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तुर्की में करिश्मा: कैसे बचाए गए 90 घंटे बाद मलबे के नीचे से नन्हा बच्चा और माँ
13-Feb-2023 9:10 PM
तुर्की में करिश्मा: कैसे बचाए गए 90 घंटे बाद मलबे के नीचे से नन्हा बच्चा और माँ

-एलिस कडी

तुर्की और सीरिया में आए भयंकर और विनाशकारी भूकंप को एक सप्ताह हो चुका है. इन भूकंपों में हज़ारों लोगों की जान जा चुकी है. लेकिन चौतरफ़ा मायूसी और दर्द के बीच कुछ करिश्में लोगों में आस बंधा रहे हैं.

जब नेकला चामुज़ ने 27 जनवरी को अपने दूसरे बेटे को जन्म दिया, उसने उसे नाम दिया - यागिज़. यागिज़ का अर्थ है - बहादुर.

दस दिन बाद सुबह 04:17 बजे नेकला, तुर्की के दक्षिण प्रांत हटाय में, अपने बेटे को दूध पिलाने के लिए उठीं. पल भर बाद वो लोग एक मलबे के ढेर के नीचे दब चुके थे.

नेकला और उनका परिवार समनदाग शहर में एक पांच-मंज़िला इमारत की दूसरी मंज़िल पर रहते थे.

नेकला कहती हैं ये एक अच्छी बिल्डिंग थी और वो लोग वहां सुरक्षित महसूस करते थे.

उसे क्या ख़बर कि उस सुबह एक भूकंप सारे इलाके को झकझोर कर रख देगा. इलाक़े के हर गली-कूचे में धराशायी इमारतें हैं. हर तरफ़ तबाही का आलम है.

नेकला कहती हैं, "जब भूकंप शुरू हुआ तो मैंने अपने पति की ओर जाना चाहा तो वे दूसरे कमरे में थे और वो मेरे कमरे की ओर आने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन जब वो मेरे दूसरे बेटे के साथ मेरे कमरे की ओर आ रहे थे, उनपर कपड़ों से भरी एक अलमारी गिर गई."

"जैसे-जैसे भूकंप तेज होता गया, दीवारें गिरनी शुरू हो गईं. कमरे बेतहाशा हिलने लगे. इमारत झूले की तरह आगे-पीछे हो रही थी. मुझे तो ख़बर ही नहीं कि मैं कब एक मंज़िल नीचे पहुँच चुकी थी. मैंने अपने पति और बेटे को आवाज़ें लगाईं लेकिन कोई जवाब नहीं आया,"

33 साल की नेकला अपने नन्हें बच्चे को छाती से लगाकर मलबे में बैठी रहीं. मां-बेटे के बगल में एक अलमारी गिर गई थी जिसने गिर रहे मलबे से उनकी रक्षा की.

ये दोनों क़रीब चार दिन तक इसी तरह मलबे में दबे रहे.

मलबे के नीचे से नेकला को घुप अंधेरे के अलावा कुछ नहीं दिख रहा था, लेकिन वो हर पल यही अंदाज़ा लगाने में लगी रहीं कि बाहर क्या हो रहा है.

उन्हें ये अहसास भी नहीं था कि उनका बेटा याग़िज़ जीवित भी है कि नहीं.

धूल की वजह से शुरुआत में उन्हें सांस लेने में भी दिक्कत थी लेकिन धीरे-धीरे ग़ुबार बैठ गया. मलबे में फंसे होने के कारण उन्हें ठंड भी कम लग रही थी.

नेकला को ऐसा लग रहा था कि वे बच्चों के खिलौनों के ऊपर पड़ी हुई हैं लेकिन उनके लिए ये चेक करना नामुमकिन था.

वे न तो इंच भर हिल पा रहीं थीं और न ही ख़ुद के लिए आरामदायक जगह बना पा रहीं थीं.

वो अलमारी जो उनकी ढाल बनी हुई थी और अपने बेटे के छाती पर होने के नर्म अहसास के अलावा नेकला को अपने चारों और सिर्फ़ कंक्रीट और मलबा दिख रहा था.

पास ही उन्हें कुछ आवाज़ें भी सुनाई दे रहीं थीं. उन्होंने ज़ोर-ज़ोर से चीख कर मदद मांगनी चाही. अलमारी को पीट-पीटकर आवाज़ें निकालीं.

नेकला कह रही थीं, "कोई है…कोई है…कोई मुझे सुन पा रहा है?"

जब कोई जवाब नहीं आया तो उन्होंने पास पड़े कंक्रीट के कुछ छोटे टुकड़े उठाए और उनसे अलमारी को पीटना शुरू कर दिया.

उन्हें डर था कि अगर अपने ऊपर पड़े मलबे पर चोट मारी तो वो उन पर गिर सकता है.

लेकिन कोई जवाब नहीं आया. नेकला को अहसास हो गया था कि कहीं से कोई मदद नहीं आने वाली. वो पूरी तरह आतंकित हो चुकी थीं.

मलबे के नीचे ज़िंदगी
मलबे के नीचे नेकला को समय का अहसास बिल्कुल नहीं हो रहा था.

उनके दिमाग़ में चल रहा था कि ज़िंदगी ऐसी तो बिल्कुल नहीं होती है.

