अंतरराष्ट्रीय
मीडिया संस्थानों पर लगाए जा रहे भारी टैक्स के विरोध में पोलैंड में 24 घंटों के लिए रेडियो, टीवी और न्यूज वेबसाइटें बंद रहेंगी. मीडिया का आरोप है कि टैक्स मीडिया की आवाज को दबाने के लिए लगाया जा रहा है.
(dw.com)
बुधवार, 11 फरवरी को पोलैंड में प्राइवेट मीडिया लगभग पूरी तरह बंद रहेगा. 45 निजी मीडिया संस्थान इसमें हिस्सा ले रहे हैं. इस दौरान न्यूज वेबसाइटों पर काली स्क्रीन और सरकार के विरोध में बैनर लगा देखा जा सकता है. आज सुबह के अखबारों के पहले पन्ने भी काले ही दिखे.
यह नया टैक्स टीवी, रेडियो, प्रिंट और इंटरनेट मीडिया कंपनियों पर लगेगा. सिनेमा भी इसकी चपेट में आएंगे. सरकार का कहना है कि कोरोना महामारी के दौरान नेशनल हेल्थ फंड को बढ़ाने के लिए ऐसा किया जा रहा है. सरकार के अनुसार मीडिया पर लगे टैक्स का 50 फीसदी हिस्सा स्वास्थ्य सेवाओं को दुरुस्त करने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा.
प्रधानमंत्री माटेउष मोरावीकी ने इसे सद्भावना शुल्क का नाम दिया है और कहा है कि इसका इस्तेमाल देश के सांस्कृतिक क्षेत्र को मजबूत करने के लिए भी किया जाएगा. सरकारी प्रवक्ता पियोत्र म्यूलर ने सरकारी टीवी चैनल पर इसका बचाव करते हुए कहा है कि यूरोप के अन्य देशों में भी इस तरह के टैक्स लगे हुए हैं.
मीडिया की आजादी पर हमला
वहीं, देश में मीडिया का कहना है कि यह टैक्स मीडिया की आजादी को छीनने के लिए लगाया गया है. सरकार को लिखे गए एक खुले पत्र में 40 मीडिया संस्थानों ने मिल कर लिखा है कि इतने भारी टैक्स के चलते देश में बहुत सी मीडिया कंपनियों को बंद करने की नौबत आ सकती है. ऐसे में, जनता को निष्पक्ष जानकारी नहीं मिल सकेगी.
अमेरिका का डिस्कवरी ग्रुप पोलैंड में टीवीएन नाम का चैनल चलाता है. चैनल ने एएफपी से बातचीत में कहा है कि यह सरकार की अभिव्यक्ति की आजादी को रोकने की कोशिश है. वहीं रेडियो जेन ने अपने श्रोताओं से कहा, "बिना स्वतंत्र मीडिया के स्वतंत्र देश नहीं होते हैं. चुनने की आजादी के बिना कोई आजादी नहीं होती."
यह टैक्स केवल प्राइवेट चैनलों या निजी मीडिया कंपनियों पर ही लगेगा. सरकारी चैनल इससे बाहर रहेंगे. पिछले कुछ वक्त से पोलैंड की दक्षिणपंथी सरकार मीडिया की आजादी पर नकेल कसने की कोशिशें करती रही है. सरकारी रेडियो और टीवी चैनलों में बड़ी संख्या में स्टाफ को बदला गया है.
इसके अलावा निजी मीडिया कंपनियों की विज्ञापन के जरिए होने वाली कमाई को भी रोकने की कोशिश की गई है. बताया जा रहा है कि बुधवार को सरकार के खिलाफ प्रदर्शन में हिस्सा लेने वाले कई मीडिया संस्थान ऐसे हैं, जिन पर बंद होने और सरकार द्वारा अधिग्रहण का खतरा है. ऐसे में सरकार के खिलाफ लिखने वालों की नौकरियां जाना तय ही दिखता है.
आईबी/एके (एएफपी, डीपीए)