अंतरराष्ट्रीय
आर्थिक बदहाली के दौर से गुजर रहे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने अपने मंत्रियों और सलाहकारों से वेतन और दूसरी सुविधाएं न लेने की अपील की है.
उन्होंने कहा है कि इससे देश के खज़ाने में सालाना 200 अरब की बचत होगी.
साथ ही नेताओं से उन्होंने लग्ज़री कार से यात्रा न करने को कहा है. सरकार का खर्च घटाने के मकसद से उन्होंने मंत्रियों से इकोनॉमी क्लास में हवाई यात्रा करने को कहा है.
पाकिस्तान सरकार फिलहाल अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से मदद की रुकी हुई किस्त हासिल करने की कोशिश कर रही है.
आईएमएफ़ से बातचीत पूरी होने पर उसे एक अरब डॉलर का पैकेज मिल सकता है. इस बीच सरकार देश को आर्थिक बदहाली से बचाने की कोशिश में खर्च कम करने की कोशिश में लगी है.
एक तरफ पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार घट गया है और वहां अब सिर्फ तीन सप्ताह के आयात के लायक डॉलर बच गए हैं, तो दूसरी तरफ देश में महंगाई 35 फ़ीसदी से ऊपर पहुंच गई है. (bbc.com/hindi)
वाशिंगटन, 25 फरवरी। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि अमेरिका को इस बात की गहरी चिंता है कि चीन की ओर से भारत के निकटवर्ती पड़ोसी देशों पाकिस्तान और श्रीलंका को दिये जा रहे कर्ज के बदले बलपूर्वक लाभ लिया जा सकता है।
दक्षिण और मध्य एशियाई मामलों के सहायक विदेश मंत्री डोनाल्ड लू ने विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन की भारत यात्रा से पहले पत्रकारों से कहा, “हम इस बात को लेकर बहुत चिंतित हैं कि भारत के निकटवर्ती देशों को दिये जा रहे चीनी ऋण का दुरुपयोग किया जा सकता है।”
ब्लिंकन एक से तीन मार्च तक तीन-दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर नयी दिल्ली जा रहे हैं।
लू ने कहा कि अमेरिका इस क्षेत्र के देशों से बात कर रहा है कि वे अपने फैसले खुद लें और किसी बाहरी साझेदार के दबाव में न आएं।
लू ने कहा, “हम भारत से बात कर रहे हैं, इस क्षेत्र के देशों से बात कर रहे हैं कि कैसे हम उन देशों को खुद के निर्णय लेने में मदद कर सकते हैं। इन फैसलों में चीन का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।”
इससे पहले पाकिस्तान के वित्त मंत्री इस्हाक डार ने घोषणा की कि चीन विकास बैंक (सीडीबी) के बोर्ड ने देश को 70 करोड़ अमेरिकी डॉलर के कर्ज को मंजूरी दी है।
एक सवाल के जवाब में लू ने कहा कि चीन के मुद्दे पर भारत और अमेरिका के बीच गंभीर बातचीत हुई है।
लू ने कहा, “हमने निगरानी गुब्बारा प्रकरण से पहले और बाद में चीन को लेकर गंभीर बातचीत की है। इसलिए मुझे पूरी उम्मीद है कि बातचीत जारी रहेगी।” (भाषा)
अमेरिका ने रूस-यूक्रेन संघर्ष पर भारत के रुख़ के बारे में कहा है कि उसे पता है कि भारत, रूस के साथ हाल फ़िलहाल अपने रिश्ते ख़त्म नहीं करने जा रहा.
हालांकि उसने उम्मीद जताई है कि यूक्रेन संघर्ष को ख़त्म करवाने में भारत, रूस पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल करेगा.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय में दक्षिण और मध्य एशिया मामलों के सहायक मंत्री डोनाल्ड लू ने ये विचार व्यक्त किए हैं.
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन की भारत, कज़ाख़स्तान और उज़्बेकिस्तान की प्रस्तावित यात्रा के बारे में पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने ये बातें कहीं.
यूक्रेन युद्ध को लेकर गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र में हुए मतदान में इन तीनों देशों ने भाग लेने से इनकार कर दिया था.
इन देशों के बारे में उन्होंने कहा कि हमें ये पता है कि मध्य एशियाई देशों और भारत के रूस के साथ लंबे और जटिल रिश्ते रहे हैं, इसलिए हम हाल फ़िलहाल में उनसे ये रिश्ते ख़त्म करने की उम्मीद नहीं कर रहे, बल्कि उम्मीद करते हैं कि वे यूक्रेन संकट को ख़त्म करने में योगदान करें.
भारत ने ज़ोर दिया कि यूएन के चार्टर के अनुसार यूक्रेन में एक व्यापक, न्यायसंगत और स्थायी शांति बहाल करने की तत्काल ज़रूरत है. (bbc.com/hindi)
चीन ने भारत के पड़ोसी और अपने मित्र पाकिस्तान को 70 करोड़ डॉलर का कर्ज़ दिया है जिसके बाद अमेरिका ने इस पर चिंता जताई है.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय में दक्षिण और मध्य एशिया मामलों के सहायक सचिव डोनाल्ड लू ने चिंता जताई है कि चीन भारी कर्ज़ से पैदा होने वाले हालात का कहीं जबरन फायदा न उठाए.
लू ने दक्षिण एशिया के मुल्कों की तरफ इशारा करते हुए कहा कि, अमेरिका इस इलाक़े के देशों से बात कर रहा है कि वे अपने फ़ैसले ख़ुद लें और चीन जैसे किसी दूसरे देशों के दबाव में न आएं.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से कर्ज़ लेने को लेकर चल रही पाकिस्तान की बातचीत के बीच ये चीन ने ये कदम उठाया है.
पाकिस्तान के वित्त मंत्री इशाक़ डार ने बीते सप्ताह कहा था कि चाइना डेवलपमेंट बैंक के साथ सभी औपचारिकताएं पूरी क ली गई हैं जिसके बाद उन्हें उम्मीद है कि पाकिस्तान को कुछ दिनों में 70 करोड़ डॉलर का कर्ज मिल जाएगा.
शुक्रवार देर शाम उन्होंने ट्वीट कर जानकारी दी कि चीन से उन्हें कर्ज़ मिल गया है.
अमेरिका ने जताई चिंता
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार डोनाल्ड लू ने पाकिस्तान और श्रीलंका की तरफ इशारा करते हुए कहा, "भारत के पड़ोसियों को दी चीन कर्ज़ दे रहा है जो चिंता का विषय है. हमें इस बात की चिंता है कि वो कहीं इसका इस्तेमाल कर फायदा न ले."
अमेरिका रक्षा मंत्री एंटोनी ब्लिंकन के दौरे से पहले डोनाल्ड लू ने ये बात कही.
ब्लिंकन अगले महीने होने वाले जी20 देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में शिरकत करने के लिए एक से लेकर तीन तक भारत के दौरे पर होंगे. (bbc.com/hindi)
वाशिंगटन, 24 फरवरी। रूस-यूक्रेन युद्ध का एक साल पूरा होने पर शुक्रवार को अमेरिका ने रूसी बैंकों, कंपनियों और नागरिकों पर नये प्रतिबंध लगाए।
यहां जारी एक बयान के मुताबिक, अमेरिकी वित्त विभाग की ‘‘अब तक की सबसे महत्वपूर्ण प्रतिबंध कार्रवाई’’ में रूस के धातु और खनन क्षेत्र को भी लक्षित किया गया है।
जी-7 सहयोगी देशों के समन्वय के साथ लिए गए इस फैसले का मकसद 250 लोगों और कंपनियों, शस्त्र डीलरों पर कार्रवाई के साथ ही बैंकों पर आर्थिक प्रतिबंध लगाना है।
वित्त मंत्री जेनेट येलेन ने एक बयान में कहा, ‘‘हमारे प्रतिबंधों का अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों प्रभाव पड़ा है, जिसके चलते रूस को अपने हथियारों की खेप और अलग-थलग पड़ी अर्थव्यवस्था में भरपायी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।’’
इसमें कहा गया, ‘‘जी-7 सहयोगियों के साथ मिलकर की गई आज कार्रवाई यह दर्शाती है कि जब तक जरूरत पड़ेगी, हम यूक्रेन के साथ खड़े रहेंगे।’’ (एपी)
रूस के हमले के एक साल पूरा होने के मौके पर यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने कहा है कि यूक्रेन इस साल जीत हासिल करने के लिए सबकुछ करेगा.
ज़ेलेंस्की ने कहा है कि यूक्रेन ने दुनिया को अपने प्रतिरोध के जज्बे से प्रेरित और एक किया है.
उन्होंने कहा कि जब तक रूसी कातिलों को सज़ा नहीं दी जाएगी, यूक्रेन नहीं रुकेगा.
यूक्रेन के कई शहरों में रूसी हमले के एक साल पूरे होने के मौके पर कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं.
इनमें बूचा शहर भी शामिल है जहां व्लादिमीर पुतिन की फौज पर मानवता के ख़िलाफ़ अपराध करने के आरोप हैं.
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप के लिए यूक्रेन पर रूस का हमला अब तक के सबसे कठिन संघर्ष में तब्दील हो गया है.
संयुक्त राष्ट्र ने गुरुवार रात को रूस की आलोचना करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें युद्ध खत्म करने और रूस से फौज वापस बुलाने की अपील की गई है.
वहीं, इस बीच रूस के पूर्व राष्ट्रपति दमित्री मेदवेदेव ने सुझाव दिया है कि रूसी सेना को यूक्रेनी सैनिकों को पोलैंड की सीमा तक धकेल देना चाहिए.
दमित्री मेदवेदेव इस समय रूस की सुरक्षा काउंसिल के डिप्टी चेयरमैन हैं.
उन्होंने ये बयान रूसी हमले के एक साल पूरे होने के मौके एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए दिया.
उन्होंने कहा कि जीत हासिल की जाएगी लेकिन ये भी महत्वपूर्ण है कि यूक्रेन में रूस के स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन के सभी लक्ष्यों को हासिल किया जाए.
