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पाकिस्तान का गिलगित-बल्तिस्तान पर नया प्लान क्या है?
27-Sep-2020 6:13 PM
पाकिस्तान का गिलगित-बल्तिस्तान पर नया प्लान क्या है?

photo credit vasiq eqbal

-शुमाइला जाफ़री

16 सितंबर 2020 को पाकिस्तान के कुछ पत्रकारों ने इस्लामाबाद स्थित संघीय सचिवालय में कश्मीर और गिलगित-बल्तिस्तान मामलों के राज्य मंत्री अली अमीन गांडापुर से उनके कार्यालय में मुलाक़ात की थी.

पत्रकार शब्बीर हुसैन राज्य मंत्री अली अमीन से मिलने वालों में शामिल थे.

बाद में उन्होंने बीबीसी को बताया, "उस बैठक में अली अमीन ने ही यह सूचना दी कि 'पाकिस्तान की इमरान ख़ान सरकार ने सभी ज़िम्मेदार लोगों से राय-मशविरा करने के बाद यह निर्णय लिया है कि गिलगित-बल्तिस्तान को सभी संवैधानिक अधिकारों के साथ पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाये."

अली अमीन ने कहा कि सरकार इस क्षेत्र को पाकिस्तान की संसद में प्रतिनिधित्व भी देना चाहती है. शब्बीर हुसैन ने मंत्री के हवाले से बताया कि इमरान ख़ान जल्द ही इस क्षेत्र का दौरा करेंगे और इसकी औपचारिक घोषणा की जाएगी.

शब्बीर हुसैन द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, मंत्री ने उन्हें यह भी कहा कि गिलगित-बल्तिस्तान क्षेत्र में 'चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कोरिडोर' योजना के अंतर्गत एक स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन का काम ज़ल्द शुरू होगा. इससे क्षेत्र में स्वास्थ्य, पर्यटन, परिवहन और शिक्षा से जुड़ी बेहतर सुविधाएं पहुँचेंगी.

जम्मू और कश्मीर

भारत ने हमेशा ही पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर और गिलगित-बल्तिस्तान क्षेत्र में किसी भी तरह के बदलाव का विरोध किया है.

जुलाई में जब पाकिस्तान के कहा था कि वो इस क्षेत्र में चुनाव करायेगा, तब भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा था, "हम पाकिस्तान द्वारा जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के भारतीय क्षेत्रों में भौतिक परिवर्तन लाने के प्रयासों को पूरी तरह अस्वीकार करते हैं. पाकिस्तान ने जिन भारतीय क्षेत्रों पर कब्ज़ा किया है, ये उसे छिपाने की दिखावटी कोशिशों से ज़्यादा कुछ नहीं."

हालांकि भारत ने पाकिस्तान की ओर से आईं ताज़ा सूचनाओं पर अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.

साल 2019 में भारत सरकार ने जम्मू और कश्मीर राज्य के विशेषाधिकार को छीनकर, उसे केंद्र शासित प्रदेश में बदल दिया था और उसके एक हिस्से को दूसरे केंद्र शासित प्रदेश - लद्दाख के तौर पर विभाजित कर दिया था.

चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कोरिडोर का प्रवेश द्वार

1948 में हुए पहले कश्मीर युद्ध के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच विवादित वास्तविक सीमा रेखा खींची गई थी. उससे पहले गिलगित-बल्तिस्तान जम्मू-कश्मीर की पूर्व रियासत का ही हिस्सा था.

ऐतिहासिक विवरणों में कहा गया है कि ब्रिटिश सेना के एक अधिकारी, जो 'गिलगित स्काउट्स' नामक एक अर्ध-सैनिक बल के क्षेत्र प्रमुख थे, उन्होंने ही अक्तूबर 1947 में पाकिस्तान की इस क्षेत्र पर नियंत्रण जमाने में मदद की थी.

इस क्षेत्र की आबादी क़रीब 15 लाख है जो कश्मीरियों से जातीय रूप से भिन्न हैं.

ये इलाक़ा बहुत ही ख़ूबसूरत है. बर्फ़ जमी वादियाँ, हरे-भरे पहाड़, बड़ी घाटियाँ और फलों के बहुत सारे बागान इस इलाक़े की ख़ास पहचान बनाते हैं. लेकिन इस क्षेत्र की रणनीतिक स्थिति किसी भी देश के लिए इसे और अधिक वांछनीय बनाती है. भारत, पाकिस्तान, चीन और तज़ाकिस्तान समेत चार देशों की सीमाएं इस एक क्षेत्र को छूती हैं.

पाकिस्तान की संघीय व्यवस्था

गिलगित-बल्तिस्तान क्षेत्र आगामी 'चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कोरिडोर' (सीपीईसी) योजना का प्रवेश द्वार भी है. मोटे तौर पर देखें, तो पाकिस्तान के नियंत्रण में इस इलाक़े की स्थिति शांत ही रही है, लेकिन कुछ राष्ट्रवादियों को इस क्षेत्र की हालत देखकर हमेशा ही यह शिक़ायत रही है कि 'पाकिस्तान का इस क्षेत्र को अपना कहना, पाखंड से ज़्यादा और कुछ नहीं.'

