अंतरराष्ट्रीय

ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन के भारत आने और मोदी को G7 में बुलाने के मायने
16-Dec-2020 2:29 PM
ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन के भारत आने और मोदी को G7 में बुलाने के मायने

-रजनीश कुमार

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन अगले महीने भारत आ रहे हैं. ब्रिटिश पीएम का यह दौरा जी7 समूह को विस्तार देने के तौर पर देखा जा रहा है.

जी7 शीर्ष के सात औद्योगिक देशों का समूह है. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने भारत, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया को अगले बसंत में ब्रिटेन में आयोजित होने वाले जी-7 के शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए बुलाया है.

जॉनसन अगले महीने गणतंत्र दिवस के मौक़े पर मुख्य अतिथि होंगे. गणतंत्र दिवस के मौक़े पर भारत हर साल किसी राष्ट्र प्रमुख को मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाता है. बोरिस जॉनसन के इस दौरे को भारत-ब्रिटेन में गहरे होते संबंध के तौर पर भी देखा जा रहा है.

पिछले महीने के आख़िर में कनाडा के पूर्व प्रधानमंत्री स्टीफ़न हार्पर की अध्यक्षता वाले एक थिंक टैंक ने ब्रिटेन से कहा था कि उसे हिंद-प्रशांत इलाक़े में चीन से मुक़ाबला करने के लिए भारत का सहयोग करना चाहिए. इसने अपनी रिपोर्ट में कहा था, ''ब्रेग्ज़िट के बाद ब्रिटेन को हिंद-प्रशांत इलाक़े में बड़ी भूमिका निभानी चाहिए ताकि इस इलाक़े में स्थिरता और संतुलन बना रहे.''

भारत-ब्रिटेन एक दूसरे के लिए अहम
ब्रिटिश प्रधानमंत्री के दफ़्तर से बोरिस जॉनसन के भारत दौरे को लेकर विस्तृत बयान जारी किया गया है. इस बयान में कहा गया है कि प्रधानमंत्री बनने और ब्रिटेन के यूरोपीय यूनियन से निकलने के बाद बोरिस जॉनसन का यह पहला भारत दौरा है. ब्रिटेन ने कहा है कि प्रधानमंत्री का यह भारत दौरा इंडो-पैसिफिक इलाक़े में उसकी दिलचस्पी को भी दर्शाता है.

प्रधानमंत्री ऑफिस ने कहा है, ''2021 में ब्रिटेन जी-7 और COP26 समिट की मेज़बानी करने जा रहा है. बोरिस जॉनसन ने प्रधानमंत्री मोदी को जी-7 समिट में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया है. भारत के अलावा अतिथि देश के तौर पर दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया को भी बुलाया गया है. पीएम जॉनसन का लक्ष्य वैसे देशों से सहयोग बढ़ाना है जो लोकतांत्रिक हैं और उनके हित आपस में जुड़े हुए हैं. साथ ही उनकी चुनौतियां भी एक जैसी हैं.''

ब्रिटेन और भारत के आर्थिक रिश्ते भी काफ़ी अहम हैं. दोनों का एक दूसरे के बाज़ार में निवेश है. हर साल दोनों देशों के बीच 24 अरब पाउंड का व्यापार और निवेश है. ब्रिटेन में कुल 842 भारतीय कंपनियाँ हैं और इन सबका टर्नओवर 41.2 अरब पाउंड है. ब्रिटेन में भारतीय निवेश और कारोबार से लाखों लोगों को रोज़गार मिला हुआ है.

इस दौरे को लेकर ब्रिटिश पीएम ने कहा है, ''मैं अगले साल भारत जाने को लेकर बहुत ख़ुश हूं. ब्रिटेन नए साल की वैश्विक शुरुआत भारत से करने जा रहा है. इस दौरे से दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्ते और मज़बूत होंगे. इंडो-पैसिफिक इलाक़े में भारत अहम किरदार है. ब्रिटेन के लिए भारत नौकरी, ग्रोथ, सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन के मामलें में बहुत अहम है.''

प्रधानमंत्री कार्यालय से जारी किए गए बयान में कहा गया है, ''दुनिया की कोविड वैक्सीन की 50 फ़ीसदी से ज़्यादा आपूर्ति भारत करेगा और ऑक्सफर्ड/एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन पुणे के सीरम इंस्टिट्यूट में बन रही है. ब्रिटेन को महामारी के दौरान भारत से 1.1 करोड़ मास्क और 30 लाख पैरासीटामोल भेजे गए. भारत में 400 से ज़्यादा ब्रिटिश कंपनियाँ काम कर रही हैं.''

आज़ादी के बाद भारत के गणतंत्र दिवस पर बोरिस जॉनसन मुख्य अतिथि बनने वाले दूसरे ब्रिटिश प्रधानमंत्री होंगे. इससे पहले 1993 में जॉन मेजर को अतिथि बनाया गया था.

डी-10 की योजना
कहा जा रहा है कि जी-7 के बाद डी-10 बनने जा रहा है. यहाँ डी से मतलब डेमोक्रेसी-10 से है. मतलब दुनिया के 10 बड़े लोकतांत्रिक देशों का एक समूह. डी-10 दुनिया भर के निरंकुश शासन वाले देशों से मुक़ाबला करेगा. इसे अमेरिका में जो बाइडन के आने की तैयारी के तौर पर देखा जा रहा है. जो बाइडन ने लोकतांत्रिक देशों की कॉन्फ़्रेंस बुलाने की बात कही थी.

