राष्ट्रीय
भारत में कोरोना महामारी के दौर में बिहार पहला राज्य है जहाँ विधानसभा चुनाव होने जा रहा है.
नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले पंद्रह साल के शासन को चुनौती देने के लिए विपक्षी महागठबंधन चुनाव मैदान में है, इतना ही नहीं कुछ और नए गठबंधन भी इस बार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.
एक नज़र बिहार विधानसभा चुनाव की उन बातों पर जो जानना आपके लिए ज़रूरी हैं.
बिहार में चुनाव कब हैं?
- मतदान 28 अक्तूबर, 3 नवंबर और 7 नवंबर को होगा.
- 28 अक्तूबर को पहले चरण में 16 ज़िलों की 71 सीटों पर मतदान होगा.
- 3 नवंबर को दूसरे चरण में 17 ज़िलों की 94 सीटों पर मतदान होगा.
- 7 नवंबर को तीसरे चरण में 15 ज़िलों की 78 सीटों पर मतदान होगा.
- मतों की गणना 10 नवंबर को होगी. बिहार में इस बार कुल वोटर की संख्या करीब 7 करोड़ 30 लाख है.
2015 की बिहार विधानसभा की तस्वीर
बिहार की मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल 29 नवंबर को समाप्त हो रहा है. बिहार में विधान सभा की कुल 243 सीटें हैं और सरकार बनाने के लिए मैज़िक नंबर 122 है.
बिहार में फ़िलहाल जनता दल यूनाइटेड और भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. जदयू नेता नीतीश कुमार राज्य के मुख्यमंत्री हैं जबकि बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी उप-मुख्यमंत्री हैं.
2015 में नीतीश कुमार की अगुआई में जदयू ने लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के साथ चुनाव लड़ा था. उस समय जदयू, राजद, कांग्रेस और अन्य दलों को मिलाकर एक महागठबंधन बना था. इन लोगों ने मिलकर सरकार बनाई. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बने और उप मुख्यमंत्री बने लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव.
लेकिन 2017 में नीतीश कुमार ने राजद से गठबंधन तोड़ लिया और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई. तब बीजेपी के पास 53 विधायक थे.
कांग्रेस ने पिछला चुनाव राजद, जदयू और अन्य दलों के महागठबंधन में साथ मिलकर लड़ा था और उसे 27 सीटें मिली थीं. बीजेपी की सहयोगी लोकजनशक्ति पार्टी 2 सीटें ही जीत सकी थी.
2020 में गठबंधन की तस्वीर
इस बार के चुनाव में चार गठबंधन मैदान में हैं. एनडीए और महागठबंधन के अलावा बिहार में इस बार ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट और प्रगतिशील लोकतांत्रिक गठबंधन ऐसे हैं, जो चुनाव से ठीक पहले बने हैं.
सत्ता में वापसी की कोशिश में लगी राजद ने पिछले चुनाव में ही महागठबंधन बनाया था. भाजपा और जदयू को कुर्सी से हटाने के लिए महागठबंधन में इस बार वामपंथी दलों को भी साथ लिया गया है. कांग्रेस उनके साथ पहले से ही है. महागठबंधन में राजद 144 सीटों पर, कांग्रेस 70 सीटों पर और लेफ्ट पार्टियाँ 29 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही हैं.
एनडीए गठबंधन में इस चुनाव में बीजेपी और जदयू के अलावा वीआईपी के मुकेश साहनी, हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के जीतन राम मांझी भी शामिल हो गए हैं. लोजपा इस बार गठबंधन का हिस्सा नहीं है. इन पार्टियों के बीच सीटों का बंटवारा हो चुका है.
जदयू 122 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और बीजेपी 121 सीटों पर. जदयू ने अपने खाते से 7 सीटें जीतन राम मांझी की हम पार्टी को दिया है, वहीं भाजपा मुकेश सहनी की वीआईपी को अपने हिस्से से 11 सीटें दे रही है.
महागठबंधन और एनडीए के अलावा एक तीसरा गठबंधन भी है. रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा, बहुजन समाजवादी पार्टी की मायावती, एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी, जनवादी पार्टी सोशलिस्ट के संजय चौहन और सोहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने भी गठबंधन बनाया है, जिसे ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट का नाम दिया गया है.
जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने प्रगतिशील लोकतांत्रिक गठबंधन यानी पीडीए बनाने की घोषणा की है. इस गठबंधन में चंद्रशेखर आजाद की अध्यक्षता वाली आजाद समाज पार्टी, एमके फैजी के नेतृत्व वाली सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया यानी एसडीपीआई और बीपीएल मातंग की बहुजन मुक्ति पार्टी शामिल हैं. इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग अब इस गठबंधन का हिस्सा नहीं है.
