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दलाई लामा मुद्दे पर अमेरिका और चीन के बीच बढ़ता तनाव
02-Jan-2021 12:08 PM
दलाई लामा मुद्दे पर अमेरिका और चीन के बीच बढ़ता तनाव

कार्यकाल के आखिरी दिनों में भी ट्रंप प्रशासन चीन को लेकर चौकन्नी निगाह रखे हुए है. हाल ही में शिनजियांग और ताइवान पर कई सख्त कदम उठाने के बाद तिब्बतन पॉलिसी एंड सपोर्ट ऐक्ट 2020 पर भी डॉनल्ड ट्रंप ने हस्ताक्षर कर दिए.
  डॉयचे वैले पर राहुल मिश्र का लिखा-

चीन इस बिल को लेकर काफी सशंकित रहा है और दबी जबान से इसका विरोध भी करता रहा है. हालांकि उसे यह पता है कि अमेरिकी सरकार के  पास किये किसी बिल पर या उसके प्रविधानों पर उसका कोई जोर नहीं चलेगा. ट्रंप के हस्ताक्षर की खबर के बाद भी चीन ने इस पर अपना विरोध जताया और कहा है कि अमेरिकी सरकार के इस कदम से दोनों देशों के बीच संबंध और खराब होंगे.

दरसल तिब्बतन पॉलिसी एंड सपोर्ट ऐक्ट 2020 तिब्बत पॉलिसी ऐक्ट 2002 का ही परिमार्जित रूप है. तिब्बत पॉलिसी ऐक्ट 2002 जॉर्ज डब्लू बुश के कार्यकाल में पास किया गया था. 2020 का ऐक्ट पहले से काफी सख्त है और उम्मीद की जाती है कि तिब्बत को लेकर चीन पर दबाव बनाने में भी यह कारगर होगा.

इस बिल के तहत अमेरिका ने इस बात की वचनबद्धता दोहराई है कि चौदहवें दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन में तिब्बती बौद्ध समुदाय की ही बात सुनी जाय और चीन का उसमें बेवजह और गैरजिम्मेदाराना दखल ना हो. इन दोनों बातों को सुनिश्चहित करने की जिम्मेदारी अब तिब्बती मामलों के अमेरिकी सरकार के विशेष कोऑर्डिनेटर रॉबर्ट डेस्ट्रो को सौंप दी गयी है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय में इस बात पर कूटनीतिक समर्थन जुटाना भी अब कोऑर्डिनेटर रॉबर्ट डेस्ट्रो के कार्यक्षेत्र में आएगा. माना जा सकता है कि अगर अमेरिका और चीन के सम्बंध आगे आने वाले दिनों में बदतर होते हैं तो तिब्बत का मुद्दा आग में घी भी बन सकता है और जंगल की आग भी.

दलाई लामा तिब्बती बौद्ध समुदाय के सर्वोच्च धर्म गुरु हैं. वर्तमान दलाई लामा, तेनजिन ग्यात्सो, जो कि तिब्बती बौद्ध समुदाय के चौदहवें दलाई लामा हैं, 1959 में चीन से भारत आ गए थे और तब से भारत में ही निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं. 1959 से 2012 तक वह निर्वासित तिब्बती सरकार – केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के सर्वोच्च प्रशासक भी रहे. उनके बाद उनका कार्यभार उनके उत्तराधिकारी लोबसांग सांगे ने सम्भाल लिया है जो हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में प्रधानमंत्री की हैसियत से केंद्रीय तिब्बती प्रशासन का कामकाज देख रहे हैं.

 चौदहवें दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर चीन और तिब्बती समुदाय में खासा विवाद और मतभेद रहा है. पंद्रहवें  दलाई लामा को लेकर अब तक चौदहवें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो ने कोई ठोस सुराग नहीं दिए हैं ना ही उन्होंने यह साफ  किया है कि उनके उत्तराधिकारी की पहचान कैसे हो. चीन इस मुद्दे पर काफी दिलचस्पी के साथ जुटा है. 1995 में ही चीन ने दलाई लामा या तिब्बती बौद्ध समुदाय से बिना किसी बातचीत और बहस मुबाहिसे के 11वें पंचेन लामा की घोषणा कर दी. दलाई लामा ने चीनी पंचेन लामा को यह कह कर अमान्य करार दिया कि अपना उत्तरधिकारी चुनना सिर्फ उनके कार्यक्षेत्र का हिस्सा है जिसे वह खुद और अपने चुने सहयोगियों की मदद से ही करेंगे.

चीनी सरकार ने यह भी कह दिया है कि उसे पंद्रहवें दलाई लामा का चयन करने का हक है. हालांकि एक ऐसी सरकार जिसका किसी धर्म से कोई सरोकार नहीं, उसकी धर्मगुरु के चयन में इतनी रुचि की वजह किसी से छुपी नहीं है.

चीन अपनी मर्जी का धर्मगुरु चुन कर एक तीर से दो शिकार करना चाह रहा है. एक तो यह कि नए धर्मगुरु के जरिए चीन निर्वासित तिब्बती सरकार को विफल करना चाहता है और दूसरा यह भी कि इससे तिब्बत में चीन का दबदबा और बढ़ जाय. चीन को मालूम है कि उसकी तिब्बत समस्या का रामबाण इलाज एक कठपुतली दलाई लामा ही है. तिब्बत के मोर्चे पर विफल और चारों ओर से आलोचना झेल रही चीनी सरकार के लिए इससे बेहतर कुछ हो भी नहीं सकता. यह बात और है कि यह काम चीन के लिए भी आसमान से तारे तोड़ लाने जितना ही कठिन है और चीन इससे वाकिफ भी है. ऐसे में यह अमेरिकी बिल उसके लिए और बड़ी अड़चनों का सबब बनेगा इसमें कोई दो राय नहीं है.

इसके अलावा बिल में अमेरिकी सरकार के ल्हासा में अपना काउंसलेट खोलने की बात भी कही है और यह भी कहा गया है कि जब तक चीन अमेरिका को तिब्बत में अपना काउंसलेट नहीं खोलने देता तब तक अमेरिका में भी चीन को कोई नया काउंसलेट खोलने की अनुमति नहीं होगी. इस मुद्दे पर चीन पहले से ही ऐतराज करता रहा है.

जाहिर है, वर्तमान दलाई लामा और उनके समर्थकों के लिये  तिब्बतन पॉलिसी एंड सपोर्ट ऐक्ट 2020 एक बड़ी खबर है. इसकी एक वजह यह भी है कि ऐक्ट एक तरह से केंद्रीय तिब्बती प्रशासन को भी मान्यता देता है. इस संदर्भ में केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के प्रधानमंत्री लोबसांग सांगे की नवम्बर 2020 की यात्रा और व्हाइट हाउस में बैठक एक बड़ा कदम था. पिछले साठ वर्षों में वह ऐसा करने वाले निर्वासित केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के पहले  प्रधानमंत्री थे. बहरहाल, ट्रंप सरकार ने तिब्बत को लेकर बाइडेन सरकार के सामने एक बड़ा रोडमैप रख दिया है. अब देखना यह है कि बाइडेन इसी रास्ते पर चलते हैं या कोई और रास्ता तलाश करने की कवायद करते हैं. फिलहाल इतना तो साफ है कि दोनों ही परिस्थितियां बाइडेन प्रशासन के लिए खासी चुनौतीपूर्ण होंगी.

(राहुलमिश्रमलायाविश्वविद्यालयकेएशिया-यूरोपसंस्थानमेंअंतरराष्ट्रीयराजनीतिकेवरिष्ठप्राध्यापकहैं)

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