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सीरिया में दमन के पीड़ितों को जर्मनी में मिला इंसाफ
05-Mar-2021 7:45 PM
सीरिया में दमन के पीड़ितों को जर्मनी में मिला इंसाफ

लूना वात्फा सीरिया की खुफिया सर्विस की कैद में थीं. अब वह जर्मनी में है. जर्मन शहर कोबलेंस की अदालत में वे सीरियाई नागरिकों को यातना देने के जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ जारी मुकदमे को करीब से देखती रही हैं.

       डॉयचे वैले पर मथियास फॉन हाइन​ की रिपोर्ट- 

जर्मनी में आ बसे सीरियाई शरणार्थियों के लिए वो एक खास मौका था जब देश की एक अदालत ने उन पर जुल्म ढहाने वाले सीरिया के पूर्व खुफिया एजेंट को सजा सुनाई. दूसरे पूर्व एजेंट के खिलाफ सुनवाई जारी है. इन दो पूर्व अफसरों की यातनाओं का शिकार हुई एक सीरियाई शरणार्थी महिला भी अदालती कार्यवाही को बतौर नागरिक पत्रकार रिपोर्ट करने के लिए पहुंचती रही.

एक दिलेर महिला की दास्तान
लूना ने अपना असली नाम जाहिर करने से मना किया था. वे 60 दिन तक अदालत आती रहीं. इंसाफ की तलाश में और दर्द भरे अनुभवों को फिर से जीने के लिए. उनका कहना है, "मुझे याद है मेरे साथ क्या हुआ था. जब चश्मदीद अपनी दास्तान सुनाते हैं तो मेरे लिए वे सब बातें सुनना बेहद मुश्किल हो जाता है.'

कोबलेंस में राइन नदी के एक किनारे पर लूना का घर है. दूसरे किनारे पर कोर्ट है, जिसे वे बखूबी जानती हैं. लूना के दो बच्चे हैं. अप्रैल 2020 में सीरियाई खुफिया सेवा के दो पूर्व एजेंटो पर मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए मुकदमा शुरू हुआ था. सीरिया के दमन तंत्र को दुनिया के सामने फाश करने वाला यह अपनी तरह का पहला मुकदमा था. एक चश्मदीद ने यह तक बताया कि कैसे जेल के गार्ड ने उसका भयानक शोषण किया था. उसी गार्ड ने लूना को भी यातना दी थी. दस साल पहले क्रांति की चपेट में आए सीरिया में लूना अपनी बिताई जिंदगी के बारे में बताती हैं. वह जेल की दयनीय स्थितियों का जिक्र करती हैं कि बामुश्किल दस वर्ग मीटर की एक सेल में कैसे उन्हें 20 अन्य महिला कैदियों के साथ ठूंस कर रखा गया था.

बुधवार को लूना कोर्ट पहुंचीं. उसी दिन पहला फैसला भी आया. सुनवाई का एक दिन भी उन्होंने नहीं गंवाया. हर रोज गवाहों और एक्सपर्ट गवाहों को सुनने गईं. एक गवाह वह था जिसे लूना "कब्र खोदने वाला” कहती हैं. सीरिया में अपने परिवार की खैरियत के लिए वो अज्ञात रूप से मध्य सितंबर में अदालत में हाजिर हुआ था. इसीलिए मुकदमे में उसकी पहचान छिपाते हुए गवाह संख्या "जेड 30/07/19" के तौर पर दर्ज किया गया था.

सीरिया से भाग कर जर्मनी आ गए दमिश्क में कब्रिस्तान विभाग के पूर्व कर्मचारी ने बताया कि कई साल तक खुफिया सर्विस वालों ने उससे जबरन लाशें ढुलवाई जिनके लिए सामूहिक कब्रें खोदी गई थीं. हफ्ते में कई बार उसे यह काम करना पड़ता था. एक बार में सैकड़ों लाशें आती थीं और उनमें से कई लाशों पर यातना के भयानक निशान दिखते थे. एक और खौफनाक मंजर दिखता था "सीजर तस्वीरों” के जरिए. कस्टडी में मारे जाने वाले लोगों की तस्वीर खींचने का काम करने वाले सीरियाई सेना के एक फोटोग्राफर ने चुपचाप उनकी कॉपियां बना ली थीं. उसने वे तस्वीरें जर्मन संघीय अभियोजन दफ्तर को भेज दी.

कोलोन में रहने वाले फोरेन्सिक पैथॉलोजिस्ट मारकुस रॉथशाइल्ड ने लोगों की यातना और भूख से हुई मौतों की इन हजारों तस्वीरों का विश्लेषण किया. शुरुआती नवंबर में दो दिन तक अपने नतीजे उन्होंने कोबलेंस की अदालत में पेश किए. लूना ने कहा कि अदालत में पेश तस्वीरों को देखना और उनका ब्यौरा सुनना भयानक था. लूना ने सुनवाइयों के दौरान यातना के शिकार एक आदमी से बात की. लूना ने बताया, "उस आदमी ने अपनी तमाम चोटों के साथ मुझे अस्पताल का एक वीडियो दिखाया. सीजर तस्वीरों जैसी ही वे तस्वीर भी दिखती थी लेकिन वह आदमी अब भी जिंदा है.'

