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कनाडा में नशीली दवाओं के इस्तेमाल को क्यों किया गया वैध
10-Feb-2023 4:34 PM
कनाडा में नशीली दवाओं के इस्तेमाल को क्यों किया गया वैध

कनाडा के राज्य ब्रिटिश कोलंबिया में नशीली दवाओं के इस्तेमाल को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है. इसका मकसद है कि ओवरडोज से होने वाली मौतों की संख्या कम की जाए और इसे लेने वालों की सामाजिक प्रतिष्ठा का नुकसान न हो.

  डॉयचे वैले पर इनेस आइजेले की रिपोर्ट-

नशीली दवाओं से जुड़ी नीति विशेषज्ञों और राजनेताओं के बीच गंभीर बहस का विषय बनी हुई है. दोनों पक्षों के बीच इस बात पर बहस हो रही है कि सॉफ्ट और हार्ड ड्रग्स को लेकर देश की नीति कैसी होनी चाहिए और इससे जुड़े लक्ष्य किस तरह हासिल किए जा सकते हैं? कई देशों में नशीली दवाओं के इस्तेमाल पर रोक है और नियम तोड़ने वालों को सजा देने का प्रावधान है. वहीं कुछ देशों ने उदार दृष्टिकोण अपनाना शुरू कर दिया है.

कनाडा ने 2018 में भांग की बिक्री और इस्तेमाल को वैध बना दिया. इसका उद्देश्य ब्लैक मार्केट पर निर्भरता और नशीली दवाओं से जुड़े अपराध को कम करना था. अब देश के पश्चिमी राज्य ब्रिटिश कोलंबिया ने महत्वाकांक्षी पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया है जो कम से कम अगले तीन वर्षों तक जारी रहेगा. इसके तहत, 31 जनवरी से 2.5 ग्राम तक हार्ड ड्रग्स रखने वाले लोगों को अपराधी नहीं माना जाएगा. 2.5 ग्राम से कम कोकीन, मेथामफेटामाइन, एमडीएमए, हेरोइन, मॉर्फिन, फेंटेनाइल रखने वाले वयस्कों को न तो गिरफ्तार किया जाएगा और न ही उन पर मुकदमा चलाया जाएगा. साथ ही, उनके ड्रग्स को जब्त भी नहीं किया जाएगा.

कनाडा के मानसिक स्वास्थ्य और व्यसन मामलों की मंत्री कैरोलिन बेनेट ने कहा कि उन्होंने इस अनुरोध से जुड़े सभी तरह के प्रभावों की समीक्षा की. सार्वजनिक स्वास्थ्य और सार्वजनिक सुरक्षा, दोनों स्तर पर इस अनुरोध के असर पर सावधानी से विचार किया.

उन्होंने कहा, "व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए कम मात्रा में अवैध नशीली दवाओं को ले जाने वाले लोगों के लिए आपराधिक दंड खत्म करने से उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा का नुकसान नहीं होगा. साथ ही, ब्रिटिश कोलंबिया में ओवरडोज से होने वाली मौतों को कम करने में मदद मिलेगी.”

सरकार को उम्मीद है कि इस कदम से नशीली दवाओं से होने वाली मौतों की संख्या में कमी आएगी. साथ ही, नशीली दवाओं के इस्तेमाल के कारण लोगों की सामाजिक प्रतिष्ठा का जो नुकसान होता था और समाज में उन्हें कलंक के तौर पर देखा जाता था उससे छुटकारा मिलेगा. जरूरत के वक्त नशीली दवाओं का इस्तेमाल करने वाले लोग मदद भी मांग सकेंगे.

ओपिओइड के इस्तेमाल से होने वाली मौतें बड़ी समस्या
संयुक्त राज्य अमेरिका में नशीले पदार्थों की लत और इससे होने वाली मौतें भी एक बड़ी समस्या हैं. पिट्सबर्ग में कार्नेगी मेलन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और नशीली दवा की नीति के विशेषज्ञ योनाथन कौलकिंस ने कहा कि इसके दो मूल कारण हैं. उन्होंने कहा, "पहला बहुत ही उदार है, इलाज के तौर पर ओपिओइड के इस्तेमाल की सलाह देना. इससे बड़ी संख्या में लोगों को ओपिओइड के इस्तेमाल की लत लगी. अमेरिका में ऐसे लोगों की संख्या करीब 50 लाख है. वहीं, कनाडा में भी यह संख्या लगभग इतनी ही है.”

कानूनी तौर पर वैध ओपिओइड के इस्तेमाल से पड़ने वाले प्रभाव को दवा कंपनियों ने वर्षों तक छिपाया. इसका नतीजा यह हुआ कि इसे इस्तेमाल करने वाले मरीजों को आखिरकार हेरोइन या यहां तक कि फेंटेनाइल जैसी नशीली दवाओं की लत लग गई. अनुमान है कि इसके बाद से कनाडा में ओवरडोज से मरने वाले लोगों की संख्या काफी बढ़ गई है.

