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मोदी ने इलेक्टोरल बॉन्ड को बताया सक्सेस स्टोरी, क्या है सच्चाई
17-Apr-2024 12:52 PM
मोदी ने इलेक्टोरल बॉन्ड को बताया सक्सेस स्टोरी, क्या है सच्चाई

-राघवेंद्र राव

सोमवार को समाचार एजेंसी एएनआई को दिए एक इंटरव्यू में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इलेक्टोरल बॉन्ड को एक सक्सेस स्टोरी या कामयाबी की कहानी बताया. साथ ही ये भी कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड होने की वजह से आज एक मनी ट्रेल उपलब्ध है और ये पता चल पा रहा है कि किसने कितना पैसा किस पार्टी को दिया.

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि चुनावों को काले धन से मुक्ति दिलवाने और चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाने के लिए रास्ते खोजे जा रहे थे और इलेक्टोरल बॉन्ड के रूप में उन्हें एक 'छोटा सा रास्ता मिला' और उन्होंने कभी ये दावा नहीं किया कि ये रास्ता पूर्ण है.

लेकिन इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की कल्पना से लेकर उसके असंवैधानिक घोषित किए जाने तक के घटनाक्रम पर एक सरसरी नज़र डालें तो ये साफ़ है कि पारदर्शिता की कमी ही इस योजना की सबसे बड़ी दिक़्क़त साबित हुई.

फरवरी में इस योजना को ख़ारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जहां गुप्त मतदान स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव को बढ़ावा देने के लिए ज़रूरी है वहीं राजनीतिक दलों की फंडिंग में पारदर्शिता--न कि गोपनीयता--एक ज़रूरी शर्त है.

साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मतदान केंद्र की गोपनीयता को राजनीतिक दलों की फंडिंग की गुमनामी तक नहीं बढ़ाया जा सकता है.

'मैं नहीं चाहता था कि ये कैश वाला कारोबार चले'

एएनआई की संपादक स्मिता प्रकाश ने पीएम मोदी से पूछा कि क्या इलेक्टोरल बॉन्ड्स का फैसला गलत था?

जवाब में पीएम मोदी ने कहा, "हमारे देश में लम्बे अरसे से चर्चा चली है कि चुनावों में काले धन का एक बहुत बड़ा, ख़तरनाक खेल हो रहा है. देश के चुनावों को काले धन से मुक्ति मिले इसके लिए कुछ करना चाहिए. चुनाव में ख़र्च तो होता ही होता है, कोई इनकार नहीं कर सकता है. मेरी पार्टी भी करती है, सब पार्टियां करती हैं, कैंडिडेट भी करते हैं. और पैसे लोगों से लेने पड़ते हैं. सब पार्टियां लेती हैं."

"मैं चाहता था कि हम कुछ कोशिश करें कि इस काले धन से हमारे चुनाव को कैसे मुक्ति मिले...ट्रांसपेरेंसी (पारदर्शिता) कैसे आए. एक प्रामाणिक पवित्र विचार मेरे मन में था. रास्ते खोज रहे थे. एक छोटा सा रास्ता मिला. वही पूर्ण है ऐसा हमने उस समय भी क्लेम नहीं किया था. पार्लियामेंट में डिबेट में सबने उसको सराहा भी था.आज जो लोग उलट-पुलट बोल रहे हैं, उन्होंने सराहा था, पार्लियामेंट डिबेट देख लीजिए."

पीएम मोदी ने कहा, "हमने कैसे-कैसे काम किया. जैसे हज़ार और दो हज़ार के नोट ख़त्म कर दिए. चुनाव में वही बड़ी-बड़ी मात्रा में ट्रेवलिंग करते हैं. क्यों? क्योंकि ये काला धन ख़त्म हो. सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि बीस हज़ार रुपए तक पॉलिटिकल पार्टियां कैश ले सकती हैं. मैंने क़ानून बना कर, नियम बना कर के बीस हज़ार को ढाई हज़ार कर दिया. क्यों? क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि ये कैश वाला क़ारोबार चले."

प्रधानमंत्री ने कहा, "सब व्यापारी लोग हमें आकर कहते थे कि चेक से हम पैसे दे ही नहीं सकते. हमने कहा क्यों नहीं दे सकते. बोले हम चेक से देंगे तो हमें लिखना पड़ेगा. हम लिखेंगे तो सरकार है वो देखेगी कि विपक्ष को इतना पैसा दिया. तो हमें तो वो परेशान करेगा. तो बोले हम पैसे देने के लिए तैयार हैं लेकिन चेक से नहीं देंगे. मुझे याद है कि नब्बे के दशक में चुनाव में हमको बड़ी दिक़्क़त आई थी. पैसे ही नहीं थे हमारे पास. और हम नियम लगा कर बैठे थे कि हम चेक से लेंगे. देने वाले देने के लिए तैयार थे, चेक से देने की उनकी हिम्मत नहीं थी. ये सारी चीज़ों का मुझे पता था."