राजनीति और संघर्ष की समझ
मार्च 2011 में बशर अल-असद के खिलाफ शुरू हुए प्रदर्शनों से पहले लूना को राजनीति से कोई मतलब नहीं था. वे कहती हैं, "मुझे बिल्कुल नहीं पता था कि देश में हो क्या रहा था. मैं न सरकार के साथ थी न उसके खिलाफ.” लेकिन कानून की पढ़ाई कर चुकी लूना से न रहा गया. उन्होंने पढ़ना शुरू किया. सीरिया के इतिहास से जुड़ी किताबें, असद परिवार के अपराधों के ब्यौरों वाली किताबें और यह समझाने वाली किताबें कि लोग आखिर सड़कों पर क्यों उतरे हैं. करीब चार या पांच महीने मन लगाकर लूना ने किताबें पढ़ीं. उसके बाद वे भी प्रदर्शनों में शामिल हो गईं. वे देश के दूसरे हिस्सों से राजधानी दमिश्क आने वाले शरणार्थियों की मदद के काम में जुट गईं.

एक दोस्त के मशविरे पर लूना एक सिटीजन जर्नलिस्ट यानी नागरिक पत्रकार बनीं. सीरियाई वॉयस नामक संगठन की मदद से एक साल तक पत्रकारिता के सबक ऑनलाइन सीखे. वे सूचना पर हुकूमत के एकाधिकार के खिलाफ कुछ करना चाहती थीं. छद्म नाम लूना के साथ उन्होंने 2013 के मध्य में एक ऑनलाइन प्रोग्राम शुरू किया. वे याद करती हैं कि वह कार्यक्रम दमिश्क में मिले मृतकों के बारे में था, "कोई नहीं जानता था कि वे कौन थे. मैंने उन लोगों के बारे में सूचनाएं देना शुरू कर दिया. जब उनके रिश्तेदार सुन लेते, तो फोन करते और कहते - वो मेरे पिता थे या वो मेरा बेटा था.”

खुफिया एजेंटों के रडार में
दमिश्क के घाउटा इलाके में अगस्त 2013 में रासायनिक हथियारों का एक हमला, लूना को सुरक्षा अधिकारियों की नजरों में ले आया था. इलाके के कुछ लोगों की मदद से लूना ने उस हत्याकांड को डॉक्युमेंट करने का फैसला किया. उन्होंने बताया, "हमने बहुत सी तस्वीरें खींची, वीडियो उतारे. मैंने खुद 800 पीड़ितों के नाम दर्ज किए.' उन्होंने यह विस्फोटक सामग्री विदेश में सीरियाई विपक्ष को भेज दी. लूना के मुताबिक तमाम सूचना एक यूएसबी स्टिक में थी. खुफिया सेवा के रडार में आते ही उनकी तलाश शुरू हो गई.

करीब चार महीने बाद वह दिन भी आया. 2013 के आखिर का ही वह कोई दिन था जब दमिश्क की सड़कों पर लूना भी उतरी हुई थीं. वे युद्ध भड़कने के बाद दूसरे शहरों से भागकर दमिश्क आ गए लोगों की मदद कर रही थीं. तभी तीन कारें एक झटके के साथ आकर रुकीं, दर्जन भर सुरक्षा गार्ड बाहर निकले. एक ने उनका नाम पूछा और आईडी तलब की. वे याद करती हैं, "वे मुझे खींच कर एक कार तक ले गए. उन्होंने मेरा स्कार्फ मेरी आंखों पर बांध दिया. वो मुझे डिपार्टमेंट 40 में ले गए. यह वही डिपार्टमेंट था जहां एयाद ए ने लंबे समय तक काम किया था.'

कोबलेंसके मुकदमे में अपना बचाव करने वालों दो अभियुक्तों में से एयाद ए को साढ़े चार साल जेल की सजा सुनाई जा चुकी है. लेकिन लूना की गिरफ्तारी होने तक वह सबकुछ छोड़छाड़कर देश से भाग गया था. बाद में लूना को यातना शिविर अल-खतीब भेज दिया गया, जिसे "धरती पर नरक” का दर्जा हासिल था.  दूसरा अभियुक्त अनवर आर वहां इंटरोगेटर था. लेकिन उस समय तक वह भी सीरिया छोड़ चुका था. इसीलिए लूना इस मुकदमे में बतौर गवाह शामिल नहीं है. वे पर्यवेक्षक की हैसियत से कोर्ट आती हैं और अरब मीडिया के लिए मुकदमे की रिपोर्टिंग करती हैं.