दमित्री मेदवेदेव ने ये भी कहा कि इसका मतलब ये भी है कि रूस पर मंडरा रहे ख़तरे को पोलैंड की सीमाओं तक पीछे धकेल दिया जाए. (bbc.com/hindi)
लंदन, 24 फरवरी। एक शोध में दावा किया गया है कि लंबे समय तक कोविड से प्रभावित रहे 59 फीसदी मरीजों में शुरुआती लक्षण सामने आने के करीब एक साल बाद अंग खराब होने के मामले सामने आए हैं। इनमें वे मरीज भी शामिल हैं, जो पहली बार संक्रमित पाए जाने के बाद गंभीर रूप से बीमार नहीं पड़े थे।
जर्नल ‘रॉयल सोसाइटी ऑफ मेडिसिन’ में प्रकाशित शोध में 536 ऐसे लोगों को शामिल किया गया, जो लंबे समय तक कोविड से प्रभावित रहे और इस दौरान उन्हें सांस लेने में दिक्कत और स्वास्थ्य संबंधी अन्य दिक्कतों का सामना करना पड़ा था।
शोधकर्ताओं ने कहा कि इनमें से 13 फीसदी लोगों को पहली बार कोरोना वायरस संक्रमण की पुष्टि होने के बाद अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था, जबकि अध्ययन में शामिल 32 फीसदी लोग स्वास्थ्यकर्मी थे।
उन्होंने कहा कि 536 में से 331 मरीजों में पहली बार संक्रमण की पुष्टि होने के छह महीने बाद अंग के ठीक तरह से काम नहीं करने की जानकारी सामने आयी।
शोधकर्ताओं ने छह महीने बाद इन मरीजों पर 40 मिनट लंबा ‘बहु-अंग एमआरआई स्कैन’ परीक्षण किया। इसके निष्कर्ष से इस बात की पुष्टि हुई कि लंबे समय तक कोविड से प्रभावित रहे 29 फीसदी मरीजों के कई अंग खराब हो गए जबकि संक्रमित होने के करीब एक साल बाद 59 फीसदी मरीजों के एक अंग ने काम करना बंद कर दिया।
ब्रिटेन के ‘यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन’ से जुड़े वरिष्ठ शोध लेखक प्रोफेसर अमिताव बनर्जी ने कहा, ‘‘कई शोध में यह पाया गया है कि कई मरीजों में लगभग एक साल तक कोविड के लक्षण बने रहे। अब हम यह जोड़ते हैं कि लंबे समय तक कोविड से प्रभावित रहे पांच में से तीन लोगों का कम से कम एक अंग खराब हुआ जबकि चार में से एक मरीज के दो या अधिक अंग खराब हुए हैं।’’
कराची, 24 फरवरी। शर्मिली पाकिस्तानी युवती इकरा ने कभी नहीं सोचा था कि ऑनलाइन गेम लूडो की बाजी में वह इस तरह अपना दिल हार बैठेगी। और दिल भी हारी तो किससे - एक हिंदुस्तानी से। और फिर दिल के हाथों मजबूर होकर इकरा पहले दुबई और फिर वहां से नेपाल के रास्ते होते हुए भारतीय शहर बेंगलुरू जा पहुंची।
हालांकि ‘‘शर्मीली’’ इकरा की कहानी अब एक दुखद मोड़ पर जाकर खत्म हो चुकी है।
किसी फिल्मी कहानी के जैसा दिलचस्प लेकिन दुखद यह किस्सा इकरा के चाचा ने बताया। लड़की के चाचा ने कहा कि उसने भारत जाने के लिए दुबई और उसके बाद काठमांडू तक के हवाई टिकट के लिए अपने गहने बेचे और दोस्तों से पैसे उधार लिए।
इकरा जीवानी नामक लड़की को पिछले महीने बेंगलुरु से बरामद किया गया था, जहां वह एक हिंदू व्यक्ति मुलायम सिंह यादव के साथ रह रही थी, जो अब जेल में है। लड़की को रविवार को वाघा सीमा पर पाकिस्तानी अधिकारियों के हवाले कर दिया गया। दोनों ऑनलाइन मिले और प्यार हो गया तथा बाद में शादी करने का फैसला किया। इसके बाद वह कुछ महीने पहले नेपाल पहुंची और वहां दोनों ने शादी कर ली।
पाकिस्तान के सिंध प्रांत में लड़की के परिवारवालों ने बताया कि इकरा अपने घर लौट आई है। लड़की के पिता, चाचा और मां उसे लाने के लिए लाहौर गए थे। इससे पहले भारतीय अधिकारियों ने उसे अपने पाकिस्तानी समकक्षों को सौंप दिया था।
यह रोचक कहानी पिछले साल सितंबर में शुरू हुई जब इकरा कॉलेज जाने के बाद लापता हो गई। इकरा से बात नहीं हो पाई लेकिन उनके पिता सोहेल जीवानी ने कहा कि मामला अब हमेशा के लिए बंद हो गया है। उन्होंने कहा, ‘‘हमें अभी भी नहीं पता कि अकेले भारत जाने की हिम्मत उसमें कहां से आई। वह हमेशा से बहुत शर्मीली लड़की रही है। हर किसी की तरह हम भी हैरान हैं।’’
परिवार के एक व्यक्ति ने कहा कि पिछले चार महीनों में जो कुछ हुआ, उसके सदमे से परिवार अभी भी उबर नहीं पाया है। सवाल अभी भी बना हुआ है कि 16 साल की इकरा कराची से दुबई, फिर काठमांडू और वहां से भारत कैसे गई।
लड़की के परिवारवालों ने कहा, ‘‘उसने यह लंबी और खतरनाक यात्रा इसलिए की क्योंकि उसे एक भारतीय शख्स से प्यार हो गया था, जिसे वह एक मुस्लिम सॉफ्टवेयर इंजीनियर समीर अंसारी समझती थी।’’
अंसारी असल में 26 वर्षीय मुलायम सिंह यादव था, जो बेंगलुरु में सुरक्षा गार्ड का काम करता था। इकरा की उससे पहचान ऑनलाइन लूडो गेम खेलने के दौरान हुई थी।
इकरा ने अपने गहने बेच दिए और अपने कॉलेज की दोस्तों से दुबई और उसके बाद काठमांडू जाने को लेकर हवाई टिकट खरीदने के लिए पैसे उधार लिए, जहां से उत्तर प्रदेश के रहने वाले यादव ने उसे भारत-नेपाल सीमा के रास्ते बेंगलुरु लाने की व्यवस्था की थी।
लड़की के चाचा अफजल जीवानी ने कहा कि इकरा दुबई और फिर काठमांडू गई क्योंकि उसे भारत का वीजा नहीं मिला। उन्होंने कहा कि यादव के पड़ोसियों ने इकरा को नमाज अदा करते देख शक होने पर पुलिस को सूचना दी। अफजल ने कहा, ‘‘कुछ पड़ोसियों को शक हुआ जब उन्होंने एक लड़की को एक हिंदू के घर में नमाज पढ़ते हुए देखा, क्योंकि उसने वहां हिंदू नाम रवा रखा हुआ था।’’
उन्होंने यह भी पुष्टि की कि भारतीय पुलिस ने शिकायत के तुरंत बाद इकरा को बरामद कर लिया, लेकिन उसे एक आश्रय गृह में रखा, जहां उससे पुलिस और खुफिया लोगों ने पूछताछ की थी कि वह भारत में कैसे पहुंची।
यादव ने इकरा का नाम बदलकर रवा करने के बाद उसके लिए आधार कार्ड भी बनवाया और बाद में उसने भारतीय पासपोर्ट के लिए भी आवेदन किया। अफजल ने कहा, ‘‘लेकिन हम उसे बरामद करने और इस खौफनाक अध्याय को समाप्त करने में हमारी मदद करने के लिए पाकिस्तान और भारत सरकार के शुक्रगुजार हैं।’’
उन्होंने कहा कि लड़की पाकिस्तान लौटने के बाद से लगातार माफी मांग रही है। उन्होंने दावा किया कि ऑनलाइन लूडो गेम खेलने के दौरान जब दोनों सोशल मीडिया पर मिले तो भारतीय व्यक्ति ने खुद को मुस्लिम लड़का बताकर उनकी भतीजी को धोखा दिया।
जीवानी परिवार का दक्षिणी सिंध प्रांत में हैदराबाद शहर के शाही बाजार में व्यवसाय है। परिवार के लोगों ने कहा कि इकरा को बेंगलुरु पहुंचने और यादव से मिलने के बाद अपनी गलती का एहसास हुआ क्योंकि उसने व्हाट्सएप पर अपनी मां को सब कुछ बताने के लिए फोन करना शुरू कर दिया।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि परिवार ने उन्हें फोन के बारे में सूचित किया और उन्होंने पाकिस्तान के विदेश कार्यालय के साथ संपर्क किया, जिसने लड़की को खोजने और बरामद करने में मदद करने के लिए अपने भारतीय समकक्षों से संपर्क किया। (भाषा)
कीव, 24 फरवरी यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने रूस के आक्रमण का एक साल पूरा होने पर 2023 में जीत के लिए पूरी ताकत झोंकने का संकल्प लिया।
शुक्रवार को इस युद्ध को एक साल पूरा हो गया जिससे यूक्रेन और इसके निवासियों का जीवन बदल दिया है।
राष्ट्रपति जेलेंस्की ने ट्वीट किया कि यूक्रेनवासियों ने खुद को ‘‘अजेय’’ साबित किया है। जेलेंस्की ने बीते वर्ष को ‘‘दर्द, दुख, विश्वास और एकता का वर्ष’’ कहा। उन्होंने कहा, ‘‘हम जानते हैं कि 2023 हमारी जीत का वर्ष होगा।’’
यूक्रेनवासियों ने युद्ध में मारे गए हजारों लोगों की याद में शोकसभा, मोमबत्ती जुलूस और अन्य शोक सभाओं के आयोजन की योजना बनाई है, विशेष रूप से पूर्वी यूक्रेन में जहां लड़ाई में हर समय मृतकों की संख्या बढ़ रही है।
ऐसी चिंताएं थीं कि इस दिन रूस यूक्रेन के खिलाफ मिसाइल हमले और तेज कर सकता है। लेकिन गनीमत यह रही कि राजधानी कीव में रात भर हवाई हमले की चेतावनी सुनाई नहीं दी और सुबह शांति रही।
हालांकि, सरकार ने स्कूलों की कक्षाओं को ऑनलाइन संचालित करने और कर्मचारियों को घर से काम करने के लिए कहा।
यूक्रेन युद्ध में मारे गए लोगों की याद में विदेशों में भी श्रद्धांजलि दी गई। पेरिस में एफिल टावर को यूक्रेन के रंगों- पीले और नीले रंग में रोशन किया गया। (एपी)
वाशिंगटन, 24 फरवरी । अमेरिका ने भारतीय मूल के अमेरिकी कारोबारी और मास्टरकार्ड के पूर्व चीफ़ अजय बंगा को वर्ल्ड बैंक के चीफ़ के पद के लिए मनोनीत किया है. राष्ट्रपति जो बाइडन ने गुरुवार को इस पद के लिए उनके नॉमिनेशन का ऐलान किया है.
