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‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : यूपीएससी के नतीजे, और देश की सबसे बड़ी सेवाओं की दशा और दिशा भी देखें
17-Apr-2024 3:46 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : यूपीएससी के नतीजे, और देश की सबसे बड़ी सेवाओं की दशा और दिशा भी देखें

देश में सरकारी नौकरियों के लिए होने वाले सबसे बड़े इम्तिहान यूपीएससी के नतीजे कल आए, और उनसे निकलकर, आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, आईआरएस जैसी कई नौकरियों में लोग पहुंचेंगे। इसे देश में सबसे महत्वपूर्ण इम्तिहान मानना इसलिए जायज है कि इससे चुने गए लोग हिन्दुस्तान की सरकारी नौकरियों में सबसे अधिक ताकत, जिम्मेदारी, और अधिकार की कुर्सियों पर पहुंचते हैं। ऐसा माना जाता है कि देश और प्रदेशों के नेता अपने इलाकों को जितना ढाल सकते हैं, उतने का उतना ये आला अफसर भी कर सकते हैं, या करते हैं। जहां कहीं निर्वाचित जनप्रतिनिधि कमजोर रहते हैं, या कमसमझ रहते हैं, वहां पर ये अफसर हावी भी हो जाते हैं। कायदे से तो लोकतंत्र में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को नीतियां बनाना चाहिए, और अफसरों को उन पर अमल करना चाहिए। लेकिन असल जिंदगी में देखने में यह आता है कि मंत्री बने हुए निर्वाचित जनप्रतिनिधि सरकारी कामकाज के अमल वाले कमाऊ हिस्से में जुट जाते हैं, और नीतियां बनाने के कागजी और सैद्धांतिक कामों को वे अफसरों पर छोड़ देते हैं, और इस तरह लोकतंत्र की दशा और दिशा तय करने में अफसरों का बहुत बड़ा हाथ हो जाता है। यह आदर्श स्थिति तो नहीं है, लेकिन हिन्दुस्तानी लोकतंत्र की आज की हकीकत यही है।

