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अमेरिका जैसा ऊपर से दिखता है, क्या भीतर से भी वैसा ही है?
08-Jan-2021 4:41 PM
अमेरिका जैसा ऊपर से दिखता है, क्या भीतर से भी वैसा ही है?

-विनीत खरे

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों के कैपिटल हिल पर हमले की घटना को कई लोग 'थर्ड वर्ल्ड' यानी 'तीसरी दुनिया' के समानांतर देख रहे हैं.

एक ट्वीट में लिखा गया, "ट्रंप एक तीसरी दुनिया/कम्युनिस्ट तानाशाह की तरह व्यवहार कर रहे हैं. उन्होंने वोटों की गिनती से पहले ही जीत का दावा कर दिया."

कई दिनों से राष्ट्रपति ट्रंप के चुनावों के नतीजों को स्वीकार ना करने को लेकर तीख़ी आलोचना हो रही है.

उनके समर्थकों के एक बड़े वर्ग का मानना है कि चुनाव में धांधली हुई थी. उन्हें उनके नेता के बेबुनियाद बयानों पर भरोसा था.

बुधवार की घटना देश के राजनीतिक और वैचारिक विभाजन को दिखाती है, जहां अराजकता की तस्वीरों ने शर्मिंदगी और ख़ुद में झांकने को मजबूर किया.

'तीसरी दुनिया' टर्म के इस्तेमाल से एक ऐसी जगह की तस्वीर उबरती है, जहां संस्थाएं बर्बाद हो चुकी हैं और अराजक शासन व्यवस्था है.

फ्लोरिडा के सांसद मार्क रुबियो ने ट्वीट किया, "कैपिटल हिल पर जो हो रहा है, उसमें देश भक्ति जैसा कुछ भी नहीं है. यह तीसरी दुनिया की अमेरिका-विरोधी अराजकता है." इस ट्वीट पर कई प्रतिक्रियाएं आ रही हैं.

लेकिन क्या तीसरी दुनिया इतनी बुरी है?

घटना की तस्वीरों पर लेखक आतिश तासीर ने कहा, "यह तीसरी दुनिया के देश में भी नहीं होगा."

उन्होंने कहा, "मैंने पाकिस्तान में ऐसे चुनाव देखे हैं जहां लोग मारे गए हैं, धांधली हुई है, गोलियां चलाई गई हैं ... (लेकिन) ये अपनी तरह की एक घटना है."

श्रुति राजगोपालन ने मार्को रूबियो के ट्वीट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "मैं तीसरी दुनिया में पली-बढ़ी हूं और मैं आपको विश्वास दिलाती हूं कि हम चुनाव के बाद ऐसे सत्ता हस्तांतरित नहीं करते हैं."

किसी ने पूछा, "तीसरी दुनिया के एक गर्वित प्रोडक्ट के रूप में कहूंगा कि 'कृपया ये सब ना कहें. ये ज़िनोफ़ोबिक है. (अपने से अलग किसी व्यक्ति या विदेशी से डर या नापसंदगी ज़ाहिर करना)

शीत युद्ध के बाद, "ग़ैर-गठबंधन" वाले देशों को तीसरी दुनिया के तौर पर जाना जाता था, लेकिन अब इसे व्यापक रूप से विकासशील दुनिया या निम्न या निम्न-मध्यम-वर्ग के आय वाले देशों के लिए उपयोग किया जाता है.

तीसरी दुनिया का इस्तेमाल दुनिया के कुछ हिस्सों को सभ्य पश्चिमी देशों की सरकार की तुलना में ज़्यादा अराजक और तख़्तापलट के लिए संवेदनशील बताने के लिए भी किया जाता है.

लेकिन क्या अमेरिका और पश्चिमी देशों के लोगों को अपने हिंसक इतिहास पर ध्यान नहीं देना चाहिए?

यरूशलम पोस्ट के एडिटर सेथ फ्रेंट्ज़मैन ने लिखा, "केवल 100 साल पहले ही ज़्यादातर पश्चिमी देश इस तरह की अराजकता और तख्तापलट की कोशिशों से भरे थे जैसा कि आज वॉशिंगटन में देखा गया."

उन्होंने लिखा, "1920 और 1930 के दशक में यूरोप में अराजकता, विश्व युद्ध और होलोकॉस्ट की ओर ले गई. इसी तरह, अमेरिका में भी 1920 और 1930 के दशक हिंसा और अतिवाद से भरे थे."

"यह भी याद किया जाना चाहिए कि महिलाओं को 1971 में स्विट्जरलैंड में वोट देने का अधिकार प्राप्त हुआ, स्पेन में 1978 में लोकतंत्र आया, और ग्रीक कर्नलों ने 1974 तक देश का नेतृत्व किया. उत्तरी आयरलैंड में राजनीतिक हिंसा 1990 के दशक में समाप्त हुई और पूर्वी यूरोप में 1990 के दशक में लोकतंत्र आया."

