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राजपथ-जनपथ : अविश्वसनीय
04-Dec-2023 2:08 PM
राजपथ-जनपथ : अविश्वसनीय

अविश्वसनीय

अंबिकापुर सीट के मतों की गिनती रोमांचक रही है। न तो कांग्रेस, और न ही भाजपा के कई स्थानीय नेताओं को भरोसा था कि भाजपा प्रत्याशी राजेश अग्रवाल की जीत होगी। राजेश, सरगुजा राजघराने के मुखिया डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव को कड़े संघर्ष के बाद 94 मतों से हराने में कामयाब रहे।

बताते हैं कि जीत की घोषणा में विलंब हो रहा था। तभी केन्द्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह का फोन एक कार्यकर्ता के पास पहुंचा, और फिर उन्होंने रेणुका सिंह की कलेक्टर से बात कराई। चर्चा है कि रेणुका सिंह का लहजा इतना सख्त था कि कलेक्टर भी हड़बड़ा गए, और फिर उन्होंने तुरंत राजेश अग्रवाल को विजयी प्रमाण पत्र जारी किया।

बाबा की हार की वजह

अंबिकापुर में टीएस सिंहदेव की हार में हकीम अब्दुल मजीद की भी अहम भूमिका रही है। जोगी पार्टी के प्रत्याशी अब्दुल हकीम ने करीब 12 सौ वोट हासिल किए। हकीम को अपने मुस्लिम समाज के वोट मिले, जो कि कांग्रेस के परम्परागत वोटर रहे हैं। यद्यपि सिंहदेव समर्थकों ने नामांकन से पहले उन्हें अपने पक्ष में करने की भरपूर कोशिश की थी, लेकिन वो सफल नहीं हो पाए।

मतगणना के दौरान अब्दुल मजीद, भाजपा प्रत्याशी राजेश अग्रवाल के साथ खड़े थे, और उन्हें दिलासा दे रहे थे। राजेश लगातार लीड घटने से घबराए हुए थे। अब्दुल हकीम उनसे मजाकिया लहजे में कह रहे थे कि घबराने की जरूरत नहीं है। उनके पास दवाई है। और जब टीएस सिंहदेव हार गए, तो उनके समर्थकों का गुस्सा अब्दुल हकीम पर फूट पड़ा, और उन्होंने हकीम के साथ झूमाझटकी की। बाद में पुलिस हस्तक्षेप के बाद हकीम किसी तरह बच पाए।

पार्टी का खर्च बचा

कांग्रेस के तमाम छोटे-बड़े नेताओं को सरकार के रिपीट होने का भरोसा था। तमाम एग्जिट पोल का भी नतीजा कुछ इसी तरह का था। मगर कांग्रेस को बुरी हार का सामना करना पड़ा।

बताते हैं कि सरकार के एक ताकतवर मंत्री के अति उत्साही करीबियों ने मतगणना की एक दिन पहले बंगले में विजयी पार्टी का भी आयोजन कर रखा था। इसमें एक हजार कार्यकर्ताओं, और कई नेताओं को बुलाने की तैयारी थी।

इसी बीच किसी ने मंत्री जी के कान में फूंक दिया कि पार्टी का खर्चा, चुनाव खर्च में जुड़ जाएगा। क्योंकि चुनाव आचार संहिता प्रभावशील है। फिर मंत्री जी ने पार्टी को कैंसल कर दिया। दिलचस्प  बात यह है कि अगले दिन मंत्रीजी खुद बुरी तरह चुनाव हार गए। इस हार से मंत्री जी, और उनके समर्थक हतप्रभ हैं।

