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निर्यात पर पाबंदी से इंडोनेशिया के घरेलू बाजार में तेजी
11-Feb-2023 1:34 PM
निर्यात पर पाबंदी से इंडोनेशिया के घरेलू बाजार में तेजी

अगर कोई इंडोनेशिया की विशाल खनिज संपदा का लाभ उठाना चाहता है तो उसे अपना मुनाफा, उसके साथ बांटना होगा. इस नीति के कारण दुनिया भर के निवेशक इंडोनेशिया में अपना व्यापार बढ़ा रहे हैं. लेकिन यूरोप, एक बार फिर पीछे रह गया है.

   डॉयचे वैले पर इंसा व्रेडे की रिपोर्ट-

चीन और रूस पर अपनी निर्भरता कम करते हुए जर्मनी की नयी ऊर्जा रणनीति, खासकर कच्चे माल की अहम आपूर्ति को देखते हुए, अपनी सप्लाई चेन में विविधता लाने की है. लेकिन कीमतों में बढ़ोत्तरी और बाजार में पैदा हो रहे अवरोधों के दौर में, संसाधन-संपन्न कई देश अपनी संपदा को लेकर पहले जैसी अकड़ दिखाने से परहेज करने लगे हैं. बल्कि अपने पक्ष में झुक रहे वैश्विक नजरिये से वे श्रेष्ठतम लाभ उगाहने की कोशिश कर रहे हैं.

पश्चिम के बहुत से विकसित देशों की तरह, जर्मनी विकासशील देशों से सस्ता कच्चा माल आयात कर उसे आला दर्जे के तैयार उत्पादों में तब्दील कर देता था. दुनिया के बाजारों में वे उत्पाद कई गुना ऊंची कीमतों में बेचे जाते थे. चीन कई साल पहले विश्व व्यापार के इस दोषपूर्ण पैटर्न से सचेत हो चुका था. सस्ती वैश्विक वर्कशॉप के रूप में अपनी छवि को उसने धीरे धीरे बदलना शुरू किया और अब शानदार उत्पादों के ठिकाने के रूप में पहचाना जाने लगा है. एशिया में ही दूसरा देश इंडोनेशिया अब चीन के नक्शेकदम पर चल रहा है. वो उत्पादन का महाअभियान चला कर 20 साल की अंतहीन वृद्धि करना चाहता है.

इंडोनेशिया में जर्मन चैंबर ऑफ कॉमर्स के प्रमुख यान रोएनेफेल्ड ने डीडब्ल्यू को बताया कि इंडोनेशियाई निर्यात में "वस्तुओं का वर्चस्व " हुआ करता था. इस कारण से भी वो पूरी तरह से उभरती अर्थव्यवस्था नहीं बन पाया. इंडोनेशियाई राष्ट्रपति जोको विडोडो अब अपने देश की आर्थिक किस्मत को बदलना चाहते हैं. वस्तुओं के सप्लायर देश को उत्पादन का प्रमुख ठिकाना बनाने पर उनका जोर है.  इंडोनेशिया को 2045 तक एक मुकम्मल औद्योगिक देश बनाने का, उनका लक्ष्य है.

उदारीकरण के बीच प्रतिबंध
दक्षिण पूर्व एशियाई देश इंडोनेशिया कोयला, टिन, निकेल, बॉक्साइट और तांबे के विशाल भंडारों से मालामाल है. वह थर्मल कोयले, पाम ऑयल और रिफाइंड टिन का दुनिया में सबसे बड़ा निर्यातक है. कुछ खनिजों को बाहर भेजने पर रोक लगाकर, विडोडो ने 2014 में इंडोनेशिया की निर्यात नीति को बदलना शुरू कर दिया था. विदेश व्यापार प्रोत्साहन एजेंसी, जर्मनी ट्रेड एंड इन्वेस्ट (जीटीएआई) से जुड़े फ्रांक मालेरियुस ने डीडब्ल्यू को बताया कि प्रतिबंध पर अमल हमेशा से "ढीलाढाला" ही रहा, लेकिन सरकार अब निर्यात के नियमों को सख्त बना रही है.

