अंतरराष्ट्रीय

पाकिस्तान की इकोनॉमी डांवांडोल, क्या भारत को बढ़ाना चाहिए मदद का हाथ
23-Feb-2023 11:07 AM
पाकिस्तान की इकोनॉमी डांवांडोल, क्या भारत को बढ़ाना चाहिए मदद का हाथ

-विनीत खरे

पिछले कुछ महीने पाकिस्तान के लिए अच्छे नहीं रहे हैं. देश में लगातार राजनीतिक और आर्थिक संकट का दौर बना हुआ है.

इस दौरान मुश्किलें भी कई रही हैं. बाढ़ से करीब एक-तिहाई देश का डूब जाना, पाकिस्तानी रुपए का लगतार कमज़ोर होना, बस कुछ दिनों के आयात के लिए बचा विदेशी मुद्रा भंडार, देश के कई हिस्सों में प्रदर्शन, महंगाई पर बढ़ती नाराज़गी, टीटीपी के घातक चरमपंथी हमलों में दर्जनों की मौत, जैसे संकट का सामना पाकिस्तान इन दिनों कर रहा है.

पाकिस्तान के मित्र देश भी आईएमएफ़ के साथ उसके क़रार का इंतज़ार कर रहे हैं, ऐसे वक्त जब यूनिसेफ़ की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान में करीब 40 लाख बच्चे अभी भी बाढ़ वाले दूषित पानी के नज़दीक रह रहे हैं, जिससे उनकी सेहत को ख़तरा है.

पाकिस्तान के भीतर कमेंट्री सुनें तो वहां श्रीलंका जैसे हालात पैदा होने की बात हो रही है. परमाणु हथियारों से लैस पाकिस्तान के ऐसे हालात पर भारत को कितना चिंतित होना चाहिए?

भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने समाचार एजेंसी एएनआई में स्मिता प्रकाश के साथ पॉडकॉस्ट में पाकिस्तान के मौजूदा संकट पर कहा, "पाकिस्तान का भविष्य ज़्यादातर पाकिस्तान के ऐक्शन और पाकिस्तान के विकल्पों के चुनाव पर निर्भर है. कोई भी ऐसी मुश्किल स्थिति में अचानक और बिना कारण नहीं पहुँचता. ये उन पर निर्भर है कि आगे का क्या रास्ता निकलता है. आज हमारे रिश्ते ऐसे नहीं कि हम इस प्रक्रिया में सीधे तौर पर प्रासंगिक हों."

एस जयशंकर ने यह भी कहा, "अगर हम श्रीलंका से तुलना करें तो मैं कहूँगा कि ये एक बिल्कुल अलग रिश्ता है. श्रीलंका को लेकर हमारे यहाँ बहुत मित्रभाव है."

भारत के लिए चिंता का सबब?
वहीं टाइम्स ऑफ़ इंडिया के एक पॉडकॉस्ट में जब पाकिस्तानी रक्षा विशेषज्ञ आयशा सिद्दीक़ा से ये पूछा गया तो उन्होंने कहा कि 'सालों से अफ़ग़ानिस्तान दुनिया के लिए हेल-होल (जहन्नुम जैसा) रहा है, इसमें पाकिस्तान का बहुत बड़ा योगदान रहा है लेकिन आप नहीं चाहेंगे कि पाकिस्तान भी उसी लीग में शामिल हो जाए.'

उन्होंने कहा, "मुझे पता है कि दिल्ली में पाकिस्तान से बातचीत को लेकर बहुत कम समर्थन है. सोच शायद ये है कि इस पुराने दुश्मन को सड़ने दो, इसे जहन्नुम की आग में जलने दो, लेकिन भारत को समझने की ज़रूरत है कि उसे ऐसे समझदार लोगों की ज़रूरत है जो पाकिस्तान के बारे में सोचें."

"मैं भारत से दया की भीख नहीं मांग रही. मैं कह रही हूं कि भारत अपनी आंखें न बंद करे ताकि ये पुराना दुश्मन, पड़ोसी खुद को बर्बाद न कर ले."

आयशा ने कहा कि पाकिस्तान में जब तक सकारात्मक सोच उभरे, भारत को भी चाहिए कि वो जहां तक हो सके पाकिस्तान को सहानुभूति की निगाह से देखे. उन्होंने कहा कि वो पाकिस्तान को आर्थिक मदद देने की बात नहीं कर रही हैं.