अब इन बड़ी नौकरियों की बात करें जहां तक पहुंचना हर आम हिन्दुस्तानी बच्चे के मन की हसरत रहती है, और वे बचपन से ही कुछ पूछने पर कलेक्टर बनने की बात कहते हैं, इन नौकरियों का हाल खासा बदहाल है, और आजादी के पहले से शुरू हुई भारत में नौकरशाही की इस व्यवस्था पर दुबारा गौर करने की जरूरत भी है। इन बड़ी नौकरियों को पाने वाले लोगों की बात करें, तो करीब आधी सदी से तो हमारा देखा हुआ है ही कि ये अपने आपमें एक कानून बन जाती हैं, और इन पर काबिज अफसर सत्तारूढ़ नेताओं के साथ मिलकर भ्रष्टाचार और लूटपाट की भागीदारी फर्म चलाने लगते हैं। लेकिन चूंकि इन अफसरों के हाथ में सरकारी फाईलें रहती हैं, रिकॉर्ड रहते हैं, और सूचना के अधिकार लागू हो जाने के बावजूद किसी के लिए सूचना जुटा पाना आसान नहीं रहता है, इसलिए इन अफसरों के भयानक बड़े पैमाने के संगठित और व्यापक भ्रष्टाचार को पकड़ पाना भी आसान नहीं रहता। राज्यों में आर्थिक अपराधों की जांच के लिए जो एजेंसी रहती है, या सरकारी भ्रष्टाचार को रोकने के लिए जो एजेंसी बनती है, उसे देखें तो कुछ अपवादों को छोडक़र उसके घेरे में इन अखिल भारतीय सेवाओं के कोई भी लोग नहीं आते। इतने बड़े अफसर तभी फंसते हैं जब सत्तारूढ़ पार्टी बदलती है, या केन्द्र और राज्य में एक बड़ा टकराव होता है, जैसा कि छत्तीसगढ़ के मामले में अभी दोनों चीजें एक साथ हुई हैं, और पिछली कांग्रेस सरकार के पसंदीदा कुछ अफसरों पर इस भाजपा सरकार के तहत कुछ जुर्म दर्ज हुए हैं, लेकिन इस राज्य की मिसाल को भी देखें, तो राज्य बनने से अभी तक किसी भी अखिल भारतीय सेवा के अफसर को इस राज्य में शायद ही कोई सजा हो पाई हो। चौथाई सदी में हजार-पांच सौ अफसर आए-गए होंगे, लेकिन भ्रष्ट लोगों की बहुतायत के बावजूद एक भी व्यक्ति को सजा न मिल पाने से यह पता लगता है कि मौजूदा व्यवस्था में इन बड़े अफसरों को कोई सजा हो पाना आसान नहीं है। देश की सबसे ताकतवर और असाधारण जांच एजेंसी, ईडी, के घेरे में आए इक्का-दुक्का अफसर जेल में हैं, लेकिन अदालतों से सजा मिलने के जो आंकड़े हैं, उन्हें देखें तो इन अफसरों को कैद होने की संभावना शून्य है, और जमानत न मिलने पर जितने वक्त इन्हें जेल में रहना पड़ रहा है, बस वही एक किस्म से इनकी सजा कही जा सकती है। नौकरशाही और बाकी अफसरशाही का जो मॉडल पिछले पांच बरस में छत्तीसगढ़ में सामने आया है, और देश के दूसरे कई प्रदेशों में भी इन आला अफसरों ने अपने सत्तारूढ़ नेताओं को बचाने के लिए कानून से जिस तरह के बड़े-बड़े टकराव लिए हैं, उनसे यह साबित होता है कि ये अखिल भारतीय सेवाएं अब अपनी मौजूदा शक्ल में लोकतंत्र का भला करने लायक नहीं रह गई है। हो सकता है कि यह आज भी देश में मौजूद एक बेहतर सरकारी सेवा-व्यवस्था हो, लेकिन यह अपने आपमें इतनी खराब, भ्रष्ट, बेअसर, और जनकल्याण से कोसों दूर हो चुकी है कि इससे अधिक उम्मीद नहीं की जा सकती। अब चूंकि नई कोई व्यवस्था आने तक गुलाम भारत के समय से चली आ रही यही व्यवस्था जारी रहेगी, और हर बरस इसमें सैकड़ों नए लोग बढ़ते चलेंगे, इसलिए अब यह सोचना चाहिए कि नए आने वाले लोगों की ट्रेनिंग किस तरह की जाए ताकि वे जुर्म की दुनिया बन चुकी इन नौकरियों में पहुंचकर मुजरिम न बनें, और जनकल्याण से जुड़ सकें। दिक्कत यह है कि अधिकतर प्रदेशों में सत्तारूढ़ पार्टियां और उनके नेता सरकारी खजाने को दुह लेना चाहते हैं, और इसमें उन्हें अफसरों के भी भ्रष्ट होने की जरूरत पड़ती है, और अफसर अपने आपको एयर इंडिया के पिछले प्रतीक चिन्ह, सेवा-खातिरी में मौजूद झुके हुए महाराज की तरह पेश रखते हैं। इन नौकरियों में आने वाले नए लोगों को यह भी समझना होगा कि न तो इस देश की निर्वाचित सरकारें कोई अच्छा आदर्श पेश कर पा रही है, न ही उनकी नौकरियों के उनसे पुराने अफसर कोई अच्छी चीज सिखाने की हालत में हैं। नेता और अफसर ये दोनों ही आमतौर पर जेल जाने के लायक रहते हैं, लेकिन भ्रष्टाचार और जुर्म को छुपाने में पूरी ताकत लगाकर वे किसी सजा को दूर धकेलते रहते हैं। 

आज जब यूपीएससी के चुने गए नौजवानों के नाम, उनकी तस्वीरें, और उनके इंटरव्यू चारों तरफ छप रहे हैं, तभी यह अप्रिय चर्चा करना भी जरूरी है ताकि इन नए लोगों को यह ध्यान रहे कि उन्हें अपने सीनियर अफसरों से यह सीखना है कि उन्हें क्या-क्या काम नहीं करने हैं, और क्या-क्या नहीं बनना है। दरअसल इन ताकतवर ओहदों के हाथ इतनी बड़ी कमाई का जरिया रहता है कि मामूली भ्रष्टाचार करके भी एक आईएएस या आईपीएस अपनी नौकरी पूरी करने के पहले सैकड़ों करोड़ रूपए कमा चुके रहते हैं। अब इतने बड़े लालच को किसी से कैसे छुड़ाया जा सकता है, इसका कोई समाधान हमारे पास नहीं है। लेकिन समाधान न हो, तो समस्या पर भी चर्चा न की जाए, ऐसा तो है नहीं, इसलिए हम इस मुद्दे को उठा रहे हैं, और इन बड़ी नौकरियों को पूरा करके जो लोग ईमानदार रहकर निकल चुके हैं, वे लोग शायद इस पर कुछ रौशनी डाल सके कि बेहतरी का रास्ता किधर से होकर निकल सकता है। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)           

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