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ChatGPT: आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की दुनिया बदलने का ख़्वाब देखने वाला शख़्स
09-Feb-2023 9:17 AM
ChatGPT: आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की दुनिया बदलने का ख़्वाब देखने वाला शख़्स

सैम ऑल्टमैन- दुनिया भर में चर्चित चैटजीपीटी के संस्थापक. कहानी 2015 से शुरू होती है, जब सैम ने अपनी कंपनी 'ओपेन-एआई' की स्थापना की और फिर बारी आई चैटजीपीटी जैसे तेज़ तर्रार वर्चुअल रोबोट की.

हमने सोचा क्यों न चैटजीपीटी से ही उसके संस्थापक सैम ऑल्टमैन के बारे में पूछा जाए. सवाल था- कौन हैं सैम ऑल्टमैन?

तो 30 नवंबर को लॉन्च किए गए इस एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) सर्च इंजन का जवाब आया, "सैम ऑल्टमैन एक अमेरिकी उद्यमी और टेक्नोलॉजिस्ट हैं. ये पहले 'लूप्ट' नाम की कंपनी के सीईओ थे और अब 'ओपेन-एआई' के प्रेसीडेंट के तौर पर मशहूर हैं."

इसके अलावा सर्च इंजन ने सैम के बारे में ये भी बताया कि वो तकनीकी समुदाय में खासे प्रभावशाली शख्सियत हैं और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़े मुद्दों पर लेक्चर देते हैं.

चैटजीपीटी की तरफ ऐसी सारी जानकारियां तथ्यों या इनके सरलीकरण पर आधारित होते हैं. सिस्टम अपने बारे में ये खुद लिखता है कि, "किसी किरदार या व्यक्ति लेकर कोई सब्जेक्टिव स्टेटमेंट नहीं दता."

चैटजीपीटी के ऐसे रिस्पॉन्स के बाद हमने दूसरे जरियों से सैम ऑल्टमैन पर जानकारी जुटाने की कोशिश की. क्योंकि उनसे, उनकी खोज और नई तकनीकी पहलों से हमारा वर्तमान तेजी से बदलने वाला है. चैटजीपीटी और इमेज जेनेरेटर DALL-E ऐसी ही कोशिश हैं.

सबसे पहले 'नॉन-आर्टिफ़िशियल' बातें
हमारे हाथ लगा 'न्यूयॉर्क टाइम्स' को दिया सैम ऑल्टमैन का एक इंटरव्यू. इसमें सैम ने कहा है कि, "जब वो आठ साल के थे, तो उन्होंने एप्पल के शुरुआती कंप्यूटर्स में से एक 'मैकिन्टोश' का पुर्जा-पुर्जा खोल दिया था. इस तरह इन्होंने कंप्यूटर प्रोग्रिमिंग में दिलचस्पी लेना शुरू किया."

इसी इंटरव्यू में सैम ने ये भी बताया था कि, "अपना कंप्यूटर होने की वजह से उनकी सेक्सुआलिटी भी प्रभावित हुई. इसकी वजह से किशोर उम्र में अलग-अलग ग्रुप्स में बातचीत करना आसान हो गया."

16 की उम्र में उन्होंने अपने पैरेंट्स को बता दिया कि वो एक 'गे' हैं. इसके बाद उन्होंने अपने स्कूल में भी गे होने की बात सार्वजनिक कर दी.

स्कूल के बाद सैम का दाखिला अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित मशहूर स्टैनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में हुआ. यहां उनका विषय था- वही कंप्यूटर साइंस. लेकिन यहां वो अपनी डिग्री पूरी नहीं कर पाए.

अपने दोस्तों के साथ मिलकर इन्होंने एक ऐसा ऐप बनाने का फ़ैसला किया, जिससे लोग अपनी लोकेशन दूसरों को साझा कर पाएं. 'लूप्ट' (LOOPT) ऐसा ही ऐप है. अपने दोस्तों के साथ सैम का पहला अनूठा आइडिया.

हम बात कर रहे हैं 2005 की. ये व्हॉट्सऐप आने से बरसों पहले की बात है. इसी दौरान फ़ेसबुक दुनिया भर में फैलना शुरू हुआ था.

तब 'लूप्ट' को ज्यादा अहमियत नहीं मिली, लेकिन इसने एक उद्यमी के तौर पर सैम का कैरियर शुरू करने और इसमें बड़े तकनीकी निवेश का दरवाज़ा खोल दिया.

