विचार / लेख

खो-खो गुमनामी से अंतरराष्ट्रीय शिखर तक
18-Jun-2024 5:36 PM
खो-खो गुमनामी से अंतरराष्ट्रीय शिखर तक

- सुधांशु मित्तल

पीछा करने के सदियों पुराने रोमांचक खेल खो-खो की जड़ें भारतीय पौराणिक कथाओं में हैं, और यह खेल प्राचीन काल से प्राकृतिक घास या मैदान में नियमित रूप से पूरे भारत में खेला जाता है। खो मराठी शब्द है जिसका अर्थ है जाओ और पीछा करो। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों द्वारा खेले जाने वाला खो-खो प्राचीन भारत का पारंपरिक खेल माना जाता है और यह ग्रामीण क्षेत्रों में कबड्डी के बाद दूसरा रोमांचक टैग गेम है। खो-खो की उत्पत्ति भारत में मानी जाती है। इतिहास में इसका वर्णन मौर्य शासनकाल (चौथी ईसा पूर्व) में मिलता है। खो-खो खेल का वर्णन महाभारत काल में भी किया गया है।

विशेषज्ञों का मानना है कि महाभारत काल में खो-खो रथ पर खेला जाता था जहां प्रतिद्वंद्वी रथ पर सवार होकर एक-दूसरे का पीछा करते थे, जिसे रथेरा कहा जाता था। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि महाभारत युद्ध के 13वें दिन गुरु द्रोणाचार्य द्वारा बनाए गए चक्रव्यूह में प्रवेश करने के लिए अभिमन्यु ने खो-खो में इस्तेमाल की जाने वाली रणनीति का उपयोग किया था और खो-खो के कौशल का उपयोग करके कौरव वंश को भारी नुकसान पहुँचाया था।

लोकमान्य तिलक द्वारा गठित डेक्कन जिमखाना पुणे ने पहली बार इस खेल के विधिवत नियम तय किए। वर्ष 1923-24 में इंटर स्कूल स्पोर्ट्स कम्पटीशन की स्थापना की गई जिसके माध्यम से ग्रामीण स्तर पर खो-खो को लोकप्रिय करने के लिए कदम उठाए गए। वर्ष 1928 में भारत की पारंपरिक खेलों को प्रोत्साहित करने के लिए गठित अखिल भारतीय शारीरिक शिक्षण मंडल द्वारा वर्ष 1935 में इस खेल के नियमों को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया।

आधुनिक काल में खो-खो खेल को महाराष्ट्र के अमरावती के हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल के तत्वाधान में सबसे पहले 1936 के बर्लिन ओलंपिक्स में प्रदर्शित किया गया था तथा इस खेल को अडोल्फ हिटलर ने जमकर सराहा। वर्ष 1938 में अखिल महाराष्ट्र शारीरिक शिक्षण मंडल ने खो-खो खेल की दूसरी नियम पुस्तिका प्रकाशित की। इसी वर्ष अकोला में इंटर जोनल स्पोर्ट्स का आयोजन किया गया।

आज खो-खो भारत के सभी राज्यों में खेली जाती है तथा राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर खो-खो की अनेक प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं।

आजादी के बाद भारतीय खेलों को प्रोत्साहन देने के अंतर्गत 1955-56 में अखिल भारतीय खो-खो मंडल की स्थापना की गई। पुरुषों की पहली राष्ट्रीय खो-खो चैंपियनशिप का आयोजन 25 दिसंबर 1959 से 01 जनवरी 1960 को आयोजित किया गया जबकि महिलाओं की पहली राष्ट्रीय खो-खो चैंपियनशिप महाराष्ट्र के कोल्हापुर में 13 से 16 अप्रैल 1961 को आयोजित की गई। वर्ष 1964 में इंदौर, मध्य प्रदेश में आयोजित 5वीं नेशनल खो-खो चैंपियनशिप में व्यक्तिगत पुरस्कार शुरू किए गए। वर्ष 1966 में खो-खो फेडरेशन ऑफ इंडिया की स्थापना की गई तथा वर्ष 1970 में किशोर लडक़ों की पहली नेशनल खो-खो चैंपियनशिप का आयोजन किया गया जबकि वर्ष 1974 में किशोर लड़कियों की पहली नेशनल खो-खो चैंपियनशिप का आयोजन किया गया। 1982 में दिल्ली में आयोजित 9वीं एशियाई खेलों में खो-खो का डेमोंस्ट्रेशन मैच आयोजित किया गया। वर्ष 1987 में कोलकाता में आयोजित तीसरी साउथ एशियाई खेलों में खो-खो खेल को प्रदर्शित किया गया।

अंतरराष्ट्रीय खेलों में पहली बार वर्ष 1996 में खो-खो की पहली एशियाई खो-खो चैंपियनशिप आयोजित की गई, जिससे खो-खो को अंतरराष्ट्रीय खेल के रूप में लोकप्रियता मिली, जिससे आज यह खेल 36 से अधिक देशों में खेला जाता है।

वर्ष 1998 में पहला नेता जी सुभाष गोल्ड कप इंटरनेशनल खो-खो टूर्नामेंट का आयोजन किया गया। खो-खो को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रोत्साहित करने के लिए जुलाई 2018 में इंटरनेशनल खो-खो फेडरेशन का गठन किया गया जिसका हेडक्वार्टर लंदन में है। लंदन में पहली इंटरनेशनल खो-खो चैंपियनशिप वर्ष 2018 में आयोजित की गई।

आज खो-खो भारत और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक रूप से खेला जाने वाला खेल है। यह विभिन्न अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों का हिस्सा है जिसमें लगभग 20 देशों की राष्ट्रीय खो-खो टीमें हैं। ऐसे गौरवशाली इतिहास के साथ खो-खो की लोकप्रियता आने वाले वर्षों में भी बढ़ती रहेगी।
(लेखक इंटरनेशनल खो-खो फेडरेशन के अध्यक्ष हैं।)

अन्य पोस्ट

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news