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'बीबीसी बिना डर के काम कर सके', आयकर “सर्वे” के बाद ब्रितानी सांसदों ने उठाए सवाल
22-Feb-2023 12:16 PM
'बीबीसी बिना डर के काम कर सके', आयकर “सर्वे” के बाद ब्रितानी सांसदों ने उठाए सवाल

BRITISH PARLIAMENT TV

बीबीसी के भारतीय दफ़्तरों पर आयकर विभाग की कार्रवाई को लेकर ब्रितानी संसद में सवाल उठे हैं.

संसद में ब्रितानी सरकार के एक मंत्री ने सवालों के जवाब में कहा है कि वो भारत की सरकार से संपर्क में हैं और इस मामले को उठाया गया है.

14 फ़रवरी को बीबीसी के दिल्ली और मुंबई दफ़्तरों में आयकर विभाग ने सर्वे शुरू किया था, जो तीन दिनों चला था.

आयकर विभाग की कार्रवाई गुरुवार शाम तक चली थी.

मंगलवार को ब्रितानी सांसदों ने निचले सदन हाउस ऑफ़ कॉमन्स के नियमित कामकाज के दौरान 'अर्जेंट क्वेश्चन' के माध्यम से ब्रितानी सरकार से पूछा कि विदेश मंत्री इस कार्रवाई पर किसी तरह का बयान जारी क्यों नहीं करते?

ब्रिटेन की सरकार की ओर से अब तक इस मामले में किसी तरह का आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है.

बीबीसी एक स्वतंत्र संस्था है, जो किसी भी रूप में ब्रितानी सरकार का अंग नहीं है.

ब्रितानी लेबर पार्टी के नेता फ़ैबियन हेमिल्टन ने भारत सरकार की इस कार्रवाई पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा, ''जहाँ सही मायनों में प्रेस अपना काम करने के लिए स्वतंत्र हो, ऐसे लोकतांत्रिक देश में बिना वजह आलोचनात्मक आवाज़ों को नहीं दबाया जा सकता है. अभिव्यक्ति की आज़ादी की हर क़ीमत पर रक्षा होनी चाहिए.''

उन्होंने कहा, ''पिछले हफ़्ते बीबीसी के भारत स्थित दफ़्तरों पर छापा मारा जाना काफ़ी चिंताजनक है, चाहे इसकी आधिकारिक वजह कुछ भी बताई जाए. बीबीसी दुनिया भर में अपनी उच्च गुणवत्ता वाली भरोसेमंद रिपोर्टिंग के लिए जाना जाता है और उसे बिना किसी भय के रिपोर्टिंग करने की आज़ादी होनी चाहिए.''

ब्रिटेन की डेमोक्रेटिक यूनियनिस्ट पार्टी (डीयूपी) के सांसद जिम शैनन ने कहा, ''हमें इस बारे में बिल्कुल स्पष्ट होना चाहिए कि ये एक धमकाने वाली कार्रवाई थी, जिसे देश के नेता के प्रति आलोचनात्मक डॉक्यूमेंट्री रिलीज़ होने के बाद अंजाम दिया गया है.''

शैनन ने डॉक्यूमेंट्री रिलीज़ होने के बाद के हालातों को बयां करते हुए कहा, ''इस डॉक्यूमेंट्री की रिलीज़ के बाद से भारत में इसकी स्क्रीनिंग रोकने की पुरज़ोर कोशिशें की जा रही हैं. इसके साथ ही मीडिया और पत्रकारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी का दमन किया जा रहा है.

जब विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों ने अपने परिसरों में सामूहिक रूप से इस डॉक्यूमेंट्री को देखने का प्रयास किया, तो दर्जनों छात्रों को गिरफ़्तार किया गया. वहीं, अन्य छात्रों को इंटरनेट और बिजली के बिना रहना पड़ा.''

उन्होंने सवाल पूछते हुए कहा, ''भारत सरकार की इस कार्रवाई का पत्रकारों, मानवाधिकार वकीलों और धार्मिक अल्पसंख्यकों पर काफ़ी गंभीर असर पड़ा है. क्या मंत्री मुझे और इस सदन को बता सकते हैं कि सरकार इस मामले में भारतीय उच्चायोग को समन करने वाली है या वो अपने समकक्ष के समक्ष ये मुद्दा उठाएँगे?"

भारतीय मूल के लेबर पार्टी के सांसद तनमनजीत सिंह ढेसी ने भी इस मुद्दे पर ब्रितानी सरकार से सवाल पूछा.

