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![पाकिस्तान और भारत तनाव के बीच अहम मुद्दे पर आए साथ पाकिस्तान और भारत तनाव के बीच अहम मुद्दे पर आए साथ](https://dailychhattisgarh.com/2020/article/1607865097ile_photo.jpeg)
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-नियाज़ फ़ारूक़ी
भारत और पाकिस्तान में दशकों से तनाव के बीच शायद ही कोई ऐसी ख़बर आती है कि दोनों देशों ने एक दूसरे को समर्थन किया हो. लेकिन कोरोना वायरस की महामारी ने पारपंरिक रूप से दोनों प्रतिद्वंद्वी मुल्कों को एक मुद्दे पर साथ ला दिया है.
भारत और पाकिस्तान में कोरोना वायरस से एक करोड़ से ज़्यादा लोग संक्रमित हुए हैं. केवल भारत में क़रीब एक लाख 43 हज़ार लोगों की मौत हुई है और पाकिस्तान में भी हज़ारों की जान गई है. अब दोनों देश यूरोप और अमेरिका में बनी वैक्सीन को पाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि लोगों की जान बचाई जा सके.
भारत ने दक्षिण अफ़्रीका के साथ वैक्सीन के पेटेंट को लेकर अस्थायी बदलावों के लिए विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में एक प्रस्ताव दिया है. अगर ये प्रस्ताव स्वीकार होता है तो इससे वैक्सीन की क़ीमत में कमी आ सकती है. पाकिस्तान ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया है.
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि महामारी की शुरुआत से ही पाकिस्तान ज़ोर दे रहा है कि कोरोना वैक्सीन तैयार करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तकनीकी विशेषज्ञता और संसाधनों को एक साथ लाने की ज़रूरत है.
विदेश मंत्रालय के मुताबिक़ विश्व स्वास्थ्य संगठन में कोरोना वायरस वैक्सीन को लेकर किए गए अनुरोध का मक़सद फार्मास्यूटिकल कंपनियों को वैक्सीन के आधारभूत फॉर्म्युले के आधार पर सस्ती वैक्सीन बनाने की अनुमित दिलाना है.
विदेश मंत्रालय ने बताया कि ये मामला विचाराधीन है और अगले साल की शुरुआत में इस पर कोई फ़ैसला होने की उम्मीद है.
डब्ल्यूटीओ की इजाज़त क्यों है ज़रूरी
विश्व स्वास्थ्य संगठन के सदस्य साल 1995 से अंतरराष्ट्रीय व्यापार के समान सिद्धांत का पालन कर रहे हैं.
इन सदस्यों ने एक व्यापार संबंधी समझौते पर हस्ताक्षर किए हुए हैं जिसे 'बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलू' या टीआरआईपीएस कहते हैं. इस समझौते का मक़सद कंपनियों की बौद्धिक संपदा के अधिकार को सुनिश्चित करना है ताकि बिना अनुमति के उसका इस्तेमाल ना हो सके.
मौजूदा स्थिति में इसका मतलब ये है कि एक देश में विकसित की गई कोविड-19 वैक्सीन को किसी दूसरे देश में स्थानीय स्तर पर उत्पादित नहीं किया जाएगा. ऐसा तभी संभव होगा जब दोनों देश इस पर सहमत हों या विश्व व्यापार संगठन इसकी अनुमति दे.
वहीं, कई देश संसाधनों की कमी या अन्य कारणों से द्विपक्षीय समझौते या डब्ल्यूटीओ की अनुमति के बावजूद भी अपने देश में ये वैक्सीन नहीं बना पाएंगे.
ऐसे में उन्हें दूसरे देशों से ये वैक्सीन ऊंची क़ीमतों पर ख़रीदनी पड़ेगी.
इससे पहले भी इन्हीं कारणों के चलते कई देश 'जेनेरिक फॉर्म्युले' से स्थानीय स्तर पर दवाइयां बना चुके हैं जो सस्ती होती है.
प्रस्ताव में क्या है
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक बयान में कहा था, ''वैश्विक आपातकाल की स्थिति को देखते हुए ये महत्वपूर्ण है कि डब्ल्यूटीओ के सदस्य ये सुनिश्चित करने के लिए साथ काम करें कि वैक्सीन और दवाइयों का अनुसंधान, विकास और उत्पादन किया जाए. बीमारी से लड़ाई में आवश्यक दवाइयों की आपूर्ति में दख़लअंदाज़ी ना करें.''
वहीं, इस प्रस्ताव में कहा गया है कि कोरोना वायरस को जल्द से जल्द ख़त्म करने के लिए वैश्विक एकजुटता की ज़रूरत है. इसके लिए संयुक्त तकनीकी विशेषज्ञता और संसाधनों की आवश्यकता है.
ये प्रस्ताव सबसे पहले दो अक्टूबर को पेश किया गया था. अब डब्ल्यूटीओ के सदस्य इस पर फिर से बातचीत करेंगे.
भारत और पाकिस्तान के अलावा बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, मिस्र और इंडोनेशिया ने भी इस अनुरोध का समर्थन किया है. यूरोपीय संघ, अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, ऑस्ट्रेलिया और ब्राज़ील वैक्सीन पर डब्ल्यूटीओ का पेटेंट चाहते हैं.
चीन ने इस अनुरोध का समर्थन किया है लेकिन इस पर विचार करने के लिए समय मांगा है.
न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक डब्ल्यूटीओ के 164 में से 100 सदस्य देशों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है.
अमीर देश ख़रीद रहे वैक्सीन
अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर अर्जुन जयदेव कहते हैं, ''अभी महामारी के कारण आपातकालीन स्थिति है और ऐसे में पेटेंट के नियमों में ढील देने की ज़रूरत है. आपातकालीन स्थिति में विश्व व्यापार संगठन को चाहिए कि वो दूसरे देशों को जेनरिक दवाई बनाने की अनुमति दे ताकि वैक्सीन सस्ती हो सके. ऐसी स्थिति में आप पेटेंट के सख़्त नियमों को किनारे रख सकते हैं.''
''हालांकि इन तर्कों के जवाब में कहा जाता है कि दवाई कंपनी को वैक्सीन बनाने में भारी संसाधन खर्च करना पड़ा है और ऐसे में फ़ायदा कमाना उसका हक़ बनता है.''
पेटेंट को लेकर अभी तक नियमों में कोई ढील देने की बात नहीं कही गई है. ऐसे में ज़्यादातर ग़रीब देशों के लिए वैक्सीन हासिल करना आसान नहीं है. दूसरी तरफ़ अमीर देशों ने वैक्सीन लेना शुरू कर दिया है.
नेचर पत्रिका के एक अनुमान के मुताबिक यूरोपीय संघ के 27 देशों और पाँच अन्य अमीर देशों ने पहले से ही आधी वैक्सीन ख़रीद ली है जो कि दुनिया की पूरी आबादी का सिर्फ़ 13 प्रतिशत है.
एक नागरिक अधिकार समूह ने भी इस प्रस्ताव के समर्थन में विश्व स्वास्थ्य संगठन को एक पत्र लिखा है. इसमें कोरोना वैक्सीन को वैश्विक स्तर पर उपलब्ध कराने और सभी तक पहुंच बनाने के लिए कदम उठाने का आह्वान किया गया है.(https://www.bbc.com/hindi)