ताजा खबर

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कुकर्मी बाबाओं संग रियायत से बढ़ता जुर्म का सिलसिला
05-Jul-2024 4:59 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  कुकर्मी बाबाओं संग रियायत से बढ़ता जुर्म का सिलसिला

हाथरस में एक तथाकथित सत्संग के पाखंड में जब भोले बाबा नाम के तथाकथित धार्मिक गुरू के पांवों की धूल लेने लोग दौड़े, तो इस बाबा की निजी सेना के लोगों ने उस भीड़ को मनमर्जी से सम्हाला, नतीजा यह हुआ कि भगदड़ में कुचलकर सवा सौ लोग मारे गए, अधिकतर महिलाएं और बच्चे हैं, और तकरीबन तमाम लोग गरीब भी हैं। एक भूतपूर्व सिपाही से नारायण साकार हरि भोले बाबा बनने वाले इस सफेदपोश बाबा की महिमा के आभा मंडल में उत्तरप्रदेश और आसपास के कुछ प्रदेशों के दलित, आदिवासी, और ओबीसी समुदाय के दसियों लाख लोग चकाचौंध थे, और बाबा की चरण रज से लेकर पांव धोने से निकले पानी की बूंदें पाने के लिए भी लोगों में अंधाधुंध मुकाबला चलता था। यह कहा जाता था कि इस धूल और पानी से लोगों की बीमारियां ठीक हो जाती हैं, और हमने दो दिन पहले इसी जगह लिखा भी था कि जब देश में जनता के इलाज की जिम्मेदारी सरकार पूरी नहीं कर पाती है, तब ऐसे पाखंडी पनपते हैं। अब इस बाबा के ‘सत्संग’के आयोजकों और सेवादारों की फौज की गिरफ्तारी शुरू हुई है, तो बाबा और उनके लोगों को बचाने सुप्रीम कोर्ट के एक वकील दौड़े चले आए हैं, जिन्होंने यह कहा है कि जांच पूरी होने तक गिरफ्तारी नहीं होना चाहिए क्योंकि भोले बाबा की किडनी खराब है, और वे हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज के मरीज हैं। अब सवाल यह उठता है कि जिसके पांवों की धूल से और पांव धोने से निकले पानी से भक्तों की बीमारियां ठीक होती हैं, वह खुद बीमारियों से घिरे होने की आड़ ले रहा है, फरार है, पुलिस के सामने आ नहीं रहा है।

अब इस बात को देश के दूसरे बलात्कारी, हत्यारे, और मुजरिम, अलग-अलग धर्म के बाबाओं से जोडक़र देखने की जरूरत है। केरल में भी एक धर्मगुरू नन से बलात्कार के आरोप झेल चुका है, एक वक्त एक शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती भी एक सनसनीखेज शंकररामन हत्याकांड में गिरफ्तार हो चुके हैं, जिन्हें बाद में अदालत ने 189 में से 89 गवाहों के पलट जाने के बाद सुबूतों के अभाव में छोड़ा था। पंजाब, हरियाणा के इलाके में भारी असर रखने वाले बाबा राम रहीम बलात्कार के मामलों में जेल काट रहे हैं, और कैद के दौरान पैरोल पाने का विश्व रिकॉर्ड बना चुके हैं, बड़ी अदालतें इस बलात्कारी और हत्यारे बाबा को सरकार से लगातार पैरोल मिलते चले जाने पर हक्का-बक्का हैं, लेकिन यह बाबा बलात्कारी-आसाराम की तरह अपने अंधभक्तों के बीच आज भी लोकप्रिय बना हुआ है, और वे किसी भी अदालती फैसले को अनदेखा करते हुए इसके लिए बावले हुए पड़े हैं। ऐसी हालत देश के अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग धर्मों के कई पाखंडियों को लेकर चलती रहती है, और इनके भक्तों को अक्ल कहीं दो हाथ दूर से भी छू नहीं जाती है। अब अंधभक्तों की बहुतायत वाले इस देश में तथाकथित चमत्कारी, झांसेबाज और धोखेबाज, बलात्कारी और हत्यारे बाबाओं का बड़ा ही बोलबाला है। कई बाबा प्रदेश के एक इलाके तक असर रखते हैं, और कई बाबा कई प्रदेशों तक। लेकिन देश-प्रदेश के नेताओं का हाल देखें तो हर बाबा के प्रभामंडल में चकाचौंध जनता से बहुत से नेताओं का चुनावी मकसद सधता है। इसलिए बाबाओं की अंधश्रद्धा में डूबे वोटरों को दुहने के लिए हर बाबा के इर्द-गिर्द अनगिनत नेता मंडराते हैं, और वे ऐसी बाबा मंडली के जुर्मों को अनदेखा करवाने का काम भी करते हैं। मध्यप्रदेश के एक बाबा की शोहरत तो पुलिस और न्यायपालिका पर एक फौलादी पकड़ की है, और वे किसी भी तरह का सौदा करवाने की शोहरत रखते हैं।