उन्होंने कहा, "ब्रिटेन में हम प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर काफ़ी गर्व की अनुभूति करते हैं. हम बीबीसी ओर दूसरे सम्मानित मीडिया समूहों की ओर से ब्रितानी सरकार, इसके प्रधानमंत्री और विपक्षी दलों की जवाबदेही तय किए जाने के अभ्यस्त हैं.''

ढेसी ने इसके साथ ही कहा, 'इसी वजह से हममें से कई लोग चिंतित थे क्योंकि भारत एक ऐसा देश है जिसके साथ हम लोकतांत्रिक और प्रेस स्वतंत्रता के मूल्य साझा करते हैं और वहाँ की सरकार ने प्रधानमंत्री के क़दमों की आलोचना करने वाली डॉक्यूमेंट्री की रिलीज़ के बाद बीबीसी के दफ़्तर पर छापा मारने का फ़ैसला किया.

ऐसे में मंत्री महोदय की अपने समकक्ष से क्या बात हुई ये बताया जाना चाहिए ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि पत्रकार बिना भय या किसी को फ़ायदा पहुँचाए अपना काम कर सकते हैं.''

विपक्षी दलों के सांसदों की ओर से सवाल उठाए जाने के बाद ब्रितानी सरकार में मंत्री डेविड रटले ने अपनी सरकार का पक्ष रखा.

उन्होंने पहली बार जानकारी दी कि ब्रितानी मंत्रियों ने इस बारे में अपने भारतीय समकक्षों से बात की है.

उन्होंने कहा, "इस मामले को उठाया गया है और हम लगातार इस मामले पर नज़र रखे हुए हैं.''

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि बीबीसी को कॉन्सुलर मदद की पेशकश की गई थी.

डेविड रटले ने ये भी बताया, "भारत के साथ हमारे व्यापक और गहरे रिश्तों की वजह से वे (ब्रितानी मंत्री) रचनात्मक ढंग से भारत सरकार के साथ अलग-अलग मुद्दों पर बात करने में सक्षम थे और हम इस मुद्दे पर लगातार निगाह बनाए हुए हैं. बीबीसी ने अपने बयान में बताया है कि वो इस मामले में अपने कर्मचारियों की सभी तरह से मदद कर रहा है.''

''अगर उनकी ओर से कॉन्सुलर सपोर्ट मांगा गया, तो वह भी उपलब्ध है. हम प्रेस की स्वतंत्रता का पूरी तरह समर्थन करते हैं. इसी वजह से हम बीबीसी वर्ल्ड सर्विस को फ़ंडिंग देने के लिए राज़ी हुए हैं. इसके साथ ही एफ़सीडीओ भारत में मुख्य भाषाओं के लिए अतिरिक्त फ़ंडिंग देने के लिए तैयार हुआ है."

सर्वे पर बीबीसी ने क्या कहा
बीबीसी ने आयकर विभाग का सर्वे पूरा होने के बाद इस मामले में एक विस्तृत बयान जारी करके कहा था कि वह इस मामले में टैक्स अधिकारियों का सहयोग करती रहेगी.

बीबीसी के प्रवक्ता ने कहा था, "हम आयकर विभाग के अधिकारियों के साथ सहयोग करते रहेंगे और आशा करते हैं कि यह मामला जितनी जल्दी संभव हो, सुलझ जाएगा."

बीबीसी प्रवक्ता ने बताया था, "हम उन लोगों का ख़ास ध्यान रख रहे हैं जिनसे बहुत लंबी पूछताछ की गई है, कुछ लोगों को तो पूरी रात दफ़्तर में रुकना पड़ा, ऐसे कर्मचारियों की देखरेख हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता है."

पिछले हफ़्ते लगातार तीन दिनों तक चले आयकर विभाग के सर्वे के दौरान बीबीसी देश दुनिया से जुड़ी ख़बरें अपनी ऑडियंस तक पहुंचाती रही.

बीबीसी ने ये भी कहा था, "हम भरोसेमंद, निष्पक्ष, अंतरराष्ट्रीय और स्वतंत्र मीडिया हैं, हम अपने उन सहकर्मियों और पत्रकारों के साथ खड़े हैं जो लगातार आप तक बिना भय और पक्षपात के समाचार पहुँचाते रहेंगे."

