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![कैपिटल बिल्डिंग में फ़साद के समय मौजूद एक महिला पत्रकार की आँखों-देखी कैपिटल बिल्डिंग में फ़साद के समय मौजूद एक महिला पत्रकार की आँखों-देखी](https://dailychhattisgarh.com/2020/article/1610020902amie_Stiehm.jpg)
जिस वक़्त वॉशिंगटन स्थित कैपिटल बिल्डिंग पर ट्रंप-समर्थकों ने हमला किया, तब जेमी स्टेह्म बिल्डिंग के अंदर ही थीं.
वे एक पत्रकार हैं और राजनीतिक विषयों पर लिखती हैं. जब भीड़ कैपिटल बिल्डिंग के अंदर दाख़िल हुई, तब जेमी प्रेस गैलरी में बैठी हुई थीं.
बुधवार सुबह से ही उन्हें लग रहा था कि कुछ बड़ा होने वाला है. उन्होंने इस बारे में अपनी बहन से बात भी की थी. उन्होंने अपनी बहन से कहा था, ‘लग रहा है कुछ बुरा होने वाला है.’
जब जेमी कैपिटल बिल्डिंग पहुँची थीं, तब ट्रंप के समर्थक बिल्डिंग के बाहर जमा थे. वे ट्रंप के समर्थन में नारेबाज़ी कर रहे थे. अमेरिकी झंडे उनके हाथों में थे और उनके गुस्से को देखकर लग रहा था कि अंदर ही अंदर कुछ पक रहा है.
प्रेस गैलरी में पहुँच कर उन्होंने देखा कि नेन्सी पेलोसी मंच पर हैं और वे सत्र का संचालन कर रही हैं.
इसके आगे की कहानी जेमी बताती हैं: “हम प्रेस गैलरी में थे और दूसरा घंटा लगा ही था, तभी अचानक काँच टूटने की आवाज़ें सुनाई दीं. कुछ ही मिनटों में पुलिस ने घोषणा की कि बिल्डिंग में लोग घुस आये हैं. तो लोगों ने आसपास देखना शुरू किया. तनाव और हड़बड़ी दिखने लगी थी. पुलिस के स्पीकर की आवाज़ और जल्दी जल्दी आने लगी. उस आवाज़ में चिंता साफ़ पता चल रही थी. वो कह रहे थे कि लोग अंदर की ओर बढ़ रहे हैं.”
“कुछ ही मिनटों में लोग अंदर के सेंट्रल हॉल तक पहुँच गये. लोकतंत्र का मंदिर कहे जाने वाले कैपिटल बिल्डिंग में तोड़फोड़ और आगजनी हो रही थी. प्रेस गैलरी में कई वरिष्ठ पत्रकार थे. इनमें से कई ने दंगा-फ़साद कवर किया है. लेकिन कैपिटल बिल्डिंग में ऐसी घटना की किसी ने उम्मीद नहीं की थी.”
“पुलिस को देखकर लग रहा था कि बात उनके हाथ से निकल चुकी है. उनमें सामंजस्य की कमी साफ़ दिख रही थी. तभी उन्होंने चैंबर हॉल के दरवाज़े बंद कर दिये और उन्होंने हम से कहा कि आपको यहाँ से निकलना होगा. ये सुनकर हम डर गये. मैं बहुत डरी हुई थी. हालांकि, बहुत से अन्य पत्रकार यह स्वीकार नहीं कर रहे थे कि उन्हें डर लग रहा है. इस बीच मैंने अपने परिवार को फ़ोन किया, मैंने उन्हें सारी परिस्थिति बताई और कहा कि हालात वाक़ई ख़तरनाक लग रहे हैं.”
"तभी गोली चलने की आवाज़ आयी. हम देख पा रहे थे कि दरवाज़े के पास खड़े पाँच लोगों ने बंदूकें तान रखी थीं. वो दरवाज़े के टूटे हुए काँच से बाहर देखने की कोशिश कर रहे थे और उन्हें देखकर लग रहा था कि वो किसी भी समय गोली चला देंगे. अच्छी बात ये रही कि चैंबर के अंदर कोई गोली नहीं चली. हम घुटने के बल प्रेस गैलरी से बाहर निकले. फ़िलहाल हम सदन के कैफ़ेटेरिया में हैं और डर की वजह से मुझे अब भी सिहरन महसूस हो रही है."(https://www.bbc.com/hindi)