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‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : मुजरिमों के बेवफा साथी बुरे कहे जाएं, या अच्छे?
25-Apr-2024 3:37 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : मुजरिमों के बेवफा साथी बुरे कहे जाएं, या अच्छे?

राजस्थान के पिछले कांग्रेसी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के एक सबसे भरोसेमंद ओएसडी रहे लोकेश शर्मा ने लोकसभा चुनाव मतदान के बीच गहलोत पर उनके कार्यकाल के दौरान गंभीर गलत काम करने के आरोप लगाए हैं। उन्होंने यह तक कहा है कि गहलोत ने पार्टी के भीतर अपने प्रतिद्वंद्वी सचिन पायलट के फोन टेप कराए थे। उन्होंने यह भी कहा कि किस तरह से मुख्यमंत्री सचिवालय, और पुलिस-प्रमुख जैसे लोग फोन टैप करने में शामिल थे। लोकेश शर्मा ने यह भी कहा कि पेपर लीक कराने के मामले में भी गहलोत सरकार शामिल थी। यह तो राजस्थान का ताजा मामला हुआ, छत्तीसगढ़ में कल तक कांग्रेस पार्टी में रहे एक मंझले नेता ने आज पिछले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर उद्योगपतियों से हजारों करोड़ रूपए रिश्वत लेकर उन्हें टैक्समाफी देने का आरोप लगाया है। इसी तरह दूसरे प्रदेशों में भी देखें तो जहां-जहां कोई सत्तारूढ़ पार्टी जब गर्दिश में पड़ती है, तो उसमें सत्ता के कई भरोसेमंद लोग तरह-तरह के भांडाफोड़ करते हैं। पश्चिम बंगाल में ममता बैनर्जी की तृणमूल कांग्रेस छोडक़र निकलने वाले बहुत से नेताओं ने भाजपा में जाने के बाद सरकार के भ्रष्टाचार का भांडाफोड़ किया है। 

अब सवाल यह उठता है कि सत्ता जब कोई भी गलत काम बिना कई लोगों के शामिल हुए नहीं कर सकती है, तो फिर वह, या उसके बड़े लोग किस तरह के हौसले के साथ अंधाधुंध, उगाही करने लगते हैं, जुर्म के दर्जे की साजिशें करने लगते हैं, और खतरा भी उठाते हैं? छत्तीसगढ़ के पिछले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस मायने में अब तक खुशकिस्मत बने हुए हैं कि उनके चारों तरफ के लोग ईडी के शिकंजे में आ चुके हैं, उनकी सरकार हांकने वाले अविश्वसनीय ताकतवर अफसर आज जेल में हैं, लेकिन किसी ने भूपेश बघेल के खिलाफ कोई बयान नहीं दिया है, कम से कम अब तक तो ऐसा सामने नहीं आया है। अब सवाल यह उठता है कि मुख्यमंत्री के दाएं हाथ से लेकर बाएं हाथ तक, उनके कानों से लेकर उनकी आंखों तक, तमाम लोग जब जेल में पहुंचे हुए हैं, या अदालत के कटघरे में हैं, तो नौबत इतनी खराब होने क्यों दी गई थी? देश के दूसरे प्रदेशों के मुकाबले छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी आज भी कुछ जाहिर और कुछ रहस्यमय वजहों से एक बनी हुई है, लेकिन राजस्थान के पिछले सीएम गहलोत के ओएसडी सरीखे एक-दो लोग भी अगर इस प्रदेश में निकल आएंगे, तो क्या होगा? लेकिन सत्ता से मिलने वाली बददिमागी बड़ी भयानक होती है। एक किसी शायर ने लिखा था- तुमसे पहले ओ जो इक शख्स यहां तख्त-नशीं था, उसको भी अपने खुदा होने पे इतना ही यकीं था। 

न सिर्फ सरकारी भ्रष्टाचार के मामले में बल्कि सरकारी बददिमागी और राजनीतिक रंजिशों के मामले में भी लोगों को अक्ल नहीं आती है कि किसी दिन उनकी सत्ता नहीं भी रहने वाली है। ऐसा इमरजेंसी के दौरान भी हुआ था जब इंदिरा और उनके तानाशाह बेटे ने यह मान लिया था कि आपातकाल की ताकत जिंदगी भर रहने वाली है। जिन लोगों ने छत्तीसगढ़ के पिछले पांच बरस देखे हैं, उन्हें भी सत्ता के कुछ ऐसे ही यकीं देखने मिले थे। और आज देश के कई नेताओं के बयान सुनें तो भी यही लगता है कि उन्हें कभी सत्ता खत्म होने की कोई आशंका है ही नहीं। जबकि दुनिया में बहुत बड़े-बड़े राजा-महाराजा आए-गए हो गए हैं, जिनके आज कोई नामलेवा भी नहीं बचे हैं। कुछ इसी अंदाज में लोग भ्रष्टाचार में भी लगे रहते हैं। कई पार्टियां तो ऐसी रहती हैं कि सत्ता में आते ही पिछली सरकार के भ्रष्ट तंत्र का इस्तेमाल तुरंत शुरू कर देती हैं, और वहां से आगे फिर अपनी कल्पनाशीलता दिखाती हैं, नए-नए रास्ते और निकालती हैं। सरकार बनती नहीं हैं कि उसके भ्रष्ट होने की पुख्ता कहानियां हवा में तैरने लगती हैं। उन लोगों को देखकर लगता है कि या तो ये तमाम बदनामी के साथ सारे राजनीतिक पूंजीनिवेश का मुनाफा पांच बरस में निकाल लेना चाहते हैं। और ऐसा करने के लिए जाहिर है कि उन्हें आसपास के बहुत से लोगों को राजदार बनाना पड़ता है, और ऐसे ही राजदार आगे जाकर किसी दूसरी पार्टी में दाखिल होकर, या अदालत में वायदा माफ गवाह बनकर जुर्मों का जिक्र करने लगते हैं, सुबूत देने लगते हैं। हमको इसमें नुकसान का कुछ नहीं दिखता। जो नेता और अफसर जुर्म करते हैं उनके खिलाफ बेवफाई करने वालों को हम गद्दार कहना नहीं चाहेंगे क्योंकि उससे देश का और कानून का तो भला ही हो रहा है। और किसी एक व्यक्ति के जुर्म के साथ वफादार रहने के बजाय देश के कानून के साथ वफादारी बेहतर है। ऐसा जितना अधिक से अधिक हो, जनता के हित में उतना ही अच्छा है। और जब सौ-पचास लोग अपने पुराने साथियों के भांडाफोड़ की वजह से जेल जाएंगे, तभी लोगों का हौसला गिरोहबंदी करके जुर्म करने पर से कम होगा। इंसानी रिश्तों में नेक काम के लिए अगर वफादारी निभती है, तो वह काम की है, जब नेता, पार्टियां, और सरकारें संगठित मुजरिम गिरोहों की तरह काम करने लगते हैं, तब तो उनके बीच के बेवफा लोग ही लोकतंत्र के प्रति वफादार कहे जा सकते हैं। इसलिए हम ऐसी किसी निजी वफादारी की कमी गहलोत के ओएसडी के भांडाफोड़ में नहीं देखते। चारों तरफ इसी तरह का भांडाफोड़ होते रहना चाहिए, और उसी से सत्ता के जुर्म घट सकते हैं।  

 (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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