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रूस-यूक्रेन युद्ध से पाकिस्तान के माचिस उद्योग में कैसे लौटी जान?
08-Feb-2023 8:57 PM
रूस-यूक्रेन युद्ध से पाकिस्तान के माचिस उद्योग में कैसे लौटी जान?

पाकिस्तान माचिस उद्योगइमेज स्रोत,ISLAM GUL AFRIDI

-इस्लाम गुल आफ़रीदी

ढाई साल की बेरोज़गारी के बाद आठ महीने पहले पाकिस्तान के पेशावर के 40 साल के सोहेल अहमद दोबारा उस माचिस बनाने वाले कारख़ाने में काम के लिए आए जो बंद हो चुका था.

सोहेल का कहना है कि वह पेशावर के हयाताबाद इंडस्ट्रियल इस्टेट में बने माचिस के कारख़ाने में डिब्बों की प्रिंटिंग के क्षेत्र में 20 साल से काम करके सुपरवाइज़र के पद तक पहुंच गए हैं और अब उनको अच्छा वेतन भी मिल रहा है.

उनके अनुसार कई बड़े कारख़ाने बंद होने की वजह से यहां हज़ारों की संख्या में मज़दूर बेरोज़गार हो गए थे जो अब दोबारा काम पर आ गए हैं.

पाकिस्तान में माचिस के बंद उद्योग में दोबारा जान पिछले साल फ़रवरी में रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होने के बाद आनी शुरू हुई थी.

पिछले आठ महीनों से पाकिस्तान से माचिस का निर्यात भी शुरू हो चुका है. अफ़्रीका और यूरोपीय देशों को माचिस भेजने में 70 प्रतिशत हिस्सा रूस और बाक़ी 30 फ़ीसद भारत का है.

माचिस निर्यात की बात करें तो साल 2022 में भारत ने कुल 50 करोड़ डॉलर का निर्यात किया था, लेकिन इस दौरान रूस पर आर्थिक प्रतिबंधों के कारण अब दुनिया की नज़रें दूसरे देशों पर हैं, जिनमें पाकिस्तान भी शामिल है.

फ़ैज़ान अहमद पिछले 10 साल से माचिस बनाने का कारख़ाना चला रहे हैं लेकिन बदहाल आर्थिक स्थिति की वजह से उन्होंने कई यूनिट बंद करके अपना उत्पादन बोहद सीमित कर दिया था.

अब उन्होंने न सिर्फ़ अपनी मशीनरी दोबारा चालू कर दी है बल्कि इंडस्ट्रियल इस्टेट में बंद कुछ यूनिटों को साझेदारी में दोबारा बहाल कर दिया है.

उनका कहना है कि दुनिया के बाज़ार में रूस के 70 प्रतिशत हिस्से में से 40 प्रतिशत पाकिस्तान के हिस्से में आता है और यहां से सिर्फ़ तीली भेजी जाती है.

उन्होंने बताया कि वो मंडी से लकड़ी लाकर उसकी कुटाई और उस पर पॉलिश करके उसे कार्टन में बंद करके बाहर भेजते हैं और वहां पर माचिस को जलाने वाले केमिकल लगाकर उसे तैयार किया जाता है.

फ़ैज़ान अहमद के अनुसार उनकी फैक्ट्री में अब 24 घंटे काम किया जाता है. वो बताते हैं कि पेशावर के हयाताबाद इंडस्ट्रियल इस्टेट से हर महीने 50 बड़े कंटेनर यानी एक हज़ार टन से ज़्यादा माचिस कीनिया, इथियोपिया, सूडान, मिस्र समेत कुछ और यूरोपीय देशों में निर्यात किया जाता है.

पाकिस्तान में माचिस की 20 फ़ैक्ट्रियां हैं जिनमें 15 ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के हयाताबाद और हितार इंडस्ट्रियल इस्टेट जबकि लाहौर में दो और रहीमयार ख़ान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में एक-एक हैं.

आठ साल पहले पाकिस्तान में हर महीने माचिस के पांच लाख कार्टन तैयार किए जाते थे जिनमें से डेढ़ लाख निर्यात किए जाते थे. लेकिन निर्यात ख़त्म होने के बाद कई कारख़ाने बंद किए गए और उत्पादन मासिक डेढ़ लाख टन कार्टन से भी कम हो गया जो सिर्फ़ देश की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए काफ़ी था.

