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पाकिस्तान के ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह में हिंदू संत की समाधि पर भीड़ का हमला
31-Dec-2020 9:47 AM
पाकिस्तान के ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह में हिंदू संत की समाधि पर भीड़ का हमला

पाकिस्तान के ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह प्रांत के करक ज़िले में हिंदू संत श्री परम हंस जी महाराज की ऐतिहासिक समाधि को स्थानीय लोगों की एक नाराज़ भीड़ ने ढहा दिया है.

पुलिस ने बताया कि करक ज़िले के एक छोटे से गांव टेरी में भीड़ इस बात को लेकर नाराज़ थी कि एक हिंदू नेता घर बनवा रहे थे और वो घर एक इस समाधि से लगा हुआ था.

करक के ज़िला पुलिस अधिकारी इरफानुल्लाह मारवात ने बीबीसी के स्थानीय प्रतिनिधि सिराजुद्दीन को बताया कि उस इलाके में कोई हिंदू आबादी नहीं रहती है. स्थानीय लोग इस बात से नाराज़ थे कि जिस जगह पर ये निर्माण कार्य हो रहा था, वो उसे इस समाधि स्थल का ही हिस्सा समझते थे.

उन्होंने बताया कि पुलिस को लोगों के विरोध की जानकारी दी गई थी और वहां पर सुरक्षा इंतज़ाम भी किए गए थे.

इरफानुल्लाह मारवात ने बताया, "हमें विरोध प्रदर्शन की जानकारी थी लेकिन हमें बताया गया था कि ये शांतिपूर्ण रहेगा. हालांकि एक मौलवी ने हालात को भड़काऊ भाषण देकर वहां हालात बिगाड़ दिए. भीड़ इतनी बड़ी थी कि वहां हालात बेकाबू हो गए. हालांकि इस घटना में वहां किसी को कोई नुक़सान नहीं हुआ है."

ज़िला पुलिस अधिकारी ने कहा कि वहां हालात नियंत्रण में हैं लेकिन क्षेत्र में स्थिति तनावपूर्ण है. अभी तक कोई केस नहीं दर्ज किया गया लेकिन जो भी इसके लिए जिम्मेदार होगा, उसके ख़िलाफ़ जल्द ही एफ़आईआर दर्ज किया जाएगा.

ऐसे हालात क्यों पैदा हुए?

हिंदू संत श्री परम हंस जी महाराज की समाधि पर विवाद कोई नई बात नहीं है. इलाके के रूढ़िवादी लोग इस समाधि स्थल का शुरू से ही विरोध करते रहे थे. साल 1997 में इस समाधि पर पहली बार स्थानीय लोगों ने हमला किया था.

हालांकि बाद में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह की प्रांतीय सरकार ने इसका पुनर्निमाण कराया.

सरकार के समर्थन और कोर्ट के फ़ैसले के बावजूद टेरी में हालात तनावपूर्ण बने रहे. समाधि के पुनर्निमाण शुरू करने से पहले स्थानीय प्रशासन ने टेरी कट्टरपंथी लोगों से लंबी बातचीत की थी.

साल 2015 में ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह के एडिशनल एडवोकेट जनरल वक़ार अहमद ख़ान ने सुप्रीम कोर्ट में इस सिलसिले में एक रिपोर्ट पेश की थी.

इस रिपोर्ट में कहा गया था कि हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग जब पांच शर्तों पर तैयार हो गए थे, उसके बाद ही समाधि के पुनर्निमाण की इजाजत दी गई.

ऐसा कहा जाता है कि समझौते की एक शर्त ये भी थी कि हिंदू समुदाय के लोग टेरी में अपने धर्म का प्रचार-प्रसार नहीं करेंगे. वे वहां पर केवल अपनी धार्मिक प्रार्थनाएं कर सकेंगे.

समाधि पर उन्हें न तो बड़ी संख्या में लोगों को इकट्ठा करने की इजाजत होगी और न ही समाधि स्थल पर किसी बड़े निर्माण कार्य की मंज़ूरी दी जाएगी. इसके अलावा क्षेत्र में हिंदू समुदाय के लोग क्षेत्र में ज़मीन भी नहीं खरीद सकेंगे और उनका दायरा केवल समाधि स्थल तक ही सीमित रहेगा.

ये समाधि एक सरकारी ट्रस्ट की संपत्ति है. इसका निर्माण उस जगह कराया गया था जहां हिंदू संत श्री परम हंस जी महाराज का निधन हुआ था और साल 1919 में यहीं पर उनकी अंत्येष्टि की गई थी. उनके अनुयायी यहां पूजा-पाठ के लिए साल आते रहे थे. साल 1997 में ये सिलसिला उस वक़्त रुक गया जब ये मंदिर ढहा दिया गया.

इसके बाद हिंदू संत श्री परम हंस जी महाराज के अनुयायियों ने मंदिर के पुननिर्माण की कोशिशें शुरू कीं. हिंदू समुदाय के लोगों का आरोप था कि एक स्थानीय मौलवी ने सरकारी ट्रस्ट की प्रोपर्टी होने के बावजूद इस पर कब्ज़ा कर लिया था.

ज़िला पुलिस अधिकारी इरफानुल्लाह मारवात का कहना है कि हिंदू समुदाय के लोग भी पाकिस्तान के नागरिक हैं और उन्हें भी देश के दूसरे लोगों की तरह कहीं भी संपत्ति खरीदने का अधिकार है. चूंकि ज़िले में कोई हिंदू आबादी नहीं रहती है इसलिए स्थानीय लोगों का इस मंदिर के विस्तार को लेकर कुछ आशंकाएं थीं. (bbc)

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