राष्ट्रीय
नई दिल्ली, 17 सितम्बर (आईएएनएस)| ट्रक पर पिता के साथ मौजूद श्यामानंद ने बताया कि जब उन्होंने फाइनेंसर के एजेंट को कोरोना महामारी के दौरान किस्त भुगतान में सरकार द्वारा दी गई छूट के प्रावधान का उल्लेख किया, तो एजेंटों ने जाने की अनुमति दे दी। लेकिन आगे जाकर ट्रक को फिर से रोक दिया।
उत्तर प्रदेश में एक ट्रक मालिक को किस्त न जमा करने पर आग के हवाले किये जाने की घटना सामने आई है। घटना घनश्यामपुर की है, जहां जौनपुर जिले के एक फाइनांसर के गुर्गों ने ट्रक मालिक सत्य प्रकाश राय (51) द्वारा किस्तों का भुगतान नहीं किये जाने पर उसे आग के हवाले कर दिया। मौके पर मौजूद लोगों ने दो आरोपियों को खदेड़ कर पकड़ लिया, जबकि बाकी आरोपी भाग खड़े हुए। वहीं पीड़ित को अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
घटना के बारे में बदलापुर के थाना प्रभारी (एसओ) श्रीजेश यादव ने बताया कि दो हमलावरों को पुलिस हिरासत में लिया गया है, वहीं राय को जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है। बदलापुर एसओ ने कहा कि दोनों आरोपी पुलिस हिरासत में हैं और मामले में आगे की जांच उनके पूछताछ के आधार पर की जा रही है।
ट्रक पर पिता के साथ मौजूद राय के बेटे श्यामानंद ने बताया कि वे मध्य प्रदेश के रीवा से कंक्रीट लोड करके आजमगढ़ लौट रहे थे। जब उनका ट्रक बदलापुर से गुजर रहा था, तो कुछ कार सवार लोगों ने उन्हें रोका और खुद को फाइनेंसर का एजेंट बताने के बाद उन्होंने ट्रक खरीदने के लिए राय द्वारा बीते पांच महीने पहले लिए गए ऋण की मासिक किस्त का भुगतान नहीं करने का कारण जानना चाहा।
श्यामानंद ने आगे बताया कि जब उन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान किस्तों को चुकाने में सरकार द्वारा दी गई छूट के प्रावधान का उल्लेख किया, तो एजेंटों ने पहले उन्हें जाने की अनुमति दे दी। हालांकि, उन्होंने घनश्यामपुर क्षेत्र से गुजरने पर ट्रक को फिर से रोक दिया। श्यामानंद ने कहा कि वह केबिन में बैठा था और उसके पिता एजेंटों से बात करने के लिए नीचे उतरे, तभी उन्होंने अचानक अपने पिता की चीखने की आवाज सुनी।
श्यामानंद ने कहा, "मैंने देखा कि मेरे पिता आग की लपटों से घिरे हुए थे और मैं उनको बचाने के लिए ट्रक के केबिन से एक कंबल लेकर भागा, जबकि स्थानीय लोग उन एजेंटों का पीछा करने लगे। उनमें से दो को स्थानीय लोगों ने पकड़ लिया और पुलिस को सौंप दिया, जबकि अन्य दो अपनी कार में भागने में सफल रहे।" राय को पहले नजदीकी अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उनकी बिगड़ती हालत को देखते हुए डॉक्टरों ने उन्हें जिला अस्पताल रेफर कर दिया।
वीडियो के बीच में यह भी देखें कि इनके मुकाबले धरती कितनी बड़ी है !
Loops of superheated plasma larger than the Earth dance across the surface of the Sun, a spectcular example of the phenomenon known as "coronal rain" captured by the Solar Dynamics Observatory spacecraft. pic.twitter.com/NQuAda9dr4
— Wonder of Science (@wonderofscience) September 17, 2020
Loops of superheated plasma larger than the Earth dance across the surface of the Sun, a spectcular example of the phenomenon known as "coronal rain" captured by the Solar Dynamics Observatory spacecraft.
नई दिल्ली, 17 सितम्बर | सुदर्शन टीवी के कार्यक्रम 'बिंदास बोल' के लिए बने 'यूपीएससी जिहाद' नामक एपिसोड के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में लगी याचिका पर केंद्र सरकार ने अपना हलफ़नामा दायर किया है.
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि 'पहले डिजिटल मीडिया का नियमन होना चाहिए, क्योंकि उसकी पहुँच टीवी और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से ज़्यादा है.'
बारह पन्ने के हलफ़नामे में केंद्र सरकार की ओर से सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अवर सचिव विजय कौशिक ने लिखा है कि 'सुप्रीम कोर्ट को न्याय-मित्र (एमिकस क्यूरे) या न्याय-मित्रों की एक कमेटी को नियुक्त किये बिना मीडिया में हेट स्पीच के नियमन को लेकर और कोई दिशा-निर्देश नहीं देने चाहिए.'
मंत्रालय ने कहा है कि 'अगर सुप्रीम कोर्ट ऐसा करने का निर्णय लेता है, तो कोर्ट को पहले डिजिटल मीडिया के नियमन से जुड़े दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया के संबंध में पहले से ही पर्याप्त रूपरेखा और न्यायिक घोषणाएं मौजूद हैं.'
'डिजिटल मीडिया की चीज़ें होती हैं वायरल'
मंत्रालय ने हलफ़नामे में लिखा है कि "मुख्यधारा की मीडिया में, चाहे इलेक्ट्रॉनिक हो या प्रिंट, किसी चीज़ का प्रकाशन या टेलीकास्ट एक बार का काम होता है, जबकि डिजिटल मीडिया दर्शकों या पाठकों के एक बड़े समूह तक बहुत तेज़ी से पहुँचता है और वॉट्सऐप, फ़ेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया माध्यमों से इसके वायरल होने की संभावना बढ़ती है. इसलिए प्रभाव और क्षमता को देखते हुए यह ज़रूरी है कि माननीय न्यायालय अगर नियमन का निर्णय ले, तो पहले डिजिटल मीडिया के संबंध में ऐसा किया जाये, क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया के संबंध में पहले से पर्याप्त रूपरेखा मौजूद है."
केंद्रीय मंत्रालय ने अपने हलफ़नामे में दो पुराने मामलों और साल 2014 और 2018 में आये उनके निर्णयों का ज़िक्र करते हुए यह बताने की कोशिश की है कि इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के मामले में हेट स्पीच को लेकर काफ़ी स्पष्टता से उल्लेख मिलता है, मगर डिजिटल मीडिया के मामले में इसकी कमी है.
केंद्रीय मंत्रालय ने कहा है कि 'यह देखते हुए कि इस मुद्दे ने संसद और सुप्रीम कोर्ट, दोनों का ध्यान आकर्षित किया, इसलिए वर्तमान याचिका को केवल एक चैनल अर्थात सुदर्शन टीवी तक ही सीमित नहीं रखा जाना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट को न्याय-मित्र (एमिकस क्यूरे) या न्याय-मित्रों की एक कमेटी को नियुक्त किये बिना मीडिया में हेट स्पीच के नियमन को लेकर और कोई दिशा-निर्देश नहीं देने चाहिए.'
'नियमन हो तो सब के लिए'
हलफ़नामे में विजय कौशिक ने लिखा है कि "अगर कोर्ट नियमन के लिए आगे बढ़ता है और कुछ नये दिशा-निर्देश जारी करने का निर्णय लेता है, तो कोई वजह नहीं बनती कि इसे सिर्फ़ मुख्यधारा के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तक ही सीमित रखा जाये. मीडिया में तो मुख्यधारा का प्रिंट मीडिया, एक समानांतर मीडिया अर्थात डिजिटल मीडिया, वेब आधारित न्यूज़ पोर्टल, यूट्यूब चैनल और ओटीटी यानी ओवर द टॉप प्लेफ़ॉर्म भी शामिल हैं."
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुदर्शन टीवी द्वारा मुसलमानों के सिविल सेवा में चुने जाने को लेकर दिखाये जा रहे कार्यक्रम पर सख़्त एतराज़ जताते हुए बचे हुए एपिसोड दिखाने पर रोक लगा दी थी. कोर्ट ने कहा कि प्रथमदृष्टया ऐसा लगता है कि यह एपिसोड मुसलमानों को बदनाम करता है.
इस मामले में अब सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को अगली सुनवाई करेगा
सुप्रीम कोर्ट ने किया एपिसोड बैन
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की खंडपीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि इस चैनल की ओर से किये जा रहे दावे घातक हैं और इनसे यूपीएसी की परीक्षाओं की विश्वसनीयता पर लांछन लग रहा है और ये देश का नुक़सान करता है.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, "एक ऐंकर आकर कहता है कि एक विशेष समुदाय यूपीएससी में घुसपैठ कर रहा है. क्या इससे ज़्यादा घातक कोई बात हो सकती है. ऐसे आरोपों से देश की स्थिरता पर असर पड़ता है और यूपीएससी परीक्षाओं की विश्वसनीयता पर लांछन लगता है."
उन्होंने कहा कि "हर व्यक्ति जो यूपीएससी के लिए आवेदन करता है वो समान चयन प्रक्रिया से गुज़रकर आता है और ये इशारा करना कि एक समुदाय सिविल सेवाओं में घुसपैठ करने की कोशिश कर रहा है, ये देश को बड़ा नुक़सान पहुँचाता है."
