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इंसानों ने कान छिदवाना कब से शुरु किया
23-Mar-2024 1:11 PM
इंसानों ने कान छिदवाना कब से शुरु किया

तुर्की में हुई एक खुदाई के दौरान मिले कंकालों के कान और होंठ के आस-पास पत्थरों के कुछ टुकड़े पाए गए हैं. पुरातत्वविदों का मानना है कि प्राचीन मानव भी हम इंसानों की तरह गहने पहनने के लिए अपने कान और होंठ छिदवाया करते थे.

  (dw.com)  

दक्षिणी-पूर्वी तुर्की में प्राचीन मानवों के कंकाल से पत्थर से बने गहनों के अवशेष मिले हैं. करीब 11,000 साल पुराने एक कब्रिस्तान से मिले कंकालों के होंठ और गर्दन के आस-पास ये गहने पाए गए हैं. ये अवशेष इस बात की पुष्टि करते हैं कि प्राचीन काल से ही इंसान गहने पहनने के लिए अपने शरीर में छेद करवाने के शौकीन रहे हैं. इस खोज से जुड़े पुरात्वविज्ञानियों का भी मानना है कि प्राचीन मानव भी इस बारे में सोचा करते थे कि वे कैसे दिख रहे हैं.

फर्टाइल क्रीसेंट जो कि मौजूदा तुर्की और इराक का हिस्सा है वहां हुई इस खुदाई के दौरान छोटे, पतले और नुकीले कई तरह के पत्थर मिले हैं. यह वह इलाका है जहां प्राचीन मानव खेती के लिए बसे थे, लेकिन वे इन पत्थरों का इस्तेमाल किस लिए किया करते थे अब तक इसका पता नहीं चल पाया था.

इस खुदाई से जुड़ी अंकारा यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर एमा लूइज़ बायसल के मुताबिक अब तक इनमें से कोई भी पत्थर कभी भी किसी कंकाल के शरीर पर नहीं पाए गए थे. लेकिन बॉनचुकलू तरला में हुई खुदाई के दौरान ये पत्थर कंकालों के कान और होंठ के बेहद करीब पाए गए. इस खोज के बाद विशेषज्ञ इस नतीजे पर पहुंचे कि प्राचीन मानव भी शरीर के अलग-अलग अंगों को छिदवाकर गहने पहना करते थे.

कुछ कंकालों के निचले दांतों के पास ये पत्थर पाए गए जो इस ओर इशारा करत हैं कि प्राचीन मानव होंठ के निचले हिस्से छिदवाया करते थे. प्रोफेसर बायसल कहती हैं कि यह खोज बताती है कि प्राचीन मानव भी हमारी तरह ही इस बात की फिक्र करते थे कि वे कैसे दिखते हैं और दुनिया के सामने खुद को कैसे पेश करते हैं.

यह जगह 11,000 साल पहले शिकारियों ने स्थापित की थी जो आगे चलकर यहीं बस गए. यहां खुदाई की शुरुआत तब हुई जब स्थानीय किसानों को इस जगह पर हजारों बीड्स मिले. अब तक 100,000 से अधिक प्राचीन कलाकृतियां इस जगह से मिल चुकी हैं.

प्रोफेसर बायसल बताती हैं कि ये खुदाई न सिर्फ यह बताती हैं, "प्राचीन दौर में समाज का निर्माण कैसे हुआ बल्कि आधुनिक इंसानों और पाषाण युग के आखिरी चरण के इंसानों के बीच मौजूद समानता को भी दर्शाती हैं. ये उन पहलुओं को उजागर करती हैं जिनसे हम जुड़ा हुआ महसूस कर सकते हैं. यह दिखाती हैं कि कई मायनों में हम बिल्कुल एक जैसे थे.”

आरआर/आरपी (रॉयटर्स)

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