इसके बाद मोदी ने इलेक्टोरल बॉन्ड की बात की.

उन्होंने कहा, "अब देखिए. इलेक्टोरल बॉन्ड अगर न होते तो किस व्यवस्था में वो ताक़त है कि वो ढूंढ के निकालते कि पैसा कहाँ से आया और कहाँ गया है. ये तो इलेक्टोरल बॉन्ड की सक्सेस स्टोरी है कि इलेक्टोरल बॉन्ड थे तो आपको ट्रेल मिल रहा है मनी का... कि किस कंपनी ने दिया, कैसे दिया, कहाँ दिया."

"अब उसमें अच्छा हुआ, बुरा हुआ वो विवाद का विषय हो सकता है... इसकी चर्चा हो. मुझे जो चिंता है...मैं ये कभी नहीं कहता हूँ कि निर्णय में कुछ कमी नहीं होती है. निर्णय को... चर्चा कर सीखते हैं, सुधारते हैं. इसमें भी सुधार के लिए बहुत सम्भावनाएं हैं. लेकिन आज पूरी तरह काले धन की तरफ देश को धकेल दिया है. और इसीलिए मैं कहता हूँ... सब लोग पछतायेंगे... जब बाद में ईमानदारी से सोचेंगे... सब लोग पछतायेंगे."

चुनाव आयोग और आरबीआई ने शुरू से गंभीर चिंता जताई थी

इस योजना की शुरुआत करते हुए भारत सरकार ने कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड देश में राजनीतिक फ़ंडिंग की व्यवस्था को क्लीन बनाएंगे. प्रधानमंत्री मोदी ने भी हालिया साक्षात्कार में इस योजना के ज़रिए चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाने की बात कही है.

लेकिन शुरू से ही पारदर्शिता को लेकर चिंताएं लगातार उठाई जा रही थीं. और चिंताएं उठाने वाले विपक्षी राजनीतिक दल नहीं बल्कि चुनाव आयोग और रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया थे.

ग़ौरतलब है कि साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट के सामने दायर एक हलफ़नामे में चुनाव आयोग ने कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक फ़ंडिंग में पारदर्शिता को ख़त्म कर देंगे और इनका इस्तेमाल भारतीय राजनीति को प्रभावित करने के लिए विदेशी कॉर्पोरेट शक्तियों को आमंत्रण देने जैसा होगा.

चुनाव आयोग ने ये भी कहा था कि कई प्रमुख क़ानूनों में किए गए संशोधनों की वजह से ऐसी शेल कंपनियों के खुल जाने की संभावना बढ़ जाएगी, जिन्हें सिर्फ़ राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने के इकलौते मक़सद से बनाया जाएगा.

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बार-बार चेतावनी दी थी कि इलेक्टोरल बॉन्ड का इस्तेमाल काले धन के प्रसार, मनी लॉन्ड्रिंग, और सीमा-पार जालसाज़ी को बढ़ाने के लिए हो सकता है.

इलेक्टोरल बॉन्ड को एक 'अपारदर्शी वित्तीय उपकरण' कहते हुए आरबीआई ने कहा था कि चूंकि ये बॉन्ड मुद्रा की तरह कई बार हाथ बदलते हैं, इसलिए उनकी गुमनामी का फ़ायदा मनी-लॉन्ड्रिंग के लिए किया जा सकता है.

'सरकारी प्रभाव के बाहर जांच होनी चाहिए'

अंजलि भारद्वाज एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो सूचना का अधिकार, पारदर्शिता और जवाबदेही के मुद्दों पर काम करती हैं.

वे कहती हैं, "ये बिलकुल सही बात है कि आरबीआई और इलेक्शन कमीशन दोनों ने वित्त मंत्रालय को इलेक्टोरल बॉन्ड योजना आने से पहले ही चिट्ठियां लिखीं. ये सारी चिट्ठियां आरटीआई के तहत बाहर निकल कर आई हैं. इन चिट्ठियों में कहा गया कि किस तरह ये इलेक्टोरल बॉन्ड योजना काले धन को बढ़ावा देगी और किस तरह से ये योजना शेल कंपनियों के ज़रिये पैसे के हेरफेर को बढ़ावा देगी और किस तरह से ये मनी लॉन्डरिंग (काले धन को वैध बनाना) को बढ़ावा देगी."