हाई कोर्ट ने लगाई थी रोक, सूचना मंत्रालय ने दी थी इजाज़त
सुदर्शन न्यूज़ के जिस कार्यक्रम को लेकर विवाद था उसमें 'नौकरशाही में एक ख़ास समुदाय की बढ़ती घुसपैठ के पीछे कोई षडयंत्र होने' का दावा किया गया था.
दिल्ली हाई कोर्ट ने इस कार्यक्रम पर 28 अगस्त को रोक लगा दी थी. जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के छात्रों की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश नवीन चावला ने इस कार्यक्रम के प्रसारण के ख़िलाफ़ स्टे ऑर्डर जारी किया था.
मगर 10 सितंबर को केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने चैनल को ये कार्यक्रम प्रसारित करने की इजाज़त दे दी.
हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने कहा था कि उन्हें सुदर्शन न्यूज़ के इस प्रोग्राम के ख़िलाफ़ कई शिकायतें मिली हैं और मंत्रालय ने न्यूज़ चैनल को नोटिस जारी कर इस पर जवाब माँगा है.
10 सितंबर को मंत्रालय ने अपने आदेश में लिखा कि सुदर्शन चैनल के प्रधान संपादक सुरेश चव्हाणके ने 31 अगस्त को आधिकारिक रूप से अपना जवाब दे दिया था जिसके बाद मंत्रालय ने निर्णय लिया कि अगर कार्यक्रम के कंटेंट से किसी तरह नियम-क़ानून का उल्लंघन होता है तो चैनल के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जायेगी.
मंत्रालय ने ये भी कहा है कि कार्यक्रम प्रसारित होने से पहले कार्यक्रम की स्क्रिप्ट नहीं माँगी जा सकती और ना ही उसके प्रसारण पर रोक लगायी जा सकती है.
इस आदेश के अनुसार, सुदर्शन चैनल ने दावा किया कि उन्होंने अपने कार्यक्रम में किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं किया है और कहा है कि 'इस तरह की रोक टीवी प्रोग्रामों पर प्रसारण से पहले ही सेंसरशिप लागू करने जैसी है.'
मंत्रालय ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि नियमों के अनुसार टीवी कार्यक्रमों की प्री-सेंसरशिप नहीं की जाती. प्री-सेंसरशिप की ज़रूरत फ़िल्म, फ़िल्मी गाने, फ़िल्मों के प्रोमो, ट्रेलर आदि के लिए होती है जिन्हें सीबीएफ़सी से सर्टिफ़िकेट लेना होता है.
मंत्रालय ने सुदर्शन चैनल को यह हिदायत दी थी कि वो इस बात का ध्यान रखे कि किसी तरह से प्रोग्राम कोड का उल्लंघन ना हो, अन्यथा उसके ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई हो सकती है.
क्या है पूरा मामला?
सुदर्शन न्यूज़ चैनल ने 25 अगस्त को एक टीज़र जारी किया था जिसमें चैनल के संपादक ने यह दावा किया था कि 28 अगस्त को प्रसारित होने वाले उनके कार्यक्रम 'बिंदास बोल' में 'कार्यपालिका के सबसे बड़े पदों पर मुस्लिम घुसपैठ का पर्दाफ़ाश' किया जाएगा.
टीज़र सामने आते ही सोशल मीडिया पर इसे लेकर आलोचना शुरू हो गई थी.
इसके बाद भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों के संगठन ने इसकी निंदा करते हुए इसे 'ग़ैर-ज़िम्मेदाराना पत्रकारिता' क़रार दिया.
पुलिस सुधार को लेकर काम करने वाले एक स्वतंत्र थिंक टैंक इंडियन पुलिस फ़ाउंडेशन ने भी इसे 'अल्पसंख्यक उम्मीदवारों के आईएएस और आईपीएस बनने के बारे में एक हेट स्टोरी' क़रार देते हुए उम्मीद जताई थी कि ब्रॉडस्काटिंग स्टैंडर्ड ऑथोरिटी, यूपी पुलिस और संबंद्ध सरकारी संस्थाएँ इसके विरूद्ध सख़्त कार्रवाई करेंगे.
हालाँकि, सुदर्शन न्यूज़ के संपादक सुरेश चव्हानके ने आईपीएस एसोसिएशन की प्रतिक्रिया पर अफ़सोस जताते हुए कहा था कि 'उन्होंने बिना मुद्दे को समझे इसे कुछ और रूप दे दिया है.' उन्होंने संगठन को इस कार्यक्रम में शामिल होने का निमंत्रण दिया था.
राजनीतिक विश्लेषक तहसीन पूनावाला ने इस कार्यक्रम के बारे में दिल्ली पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई थी.
पूनावाला ने साथ ही इस बारे में न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग एसोसिएशन (एनबीए) के अध्यक्ष रजत शर्मा को एक पत्र लिख उनसे इस कार्यक्रम का प्रसारण रुकवाने और सुदर्शन न्यूज़ तथा इसके संपादक के विरूद्ध क़ानूनी कार्रवाई करने का अनुरोध किया था.
दिल्ली की जामिया मिल्लिया यूनिवर्सिटी के शिक्षकों के संगठन ने भी एक बयान जारी कर यूनिवर्सिटी प्रशासन से इस बारे में अवमानना का मामला दायर करवाने का अनुरोध किया था.
आईएएस और आईपीएस अधिकारियों ने की आलोचना
छत्तीसगढ़ के आईपीएस अधिकारी आरके विज ने इस कार्यक्रम के टीज़र पर प्रतिक्रिया करते हुए इसे 'घृणित' और 'निंदनीय' बताया था और कहा था कि वो इस बारे में 'क़ानूनी विकल्पों पर ग़ौर कर रहे हैं'.
छत्तीसगढ़ काडर के आईएएस अधिकारी अवनीश शरण ने भी इस शो पर प्रतिक्रिया करते हुए लिखा था कि 'इसे बनाने वाले से इस कथित पर्दाफ़ाश के स्रोत और उसकी विश्वसनीयता के बारे में पूछा जाना चाहिए'.
पुड्डुचेरी में तैनान आईपीएस अधिकारी निहारिका भट्ट ने लिखा था कि "धर्म के आधार पर अफ़सरों की निष्ठा पर सवाल उठाना ना केवल हास्यापस्द है बल्कि इसपर सख़्त क़ानूनी कार्रवाई होनी चाहिए. हम सब पहले भारतीय हैं."
हरियाणा के आईएएस अधिकारी प्रभजोत सिंह ने लिखा था कि "पुलिस इस शख़्स को गिरफ़्तार क्यों नहीं करती और सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट या अल्पसंख्यक आयोग या यूपीएससी इस पर स्वतः संज्ञान क्यों नहीं लेते? ट्विटर इंडिया कृपया कार्रवाई करे और इस एकाउंट को सस्पेंड करे. ये हेट स्पीच है."
बिहार में पूर्णिया के ज़िलाधिकारी राहुल कुमार ने लिखा था कि "ये बोलने की आज़ादी नहीं है. ये ज़हर है और संवैधानिक संस्थाओं की आत्मा के विरूद्ध है. मैं ट्विटर इंडिया से इस एकाउंट के विरूद्ध कार्रवाई करने का अनुरोध करता हूँ."