आयशा के मुताबिक़, उन्हें पता है कि दिल्ली और वॉशिंगटन में एक मान्यता है कि पाकिस्तान ने अपनी पीड़ित स्थिति या विक्टिमहुड का फ़ायदा उठाया है, लेकिन आज की स्थिति गंभीर है.

अर्थशास्त्री अजीत रानाडे ने एक लेख में लिखा कि परमाणु हथियार से लैस पाकिस्तान का ढहना भारत के लिए अच्छी ख़बर नहीं है.

वो लिखते हैं, "अस्थिर पाकिस्तान का मतलब है उग्रवादी इस्लाम और भारत-विरोधी ज़हर और ज़्यादा पैदा होना. इसका मतलब है कि भारत को अपनी पश्चिमी सीमा की रक्षा करने के लिए ज़्यादा संसाधन लगाने पड़ेंगे, जिससे आपको चीन की सीमा से संसाधन हटाने होंगे."

रिश्तों में सुधार के संकेत नहीं
पाकिस्तान में जहां कर्ज़ों पर डिफ़ॉल्ट का डर जताया जा रहा है. रक्षा मंत्री आसिफ़ ख़्वाजा ने ये भी कह दिया कि पाकिस्तान ने डिफॉल्ट कर दिया है.

हालांकि बीबीसी से बातचीत में पाकिस्तानी अर्थशास्त्री और पूर्व केयरटेकर वित्त मंत्री सलमान शाह ने भरोसा दिलाया कि पाकिस्तान स्थिति को नियंत्रित करने में सफल होगा.

सलमान शाह ने कहा, "हमें अपने आर्थिक सिस्टम्स को ठीक करना है. यहां बहुत कुशासन है जिसे ठीक करने की ज़रूरत है. अगर ऐसा होता है तो पाकिस्तान धीरे-धीरे अपने पैरों पर खड़ा हो जाएगा. अगर हम लंबे वक्त की बात करें तो दक्षिण एशिया के लिए हमें सभी पड़ोसी मुल्कों के साथ अच्छे आर्थिक रिश्तों की ज़रूरत है."

लेकिन आज की स्थिति ये है कि पाकिस्तान के हालात बेहद ख़राब हैं और बढ़ती राजनीतिक कटुता चीज़ों को बेहतर होने में बाधा डाल रही है. भारत-पाकिस्तान रिश्ते लंबे वक्त से ठंडे बस्ते में है, और विवादों और शिकायतों की फ़ेहरिस्त लंबी है.

भारत का कहना है कि आतंकवाद और बातचीत साथ नहीं चल सकती और साल 2014 में प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण पर नवाज़ शरीफ़ को निमंत्रण और साल 2015 में उनका लाहौर जाना इस बात का उदाहरण था कि भारत ने रिश्तों को सुधारने के लिए कोशिशें कीं लेकिन उरी और पुलवामा जैसे चरमपंथी हमले दिखाते हैं कि पाकिस्तान के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया.

पाकिस्तान जम्मू और कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने से ख़फ़ा है. पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने आरएसएस की तुलना हिटलर की नाज़ी पार्टी से की.

जम्मू और कश्मीर पर भारतीय क़दम के बाद पाकिस्तान ने भारत से व्यापार रोक दिया, हालांकि आधिकारिक और अनाधिकारिक तौर पर ये व्यापार जारी है.

इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकॉनॉमिक रिलेशंस (इक्रियार) की डॉक्टर निशा तनेजा कहती हैं कि भारत ने अपनी नीति के अंतर्गत पाकिस्तान से आयात पर 200 प्रतिशत शुल्क लगाया है लेकिन निर्यात पर कोई रोक नहीं है.

उनके मुताबिक, पाकिस्तान की आधिकारिक नीति है कि व्यापार को रोक दिया जाए, लेकिन अगर व्यापार हो रहा है तो उसे होने दो.

निशा तनेजा को उम्मीद है कि अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां पाकिस्तान की मदद करेंगी और उन्हें नहीं लगता कि भारत पाकिस्तान की आर्थिक मदद करेगा.

वो कहती हैं, "अगर पाकिस्तान व्यापार से रोक हटाता है तो कम से कम वो सस्ता सामान आयात कर सकता है."

अतीत में मदद
दोनो देशों में आम चुनाव नज़दीक हैं, इसलिए दोनो देशों की बीच किसी राजनीतिक गतिविधि के आसार नहीं के बराबर लगते हैं.