बूढ़ादेव प्रसन्न

गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने 23 साल बाद पाली-तानाखार में वापसी की है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के संस्थापक हीरासिंग मरकाम अविभाजित मध्यप्रदेश में विधायक चुने गए थे। इसके बाद छत्तीसगढ़ बनने के बाद वे उतने सफल नहीं हो सके। पिछले साल उनका निधन हो गया और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी अनाथ जैसी हो गई। उनके बेटे तुलेश्वर ने कमान संभाली और पार्टी के फिर से खड़ा करने में जी जान लगा दी। इसमें उन्होंने गोंडवाना समाज के हर रीति-रिवाज का भी पालन किया। चुनाव के पहले वे गोंडवाना समाज के देव बूढ़ादेव के मंदिर पहुंचे। धमधा के त्रिमूर्ति महामाया मंदिर में पूजा-पाठ, अनुष्ठान भी किया। उन्होंने अपने इष्टदेव को प्रसन्न करने सारा जतन किया। इसके बाद समाज का साथ मिला। बूढ़ादेव भी प्रसन्न हो गए और भाजपा की आंधी और कांग्रेस से टक्कर लेते हुए उन्होंने गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को एक सीट दिलाने में सफलता हासिल कर ही ली।

महंत साबित हुए असली लीडर

विधानसभा चुनाव के नतीजे भले ही कांग्रेस के अनुकूल नहीं रहे हैं। मगर विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत को अविभाजित जांजगीर-चांपा जिले में कांग्रेस की जीत का असली नायक कहा जा रहा है। डॉ. महंत न सिर्फ खुद सक्ती सीट से चुनाव जीते, बल्कि जिले की तमाम सीट जांजगीर-चांपा, अकलतरा, चंद्रपुर, पामगढ़, और जैजैपुर से कांग्रेस प्रत्याशी को जिताने में अहम भूमिका निभाई। सोशल मीडिया पर उन्हें असली लीडर कहा जा रहा है। जांजगीर-चांपा की तरह बालोद जिले में भी कांग्रेस के पक्ष में माहौल रहा, और यहां की तीनों सीटें पार्टी जीतने में कामयाब रही है।

सीटों और वोटों के बीच का फासला 

किसी पार्टी को मिले वोट और उसकी जीतने वाली सीटों में अक्सर बड़ा फर्क होता है। मध्य प्रदेश में सन् 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 41 और कांग्रेस को 40.9 प्रतिशत मत मिले थे। पर वहां कांग्रेस को सीटें 114 मिल गई और भाजपा को 109 ही। कुल वोट कम मिलने के बावजूद कांग्रेस की वहां सरकार बन गई थी।

इस बार तीन राज्यों में कांग्रेस की बुरी तरह हार हो गई। पर उसे मिले वोटों का फासला सीटों की तुलना में देखना दिलचस्प होगा। जैसे राजस्थान में भाजपा को करीब 1 करोड़ 65 लाख वोट मिले, कांग्रेस को 1 करोड़ 56 लाख। दोनों के बीच वोटों का अंतर 9 लाख के आसपास है। मगर यहां भाजपा को 115 सीटें मिलीं जबकि कांग्रेस 69 सीटों पर रुक गई। मध्यप्रदेश में भाजपा को करीब 2 करोड़ 11 लाख मिले वहां कांग्रेस को 1 करोड़ 75 लाख। पर सीटों का अंतर बहुत अधिक आ गया। कांग्रेस 66 सीटों पर सिमट गई और भाजपा ने 163 सीटों पर जीत हासिल की। भाजपा ने कांग्रेस के दोगुने से भी अधिक सीटें हासिल कर ली। छत्तीसगढ़ में भाजपा को लगभग 72 लाख वोट मिले, कांग्रेस को 66 लाख। दोनों के बीच वोटों का अंतर करीब 6 लाख का ही है। पर भाजपा ने अब तक की सबसे बड़ी जीत हासिल करते हुए यहां 54 सीटों पर काबिज हुई और कांग्रेस 35 पर रह गई। राज्य बनने के बाद से लगातार सत्ता में रही भारत राष्ट्र पार्टी का भी तेलंगाना में यही हाल रहा। उसे करीब 87 लाख वोट मिले, पर कांग्रेस ने 5 लाख अधिक 92 लाख वोट लेकर उसे सत्ता से बेदखल कर दिया। बीआरएस ने 2018 के मुकाबले में 49 सीटें गंवा दी। यहां भाजपा ने भी 32 लाख वोट हासिल किए हैं। पर उसे सिर्फ 8 सीटें मिली। लोकसभा चुनावों में भी ऐसा ही होता है। भाजपा ने सन् 2019 में 37.36 प्रतिशत वोट हासिल किए लेकिन उसे 303 सीटें मिलीं। सन् 2014 के चुनाव में तो 31 प्रतिशत वोट ही मिले थे।