राष्ट्रीय जाँच एजेंसी एनआईए में कार्यरत आईपीएस अधिकारी राकेश बलवल ने लिखा था, "हम सिविल सेवा अधिकारियों के लिए एकमात्र पहचान जो कोई अर्थ रखती है, वो है भारत का राष्ट्र ध्वज." (bbc)
नई दिल्ली/जम्मू, 17 सितम्बर (आईएएनएस)| विस्थापित कश्मीरी पंडितों के प्रमुख संगठनों ने केंद्र सरकार से कश्मीर घाटी में 10 जिलों के बजाय एक ही स्थान पर निर्वासित समुदाय की वापसी और उनकी मांग पर विचार करने का आग्रह किया है। रूट्स इन कश्मीर (आरआईके), जेकेवीएम और यूथ फॉर पनुन कश्मीर (वाई4पीके) जैसे प्रमुख कश्मीरी पंडित संगठनों द्वारा संयुक्त रूप से जारी एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि मीडिया रिपोर्टों ने संकेत दिया है कि सरकार कश्मीर के विभिन्न जिलों में कश्मीरी पंडितों को विस्थापित करने की योजना बना रही है।
संगठनों ने सरकार से घाटी में कश्मीरी पंडितों के लिए 10-जिला निपटान योजनाओं पर विचार नहीं करने का आग्रह किया और समुदाय के सम्मानजनक वापसी के लिए 'न्याय और एक स्थान निपटान' की मांग की। आरआईके के प्रवक्ता अमित रैना ने कहा कि संगठनों का एक प्रतिनिधिमंडल केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलकर सभी की मांगों को लेकर एक ज्ञापन प्रस्तुत करेगा।
केंद्र की आलोचना करते हुए रैना ने कहा कि सरकार कश्मीरी पंडितों के पलायन के कारणों का विश्लेषण करने में विफल रही है। उन्होंने कहा, "विभिन्न जिलों में उनके पुनर्वास के लिए योजनाओं को तैयार करने के बजाय, उन्हें पहले पलायन के कारणों को स्थापित करने के लिए एक समिति का गठन करना चाहिए और फिर समिति के निष्कर्षों के आधार पर योजना तैयार करनी चाहिए।"
जेकेवीएम के अध्यक्ष दिलीप मट्टो ने कहा कि हालांकि अब तक 1,800 से अधिक कश्मीरी पंडितों को आतंकवादियों ने मार दिया है, लेकिन एक भी दोषी नहीं ठहराया गया है। उन्होंने राज्य की खराब न्याय व्यवस्था पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि न्याय और एक ही जगह पर उन्हें बसाए जाने के बिना कश्मीरी पंडितों की वापसी संभव नहीं है।
इसके साथ ही वाईपीके के राष्ट्रीय समन्वयक विट्ठल चौधरी ने भाजपा सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि 1990 में कश्मीरी पंडितों का उत्पीड़न जनसंहार से कम नहीं था। उन्होंने कहा, "सरकार ने नरसंहार पीड़ितों की चिंताओं को दूर करने के बजाय हमसे उन मवेशियों की तरह व्यवहार कर रही है, जिन्हें किसी भी स्थान पर ले जाया जा सकता है।"
एआईकेएस के पूर्व उपाध्यक्ष संजय सप्रू ने कहा कि सरकार को समुदाय की आकांक्षाओं को ध्यान में रखना चाहिए और उन्हें एक ही जगह पर बसाया जाना चाहिए।
सभी संगठनों ने सर्वसम्मति से नरसंहार के कारणों की पहचान करने और त्वरित न्याय के लिए विशेष जांच दल या न्यायाधिकरण की स्थापना की मांग की है।
इसके अलावा उन्होंने मांग की कि सरकार मंदिरों और कश्मीर में हिंदुओं की धार्मिक और सांस्कृतिक संपत्तियों की रक्षा के लिए प्रस्तावित मंदिर और तीर्थ विधेयक के अनुसार एक 'मंदिर और तीर्थ संरक्षण अध्यादेश' जारी करे।
कश्मीर के मूल निवासी करीब तीन लाख कश्मीरी पंडितों को 1990 में पाकिस्तान द्वारा समर्थित इस्लामी आतंकवादियों द्वारा अपनी मातृभूमि से बाहर निकाल दिए गया था।
नई दिल्ली, 17 सितम्बर |कोरोना की महामारी शुरू होने के बाद विश्वभर में 15 करोड़ बच्चे गरीबी के दलदल में फंस गए हैं। इससे दुनियाभर में गरीबी में रह रहे बच्चों की संख्या करीब 1.2 अरब हो गई है।
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) और बच्चों के अधिकारों पर काम कर रहे संगठन सेव दी चिल्ड्रन की एक विश्लेषण रिपोर्ट में यह बात कही गई है। यह रिपोर्ट 17 सितंबर को जारी की गई है। इस विश्लेषण के मुताबिक अलग-अलग प्रकार की गरीबी में रह रहे ऐसे बच्चे, जिनकी शिक्षा, स्वास्थ्य, घर, पोषण, साफ-सफाई और पानी तक तक पहुंच नहीं है, कोविड-19 महामारी शुरू होने के बाद से उनकी संख्या 15 फीसदी बढ़ गई है।
यूनिसेफ ने एक बयान में कहा कि विविध प्रकार की गरीबी के आकलन में 70 देशों के शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, आवास, पोषण, स्वच्छता और पानी के उपयोग के आंकड़े शामिल हैं। इसमें पता चला कि इनमें से करीब 45 फीसदी बच्चे इन जरूरतों में से कम से कम एक से वंचित हैं।
यूनिसेफ का कहना है कि आने वाले महीनों में यह स्थिति और बदतर हो सकती है। रिपोर्ट के मुताबिक अधिक संख्या में बच्चे गरीबी का सामना कर रहे हैं, इसके अलावा जो पहले से गरीब हैं, वे बच्चे और अधिक गरीब हो रहे हैं।
यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरिटा फोरे का कहना है कि कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के कारण लाखों बच्चे और अधिक गरीबी की स्थिति में चले गए। अधिक चिंता की बात यह है कि अभी इस संकट की शुरुआत हुई है।
सेव दी चिल्ड्रन की सीईओ इंगर एशिंग ने कहा कि अब और अधिक बच्चे स्कूल, दवा, भोजन, जल और आवास जैसी बुनियादी जरूरतों से वंचित न हों इसके लिए देशों को तत्काल कदम उठाने होंगे। उन्होंने कहा कि कोविड-19 आपदा के दौरान शिक्षा व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है, जो एक बड़ी चिंता का कारण है। (downtoearth)
बुरहानपुर, 17 सितंबर (आईएएनएस)| कांग्रेस की मध्य प्रदेश इकाई के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया पर बड़ा हमला बोलते हुए सिंधिया को राज्य का सबसे बड़ा भूमाफि या बताया है। पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव ने गुरुवार को यहां संवाददाताओं से चर्चा करते हुए कहा, सिंधिया प्रदेश के सबसे बड़े भू माफिया हैं। ग्वालियर-चंबल संभाग में हजारों एकड़ जनता की एवं सरकारी जमीन सिंधिया दबाकर बैठे हैं।
उन्होंने आगे कहा कि, प्रदेश में भाजपा ने बेईमानी से सरकार बनाई है, इसका हिसाब किताब तो जनता एवं कांग्रेस पार्टी आने वाले उप-चुनाव में करेगी। राज्य में भाजपा की सरकार 15 साल में जो विकास कार्य नहीं कर पाई वह कांग्रेस सरकार ने 15 महीने में करके दिखाए, चाहे वो किसान कर्जमाफी हो या इंदौर से भू माफि याओं का सफोया करना हो।
भोपाल , 17 सितम्बर |मध्यप्रदेश में 27 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, इसमें से 16 सीटें ग्वालियर चम्बल की हैं, लोगों के बीच ये चर्चा रही कि इस इलाके में महाराज की ही चलती है, पर जब जमीनी तौर पर एक-एक सीट की पड़ताल कि तो सामने आया कि महाराज के चेहरे पर कुछ सीटों को छोड़कर जनता ‘माफ़ करो महाराज’ ही कहती रही है। यदि सिंधिया इतने प्रभाव वाले होते तो विधानसभा चुनाव के सिर्फ पांच महीने बाद खुद सवा लाख वोट से नहीं हारते ..
-पंकज मुकाती
(राजनीतिक विश्लेषक )
दो सप्ताह पहले ग्वालियर-चम्बल में जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ‘गद्दार’ गूंजा तो एक धक्का लगा। वो चेहरा जिसे हम ग्वालियर-चम्बल की जीत की गारंटी मान रहे हैं, वो गद्दार ? पहली नजर में लगा ये नारे राजनीतिक साजिश का हिस्सा हैं। पर जब इलाके की मैदानी पड़ताल की, तो चेहरे की चमक बेहद फीकी नजर आई।
सामने ये आया कि सिंधिया कभी इस इलाके में जनप्रिय नेता रहे ही नहीं। उनकी पूरी राजनीति ग्रे शेड वाली है। जनता ने कभी उनके चेहरे पर वोट दिए ही नहीं। यदि सिंधिया इलाके के जनप्रिय नेता होते तो 2018 विधानसभा चुनाव के ठीक पांच महीने बाद ही वे एक लाख पच्चीस हजार वोट से लोकसभा चुनाव नहीं हारते। आप इसे मोदी लहर की दीवार से ढांक सकते हैं, पर वो नेता ही क्या जो खुद अपना गढ़ न बचा सके। कमलनाथ की छिंदवाड़ा सीट अपने गढ़ बचाने की मिसाल है।
2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस छिंदवाड़ा जीती, पर गुना हार गई। अभी भी ग्वालियर-चम्बल की जनता ‘माफ़ करो महाराज’ के ही मूड में दिख रही है।
पूरे 16 विधायक भी सिंधिया के साथी नहीं
पिछले विधानसभा चुनाव (2018 ) में 34 में से 26 सीटें कांग्रेस ने जीती। इसमें से 16 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं। इन सीटों के बारे में धारणा है कि यहां सिंधिया का जलवा रहेगा। जबकि हकीकत में ऐसा नहीं है। इस इलाके के 10 विधायक अब भी कांग्रेस के साथ हैं। इसके अलावा 16 सीटों में से छह विधायक ऐसे हैं जो कभी सिंधिया के साथ रहे ही नहीं। वे अपने कारणों से कांग्रेस छोड़कर गए, सिंधिया के साथी बनकर नहीं।
ग्वालियर .. ज्योतिरादित्य के आने के बाद कांग्रेस लगातार हारी
