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बात करने में मदद करेगा ये स्कार्फ
12-Mar-2021 12:41 PM
बात करने में मदद करेगा ये स्कार्फ

पहली नजर में भले ही यह असली स्कार्फ की तरह ना दिखे लेकिन सुंदर है. फिरोजी, नीली और नारंगी धारियों के साथ उभरी बुनावट आंखों को भाती हैं. देखने भर से यकीन करना मुश्किल है कि यह बात करने में मदद कर सकता है.

   (dw.com)

आम स्कार्फ की तरह इसे पहना, मोड़ा और धोया जा सकता है. इसके बावजूद इसमें एक डिस्प्ले भी मौजूद है जिस पर संदेश पढ़े जा सकते हैं, तस्वीरें देखी जा सकती हैं या फिर जिन्हें कीबोर्ड की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है. इस खास फैब्रिक को शंघाई के फुडान यूनिवर्सिटी में मैक्रोमॉलिक्यूलर इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर हुइशेंग पेंग के नेतृत्व वाली टीम ने तैयार किया है. इसके बारे में साइंस जर्नल नेचर ने रिपोर्ट छापी है. प्रोफेसर हुइशेंग पेंग मानते हैं कि इससे संचार की दुनिया में एक नई क्रांति आएगी. उनका मानना है, "जिन लोगों को आवाज, बोली या फिर भाषा की दिक्कत है उन्हें यह औरों के सामने अपनी बात रखने में मदद करेगा." प्रोफेसर पेंग ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "हमें उम्मीद है कि बुने रेशों वाला यह मैटीरियल जिस तरह हम इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से बात करते हैं उसे बदल कर अगली पीढ़ी के इलेक्ट्रॉनिक्स को आकार देगा."

वियरेबल इलेक्ट्रॉनिक्स का बढ़ता चलन

पहने जाने वाले उपकरण यानी वियरेबल इलेक्ट्रॉनिक्स में पिछले कुछ सालों में भारी तरक्की हुई है. अब इलेक्ट्रॉनिक फंक्शन वाले कपड़े और बेहद पतले डिस्प्ले बाजार में आ चुके हैं.  इसी हफ्ते एक और स्टडी की रिपोर्ट छपी है जिसमें पहने जाने वाले माइक्रोग्रिड का जिक्र है. इस ग्रिड को शरीर से निकलने वाले पसीने से ऊर्जा मिलती है. हालांकि इस तरह की जितनी चीजें आईं हैं उनकी कुछ सीमाएं हैं. अकसर इन बेहद पतले एलईडी को कपड़ों के साथ बुन कर तैयार किया जाता है. इसके नतीजे में जो मैटीरियल तैयार होता है उसके पार हवा नहीं जा सकती और ना ही ये बहुत लचीले होते हैं. अकसर ये बहुत नाजुक होते हैं जिनके नुकसान का डर होता है. इसके साथ ही इनके डिस्प्ले में पहले से तय पैटर्न ही दिखाई देते हैं.

पेंग और उनकी टीम ने मौजूदा तकनीक को बेहतर बनाने पर पर करीब दशक भर मेहनत की और अलग अलग मैटीरियल के साथ प्रयोग करते रहे. एक बार उनका प्रयोग इसलिए नाकाम हो गया क्योंकि डिस्प्ले अंधरे में काम नहीं कर रहा था तो दूसरी बार उन्होंने रेशे तो बना लिए लेकिन बुनाई के बाद उन्होंने अच्छा काम नहीं किया. बड़ी कामयाबी तब मिली जब उन्होंने कपड़े के रेशों का अध्ययन किया और देखा कि वो कैसे एक दूसरे से आपस में गुंथ कर कपड़े का टुकड़ा बनाते हैं. टीम ने तय किया कि वो कपड़े के रेशों के मिलने वाली जगह पर रोशनी का सूक्ष्म बिंदु बनाने की कोशिश करेंगे. इन छोटे छोटे रोशनी के बिंदुओं को बनाने के लिए उन्हें एक प्रदीप्त आधार और संवाहक कपड़े की जरूरत थी जिन्हें सूती या इसी तरह के किसी धागे के साथ बुना जा सके.

ऐसे तैयार किया गया नया फैब्रिक

कई तरह की चीजों को परखने के बाद आखिरकार उन्हें चांदी की परत वाले रेशे से उम्मीद जगी जिस पर प्रदीप्त योगिक का लेप लगा हुआ था और संवाहक कपड़े को उन्होंने एक जेल जैसी चीज के साथ बुना. इन दोनों को साथ मिला कर सूती धागे के सहारे उन्होंने छः मीटर लंबा और 25 सेंटीमीटर चौड़ा फैब्रिक तैयार कर लिया. जब इसे बिजली के करंट से जोड़ा गया तो चांदी की परत वाले रेशे उस जगह पर रोशन हो गए जहां वो संवाहक जेल के साथ संपर्क में थे. इस डिस्प्ले मैटीरियल को रोशन करने के लिए बहुत कम बिजली की जरूरत होती है और यह ज्यादा गर्म नहीं होता. इस फैब्रिक में तनाव झेलने की खूब क्षमता है. इस फैब्रिक को करीब एक महीने तक खुली हवा में रखा गया, 100 बार धोया और सुखाया गया और 10 हजार बार मोड़ा गया. इसकी चमक में कोई कमी नहीं आई.

स्टडी बताती है कि इसे बैट्री से ऊर्जा दी जा सकती है या फिर सौर ऊर्जा का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. तो आखिर फैब्रिक का इस्तेमाल कहां होगा? पेंग इसके कई विकल्प देखते हैं जिनमें डायनैमिक स्लीव डिस्प्ले भी एक है. ड्राइवर को जीपीएस मैप घूमते वक्त उसके हाथों पर ही दिख जाएगा. हालांकि उन्हें उम्मीद है कि यह मैटीरियल उन लोगों की ज्यादा मदद करेगा जो शारीरिक या फिर भाषाई दिक्कतों के कारण संवाद नहीं कर पाते. पेंग का कहना है कि उनकी टीम इसे बेहतर बनाने के लिए कई और प्रयोग कर रही है. इनमें डिस्प्ले को और ज्यादा चमकदार और रिजॉल्यूशन को बेहतर बनाना भी शामिल है.

एनआर/एमजे (एएफपी)

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