अंतरराष्ट्रीय
इमेज स्रोत,U.S. EMBASSY IN NEPAL
-कमलेश
नेपाल की मुस्कान ख़ातून 15 साल की छोटी-सी उम्र में ही एक बड़ी लड़ाई पर निकल चुकी हैं- एसिड अटैक के ख़िलाफ़.
मुस्कान ख़ुद एक एसिड अटैक पीड़िता हैं और इस जघन्य अपराध के ख़िलाफ़ सख़्त क़ानून के लिए आवाज़ उठा रही हैं.
वह कहती हैं, “जब मेरा इलाज चल रहा था तब मैं बार-बार यही सोच रही थी कि इलाज के लिए पैसे कहां से आएंगे. मेरे घरवाले क्या करेंगे. इसी तकलीफ़ के बीच मुझे ख्याल आया मेरी जैसी उन सभी लड़कियों का जो इसी दर्द से गुज़रती हैं.”
उनकी मेहनत कुछ हद तक रंग लाई है और नेपाल में इस अपराध के लिए अध्यादेश जारी कर नया क़ानून बनाया गया है.
एसिड अटैक के ख़िलाफ़ लड़ाई में अपने इसी योगदान और साहस के लिए मुस्कान ख़ातून को अमेरिका में इंटरनेशनल वुमन ऑफ़ करेज (आईडब्ल्यूओसी) अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है.
MUSKAN KHATUN
अमेरिका में आठ मार्च को इस अवॉर्ड को लेकर एक वर्चुअल कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा जिसमें अमेरिका की फ़र्स्ट लेडी जिल बाइडन और विदेश मंत्री टॉनी ब्लिंकन भी मौजूद होंगे.
ये आईडब्ल्यूओसी का 15वां साल है. इस अवॉर्ड के ज़रिए दुनिया भर की उन महिलाओं को सम्मानित किया जाता है जिन्होंने शांति, न्याय, मानवाधिकारों, लैंगिक समानता और महिलाओं के सशक्तीकरण की वकालत करते हुए असाधारण साहस और नेतृत्व का प्रदर्शन किया है और ऐसा करते हुए वो जोखिम उठाने और त्याग करने से भी पीछे नहीं हटी हैं.
इससे पहले मलाला यूसुफ़ज़ई को पाकिस्तान में महिलाओं और लड़कियों के लिए किए गए काम को लेकर ये अवॉर्ड दिया जा चुका है.
14 साल की उम्र में असहनीय पीड़ा
मुस्कान ख़ातून नेपाल के बीरगंज शहर में रहती थीं और वहीं स्कूल भी जाया करती थीं.
छह सिंतबर 2019 वो दिन था जब मुस्कान को एक लड़के को ना कहने की क़ीमत चुकानी पड़ी. तब मुस्कान नौवीं क्लास में पढ़ती थीं और वो लड़का उन्हें परेशान किया करता था. उन्होंने अपने घर में इस बारे में बताया.
मुस्कान बताती हैं, “तब मेरे अब्बू ने उस लड़के को डांटा और कहासुनी में थप्पड़ भी मार दिया. उस वक़्त तो लड़के ने कहा कि वो अब मुझे परेशान नहीं करेगा लेकिन वो चार महीने बाद फिर आया.”
MUSKAN KHATUN
“उसके साथ उसका एक दोस्त भी था. उनके हाथ में एसिड से भरा जग था. उन्होंने मुझे एसिड पिलाने की कोशिश की लेकिन जब मैंने ऐसा नहीं होने दिया तो उन्होंने मुझ पर एसिड फेंक दिया. वो तो मुझे मारना ही चाहते थे. उस वक़्त मैं दर्द से तड़प रही थी. आसपास के कुछ लोगों ने मुझे अस्पताल पहुँचाया.”
अस्पताल में मुस्कान का लंबा इलाज चला. इस हमले में उनका एक तरफ़ से चेहरा, दोनों हाथ, गला, सीना और एक कान झुलस गए. उनके कान को काफ़ी नुक़सान पहुँचा है.
इलाज के ख़र्च की चिंता
एसिड में झुलसीं मुस्कान उस असहनीय दर्द से गुज़रीं जिसकी कल्पना करना भी मुश्किल है. ये तकलीफ़ जितनी शारीरिक थी उतनी मानसिक भी थी.
नौवीं क्लास की मुस्कान आगे पढ़ना चाहती थीं और डॉक्टर बनना चाहती थीं. एक झटके में जैसे उसके सारे सपने ही टूट गए. पहले तो ज़िंदा रहने की जंग और फिर एसिड अटैक के ज़ख्मों के साथ जीने का डर. उस वक़्त ऐसी कई बातें मुस्कान के दिमाग़ में चल रही थीं.
वह बताती हैं, “मेरा इलाज चल रहा था तो जलने से भी ज़्यादा तकलीफ़ मुझे ये हो रही थी कि मेरे अम्मी-अब्बू मेरा इलाज कैसे करा पाएंगे. मैंने जब अम्मी से ये बात कही तो उन्होंने बोला कि तुम चिंता मत करो, हम तुम्हारा इलाज कहीं से भी कराएंगे.”
इलाज का शुरुआती ख़र्चा मुस्कान के माता-पिता ने ही उठाया. लेकिन बाद में तब उनकी चिंताएं कुछ कम हुईं जब इलाज के लिए अलग-अलग जगहों से मदद मिलने लगी. बीरगंज में इलाज ना होने पाने के कारण मुस्कान को इलाज के लिए राजधानी काठमांडू लाया गया. अब उनका परिवार काठमांडू में ही रह रहा है.
