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मुख्यमंत्री लंबे समय तक अनुपस्थित नहीं रह सकते, यह राष्ट्रहित के खिलाफ : उच्च न्यायालय
30-Apr-2024 9:31 AM
मुख्यमंत्री लंबे समय तक अनुपस्थित नहीं रह सकते, यह राष्ट्रहित के खिलाफ : उच्च न्यायालय

नयी दिल्ली, 29 अप्रैल। दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि अरविंद केजरीवाल का गिरफ्तारी के बावजूद मुख्यमंत्री पद पर बने रहने का फैसला ‘निजी’ है; लेकिन इसका अभिप्राय यह नहीं है कि स्कूल जाने वाले विद्यार्थियों के मौलिक अधिकारों को रौंद दिया जाए।

उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि केजरीवाल की अनुपस्थिति एमसीडी (दिल्ली नगर निगम) विद्यालयों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को मुफ्त पाठ्यपुस्तकों, लेखन सामग्री और वर्दी के बिना पहला सत्र पूरा करने की अनुमति नहीं देती।

अदालत ने कहा कि दिल्ली जैसी व्यस्त राजधानी ही नहीं किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री का पद कोई औपचारिक पद नहीं है। उसने कहा कि यह एक ऐसा पद है जहां पदधारक को बाढ़, आग और बीमारी जैसी प्राकृतिक आपदा या संकट से निपटने के लिए सातों दिन 24 घंटे उपलब्ध रहना पड़ता है।

कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति पी.एस.अरोड़ा की पीठ ने कहा, ‘‘राष्ट्रीय हित और सार्वजनिक हित की मांग है कि इस पद पर रहने वाला कोई भी व्यक्ति लंबे समय तक या अनिश्चित समय के लिए संपर्क से दूर या अनुपस्थित न रहे। यह कहना कि आदर्श आचार संहिता के दौरान कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय नहीं लिया जा सकता अनपुयक्त है।’’

केजरीवाल को 21 मार्च को आबकारी नीति से जुड़े धनशोधन के मामले में गिरफ्तार किया गया था और वह सात मई तक न्यायिक हिरासत में हैं।

अदालत गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘सोशल जूरिस्ट’ की एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। एनजीओ का पक्ष अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने रखा। याचिका में नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत के बाद भी एमसीडी के विद्यालयों में विद्यार्थियों को शैक्षिक सामग्री और अन्य वैधानिक लाभों की आपूर्ति न होने का मुद्दा उठाया गया है।

एमसीडी के आयुक्त ने इससे पहले अदालत को बताया था कि स्थायी समिति गठित नहीं होने की वजह से यह सुविधाएं नहीं दी गई क्योंकि उसी के पास पांच करोड़ रुपये से अधिक के ठेकों देने का अधिकार प्राप्त है।

उच्च न्यायालय ने कहा कि चूंकि एमसीडी स्कूलों के छात्र संवैधानिक और वैधानिक अधिकारों के तहत मुफ्त पाठ्यपुस्तकें, लेखन सामग्री और वर्दी पाने के हकदार हैं। स्कूल जल्द ही गर्मियों की छुट्टियों के लिए बंद होने वाले हैं, इसलिए एमसीडी आयुक्त को निर्देश दिया जाता है कि पांच करोड़ रुपये की व्यय सीमा से बाधित हुए बिना दायित्वों को तुरंत पूरा करने के लिए आवश्यक खर्च उठाए।

अदालत ने कहा, ‘‘हालांकि, एमसीडी आयुक्त द्वारा किया गया व्यय वैधानिक ऑडिट के अधीन होगा।’’ एमसीडी आयुक्त को 14 मई तक एक नयी स्थिति रिपोर्ट भी दाखिल करने के लिए कहा गया है।

अदालत ने कहा कि दिल्ली के शहरी विकास मंत्री सौरभ भारद्वाज के इस बयान में काफी हद तक सच्चाई है कि एमसीडी आयुक्त की वित्तीय शक्ति में किसी भी वृद्धि के लिए मुख्यमंत्री की मंजूरी की आवश्यकता होगी और यह एक स्वीकारोक्ति के समान है कि दिल्ली सरकार का काम मुख्यमंत्री की अनुपस्थिति के कारण रुका हुआ है।