पाकिस्तान की संघीय व्यवस्था में पूर्ण रूप से शामिल होने की माँग, गिलगित-बल्तिस्तान में कई वर्षों से एक लोकप्रिय माँग रही है.

हालांकि, पाकिस्तान इसे स्वीकार करने से हिचकिचाता रहा है और उसने हमेशा ही गिलगित-बल्तिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय सहमति के तहत इसे कश्मीर-विवाद से जुड़ा हुआ माना, इसीलिए इस क्षेत्र को कश्मीर समस्या के समाधान तक पाकिस्तान में विलय नहीं किया जा सकता है.

शुरुआत में, गिलगित-बल्तिस्तान को 'स्टेट सब्जेक्ट रूल' यानी एसएसआर के तहत शासित किया गया था जिसके तहत केवल स्थानीय लोगों को सरकारी कार्यालयों और भूमि के स्वामित्व का अधिकार था, लेकिन 1970 में ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने इसे ख़त्म कर दिया था.

वर्षों से पाकिस्तान में अधिकारियों द्वारा इस क्षेत्र को राजनीतिक रूप से मुख्यधारा में लाने की माँग पर विभिन्न क़ानूनी व्यवस्थाएं की गई हैं. वर्तमान में, इस क्षेत्र में एक मुख्यमंत्री और एक राज्यपाल हैं, लेकिन संवैधानिक रूप से यह अभी भी देश के बाकी चार प्रांतों की तरह पाकिस्तान से संलग्न नहीं है.

इससे क्या बदलेगा?

राजनीतिक और सुरक्षा विश्लेषक डॉक्टर हसन असकरी रिज़वी कहते हैं कि गिलगित-बल्तिस्तान के लोगों की ये बहुत पुरानी माँग है. सरकार इस क्षेत्र के स्टेटस को लेकर कुछ बदलाव करने जा रही है, पर वो किस तरह के बदलाव होंगे, इसका कोई विवरण अभी साझा नहीं किया गया.

वे कहते हैं, "अगर इस क्षेत्र के मामले में कोई अल्पकालीन व्यवस्था की जाती है तो होशियारी इसे में होगी कि कश्मीर मुद्दे को इससे नुक़सान ना पहुँचे. यह अभी स्पष्ट नहीं है कि पाकिस्तान सरकार इस क्षेत्र को बाकी चार प्रांतों जैसी ही सवैधानिक मान्यता देने वाली है या स्थिति थोड़ी अलग रहेगी. लेकिन गिलगित-बल्तिस्तान की मौजूदा स्थिति में किसी भी तरह का परिवर्तन पाकिस्तान के साथ इस क्षेत्र के संबंधों को पूरी तरह से बदल देगा."

जानकारों का मानना है, "पाकिस्तान का क़ानून और संसदीय मंत्रालय इससे संबंधित अधिनियमों को तैयार करने पर लगा होगा. हालांकि, वर्तमान में सरकार और विपक्ष के बीच जारी खींचतान इसमें देरी का कारण बन सकती है. लेकिन विपक्ष भी स्पष्ट रूप से यह समझ रहा है कि पाकिस्तान की सेना इस मुद्दे पर कहाँ खड़ी है."

डॉक्टर हसन असकरी का मानना है कि गिलगित-बल्तिस्तान पाकिस्तान की सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, चाहे वो भारत के साथ पाकिस्तान की स्थिति हो या चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कोरिडोर, इस क्षेत्र का अपना महत्व है.

वे कहते हैं, "पाकिस्तान सीपीईसी के लिए स्थिरता चाहता है. साथ ही यह सुनिश्चित करना चाहता है कि क्षेत्र के लोगों की चिंताओं और माँगों का ध्यान रखा जाये, ताकि सीपीईसी से जुड़ी योजनाओं को सफलतापूर्वक पूरा किया जा सके."

"लेकिन कश्मीर मुद्दे को कम से कम नुक़सान पहुँचे, इसके लिए पाकिस्तान गिलगित-बल्तिस्तान के मामले में अल्पकालीन या अस्थायी जैसे शब्दावली का उपयोग करेगा, इसकी काफ़ी संभावना है. हालांकि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के नेता इससे ख़ुश नहीं होंगे, इसलिए पाकिस्तान सरकार को 'रणनीतिक और राजनीतिक' तौर पर बहुत ही सोच समझ कर आगे बढ़ना होगा."

डॉक्टर हसन असकरी ने इस मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के बीच सशस्त्र संघर्ष की संभावना को भी ख़ारिज किया और कहा कि "नियंत्रण रेखा पर इससे थोड़ा बहुत तनाव बढ़ सकता है, राजनयिक संबंध बिगड़ सकते हैं, पर दोनों के बीच युद्ध के आसार बहुत कम हैं."