हाजी नेमतुल्लाह पिछले 12 सालों से पेशावर के हयाताबाद इंडस्ट्रियल इस्टेट में माचिस के कारख़ाने में माल तैयार कर के मध्य एशियाई देशों और अफ़ग़ानिस्तान भेजते हैं. लेकिन सरकार की ओर से ध्यान न देने के कारण कई साल से निर्यात रुका हुआ था.

उन्होंने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से उन देशों में भी पिछले कई महीनों से तैयार माचिस की मांग में इज़ाफ़ा हुआ है.

उन्होंने बताया कि बंद कारख़ाने को दोबारा चालू कर दिया गया है और अब 20 में से पांच कारख़ाने जो सिर्फ़ छह घंटे वाली शिफ़्ट में चलते थे, अब वहां 12-12 घंटों की दो शिफ़्ट चलाई जाती है और फिर भी ऑर्डर पूरा नहीं हो पाता.

हालांकि माचिस के कारोबार से जुड़े लोग मौजूदा स्थिति को अस्थायी मान रहे हैं. उनका कहना है कि भविष्य को ध्यान में रखकर सरकार को विदेशी मंडियों तक माचिस पहुंचाने की रणनीति बनाने की ज़रूरत है.

माचिस के लिए लकड़ी कहां से आती है?
वन विभाग, ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के अनुसार माचिस और चेकबोर्ड इंडस्ट्री के लिए सफ़ेदे यानी यूकेलिप्टस की लकड़ी चारसदा और मरदान ज़िले से आती है.

विभाग के आंकड़ों के अनुसार चारसदा से हर साल एक लाख 52 हज़ार टन जबकि मरदान और स्वाबी से एक लाख 47 हज़ार टन यूकेलिप्टस की लकड़ी फ़ैक्ट्रियों को भेजी जाती है.

विभाग के अनुसार यह जंगली लकड़ी नहीं होती बल्कि किसान सफ़ेदे या पॉपुलर को ऐसी ज़मीन पर उगाते हैं जो पानी जमा होने और नमक की मात्रा बढ़ जाने के कारण दूसरी फ़सल की खेती के लायक़ न रही हो.

ज़ैनुल्लाह मरदान में यूकेलिप्टस की बड़ी मंडी में व्यापारी हैं. उनके अनुसार वर्तमान समय में बाज़ार में पॉपुलर की मांग 50 प्रतिशत बढ़ चुकी है और इसकी बुनियादी वजह राज्य में माचिस की बंद फ़ैक्ट्रियों का दोबारा काम शुरू करना है.

उनके अनुसार 50 किलो के हिसाब से रेट में 100 से 120 रुपये की वृद्धि हो चुकी है और वर्तमान समय में कारख़ाने को 50 किलो लकड़ी का 920 रुपये का रेट दिया जाता है.

ज़ैन पहले हर दिन 80 टन लकड़ी कराची भेजते थे जबकि अब 200 टन से भी अधिक भेज रहे हैं. पेशावर के कारख़ाने को रोज़ाना आठ गाड़ियां जाती हैं जबकि पहले दो गाड़ियां जाती थीं.

वह बताते हैं कि काम बढ़ने की वजह से उनके साथ छह की जगह अब 50 मज़दूर काम कर रहे हैं.

माचिस के विदेशी बाज़ार पर भारत का वर्चस्व
फ़ैज़ान अहमद का कहना है कि 10 साल पहले डेढ़ लाख टर्न माचिस विदेश भेजी जाती थी लेकिन सरकार की ओर से केमिकल के आयात पर टैक्स में इज़ाफ़े और विदेशी मंडियों तक माल भेजने में असहयोग के कारण इस प्रतिस्पर्धा से पाकिस्तान पूरी तरह बाहर हो गया.

उन्होंने कहा कि पिछले साल के आंकड़ों के अनुसार भारत ने 50 करोड़ डॉलर की माचिस निर्यात की थी लेकिन पाकिस्तान की माचिस की क्वालिटी भारत से कई गुना बेहतर है.

हाजी अंदाज़ुल्लाह व्यापार करते हैं. उनका कहना है कि पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने दुनियाभर के पाकिस्तान के दूतावासों में कमर्शियल अताशी नियुक्त करवाए थे जिसका बहुत अच्छा परिणाम सामने आना शुरू हो गया था और दूसरे क्षेत्रों की तरह माचिस के भी कुछ ऑर्डर मिले थे.

उन्होंने कहा कि आर्थिक सुदृढ़ता के लिए ज़रूरी है कि इस पर दोबारा काम शुरू किया जाए ताकि हम निर्यात में दूसरे देशों का मुक़ाबला कर सकें.