ग्वालियर सीट को महल से जोड़कर देखा जाता है। सामान्य लोगों को लगता है कि ग्वालियर में सिंधिया घराने की तूती बोलती है। जो महाराज कहते हैं उसको वोट मिलते हैं, पर ऐसा है नहीं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के राजनीति में आने के बाद से एक बार को छोड़कर यहां से कांग्रेस लगातार हारती रही है। इसका साफ़ मतलब है कि ग्वालियर में ज्योतिरादित्य सिंधिया की कोई पकड़ नहीं है। इससे ये भी साफ है कि ग्वालियर की विधानसभा सीटों में मिली जीत भी सिंधिया की नहीं कांग्रेस की अपनी जीत है।
गुना… अपने घर में सिंधिया का सिर्फ एक समर्थक
गुना लोकसभा सीट जिसे लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया खुद को बड़ा नेता मानते रहे। इस सीट से अपराजेय रहने का उनका गुरुर भी अब टूट चुका है। 2019 का लोकसभा चुनाव सिंधिया यहां से 1 लाख तीस हजार वोट से हार चुके हैं। इस इलाके में चार विधानसभा सीट हैं, इसमें से 2018 में तीन कांग्रेस ने जीती।
इन तीन सीटों में से सिर्फ एक सिंधिया समर्थक है। बमोरी से महेंद्र सिसोदिया। सिसोदिया की जीत सिंधिया का कोई करिश्मा या प्रभाव नहीं है। ये जीत भाजपा की बगावत से सिसोदिया को मिली। भाजपा ने यहां से अपने कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री कन्हैयालाल अग्रवाल का टिकट काट दिया था। अग्रवाल निर्दलीय लड़े भाजपा के वोट की टूट का फायदा सिसोदिया को मिला।
अग्रवाल और भाजपा के उम्मीदवार के कुल वोट सिसोदिया के ज्यादा रहे थे। इसके अलावा दो सीट पर सिंधिया चाहकर भी नहीं कह सकते ये मेरी जीत है। चांचौड़ा से लक्ष्मण सिंह विधायक हैं, तो राघोगढ़ से जयवर्धन सिंह।
सिंधिया ने कई बड़े नेताओं को किया बर्बाद
ग्वालियर चम्बल क्षेत्र के मजबूत कांग्रेस नेताओं जैसे रामनिवास रावत, डॉ. गोविन्द सिंह, ग्वालियर से पूर्व मंत्री रहे बालेन्दु शुक्ल, भगवन सिंह यादव, रामसेवक सिंह गुर्जर, अशोक सिंह, शिवपुरी से हरिबल्लभ शुक्ल, के पी सिंह कक्काजू, दतिया के घनश्याम सिंह, महेंद्र बौद्ध, शिवपुरी के वीरेन्द्र रघुवंशी (जो वर्तमान में कोलारस से भाजपा विधायक हैं), जैसे अनेक नाम हैं जिन्हें ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राजनितिक रूप से समाप्त करने के हर प्रयास किये।
भाजपा के लिए भी सिंधिया एक ‘भूल ‘
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता का कहना है कि ग्वालियर-चम्बल में वोटों का एक ट्रेंड रहा है। पिछले चुनाव में शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ लोगों में बड़ी नाराजगी थी, दूसरा इस पूरे इलाके में कमलनाथ ने सर्वे के जरिये जमीनी नेताओं को टिकट दिए। जिसका नजीता ये रहा कि कांग्रेस ने बड़ी जीत हासिल की।
भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को भी लगता था कि सिंधिया ग्वालियर-चम्बल में बढ़त दिलाने वाला चेहरा होंगे। स्थानीय नेतृत्व शुरू से ही सिंधिया को शामिल करने के खिलाफ था। अब खुद भाजपा को भी लगने लगा है कि सिंधिया को लेना एक बड़ी भूल है। भाजपा भी अब सिंधिया के चेहरे को पोस्टर और प्रचार में बहुत आगे नहीं रख रही। सिंधिया अब उनके लिए हार का चेहरा बनते दिख रहे हैं।
नयी दिल्ली 17 सितंबर (वार्ता)। राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने आज कहा कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने दिसंबर 2019 में कोरोना को लेकर सुनामी आने की चेतावनी दे दी थी लेकिन सरकार ने स्वर्णिम महीने गवां दिये।
श्री आजाद ने सदन में काेरोना महामारी पर चर्चा के दौरान आरोप लगाया कि इस सरकार ने कोविड को रोकने का जो स्वर्णिम समय था उसे गंवा दिया। उन्होंने कहा कि श्री गांधी ने पिछले दिसंबर में कोरोना काे लेकर चेतावनी दी थी कि सुनामी आने वाली है। इसके बाद फिर उन्होंने फरवरी में सरकार को चेताया लेकिन इस सरकार ने किसी पर ध्यान नहीं दिया।
उन्होंने कहा कि देश में सेनेटाइजर का उत्पादन बढ़ा है इसलिए इसकी कीमतें आधी की जानी चाहिए ताकि गरीब भी आसानी से इसका उपयोग कर सके। उन्होंने कहा कि साबुन की कीमतें भी आधी हाेनी चाहिए। उन्होंने काेरोना से निपटने के लिए सुझाव देते हुये कहा कि जिला और तहसील स्तर पर जांच की व्यवस्था की जानी चाहिए और स्वास्थ्य देखभाल इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार किया जाना चाहिए।
पूर्व स्वास्थ्य मंत्री ने वैक्सनी को लेकर भी कई सुझाव दिये और कहा कि वैक्सीन किफायती होनी चाहिए। वैक्सीन को लेकर नियामक तंत्र भी मजबूत होनी चाहिए।
नई दिल्ली, 17 सितम्बर (आईएएनएस)| सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने ब्रिटेन के वेस्टमिंस्टर मैजिस्ट्रेसी कोर्ट के समक्ष भगोड़े हीरा व्यापारी नीरव मोदी के प्रत्यर्पण के मामले में नीरव की ओर से गवाही देते हुए भारतीय न्यायपालिका की अखंडता और विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं। इसके चलते शीर्ष अदालत में एक जनहित याचिका दायर कर काटजू के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की मांग की गई है। नंद किशोर गर्ग ने अधिवक्ता शशांक देव सुधी के माध्यम से यह जनहित याचिका दायर की है, जिसमें कहा गया है, "भारतीय न्यायपालिका को इस मुद्दे को लापरवाही से नहीं लेना चाहिए क्योंकि इस तरह के अपमानजनक बयान ने पूरी न्यायपालिका को अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजरों में संदेहजनक बना दिया है। नियमित तौर पर ऐसे झूठे आरोपों को रोकने के लिए सक्रिय रूप से कार्रवाई कर भारतीय न्यायपालिका के गौरव को भुनाने का यह सटीक समय है।"
इसमें तर्क दिया गया कि काटजू के दिए गए बयान बेहद अपमानजनक हैं और इससे भारत की संपूर्ण न्याय प्रणाली की मानहानि होती है।
याचिका के मुताबिक, काटजू ने आरोप लगाया था कि भारत में न्यायपालिका का 50 प्रतिशत हिस्सा भ्रष्ट है, ऐसे में पीएनबी घोटाले के आरोपी नीरव मोदी को देश में निष्पक्ष सुनवाई का मौका नहीं मिलेगा।
नई दिल्ली, 17 सितम्बर (आईएएनएस)| केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री कैलाश चौधरी का कहना है कि मोदी सरकार का हर फैसला किसानों के हित में है, लेकिन विपक्ष कृषि से जुड़े विधेयकों को लेकर किसानों और व्यापारियों को गुमराह कर रहा है। उन्होंने कहा कि विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं बचा है इसलिए वो किसानों के हक में लिए गए फैसले को मुद्दा बनाकर राजनीति कर रहा है। कृषि से जुड़े तीन अहम विधेयक लोकसभा में चालू मानसून सत्र के पहले ही दिन 14 सितंबर को पेश किए गए जिनमें से आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 को लोकसभा ने मंगलवार को मंजूरी दे दी। अब कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, 2020 और मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा विधेयक, 2020 पर लोकसभा की मुहर लगने का इंतजार है।
सड़क से लेकर संसद तक तीनों विधेयकों का विरोध हो रहा है, लेकिन कृषि राज्यमंत्री कहते हैं कि किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य इन विधेयकों में निहित है। आईएएनएस से खास बातचीत में कैलाश चौधरी ने कहा कि कृषि के क्षेत्र में सुधार से किसानों की आय दोगुनी होगी और उनके जीवन में खुशहाली आएगी।
केंद्र सरकार ने 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है।
चौधरी ने कहा, ये ऐतिहासिक विधेयक हैं और इनमें किसानों को उनकी उपज बेचने की आजादी दी गई। पहले किसान अपने उत्पाद बेचने के लिए आढ़ती और बिचैलिए पर निर्भर थे, लेकिन अब वे देश में कहीं भी और किसी को भी अपने उत्पाद बेच सकते हैं। कानून में बदलाव से किसान अपने उत्पाद का दाम खुद तय कर पाएंगे। उन्होंने सवालिया लहजे में कहा कि माचिस बनाने वाले भी अपने उत्पाद के दाम खुद तय करते हैं और उनको देश के किसी भी कोने में अपने उत्पाद बनाने बेचने की आजादी होती है तो फिर आजादी के 70 साल बाद भी किसानों पर प्रतिबंध क्यों।
उन्होंने कहा कि किसान तय आढ़ती और एपीएमसी मंडी के भीतर ही अपने उत्पाद बेचने को मजबूर थे जहां आढ़ती व मंडी के कारोबारी ही उनकी फसल के रेट तय करते थे, लेकिन अब उनके पास ऐसी मजबूरी नहीं होगी।
विपक्ष ने इन विधेयकों के माध्यम से कृषि से जुड़े कानूनी बदलाव को कॉरपारेटे व पूंजीपतियों को फायदा दिलाने की दिशा में उठाए गया कदम करार दिया है। इस संबंध में पूछे गए सवाल पर कृषि राज्यमंत्री ने कहा, विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं बचा है इसलिए इसे मुद्दा बनाकर राजनीति करने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि जो ट्रेडर इन विधेयकों का विरोध कर रहे हैं कि वे सभी कांग्रेस के कार्यकर्ता ही हैं। उन्होंने कहा कि कानून में बदलाव से किसान, व्यापारी और उपभोक्ता सबको फायदा होगा।