भारद्वाज कहती हैं, "आरबीआई और इलेक्शन कमीशन ने चेतावनी दी थी और बार-बार मना किया था कि आप इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को मत लाइए. उसके बावजूद इस स्कीम को लाया गया और फिर सुप्रीम कोर्ट में भी इन सब चीज़ों पर चर्चा हुई. और अब जब ये सूचना निकल कर आ रही है तो वो यही ट्रेंड्स दिखा रही है कि कैसे संभावित शेल कम्पनियाँ बीजेपी को और अन्य राजनीतिक दलों को भी पैसे दे रही हैं. और घाटे में चल रही कम्पनियाँ बड़ी मात्रा में पैसे दे रही हैं तो वो कैसे हो रहा है."

भारद्वाज कहती हैं कि ये ट्रेंड सामने आ रहे हैं और एक स्वतंत्र जांच सच जानने के लिए इसलिए भी ज़रूरी है कि असल में क्या हो रहा था क्योंकि इसकी आशंका तो आरबीआई और चुनाव आयोग ने पहले ही जताई थी. उनके मुताबिक़ ये जाँच सरकार के प्रभाव से बाहर होनी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट का डेटा सार्वजनिक करवाना सक्सेस स्टोरी है'

राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं कि "पीएम मोदी का ये कहना कि इलेक्टोरल बॉन्ड की वजह से पता लगा कि किसने कितना दिया और मनी ट्रेल उपलब्ध है.. वहां तक बात ठीक है, लेकिन जो सवाल उठे हैं वो उससे भी आगे जाते हैं. वो सवाल ये है कि इतने सारे लोगों ने...जिन पर रेड हुए हैं...उन्होंने तुरंत इसके बाद बीजेपी को पैसा दिया. वो जो चीज़ है उसका जवाब पीएम ने नहीं दिया."

नीरजा चौधरी कहती हैं, "क्षेत्रीय दल जो राज्यों में सत्ता में हैं उन्हें भी पैसा मिला. ये न तो क्षेत्रीय दलों के लिए और न ही भाजपा के लिए आरामदायक स्थिति है. हमें सोचना होगा. इतने सालों से इस पर चर्चा चल रही है, इतनी रिपोर्ट्स आयीं और फिर चुनावी बॉन्ड की कल्पना की गई और अब हमें पता चला की ये समाधान नहीं है बल्कि इसने ज़्यादा दिक्क़तें पैदा की हैं. अब आपको ड्राइंग बोर्ड पर वापस जाना होगा."

बीबीसी ने नीरजा चौधरी से पूछा कि प्रधानमंत्री का ये कहना कि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना एक सक्सेस स्टोरी है, ये कहाँ तक ठीक है?

उन्होंने कहा, "इलेक्टोरल बॉन्ड एक सफलता की कहानी इस तरह है कि सर्वोच्च न्यायालय ने इसे सार्वजनिक कर दिया है. अब जनता को पता चल गया है कि क्या हुआ, किसने दिया, किसको दिया, किस वक़्त दिया. इसके मायने ये हैं कि एक तरह से पीएम सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का स्वागत कर रहे हैं."

'बॉन्ड बनाए ही गोपनीयता के लिए थे'

अंजलि भारद्वाज कहती हैं कि ये बड़ी विडम्बना है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस योजना को ख़ारिज ही इसीलिए किया क्योंकि इसमें पारदर्शिता ही नहीं थी और ये लोगों के जानने के अधिकार और उनकी अभिव्यक्ति और बोलने के अधिकार का उल्लंघन करता है.

भारद्वाज कहती हैं, "प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि ये तो पारदर्शिता हो गयी और ये सक्सेस स्टोरी है इलेक्टोरल बॉन्ड की. वो बॉन्ड बनाए ही इसलिए गए कि किसी को मालूम न चल पाए कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स के ज़रिये कौन किस राजनीतिक दल को पैसे दे रहे हैं."

उनके मुताबिक़ अब ये ज़रूर है कि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया जिसकी वजह से सूचना बाहर आई वरना पिछले छह साल में तो कोई भी सूचना लोगों को नहीं मिल रही थी, और अगर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला नहीं आता तो पर्दे के पीछे ये पूरा सिलसिला कायम रहता.

भारद्वाज कहती हैं, "मुझे लगता है सरकार इस बात का श्रेय नहीं ले सकती कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स स्कीम सक्सेस स्टोरी है और पारदर्शिता लाई क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने जबरन स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया से सूचना एक तरह से निकलवाई है क्योंकि कोशिश तो यही जारी रही कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद भी सूचना बाहर न आए. स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया तो चुनाव होने के बाद तक समय मांग रहा था जबकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ये जानने का अधिकार वोटरों को है कि किसने किस पॉलिटिकल पार्टी को पैसे दिए हैं."