व्हाइट हाउस की तरफ से जारी एक बयान में बाइडन ने कहा है कि अजय बंगा के पास वैश्विक कंपनियां बनाने और उन्हें चलाने का तीन दशक से अधिक का अनुभव है.
बाइडन ने ये कदम ऐसे वक्त में उठाया है, जब अमेरिका वर्ल्ड बैंक पर जलवायु परिवर्तन की दिक्कतों को सुलझाने की दिशा में कदम उठाने का दबाव डाल रहा है.
अजय बंगा ने क्रेडिट कार्ड की जानीमानी कंपनी मास्टरकार्ड का एक दशक से भी अधिक वक्त तक नेतृत्व किया. अब वह अमेरिका में प्राइवेट इक्विटी कंपनी जनरल अटलांटिक के वाइस चेयरमैन के तौर पर काम कर रहे हैं.
कुछ जानकारों का कहना है कि बंगा के पास जो अनुभव है उससे बैंक को प्राइवेट सेक्टर के साथ मिलकर जलवायु परिवर्तन से जुड़े मामलों में काम करने में मदद मिल सकती है.
वर्ल्ड बैंक का बोर्ड मई की शुरुआत में अजय बंगा को औपचारिक तौर पर इस पर नियुक्त करने का ऐलान कर सकता है.
बुधवार को बैंक ने कहा कि उसने तीन लोगों को इंटरव्यू के लिए शॉर्टलिस्ट किया है. उम्मीद है कि मई की शुरुआत में वर्ल्ड बैंक के नए चीफ़ के नाम का ऐलान कर दिया जाएगा.
हालांकि ये कहा गया है कि बैंक के प्रमुख पद के लिए महिला उम्मीदवार को तवज्जो दी जा सकती है.
अमेरिका वर्ल्ड बैंक का सबसे बड़ा शेयरहोल्डर है. पांरपरिक तौर वह वर्ल्ड बैंक का चीफ़ चुनता रहा है. इसलिए ये माना जा रहा है कि बंगा के वर्ल्ड बैंक के चीफ़ बनने की संभावना ज्यादा है.
अमेरिकी वित्ती मंत्री जेनट येलन ने कहा है कि वो ये चाहेंगी कि वर्ल्ड बैंक सही एजेंडा चुन कर अच्छे काम के लिए और ज़ोर डाले.
उन्होंने बंगा को ऐसा शख्स करार दिया जाए जिनमें जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं को सुलझाने के लिए विशेष योग्यता है.
उन्होंने इस समस्या को सुलझाने की दिशा में सरकारों, कंपनियों और गैर लाभकारी संगठनों के बीच पार्टनरशिप कायम करने के मामले में बंगा के रिकार्ड की ओर ध्यान दिलाया है.
कौन हैं अजय बंगा?
अमेरिका की नागरिकता ले चुके अजय बंगा का जन्म भारत में हुआ था. यहीं से उन्होंने अपना करियर शुरू किया था. उनके पिता सेना में अफसर थे.
मास्टरकार्ड ज्वाइन करने से पहले वो नेस्ले और सिटीग्रुप में काम कर चुके थे. 2021 में मास्टर कार्ड से रिटायरमेंट लेने के बाद उन्होंने प्राइवेट इक्विटी फर्म जनरल अटलांटिक ज्वाइन किया और अब वो इसके वाइस चेयरमैन हैं.
जनरल अटलांटिक में वो 3.5 अरब डॉलर के क्लाइमेट फंड के एडवाइज़री बोर्ड में भी हैं.
बंगा पार्टनरशिप फ़ॉर सेंट्रल अमेरिका के लिए सह अध्यक्ष के तौर पर व्हाइट हाउस के साथ मिल कर काम कर चुके हैं.
सेंट्रल अमेरिका में प्राइवेट सेक्टर के निवेश को बढ़ावा देना इस कार्यक्रम का मकसद है ताकि अमेरिका की ओर आ रही आप्रवासियों की भीड़ पर लगाम लगाई जा सके.
सेंटर फ़ॉर ग्लोबल डेवलपमेंट की डिप्टी एक्ज़ीक्यूटिव प्रेसिडेंट अमांडा ग्लासमैन ने कहा कि बंगा के दशकों के अनुभव की वजह से वर्ल्ड बैंक के प्रति अमेरिकी संसद में खास कर रिपब्लिकन सदस्यों के बीच विश्वास बढ़ेगा. रिपब्लिकन सदस्य अक्सर अंतरराष्ट्रीय संगठनों की आलोचना करते रहे हैं.
बंगा के सामने चुनौतियां
लेकिन ये देखना अभी बाकी रहेगा कि वो कैसे उम्मीदवार साबित होते हैं क्योंकि सरकार और विकास कार्यों का उनका अनुभव कम है जबकि वर्ल्ड बैंक का मुख्य कार्य विकास परियोजना और उससे जुड़े कामों को बढ़ावा देना है.
उन्होंने कहा, "हम बंगा के विज़न के सामने आने का इंतजार कर रहे हैं. हम जानना चाहते हैं कि वो वर्ल्ड बैंक को किस रूप में देखना चाहते हैं."
हालांकि इतना तय है जो भी वर्ल्ड बैंक का अगला चीफ़ होगा उसके सामने कम आय वाले देशों की वित्तीय जरूरतों को संतुलित करने की चुनौती होगी. इनमें से कई देश कर्ज़ के जाल में फंसे हुए हैं.
साथ ही नए चीफ़ के सामने बगैर अतिरिक्त वित्तीय संसाधनों के जलवायु परिवर्तन, अंतरराष्ट्रीय संघर्ष और महामारी के जोखिमों से जूझने की चुनौती होगी.
अजय बंगा डेविड मलपास की जगह लेंगे. उन्हें पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नामित किया था.
मलपास जून तक इस पद से इस्तीफ़ा दे देंगे. वो अपने निर्धारित कार्यकाल पांच साल से एक साल पहले इस्तीफ़ा देंगे.
पिछले साल व्हाइट हाउस ने उन्हें उस वक्त सार्वजनिक रूप से लताड़ लगाई थी जब उन्होंने कहा था कि उन्हें पता नहीं है कि जीवाश्व ईंधन से जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा मिल रहा है. हालांकि बाद में उन्होंने इसके लिए माफी मांग ली थी.
अमेरिकी राष्ट्रपति के अजय बंगा को इस पद के लिए मनोनीत करने को लेकर कई भारतीय नेताओं ने उन्हें बधाई दी है.
तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ'ब्रायन ने कहा है कि तीन दशक पहले बंगा कोलकाता में नेस्ले के ब्रांच मैनेजर हुआ करते थे. उनका सफर प्रेरणा देने वाला है.
कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने इसे गर्व की बात कहा है.
मास्टरकार्ड ने अपने पूर्व चीफ़ के इस पद के लिए मनोनीत होने पर उन्हें बधाई दी है और कहा है अगर वो वर्ल्ड बैंक के बोर्ड में चुने जते हैं तो उनके साथ काम करने में कंपनी को खुशी होगा. (bbc.com/hindi)
-अंद्रेई गोरियानोव
24 फ़रवरी 2022 को व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के ख़िलाफ़ विशेष सैन्य अभियान की घोषणा की. इस युद्ध को आज एक साल पूरा हो रहा है.
युद्ध के एक साल पूरे होने के एक दिन पहले फरवरी 23 को संयुक्त राष्ट्र आम सभा में रूस के ख़िलाफ़ प्रस्ताव लाया गया. इसमें मांग की गई कि रूस जल्द से जल्द यूक्रेन से बाहर निकले.
प्रस्ताव के पक्ष में 141 वोट पड़े, इसके विरोध में 7 वोट पड़े. रूस, बेलारूस, उत्तर कोरिया, सीरिया, माली, एरिट्रिया और निकारागुआ ने प्रस्वात के विरोध में वोट किया.
भारत, चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, बोलिविया, क्यूबा, कांगो, दक्षिण अफ़्रीका और ईरान समेत 32 देशों में इस प्रस्ताव पर वोटिंग नहीं की.
शुक्रवार यानी 24 फरवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन वर्चुअल कॉन्फ्रेसिंग के ज़रिए जी7 देशों के नेताओं से मुलाक़ात करने वाले हैं. इस दौरान यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेन्स्की भी मौजूद होंगे. व्हाइट हाउस का कहना है कि इस दौरान रूस के ख़िलाफ़ और प्रतिबंध लगाए जाने की उम्मीद है.
युद्ध को एक साल पूरे होने के क़रीब दो दिन पहले चीनी के विदेश मंत्रालय के आला नेता वांग यी मॉस्को पहुंचे और रूसी राष्ट्रपति पुतिन से मुलाक़ात की. उन्होंने शांति वार्ता पर ज़ोर दिया और कहा जो देश यूक्रेन को हथियार दे रहे हैं वो शांति तक पहुंचने के रास्ते को और कठिन बना रहे हैं.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार अमेरिका ने कहा है कि चीन रूस को हथियारों की सप्लाई करने के बारे में विचार कर रहा है. उसका कहना है कि इससे युद्ध के और बढ़ने की आशंका है जिसमें एक तरफ रूस और चीन होंगे तो दूसरी तरफ यूक्रेन और अमेरिका के नेतृत्व नवाले सैन्य गठबंधन नैटो के सहयोगी देश.
रूस यूक्रेन के नेटो में शामिल होने का विरोध करता है. उसका कहना है कि ऐसा हुआ तो नेटो के नेतृत्व वाले देशों के सैन्य ठिकाने उसकी सरहदों के पास पहुंच जाएंगे.
रूसी हमले का पश्चिमी मुल्कों ने जमकर विरोध किया और रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं.
रूस से यूक्रेन के पूर्वी और दक्षिणी हिस्से से शुरुआत की और लुहांस्क, दोनेत्स्क के कई इलाक़ों पर कब्ज़ा कर लिया. उसने इन्हें रूस का हिस्सा घोषित कर दिया.
संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी के अनुसार, युद्ध के कारण अब तक1.86 करोड़ लोग यूक्रेन छोड़ कर जा चुके हैं. देश छोड़ने वालों में अधिकांश महिलाएं और बच्चे हैं. 18 साल से 60 की उम्र के लोगों को यूक्रेनी सरकार ने देश में रहकर युद्ध करने को कहा है.
फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, कनाडा जैसे कई मुल्क साफ़ तौर पर यूक्रेन की मदद के लिए आगे आए और उसे ज़रूरी हथियार दे रहे हैं. वहीं बेलारूस ने स्पष्ट तौर पर रूस का साथ देने की बात की.
भारत रूस के मुद्दे पर तटस्थ रहा है. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि ये युद्ध का दौर नहीं है और दोनों को बातचीत के ज़रिए मुद्दे को हल करना चाहिए.
रूसी हमले से पहले के हफ़्तों में मैं सेंट्रल मॉस्को डिस्ट्रिक्ट ज़मोस्कवोरेचिये में घंटों घूमा करता था. सात साल से मैं यहीं रह रहा था और बीबीसी ऑफ़िस में काम करता था.
ये शहर का सबसे शांत इलाक़ा है. मेरे लिए ये जगह रूस के जटिल वर्तमान और अतीत को अपने में समेटे हुए है.
सदियों से मॉस्को में रहने वाले यहां घर बनाने और बिज़नेस करने का काम करते रहे हैं और शांति से अपनी ज़िंदगी में मशगूल रहे हैं. उन्होंने अपने शासकों को देश का बड़ा मंच संभालने और अपनी महत्वाकांक्षाएं पूरी करने के लिए अकेला छोड़ दिया है. इस बड़े मंच पर अब एक आम रूसी नागरिक के करने के लिए कुछ नहीं था.
इस इलाक़े के एक तरफ़ मोस्कवा नदी और क्रेमलिन है और दूसरी तरफ़ स्टालिन के युग के अपार्टमेंट. शोरगुल भरे यहां के सादोवोये रिंग रोड पर 21वीं सदी में बनी गगनचुंबी इमारतें हैं.
यहां की पतली-पतली सड़कों का जाल रूस के अतीत की याद दिलाता है, जहां जगह-जगह 19वीं सदी के चर्च और आलीशान बंगले बने हुए हैं.
बोलशाया ओर्डिंका सड़क का नाम तातार मंगोल शासन के नाम पर पड़ा है, जहां सौ साल पहले उसके दूत, मॉस्को के शाही घरानों से धन इकट्ठा करने आते थे.
पिछली फ़रवरी में मैं वहीं था जब मेरे पास एक दोस्त का फ़ोन आया. यह दोस्त यूक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर ख़ारकीएव में पैदा हुआ था और अब मॉस्को में काम करता था.
उसने पूछा कि पुतिन क्या वाक़ई यूक्रेन के साथ युद्ध शुरू करने जा रहे हैं? हम दोनों ही इस ख़बर पर भरोसा नहीं करना चाहते थे.
लेकिन रूस के आक्रामक अतीत को देखते हुए, मैंने ये महसूस किया कि युद्ध अब अपरिहार्य था.
युद्ध शुरू होने के बाद से लाखों रूसी लोग रूस छोड़ चुके हैं. उनमें मैं और बीबीसी रूसी सेवा के मेरे कई सहयोगी भी शामिल हैं.
लेकिन अधिकांश लोग जो रूस में रुक गए, उनके लिए रूस के बाहर की ज़िंदगी वैसी ही है जैसी हमेशा हुआ करती थी, ख़ासकर बड़े शहरों में.
ज़मोस्कवोरेचिये में अधिकांश दुकानें, कैफ़े, व्यवसाय और बैंक खुले हुए हैं. अधिकांश पत्रकार और आईटी विशेषज्ञ यहां से चले गए हैं लेकिन उनकी जगह बाकी लोगों ने भर दी है.
दुकानदार बढ़ती महंगाई की शिकायत करते हैं लेकिन यहां दुक़ानों में इम्पोर्टेड सामानों की जगह स्थानीय उत्पादों ने ले ली है.
क़िताब की दुकानों पर हर तरह की क़िताबें उपलब्ध है हालांकि जिन क़िताबों को काम का नहीं समझा जाता है उन्हें प्लास्टिक कवर में बेचा जाता है.
यहां की लोकप्रिय कार शेयरिंग सर्विस अभी भी चल रही है लेकिन अब इनके बेड़े में अब चीन में बने कारों की संख्या बढ़ गई है.
संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका समेत कई मुल्कों ने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए हैं. लेकिन इन अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के बावजूद रूस 1990 के दशक की आर्थिक बदहाली जैसी हालत में नहीं पहुंचा है.
हालांकि बेलफ़ास्ट के रूसी अकादमिक अलेक्जेंडर टिटोव का कहना है, "बावजूद इसके इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि रूस संकट से होकर गुजर रहा है."
रूस का ये मौजूदा संकट धीरे-धीरे बढ़ने वाला है. थोड़ा बारीकी से देखें तो इसके संकेत हर जगह मौजूद दिखते हैं.
यूक्रेन की सीमा के पास और युद्ध से तहस-नहस ख़ारकीएव से महज़ 80 किलोमीटर दूर बेलगोरोद में लोग मोर्चे पर लगातार जा रहे मिलिटरी ट्रकों के काफ़िले के आदी हो गए हैं.
अगर वे उस शहर पर रूसी बमबारी से बेचैन होते हैं जहां उनके दोस्त और रिश्तेदार रहते हैं तो भी वो इसे ज़ाहिर न करने की कोशिश करते हैं.
मेरे एक दोस्त ने मुझे बताया कि स्थानीय गवर्नर की ओर से आयोजित स्ट्रीट फ़ेस्टिवल में अच्छे खासे लोग आते हैं.
लेकिन साथ ही ये ख़बर भी है कि यहां से स्थानीय डॉक्टर बड़े पैमाने पर अपनी नौकरियां छोड़ रहे हैं. इसका कारण ये है कि स्थानीय अस्पतालों में युद्ध से बड़ी संख्या में घायलों को संभालने के लिए उनके पास पूरी तैयारी नहीं हैं.
यहां के निवासी खुद को छोड़ दिया गया महसूस करते हैं. सीमा के पास स्थित कस्बे शेबेकिनो के लोग ग़ुस्से में हैं. यहां सीमा के दोनों तरफ़ से बमबारी होना रोज़ाना की बात हो गई है.
एक स्थानीय परिवार सेंट पीटर्सबर्ग गया था. वो परिवार ये देखकर हैरान रह गया कि सेंट पीटर्सबर्ग में कुछ भी नहीं बदला है जबकि उनके क़स्बे के लोगों की ज़िंदगी पूरी तरह से पलट गई है.
मुझे बताया गया कि एस्टोनिया और लात्विया की सीमा के पास पस्कोव में माहौल 'सामान्य' बना हुआ है. यहां हर कोई ऐसा जताता है कि जैसे युद्ध के कारण उनकी ज़िंदगी में कोई फर्क नहीं पड़ा हो.
पोस्कोव 76वां गार्ड्स एयर असॉल्ट डिवीज़न का मुख्य ठिकाना है. इसी कुख्यात डिवीज़न के जवानों पर कीएव के बाहर बूचा में युद्धापराध करने के आरोप हैं.
शहर से स्थानीय कब्रिस्तान के लिए एक नई बस सेवा शुरू की गई है जहां यूक्रेन में बड़ी संख्या में मारे गए सैनिकों को दफ़नाया जा रहा है. ये एक ब्रिज के नीचे है जहां किसी ने लाल रंग से 'PEACE' लिख दिया है.
मेरे एक एक दोस्त फ़िनलैंड की सीमा के पास स्थित पेत्रोज़ावोदस्क जा रही ट्रेन में सवार थे. ट्रेन में कुछ किशोर गेम खेल रहे थे.
इनमें किसी ने पूछा कि दोनेत्स्क रूस में है या यूक्रेन में? इनमें से किसी को इसका पता नहीं था, जबकि इस जगह पर उनकी ही सरकार ने कब्ज़ा कर लिया है.
मेरे दोस्त ने बताया कि ऐसा नहीं लगा कि युद्ध से इन लोगों को कोई मतलब भी है.
उन्होंने बताया कि ऐसा लगता है कि पेत्रोज़ावोदस्क अपने उजाड़ वाले दिनों में लौट चुका है. यहां दुकानें खाली हैं, दुक़ानों में कोई विदेशी ब्रांड नहीं है और सामान की क़ीमतें आसमान छू रही हैं.
क्या रूसी नागरिक यूक्रेन में हो रही बर्बरता का समर्थन करते हैं या वे ज़िंदा बचे रहने के लिए बस दिखावा कर रहे हैं कि ऐसा कुछ नहीं हो रहा?
ऊपरी माहौल देखकर अंदाज़ा लगाना और लोगों से बातचीत कर के किसी भी स्पष्ट नतीजे पर पहुंचना कठिन है. समाजविज्ञानी और रायशुमारी करने वालों ने लोगों के मन की थाह लगाने की कोशिश की लेकिन रूस में बोलने या सूचनाएं पाने की आज़ादी नहीं है इसलिए ये बताना बहुत मुश्किल है कि लोग ईमानदारी से अपनी बात कह रहे हैं.
रायशुमारी इस बात का संकेत देती है कि अधिकांश रूसी नागरिक अगर युद्ध का समर्थन नहीं कर रहे, तो भी वे निश्चित तौर पर इसका विरोध भी नहीं करते.
यह अनिच्छा विदेश में रहने वाले रूसी लोगों के बीच बहस का मुद्दा बन गया है. जो लोग पढ़ने के लिए यहां से बाहर गए हैं और रूस पर ख़बरें लिख रहे हैं (जिनमें मैं भी शामिल हूं) उनका मानना है कि बहुत थोड़े लोग युद्ध का खुलकर समर्थन कर रहे हैं और थोड़ी ही संख्या में लोग खुलकर इसका विरोध कर रहे हैं.
अधिकांश रूसी नागरिक मौजूदा हालात को समझने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि उनका कहना है कि ये उनका चुनाव नहीं था. वे कहते हैं कि वे समझ नहीं पा रहे और बदलाव तो चाहते हैं लेकिन खुद को असहाय पा रहे हैं.
क्या वे इस युद्ध को रोक सकते थे?
कुछ का मानना है कि अगर अधिक से अधिक लोग अपनी आज़ादी के लिए खड़े हुए होते और पश्चिम और यूक्रेन के ख़तरे को बढ़ाचढ़ा कर पेश किए जाने वाले सरकारी टीवी के प्रोपेगैंडा को लोगों ने चुनौती दी होती, तो शायद संभव है.
अधिकांश रूसियों ने खुद को राजनीति से दूर रखना चुना और क्रेमलिन को उनका भविष्य तय करने दिया. लेकिन कहते हैं कि सिर झुकाने का मतलब विचलित करने वाला नैतिक समझौता है.