कैलाश चौधरी ने कहा, मोदी जी कभी किसानों के विरुद्ध या किसानों के अहित में कोई फैसला नहीं ले सकते। उन्होंने अब तक जो भी निर्णय लिया है वह सब देश हित में, गरीबों के हित में, किसानों के हित में और युवाओं के हित में लिया है और यह निर्णय भी किसानों के हित में है।
संसद की मंजूरी मिलने के बाद ये तीनों विधेयक कोरोना काल में लाए गए तीन महत्वपूर्ण अध्यादेश की जगह लेंगे। केंद्र सरकार ने पांच जून 2020 को आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश, 2020, कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020 और मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश, 2020 की अधिसूचना जारी की थी।
आशीष दीक्षित
नई दिल्ली, 17 सितंबर (बीबीसी)। नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू करने वाले अधिकांश लोग एक बात पर एकमत हैं कि वो वाकपटु हैं।
लेकिन क्या वो मुश्किल सवालों का सामना भी वाकपटुता से कर लेते हैं? क्या वो हर तरह के मुश्किल, प्रासंगिक और दूसरे तरह के बाक़ी सवालों का जवाब देते हैं? या वो बस वही कहते हैं जो वो कहना चाहते हैं?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 70 साल के हो गए हैं. उनके अब तक के राजनीतिक करियर के दौरान उनका इंटरव्यू लेना दुर्लभ रहा है. हाल के दिनों में मीडिया में चले कई इंटरव्यू में उनसे कड़े सवालों के नहीं पूछे जाने की आलोचना हुई।
प्रधानमंत्री के शीर्ष पद को संभालने के बाद से अब तक छह साल गुजर चुके हैं और उन्होंने एक बार भी प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की। इसके लिए उनकी तीखी आलोचना की जाती है। इसलिए हमने कुछ दिग्गज पत्रकारों से संपर्क करने का फैसला किया, जिन्हें नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू लेने का अवसर प्राप्त हुआ है।
स्मिता प्रकाश
मैंने नरेंद्र मोदी के दो इंटरव्यू किए हैं। पहला 2014 में, जब वो गुजरात के मुख्यमंत्री थे और फिर उनके प्रधानमंत्री रहते जनवरी 2019 में जब लोकसभा चुनाव होने में पांच महीने बाकी थे।
मैं कहूंगी कि पहला इंटरव्यू अच्छा था क्योंकि 2014 से कुछ वर्ष पहले मैं गुजरात गई थी और उनका इंटरव्यू लेना चाहती थी। लेकिन तब ये नहीं हो पाया था। इसलिए 2014 में क्या होगा ये मुझे नहीं पता था। मैं ये भी सुन रखी थी कि पत्रकारों को लेकर उन्हें कुछ शंकाएं थीं।
लेकिन वो तो मिलनसार और बुद्धिमान व्यक्ति लगे। उन्होंने मुझसे नहीं कहा कि ये या वो नहीं पूछना है। मैं तब सिंगापुर स्थित न्यूज चैनल, न्यूज एशिया के लिए काम कर रही थी और उसके लिए मुझे कुछ साउंड बाइट्स भी चाहिए थे।
मुझे सुखद आश्चर्य हुआ कि नरेंद्र मोदी विदेश नीति के बारे में बहुत कुछ जानते हैं। प्रधानमंत्री बनने से पहले लोगों ने सोचा था कि वो विदेश नीति के बारे में नौसिखिया हैं। साउंड बाइट्स में उन्होंने सिंगापुर के श्रोताओं को ध्यान में रख कर बातें कहीं।
मेरे लिए वो इंटरव्यू रेटिंग को लेकर नहीं था क्योंकि वो सब्सक्राइबर्स बेस्ड है। उसे सभी के लिए प्रासंगिक होना चाहिए था। मेरा लिया इंटरव्यू करण थापर की तरह का नहीं होगा। एक एजेंसी के रूप में, मुझे लंबे साउंड बाइट्स चाहिए थे जिसमें सब्सक्राइबर्स अपने इस्तेमाल के लिए काट-छांट सकते हैं।
आप नरेंद्र मोदी से अपनी समझ से एक असहज सवाल पूछते हैं और वो इसका जवाब भी देते हैं। लेकिन वो जवाब उसी तरह देंगे जैसा कि वो चाहते हैं। इंटरव्यू से पहले और बाद में नरेंद्र मोदी में कोई बदलाव नहीं हुआ। उस दौरान उन्होंने पानी के पीए। एक लंबे इंटरव्यू के बाद भी उन पर थोड़ी भी थकावट नहीं दिखी। वो आपसे नहीं पूछेंगे कि आपने उनसे एक ही सवाल दो-तीन बार क्यों पूछे। इंटरव्यू के बाद वो सादगी से उठे और चले गए।
2014 के इंटरव्यू के बाद उन्होंने मुझे फ़ोन किया था। उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं पता था कि इंटरव्यू सभी चैनलों पर साथ ही चलेगा।
विजय त्रिवेदी
अप्रैल 2009 में, मुझे नरेंद्र मोदी का फोन आया। उन्होंने मुझे अहमदाबाद बुलाया। उस वक्त, 20 सालों से मेरे नरेंद्र मोदी से बहुत अच्छे ताल्लुकात थे। जब दिल्ली में वो पार्टी के महासचिव थे, मैंने कई बार उनका इंटरव्यू किया था। हर दिवाली पर वो मुझे शुभकामना देते थे। वो बहुत अच्छे मेजबान थे। वो आपका ख्याल रखते।
सुबह का वक्त था। अहमदाबाद से हम एक छोटे हेलिकॉप्टर में निकले थे। उसमें चार लोगों की जगह थी लेकिन अंदर हम पांच लोग थे। तब नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू करना दिलचस्प हुआ करता था। वो बेहद मजबूती और स्पष्टता के साथ अपने विचार व्यक्त करते।
कई नेता राजनीतिक रूप से सही बातें कहते हैं लेकिन नरेंद्र मोदी जो कहना चाहते वो ही कहते थे। उन्होंने साफ-साफ कहा था कि आडवाणी को पीएम कैंडिडेट होना चाहिए जबकि उनके पार्टी के कई लोग स्टैंड लेने के लिए तैयार नहीं थे।
हम अमरेली जा रहे थे। मोदी जी ने कहा, यह 45 मिनट की यात्रा है और वहां से 30 मिनट और सफर करना होगा। आप जब भी चाहें इंटरव्यू कर सकते हैं। मैंने इंटरव्यू लेना शुरू कर दिया और उसी दौरान मैंने उनसे पूछा कि क्या वो 2002 के दंगों के लिए माफी मांगेंगे।
नरेंद्र मोदी ने उल्टा सवाल दागा: क्या सोनिया गांधी से यह पूछने की हिम्मत है कि वो 1984 के दंगों के लिए माफी मांगेंगी? मैंने उनसे कहा कि जब मैं सोनिया गांधी का इंटरव्यू करूंगा तो उनसे ये सवाल पूछूंगा।
मैंने फिर अपनी वही प्रश्न दोहराया। तो उन्होंने कहा कि उन्हें जो कहना था वो कह चुके हैं। मैं एक बार फिर उनसे पूछा। इस बार वो चुप रहे और उन्होंने कैमरे के आगे अपना हाथ रख दिया। इसके बाद वो मुझे नजरअंदाज करते हुए अपना काम करने लगे। बाद में वो खिडक़ी से बाहर देखने लगे। हेलिकॉप्टर की आवाज के बीच अंदर खामोशी बनी रही।
जब हम हेलिकॉप्टर से उतरे तो मोदी जी ने अपना हाथ मेरे कंधे पर रखा और मुझसे बोले, संभवत: यह हमारी आखऱिी बातचीत है। जब मैं पहली रैली कवर करके वापस लौटा तो उनका हेलिकॉप्टर मुझे लिए बगैर वापस जा चुका था। उनके स्थानीय सहायक ने मुझे बताया कि मोदी जी ने मेरी वापसी की यात्रा के लिए कार की व्यवस्था की है। मैंने उसे लेने से इनकार कर दिया और ट्रैक्टर से वापस लौटा।
नरेंद्र मोदी ने इस इंटरव्यू को रोकने की कभी कोशिश नहीं की। हमने इसे पूरा चलाया। बल्कि मेरे एडिटर ने इसका एक प्रोमो भी बनाया। जिसमें कहा गया इंटरव्यू का मतलब मौन। मुझे नहीं पता था कि यह इंटरव्यू इतना देखा जाएगा।
उस इंटरव्यू के बाद से आज तक नरेंद्र मोदी ने मुझसे कभी बात नहीं की। मैंने उनके इवेंट कवर किए, उनके अमरीकी दौरे पर गया, लेकिन केवल एक बार जब हम दोनों एक दूसरे के सामने आ गए तो उन्होंने मुझे सार्वजनिक रूप से अभिवादन किया।
आज, मेरे पास नरेंद्र मोदी के खिलाफ कुछ भी नहीं है। कभी नहीं था। लेकिन आज भी उनसे किसी मोड़ पर मुलाकात होगी तो उनसे वहीं सवाल दोहराऊंगा।
राजदीप सरदेसाई
जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब मैंने कई बार उनका इंटरव्यू किया है। लेकिन सबसे यादगार सितंबर 2012 में उनका आखिरी इंटरव्यू था। वो गुस्से में और पत्रकारों के प्रति कुछ एहतियात बरतते दिख रहे थे। आकार पटेल ने उसे पत्रकारिता का सबसे अच्छा पीस बताया था।
उनका पहला इंटरव्यू 1990 में रथ यात्रा के दौरान किया था। उन्होंने सफेद कुर्ता, पायजामा पहन रखा था। वो टीवी चैनलों से आने के पहले के दिन थे। मोदी एक मजबूत और प्रभावी वक्ता के रूप में उभर रहे थे।
2001 में 9/11 हमले के तीन या चार दिन बाद हम आतंकवाद पर एक शो कर रहे थे और प्रमोद महाजन ने उसमें आने से इनकार कर दिया था क्योंकि वो सरकार में थे। मैं शास्त्री भवन में नरेंद्र मोदी से मिला और उन्होंने तुरंत डिबेट शो के लिए हां कर दी।
उन्होंने मुझसे कहा, अच्छा है आप इस विषय को ले रहे हैं। तब नरेंद्र भाई हमेशा उपलब्ध रहते थे। उनके पास हमेशा किसी भी सवाल का जवाब होता था। उन्होंने कभी ये नहीं पूछा कि शो में क्या सवाल पूछे जाएंगे। आज के इंटरव्यू उनके पीआर शो की तरह दिखते हैं। पीआर से पहले के दौर में नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू लेना बहुत अच्छा लगता था।
2002 के दंगों के दौरान जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब मैंने उनका इंटरव्यू किया और जब लौट कर दफ्तर पहुंचा तो पाया कि टेप में खराबी आ गई है। तो हमें उसी दिन दोबारा 11 बजे रात में उनका इंटरव्यू करना पड़ा। उन्होंने दोबारा उन्हीं सवालों के जवाब दिए. क्या आप आज किसी भी नेता के साथ ऐसा करने के लिए सोच भी सकते हैं?