इन्हीं तकलीफ़ों के बीच मुस्कान को एक मक़सद भी मिला. उन्होंने एसिड अटैक के ख़िलाफ़ कड़े क़ानून और इलाज में होने वाले ख़र्चे में पीड़िताओं को मदद देने की माँग की. उन्होंने इस संबंध में नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली को पत्र भी लिखा.
मुस्कान बताती हैं, “पहले नेपाल में एसिड अटैक के ख़िलाफ़ कड़ा क़ानून नहीं था. वहीं, पाड़िताओं को मदद भी नहीं मिल पाती थी. मुझे समझ में आया कि एसिड विक्टिम की ज़िंदगी कितनी कठिन हो जाती है. उसे न्याय भी नहीं मिल पाता है. इसलिए मैंने इसे लेकर आवाज़ उठाने की ठानी. मुझे लोगों से बहुत सहयोग मिला. घर से लेकर बाहर सभी ने मेरा हौसला बढ़ाया.”
एसिड अटैक के मामलों को लेकर वो भारत का ज़िक्र करते हुए कहती हैं, "हमने भारत में भी ऐसे मामलों के बारे में सुना है, वहां भी इसके ख़िलाफ़ नियमों में सख्ती की गई. नेपाल हो या भारत हर एसिड अटैक पीड़िता से कहूंगी कि वो हार ना मानें और आवाज़ उठाएं."
मुस्कान के सपने अब भी क़ायम हैं लेकिन उसमें कुछ और उद्देश्य भी जुड़ गए हैं. वह आगे भी एसिड अटैक पीड़िताओं के लिए काम करना चाहती हैं.
उनके ऊपर हमला करने वाले अभियुक्तों को गिरफ़्तार कर लिया गया था और मामले की सुनवाई कोर्ट में चल रही है.
नेपाल में नया क़ानून
मुस्कान ने नए क़ानून के लिए प्रधानमंत्री केपी ओली को पत्र लिखा और उनसे मुलाक़ात भी की थी.
बाद में केपी ओली ने एसिड हमलों के ख़िलाफ़ एक नए क़ानून का मसौदा तैयार करने के लिए कहा था. साथ ही अपराधियों को दंडित करने और कैमिकल्स की बिक्री को विनियमित करने के लिए अध्यादेश जारी किया.
नेपाल में पहले भी एसिड अटैक के ख़िलाफ़ क़ानून था लेकिन अब उसे और सख्त किया गया.
न्यूज़ एजेंसी एएनआई के मुताबिक़ सितंबर 2020 में ये अध्यादेश पास हुआ. इसके अनुसार अगर एसिड पीड़ित की मौत हो जाती है तो उम्र क़ैद की सज़ा दी जाएगी. अगर पीड़ित घायल होता है या उसके शारीरिक अंगों को नुक़सान पहुँचता है तो अपराधी को 20 साल की सज़ा होगी और 10 लाख रुपये जुर्माना लगाया जाएगा. हालांकि, उम्रक़ैद की सज़ा पहले से भी थी.
नए अध्यादेश में ख़ासतौर पर अपराधी की सज़ा के मानदंडों को और व्यापक किया गया है. इसमें पीड़ित को हुए घावों और प्रभावित अंगों के अनुसार सज़ा तय की गई है. इसके अलावा एसिड अटैक पीड़ितों का मुफ़्त में इलाज सुनिश्चित किया गया है.
मुस्कान कहती हैं कि वो नये क़ानून से ख़ुश हैं. उन्हें लगता है कि इससे एसिड हमले रुकने में मदद मिलेगी और पीड़ितों को न्याय व सहायता मिल पाएगी.
नेपाल में अमेरिकी दूतावास की ओर से कहा गया है, “बदलाव लाने में मुस्कान की भूमिका बहुत अहम रही है. दूतावास को उनका समर्थन करने और नेपाल में महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों की उन्नति को बढ़ावा देने पर गर्व है.”
सपने पूरे करने को तैयार
मुस्कान ख़ातून अपनी इस उपलब्धि के लिए उन लोगों को शुक्रिया कहते नहीं थकतीं जिन्होंने इस सफ़र में उन्हें प्यार और समर्थन दिया. इसमें वो नेपाल, अमेरिका और भारत के लोगों का दिल से शुक्रिया करती हैं.
उन्होंने बताया कि भारत से अभिनेता अमिताभ बच्चन, शाहरुख़ ख़ान, वरुण धवन और अभनेत्री कृति सेनन ने जब उनके ठीक होने के लिए मैसेज किए तब उन्हें बहुत ख़ुशी हुई थी.
उनकी मां शहनाज़ ख़ातून और पिता रसूल अंसारी भी ख़ुशी से फूले नहीं समा नहीं रहे हैं. आज उनके दुख ख़ुशियों में तब्दील हुए हैं. उन्होंने भी मुस्कान का सहयोग करने वालों को धन्यवाद दिया.
फ़िलहाल मुस्कान का इलाज चल रहा है और कुछ सर्जरी भी होनी बाक़ी हैं. साथ ही वो फिर से नौवीं की पढ़ाई पूरी कर रही हैं और काठूमांडू में ही स्कूल जाती हैं.
वह कहती हैं, “मैं नहीं रुकने वाली हूं और ये दाग़ मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं. रुकना उसे है जिसने अपराध किया है.”
मुस्कान की आवाज़ में आई मज़बूती और ख़ुशी की खनक से लगता है कि वो एक एसिड अटैक पीड़िता को पीछे छोड़ आई हैं और अपने सपने पूरे करने के लिए तैयार है. (bbc.com)