आखिर इस महामारी से निपटने का तरीका क्या है?
कौलकिंस ने कहा कि यह बात चौंकाने वाली है कि दोनों देशों में एक तरह की समस्या और विनाशकारी परिणाम के बावजूद कनाडा और अमेरिका ने अलग-अलग नीतियां लागू की हैं. भयानक सच्चाई यह है कि भले ही हम सब कुछ सही कर दें, यह समस्या खत्म नहीं होने वाली है.”

यही कारण है कि कनाडा की सरकार वर्षों से यह कहती रही है कि वह "नशीली दवाओं के ओवरडोज से होने वाली मौतों को कम करने के लिए व्यापक सार्वजनिक स्वास्थ्य दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रतिबद्ध है, ताकि नुकसान को कम किया जा सके, लोगों की जिंदगी बचायी जा सके और जरूरत के वक्त उनकी मदद की जा सके.” इसमें नशीली दवाओं के परीक्षण तक पहुंच और नशीली दवाओं के लत से जूझ रहे लोगों को चिकित्सकों की निगरानी में इसके इस्तेमाल की छूट देना शामिल है.

पुर्तगाल सहित कई अन्य देशों में भी कम मात्रा में नशीली दवाओं  के इस्तेमाल को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने का प्रयोग किया गया है. वहीं, अमेरिका में अब तक सिर्फ ओरेगन राज्य में यह प्रयोग किया गया है. हालांकि, कौलकिंस का मानना है कि ऐसे उपायों से काफी ज्यादा अच्छे नतीजे नहीं मिले हैं.

कनाडा ने इस प्रयोग के साथ-साथ अन्य कदम भी उठाएं हैं. देश की ‘सुरक्षित आपूर्ति' नीति के तहत, सरकार नशीली दवाओं का इस्तेमाल करने वाले लोगों को खुद दवा की आपूर्ति करती है, ताकि वे ब्लैक मार्केट पर निर्भर न रहें. यह कदम लोगों को ओवरडोज लेने या खतरनाक दवाएं लेने से रोकता है.

कामयाब नहीं हुआ ‘वॉर ऑन ड्रग्स'
सच्चाई यह है कि ‘वॉर ऑन ड्रग्स' पूरी तरह असफल रहा है. वॉर ऑन ड्रग का मतलब है कि कठोर प्रतिबंधों और सजा का प्रावधान करके लोगों को नशीली दवाओं का सेवन करने से रोकना.

द ग्लोबल कमीशन ऑन ड्रग पॉलिसी एक स्वतंत्र आयोग है जिसमें राजनेता, व्यवसायी और मानवाधिकार विशेषज्ञ शामिल हैं. आयोग ने 2011 में इस मामले पर एक रिपोर्ट जारी की थी.

रिपोर्ट में कहा गया है, "नीति निर्माताओं का मानना था कि नशीली दवाओं के उत्पादन, वितरण और उपयोग में शामिल लोगों के खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई से नशीली दवाओं, जैसे कि हेरोइन, कोकीन और भांग के बाजार हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे. दुनिया नशीली दवाओं से मुक्त हो जाएगी. जबकि, हकीकत यह है कि पूरी दुनिया में नशीली दवाओं के अवैध बाजार बढ़े हैं. यह बड़े पैमाने पर संगठित अपराध बन चुका है.”

नशीली दवाओं के इस्तेमाल को पूरी तरह वैध बनाने को लेकर भी कई लोगों को आपत्ति है. वजह यह है कि नशीले पदार्थों तक आसान पहुंच से ओपिओइड संकट काफी हद तक शुरू हो गया था.

कई देशों में शराब और निकोटीन वाले पदार्थ कानूनी तौर पर वैध हैं. इसकी वजह से लोगों को इनकी लत लग रही है, क्योंकि ये आसानी से उपलब्ध हैं. इससे यह बात कुछ हद तक साबित होती है कि आसानी से उपलब्ध होने की वजह से भी कई लोगों को नशीले पदार्थों की लत लग जाती है.

आखिर उपाय क्या है?
विशेषज्ञों का मानना है कि पूरी तरह से वैध बनाने और पूरी तरह पाबंदी लगाने के बीच का रास्ता अपनाया जाना चाहिए. उदाहरण के लिए, सुरक्षित आपूर्ति की रणनीति के तहत कुछ नशीली दवाओं की सीमित मात्रा के इस्तेमाल को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने पर नुकसान को कम किया जा सकता है.

अधिकांश समीक्षक इस बात पर सहमत हैं कि दुनिया में हमेशा से नशीली दवाओं का इस्तेमाल होता रहा है और इस बात की भी पूरी संभावना है कि यह आगे भी जारी रहेगा. कनाडा की कोशिशों से अवैध नशीली दवाओं के उत्पादन और व्यापार पर काफी ज्यादा असर होने की संभावना नहीं है.

नशीली दवाओं तक पहुंच को आसान बनाने की कोशिशों को देखते हुए, कौलकिंस को संदेह है कि इनके इस्तेमाल में कमी आएगी. हालांकि, उन्हें उम्मीद है कि इस तरह के प्रगतिशील उपायों से नशीली दवाओं से होने वाले नुकसान को कम करने में मदद मिलेगी. साथ ही, समाज और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर बेहतर प्रभाव पड़ेगा. (dw.com)
 

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