युद्ध से दूर रहते हुए रूसी नागरिकों को ये दिखावा करना पड़ रहा है कि ये आक्रमण कोई अपवाद नहीं है. वो ये दिखावा करने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें उन यूक्रेनियों की ओर से आंखें मूंद लेनी चाहिए जो हज़ारों की तादाद में मारे जा रहे हैं या घायल हो रहे हैं.
और ये सब उस 'स्पेशल मिलिटरी ऑपरेशन' के नाम पर हो रहा है, जिसका दावा रूस करता है.
रूसी नागरिकों को ये स्वीकार कर लेना चाहिए कि ये नॉर्मल है कि सेना के जवान स्कूलों में जाकर उनके बच्चों को बताते हैं कि युद्ध एक अच्छी चीज़ है.
कि युद्ध का समर्थन करना पादरियों के लिए सामान्य बात है और उन्हें शांति के लिए प्रार्थना बंद कर देनी चाहिए. कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे अब विदेश यात्रा नहीं कर सकते और व्यापक दुनिया का वे हिस्सा नहीं रहे. कि लोग जिन स्वतंत्र मीडिया वेबसाइटों को पढ़ते थे, उन्हें रूस ने ब्लॉक कर सही ही किया था.
ये भी कि कैमरे से ली गई तस्वीरों को सासंद ट्विटर पर पोस्ट कर रहे हैं और अब यह प्रदर्शन रूसी ताक़त का सकारात्मक प्रतीक हो गया है. और ये कि युद्ध के बारे में अपने मन की बात कहने पर सालों तक के लिए जेल जाना एक सामान्य बात है, चाहे आप काउंसलर हों या पत्रकार.
लेकिन फिर रूसी नागरिक इसके विरोध में प्रदर्शन क्यों नहीं कर रहे हैं?
शायद यह बात ओपिनियन पोल्स की बजाय रूस का इतिहास बेहतर ढंग से समझाता है.
जबसे राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सत्ता में आए हैं, उन्होंने इसे छिपाया नहीं कि वो रूस का पुनर्निर्माण करना चाहते हैं और दुनिया में इसकी सम्मानजनक स्थिति बहाल करना चाहते हैं.
अपने भाषणों और लेखों में उन्होंने अपने इस विश्वास को साफ़ किया है कि पूरब और पश्चिम, दुनिया के दोनों हिस्सों में रूस का विशेष स्थान है. रूस की अलग परंपरा, धर्म और काम करने का अपना तरीक़ा है और रूसियों को सम्मान की चाहत है.
पुतिन पहले ही ये साफ़ कर चुके हैं कि ये संदेश सदियों से चला आया है और इसमें किसी बदलाव की संभावना नाकाबिले बर्दाश्त है.
ये पुतिन के पसंदीदा खेल जूडो के 'चोकहोल्ड' (हाथ से गर्दन को फांसी की तरह पकड़ने का पैंतरा) जैसा है. पुतिन के इस विज़न की क़ीमत रूसियों ने अपनी आज़ादी गवां कर और यूक्रेनियों ने अपनी जान गवां कर अदा की है. हर बार तबाही और बर्बादी के बाद ही रूस की आंखें खुली हैं.
साल 1989 में अफ़ग़ानिस्तान में हार के बाद गोर्बाचेव का युग आया. इससे पहले 1905 में जापान से हार के बाद रूस में संवैधानिक सुधार हुए और उससे पहले 1856 में क्रीमियाई युद्ध में हार के बाद ग़ुलामों के हालात बदले.
रायशुमारी करने वालों ने एक पैटर्न की पहचान की है. वो ये कि अधिकांश रूसी कहते हैं कि वे लड़ाई को ख़त्म करने के लिए शांति समझौते का समर्थन करेंगे. लेकिन वे स्वतंत्र यूक्रेन को किस तरह की गारंटी देंगे, ये अभी भी साफ़ नहीं है.
देर सवेर इस सवाल का जवाब देना तो होगा ही और रूसी नागरिकों को इस सवाल का सामना करना पड़ेगा कि उनके देश ने क्या किया है. (bbc.com/hindi)
यूक्रेन युद्ध पूरा एक साल खिंच गया है. भारत युद्ध में सीधे तौर पर शामिल नहीं है लेकिन इस एक साल में भारत के रुख ने वैश्विक व्यवस्था में उसकी स्थिति को कैसा आकार दिया है?
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
यूक्रेन युद्ध के इतने लंबे समय तक चलते रहने का असर सिर्फ रूस, यूक्रेन और यूरोप पर ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया पर पड़ा है. रूस और यूक्रेन में जानमाल के नुकसान के अलावा वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचा है और साथ ही अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कई समीकरण बदल गए हैं.
भारत ने पिछले एक साल में कई बार युद्ध की निंदा की है लेकिन यूक्रेन पर हमला करने के लिए रूस की आलोचना नहीं की है. संयुक्त राष्ट्र में जब भी रूस के खिलाफ पश्चिमी देश कोई बड़ा प्रस्ताव ले कर आए तो भारत ने प्रस्ताव पर मतदान की प्रक्रिया से ही खुद को बाहर कर लिया.
बढ़ा रूस के साथ व्यापार
पश्चिमी देशों ने रूस पर कई प्रतिबंध लगाए लेकिन भारत ने रूस से कच्चे तेल और अन्य सामान की खरीद बढ़ा दी. रूस ने भी भारत को तेल सस्ते दामों पर दिया. एक रिपोर्ट के मुताबिक इस एक साल में भारत में रूस से आयातित होने वाले तेल की मात्रा में 16 गुना का उछाल आया है. लेकिन इस व्यापार से ज्यादा दिलचस्प रही भारत द्वारा अपनी स्थिति की अभिव्यक्ति.
जानकार इसे बेहद महत्वपूर्ण मान रहे हैं. नई दिल्ली स्थित मनोहर पर्रिकर इंस्टिट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस में एसोसिएट फेलो स्वस्ति राव का मानना है कि यूक्रेन युद्ध ने भारत की कूटनीति के लिए सही मायनों में एक ऐसे दौर की शुरुआत की है जिसमें भारत ने खुद को कई तरह के हितों के बीच खड़ा पाया है.
राव ने डॉयचे वेले को बताया, "ऐसे में निष्पक्ष रह कर भारत को वैश्विक साउथ की आवाज बनने की विश्वसनीयता मिली है. इससे भारत को गुटनिरपेक्षता की जड़ों वाले लोकतंत्र की अपनी छवि को और तेज करने में मदद मिली है. साथ ही इससे भारत को पश्चिम के साथ सहयोग के विस्तार का भी मौका मिला है. और इन सब के बीच में भारत आज भी रूस का विश्वसनीय दोस्त और साझेदार बना हुआ है."
पश्चिम के साथ पेचीदा रहा रिश्ता
इस एक साल में भारत का रवैया पश्चिमी देशों को काफी असहज करने वाले रहा और उन देशों ने कभी नरम तो कभी हलके गरम अंदाज में भारत को अपनी असहजता दिखाने की कोशिश भी की. लेकिन भारत ने पश्चिमी खेमे के हिसाब से ना चलने की अपनी दृढ़ता को बिना झिझके सामने रखा.
पश्चिमी देशों ने जब कहा कि रूस से व्यापार कर भारत रूस की लड़ाई को वित्त पोषित कर रहा है तब भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि भारत रूस से जितना तेल एक महीने में खरीदता है उससे ज्यादा गैस यूरोप एक दिन में रूस से खरीदता है.
इसके अलावा सितंबर, 2022 में उज्बेकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन की शीर्ष बैठक के दौरान रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मौजूदगी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का "यह युद्ध का युग नहीं है" कहना भी एक महत्वपूर्ण संदेश रहा.
विदेश मामलों के जानकार और हार्ड न्यूज पत्रिका के संपादक संजय कपूर कहते हैं कि भारत की सफलता यह है कि ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के साथ साथ वो भी रूस और पश्चिमी खेमों के बीच में खड़ा रह सका है.
उन्होंने बताया, "भारत ने जो स्वतंत्र रुख अपनाया उससे दुनिया भारत को ऐसी नजर से देख रही है जैसा पहले नहीं था...यूरोपीय नेता जो रूस से तेल खरीदने के लिए भारत से नाराजगी दिखा रहे हैं वो ये नहीं जानते कि भारतीय रिफाइनरियां उसी रूसी तेल को अमेरिका और ब्रिटेन को बेच रही हैं.
बदल रहा है पश्चिम का नजरिया
और अब स्थिति यह है कि अमेरिका और यूरोप के नेता संकेत दे रहे हैं कि उन्होंने भारत की स्थिति से समझौता कर लिया है. अमेरिका और जर्मनी के नेताओं ने कह दिया है कि उन्हें भारत के रूसी तेल खरीदने से कोई समस्या नहीं है.
जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने हाल ही में म्युनिख सुरक्षा सम्मेलन में जयशंकर के ही उस बयान को दोहराया जिसमें जयशंकर ने कहा था कि यूरोप को अपनी इस सोच को बदलना होगा कि उसकी समस्या सारी दुनिया की समस्या है लेकिन दुनिया की कोई दूसरी समस्या यूरोप की समस्या नहीं है.
स्वस्ति राव का मानना है कि अमेरिका को दिख रहा है कि भारत द्वारा सस्ते दामों पर रूस का तेल खरीदने से रूस की कमाई घट रही है. उन्होंने बताया, "रूसी तेल अगर अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार से अचानक गायब हो जाएगा तो तेल के दामों में बहुत अस्थिरता आ जाएगी. दाम ज्यादा बढ़ जाएंगे तो यूरोप भी अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के नए रास्ते समय रहते नहीं ढूंढ पाएगा."
कुछ अन्य जानकार भारत की भूमिका की सीमाएं भी देख रहे हैं. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर यूरोपियन स्टडीज के प्रोफेसर गुलशन सचदेवा का कहना है कि यूक्रेन युद्ध की वजह से भारतीय विदेश नीति ने अपनी सामरिक स्वायत्तता का दृढ़तापूर्वक प्रदर्शन किया.
भविष्य की तैयारी
मनीकंट्रोल वेबसाइट पर छपे एक लेख में सचदेवा ने लिखा, "रूस और पश्चिम दोनों भारत को अपनी तरफ देखना चाहेंगे, विशेष रूप से तब जब भारत के पास जी20 की अध्यक्षता है. इसके आगे इस संघर्ष में भारत की भूमिका सीमित ही होने की संभावना है."