"अमेरिका की अराजकता को तीसरी दुनिया का कह देना बहुत आसान है. पिछले वर्षों में उठे मुद्दे अमेरिका के दिल से जुड़े हुए हैं, चाहे इसलिए कि उनमें से कुछ 'हृदयभूमि' में पनपे हैं, या न्‍यूयॉर्क शहर के एक प्रॉपर्टी मालिक से शोमैन बने शख़्स की वजह से जो राष्ट्रपति पद की भूमिका गॉडफादर फ़िल्म की तरह निभा रहा था. "

अमेरिका भी ऐसा देश है जो मानवाधिकारों, पेशेवर ताक़तों और लोकतांत्रिक मानदंडों पर चलने को लेकर दूसरों को भाषण देता है. लेकिन जॉर्ज फ्लॉयड, ब्रेओना टेलर और वैसी अन्य हत्याओं को लेकर 'ब्लैक लाइव्स मैटर' प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ बल प्रयोग किए जाने की वजह से अमेरिकी पुलिस आलोचना की शिकार हुई है.

अमेरिकी पुलिस के हाथों हर साल सैकड़ों लोग मरते हैं लेकिन केवल कुछ मामलों में ही अधिकारी आपराधिक आरोपों का सामना करते हैं.

2019 में एक ब्लैक महिला को उनकी बेडरूम की खिड़की से पुलिस ने तड़के गोली मार दी थी. पिछले साल पुलिस ने एक ब्लैक व्यक्ति को गोली मार दी और पुलिस के मुताबिक़ ये एक घरेलू घटना की प्रतिकिया में हुआ.

इन घटनाओं की बुधवार को हज़ारों ट्रंप समर्थकों के ख़िलाफ़ पुलिस की कार्रवाई से तुलना करें तो जहां ज़्यादातर गोरे पुलिस से भिड़ गए, कैपिटल बिल्डिंग के अंदरूनी हिस्सों में तोड़फोड़ की, दीवारों पर चढ़ गए, खिड़कियां तोड़ दीं और इमारत में फैल गए.

तासीर ने कहा, "हमने एक समुदाय के साथ ऐसे बर्ताव को देखा जो इस तरह के गंभीर अपराध के लिए किसी अन्य समुदाय के साथ नहीं किया गया."

एक दिन बाद मैं कैपिटल हिल के बाहर जेसी जेम्स से मिला. उन्होंने ख़ुद को ट्रंप के बैनर से ढका हुआ था. एक दिन पहले ही वे उन हज़ारों लोगों के साथ मौजूद थे, जिन्होंने कैपिटल हिल की सुरक्षा को तोड़ा.

जेम्स का दावा है कि वे किसी हिंसा में शामिल नहीं थे.

उन्होंने कहा, "लोग बस घूम रहे थे. वे सीढ़ियों पर खड़े थे क्योंकि हमें लगा कि हम सीढ़ियों पर खड़े हो सकते हैं. हमें किसी ने उतरने को नहीं बोला."

"नेशनल गार्ड कह रहे हैं कि वे यहां थे. मैंने तो उन्हें कहीं नहीं देखा. शायद वे हों पर मैंने तो नहीं देखा."

एक्टिविस्ट इसे पुलिस का दोहरा रवैया बता रहे हैं और तीसरी दुनिया उसे नोटिस कर रही है.

रिपब्लिकन शहाब क़रनी ने कहा, "अगर किसी अफ्ऱीकी-अमेरिकी ने कैपिटल हिल का एक कांच भी तोड़ा होता तो सोचिए पुलिस और नेशनल गार्ड की क्या प्रतिक्रिया होती. वॉशिंगटन डीसी जल रहा होता."

उन्होंने कहा, "फ़िलहाल जो एक्शन लिया गया वो एक धोखा है. ऐसा लग रहा है कि अमेरिका दो भागों में विभाजित हो गया है और बीच में एक लाइन खिंच गई है."

नेशनल जियोग्राफिक के एक लेख में रानिया अबुज़ीद पूछती हैं कि क्या ये घटना शहर की छवि को परिभाषित करेगी.

वे लिखती हैं, "बग़दाद, बेरुत, बोगोटा जैसे शहर अक्सर उसकी बुरी यादों से परिभाषित किए जाते हैं. उनका नाम जैसे किसी एक वक़्त का पर्यायवाची है. क्या वॉशिंगटन डीसी को भी इस लिस्ट में डाल दिया जाए?"

"क्या अब सभी गोरे अमरीकियों को कुछ लोगों की वजह से दंगाई कहने लगें और उनके साथी अमरीकियों के जुर्म के लिए उनसे माफ़ी मंगवाएं?"

ये सब कितना भी बुरा रहा हो लेकिन आतिश तासीर इसमें उम्मीद देखते हैं कि एक कुर्सी पर बैठे राष्ट्रपति के अपनी पार्टी और उप-राष्ट्रपति पर चुनाव नतीजों को रद्द करवाने के दबाव के बावजूद सिस्टम बना रहा.

उन्होंने कहा, "संदेश है...संस्थाएं, संस्थाएं, संस्थाएं."

हडसन इंस्टिट्यूट की अपर्णा पांडे कहती हैं, "लोकतंत्र हर जगह नाज़ुक है."

"बहुत पहले जब बेंजामिन फ्रेंकलिन से पूछा गया कि अमेरिका क्या है तो उन्होंने जवाब दिया- 'एक गणतंत्र, अगर आप इसे बनाए रखें तो." (bbc.com)

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