पाकिस्तानी विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो के 2002 गुजरात दंगों को लेकर प्रधानमंत्री मोदी पर तीखी टिप्पणी करने से भी संभावित बातचीत या बेहतर रिश्तों की उम्मीदें धूमिल ही हुई है.

और ख़राब रिश्तों का असर मानवीय स्थिति पर भी पड़ रहा है.

साल 2010 में जब पाकिस्तान में बाढ़ से तबाही हुई तब भारत ने आर्थिक मदद की घोषणा की थी.

साल 2005 में पाकिस्तान में भूकंप से आई तबाही पर भी भारत ने आर्थिक मदद का वायदा किया था.

साल 2001 में गुजरात में आए भूकंप में पाकिस्तान ने मदद की पेशकश की थी.

लेकिन पिछले साल जब बाढ़ से करीब एक तिहाई पाकिस्तान प्रभावित हुआ तब कोई भारतीय मदद की घोषणा नहीं हुई.

बाढ़ पर प्रधानमंत्री मोदी ने दुख जताया और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीब ने उनका शुक्रिया अदा किया.

जब एक साक्षात्कार में पाकिस्तानी विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो से पूछा गया क्या उन्होंने बाढ़ से हुई तबाही पर भारत से मदद मांगी है, या फिर उन्हें मदद की पेशकश की गई, तो उन्होंने दोनों सवालों का जवाब "नहीं" में दिया.

भारतीय मीडिया में विदेश मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से कहा गया कि अगर पाकिस्तान से मदद की गुहार आती है तो भारत मदद करेगा.

याद रहे कि तुर्की में भूकंप पर भारतीय मदद ऐसे वक्त की जा रही है जब भारतीय विरोध के बावजूद तुर्की वैश्विक मंचों पर कश्मीर का मुद्दा उठाता रहा है और पाकिस्तान से उसके रिश्ते मज़बूत हुए हैं.

क्या कर सकता है भारत?
बीबीसी से बातचीत में अर्थशास्त्री अजीत रानाडे कहते है, "अगर हम श्रीलंका, सीरिया और तुर्की को मानवीय आधार पर सहायता दे सकते हैं तो हमें पाकिस्तान के बारे में भी ऐसा सोचना चाहिए. 50 मिलियन डॉलर भी अच्छी शुरुआत हो सकती है. इसका क्या नुकसान हो सकता है? हम जी-20 के अध्यक्ष हैं. हम वैश्विक शक्ति बनना चाहते हैं और ऐसी मदद देना उसकी सोच के अनुरूप है."

रानाडे के मुताबिक भारत हर साल 60 से 70 अरब डॉलर रिफ़ाइंड पेट्रोल और डीज़ल दुनिया को निर्यात करता है, और पाकिस्तान इसका फ़ायदा उठा सकता है, जिससे दोनो देशों के बीच व्यापार बढ़ सकता है.

अर्थशास्त्री अजीत रानाडे के मुताबिक भारत मानवीय आधार पर पाकिस्तान की मदद की सोच सकता है, क्योंकि पाकिस्तान के मानवीय हालात खराब होने से लोगों की भीड़ का भारत आने का खतरा है.

वो कहते हैं, "आपको याद होगा कि बांग्लादेश युद्ध में क्या हुआ?" लेकिन क्या भारत-श्रीलंका और भारत-पाकिस्तान रिश्तों को एक स्तर पर रखना ठीक है?

इक्रियार की डॉक्टर निशा तनेजा के मुताबिक, "श्रीलंका के साथ भारतीय मदद, निवेश का इतिहास रहा है और दोनों देशों के बीच ऐसे चैनल्स हैं जिनका इस्तेमाल होता रहा है."

उधर पाकिस्तानी अर्थशास्त्री सलमान शाह के मुताबिक़, आज के हालात में कोई भी पाकिस्तानी सरकार भारत से मदद नहीं लेगी.

वो कहते हैं, "मुझे नहीं लगता है कि किसी भी सरकार के लिए राजनीतिक समझदारी होगी कि वो कि वो भारत से कोई मदद या समर्थन ले. अभी ये मुमकिन नहीं क्योंकि पाकिस्तान के लिहाज़ से भारत में सरकार पाकिस्तान की दोस्त नहीं है." (bbc.com/hindi)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news