अभी जी-7 में ब्रिटेन, फ़्रांस, जापान, जर्मनी, इटली और कनाडा हैं. इसमें भारत, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया को जोड़ने की योजना है. इस समूह का हिस्सा रूस भी था जिसे 2014 में क्रिमिया को अपने में मिलाने पर बाहर कर दिया गया था. लेकिन इस साल ट्रंप पुतिन को बुलाने की तैयारी कर रहे थे जबकि यूरोप के देश इसका विरोध कर रहे थे.

चीन के लिए यह परेशान करने वाला हो सकता है कि इंडो-पैसिफिक में जर्मनी और फ़्रांस समेत यूरोप की दिलचस्पी बढ़ रही है. इसके साथ ही दुनिया के लोकतांत्रिक देश अमेरिका के नेतृत्व में गोलबंद होंगे तो यह भी चीन को चिंतित करने वाला होगा. यह पहली बार होगा कि लोकतंत्र को लेकर कॉन्फ्रेंस होगी और उसमें भारत समेत कई बड़े लोकतांत्रिक देश शामिल होंगे. ज़ाहिर है कि चीन में लोकतंत्र नहीं है और इस तरह की कॉन्फ़्रेंस उसे असहज करने वाली होगी.

भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल का मानना है कि ब्रिटेन और भारत दोनों एक दूसरे की ज़रूरत हैं. वो कहते हैं, ''जी-7 में भारत को बुलाया जाना कोई नई बात नहीं है. पहले भी बुलाया गया है. सबसे अहम यह है कि चीन की विस्तारवादी नीति के ख़िलाफ़ ब्रिटेन की भी इंडो-पैसिफिक में दिलचस्पी बढ़ रही है. ब्रिटेन में भी चीन विरोधी भावना उफान पर है. चीन ने हॉन्ग कॉन्ग में जिस तरह से निरंकुश शासन व्यवस्था स्थापित की उसे लेकर ब्रिटेन और चीन के संबंध पटरी पर नहीं हैं.''

चीन विरोधी खेमा?
सिब्बल कहते हैं, ''चीन पहले 5जी में उसकी कंपनी ख़्वावे का कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर चुका है. दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और भारत को बुलाना इसलिए अहम है कि चीन की जो हरकतें हैं उसको ठीक से समझा जाए. ब्रिटेन ने इंडो-पैसिफिक में अपना पोत भेजने के लिए कहा है. फ़्रांस और जर्मनी के बाद ब्रिटेन ने यह क़दम उठाया है. दूसरी तरफ़ भारत भी चीन से जूझ रहा है. एलएसी पर अब भी हालात सामान्य नहीं हैं. ऐसे में जी-7 गोलबंद होता है तो यह काफ़ी अहम है. बाइडन के आने के बाद डी10 बनाने की भी योजना है. इसमें भारत समेत दुनिया के 10 अहम लोकतांत्रिक देश होंगे. यह ग्रुप भी चीन के लिए दबाव का ही काम करेगा.''

विदेशी मामलों के जानकार हर्ष पंत कहते हैं कि ब्रिटेन अपनी विदेश नीति को फिर से तैयार कर रहा है. वो कहते हैं, ''ईयू से अलग होने के बाद इंडो-पैसिफिक में ब्रिटेन दिलचस्पी दिखा रहा है. भारत ने भी मौक़ा देखकर गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित कर लिया. बोरिस जॉनसन भी मानते हैं कि 5जी तकनीक के लिए दुनिया के लोकतांत्रिक देशों को मिलकर काम करना चाहिए. ब्रिटेन की दिलचस्पी इंडो पैसिफिक में बढ़ रही है और ये चीन को देखते हुए ही है.''

हर्ष पंत भी मानते हैं कि बाइडन के आने के बाद डी-10 बनता है तो यह लोकतांत्रिक देशों का समूह निरंकुश शासकों पर सवाल खड़ा करेगा और इन सवालों के घेरे में चीन भी आ सकता है.

बाइडन के सत्ता संभालन के बाद वैश्विक व्यवस्था एक बार फिर से करवट लेगी. ट्रंप के शासन में कई चीज़ें उलट-पुलट गई थीं. कहा जा रहा है कि बाइडन लोकतांत्रिक देशों के गठजोड़ बनाकर रणनीतिक निवेश और तकनीक को बढ़ावा देंगे. बाइडन ने ये भी कहा है कि रूस ने मुक्त विश्व व्यवस्था में फ़र्ज़ी सूचना, दूसरे देशों के चुनावों में दख़ल और भ्रष्ट पैसे के ज़रिए अव्यवस्था फैलाई है.

हालांकि कई आलोचकों का यह भी कहना है कि डी-10 में भारत के होने की आलोचना हो सकती है क्योंकि यहां के लोकतंत्र को लेकर हाल के दिनों में कई गंभीर सवाल उठे हैं. ब्रिटेन के पूर्व राजनयिक रॉरी स्टीवार्ट ने पिछले हफ़्ते सेंटर फोर यूरोपियन रीफॉर्म इवेंट में कहा था कि लोकतांत्रिक देशों का क्लब अगर चीन विरोधी के तौर पर देखा जाएगा तो इससे समाधान नहीं समस्या ही बढ़ेगी.

भारत के लिए एक मुश्किल रूस भी है. रूस के विदेश मंत्री ने पिछले ही हफ़्ते कहा था कि पश्चिम के देश भारत को चीन विरोधी खेमे में शामिल करना चाहते हैं. अगर भारत किसी चीन विरोधी खेमे में शामिल होता है तो रूस को यह ठीक नहीं लगेगा. रूस नहीं चाहता है कि दुनिया अमेरिका के नेतृत्व में आगे बढ़े और इसके लिए उसे चीन का साथ ज़रूरी है. (bbc.com)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news