"आयकर विभाग के अधिकारियों के मंगलवार को बीबीसी के दफ़्तर में आने के बाद से माहौल तनावपूर्ण और बाधा डालने वाला रहा, हमारे कई सहकर्मियों से बहुत लंबी पूछताछ की गई और उनमें से कुछ को अपनी रात ऑफ़िस में बितानी पड़ी."

''इस दौरान कई घंटे बीबीसी के पत्रकारों को काम नहीं करने दिया गया. कई पत्रकारों के साथ आयकर विभाग के कर्मचारियों और पुलिसकर्मियों ने दुर्व्यवहार भी किया.''

''पत्रकारों के कंप्यूटरों की छान-बीन की गयी, उनके फ़ोन रखवा दिए गए और उनसे उनके काम के तरीक़ों के बारे में जानकारी ली गयी. साथ ही दिल्ली दफ़्तर में कार्यरत पत्रकारों को इस सर्वे के बारे में कुछ भी लिखने से रोका गया.''

''सीनियर एडिटर्स के लगातार कहने के बाद जब काम शुरू करने दिया गया तब भी हिन्दी और अंग्रेज़ी के पत्रकारों को काम करने से और देर तक रोका गया. इन दोनों भाषाओं के पत्रकारों को तब काम करने दिया गया जब वे प्रसारण समय के नज़दीक पहुँच चुके थे.''

आयकर विभाग का बयान
ये सर्वे पूरा होने के बाद आयकर विभाग की ओर से भी एक बयान जारी किया गया.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़ इंडिया टैक्स डिपार्टमेंट के प्रवक्ता ने कहा, "सर्वे के दौरान सिर्फ़ उन कर्मचारियों के बयान दर्ज किए गए जिनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी. मुख्य रूप से वित्त और कंटेंट डेवलपमेंट से जुड़े लोगों के बयान लिए गए हैं."

प्रवक्ता ने कहा, "सर्वे के दौरान डिजिटल उपकरण ज़ब्त नहीं किए गए. बीबीसी के संपादकीय स्टाफ़ में से जिन्हें कार्रवाई के लिए महत्वपूर्ण नहीं समझा गया, उन्हें नियमित काम करने की अनुमति दी गई."

"बीबीसी कर्मचारियों को उनके कहने पर रात में घर जाने की अनुमति तक दी जाती थी."

प्रवक्ता ने कहा, "सिर्फ़ महत्वपूर्ण माने जाने वाले उपकरणों की ही डेटा क्लोनिंग की गई है. क्लोनिंग के बाद सभी उपकरण वापस कर दिए गए."

डॉक्यूमेंट्री पर विवाद
बीबीसी ने हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर एक डॉक्यूमेंट्री का प्रसारण किया था, जिसके कुछ हफ़्ते बाद नई दिल्ली और मुंबई स्थित दफ़्तरों की तलाशी ली गई.

हालाँकि ये डॉक्यूमेंट्री भारत में प्रसारण के लिए नहीं थी.

यह डॉक्यूमेंट्री 2002 के गुजरात दंगों पर थी. उस समय भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे.

इस डॉक्यूमेंट्री में कई लोगों ने गुजरात दंगों के दौरान नरेंद्र मोदी की भूमिका पर सवाल उठाए थे.

केंद्र सरकार ने इस डॉक्यूमेंट्री को प्रोपेगैंडा और औपनिवेशिक मानसिकता के साथ भारत-विरोधी बताते हुए भारत में इसे ऑनलाइन शेयर करने से ब्लॉक करने की कोशिश की.

बीबीसी ने कहा था कि भारत सरकार को इस डॉक्यूमेंट्री पर अपना पक्ष रखने का मौक़ा दिया गया था, लेकिन सरकार की ओर से इस पेशकश पर कोई जवाब नहीं मिला.

बीबीसी का कहना है कि "इस डॉक्यूमेंट्री पर पूरी गंभीरता के साथ रिसर्च किया गया, कई आवाज़ों और गवाहों को शामिल किया गया और विशेषज्ञों की राय ली गई और हमने बीजेपी के लोगों समेत कई तरह के विचारों को भी शामिल किया."

बीते महीने, दिल्ली में पुलिस ने इस डॉक्यूमेंट्री को देखने के लिए इकट्ठा हुए कुछ छात्रों को हिरासत में भी लिया था.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय समेत देश की कई यूनिवर्सिटीज़ में इस डॉक्यूमेंट्री को प्रदर्शित किया गया था. हालाँकि कई जगह पुलिस और विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसे रोकने की कोशिश की थी. (bbc.com/hindi)

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