'लूप्ट' सबसे पहले 'वाय कंबीनेटर' (वाईसी) ने सपोर्ट किया था. ये उस दौर में 'स्टार्ट अप्स' में निवेश करने वाली बड़ी कंपनियों में से एक थी, जिसने 'एयरबीएनबी' और 'ड्रॉपबॉक्स' जैसे ऐप्स में निवेश किया था.

सैम ऑल्टमैन ने अपना पहला प्रोजेक्ट 40 मिलियन डॉलर में बेच दिया. इस पैसे का इस्तेमाल सैम ने अपनी दिलचस्पी का दायरा बढ़ाने के साथ दूसरे आइडियाज़ में निवेश के लिए भी किया. ये निवेश ज़्यादातर वाईसी के आडियाज़ में किया, जिसके वो 2014 से 2019 तक चेयरमैन रहे.

इसी दौरान उन्होंने एलन मस्क के साथ मिलकर 'ओपेन-एआई' की स्थापना की. इसी कंपनी के साथ वो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की दुनिया में उतरे, जिसे लेकर उनमें उत्सुकता तो बहुत थी, लेकिन डर भी तमाम थे.

एआई का मानवीय पक्ष
'ओपेन-एआई' एक रिसर्च कंपनी है. कंपनी की वेबसाइट के मुताबिक इसका मिशन ये तय करना है कि आर्टिफ़शियल इंटेलिजेंस को पूरी मानवता के लिए फ़ायदेमंद बनाया जाए, ना कि इससे कोई क्षति हो.'

कंपनी के इस बयान में ही सैम ऑल्टमैन का वो पुराना डर दिखता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि "आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मानवता के खिलाफ एक 'घातक हथियार' भी साबित हो सकता है."

साल 2016 में 'द न्यूयॉर्कर' में छपी एक विस्तृत रिपोर्ट में सैम कहते भी हैं कि भविष्य के लिए दोनों तकनीकों का मिलन जरूरी है.

उन्होंने कहा था, "या तो हम आर्टिफ़शियल इंटेलिजेंस के वश में हो जाएंगे, या फिर ये हमें अपने वश में कर लेगा." सैम ऑल्टमैन से ये आइडिया एलन मस्क ने शेयर किया था. एलन मस्क भी 2018 तक 'ओपेन-एआई' से जुड़े थे.

लेकिन अपनी कंपनी टेस्ला के साथ हितों के टकराव का हवाला देते हुए अलग हो गए. हालांकि मस्क 'ओपेन-एआई' और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर नियंत्रण प्राप्त करने वाले दूसरे प्रोजेक्ट्स में निवश जारी रखे हुए हैं.

इनमें से एक है 'न्यूरललिंक', जो हमारे ब्रेन को कंप्यूटर से जोड़ने की कोशिश करता है. ट्विटर के नए मालिक एलन मस्क मानते हैं कि इंसान इसी तरीके से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के साथ तालमेल बनाए रख सकता है.

मस्क कहते हैं, "हमारे बोलने की आवाज कंप्यूटर्स तक बहुत धीमी पहुंचेगी, जैसे व्हेल की आवाज. इससे कंप्यूटर्स को सूचनाएं टेराबाइट्स में प्रोसेस करने में मुश्किल होगी."

भविष्य को लेकर इसी जोखिम भरे दृष्टिकोण ने मस्क और सैम ऑल्टमैन को आर्टिफ़शियिल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में काम करने को प्रेरित किया. चैटजीपीटी और DALL-E के लिए रणनीति तैयार करने के पीछे भी यही दृष्टिकोण काम कर रहा है.

भविष्य को लेकर इसी जोखिम भरे दृष्टिकोण ने मस्क और सैम ऑल्टमैन को आर्टिफ़शियिल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में काम करने को प्रेरित किया. चैटजीपीटी और DALL-E के लिए रणनीति तैयार करने के पीछे भी यही दृष्टिकोण काम कर रहा है.

टेक्नोलॉजी वर्ल्ड और सिलिकॉन वैली की हलचलों पर नजर रखने वाले डेली न्यूज़ लेटर से बातचीत में सैम ऑल्टमैन ने कुछ हफ्ते पहले कहा भी था, "एक चीज़ जिसे लेकर पूरी तरह दृढ़ विश्वास है, वो ये, कि इस सिस्टम को लोगों से जोड़ने का सबसे जिम्मेदार तरीका है- इसे आहिस्ता-आहिस्ता सामने ले आना."

