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न्यूक्लियर फ्यूजन से पैदा हुई 70 गुना ज्यादा ऊर्जा
09-Feb-2024 12:56 PM
न्यूक्लियर फ्यूजन से पैदा हुई 70 गुना ज्यादा ऊर्जा

ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने कहा है कि उन्होंने जॉइंट यूरोपीय टॉरस (JET) मशीनों से फ्यूजन एनर्जी पैदा करने का नया रिकॉर्ड बनाया है. 2022 में हुए प्रयोग से करीब सात गुना ज्यादा ऊर्जा पैदा की गई.

   (dw.com) 

ब्रिटेन के ऑक्सफर्ड में वैज्ञानिकों ने 0.2 मिलीग्राम ईंधन से 69 मेगाजूल ऊर्जा पैदा की है. न्यूक्लियर फ्यूजन प्रक्रिया में यह ऊर्जा का नया रिकॉर्ड है. इससे पहले 2022 में वैज्ञानिकों ने इसी प्रयोग में 10 मेगाजूल ऊर्जा पैदा की थी.

गुरुवार को वैज्ञानिकों ने ऐलान किया कि जॉइंट यूरोपीयन टॉरस मशीन में उन्हें न्यूक्लियर फ्यूजन प्रक्रिया से ऊर्जा पैदा करने में ऐतिहासिक सफलता मिली है. जेट का यह आखिरी प्रयोग था और वैज्ञानिकों ने 2022 के रिकॉर्ड से कहीं ज्यादा बड़ी मात्रा में ऊर्जा बनाने में कामयाबी पाई.

कैसे हुआ प्रयोग
न्यूक्लियर फ्यूजन वही रसायनिक प्रक्रिया है जिसे सूरज में ऊर्जा पैदा होती है. कई वैज्ञानिकों का मानना है कि इस प्रक्रिया से ऊर्जा पैदा करके जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं को हल किया जा सकता है क्योंकि यह ऊर्जा सुरक्षित, स्वच्छ और मात्रा में कहीं ज्यादा होती है.

ब्रिटेन की एटॉमिक एनर्जी अथॉरिटी (UKAEA) ने कहा कि ऑक्सफर्ड के पास जेट संस्थान में 0.2 मिलीग्राम ईंधन से 5 सेकंड तक 69 जूल ऊर्जा पैदा हुई. इतनी ऊर्जा 5 सेकंड तक 41 हजार घरों की बिजली सप्लाई के बराबर है.

इस प्रयोग में डोनट के आकार की मशीन का इस्तेमाल किया गया जिसे टॉकमैक कहा जाता है. अथॉरिटी के सीईओ इयान चैपमैन ने बताया, "जेट ने वैसी ही परिस्थितियों में प्रयोग किया जैसी मौजूदा बिजली संयंत्रों में है. इस प्रयोग की विरासत भविष्य में बिजली संयंत्रों में नजर आएगी.”

चैपमैन ने कहा कि जेट में हुए शोध का फायदा पूरी दुनिया को होगा. उन्होंने कहा, "जेट शोध में जो नतीजे सामने आए हैं उनका फायदा ना सिर्फ फ्रांस में फ्यूजन रिसर्च के लिए बनाए जा रहे विशाल संयंत्र में होगा बल्कि सुरक्षित और कम कार्बन वाली ऊर्जा पैदा करने की कोशिशों में लगीं दुनियाभर की फ्यूजन परियोजनाओं को इसका लाभ मिलेगा.”

कामयाबी अभी दूर है
यह प्रयोग यूरोफ्यूजन नाम के एक समूह ने किया है. इस समूह में पूरे यूरोप के 300 से ज्यादा वैज्ञानिक और इंजीनियर शामिल हैं. जॉइंट यूरोपीय टॉरस पिछले करीब चार दशक से इस तरह के प्रयोग कर रहा है. 1997 में पहली बार न्यूक्लियर फिजन का प्रयोग शुरू हुआ था.

जेट में जो ईंधन इस्तेमाल किया गया उसमें 0.1 मिलीग्राम डिटीरियम और 0.1 मिलीग्राम ट्रिटियम का इस्तेमाल हुआ. ये दोनों ही हाइड्रोजन के आइसोटॉप हैं. इन दोनों को जिस तापमान पर गर्म किया गया, वह सूर्य के केंद्र से दस गुना ज्यादा था.

शक्तिशाली चुंबकों की मदद इस मिश्रण को एक जगह स्थिर करके घुमाया गया. इस तरह ऊष्मा के रूप में अत्यधिक ऊर्जा पैदा हुई. फ्यूजन की प्रक्रिया को इसलिए सुरक्षित माना जाता है क्योंकि इसे नियंत्रित किया जा सकता है. इसके अलावा डिटीरयम समुद्र के पानी में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है जबकि ट्रिटियम को न्यूक्लियर फिजन प्रक्रिया के दौरान बनाया जा सकता है.

फ्यूजन प्रक्रिया में कोयले, तेल या गैस जलाने के मुकाबले 40 लाख गुना ज्यादा ऊर्जा पैदा की जा सकती है. और इस प्रक्रिया में कचरे के रूप में सिर्फ हीलियम पैदा होती है.

वैसे जेट में जो प्रयोग हुआ, उसमें ऊर्जा पैदा करने का नया रिकॉर्ड भले ही बना हो लेकिन उतनी ऊर्जा नहीं पैदा हुई जितनी इस प्रयोग में खर्च हुई. यानी जितनी ऊर्जा लगाई गई, उतनी ही पैदा हुई.

2022 में अमेरिका की लॉरेंस लिवमोर नेशनल लैबोरेट्री ने एक अलग तरीका इस्तेमाल करते हुए लेजर किरणों की मदद से अतिरिक्त ऊर्जा पैदा करने में कामयाबी पाई थी.

वीके/एए (एएफपी, रॉयटर्स)

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