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नयी दिल्ली, 15 जून। पर्यावरणविद् सुनीता नारायण ने कहा है कि भारत जलवायु वार्ता में ‘ग्लोबल साउथ’ की आवाज बनकर और उसके द्वारा सामना की जा रही चुनौतियों को प्रस्तुत कर जलवायु वार्ता में ‘‘कहीं बड़ी’’ भूमिका निभा सकता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की योजना 2028 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने की है।
सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरोन्मेंट (सीएसई) की महानिदेशक नारायण ने यहां पीटीआई के साथ बातचीत में कहा कि जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के तहत जलवायु शिखर सम्मेलन एकमात्र ऐसा मंच है, जहां जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए बहुपक्षीय निर्णय लिए जा सकते हैं।
नारायण ने कहा, "दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों के लिए खड़े होने वाले देश के रूप में हम और भी बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। हमारे समक्ष चुनौतियां हैं। हम अपनी चुनौतियों के बारे में बात कर सकते हैं उन्हें दबा नहीं सकते और हम विश्व को आगे बढ़ने का बेहतर रास्ता ढूंढने में मदद कर सकते हैं। हम नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभा सकते हैं।"
दुबई में, सीओपी-28 में मोदी ने अपने संबोधन में 2028 में जलवायु सम्मेलन की भारत के मेजबानी करने की पेशकश की थी।
नारायण ने कहा, "निश्चित रूप से हमें सीओपी की मेजबानी करनी चाहिए और हमें वार्ता करनी चाहिए। देखिए, जलवायु परिवर्तन दुनिया की एक बहुत अनूठी समस्या है जिसे द्विपक्षीय स्तर पर बिल्कुल भी नहीं सुलझाया जा सकता। यह एक बहुपक्षीय मुद्दा है।"
उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन समाजवाद को फिर से सीखने का एक तरीका है क्योंकि यह एक साझा माहौल के बारे में है, जहां देशों को एक साथ रहना सीखना होगा, चाहे वे इसे पसंद करें या नहीं।
नारायण सीओपी-28 के अध्यक्ष सुल्तान अल जाबेर के सलाहकार पैनल की सदस्य थीं। अल जाबेर, तेल उत्पादन क्षेत्र की कंपनी अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी के प्रमुख भी हैं। कंपनी ने पर्यावरण कार्यकर्ताओं की इस चिंता को और बढ़ा दिया कि बड़े उद्योग पर्यावरण संकट के प्रति वैश्विक प्रतिक्रिया पर नियंत्रण स्थापित कर रहे हैं।
नारायण ने कहा, ‘‘मुझे भी बहुत आलोचना का सामना करना पड़ा... 'लेकिन वह एक तेल उत्पादक हैं। और आप एक तेल उत्पादक को सलाह क्यों दे रहे हैं?' लेकिन यह महत्वपूर्ण है। और, मुझे लगता है कि हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम एक आम सहमति बनाएं और कहें कि हम जीवाश्म ईंधन के साथ क्या करने जा रहे हैं? उसका इस्तेमाल कैसे घटाने जा रहे हैं।’’
आमतौर पर आर्थिक रूप से कम विकसित देशों या विकासशील देशों के संदर्भ में ‘ग्लोबल साउथ’ शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। ये देश खासकर एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में स्थित हैं। (भाषा)