अदालत ने कहा, ‘‘निस्संदेह, कोई नया नीतिगत निर्णय नहीं लिया जा सकता है, लेकिन संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को हर दिन महत्वपूर्ण और तत्काल निर्णय लेने पड़ते हैं। उदाहरण के लिए, एमसीडी के विद्यालयों में मौजूदा नीतियों के अनुसार मुफ्त पाठ्यपुस्तकें, लेखन सामग्री और वर्दी बांटना और साथ ही टूटी कुर्सियों और मेजों को बदलना एक जरूरी और तत्काल लिया जाने वाला निर्णय है जिसमें कोई देरी नहीं होती है और जो आदर्श आचार संहिता के दौरान निषिद्ध नहीं है।’’

पीठ ने कहा कि मुख्यमंत्री की अनुपलब्धता या स्थायी समिति का गठन न होना या दिल्ली नगर निगम अधिनियम के कुछ प्रावधानों का अनुपालन न करना स्कूल जाने वाले बच्चों को उनकी मुफ्त पाठ्यपुस्तकें, लेखन सामग्री और वर्दी तुरंत प्राप्त करने में रोड़ा नहीं बन सकता।

अदालत ने कहा, ‘‘मुख्यमंत्री को गिरफ्तार किए जाने और इस अदालत की एकल पीठ द्वारा उनकी याचिका खारिज किए जाने के बावजूद पद पर बने रहने का निर्णय उनका व्यक्तिगत निर्णय है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि यदि मुख्यमंत्री उपलब्ध नहीं हैं, तो छोटे बच्चों के मौलिक अधिकारों को रौंच दिया जाएगा और वे मुफ्त पाठ्यपुस्तकों, लेखन सामग्री और वर्दी के बिना पहला सत्र (एक अप्रैल से 10 मई) गुजारेंगे।’’

दिल्ली सरकार के वकील ने कहा था कि स्थायी समिति के गठन का मुद्दा उच्चतम न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है, जिसने फैसला सुरक्षित रख लिया है।

पीठ ने कहा कि समिति की अनुपस्थिति से उत्पन्न शून्यता को दूर करने के लिए, एमसीडी ने जनवरी में एक प्रस्ताव पारित किया कि समिति के सभी कार्य सदन द्वारा किए जाएंगे जब तक कि इसका विधिवत गठन न हो जाए।

अदालत ने इस तथ्य पर न्यायिक संज्ञान लिया कि वर्तमान एमसीडी सदन ने ‘‘पिछले एक साल में शायद ही कोई कार्य किया है’’।

पीठ ने कहा कि दिल्ली सरकार को एमसीडी सदन में स्वत: संज्ञान प्रस्ताव लाने से कोई नहीं रोका, जिसमें आयुक्त को पाठ्यपुस्तकों, लेखन सामग्री और वर्दी के लिए भुगतान करने के लिए अधिकृत किया जा सके।

अदालत ने कहा, ‘‘नतीजतन, दिल्ली सरकार के वकील का अन्य संस्थानों पर दोषारोपण करना ‘घड़ियाली आंसू बहाने’ के अलावा और कुछ नहीं है।’’

पीठ ने कहा कि यह दलील कि ‘‘सदन की सहमति लेने से लोकतांत्रिक नियंत्रण सुनिश्चित होगा’’ एक गलत धारणा है क्योंकि यह प्रतिवाद का मामला नहीं है कि ऐसा व्यय नहीं किया जाना चाहिए।

अदालत ने कहा कि उनका एकमात्र निवेदन यह है कि एमसीडी आयुक्त को अपनी पहल पर मुफ्त पाठ्यपुस्तकों, लेखन सामग्री और वर्दी के लिए ठेका नहीं देना चाहिए क्योंकि यह पांच करोड़ रुपये से अधिक है।

पीठ ने कहा, ‘‘परिणामस्वरूप, वास्तविक मुद्दा ‘शक्ति’, ‘नियंत्रण’, ‘क्षेत्र प्रभुत्व’ और ‘श्रेय कौन लेता है’ का है।’’

इसमें कहा गया है कि स्कूल जाने वाले बच्चों को मुफ्त पाठ्यपुस्तकें, लेखन सामग्री और वर्दी प्राप्त करना न केवल शिक्षा का अधिकार अधिनियम और आरटीई नियमों के तहत एक कानूनी अधिकार है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21 ए के तहत मौलिक अधिकार का भी हिस्सा है।

अदालत ने कहा, ‘‘ दिल्ली सरकार की तत्परता से कार्य करने और समस्या की तात्कालिकता पर प्रतिक्रिया देने में असमर्थता, एमसीडी स्कूलों में नामांकित छात्रों की दुर्दशा के प्रति उसकी उदासीनता को दर्शाती है और यह छात्रों के मौलिक अधिकारों का जानबूझकर उल्लंघन है।’’  (भाषा)

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