विचार / लेख
-अपूर्व गर्ग
अपने पोहे को जब वो दुनिया की सबसे निराली डिश बताते हैं तो बात समझ आती है पर उसी सांस में जब वो अपनी सिटी को सबसे स्मार्ट कहते हैं तो उनसे आग्रह करना पड़ता है जऱा हरा चश्मा तो दीजिये!
सीमेंट, ईंट, पत्थरों ढकी सिटी यदि स्मार्ट कहलाने लगे हरे चश्मे से हरियाली , शावर से बारिश, स्नो वल्र्ड जाकर बर्फबारी देखने के लिए तैयार रहना चाहिए।
ये कैसी स्मार्टनेस है जो जंगलों, तालाबों , नदियों, समुद्र को तबाह कर तैयार की जा रही है।
नतीजा 50 से 52 डिग्री पर फिर भी लालच भरे कुल्हाडिय़ों से दाँत हजारों-लाखों पेड़ों को निगलने तैयार।
न्यूज़ 18 की एक ख़बर है ‘13 दिन में 5 लाख गाडिय़ां शिमला पहुंचीं’।
गाडिय़ाँ आसानी से पहुँच रही हैं फोरलेन बन गए और भी आगे तक बन रहे पर किस कीमत पर ?
ओह्ह, ये क्या सवाल किया मैंने? खासकर उन लोगों से जो हरे कपड़े पहन कर सेल्फी -सेल्फी कर पर्यावरण दिवस मनाते हैं, ऐसे पर्यावरण प्रेमियों से चुभते सवाल क्यों हो? पहले ही धूप की चुभन है ।।वैसे अब इन्हें चुभन कहाँ होती है ? शर्म तो आई ही नहीं कभी।।
घर एसी, गाड़ी एसी, दफ्तर एसी। नदियों का रुख इनकी ओर है सो पानी ही पानी , तालाब सुखाकर इनकी इमारतें तनी हैं, जंगल में रिट्रीट है।
ऊपर से ये तबका जब पहाड़ जाता है तो पहाड़ से ऊंचा कचरे का ढेर छोडक़र आता है।
समाज के एक तबके ने समुद्र को समेट कर ‘रेसीडेंशियल’ बना डाला तो बेचारे तालाब चोरों को क्या ही कहें ?
गज़ब दुनिया है सामने तालाब चोर सम्मानित तो समुद्री डकैत आदरणीय नागरिक बने -ठने बैठे हैं ।।
ऊपर से जल-थल और पर्यावरण के सवाल पर न जाने कितने प्रकार के दिवस मनाते हैं।
मेरी ये पुख़्ता धारणा है जिस -जिस का दिवस मनाया जाता है उस-उस का दोहन किया जाता है।
शिक्षक दिवस से लेकर पर्यावरण दिवस तक यही होता आया।।
50 डिग्री ताप सहा जा सकता है पर पहाड़, पेड़, नदी, तालाब निगलने वाले जब बारिश न होने पर और मानसून के भटकने पर व्हाट्सएपिया ज्ञान देते हैं तो लगता है पहले ही तपी हुई तवे समान पीठ पर कोई हथौड़ा मार रहा है।।
सुनिए, मानसून कहीं भटका नहीं बल्कि वायरस से हैक हुआ है।।
अपने पेड़, अपने पहाड़-जंगल, नदी तालाब बचाने ही नहीं वापिस मांगने होंगे! आइये, तब तक पेड़ों से गले मिलकर रो लें।
शायद आंसुओं को देखकर बादल रहम करें।