जैसे कि 2020 से लागू नियमों के मुताबिक, इंडोनेशियाई निकेल के विदेशी खरीदारों को घरेलू स्मेल्टरों यानी धातु गलाने की मशीनों में निवेश करना होगा और कच्चे माल की प्रोसेसिंग स्थानीय स्तर पर ही करनी होगी. इंडोनेशिया के पास दुनिया में सबसे ज्यादा निकेल भंडार है. इस्पात उत्पादन और इलेक्ट्रिक वाहन की बैटरियां बनाने के लिए दुनिया भर में निकेल की भारी मांग है.

इंडोनेशिया में उत्पादन की धूम
नये निवेश को बढ़ावा देने के लिए इंडोनेशिया ने देश के निवेश और श्रम कानूनों को लचीला बनाया है. इसके तहत अर्थव्यवस्था के बड़े क्षेत्रों के दरवाजे विदेशी स्वामित्व के लिए खोल दिए गए हैं. फ्रांक मालेरियुस कहते हैं कि विडोडो की नीति "सरकार की जो उम्मीद थी, उस पर खरी उतरी." उम्मीद थी कि ज्यादा से ज्यादा विदेशी कंपनियां इंडोनेशिया में निवेश के लिए आएंगी, वही हुआ.

जर्मन सरकार के निवेश समन्वयन बोर्ड (बीकेपीएम) से हासिल डाटा के मुताबिक अकेले 2022 के पहले छह महीनों में कुल 20.15 अरब यूरो का विदेशी प्रत्यक्ष निवेश इंडोनेशिया में आ चुका था. 2021 की उसी अवधि के मुकाबले ये 40 फीसदी ज्यादा निवेश था. मालेरियुस कहते हैं कि निवेश का ये बूम मुख्यतः चीनी इस्पात निर्माताओं की वजह से आया था. चीनी कंपनियां "स्मेल्टर और इस्पात मिलें" बनाती रहीं और उन्होंने इंडोनेशिया को इस्पात का निर्यातक बना दिया.

करीब पांच साल पहले, इस्पात के विश्व बाजार में इंडोनेशिया की कोई जगह नहीं थी. मालेरियुस कहते हैं कि अब देश का इस्पात निर्यात करीब 20 अरब डॉलर का है और इंडोनेशिया दुनिया के सबसे बड़े इस्पात निर्यातक देशों में शामिल हो गया है.

इंडोनेशिया का दम और चीन का साथ
जर्मन कार निर्माता कंपनी फोल्क्सवागेन और उसकी अमेरिकी प्रतिद्वंद्वी फोर्ड और टेस्ला जैसी बहुत सारी विदेशी कंपनियां इंडोनेशिया में उत्पादन में आई तेजी का हिस्सा बनने के बारे में विचार कर रही हैं. देश की निकेल संपदा पर उनका खास ध्यान होगा. मालेरियुस कहते हैं, "लेकिन उनके लिए ऐसी सप्लाई चेन खोज पाना मुश्किल होगा जिसमें चीन किसी न किसी रूप में पहले से शामिल न हो." वे ये भी कहते हैं कि चीनी कंपनियों के साथ भागीदारी, विदेशी निवेशकों के लिए इकलौता रास्ता हो सकता है.