नवदीप धारीवाल
मैंने नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू वाइब्रेंट गुजरात शिखर सम्मेलन के दौरान लिया। वो उस सम्मेलन को लेकर बहुत उत्साहित थे। वो एनआरआई समुदाय को संदेश देना चाहते थे कि गुजरात उनके निवेश के लिए बेहतरीन राज्य है। वे इंटरव्यू के लिए पहुंचे, हमने हाथ मिलाए. हमने थोड़ी देर के लिए शिष्टाचार में बातचीत की और फिर सीधे इंटरव्यू शुरू किया। मैं उनसे उस शिखर सम्मेलन के साथ ही गुजरात दंगों के बारे में पूछना चाहती थी।
पत्रकारिता और संपादकीय दृष्टिकोण से यह सही था। मुझे लगा कि दुनिया भर में दर्शक इसके बारे में जानना चाहते हैं और मेरे लिए भी उनसे यह सवाल पूछने का पहला मौका था। मेरा सवाल था, आप अपने उस राज्य में लोगों से निवेश करने को कह रहे हैं जहां हजारों मुसलमानों का नरसंहार किया गया है...उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। मैंने मुद्दे पर जोर डाला। फिर उन्होंने अपना माइक्रोफोन निकाल दिया और इंटरव्यू से उठ कर चले गए। उनका संदेश साफ था- मैं वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन के लिए यहां आया हूं, अन्य किसी विषय पर बात नहीं करूंगा। (bbc.com/hindi)
नई दिल्ली, 17 सितंबर। एक दुर्लभ वाकये में, सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने आप को नोटिस जारी किया। अदालत उत्तर प्रदेश के कुछ न्यायिक अधिकारियों की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के नेतृत्व वाले कॉलेजियम के जरिए इलाहाबाद हाई कोर्ट के लिए उनके नामों की अनुशंसा न करने पर सवाल उठाए गए थे। सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे ने कहा कि मैंने अपनी जिंदगी में किसी को सुप्रीम कोर्ट आकर यह कहते हुए नहीं देखा कि मुझे हाई कोर्ट का जज बना दो।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कोई व्यक्ति याचिका दायर करके यह कहे कि उसे उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनाया जाना चाहिए, बहुत ही अनुचित है। पीठ ने कहा कि कोई भी यह कहकर उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नहीं बन सकता कि वह बनना चाहता है। हालांकि, पीठ याचिका पर सुनवाई के लिये सहमत हो गयी और उसने अपने सेक्रेटरी जनरल, केंद्र तथा अन्य को नोटिस जारी किए। पीठ ने इस मामले में फिर से विचार के लिये दायर याचिका पर चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है।
नोटिस जारी करने के बाद प्रधान न्यायाधीश ने टिप्पणी की, ‘यह एकदम नयी बात है। मैं नहीं समझता कि किसी को भी यहां आकर यह कहना चाहिए कि मुझे उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया जाए।’ पीठ ने कहा, ‘आप यह कह कर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नहीं बनते कि मैं बनना चाहता हूं। हम इसे बहुत ही अनुचित मानते हैं कि कोई याचिका दायर करे और कहे कि मुझे उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनाया जाए।’ सात याचिकाकर्ताओं में से एक उत्तर प्रदेश के सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी हैं। (navbharattimes.indiatimes)
नई दिल्ली, 17 सितंबर (आईएएनएस)| केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल पर कटाक्ष करते हुए शिवसेना सांसद संजय राउत ने गुरुवार को राज्यसभा में कहा है कि महाराष्ट्र ने महामारी को नियंत्रित करने में अच्छा काम किया है और कोई भी पापड़ खाने से ठीक नहीं हुआ है। जुलाई में मेघवाल ने कोरोना वायरस संक्रमण से लड़ने के लिए 'भाभीजी पापड़' को प्रमोट किया था और दावा किया था कि यह ऐसी सामग्री से बनाया गया है जो कोविड-19 के खिलाफ एंटीबॉडी बनाने में मदद करता है।
राउत ने मेघवाल पर हमला करते हुए कहा, "महाराष्ट्र ने संक्रमण को सक्रिय रूप से नियंत्रित किया है और देश का सबसे बड़ा स्लम धारावी इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। कई मंत्री संक्रमित हुए हैं, एक पूर्व क्रिकेटर-मंत्री चेतन चौहान की मौत हो गई है। इस मुद्दे पर आरोप-प्रत्यारोप न करें। इस महामारी से हमें मिलकर लड़ना चाहिए।"
देश में कोविड -19 की स्थिति पर हो रही बहस में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि राज्य को अवांछित रूप से निशाना बनाया जा रहा है जबकि यह एक साथ लड़ने का समय है।
सरकार पर विपक्ष का ये हमला उस टिप्पणी के बाद शुरू हुआ है जो भाजपा सांसद विनय सहस्त्रबुद्धे ने महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा कोविड मामले होने को लेकर की थी।
कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने बुधवार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के उस बयान पर चर्चा शुरू की थी। जिसमें कहा गया था कि देश में किए गए लॉकडाउन ने 14 से 29 लाख मामले और 37 से 78 हजार मौतें रोकी हैं। शर्मा ने इन आंकड़ों के पीछे का वैज्ञानिक आधार पूछा था।
इस पर सांसद सहस्त्रबुद्धे ने महाराष्ट्र को लेकर टिप्पणी की थी।
नई दिल्ली, 17 सितंबर (आईएएनएस)| राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा कश्मीर में इस समुदाय के लोगों के नरसंहार की जांच करने के लिए न्यायिक आयोग की मांग का गुरुवार को वैश्विक कश्मीरी पंडित प्रवासी (जेकेपीडी) ने समर्थन किया। स्वामी ने ये मांग बुधवार को की थी। जीकेपीडी ने कश्मीरी पंडितों को पूर्ण मुआवजा देने, क्रूर हत्याओं, दुष्कर्मों और जबरन धर्म परिवर्तन के अपराधियों को मृत्युदंड देने की अपील का भी समर्थन किया है।
सुब्रमण्यम स्वामी ने बुधवार को ट्वीट किया, "सरकार को 1989 से हो रही कश्मीरी पंडितों की निर्मम हत्याओं, दुष्कर्मों और जबरन धर्म परिवर्तन पर एक नरसंहार आयोग का गठन करना चाहिए। इस आयोग को अपराधियों को मृत्युदंड देने की सिफारिश करने में सक्षम होना चाहिए। साथ ही कश्मीरी पंडितों को पूरा मुआवजा भी मिलना चाहिए।"
इस मसले पर आवाज उठाने के लिए जेकेडीपी ने स्वामी को धन्यवाद दिया। साथ ही कहा कि यह समुदाय की लंबे समय से चली आ रही मांग थी। पीड़ित समुदाय को न्याय दिलाने के लिए कंगना रनौत, विवेक अग्निहोत्री जैसे लोगों ने भी आवाज उठाई थी।
नई दिल्ली, 17 सितम्बर (आईएएनएस)| केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का किसी राजनीतिक दल से कोई मुकाबला नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी हर बार अपना ही रिकॉर्ड तोड़कर आगे बढ़ते हैं। देश के लिए उनके पास विशाल ²ष्टि है। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने गुरुवार को प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन पर पार्टी मुख्यालय पर एक वेबसाइट और ई-बुक का विमोचन करते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी के प्रति लोगों का प्यार और विश्वास बढ़ रहा है, कम नहीं हो रहा है। प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि कोरोना काल में दुनिया के मुकाबले भारत में बहुत बेहतर तरीके से लड़ाई लड़ी गई। कोरोना काल में जो भी सर्वे हुए उसमें प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता बढ़ती रही। उन्होंने हर कार्य को अलग ढंग से किया। वह दूसरों से तुलना कर कोई कार्य नहीं करते। प्रधानमंत्री मोदी ने राजनीति में एक लंबी लाइन खींच दी है। केंद्रीय मंत्री ने बताया कि पार्टी की ओर से मिस्ड कॉल के जरिए जिस तरह से पहले 11 करोड़ और बाद में 7 करोड़ और सदस्य बने, यह प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता का प्रमाण है।