चुनावी मैदान में अहम चेहरे
महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव राघोपुर सीट से चुनाव लड़ेंगे. वहीं उनके बड़े भाई तेज प्रताप ने अपना विधानसभा क्षेत्र महुआ से बदलकर हसनपुर कर लिया है. इन दोनों की जीत-हार पर सबकी नज़रें होंगी.
दूसरी तरफ़ एनडीए ने साफ़ किया है कि वो नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ेंगे. जदयू की तरफ़ से जो सबसे चर्चित नाम चुनाव मैदान में हैं उनमें लालू प्रसाद के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव के ससुर चंद्रिका राय सबसे अहम हैं.
चंद्रिका राय इससे पहले राष्ट्रीय जनता दल में रह चुके हैं. वो राजद से मंत्री भी रहे थे. चंद्रिका राय की बेटी ऐश्वर्या की शादी तेज प्रताप से हुई थी. राजद नेता रघुवंश प्रसाद सिंह के बेटे को भी जनता दल यूनाइटेड ने अपना उम्मीदवार बनाया है.
जदयू ने मुजफ्फरपुर बालिका गृह मामले से चर्चा में आईं मंजू वर्मा को भी उम्मीदवार बनाया है. बालिका गृह मामले में मंजू वर्मा को मंत्री पद गंवाना पड़ा था. अब इन्हें चेरियाबरियारपुर से फिर टिकट मिला है.
बिहार डीजीपी के पद से वीआरएस लेकर जनता दल (यूनाइटेड) से राजनीतिक पारी शुरू करने वाले गुप्तेश्वर पांडे को बक्सर सीट से टिकट नहीं मिला. पहले इस सीट से उनके चुनाव लड़ने की संभावना जताई जा रही थी.
बिहार चुनाव में इस बार एक चर्चित चेहरा पुष्पम प्रिया चौधरी का भी है. खुद को बिहार का सीएम उम्मीदवार बताने वालीं पुष्पम प्रिया चौधरी पटना के बांकीपुर और मधुबनी के बिस्फी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगी. पुष्पम प्रिया जदयू से एमएलसी रह चुके विनोद चौधरी की बेटी हैं.
पुष्पम प्रिया की 12वीं तक की पढ़ाई दरभंगा में हुई जिसके बाद वो विदेश पढ़ने चली गईं. लंदन से पढ़कर लौटीं तो सीधे बिहार चुनाव में उतर गईं. इस चुनाव में उन्होंने प्लूरल्स नाम की एक पार्टी बनाई है.
राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक विजेता श्रेयसी सिंह जमुई विधानसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं. श्रेयसी, बिहार की राजनीति में दादा के नाम से मशहूर दिग्विजय सिंह की बेटी हैं.
इस बार के चुनाव की ख़ासियत
उम्मीदवारों के अलावा रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान पर भी इन चुनावों में सबकी नज़र होगी. चिराग इस समय बिहार की जमुई लोकसभा सीट से सांसद हैं, लेकिन उनके नेतृत्व में लोक जनशक्ति पार्टी कैसा प्रदर्शन करती है, ये देखना अहम होगा. उनके राजनीतिक करियर के लिए ये चुनाव काफ़ी अहम माना जा रहा है.
चुनाव से ठीक बीस दिन पहले लोजपा के नेता और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का निधन हो गया. चिराग पासवान ने इस बार एनडीए में शामिल ना होकर अलग चुनाव लड़ने का फ़ैसला लिया है. पिता की विरासत को चिराग आगे कैसे बढ़ाते हैं, ये देखना दिलचस्प होगा.
बिहार विधानसभा का ये चुनाव इसलिए भी अहम होगा क्योंकि लालू यादव प्रचार से दूर रहेंगे. लालू यादव फ़िलहाल जेल में हैं. पिछले विधानसभा चुनाव के समय वे काफ़ी सक्रिय थे और माना जाता है कि गठबंधन में नीतीश कुमार को लाने में उनकी अहम भूमिका थी.
वहीं, बिहार चुनाव में पहली बार गांधी मैदान में लाखों लोगों की भीड़ को संबोधित करने वाली चुनावी रैलियां नहीं होंगी. डिज़िटल रैलियों के साथ चुनाव प्रचार का तरीका पूरी तरह बदल गया है .
इन मुद्दों पर लड़ा जा रहा है चुनाव
कोरोना महामारी के बीच होने वाला ये पहला विधानसभा चुनाव है. जनता महामारी के डर से पोलिंग बूथ पर कितना पहुंचती है यह भी देखना होगा. राज्य सरकार ने बिहार में बीमारी फैलने से रोकने के लिए कितने इंतज़ाम किए हैं और जनता उनके काम से कितनी खुश है, नतीजों से यह भी ज़ाहिर होगा.
नीतीश सरकार 15 साल से सत्ता में है, ऐसे में वो सत्ता विरोधी लहर भी झेल रहे हैं.