इंडोनेशिया के आवश्यक कच्चे माल पर बढ़ती निर्भरता के बावजूद, यूरोपीय संघ ने देश के निकेल निर्यात पर प्रतिबंध के खिलाफ विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में शिकायत लगाई थी. पिछले साल नवंबर के फैसले में उसकी शिकायत सही भी पाई गई. लेकिन विडोडो डब्ल्यूटीओ के फैसले को दरकिनार कर चुके हैं.घाव पर नमक छिड़कते हुए एक महीने बाद ही, दिसंबर में जी20 शिखर बैठक के दौरान बाली में इंडोनेशियाई राष्ट्रपति विडोडो ने ये ऐलान कर दिया कि ओपेक तेल कार्टेल की तरह, वो दूसरे देशों के साथ बैटरी निर्माण में काम आने वाली निकेल जैसे कच्चे माल का कार्टेल बनाने की योजना बना रहे हैं.

इंडोनेशिया से धातुओं की सप्लाई को निर्बाध बनाए रखने के लिए इस बीच जर्मनी की रासायनिक कंपनी बीएएसएफ ने जनवरी में फ्रांस की खनन कंपनी इरामेट के साथ साझेदारी की है. दोनों मिलकर इंडोनेशिया में निकेल-कोबाल्ट प्लांट बना रही हैं. 2.4 अरब यूरो का ये सौदा पूरा होने वाला है. नया प्लांट 2026 से काम शुरू कर देगा.

सिर्फ निर्यात के भरोसे नहीं इंडोनेशिया
लेकिन विडोडो सिर्फ निकेल के निर्यात के सहारे नहीं बैठे हैं. तांबा, टिन और बॉक्साइट जैसी धातुएं भी उनके ध्यान में हैं. इस साल जून से गैर-प्रोसेस्ड बॉक्साइट के निर्यात पर बैन लग चुका है. ये धातु कार और विमानन उद्योग के लिए अल्युमिनियम बनाने के काम आती है. इंडोनेशिया पूरी दुनिया में बॉक्साइट के सबसे बड़े निर्यातक देशों में एक है. उसने पाम ऑयल का निर्यात भी रोक दिया है. विश्व बाजार में पाम ऑयल की 60 फीसदी की भागीदारी इंडोनेशिया की है.

विडोडो के दूसरे ऑनशोर यानी घर पर ही तैयार प्रोजेक्टों में दुर्लभ खनिज का उद्योग भी शामिल है. इसके जरिए देश में स्वच्छ प्रौद्योगिकी वाले उद्योगों की मांग पूरी की जाएगी. हाल में सरकारी समाचार एजेंसी अंतारा न्यूज ने बताया कि देश में कच्चे माल के भंडारों की निशानदेही की जा रही है और उनके उपयोग को लेकर एक कंसेप्ट तैयार किया जा रहा है.

जर्मन उद्योग के लिए अवसर की खिड़की
चैंबर ऑफ कॉमर्स के प्रतिनिधि यान रोएनेफेल्ड कहते हैं, "भले ही इंडोनेशिया बहुत दूर है, लेकिन जर्मन कंपनियों के लिए वहां कई क्षेत्रों में संभावना है." देश का विशाल भौगोलिक आकार और करीब 30 करोड़ की आबादी, जिसमें से 10 करोड़ मध्यवर्ग है, हर क्षेत्र में संभावना मुहैया कराएगी. अभी तक चीनी, जापानी और दक्षिण कोरियाई कंपनियां, इंडोनेशिया में अपना काम शुरू कर चुकी हैं. उधर जर्मन कंपनियां निवेश को लेकर हां-ना के पसोपेश से ही जूझ रही हैं. रोएनेफेल्ड फिर भी ये मानते हैं कि इंडोनेशिया भले ही "आसान बाजार नहीं" है, उसके बावजूद "यूरोप से और निवेश निश्चित ही आएगा. " सामान्य तौर पर, जोखिम और लाभ के बीच के संबंधों की रोशनी में ही उद्यम जगत के फैसले तय होते हैं. कई सेक्टरों में महज हल्की प्रतिस्पर्धा की वजह से इंडोनेशिया, अपेक्षाकृत बड़े मुनाफे का अवसर मुहैया कराता है. कुछ क्षेत्रों में 90 फीसदी उत्पाद निर्यात किए जाते हैं. (dw.com)

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