विवेकानंद यूथ कनेक्ट फाउंडेशन की ओर से तैयार प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन पर नरेंद्र 70 डॉटइन नामक वेबसाइट के उद्घाटन कार्यक्रम में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्याम जाजू ने कहा कि नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व भाजपा और भारत तक सीमित नहीं है। पूरे विश्व के लोग प्रशंसा कर रहे हैं। केवल बैनर, होर्डिग से जन्मदिन नहीं मनाया जा रहा है, बल्कि सेवा कार्यो के जरिए किया जा रहा है। गरीबों तक पहुंचने के माध्यम के रूप में मोदी का जन्मदिन मनाया जा रहा है।
नई दिल्ली, 17 सितम्बर (आईएएनएस)| सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा सुप्रीम कोर्ट को इस बात की सूचना दी गई कि अगर वे मीडिया के संचालन में इच्छुक हैं, तो उन्हें मुख्यधारा मीडिया के बजाय डिजिटल मीडिया पर गौर करना चाहिए, क्योंकि इसमें बड़े पैमाने पर दर्शकों तक पहुंचने की क्षमता है। इसमें चीजें तेजी से वायरल होती हैं। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए गए अपने एक हलफनामे में मंत्रालय ने कहा है कि मेनस्ट्रीम मीडिया (इलेक्ट्रॉनिक या प्रिंट) की बात करें, तो इसमें पब्लिकेशन या टेलीकास्ट करना एक बार का काम होता है, दूसरी ओर डिजिटल मीडिया में अधिक संख्या में लोगों तक पहुंचने की क्षमता होती है और इसमें व्हाट्सअप, ट्विटर और फेसबुक जैसे ऐप के माध्यम से वायरल होने का भी गुण है।
सुदर्शन टीवी के मामले में दायर इस हलफनामे में कहा गया, "गंभीर प्रभाव और क्षमता को ध्यान में रखते हुए, कोर्ट अगर इस पर फैसला करने के इच्छुक है, तो उन्हें पहले डिजिटल मीडिया पर गौर फरमाना चाहिए क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के संबंध में पहले से ही पर्याप्त रूपरेखा और न्यायिक घोषणाएं मौजूद हैं।"
इसमें आगे कहा गया, "मीडिया में मुख्यधारा के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, मुख्यधारा के प्रिंट मीडिया के अलावा एक समानांतर मीडिया भी है, जिनमें डिजिटल प्रिंट मीडिया, डिजिटल वेब बेस्ड न्यूज पोर्टल, यूट्यूब चैनल सहित 'ओवर द टॉप' प्लेटफॉर्म (ओटीटी) शामिल हैं।"
जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, के. एम. जोसेफ और इंदु मल्होत्रा ने अगले आदेश तक सुदर्शन टीवी के कार्यक्रम यूपीएससी जिहाद के प्रसारण पर रोक लगा दी है।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए मानक प्रदान करने के उद्देश्य से शीर्ष अदालत ने एक पांच-सदस्यीय समिति की स्थापना का संकेत दिया है, जिनकी नीतियां राजनीतिक दृष्टिकोण से प्रभावित नहीं होंगी।
शीर्ष अदालत मामले की सुनवाई जारी रखेगी।
नई दिल्ली, 17 सितंबर (आईएएनएस)| केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन ने गुरुवार को कहा कि कोरोनावायरस वैक्सीन अगले साल की शुरूआत तक देश में उपलब्ध हो जाएगी। यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब भारत में मामलों की संख्या 50 लाख के पार हो चुकी है और देशवासी बेसब्री से वैक्सीन का इंतजार कर रहे हैं। हर्षवर्धन ने राज्यसभा में कहा, "अन्य देशों की तरह भारत भी वैक्सीन के लिए प्रयास कर रहा है। 3 वैक्सीन कैंडिडेट का परीक्षण अलग-अलग चरणों में है। प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन में विशेषज्ञों का एक समूह इसे देख रहा है। हमें उम्मीद है कि अगले साल की शुरूआत तक भारत में वैक्सीन उपलब्ध हो जाएगी।"
जायडस केडिला और भारत बायोटेक द्वारा विकसित किए जा रहे दो टीके परीक्षण का पहला चरण पूरा कर चुके हैं। वहीं सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) ने ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया से मंजूरी मिलने के बाद फिर से परीक्षण शुरू कर दिया है।
कोविशिल्ड वैक्सीन उम्मीदवार की मैन्यूफेक्चरिंग में भारत भागीदार है, जिसे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के जेनर इंस्टीट्यूट और एस्ट्राजेनेका द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया है। पुणे की फर्म एसआईआई देश में 17 परीक्षण स्थलों पर परीक्षण कर रही है।
इसके अलावा रूसी प्रत्यक्ष निवेश कोष (आरडीआईएफ) और डॉ. रेड्डीज लेबोरेटरीज लिमिटेड ने भारत में स्पुतनिक-5 वैक्सीन के वितरण पर सहयोग करने पर सहमति जताई है।
स्पुतनिक को रूस के गेमेल्या साइंटिफिक रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी एंड माइक्रोबायोलॉजी और आरडीआईएफ द्वारा विकसित किया गया था, जिसका 11 अगस्त को रजिस्ट्रेशन किया गया था।
आरडीआईएफ द्वारा जारी एक बयान में कहा गया, "आरडीआईएफ डॉ. रेड्डीज को वैक्सीन की 100 मिलियन खुराक की आपूर्ति करेगा।"
लखनऊ, 17 सितम्बर (आईएएनएस)| लखनऊ कस्टम विभाग की टीम ने सऊदी अरब से आने वाले एक यात्री से चौधरी चरण सिंह अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे (सीसीएसआई) पर करीब 3.8 किलोग्राम सोने के बिस्कुट जब्त किए हैं। उसकी कीमत 2 करोड़ रुपये से अधिक है। मात्र दो दिनों की अवधि में दूसरी बार इस तरह की जब्ती की गई है। इसके साथ ही मध्य पूर्व से सोने की तस्करी के कार्टेल का स्पष्ट लिंक पता चलता है।
विभाग के एक बयान में कहा गया, "लखनऊ कस्टम्स टीम ने 16.09.2020-17.09.2020 की रात में सीसीएसआई एयरपोर्ट पर फ्लाइट नंबर जी8 6451 में रियाद से लखनऊ यात्रा करने वाले एक यात्री से 33 सोने की बिस्कुट (प्रत्येक बिस्कुट का वजन 116.64 ग्राम) जब्त किया, जिसका कुल वजन 3,849.12 ग्राम था और इसका मूल्य 2,09,77,704 रुपये है।"
सोने के बिस्कुट को सेलोटेप में लपेटा गया था और एक काले रंग की थैली में रखा गया, जो उनके अंडरगारमेंट में था।
संदेह के आधार पर कस्टम अधिकारियों ने यात्री की पूरी तरह से जांच की, जिसके बाद 33 सोने के बिस्कुट का पता चला। व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया गया है।
इससे पहले मंगलवार को इसी हवाई अड्डे पर लखनऊ कस्टम्स ने दुबई से लखनऊ आने वाली फ्लाइट नं. एफजेड 8325 के एक यात्री के पास से 583.2 ग्राम वजन के सोने के बिस्कुट की एक और जब्ती की थी। उसकी कीमत 31,78,440 रुपए थी।
एक बयान में कहा गया, इन सोने के बिस्कुट को कार्बन पेपर और सेलोटेप की कई परतों में लपेटा गया था और बेलनाकार आकार के रबर मटेरियल में रखा गया था जिसे पुन: सेलोटेप में लपेटा गया था और हैंड बैगेज में रखा गया था। यात्री को गिरफ्तार कर लिया गया।
नई दिल्ली, 17 सितंबर (आईएएनएस)| कांग्रेस सांसद शक्ति सिंह गोहिल ने गुरुवार को राज्यसभा में एशियाई शेरों की मौत का मुद्दा उठाया। उन्होंने मांग की कि शावकों को रेडियो कॉलर नहीं लगाना चाहिए क्योंकि इससे उनकी वृद्धि बाधित होती है और कई बार इससे उनकी असामयिक मौत भी हो जाती है। गोहिल ने कहा, "कॉलर 2.5 किग्रा का होता है जिसका इस्तेमाल बिल्कुल नहीं किया जाना चाहिए। इसकी बजाय किसी अन्य वैज्ञानिक तरीके का उपयोग करना चाहिए।"
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन समिति की रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी से अब तक गुजरात में 92 एशियाई शेरों की मौत हो गई है।
वहीं 10 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ट्वीट कर 2015 से 2020 के बीच एशियाई शेरों की आबादी में 29 फीसदी की ऐतिहासिक वृद्धि बताते हुए ट्वीट किया था।
गुजरात का मशहूर गिर नेशनल पार्क राज्य के 8 जिलों जूनागढ़, अमरेली, भावनगर, पोरबंदर, राजकोट, गिर-सोमनाथ, बोटाद और जामनगर में फैला है।
नई दिल्ली, 17 सितम्बर (आईएएनएस)| केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन राज्य मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल भी कोरोना संक्रमित हो गए हैं। उनकी जांच रिपोर्ट बुधवार की देर रात आई। जिसके बाद मंत्री आइसोलेशन में चले गए हैं। उन्होंने संपर्क में आने वाले सभी व्यक्तियों को सतर्कता बरतने की सलाह दी है। मध्य प्रदेश के दमोह से सांसद और केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रहलाद सिंह पटेल ने गुरुवार को जारी एक बयान में कहा, कल रात्रि में मेरी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई है, जो लोग मुझे मंगलवार को मिले थे उन्हें सावधानी बरतनी चाहिए। मंत्री के संपर्क में आने वाले स्टाफ और अन्य लोग भी अब कोरोना की जांच कराने की तैयारी में हैं।