लेकिन जैसे जैसे युद्ध खिंचता चला जा रहा है, स्थितियां बदलती जा रही हैं और अब सभी देशों की भविष्य की संभावनाओं पर भी नजर है. स्वस्ति राव मानती हैं कि युद्ध का अंत जो भी हो, इतना तय है कि रूस की शक्ति कम जरूर होगी, और यह भारत के सामरिक हित में नहीं है.
उन्होंने बताया, "भारत चीन के प्रति अपनी चिंताओं का रूस के जरिए संतुलन करता आया है. लेकिन अगर रूस और कमजोर हुआ तो उसके चीन पर निर्भरता बढ़ जाएगी और फिर वो भारत के लिए यह भूमिका नहीं निभा पाएगा. रूस के कमजोर होने से भारत की रक्षा व्यवस्था पर भी असर पड़ेगा क्योंकि भारत अभी भी तरह तरह के हथियारों और सैन्य उपकरण के लिए रूस पर निर्भर है."
राव कहती हैं कि इस वजह से भारत अपने रक्षा आयात में विविधता लाने की कोशिश कर रहा है और इसके अलावा भारत अलग अलग सामरिक चर्चाओं के प्रति भी खुला रवैया रखने की कोशिश कर रहा है. इसके सबसे प्रत्यक्ष उदाहरणों में से भारत की नाटो के साथ पहली बार होने वाली औपचारिक बातचीत है, जिसका मार्च में आयोजन किया जाना है. (dw.com)
भारत ने एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र में यूक्रेन युद्ध के प्रस्ताव पर मतदान से खुद को बाहर रखा है. भारत के अलावा चीन, पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका और श्रीलंका समेत कुल 32 देशों ने मतदान नहीं किया.
यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के एक साल पूरा होने के मौके पर संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस प्रस्ताव को लाया गया था. यूक्रेन में जल्द से जल्द शांति स्थापित करने की मांग करने वाले इस प्रस्ताव को जर्मनी ले कर आया था.
प्रस्ताव में रूस से मांग की गई कि वो यूक्रेन से तुरंत अपनी सेना को वापस बुलाए. कुल मिला कर 141 देशों ने प्रस्ताव के समर्थन में मत डाला. सात देशों ने प्रस्ताव का विरोध किया. इनमें रूस, बेलारूस, उत्तर कोरिया, सीरिया, माली, इरीट्रिया और निकारागुआ शामिल थे.
भारत की स्थिति वही
कुछ देशों को छोड़ कर लगभग सभी देशों का रवैया अभी तक यूक्रेन युद्ध पर उनकी स्थिति के अनुकूल ही था. पश्चिमी देशों ने इस बार भारत को अपना रुख बदलने के लिए मनाने की कोशिश की थी, लेकिन भारत अपनी स्थिति पर कायम रहा और लगभग सभी पिछले प्रस्तावों की तरह इस बार भी मतदान से बाहर रहा.
माली और इरीट्रिया भी पिछले प्रस्तावों पर मतदान से बाहर रहे थे लेकिन इस बार दोनों देशों ने प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया. दक्षिण सूडान ने भी तक मतदान से खुद को बाहर रखा था लेकिन इस बार उसने प्रस्ताव के समर्थन में मतदान किया.
प्रस्ताव को लाने वाले देश जर्मनी की विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक प्रस्ताव पर भाषण देने वाली आखिरी वक्ता थीं. अपने भाषण में उन्होंने कहा, "रूस का आक्रमण ना केवल यूक्रेन के लोगों के लिए भयावह आपदा ले कर आया है, बल्कि इस युद्ध ने पूरी दुनिया को गहरे घाव दिए हैं. खाने पीने की चीजों और ऊर्जा के बढ़ते दामों की वजह से हर महाद्वीप पर परिवारों को अपनी जिंदगी चलाना मुश्किल हो गया है."
बेयरबॉक ने कहा कि सबको शांति चाहिए और "अच्छी बात यह है कि शांति का मार्ग यहीं हमारे सामने ही है. उसे संयुक्त राष्ट्र का चार्टर कहा जाता है." उन्होंने विस्तार से कहा कि चार्टर के सिद्धांत "बहुत सरल हैं: देशों में बराबरी, प्रादेशिक अखंडता और शक्ति का इस्तेमाल नहीं करना."
'ताकि चार्टर हमारी सुरक्षा कर सके'
उन्होंने आगे कहा, "इसलिए शांति का मार्ग बहुत स्पष्ट है. रूस को यूक्रेन से अपनी सेना को हटाना ही होगा. रूस को बमबारी बंद करनी होगी. रूस को संयुक्त राष्ट्र के चार्टर पर वापस लौटना ही होगा."
सभी देशों को संबोधित करते हुए बेयरबॉक ने कहा, "आज यहां हममें से हर एक को चुनना है: आततायी के साथ अलग थलग खड़े होना है या शांति के लिए एकजुट होना है. चुप रहना है या हमारे संयुक्त राष्ट्र चार्टर की सुरक्षा करनी है, ताकि चार्टर हमारी सुरक्षा कर सके."
हालांकि हंगरी के विदेश मंत्री ने पश्चिमी देशों से कहा कि वो यूक्रेन को हथियार देने और रूस पर प्रतिबंध लगाने की जगह शांति वार्ता शुरू कराने में अपनी कोशिशें लगाएं. चीन ने भी शांति वार्ता की जरूरत पर ही जोर दिया.
रूस ने प्रस्ताव को एकतरफा बताया और सदस्य देशों को उसका विरोध करने को कहा. संयुक्त राष्ट्र में रूस के राजदूत सिली नेबेनेज्या ने यह भी कहा कि नाटो में यूक्रेन के सहायक देशों ने संकट को और बिगाड़ा है.
सीके/एए (एएफपी, एपी, डीपीए, रॉयटर्स)
वाशिंगटन, 24 फरवरी। अमेरिकी अधिकारियों ने पाकिस्तान के दो भाइयों को 20 साल तक बिना आरोपों के ग्वांतानामो बे सैन्य जेल में बंद रखने के बाद बृहस्पतिवार को उनके देश भेज दिया।
अब्दुल और मोहम्मद रब्बानी अमेरिकी हिरासत से रिहा होने वाले हालिया कैदी हैं। यह कदम तब उठाया गया जब अमेरिका जेल को खाली कराने तथा इसे बंद करने की कोशिशों में लगा है। जॉर्ज डब्ल्यू बुश प्रशासन ने अमेरिका पर 11 सितंबर 2001 को हुए अलकायदा के हमलों के बाद चरमपंथी संदिग्धों के लिए क्यूबा में नौसैन्य अड्डे पर यह जेल बनायी थी।
पाकिस्तानी अधिकारियों ने दोनों भाइयों को 2002 में उनके गृह नगर कराची से गिरफ्तार किया था जिसके बाद उन्हें अमेरिकी अधिकारियों को सौंप दिया गया था। अमेरिकी अधिकारियों ने दोनों पर अलकायदा सदस्यों को अपने घर में पनाह देने तथा अन्य सहयोग देने का आरोप लगाया था।
दोनों भाइयों ने ग्वांतानामो भेजे जाने से पहले सीआईए की हिरासत में प्रताड़ित किए जाने का आरोप लगाया था।
अमेरिकी सेना ने एक बयान में पाकिस्तानी भाइयों को उनके देश भेजे जाने की घोषणा की। इसने उनकी वापसी के संबंध में पाकिस्तान द्वारा रखी गयी किसी भी शर्त की अभी कोई जानकारी नहीं दी।
ग्वांतानामो में 2003 में एक समय करीब 600 कैदी थे जिन्हें अमेरिका आतंकवादी मानता था।
पेंटागन ने बताया कि ग्वांतानामो बे में अब भी 32 कैदी हैं जिनमें से 18 को उनके देश भेजा जा सकता है अगर वे उन्हें वापस लेने के लिए तैयार हो जाते हैं। (एपी)
अमेरिका ने भारतीय मूल के अमेरिकी कारोबारी और मास्टरकार्ड के पूर्व चीफ़ अजय बंगा को वर्ल्ड बैंक के चीफ़ के पद के लिए मनोनीत किया है. राष्ट्रपति जो बाइडन ने गुरुवार को इस पद के लिए उनके नॉमिनेशन का ऐलान किया है.
व्हाइट हाउस की तरफ से जारी एक बयान में बाइडन ने कहा है कि अजय बंगा के पास वैश्विक कंपनियां बनाने और उन्हें चलाने का तीन दशक से अधिक का अनुभव है.
बाइडन ने ये कदम ऐसे वक्त में उठाया है, जब अमेरिका वर्ल्ड बैंक पर जलवायु परिवर्तन की दिक्कतों को सुलझाने की दिशा में कदम उठाने का दबाव डाल रहा है.
अजय बंगा ने क्रेडिट कार्ड की जानीमानी कंपनी मास्टरकार्ड का एक दशक से भी अधिक वक्त तक नेतृत्व किया. अब वह अमेरिका में प्राइवेट इक्विटी कंपनी जनरल अटलांटिक के वाइस चेयरमैन के तौर पर काम कर रहे हैं.
कुछ जानकारों का कहना है कि बंगा के पास जो अनुभव है उससे बैंक को प्राइवेट सेक्टर के साथ मिलकर जलवायु परिवर्तन से जुड़े मामलों में काम करने में मदद मिल सकती है.
वर्ल्ड बैंक का बोर्ड मई की शुरुआत में अजय बंगा को औपचारिक तौर पर इस पर नियुक्त करने का ऐलान कर सकता है.
बुधवार को बैंक ने कहा कि उसने तीन लोगों को इंटरव्यू के लिए शॉर्टलिस्ट किया है. उम्मीद है कि मई की शुरुआत में वर्ल्ड बैंक के नए चीफ़ के नाम का ऐलान कर दिया जाएगा.
हालांकि ये कहा गया है कि बैंक के प्रमुख पद के लिए महिला उम्मीदवार को तवज्जो दी जा सकती है.
अमेरिका वर्ल्ड बैंक का सबसे बड़ा शेयरहोल्डर है. पांरपरिक तौर वह वर्ल्ड बैंक का चीफ़ चुनता रहा है. इसलिए ये माना जा रहा है कि बंगा के वर्ल्ड बैंक के चीफ़ बनने की संभावना ज्यादा है.
अमेरिकी वित्ती मंत्री जेनट येलन ने कहा है कि वो ये चाहेंगी कि वर्ल्ड बैंक सही एजेंडा चुन कर अच्छे काम के लिए और ज़ोर डाले.
उन्होंने बंगा को ऐसा शख्स करार दिया जाए जिनमें जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं को सुलझाने के लिए विशेष योग्यता है.
