अंतरराष्ट्रीय

जर्मनी: डॉक्टर और नर्स ही वैक्सीन से कतराने लगे हैं
08-Jan-2021 6:35 PM
जर्मनी: डॉक्टर और नर्स ही वैक्सीन से कतराने लगे हैं

कोरोना वायरस से पीछा छुड़ाने का एक ही मुमकिन तरीका नजर आ रहा है - वैक्सीन. लेकिन "हाई रिस्क" श्रेणी में होने के बावजूद जर्मनी में कई डॉक्टर और नर्स टीका नहीं लगवा रहे. जानिए क्यों.

          डॉयचे वैले पर येंस थुराऊ/ईशा भाटिया का लिखा -

सेबास्टियान श्मिट बर्लिन के बेथेल अस्पताल के आईसीयू में बतौर नर्स काम करते हैं. वे जल्द से जल्द टीका लगवाना चाहते हैं, "मैं हर दिन कोरोना वायरस के कारण लोगों को मरते हुए देखता हूं. मैं देखता हूं कि कैसे लोग तड़पते हैं, वायरस लोगों को कितनी बुरी तरह बीमार कर देता है. इसलिए मैं हर हाल में टीका लगवाना चाहता हूं. सिर्फ खुद को बचाने के लिए ही नहीं, अपने परिवार के लिए भी. मेरी जिम्मेदारी बनती है कि मैं उनकी सुरक्षा के बारे में भी सोचूं."

जर्मनी में हर रोज कोरोना वायरस से औसतन एक हजार लोगों की जान जा रही है. इसे देखते हुए सामान्य समझ तो यही कहती है कि लोग टीका लेने के लिए बेताब होंगे. खास कर डॉक्टर और नर्स, जिन्हें हर दिन कोरोना के मरीजों का सामना करना होता है. लेकिन असलियत कुछ और ही है. देश में ऐसे डॉक्टरों और नर्सों की काफी संख्या है जो फिलहाल इस टीके से बचना चाहते हैं.

बेथेल अस्पताल में ही काम करने वाली नर्स विवियन कॉखमन इसकी एक मिसाल हैं. वे एक छोटे बच्चे की मां भी हैं. पिछले लगभग एक साल से वह सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पूरी संजीदगी से पालन कर रही हैं, मास्क लगा रही हैं, दिन में कई बार अपने हाथ धो रही हैं और कम से कम लोगों से मिल रही हैं. लेकिन फिर भी वह टीके को ले कर बहुत उत्साहित नहीं हैं, "मैं इस पूरे मामले को लेकर थोड़ी सतर्क हूं. मुझे चिंता है क्योंकि वैक्सीन को आए बहुत वक्त नहीं हुआ है, इसलिए मैं यह नहीं कह सकती कि मैं इससे 100 फीसदी आश्वस्त हूं. लेकिन यह मेरी निजी राय है."

विवियान मूल रूप से टीकों के खिलाफ नहीं हैं. बाकी हर मुमकिन टीके उन्होंने लगवाए हैं लेकिन कोरोना के मामले में वह उम्मीद कर रही हैं कि शायद वक्त बीतने के साथ इसके अच्छे और बुरे असर को बेहतर समझा जा सकेगा.

50% नर्स नहीं लगवाना चाहती टीका

दिसंबर में आई एक रिपोर्ट के अनुसार जर्मनी में 73 प्रतिशत डॉक्टर और 50 प्रतिशत नर्स ही कोरोना का टीका लगवाना चाहते हैं. देश में वैक्सीन लगाने का पहला चरण शुरू हो गया है. इसमें वे लोग शामिल हैं जिनकी उम्र 80 से अधिक है और वे डॉक्टर और नर्स भी, जो इनका इलाज करते हैं. अगले चरण में 70 से अधिक उम्र वाले और उसके बाद 60 से अधिक उम्र वाले लोगों और उनके डॉक्टरों को टीका लगेगा. लेकिन टीका लगवाना अनिवार्य नहीं है. स्वास्थ्य मंत्री येंस श्पान ने भी हाल ही में कहा था कि कुछ नर्सिंग होम में 80 फीसदी स्टाफ को टीका लग चुका है, तो कुछ ऐसे हैं जहां मात्र 20 फीसदी स्टाफ ने ही टीका लगवाया है.

इन टीकों पर हुए परीक्षण सिर्फ फौरन होने वाले साइड इफेक्ट के बारे में ही बताते हैं. लंबे समय में इनका क्या असर होगा, यह तो वक्त के साथ ही पता चलेगा. टीका ना लगवाने की सबसे बड़ी वजह इसी को माना जा रहा है. कई महिलाएं इस बात को भी लेकर चिंतित हैं कि आगे चल कर इसका असर उनकी प्रेग्नेंसी पर ना पड़े. जहां आम जनता उम्मीद कर रही है कि टीकाकरण पूरा होने के बाद उन्हें मास्क से मुक्ति मिल जाएगी, वहीं नर्सों के लिए ऐसा मुमकिन नहीं होगा. उन्हें टीके के बावजूद पीपीई किट और मास्क लगाना होगा.

इस बीच, आम जनता में वैक्सीन को लेकर विश्वास बढ़ रहा है. ताजा आंकड़े दिखाते हैं कि 54 प्रतिशत लोगों का कहना है कि वे टीका लगवाएंगे और 21 प्रतिशत का कहना है कि वे टीका लगवाने के बारे में सोच रहे हैं. जानकारों के अनुसार देश में हर्ड इम्यूनिटी हासिल करने के लिए 60 प्रतिशत लोगों को टीका लगना ही काफी होगा.(dw.com)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news