सैम आगे कहते हैं, "इस तरीके से हम लोगों, संस्थाओं और नीति नियंताओं से आसानी से परिचित करा सकते हैं. ताकि वो इस तकनीक को महसूस कर सकें, ये जान सकें, कि ये सिस्टम क्या कर सकता है और क्या नहीं. अचानक से किसी सुपर पावरफुल सिस्टम को ला देना कतई ठीक नहीं है."

यूट्यूब पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बारे में सूचनाएं और इसका विश्लेषण दिखाने वाले चैनल 'डॉट सीएसवी' के मुताबिक़ इस सिस्टम को लेकर यही रणनीति निर्याणक साबित हुई है. पिछले 20 साल से बड़ी-बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों ने इसी रणनीति के तहत काम किया.

सैम ऑल्टमैन के बयानों का विश्लेषण करते हुए ये चैनल कहता है, "आर्टिफिशिल इंटेलिजेंस को लीड करने वालों की ये प्रवृति सिलिकॉन वैली की तरह होती है. इनका मोटो होता है- तेजी से आगे बढ़ो और चीज़ें बदलो. ये फूर्ति से काम करने की वो फ़िलॉसफी है, जिसके तहत प्रोडक्ट ये सोचे समझे बिना लॉन्च कर दिए जाते हैं, कि इनसे जटिलताएं क्या पैदा होंगी."

सैम की कोशिशों की व्याख्या करते हुए चैनल ये जोर देकर कहता है, "सैम ऑल्टमैन के केस में ऐसा नहीं. यहां सवाल तेजी का नहीं है, बल्कि प्रोडक्ट्स को अधूरी हालत में सामने लाना है. इससे लोग धीरे-धीरे प्रोडक्ट के अनुकूल बनते जाते हैं."

चैटजीपीटी और DALL-E के मामले में यही हो रहा है. एकेडमिक्स और क्रिएटिव फ़ील्ड से जुड़े तमाम लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं.

दिसंबर में एक ट्विटर पोस्ट में सैम ऑल्टमैन ने भी माना था कि "चैटजीपीटी अविश्वसनीय रूप से सीमित है. लेकिन महानता की झूठी छवि बनाने के मामले में ये काफी अच्छा है. अभी किसी भी महत्वपूर्ण बात पर इसकी सूचनाओं पर भरोसा करना गलत होगा."

उस ट्विटर पोस्ट में ये सैम ऑल्टमैन ने ये कहते हुए अपनी बात खत्म की थी कि "ये अभी आगे होने वाली प्रगति की एक झलक भर है. इसकी दृढ़ता और सच्चाई स्थापित करने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है."

चैटजीपीटी को लेकर ऐसी बातें सैम ऑल्टमैन ने उस ट्विटर पोस्ट पर आए सवालों के जवाब में भी लिखी थीं. पोस्ट पर तमाम सवाल चैट को लेकर पूर्वाग्रहों से जुड़े हुए थे.

सैम ने ये माना कि, "चैटजीपीटी में पूर्वाग्रहों के मामले में बहुत सारी कमियां हैं. हम इसे ठीक करने में लगे हुए हैं. हम इसकी डिफॉल्ट सेंटिंग ठीक करने और निष्पक्षता निर्धारित करने की दिशा में काम कर रहे हैं, ताकि ये इसे इस्तेमाल करने वाले की प्राथमिकता के हिसाब से नतीजे दे पाए."

सैम ऑल्टमैन ने ये भी कहा कि ये काम जितना आसान दिखता है, उतना है नहीं. इसे हासिल करने में अभी और समय लगेगा.

एआई के भविष्य में क्या होगा?

सैम ऑल्टमैन इस अप्रैल में 38 साल के हो जाएंगे. हाल ही में इन्हें अपना तीन साल पुराना मैसेज मिला, जिसमें उन्होंने 2025 तक कुछ अहम तकनीकी उपलब्धियां हासिल करने की भविष्यवाणी की थी.

इन उपबल्धियों में न्यूक्लियर फ्यूजन को प्रोटोटाइप स्केल पर कारगर बनाना, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को इंडस्ट्री में तमाम लोगों के लिए मुहैया कराना और इंसानों को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली कम से कम एक गंभीर बीमारी के इलाज के लिए नई जीन एडिटिंग की तकनीक विकसित करना.