उन्होंने इस समस्या को सुलझाने की दिशा में सरकारों, कंपनियों और गैर लाभकारी संगठनों के बीच पार्टनरशिप कायम करने के मामले में बंगा के रिकार्ड की ओर ध्यान दिलाया है.
कौन हैं अजय बंगा?
अमेरिका की नागरिकता ले चुके अजय बंगा का जन्म भारत में हुआ था. यहीं से उन्होंने अपना करियर शुरू किया था. उनके पिता सेना में अफसर थे.
मास्टरकार्ड ज्वाइन करने से पहले वो नेस्ले और सिटीग्रुप में काम कर चुके थे. 2021 में मास्टर कार्ड से रिटायरमेंट लेने के बाद उन्होंने प्राइवेट इक्विटी फर्म जनरल अटलांटिक ज्वाइन किया और अब वो इसके वाइस चेयरमैन हैं.
जनरल अटलांटिक में वो 3.5 अरब डॉलर के क्लाइमेट फंड के एडवाइज़री बोर्ड में भी हैं.
बंगा पार्टनरशिप फ़ॉर सेंट्रल अमेरिका के लिए सह अध्यक्ष के तौर पर व्हाइट हाउस के साथ मिल कर काम कर चुके हैं.
सेंट्रल अमेरिका में प्राइवेट सेक्टर के निवेश को बढ़ावा देना इस कार्यक्रम का मकसद है ताकि अमेरिका की ओर आ रही आप्रवासियों की भीड़ पर लगाम लगाई जा सके.
सेंटर फ़ॉर ग्लोबल डेवलपमेंट की डिप्टी एक्ज़ीक्यूटिव प्रेसिडेंट अमांडा ग्लासमैन ने कहा कि बंगा के दशकों के अनुभव की वजह से वर्ल्ड बैंक के प्रति अमेरिकी संसद में खास कर रिपब्लिकन सदस्यों के बीच विश्वास बढ़ेगा. रिपब्लिकन सदस्य अक्सर अंतरराष्ट्रीय संगठनों की आलोचना करते रहे हैं.
बंगा के सामने चुनौतियां
लेकिन ये देखना अभी बाकी रहेगा कि वो कैसे उम्मीदवार साबित होते हैं क्योंकि सरकार और विकास कार्यों का उनका अनुभव कम है जबकि वर्ल्ड बैंक का मुख्य कार्य विकास परियोजना और उससे जुड़े कामों को बढ़ावा देना है.
उन्होंने कहा, "हम बंगा के विज़न के सामने आने का इंतजार कर रहे हैं. हम जानना चाहते हैं कि वो वर्ल्ड बैंक को किस रूप में देखना चाहते हैं."
हालांकि इतना तय है जो भी वर्ल्ड बैंक का अगला चीफ़ होगा उसके सामने कम आय वाले देशों की वित्तीय जरूरतों को संतुलित करने की चुनौती होगी. इनमें से कई देश कर्ज़ के जाल में फंसे हुए हैं.
साथ ही नए चीफ़ के सामने बगैर अतिरिक्त वित्तीय संसाधनों के जलवायु परिवर्तन, अंतरराष्ट्रीय संघर्ष और महामारी के जोखिमों से जूझने की चुनौती होगी.
अजय बंगा डेविड मलपास की जगह लेंगे. उन्हें पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नामित किया था.
मलपास जून तक इस पद से इस्तीफ़ा दे देंगे. वो अपने निर्धारित कार्यकाल पांच साल से एक साल पहले इस्तीफ़ा देंगे.
पिछले साल व्हाइट हाउस ने उन्हें उस वक्त सार्वजनिक रूप से लताड़ लगाई थी जब उन्होंने कहा था कि उन्हें पता नहीं है कि जीवाश्व ईंधन से जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा मिल रहा है. हालांकि बाद में उन्होंने इसके लिए माफी मांग ली थी.
अमेरिकी राष्ट्रपति के अजय बंगा को इस पद के लिए मनोनीत करने को लेकर कई भारतीय नेताओं ने उन्हें बधाई दी है.
तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ'ब्रायन ने कहा है कि तीन दशक पहले बंगा कोलकाता में नेस्ले के ब्रांच मैनेजर हुआ करते थे. उनका सफर प्रेरणा देने वाला है.
मास्टरकार्ड ने अपने पूर्व चीफ़ के इस पद के लिए मनोनीत होने पर उन्हें बधाई दी है और कहा है अगर वो वर्ल्ड बैंक के बोर्ड में चुने जते हैं तो उनके साथ काम करने में कंपनी को खुशी होगा. (bbc.com/hindi)
24 फरवरी, 2022 को रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था. आज इस युद्ध को एक साल पूरे हो चुके हैं.
इस दौरान दुनिया के तमाम देश दो धड़ों में बंटे गए हैं. एक गुट पश्चिमी देशों का है जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय देश शामिल हैं और ये गुट रूस के हमले के खिलाफ़ खड़ा है.
वहीं एक गुट वो है जो इस हमले में रूस के साथ खड़ा है जिसमें बेलारूस, सीरिया, दक्षिण कोरिया, माली जैसे देश हैं.
इस एक साल से जारी युद्ध में कुछ महत्वपूर्ण देश ऐसे हैं जो खुलकर रूस के हमले आलोचना तो नहीं करते लेकिन शांति और अंतराष्ट्रीय क़ानून और संप्रभुता की वकालत ज़रूर करते हैं. ऐसे देशों में भारत, चीन और तुर्की शामिल हैं.
इस युद्ध के एक साल पूरे होने पर हम आपको इससे जुड़ी मुख्य बातें बता रहे हैं.
- 24 फ़रवरी 2022 को व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के ख़िलाफ़ विशेष सैन्य अभियान की घोषणा की. इस युद्ध को आज 365 दिन हो चुके हैं.
- रूस से यूक्रेन के पूर्वी और दक्षिणी हिस्से से शुरुआत की और लुहांस्क, दोनेत्स्क के कई इलाक़ों पर कब्ज़ा कर लिया. उसने इन्हें रूस का हिस्सा घोषित कर दिया.
- युद्ध के एक साल पूरे होने के एक दिन पहले फरवरी 23 को संयुक्त राष्ट्र आम सभा में रूस के ख़िलाफ़ प्रस्ताव लाया गया. इसमें मांग की गई कि रूस जल्द से जल्द यूक्रेन से बाहर निकले.
- प्रस्ताव के पक्ष में 141 वोट पड़े, इसके विरोध में 7 वोट पड़ें. भारत और चीन समेत 32 देशों में इस प्रस्ताव पर वोटिंग नहीं की.
- संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी के अनुसार, युद्ध के कारण अब तक1.86 करोड़ लोग यूक्रेन छोड़ कर जा चुके हैं.
- अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, कनाडा जैसे कई मुल्क साफ़ तौर पर यूक्रेन की मदद के लिए आगे आए. वहीं बेलारूस ने रूस का साथ देने की बात की.
- भारत रूस के मुद्दे पर तटस्थ रहा है. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि ये युद्ध का दौर नहीं है और दोनों को बातचीत के ज़रिए मुद्दे को हल करना चाहिए.
- चीन भी बातचीत के ज़रिए इस मुद्दे का समाधान निकालने पर ज़ोर देता रहा है. लेकिन हाल ही में चीन के विदेश मंत्रालय के नेता वांग यी के साथ रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन कीन मुलाकात चर्चा में हैं. इस बैठक के बाद सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या सच में चीन इस युद्ध में न्यूट्रल है या रूस के साथ खड़ा है. (bbc.com/hindi)
उत्तर कोरिया ने कहा है कि उसने गुरुवार को अपने पूर्वी तट से चार सामरिक क्रूज़ मिसाइलें लॉन्च की हैं.
सोल में मौजूद बीबीसी संवाददाता ज़ीन मैकेंन्ज़ी के अनुसार, शुक्रवार को उत्तर कोरिया की सरकारी मीडिया के हवाले से बताया गया कि ‘अगर किसी तनावपूर्ण माहौल में परमाणु हमला होता है तो उसकी जवाबी कार्रवाई’ के लिए ये एक ड्रिल था.
अब तक दक्षिण कोरिया और जापान ने इस लॉन्च को लेकर कोई जानकारी नहीं दी है.
उत्तर कोरिया पर बैलेस्टिक मिसाइल लॉन्च करने पर संयुक्त राष्ट्र की ओर प्रतिबंध है लेकिन ये प्रतिबंध क्रूज़ मिसाइलों पर लागू नहीं होता. (bbc.com/hindi)
संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने गुरुवार को यूक्रेन में शांति बहाली को लेकर लेकर एक प्रस्ताव पारित किया. प्रस्ताव में कहा गया कि रूस से यूक्रेन में युद्ध समाप्त कर अपनी सेनाएं वापस बुलाएं.
भारत और चीन इस प्रस्ताव पर वोटिंग प्रक्रिया में शामिल नहीं हुए.
हालांकि यूक्रेन पर लाया गया यह प्रस्ताव 141 वोटों से पारित हुआ. भारत के साथ साथ 32 देश इस प्रस्ताव पर वोटिंग प्रक्रिया में शामिल नहीं हुए.
193 सदस्यीय आम सभा ने यूक्रेन और उसके समर्थकों की ओर को अपनाया गया. प्रस्ताव का शीर्षक था- ‘यूक्रेन में एक व्यापक, न्यायसंगत और स्थायी शांति’.
रूस ने 24 फरवरी, 2022 को यूक्रेन पर आक्रमण किया था. आज इस युद्ध को एक साल पूरे हो रहे हैं.
इस दौरान संयुक्त राष्ट्र की महासभा, सुरक्षा परिषद और मानवाधिकार परिषद में, हमले की की बार निंदा की गई और यूक्रेन की संप्रभुता, स्वतंत्रता, एकता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति प्रतिबद्धता को रेखांकित किया गया.
भारत इससे पहले यूक्रेन रूस युद्ध पर लाए गए कई प्रस्तावों से दूरी बना चुका है. भारत बार -बार इस बार पर ज़ोर देता है कि यूएन चार्टर, अंतराष्ट्रीय क़ानून, राज्यों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान किया जाना चाहिए. (bbc.com/hindi)
जापान के एक समुद्रतट पर मिले बड़े मेटल बॉल को अब क्रेन की मदद से हटाया गया है.
स्थानीय मीडिया के अनुसार, जापान के तट पर मिले इस मेटल बॉल से स्थानीय लोग परेशान थे और इसे लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे थे.