एजेंसियों के दुरुपयोग का सवाल

इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी सार्वजनिक होने के बाद कई पैटर्न सामने आए हैं जिनको लेकर केंद्र सरकार और बीजेपी की कड़ी आलोचना हो रही है.

इन पैटर्न्स के मुताबिक़ कई निजी कंपनियों पर ईडी, सीबीआई या इनकम टैक्स विभाग की कार्रवाइयां हुईं और उसके बाद उन्होंने बीजेपी को करोड़ों रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड चंदे में दिए.

ऐसे पैटर्न भी हैं कि कंपनियों ने पहले चुनावी बॉन्ड दिए और बाद में उन पर जांच एजेंसियों की कार्रवाई हुई. विपक्षी पार्टियों ख़ासकर कांग्रेस का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड महज़ एक वसूली करने की योजना थी.

एएनआई को दिए इंटरव्यू में प्रधानमंत्री मोदी ने इस मुद्दे पर भी बात की. उन्होंने कहा कि देश में तीन हज़ार कंपनियों ने इलेक्टोरल बॉन्ड दिए हैं जिनमें से 26 कम्पनियाँ ऐसी हैं जिन पर कार्रवाई हुई है.

उन्होंने कहा, "तीन हज़ार डोनर हैं उसमें से सिर्फ़ 26 और उनमें से 16 कम्पनियाँ ऐसी थीं...छापा जब लगा..उस समय बॉन्ड ख़रीदा. कोई जोड़ सकता है इसको. अगर बॉन्ड खरीदा... लोग ये जोड़ रहे हैं... उसकी विशेषता ये है कि ये जो 16 कंपनियों ने बॉन्ड ख़रीदा उसमें से 37 पैसा अमाउंट बीजेपी को डोनेशन में मिला है. 63 पर्सेंट बीजेपी के विरोधी पार्टियों को मिला है."

मोदी ने कहा, "इसका मतलब की 63 पर्सेंट पैसा विपक्ष के पास जाए और आप आरोप हम पर लगाएं...लेकिन उनको गोलमोल बोलना है और भाग जाना है."

अंजलि भारद्वाज कहती हैं, "सीधी से बात है कि जो सारी ये कम्पनियाँ हैं जिनके ऊपर रेड चल रहे थे ईडी, सीबीआई या आईटी डिपार्टमेंट के इन्होंने बीजेपी को जो पैसे दिए हैं उस पर ये सवाल उठ रहा है कि क्या वो पैसे वसूली के रूप में आए? क्या उन पर रेड इसलिए हुए ताकि वसूली की जा सके. या जिनके ऊपर पहले से रेड चल रही थी क्या उन्होंने इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिये पैसे देकर कार्रवाई और जाँच बंद कराने की कोशिश की."

भारद्वाज कहती हैं कि समझने की बात ये है कि और उन कंपनियों ने किसी विपक्षी पार्टी को पैसे दिए हों या न दिए हों या क्विड प्रो क्वो (कुछ पाने के एवज़ में कुछ देना) हुआ हो वो जांच का विषय है लेकिन जो बीजेपी के ऊपर जांच का विषय बनता है वो इसलिए बनता है कि वो केंद्र में सत्ताधारी पार्टी है और उनके पास ताक़त है कि वो इन सब जाँच एजेंसियों पर प्रभाव डाल सके.

वे कहती हैं, "तो चाहे बीजेपी को 37 या 40 फ़ीसदी के क़रीब पैसा ही मिला हो लेकिन वो जो पैसा मिला है क्या वो वसूली का था या जाँच पर प्रभाव डालने के लिए दिया गया ये सवाल बनता है. किसी और पार्टी को कंपनियों ने कितने भी पैसे दिए हों उससे इस सवाल का जवाब नहीं मिलता. जब जाँच होगी तो कंपनियों ने बीजेपी को पैसे दिए हैं, किस समय पर दिए हैं ये सब पता चलेगा."

यहाँ ये याद रखना ज़रूरी है कि 30 चरणों में 2018 से 2024 के बीच 16,518 करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे गए जिसमें से क़रीब 25 करोड़ रुपए के बॉन्ड ऐसे थे जो भुनाए नहीं गए.

हाल में सार्वजनिक की गई जानकारियों से पता चला कि बीजेपी को सबसे ज़्यादा छह हज़ार साठ करोड़ रुपए के बॉन्ड मिले.

क़रीब 1609 करोड़ रुपए के बॉन्ड तृणमूल कांग्रेस को, 1421 करोड़ रुपए के बॉन्ड कांग्रेस, 1214 करोड़ रुपए के बॉन्ड भारत राष्ट्र समिति और 775 करोड़ रुपए के बॉन्ड बीजू जनता दल को मिले. (bbc.com/hindi)

 

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