नेकला बताती हैं, "जब आप के घर नन्हा बच्चा आता है तो आपको लाख़ों ख़्वाब होते हैं…और तभी अचानक पता चलता है कि आप उस नन्हीं जान के साथ मलबे के नीचे हैं.

लेकिन मां तो मां होती है.

ज़िंदगी और मौत के बीच झूजते हुए भी नेकला ने अपने बच्चे को दूध पिलाना जारी रखा. उतनी तंग जगह में ये करना बिल्कुल आसान नहीं था.

लेकिन ख़ुद पेट भरने या प्यास बुझाने के लिए नेकला के पास कोई साधन नहीं था. उन्होंने ख़ुद का पेट भरने के लिए, अपना ही दूध पीने की भी कोशिश की.

उन्हें अपने ऊपर ड्रिलिंग की आवाज़ें आनी शुरू हो गई थीं. लोगों के क़दमों की आवाज़ें भी आ रही थीं. लेकिन ये सब बहुत दूर से सुनाई दे रहा था.

नेकला ने तय किया कि वे अपनी ऊर्जा बचाए रखने की कोशिश करेंगी. उन्होंने हिलना-ढुलना बंद कर दिया.

उनके ख़्यालों में हर पल अपना परिवार था. उनका बहादुर नवजात पुत्र यागिज़, उनकी छाती पर था लेकिन दूसरा बेटा और पति पता नहीं किस हाल में थे.

उन्हें अपने अन्य रिश्तेदारों का भी ख़्याल आ रहा था. पता नहीं उनका इस भूकंप में क्या हुआ होगा.

नेकला को लगा कि वे इस मलबे के ढेर के नीचे से ज़िंदा नहीं बच पाएंगी, लेकिन उन्हें यागिज़ की मौजूदगी ने उम्मीद बंधाई.

यागिज़ अधिकतर समय सोता रहता था और जब भी उठता तो रोना शुरू कर देता. जैसे ही वो रोना शुरू करता नेकला उसे दूध पिलाकर शांत करने की कोशिश करतीं.

90 घंटे मलबे के नीचे रहने के बाद, नेकला को बाहर कुत्तों के भौंकने की आवाज़ आई. पहले तो उन्हें लगा कि वे कोई सपना देख रही हैं.

लेकिन कुत्तों के बाद इंसानी आवाज़ें भी आनी शुरू हो गईं.

मलबे के बाहर से एक आवाज़ आई, "क्या आप ठीक हैं? अगर आप ठीक हैं तो आवाज़ करें. आप कौन सी अपार्टमेंट में रहती थीं?"

नब्बे घंटे बाद नेकला को रेस्क्यू करने वालों ने खोज लिया था. बचावकर्मियों ने बहुत ही सलीके से नेकला के पास खोदना शुरू किया.

और फिर अचानक उनकी आँखें टॉर्च की रोशनी से चौंधिया गईं.

जब इस्तांबुल से आई रेस्क्यू टीम ने नेकला से पूछा कि बच्चे की उम्र क्या है, तो वे कुछ भी बोल नहीं पा रही थीं. उन्हें मालूम नहीं था कि वे कब से मलबे के नीचे हैं.

उन्हें तो बस ये पता था कि जिस दिन भूकंप आया था वो दस दिन का था.

यागिज़ को बचावकर्मियों के हवाले कर नेकला को एक स्ट्रेचर पर रख दिया गया. एक बहुत बड़ी भीड़ के सामने से उन्हें एंबुलेंस में ले जाया गया. वो किसी चेहरे को नहीं पहचान पा रहीं थीं.

नेकला ये भी जानने का प्रयास कर रही थीं कि उनके दूसरे बेटे का क्या हुआ.

वहां उन्हें पता चला कि उनके पति और बड़े बेटे को मलबे से ज़िंदा निकाला जा चुका है. लेकिन उन्हें अदाना के एक अस्पताल में भर्ती करवाया गया है.

अब नेकला के पास घर नहीं है लेकिन परिवार वाले उन्हें एक नीले टेंट में ले गए हैं. वहां उनके परिवार के 13 सदस्य हैं.

टेंट में परिवार एक दूसरे को दिलासा देता रहता है. एक छोटे से स्टोव पर कॉफ़ी बनाई जाती है, क़िस्से कहानियां सुनाई जाती हैं और शतरंज की बाज़ियां खेली जाती हैं.

नेकला अब भी हालात को समझने की कोशिश कर रही हैं. उन्हें लगता है कि नन्हें यागिज़ ने ही उनकी जान बचाई है.

नेकला कहती हैं, "मुझे लगता है कि मेरा बेबी अगर ये सब सहन करने के काबिल न होता तो मेरी हिम्मत भी टूट जाती."

बस अब उनकी यही इच्छा है कि उनके बेटे को कभी दोबारा ऐसे मंज़र से दो-चार न होना पड़े.

नेकला ने कहा, "मैं ख़ुश हूं कि वो एक नवजात शिशु है और उसे कुछ याद नहीं रहेगा."

तभी नेकला को वीडियो कॉल आया.

दूसरी तरफ़ उसके पति इरफ़ान और बड़ा बेटा करीम थे.

इरफ़ान कह रहे थे - हैलो, मेरा योद्धा बेटा कैसा है."

नेकला के चेहरे पर मुस्कान थी. (bbc.com/hindi)

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