अब दूसरी तरफ देखें तो ऐसे बाबाओं के आश्रमों की जमीनों के अवैध कब्जों से लेकर वहां होने वाले किस्म-किस्म के जुर्म को अनदेखा करने का काम भी पुलिस और सरकार की तरफ से होते रहता है। अब इसी भोले बाबा को ले लें जिसकी महिमा को हाथरस की सवा सौ जिंदगियों का चढ़ावा चढ़ चुका है, तो इसके खिलाफ कई तरह के मामले दर्ज थे, और बीते बरसों में उनमें से हर मामले को दफन किया जा चुका है। खबरें बताती हैं कि कोई भी मामला अदालत का मुंह नहीं देख पाया है। राम रहीम या आसाराम जैसे बलात्कारी बहुत ही मजबूत शिकायतकर्ता, गवाह, और सुबूत रहने से सजा पा सके हैं, लेकिन तरह-तरह से झांसा देने वाले, चमत्कार के झूठे दावे करने वाले, बीमारियों को ठीक करने के नाम पर ठगने वाले बाबाओं के खिलाफ सरकारें जादू और चमत्कार के खिलाफ बने हुए कानून का इस्तेमाल नहीं करती है। दरअसल जहां कहीं मूढ़ अंधभक्तों की भीड़ बढ़ जाती है, वहां उनकी आस्था के केन्द्र के जुर्म दफन करने लायक मान लिए जाते हैं। नतीजा यह होता है कि हर दफन जुर्म के साथ बाबाओं का अधिक बड़ा जुर्म करने का हौसला बढ़ते चलता है, ठीक उसी तरह जिस तरह कि जेबकतरे को कई मामलों में न पकड़ाने पर लुटेरा बनने का हौसला मिलता है।

भारत के राजनीतिक माहौल में बड़े-बड़े मुजरिमों को बचाने का सत्ता का बड़ा लंबा इतिहास है। फिर यह भी है कि धार्मिक और आध्यात्मिक मुजरिमों को बचाने के मामले में जब सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों एक हो जाते हैं, तो फिर उन मुजरिमों के और बड़े-बड़े जुर्म होने की गारंटी सी हो जाती है। राम रहीम नाम के बाबा के साथ कितने ही बलात्कार, कत्ल, और भक्तों को बघिया करके उन्हें हिजड़ा बनाने के आरोप चलते ही आ रहे हैं, और भक्तों की दीवानगी भी जारी है। जब किसी बाबा को सवा सौ जिंदगियों का चढ़ावा चढ़ा है, तो अब यूपी सरकार को, पुलिस को, और मीडिया को याद पड़ रहा है कि इस बाबा के नाम पहले के कौन-कौन से जुर्म दर्ज हैं। अपने पांव की धूल को चमत्कारी रामबाण दवा की तरह स्थापित करने वाले ऐसे पाखंडियों का घड़ा फूटने में बड़ा वक्त लगता है, आमतौर पर लोग इनके कुकर्मों को अनदेखा करते चलते हैं।

हमें छत्तीसगढ़ के ही सैकड़ों बरस पुराने एक मठ के एक महंत का असली जुर्म याद पड़ता है जो पुलिस और अदालती रिकॉर्ड में लाने से रोक दिया गया था। आधी सदी पहले का यह मामला महंत के एक महिला से अवैध संबंधों का था, जिस महिला से पैदा अपने बेटे की किसी लड़ाई में महंत ने उसके दुश्मन को खड़े होकर लाठियों से पिटवाकर मरवाया था। वह अविभाजित मध्यप्रदेश का समय था, छत्तीसगढ़ के एक ब्राम्हण मुख्यमंत्री थे, और उन्हें यह लगा कि उनके सीएम रहते एक ब्राम्हण को फांसी हो जाए, वह ठीक नहीं होगा, इसलिए उन्होंने इस महंत से सार्वजनिक उपयोग के लिए बहुत सी जमीनें दान करवाईं, एक शैक्षणिक संस्था बनवाई, और कत्ल को रफा-दफा करवा दिया था। नतीजा यह निकला कि एक मठ के महंत को सजा होने से बाकी लोगों को जो सबक मिलना था, वह तो नहीं मिल पाया, और बाद में कई दूसरे महंत-पुजारी तरह-तरह के सेक्स-संबंधों में डूबे रहे, और ऐसे लोगों के नाबालिगों के साथ सेक्स के वीडियो अब दर्जनों लोग देख चुके हैं।

इस देश की सरकारों को, खासकर अफसरों को धर्म से जुड़े लोगों के जुर्म को अनदेखा करना बंद करना पड़ेगा। यह तो कोई जज अंधभक्ति से मुक्त निकल गए, तो कुछ बलात्कारी बाबाओं को कैद हो गई, लेकिन अधिकतर बलात्कारी धर्मगुरू अदालती कटघरों तक पहुंच ही नहीं पाते। यह लोकतंत्र के लिए एक धिक्कार सरीखी बात है। आज देश में वैज्ञानिक चेतना का जो हाल है, वह हिन्दुस्तान में बनी शुरूआती वयस्क फिल्म, चेतना, से भी अधिक बुरा है। और नेताओं को शायद यही अच्छा लगता है कि देश का लोकतंत्र जनचेतना से मुक्त रहे, ताकि उन्हें सतही मुद्दों में उलझाकर, मृगतृष्णा दिखाकर चुनाव जीते जा सकें, और वोटर राजनीतिक समझ से परे ही रहें। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news