हाजी नेमतुल्लाह ने बताया कि लकड़ी के अलावा माचिस बनाने के लिए बड़ी मात्रा में चीन से पोटैशियम क्लोरेट और फ़ॉस्फ़ोरस मंगवाया जाता है लेकिन 27 टन के फ़ॉस्फ़ोरस पर पहले 18 लाख जबकि वर्तमान में 48 लाख रुपए तक टैक्स लगता है.

उन्होंने कहा कि केमिकल का कंटेनर बंदरगाह पहुंच चुका है लेकिन एलसी (लेटर ऑफ क्रेडिट) नहीं खोली जा रही और पाकिस्तानी बैंकों के पास डॉलर नहीं, तो माल बंदरगाह पर पड़ा है और हर दिन के हिसाब से चार सौ से पांच सौ डॉलर हर्जाना अदा करना पड़ रहा है.

उन्होंने कहा की बाहरी दुनिया में पाकिस्तान की माचिस का बेहतरीन मार्केट मौजूद है लेकिन इसमें सरकार के सहयोग की ज़रूरत है.

माचिस उद्योग से देश को क्या फायदा हो रहा है?
पाकिस्तान में इस समय गंभीर आर्थिक संकट के कारण कई उत्पादन यूनिट बंद हो रहे हैं लेकिन माचिस इंडस्ट्री वह अकेला उद्योग है जिसमें दोबारा जान आ पाई है और बीते कुछ महीनों में दिन-ब-दिन इसके उत्पादन में वृद्धि हो रही है.

माचिस इंडस्ट्री के दोबारा चल निकलने से 15 से 20 हज़ार मज़दूरों को सीधे दोबारा रोज़गार के अवसर मिले हैं जबकि इसके साथ जुड़े दूसरे क्षेत्रों में भी हज़ारों लोगों को कमाई का मौक़ा मिल रहा है.

लेकिन हाजी नेमतुल्लाह का कहना है कि देश को इस समय डॉलर की सख़्त ज़रूरत है और सिर्फ़ माचिस के निर्यात से देश के बैंकों को डॉलर आ रहे हैं लेकिन सरकार इस मामले में और सहयोग करे ताकि इसमें और वृद्धि हो सके.

मौजूदा समय में अफ़ग़ानिस्तान, ताजिक़िस्तान और उज़्बेकिस्तान के अलावा किसी दूसरे देश को तैयार माचिस निर्यात नहीं की जाती जिसकी बुनियादी वजह तीली के ऊपर जलने वाला केमिकल है. ये केमिकल विदेशों से आयात किया जाता है और यह बहुत महंगे दामों पर पाकिस्तान पहुंचता है.

यूरोप के कुछ देशों के साथ मिस्र भी पाकिस्तान से तीली आयात कर रहा है क्योंकि उन देशों को तैयार माचिस बहुत महंगी पड़ रही है.

इन देशों में तीली आधुनिक मशीनों और ख़ास ढंग से तैयार की जाती है जो यहां पर तैयार की जाने वाली माचिस से कई गुना मुश्किल और लंबी प्रक्रिया होती है.

पाकिस्तान से निर्यात की जाने वाली तीली को उन देशों में और चरणों से गुज़ारा जाता है जिसके बाद यह पूरी तरह तैयार होती है.

पाकिस्तानी माचिस अफ़ग़ानिस्तान और मध्य एशियाई देशों को भेजना मुश्किल क्यों?
पाकिस्तान औद्योगिक उत्पादन के लिए अफ़ग़ानिस्तान और मध्य एशियाई देशों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन दोतरफ़ा व्यापार में आने वाली रुकावटों की वजह से ये बाज़ार भी हाथ से निकल चुके हैं.

हाजी नेमतुल्लाह का कहना है कि पाकिस्तानी माचिस का उन इलाक़ों में बेहतरीन मार्केट है लेकिन सरकारी स्तर पर आसान व्यापारिक नीतियां न होने की वजह से ईरान, भारत और दूसरे देशों ने अपने उत्पादों को नियंत्रण करके पाकिस्तान को एक तरफ़ कर दिया है.

उन्होंने कहा कि कम से कम अफ़ग़ानिस्तान से डॉलर में कारोबार की शर्त को ख़त्म करके स्थानीय मुद्रा में कारोबार की इजाज़त होनी चाहिए जिससे बहुत सी समस्याएं हल हो सकती हैं. (bbc.com/hindi)

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