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कैंसर की नई दवा जो कीमोथेरेपी के मुक़ाबले है कम कष्ट देने वाली
20-Jan-2024 12:59 PM
कैंसर की नई दवा जो कीमोथेरेपी के मुक़ाबले है कम कष्ट देने वाली

मिशेल रॉबर्ट्स

कैंसर से जूझ रहे कुछ बच्चों का ब्रिटेन में एक नई तरह की दवा से इलाज किया जा रहा है. ये दवा कीमोथेरेपी से बहुत कम ज़हरीली है.

11 साल के अर्थर को ब्लड कैंसर के इलाज के लिए लंदन के ग्रेट ऑरमंड स्ट्रीट अस्पताल में यह दवा दी गई. वह इस दवा को लेने वाले शुरुआती लोगों में से एक हैं.

उनके परिवार के लोग इस नई थेरेपी को ‘उम्मीद की एक किरण’ बता रहे हैं क्योंकि इससे अर्थर की तबीयत ज़्यादा ख़राब नहीं हुई.

ख़ास बात यह है कि इसे कहीं पर भी मरीज़ को दिया जा सकता है. इस वजह से अर्थर घर पर परिवार के साथ ज़्यादा समय बिता पाए और अपनी पसंद के काम भी कर पाए.

वह इस दवा को पीठ पर पहने जाने वाले बैग (पिट्ठू) में लेकर घूम सकते थे. इस बैग को ‘ब्लीना बैकपैक’ कहा जाता है.

जब बेअसर हुई कीमोथेरेपी

अर्थर के इलाज के लिए ब्लीनाटूमोमैब या ब्लीना ही एकमात्र विकल्प था क्योंकि कीमोथेरेपी से कैंसर ठीक नहीं हो पा रहा था और उसके साइड इफ़ैक्ट से वह कमज़ोर भी हो गए थे.

वयस्कों में कैंसर के इलाज के लिए ब्लीना को इस्तेमाल करने का लाइसेंस पहले से ही मिला हुआ था. मगर अब विशेषज्ञों को उम्मीद है कि यह बच्चों के लिए भी सुरक्षित रहेगी.

यूके में क़रीब 20 ऐसे सेंटर हैं, जहां बी-सेल एक्यूट लिंफोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (बी-ऑल) से जूझ रहे बच्चों के इलाज के लिए इसका ऑफ़-लेबल इस्तेमाल किया जा रहा है.

ऑफ़-लेबल का मतलब है- मंज़ूर की जा चुकी दवा को उसके इस्तेमाल के लिए मंज़ूर किए गए ढंग के अलावा किसी और तरीक़े या किसी और बीमारी के लिए इस्तेमाल करना.

यह दवा इम्यूनोथेरेपी पर आधारित है. यानी ये शरीर में कैंसर वाली कोशिकाओं की पहचान करती है ताकि शरीर का अपना प्रतिरोधक तंत्र उन्हें पहचाने और फिर नष्ट कर दे.

यह काम बहुत ही बारीक़ी से होता है. स्वस्थ कोशिकाएं एकदम सुरक्षित रहती हैं, जबकि कीमोथेरेपी में ऐसा नहीं होता.

ब्लीना एक बैग के अंदर तरल रूप में आती है. इसे पतली सी प्लास्टिक की ट्यूब के माध्यम से सीधे मरीज़ की नस में डाला जाता है. यह ट्यूब कई महीनों तक मरीज़ की बांह से जुड़ी रहती है.

बैटरी से चलने वाला एक पंप तय मात्रा में ख़ून में दवा डालता रहता है. इस दवा का एक बैग कई दिनों तक चलता है.

ये पूरी किट एक छोटे से बैग में डालकर कहीं भी ले जाई जा सकती है. इसका आकार नोटबुक से भी छोटा है.

छोटे आकार और बैग में डाले जा सकने का मतलब था कि अर्थर अपनी पसंद के कोई भी काम कर सकते थे. जैसे कि वह घर के बगल के पार्क में झूला झूल सकते थे और उसी समय उनका इलाज भी चल रहा होता था.

वहीं, एक तो कीमोथेरेपी उनके लिए बेअसर रही थी और फिर उसने उन्हें इतना कमज़ोर कर दिया था कि वो मौज-मस्ती भी नहीं कर पाते थे.