इससे पहले केंद्र सरकार के कई मंत्री कोरोना की चपेट में आ चुके हैं। गृहमंत्री अमित शाह, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, धर्मेंद्र प्रधान, अर्जुन राम मेघवाल, गजेंद्र सिंह शेखावत आदि कोरोना संक्रमित हो चुके हैं। गृहमंत्री अमित शाह स्वस्थ होकर कोरोना वायरस की चपेट से बाहर आ चुके हैं। हालांकि अमित शाह का पोस्ट कोविड ट्रीटमेंट चल रहा है।
नयी दिल्ली,17 सितंबर (वार्ता) वैश्विक महामारी कोविड-19 के देश में लगातार बढ़ते भयावह प्रसार को रोकने के लिए इसकी अधिक से अधिक जांच की मुहिम में 16 सितंबर को कुल जांच का आंकड़ा छह करोड़ को पार कर गया।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की तरफ से गुरुवार को जारी आंकड़ों में बताया गया कि देश में 16 सितंबर तक कोरोना वायरस के कुल 6,05,65,728 नमूनों की जांच की जा चुकी है। परिषद के अनुसार 16 सितंबर को लगातार दूसरे दिन एक दिन में 11 लाख से अधिक 11,36,613 वायरस नमूनों की जांच की जा चुकी है। पंद्रह सितंबर को 11,16,842 नमूनों की जांच की गई थी।
देश में तीन सितंबर को आये आंकड़ों में रिकार्ड 11 लाख 72 हजार 179 नमूनों की जांच की गई थी। यह देश में ही नहीं विश्व में भी एक दिन में सर्वाधिक जांच का रिकार्ड है।
अयोध्या, 17 सितंबर (आईएएनएस) बाबरी मस्जिद के वादी इकबाल अंसारी ने विध्वंस मामले में सुनवाई कर रही सीबीआई की विशेष कोर्ट में आग्रह किया कि मामले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया जाए। सीबीआई की विशेष कोर्ट 30 सितंबर को मामले में अपना फैसला सुनाने वाली है और आरोपियों में लालकृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह और विनय कटियार जैसे दिग्गज शामिल हैं।
अंसारी ने एक समाचार चैनल को बताया कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही विवाद पर अपना फैसला दे चुका है और मंदिर निर्माण की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है।
उन्होंने कहा, "बाबरी विध्वंस मामले में कई आरोपी व्यक्ति अब जीवित नहीं रहे और जो लोग मौजूद हैं, वे बहुत बुजुर्ग हो गए हैं। मैं चाहता हूं कि इस मामले को अब खत्म कर दिया जाए और इसे अब बंद करना चाहिए। किसी भी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कोई विवाद नहीं बचा है।"
अंसारी ने आगे कहा कि हिंदू और मुसलमानों को एक साथ सौहार्द से रहने और देश के सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
विध्वंस मामले में सारी बहस अब खत्म हो गई है और फैसला 30 सितंबर को सुनाया जाएगा।
नई दिल्ली, 17 सितंबर (आईएएनएस)| सुप्रीम कोर्ट ने जोधपुर स्थित नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में तृतीय वर्ष के छात्र की रहस्यमय मौत के करीब तीन साल बाद बड़ा फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने बुधवार को दो महीने के भीतर नए सिरे से मामले की जांच करने के निर्देश जारी किए हैं। राज्य पुलिस से केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को स्थानांतरित करने की मांग करने वाली याचिका पर आदेश सुनाते हुए पुलिस को नए सिरे से मामले की जांच करने के निर्देश दिए गए हैं।
पीड़ित विक्रांत नगाइच की मां नीतू कुमार नगाइच ने वकील सुनील फर्नांडिस के माध्यम से याचिका दायर की है। मामले की तीन साल बाद भी इसकी जांच में कोई प्रगति नहीं हो रही थी, इसलिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी।
जुलाई में शीर्ष अदालत ने कहा था कि जांच दो महीने के भीतर पूरी होनी चाहिए और इसके पहले एक अंतिम रिपोर्ट दायर की जानी चाहिए।
न्यायमूर्ति आर. एफ. नरीमन, न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की पीठ ने राजस्थान पुलिस द्वारा दाखिल क्लोजर रिपोर्ट को रद्द कर दिया है।
पीठ ने कहा कि इस मामले में काफी समय बीत चुका है और निस्संदेह अब इस मामले को तत्काल निपटाया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि नए सिरे से जांच आज (बुधवार) से अधिकतम दो महीने के भीतर समाप्त हो जानी चाहिए।
पीठ ने क्लोजर रिपोर्ट में लापरवाही बरतने और तय समय पर रिपोर्ट दाखिल नहीं करने पर राजस्थान पुलिस को फटकार भी लगाई।
पीठ ने कहा कि उनके सामने अचानक एक बहुत लंबी जांच रिपोर्ट तो दर्ज कर दी गई, मगर इसमें मौत को लेकर कोई सुराग नहीं है।
पीड़ित 13 अगस्त, 2017 की शाम को अपने दोस्तों के साथ विश्वविद्यालय परिसर से लगभग 300 मीटर दूर एक रेस्तरां में गया था। उसका शव अगली सुबह एक रेलवे ट्रैक के पास मिला। पीड़िता की मां ने दलील दी है कि पुलिस की ओर से घटना की रात उनके बेटे के ठिकाने का पता लगाने के लिए उसके मोबाइल फोन का डेटा हासिल करना बाकी है।
याचिकाकर्ता ने जोर देकर कहा कि वह अपने बेटे की मौत की जांच से संतुष्ट नहीं हैं। उन्होंने कहा कि वह अपने एकमात्र बच्चे की मौत के बाद पूरी तरह से टूट गई हैं।
नई दिल्ली, 17 सितंबर (आईएएनएस)| देश में झूठ और नफरत फैलाने वाले 7819 वेबसाइट लिंक और सोशल मीडिया अकाउंट पर केंद्र सरकार ने कार्रवाई की है। लोकसभा में उठाए गए एक सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने पिछले तीन वर्षो में ब्लॉक कराए गए अकाउंट्स के बारे में जानकारी दी है।
दरअसल, कांग्रेस सांसद रवनीत सिंह ने सूचना प्रौद्यौगिकी मंत्री से पूछा था कि फेसबुक आदि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म समाज में हिंसा और घृणा को बढ़ावा दे रहे हैं, पिछले तीन वर्षों में ऐसे सोशल मीडिया अकाउंट के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई है? इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्यौगिकी राज्यमंत्री संजय धोत्रे ने इस सवाल के लिखित जवाब में बताया कि इंटरनेट के बढ़ते प्रयोग के साथ ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर हिंसा भड़काने वाली सूचनाओं की रिपोर्टिग बढ़ी है। इस कारण कार्रवाई भी तेज हुई है।
मंत्री ने बताया कि आईटी अधिनियम-2000 की धारा 69 क के फ्रेमवर्क के तहत एक प्रणाली मौजूद है। अधिनियम की धारा 69क सरकार को देश की संप्रभुता, राष्ट्र की सुरक्षा, विदेशी राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध से संबंधित किसी अपराध को करने के लिए भड़काने से रोकने के लिए संबंधित सूचना को ब्लॉक करने का अधिकार देती है।
उन्होंने बताया कि पिछले तीन वर्षों में कई वेबसाइट, वेबपेज और सोशल मीडिया अकाउंट्स को ब्लॉक किए गए। केंद्रीय राज्यमंत्री ने बताया कि 2017 में 1385, 2018 में 2799 और 2019 में 3635 वेबसाइट, वेबपेज और सोशल मीडिया अकाउंट्स को बंद कराया गया। इस प्रकार पिछले तीन साल में 7819 अकाउंट और वेबसाइट लिंक के खिलाफ कार्रवाई हुई।
नई दिल्ली, 17 सितंबर (आईएएनएस)| सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों को पुलिस थानों में लगे सीसीटीवी कैमरों पर सही सूचना उपलब्ध कराना चाहिए, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सही सूचना पाना नागरिकों का मौलिक अधिकार है। न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन, नवीन सिन्हा और इंदिरा बनर्जी की पीठ ने कहा, "2017 के एसएलपी (सीआरएल) 2302 मामले में 3 अप्रैल, 2018 को पारित हमारे आदेश के आलोक में हम थानों में लगे सीसीटीवी कैमरों और निगरानी समितियों की वास्तविक स्थिति जानना चाहते हैं।"