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मतदान पर्व पर छूट के ऑफर
मतदान का प्रतिशत बढऩे से संबंधित जिले के निर्वाचन अधिकारियों को आयोग की शाबाशी मिलती है। सामाजिक संगठनों, युवाओं, महिला समूहों के बीच स्वीप के जरिये छत्तीसगढ़ में लोगों को जागरूक करने का अभियान इन दिनों हर जिले में चल रहा है। इसके लिए कई नारों में एक यह भी है- मतदान का पर्व, देश का गर्व।
दो विधानसभा क्षेत्रों बिलासपुर लोकसभा की कोटा सीट और कोरबा लोकसभा की मरवाही सीट में बंटे जीपीएम (गौरेला-पेंड्रा-मरवाही) में लगेगा कि यहां मतदान सिर्फ नाम का पर्व नहीं है। सचमुच पर्व जैसा मनाएं, ऐसी तैयारी हो रही है। दशहरा दिवाली पर बाजार निकलें तो जगह-जगह छूट के ऑफर दिखाई देते हैं। इस बार यही ऑफर वोट देने पर मिलने वाला है। जिले के चेम्बर ऑफ कामर्स ने बीते दिनों बैठक ली और उसके बाद घोषणा की है, मतदान करने वालों को खरीदारी में 10 प्रतिशत की छूट दी जाएगी। इससे जुडऩे वाले दुकानों की घोषणा भी जल्द कर दी जाएगी। इस जिले में 7 मई को मतदान है। इसके बाद मतदाता पहचान पत्र और उंगली की स्याही दिखाकर सामानों में छूट हासिल कर सकते हैं।
वैसे यह आइडिया अकेला नहीं है। देश की जिन 88 सीटों में 26 अप्रैल को मतदान हुआ है उनमें से एक राजस्थान की जोधपुर लोकसभा सीट भी है। वहां के एक मुख्य बाजार में भी इसी तरह की छूट देने की खबर चल रही है। लेकिन, खास तौर पर जिक्र कर होना चाहिए ‘सोशल’ नाम के एक फूड चेन, रेस्तरां का। यहां वोट डालकर पहुंचने वालों को अगले 24 घंटे तक एक मग बीयर फ्री मिलेगी और उससे ज्यादा जो खायेंगे-पियेंगे तो उसमें 20 प्रतिशत का डिस्काउंट मिलेगा। कुछ मतदाताओं को यह जानकर अफसोस हो सकता है कि इस रेस्तरां की कोई ब्रांच छत्तीसगढ़ में नहीं है। सिर्फ नोएडा, बेंगलूरु, हैदराबाद, पुणे, इंदौर, मुंबई, दिल्ली एनसीआर, चंडीगढ़ और कोलकाता के मतदाता इसका फायदा ले सकते हैं।
रुक-रुक कर उभरती आहत भावना
कांग्रेस से जितने भी इस्तीफे हो रहे हैं उनमें कई दूसरे कारणों के अलावा प्राथमिकता के साथ यह जरूर दर्शाया जा रहा है कि पार्टी ने अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन का निमंत्रण ठुकराकर गलत किया। इस कदम से हिंदुओं की भावनाओं को कुचला गया। छत्तीसगढ़ किसान कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष रामविलास साहू ने कल अपने पद और पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज को भेजे गए पत्र में भी उन्होंने पार्टी छोडऩे के कई कारणों में सबसे पहला यही बताया है।
राम मंदिर की स्थापना 22 जनवरी को हुई थी। इस घटना को अब तीन माह से अधिक बीत चुके हैं। इसके पहले ही कांग्रेस नेतृत्व ने उद्घाटन समारोह का निमंत्रण ठुकरा दिया था। पर, ऐसा लगता है कि कांग्रेस छोडऩे वालों की भावनाएं तत्काल आहत नहीं हुई। धीरे-धीरे हो रही है। और यदि भावनाएं आहत उसी वक्त हो गई थीं, उसके बावजूद पार्टी नहीं छोड़ पाए थे, तो यह बहुत बड़ी बात है। पार्टी के फैसले से वे नाराज थे, उसके बावजूद बने रहे। दिलचस्प यही देखना होगा कि मतदान के तीनों चरणों के निपट जाने के बाद कितने लोग कांग्रेस को छोड़ेंगे।
बयानों से समझिए चुनावी रुझान
हाल ही में कांग्रेस-भाजपा के कुछ नेताओं के वीडियो सामने आए हैं, जिसमें उनके तल्ख अंदाज की आलोचना हो रही है। महानदी,इंद्रावती भवन में बैठे कुछ आईएएस अफसर और मीडियाकर्मियों के बीच जब रुझान को लेकर चर्चा हुई तो वहां मौजूद एक अफसर ने कहा कि बयानों से समझिए कि किसकी हालत टाइट है। एक नेताजी ने मीडियाकर्मी से ही दुर्व्यवहार किया तो दूसरे का समाज के लोगों के साथ बातचीत का तल्ख रवैया सामने आया है। इन दोनों ही जगहों पर प्रत्याशियों की हालत मुश्किल बताई जा रही है।
कबाड़ में जुगाड़
एक नए नवेले विधायक महोदय कबाड़ में जुगाड़ खोज रहे है। आमदनी के लिए पुलिस वालों पर दबाव बना रहे है कि उनके इलाके में कबाड़ चलने दिया जाए। अवैध शराब बेचने वालों पर कार्रवाई न करें। यार्ड में छापा न करें। रेत की गाडिय़ों को न रोकें। इससे पुलिस और प्रशासन वाले परेशान हो गए हैं क्योंकि सरकार का दबाव है कोई भी गैर कानूनी काम नहीं होना चाहिए। पिछली सरकार की तरह सिस्टम नहीं चलेगा। लेकिन नए नवेले विधायकों को इससे कोई मतलब नहीं। वे तो सिर्फ अपने जुगाड़ में लगे हुए। इलाके के छोटे छोटे ठेकेदार भी परेशान हैं।
चिंतामणि की चिंता
सरगुजा सीट से भाजपा प्रत्याशी चिंतामणि महाराज को अजीब स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा के कई स्थापित नेता उन्हें नापसंद कर रहे हैं। इसका नजारा कई जगह देखने को मिल रहा है। प्रधानमंत्री के स्वागत के बैनर-पोस्टर से चिंतामणि महाराज गायब रहे।
दिलचस्प बात यह है कि प्रधानमंत्री, चिंतामणि महाराज के पक्ष में सभा लेने आए थे। दरअसल, कांग्रेस से आए चिंतामणि महाराज को प्रत्याशी बनाना पार्टी के कई नेताओं को नहीं पसंद आ रहा है। चिंतामणि महाराज को इसका अंदाजा भी है। यही वजह है कि वो स्थापित नेताओं के बजाय अपनी खुद की टीम पर ज्यादा भरोसा कर रहे हैं। इन सबके बावजूद कांग्रेस बहुत ज्यादा फायदा उठा पाने की स्थिति में नहीं दिख रही है। पूर्व डिप्टी सीएम टी.एस. सिंहदेव प्रदेश से बाहर हैं। और दूसरे ताकतवर नेता अमरजीत भगत भी ज्यादा सक्रिय नहीं दिख रहे हैं। ऐसे में क्या होगा, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद पता चलेगा।