शुरुआती दिक्कतें

ब्लीना का इस्तेमाल कर रहे बाक़ी मरीज़ों की तरह अर्थर को शुरू में एक दवा दी गई थी ताकि उन्हें नई क़िस्म से इलाज से कोई गंभीर रिएक्शन या साइड इफ़ेक्ट न हो जाए.

शुरू में उन्हें कुछ दिन बुख़ार आया और उस दौरान उन्हें जांच के लिए अस्पताल में रहना पड़ा.

लेकिन जल्द ही वह घर जा पाए.

दवा का यह बैग लगातार अर्थर के पास रहा. उनके बिस्तर पर भी. भले ही इसका पंप थोड़ी आवाज़ करता है, लेकिन रात को वह आराम से सो पाते थे.

कीमो करवाना अर्थर के लिए बहुत मुश्किलों भरा रहा था. उनकी मां सैंडरीन कहती हैं कि ब्लीना से उन्हें बहुत राहत मिली.

उन्होंने कहा, “उसकी हालत बहुत ख़राब हो गई थी. मुश्किल यह थी कि दवा (कीमो) की मार उसके शरीर पर पड़ रही थी.”

“एक ओर हम उसका इलाज कर रहे थे मगर दूसरी ओर उसी इलाज से उसकी तबीयत बिगाड़ रहे थे. इस दौर से गुज़रना बहुत मुश्किल भरा होता है.”

बड़ा क़दम
अर्थर को हर चार दिन में अस्पताल जाना पड़ा ताकि डॉक्टर ब्लीना किट में फिर से दवा भर सकें. बाक़ी समय घर पर रहकर ही इलाज चलता रहा.

उनकी मां सैंडरीन ने कहा, “उसे इस बात से ख़ुशी हुई कि वह इसे (दवा के बैग को) पकड़ सकता है, ज़िम्मेदारी उठा सकता है. वो इस सब में ढल गया था.”

अप्रैल 2023 के अंत में अर्थर का आख़िरी ऑपरेशन हुआ और उनकी बांह से ट्यूब निकाल ली गई.

सैंडरीन कहती हैं, “ये एक बड़ा क़दम था. उसे आज़ादी मिल गई थी.”

डॉक्टर कहते हैं कि ब्लीना के इस्तेमाल से कीमोथेरेपी की ज़रूरत बहुत कम की जा सकती है, शायद 80% तक.

यूनाइटेड किंगडम में हर साल क़रीब 450 बच्चों में उसी तरह के कैंसर पाया जाता है, जो अर्थर को हुआ था.

कीमो के साइड इफ़ैक्ट

चीफ़ इन्वेस्टिगेटर और कंसल्टेंट पीडिएट्रिक हेमेटोलॉजिस्ट, प्रोफ़ेसर अजय वोरा ने बताया, “कीमोथेरेपी में ऐसे ज़हर होते हैं जो ल्यूकेमिया वाली कोशिकाओं को मारते हैं. लेकिन ये सामान्य कोशिकाओं को भी नुक़सान पहुंचाते हैं . इसी कारण कीमो के साइड इफ़ेक्ट देखने को मिलते हैं.”

वह कहते हैं, “ब्लीनाटूमोमैब एक कोमल और कम कष्ट देने वाला इलाज है.”

हाल के दिनों में कैंसर के इलाज के लिए एक और इम्यूनोथेरेपी आधारित दवा- किमेरिक एंटीजन रिसेप्टर टी-सेल थेरेपी (सीएआर-टी) भी उपलब्ध हुई है.

लेकिन ये ब्लीना से महंगी है. इसमें मरीज़ों की कोशिकाएं ली जाती हैं, उनमें प्रयोगशाला में बदलाव करके फिर से मरीज़ के शरीर में दवा के तौर पर डाला जाता है. इस पूरी प्रक्रिया में समय भी लगता है.

अर्थर का इलाज सफल रहा है और कैंसर ख़त्म हो गया है.

सैंडरीन कहती हैं, “हमें न्यू इयर पर पता चला कि ब्लीना ने काम किया है और अब कैंसर के कोई निशान बाक़ी नहीं हैं. ऐसे में हमारी ख़ुशियां दोगुनी हो गईं.” (bbc.com)

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