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आरसीईपी से ज्यादा समय तक अलग नहीं रह सकता इंडिया : जेएनयू प्रोफेसर
18-Nov-2020 8:01 AM
आरसीईपी से ज्यादा समय तक अलग नहीं रह सकता इंडिया : जेएनयू प्रोफेसर

बीजिंग, 18 नवंबर | हाल ही में संपन्न हुए क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता यानी आरसीईपी पर चीन सहित पंद्रह देशों ने हस्ताक्षर कर दिए हैं, लेकिन भारत कुछ चिंताओं के चलते इसमें शामिल नहीं हुआ है। भारत के इसमें शामिल न होने की क्या वजहें हो सकती हैं, भारत इस महत्वपूर्ण मंच में भविष्य में हिस्सा लेगा या नहीं। इस बारे में अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार और जेएनयू में प्रोफेसर बी.आर. दीपक ने सीएमजी संवाददाता अनिल पांडेय के साथ बातचीत में जोर दिया कि कभी न कभी भारत को इस समझौते में शामिल होना ही होगा। बकौल दीपक अगर हम चाहते हैं कि हमारा उद्योग प्रतिस्पर्धी हो तो हमें जल्द या बाद में आरसीईपी का हिस्सा बनना पड़ेगा। जितना जल्दी हो उतना बेहतर रहेगा।

उनके मुताबिक यह एक तरफ हमें आर्थिक पुनर्गठन करने और प्रमुख क्षेत्रों को विकसित करने के लिए मार्ग प्रशस्त करने के लिए मजबूर करेगा, दूसरी ओर उन क्षेत्रों में निवेश आकर्षित करने का मौका भी देगा।

अगर भारत इसमें सक्रिय रूप से भाग नहीं लेता है तो उसका आरसीईपी देशों के साथ मौजूदा अंतर और व्यापार घाटे में लगातार बढ़ोतरी होगी। ऐसे में यह भारत के नुकसान वाली स्थिति होगी।

दीपक के अनुसार पिछले साल जब भारत ने आरसीईपी से अलग रहने का फैसला किया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के हितों की बात कही। मोदी ने कहा कि चूंकि समझौता किसी भी भारतीय के हित में नहीं है, इसलिए न गांधीजी के न ही मेरे विवेक ने मुझे आरसीईपी में शामिल होने की अनुमति दी। हमें यह समझना होगा कि इससे भारत के क्या हित जुड़े हैं।

यहां बता दें कि भारत के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय चीन के साथ 53.5 अरब डॉलर का व्यापार घाटा है। हालांकि आसियान के साथ भारत का व्यापार घाटा 21.8 अरब डॉलर का है। वहीं दक्षिण कोरिया के साथ 12 अरब डॉलर, ऑस्ट्रेलिया के साथ 9.6 अरब डॉलर और जापान के साथ करीब 8 अरब डॉलर का व्यापारिक घाटा भारत को झेलना पड़ रहा है।

तर्क है कि अगर भारत आरसाईपी पर हस्ताक्षर करता है तो वह अगले 15 वर्षों में अपने यहां आयातित वस्तुओं में 90 फीसदी टैक्स ड्यूटी कम करने के लिए मजबूर हो जाएगा। इसलिए, आशंका है कि ऑटो-ट्रिगर मैकेनिज्म की अनुपस्थिति में भारतीय बाजार में चीनी उत्पादों की बाढ़ सी आ जाएगी। भारत ने आयात पर नजर रखने के लिए इस तंत्र की मांग की थी, जिसे नहीं माना गया।

हालांकि, बताया जाता है कि वियतनाम में हुई 7वीं मंत्रिस्तरीय बैठक में भारत चीनी उत्पादों पर 28 फीसदी टैरिफ को तत्काल कम करने के लिए राजी हो गया था। जबकि शेष टैरिफ अगले 15 सालों में चरणबद्ध तरीके से घटाने की बात कही गयी थी।

इसके साथ ही भारत को चीन द्वारा रूल ऑफ ऑरिजिन को बिगाड़ने संबंधी चिंता भी है, जिसका समाधान नहीं हो सका है। वहीं ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के डेयरी उत्पाद इंडिया के घरेलू डेयरी उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। जबकि अन्य उद्योगों जैसे स्टील और कपड़ा इंडस्ट्री ने भी सुरक्षा की मांग की है।

इसके साथ ही भारत ने आरसीईपी देशों में श्रम और सेवाओं की अधिक सरल आवाजाही की मांग की है, जो कि इन देशों में कड़े आव्रजन कानूनों के कारण आसान नहीं है।

(अनिल आजाद पांडेय-चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)(आईएएनएस)

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