प्रदेश के अस्थायी शिक्षकों में 'समान काम समान वेतन' ना देने को लेकर ग़ुस्सा है. बेरोज़गारी, शिक्षा और स्वास्थ्य के अलावा प्रवासी मजदूरों का मुद्दा भी इन चुनावों में जोर-शोर से उठाया जा रहा है.
लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर कोरोना की वजह से प्रदेश में लौट कर आ गए हैं. उनके पास काम-धंधा नहीं है. उनकी राय भी इस चुनाव में काफ़ी अहम मानी जा रही है.
एक कोशिश फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले को भुनाने की भी दिखी थी.
इस चुनाव का राष्ट्रीय महत्व
देश की राजनीति में बिहार की अहमियत किसी से छुपी नहीं है. केंद्र में कांग्रेस की जड़ें हिला देने वाले जेपी आंदोलन की शुरुआत भी यहीं से हुई थी. यहाँ राज्य और राष्ट्रीय स्तर के चुनाव में वोटिंग पैटर्न में जमीन-आसमान का अंतर देखने को मिलता है.
2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने 40 में से 39 सीट पर जीत दर्ज की थी. क्या एनडीए गठबंधन इस चुनाव में भी वही प्रदर्शन दोहरा पाएगा, इस पर सबकी नज़रें होंगी.
जेपी नड्डा के बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद ये दूसरा विधानसभा चुनाव है. इससे पहले दिल्ली में चुनाव हुए थे, जिसमें बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था. इस चुनाव में उनकी किस्मत भी दांव पर हैं.
सीएए-एनआरसी का विरोध, 370 हटाया जाना, नए कृषि बिल का विरोध - एनडीए के दूसरे कार्यकाल में केंद्र सरकार के लिए इन तमाम विवादित फ़ैसलों को जनता कैसे देख रही है, इसका असर भी चुनाव में देखने को मिलेगा.
सबसे बड़ी बात यह है कि पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम नीतीश कुमार ने कोरोना महामारी को जिस तरह से हैंडल किया उससे जनता खुश है या नहीं, इस चुनाव के नतीजे इस बात की भी गवाही देंगे.
कोरोना से जुड़े दिशानिर्देश
बिहार विधानसभा चुनाव में पहली बार चुनाव आयोग द्वारा दिए गए कोरोना दिशानिर्देश का भी परीक्षण होगा. ये दिशानिर्देश सितंबर के महीने में जारी किए गए थे. इनके मुताबिक :
1. नामांकन दाख़िल करते वक्त उम्मीदवार के साथ केवल दो व्यक्ति मौजूद होंगे. उम्मीदवार अपना नामांकन ऑनलाइन कर सकते हैं और वो चुनाव लड़ने के लिए लगने वाली ज़मानत राशि भी ऑनलाइन जमा कर सकते हैं.
2. रोड शो के दौरान कोई भी उम्मीदवार अधिकतम पाँच वाहनों का इस्तेमाल कर पाएँगे.
3. मतदान के दिन अगर किसी मतदाता में कोरोना वायरस के लक्षण पाए गए, तो उन्हें एक टोकन दिया जाएगा और उस टोकन के माध्यम से वे मतदान के अंतिम घंटे में अपना वोट डाल पाएँगे.
4. ईवीएम मशीन में मतदान करने से पहले मतदाताओं को दस्ताने दिए जाएँगे.
5. एक मतदान केंद्र पर अधिकतम एक हज़ार मतदाता वोट दे सकेंगे. पहले मतदाताओं की अधिकतम संख्या 1500 थी.
6. सभी मतदाताओं के लिए मास्क पहनना अनिवार्य होगा, जिसे पहचान ज़ाहिर करने के लिए थोड़ी देर के लिए उन्हें हटाना होगा.
7. कोरोना संक्रमित और क्वारंटीन में रह रहे मरीज़ों को स्वास्थ्य अधिकारियों की मौजूदगी में मतदान के अंतिम घंटे में वोट डालने की इजाज़त होगी. इस दौरान संक्रमण की रोकथाम के लिए तमाम उपाय किए जाएँगे.
8. महामारी की वजह से मतदान का समय एक घंटे बढ़ा दिया गया है. अब अति संवेदनशील क्षेत्रों को छोड़कर ज़्यादातर मतदान केंद्रों पर मतदान सुबह सात बजे से शाम छह बजे तक होगा.
हालाँकि, दिशानिर्देशों में वर्चुअल रैली और डिजिटल कैंपेन को लेकर कुछ नहीं कहा गया है. लेकिन, राज्य के नौ विपक्षी दलों ने बीजेपी के डिज़िटल कैंपेन पर सवाल उठाते हुए जुलाई महीने में चुनाव आयोग को ज्ञापन सौंपा था.(bbc)