डॉक्टर हसन असकरी इस बात से भी इनकार करते हैं कि 'भारत-चीन सीमा तनाव से इसका कोई संबंध है.'

उन्होंने कहा कि "पाकिस्तान भविष्य में भारत-चीन के सशस्त्र संघर्ष में सैन्य रूप से शामिल नहीं होगा, लेकिन वो निश्चित रूप से राजनीतिक और कूटनीतिक ढंग से चीन का समर्थन करेगा."

'धोखाधड़ी और फ़र्जीवाड़ा'

गिलगित-बल्तिस्तान में राष्ट्रवादी समूह पाकिस्तान सरकार के इस क़दम की आलोचना कर रहे हैं. वो इसे 'पाकिस्तान का दुरंगीपन' कह रहे हैं. वो पाकिस्तान से पूर्ण संघीय दर्जे की माँग करते रहे हैं और वो चाहते हैं कि बाकी चार प्रांतों की तरह गिलगित-बल्तिस्तान को भी समान अधिकार मिलें. इसलिए वो इस घोषणा से ख़ुश नहीं हैं.

मंज़ूर परवाना गिलगित-बल्तिस्तान संयुक्त आंदोलन के अध्यक्ष हैं. उनका कहना है कि 'राष्ट्रवादी वास्तव में पाकिस्तान सरकार की तभी सराहना करेंगे, जब गिलगित-बल्तिस्तान को पंजाब, सिंध, केपी और बलूचिस्तान की तरह पूर्ण प्रांत माना जायेगा.' लेकिन उन्हें भारी आशंका है कि ऐसा होगा.

वे कहते हैं, "जब तक कश्मीर का मसला हल नहीं होता, हमें बाकी प्रांतों की तरह कभी बराबरी का दर्जा नहीं दिया जाएगा. यह घोषणा इस क्षेत्र के लोगों के साथ एक धोखा और फ़र्ज़ीवाड़ा है. यह पाकिस्तान तहरीक़े इंसाफ़ पार्टी द्वारा चुनाव से पहले समर्थन हासिल करने की एक राजनीतिक चाल है."

"हमें ये पहले भी ऐसे लॉलीपॉप देते रहे हैं. इनका हमारे लिए कोई मतलब नहीं है. दुनिया में कहीं भी अनंतिम प्रांत का कोई उदाहरण नहीं है. बल्कि राष्ट्रवादियों का मानना है कि यह गिलगित-बल्तिस्तान के लोगों से और इस क्षेत्र से विशेष दर्जे को छीनने का रास्ता साफ़ करेगा."

मंज़ूर परवाना ने यह भी आरोप लगाया कि मुख्यधारा के राजनीतिक दल स्थानीय लोगों के सच्चे प्रतिनिधि नहीं हैं और इस मुद्दे पर क्षेत्र के लोगों को विश्वास में नहीं लिया गया है.

वे कहते हैं, "वे हमें कश्मीर के मुद्दे पर घसीटते रहेंगे, वे स्थिति को इस तरह बदलना चाहते हैं कि गिलगित-बल्तिस्तान पर पाकिस्तान की पकड़ को मज़बूत कर सकें, लेकिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के तहत कश्मीर के मामले को नुक़सान भी ना पहुँचे."

'राजनीतिक फ़ायदा'

पत्रकार शब्बीर हुसैन का कहना है कि इस घोषणा के बाद से गिलगित-बल्तिस्तान की आबादी का एक अच्छा बड़ा हिस्सा बहुत ख़ुश है. उन्हें लग रहा है कि पाकिस्तान सरकार के इस निर्णय के बाद बहुत सारी चीज़ें बदलेंगी और इस बदलाव से बेहतर भविष्य के अवसर पैदा होंगे.

शब्बीर इस घोषणा से संबंधित घटनाक्रमों पर नज़र बनाये हुए हैं. उन्होंने बीबीसी से बातचीत में कहा कि नवंबर में आम चुनावों के बाद गिलगित-बल्तिस्तान को एक प्रांत बनाने के प्रयासों को गति मिलेगी.

शब्बीर कहते हैं कि पाकिस्तान सरकार को गिलगित-बल्तिस्तान की स्थिति बदलने के लिए एक संवैधानिक संशोधन करना होगा. इस उद्देश्य के लिए सरकार को दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी, जो विपक्षी दलों के सहयोग के बिना संभव नहीं.

शब्बीर ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा पर एक संसदीय समिति पहले से ही संवैधानिक संशोधनों के विवरण को अंतिम रूप देने पर काम कर रही हैं, लेकिन विपक्षी दलों का विचार है कि नवंबर के मध्य में चुनाव होने के बाद ही इस बदलाव पर आगे कोई काम होना चाहिए क्योंकि उन्हें डर है कि पाकिस्तान तहरीक़े इंसाफ़ पार्टी इसका राजनीतिक लाभ ले सकती है.

पाकिस्तान में मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियाँ पाकिस्तान तहरीक़े इंसाफ़, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) चुनाव में मुख्य प्रतियोगी होंगी. (bbc)

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