उस ट्वीट में सैम ने न्यूक्लियर फ्यूजन को लेकर गंभीर चिंता जताई थी.

ऑल्टमैन ने बरसों तक 'हीलियन एनर्जी' नाम की कंपनी में निवेश किया, ताकि सस्ती बिजली बनाने के लिए शोध और संसाधनों को बढ़ाया जा सके. ये कंपनी पानी से ईंधन प्राप्त करके स्वच्छ और कम लागत पर बिजली बनाने की दिशा में काम कर रही है.

सैम की तीन भविष्यवाणियों में से एक के भी सच होने में अभी दो साल का वक्त बाकी है. लेकिन इनमें से एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, अभी से ही ठोस आकार लेता दिख रहा है. ये मुमकिन हो रहा है सैम की कंपनी ओपेन-एआई की वजह से.

ये कंपनी सैम ऑल्टमैन ने उन चीजों को हासिल करने के लिए बनाई थी, जिन्हें लेकर उन्हें लगता है कि आने वाला समय इन्हीं का होगा. इसके लिए उन्होंने बरसों तक तकनीकी और वैज्ञानिक प्रगति के लिए बरसों तक निवेश जारी रखा.

वो जिस भविष्य की कल्पना करते हैं, उसके बारे में 'द न्यूयॉर्कर' के एक आर्टिकल में सैम ने लिखा भी कि, "इसमें भी हमारे मूल्य वही होंगे, जो आज हैं."

अमेरिका के संदर्भ में उन्होंने कहा भी था, "मैं इस देश को बेहद प्यार करता हूं. समय कोई भी हो, लोकतंत्र उसी अर्थव्यस्था में सुरक्षित रहेगा, जिसमें विकास हो."

इस बात को लेकर सैम पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं. वो कहते हैं, "आर्थिक विकास से लाभ के बगैर लोकतंत्र में होने वाला हर प्रयोग नाकाम होगा."

क्या वो संभव कर पाएंगे?
अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही सैम ऑल्टमैन ने अपने प्रोजेक्ट्स में निवेश के लिए बड़े बड़े इन्वेस्टर्स को आकर्षित किया. खासतौर पर 'वाई कंबीनेटर' के दौर में, जिसमें खुद उन्होंने भी बड़ा निवेश किया.

हालांकि उनकी कुल संपत्ति के बारे में किसी को ठीक-ठीक पता नहीं. लेकिन हाल में ही हुई कुछ घोषणाओं से उनके अरबपतियों की लिस्ट की तरफ बढ़ने के संकेत साफ हैं.

'ओपेन-एआई' जो एक नॉन प्रॉफिट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया गया था, वो आज सीमित लाभ के साथ एक हाइब्रिड कंपनी बन चुकी है.

कुछ हफ्ते पहले 'द वॉल स्ट्रीट जनरल' ने एक आर्टिकल में इस बात का जिक्र किया था कि 'ओपेन-आई' बहुत कम लाभ अर्जित करने के बावजूद 2900 मिलियन डॉलर का स्टार्ट अप बनने के करीब पहुंच चुका है.

इसके बाद सैम की कंपनी ने माइक्रोसॉफ्ट के साथ बहुत बड़ा करार किया. अनिश्चित समय और अरबों डॉलर के इस समझौते के तहत पर्सनल कंप्यूटिंग, इंटरनेट, स्मार्ट डिवाइसेज और क्लाउड के क्षेत्र में बड़े काम आने वाले दिनों में देखने को मिलेंगे.

इसी सप्ताह अमेरिका में चैटजीपीडी का सब्सक्रिप्शन वर्जन लॉन्च हुआ है. इसे प्रयोग के तौर पर सिर्फ अमेरिका में शुरू किया गया है. इसकी एक महीने की सदस्यता के लिए यूजर को 20 डॉलर देने होते हैं.

इन बदलावों से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की विश्वसनीयता और इसे सुरक्षित बरकरार रखने की प्रतिबद्धता पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

लेकिन सवाल है, कि क्या ये हो पाएगा. ये ऐसी चीज है जो आने वाले दिनों में हम चैटजीपीटी से ही पूछ सकते हैं. (bbc.com/hindi)

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