंत्री रहने के बाद अब वो प्रधानमंत्री बनने जा रही है.
ग्रीनविच के लंबे समय तक काउंसलर के पद पर रहे एक व्यक्ति ने मुझे याद दिलाया कि काउंसिल मीटिंस के दौरान ट्रस अमूमन चुपचाप रहती थीं, और कमेटी के कामों फंसी जाती थीं.
वो इसके बारे में खुलकर बात भी करती थीं. वो कहती थीं कि काउंसिल प्लानिंग कमेटी की कंज़र्वेटिव होम वेबसाइट उनके "जीवन के कई घंटे लेती है जो उन्हें कभी वापस नहीं मिलेंगे."
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उनके आगे बढ़ना के जज़्बे ने ही उनके समर्थकों और पार्टी कार्यकर्ताओं से जुड़ने में मदद की, जो शायद ऋषि सुनक नहीं कर पाए. वो कभी काउंसलर नहीं रहे, और न ही किसी ऐसी सीट पर उन्हें मुकाबले का सामना करना पड़ा जहां लेबर पार्टी का वर्चस्व है.
शायद उनके अलग अनुभव ही उनके कैंपेन के अलग होने का कारण भी बने. सुनक, ट्रस के मुकाबले कई बार हिचकिचाते दिखे, कई बार असहज दिखे और राजनीति के शोर-शराबे और कभी गंभीर पक्षों में फंसते रहें.
लिज़ के यहां तक पहुंचने की कहानी शानदार है, लेकिन अब सामने कई चुनौतियां हैं. हालात अब अलग होंगे, बहुत अलग. उन्हें उन्हीं चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, जो बोरिस जॉनिसन के सामने थीं.
लाखों लोगों के पास जिस रकम के बिल हैं, वो अदा नहीं कर सकते. यूरोप में जंग छिड़ी है और महामारी के प्रकोप से देश अब भी बाहर नहीं पाया है. सत्तारूढ़ पार्टी पिछले 12 सालों से सत्ता में हैं. इन चुनौतियों से निबटना आसान नहीं होगा.
उम्मीद की जा सकती है कि गुरुवार तक सरकार एनर्जी बिल को लेकर कोई बड़ा एलान करें. लिज़ ट्रस के लिए 'हनीमून पीरियड' का वक़्त बहुत कम है, क्योंकि देश कई सवालों के जवाब चाहता है, जो कि बोरिस जॉनसन की केयर टेकर सरकार नहीं दे पाई.
देश में महंगाई है, यूक्रेन का मुद्दा है, एनर्जी सिक्युरिटी, एनएचएस, ब्रेक्सिट का असर और आम चुनाव भी बहुत दूर नहीं हैं. आम चुनाव जनवरी 2025 में से पहले होंगे. कंज़र्वेटिव पार्टी लेबर पार्टी के पीछे नजर आ रही है.
राजनीति को रीसेट किया जा रहा है, लेकिन प्रतिस्पर्धा और शोरगुल जारी रहेगा, ये अप्रत्याशित बनी रहेगी. कई चीज़ें बदल सकती हैं, कुछ कभी नहीं बदलतीं.
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