मनोवैज्ञानिक खौफ से झुकाने की कोशिश
एजेंटों की पूछताछ में लूना ने अपने ऊपर लगाए गए सभी आरोपों को खारिज कर दिया. खुफिया एजेंट उन्हें लेकर उनके अपार्टमेंट भी गए जहां उनके लैपटॉप से जाहिर हुआ है कि वही लूना थीं. एजेंटों ने उनसे अपने सहयोगियों के नाम बताने को कहा. उन्होंने कहा कि उनके अलावा कोई और था ही नहीं, कि वे अकेले ही काम करती थीं, "तब एक अधिकारी ने कहा, ठीक है तुम मदद नहीं करना चाहती हो? तो हम तुम्हारे बेटे और बेटी को गिरफ्तार करेंगे! वे मेरी आंखों के सामने मेरे बेटे को ले गये- और मेरे लिए ये एक बहुत भयानक अनुभव था.'

उसी समय उन्होंने रेडियो पर निर्देश सुने कि उनकी बेटी को भी स्कूल से उठवा लिया जाए, "उस पल से मैंने अपने बच्चों को नहीं देखा था. हर पूछताछ में वे मुझे धमकाते कि सब सच सच बता दो, वरना हम तुम्हारे बच्चों को तुम्हारी आंखों के सामने टॉर्चर करेंगे. खुद की यातना से ज्यादा मुझे अपने बच्चों की चिंता थी. मैं नहीं जानती थी कि वे कहां थे, हो सकता है कि यहीं कहीं उन्हें भी रखा गया होगा, ऐसा सोचती थी.'

दो महीने लूना तीन अलग अलग विभागों में सीक्रेट सर्विस की कैदी बनकर रहीं. फिर उन्हें बाकायदा जेल में डाल दिया गया. गिरफ्तारी के बाद पहली बार वहां उन्हें अपने परिवार से संपर्क की इजाजत दी गई. उन्होंने पाया कि सीक्रेट सर्विस ने मनोवैज्ञानिक आतंक का खेल रचाया था. यह दिखाने के लिए कि उनके बेटे को अलग ले जाया गया था और बेटी के स्कूल कोई नहीं गया था.

पुरानी यादों के साथ नया घर
जेल में 13 महीने बिताने के बाद लूना को जब रिहा किया गया, तो उनके वकील ने उन्हें भाग जाने की सलाह दी. वो अपने बच्चों के साथ रहना चाहती थीं. लेकिन दबाव इतना ज्यादा था कि लूना को भागकर तुर्की जाना पड़ा. वहां से वो दूसरे सीरियाई शरणार्थियों की तरह बाल्कन से होते हुए जर्मनी पहुंचीं. कुछ समय बाद उनके बच्चे भी भागकर तुर्की पहुंच गए. लूना को जब जर्मनी में शरणार्थी के रूप में मान्यता मिल गई, तो वे शरण के नियमों के तहत अपने बच्चों को जर्मनी ला सकती थीं. इसके बाद वे अपने बच्चों को लेकर कोबलेंस आ बसीं.

एक लाख की आबादी वाला कोबलेंस शहर एयाद एक और अनवर आर के खिलाफ मुकदमे का अकेला चश्मदीद बन गया. लूना के मुताबिक, "इस मुकदमे के जरिए हमें पहली बार अपने अनुभवों के बारे मे बोल पाने का मौका मिला है. इंसाफ का यह एक छोटा सा कदम है लेकिन निहायत ही अहम है.” बतौर पत्रकार, वे कहती हैं कि निजी रूप से उन पर भी दमन का असर पड़ा है लेकिन निरपेक्ष रहने की कोशिश करती हैं. उनका कहना है, "जाहिर है इन अभियुक्तों को हर बार देखना अजीब है. और बतौर पीड़ित या सरवाइवर हम लोग मजबूत स्थिति में हैं और वे दोनों अभियुक्त हैं.'

ब्लैक टी का एक घूंट भरते हुए लूना कहती हैं कि बचाव पक्ष के रूप में जैसी स्थिति इन लोगों की यहां हैं, वैसी सीरिया में कभी न होती. क्योंकि उन्हें याद है कि वहां वे भी अपने हकों से महरूम हो चुकी थीं. उन्हें पता है कि अभियुक्त होने के बावजूद अनवर आर और एयाद ए के पास जर्मनी में अपने अधिकार हैं. और वे उनका दावा करने की स्थिति में हैं. बहरहाल, इस सबके बीच लूना नहीं चाहतीं कि वे अभियुक्त भी वही सब भुगतें जैसा उन्होंने या कोर्ट में पेश होने वाले गवाह भुगत चुके हैं. वैसा किसी के साथ भी हरगिज न हो. (dw.com)

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