सीटों और वोटों के बीच का फासला 

किसी पार्टी को मिले वोट और उसकी जीतने वाली सीटों में अक्सर बड़ा फर्क होता है। मध्य प्रदेश में सन् 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 41 और कांग्रेस को 40.9 प्रतिशत मत मिले थे। पर वहां कांग्रेस को सीटें 114 मिल गई और भाजपा को 109 ही। कुल वोट कम मिलने के बावजूद कांग्रेस की वहां सरकार बन गई थी।

इस बार तीन राज्यों में कांग्रेस की बुरी तरह हार हो गई। पर उसे मिले वोटों का फासला सीटों की तुलना में देखना दिलचस्प होगा। जैसे राजस्थान में भाजपा को करीब 1 करोड़ 65 लाख वोट मिले, कांग्रेस को 1 करोड़ 56 लाख। दोनों के बीच वोटों का अंतर 9 लाख के आसपास है। मगर यहां भाजपा को 115 सीटें मिलीं जबकि कांग्रेस 69 सीटों पर रुक गई। मध्यप्रदेश में भाजपा को करीब 2 करोड़ 11 लाख मिले वहां कांग्रेस को 1 करोड़ 75 लाख। पर सीटों का अंतर बहुत अधिक आ गया। कांग्रेस 66 सीटों पर सिमट गई और भाजपा ने 163 सीटों पर जीत हासिल की। भाजपा ने कांग्रेस के दोगुने से भी अधिक सीटें हासिल कर ली। छत्तीसगढ़ में भाजपा को लगभग 72 लाख वोट मिले, कांग्रेस को 66 लाख। दोनों के बीच वोटों का अंतर करीब 6 लाख का ही है। पर भाजपा ने अब तक की सबसे बड़ी जीत हासिल करते हुए यहां 54 सीटों पर काबिज हुई और कांग्रेस 35 पर रह गई। राज्य बनने के बाद से लगातार सत्ता में रही भारत राष्ट्र पार्टी का भी तेलंगाना में यही हाल रहा। उसे करीब 87 लाख वोट मिले, पर कांग्रेस ने 5 लाख अधिक 92 लाख वोट लेकर उसे सत्ता से बेदखल कर दिया। बीआरएस ने 2018 के मुकाबले में 49 सीटें गंवा दी। यहां भाजपा ने भी 32 लाख वोट हासिल किए हैं। पर उसे सिर्फ 8 सीटें मिली। लोकसभा चुनावों में भी ऐसा ही होता है। भाजपा ने सन् 2019 में 37.36 प्रतिशत वोट हासिल किए लेकिन उसे 303 सीटें मिलीं। सन् 2014 के चुनाव में तो 31 प्रतिशत वोट ही मिले थे।

परिणाम के पहले का माहौल..

छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस के नेता ही नहीं, कार्यकर्ता भी ओवरकांफिडेंट थे। जैसे छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल, राजस्थान में अशोक गहलोत का दोबारा मुख्यमंत्री बनना तय माना जा रहा था वैसे ही मध्यप्रदेश में कमलनाथ को सीएम मान लिया था। मध्यप्रदेश में ऐसे ही एक अति उत्साही कार्यकर्ता ने नतीजा आने से पहले ही सडक़ पर स्वागत द्वार लगा रखा था।  ([email protected])

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