जापान के शहर हमामात्सु में स्थानीय अधिकारियों ने कहा कि इसे ‘एक निश्चित अवधि के लिए’ संग्रहीत किया जाएगा और फिर इसे ‘ख़त्म’ कर दिया जाएगा. कई लोगों ने सवाल उठाएं हैं कि आख़िर जापानी अधिकारियों ने इसे लेकर साफ़-साफ़ क्यों नहीं बताया कि ये आख़िर है क्या?
इस सप्ताह की शुरुआत में तट पर इस असामान्य वस्तु की जानकारी स्थानीय पुलिस को दी गई जिसके बाद इसे लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जाने लगे, मसलन- ये "गॉडज़िला का अंडा" है, "मूरिंग बॉय" है "बाहरी अंतरिक्ष से" आई हुई कोई चीज़ है.
पुलिस और यहां तक की एक बम स्क्वाड को भी इसकी जांच करनेके लिए भेजा गया था.
अधिकारियों ने चारों ओर से घेरकर इस मेटल बॉल का एक्स-रे किया था, जिससे बस यही पता चला कि इसमें कोई घातक चीज़ नहीं है लेकिन इसके अलावा इसके बारे में और कुछ पता नहीं चल सका.
अब इस मेटल बॉल को समुद्रतट से हटा दिया गया है.
एक स्थानीय अधिकारी ने जापानी मीडिया को बताया, "मुझे लगता है कि हमामात्सु शहर में हर कोई इस बारे में चिंतित और उत्सुक था कि यह क्या है, लेकिन हमें राहत मिली है कि काम ख़त्म हो गया है." (bbc.com/hindi)
यूरोपीय कमीशन में काम करने वाले कर्मचारियों से कहा गया है कि वे अपने फ़ोन और कारपोरेट उपकरणों से टिकटॉक ऐप को हटा दें.
कमीशन ने कहा है कि वो डेटा सुरक्षित करने और साइबर सिक्योरिटी बढ़ाने के लिए ये कदम उठा रहा है.
टिकटॉक, चीन की कंपनी बाइटडांस का है जिस पर आरोप लगते रहे हैं कि ये ऐप डेटा जमा कर चीन को देती है.
टिकटॉक ने कहा है कि वो अन्य सोशल मीडिया की तरह ही अपना काम करता है.
प्रतिबंध का मतलब है कि यूरोपीय कमीशन के कर्मचारी उन निजी उपकरणों पर टिकटॉक का इस्तेमाल नहीं कर सकते जिसमें आधिकारिक ऐप इंस्टाल हैं.
कमीशन ने कहा है कि उसके पास 32 हजार परमानेंट और कांट्रैक्ट कर्मचारी काम करते हैं. इन सभी कर्मचारियों को 15 मार्च से पहले टिकटॉक ऐप हटाने होंगे.(bbc.com/hindi)
ओमान ने इसराइली विमानों को अपने हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल करने की इजाज़त दे दी है. इसकी घोषणा इसराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने गुरुवार को की.
ये इसराइली उड्डयन उद्योग के लिए एक बड़ी ख़बर है क्योंकि इससे इसराइली विमानों की सीधी पहुंच एशिया और यूरोप तक हो जाएगी.
ओमान की मंज़ूरी मिलने के बाद नेतन्याहू ने एक बयान जारी कर कहा, “अब सुदूर पूर्व बहुत दूर नहीं रह गया है.”
उन्होंने कहा कि असल में एशिया और यूरोप के लिए इसराइल मुख्य ट्रांज़िट प्वाइंट बन गया है.
गौरतलब है कि ओमान और इसराइल के बीच राजनयिक संबंध नहीं हैं.
स्थानीय मीडिया की रिपोर्टों में कहा गया है कि अभी तक इसराइली एयरलाइंस को पूर्वी एशिया, भारत और थाईलैंड के लिए अपनी उड़ानों को दक्षिण में डाइवर्ट करना पड़ता था ताकि अरबी प्रायद्वीप के हवाई क्षेत्र से बचा जा सके. इसमें ढाई घंटे का सफ़र अधिक हो जाता था और ईंधन की ख़पत भी ज्यादा होती थी.
ओमान के फैसले से अब इसराइली उड़ानों को भारत और थाईलैंड पहुंचने में दो से चार घंटे लगेंगे. (bbc.com/hindi)
डिलीवरी की तारीख नजदीक आते ही छह रूसी महिलाएं फ्लाइट पकड़कर अर्जेंटीना पहुंच गईं. ब्यूनस आयरस के एयरपोर्ट पर अधिकारियों ने जब उनसे पूछताछ की तो रूसी बर्थ टूरिज्म का मामला सामने आ गया.
कई घंटे लंबी उड़ान भरने के बाद अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयरस पहुंचीं छह रूसी महिलाओं को एयरपोर्ट पर इमीग्रेशन अधिकारियों ने रोक लिया. महिलाएं प्रसव से ठीक पहले अर्जेंटीना पहुंची थीं. उनके पास टूरिस्ट वीजा था लेकिन अर्जेंटीना में वे कहां जाएंगी, क्या करेंगी? अधिकारियों को इन सवालों के जवाब नहीं मिले. छहों रूसी महिलाओं के पास कोई रिटर्न टिकट भी नहीं था.
इस मामले से अर्जेंटीना के माइग्रेशन डिपार्टमेंट के कान खड़े हो गए. अचानक पूरा मामला समझ में आने लगा. असल में कई रूसी नागरिक अपने बच्चे को अर्जेंटीना में जन्म देना चाहते हैं. अर्जेंटीना में जन्म लेने वाला आसानी से वहां का नागरिक हो जाता है. यही वजह है कि बीते एक साल में ब्यूनस आयरस में नवजात बच्चों के साथ रूसी महिलाएं और रूसी जोड़े खूब दिख रहे हैं. कैफे, पार्कों, बसों और प्राइवेट क्लीनिकों में खूब रूसी नागरिकों का दिखना और रूसी भाषा सुनाई पड़ना सामान्य हो चुका है.
सैकड़ों नहीं, हजारों में है संख्या
ब्यूनस आयरस के सानातोरियो फिनशिएतो क्लीनिकल में प्रेंग्नेंट रूसी महिलाएं हमेशा नजर आ जाती हैं. क्लीनिक के अधिकारी गुइलेर्मो कापुया कहते हैं, हमने कल्पना नहीं की थी कि ये एक ट्रेंड सा बन जाएगा. आखिरी तिमाही में तो संख्या बहुत ही ज्यादा बढ़ गई. दिसंबर 2022 में क्लीनिक में 200 बच्चे पैदा हुए, इनमें से एक तिहाई रूसी मांओं के थे.
दक्षिण अमेरिकी देश पहुंचे ज्यादातर रूसी, स्पैनिश भाषा नहीं बोल पाते हैं. अधिकांश रूसी नागरिक तो पहली बार अर्जेंटीना पहुंचे हैं. माइग्रेशन एजेंसी की डायरेक्टर फ्लोरेंसिया कारिजनानो कहती हैं कि रूसी नागरिकों का आना अब "एक एवलांच" की तरह हो चुका है. बीते तीन महीने में ही गर्भवती महिलाओं के साथ 5,800 रूसी नागरिक अर्जेंटीना पहुंचे हैं.
ज्यादातर रूसी महिलाएं एम्सटर्डम, इस्तान्बुल और अदीस अबाबा से कनेक्टिंग फ्लाइट लेकर ब्यूनस आयरस पहुंचती हैं. माइग्रेशन डायरेक्टर के मुताबिक हर फ्लाइट में 14 से 15 गर्भवती महिलाएं होती हैं.
अर्जेंटीना ही क्यों?
2003 से अर्जेंटीना में रह रहीं रूसी मूल की अनुवादक एलेना श्कीतेनकोवा कहती हैं, "करीब 90 फीसदी महिलाएं यहां बेहतर भविष्य की तलाश में आई हैं. ऐसे कई मामले हैं जब किसी महिला का पता चला कि उसका बेटा होने वाला है और फिर उन्होंने अर्जेंटीना आने का फैसला किया." श्कीतेनकोवा प्रशासनिक काम में रूसी मांओं की मदद करती हैं.
यूक्रेन युद्ध के चलते रूस ने सैन्य सेवा को अनिवार्य कर दिया है. बीते एक साल में रूस ने देश भर के कई इलाकों से नौजवानों को सेना में भर्ती किया है. रूसी मांओं का जिक्र करते हुए श्कीतेनकोवा कहती हैं, "वे मुझसे कहती हैं कि मैं अपने बेटे को जिंदा देखना चाहती हूं, मैं अपने बेटे के लिए शांति और बेहतर भविष्य चाहती हूं."
अर्जेंटीना पहुंची 32 साल की एक रूसी महिला की तीन बेटियां हैं. तीसरी बेटी का जन्म मई 2022 में ब्यूनस आयरस में हुआ. अपनी पहचान छुपाते हुए वह कहती हैं, "अर्जेंटीना आने के मेरे फैसले की एक वजह यूक्रेन युद्ध भी है. हालांकि ये सिर्फ अकेला कारण नहीं है. लेकिन यह बात पक्की है कि अगर हम रूस में ही रहते तो शायद मेरे पति को जबरन सैन्य सेवा के लिए बुला लिया जाता."
रूस से ज्यादा सम्मान
अर्जेंटीना पहुंचे एक रूसी पुरुष ने अपनी पहचान छुपाने की शर्त में बताया कि ज्यादातर रूसी नागरिक दोहरी नागरिकता लेना चाहते हैं. वह बताते हैं कि अर्जेंटीना में बच्चा पैदा करने का पैकेज करीब 15,000 डॉलर का पड़ता है. अर्जेंटीना की पुलिस के मुताबिक कुछ नेटवर्क तो बर्थ टूरिज्म के लिए 35,000 डॉलर तक मांग रहे हैं.
रूसी पुरुष कहते हैं, "अगर आपके पास थोड़ा सा पैसा है और आप रूस के बाहर बच्चा पैदा करने की हालत में हैं तो आप जरूर ऐसा करेंगे. अर्जेंटीना की नागरिकता लेना आसान है और रूस के लाल पासपोर्ट के मुकाबले आपके साथ बेहतर सलूक किया जाता है."
रूसी पासपोर्ट से करीब 50 देशों में वीजा फ्री यात्रा की जा सकती है, वहीं अर्जेंटीना के पासपोर्ट से 175 देशों में बिना वीजा ट्रैवल किया जा सकता है.
ओएसजे/सीके (एएफपी)
खगोलविदों ने सितारों के कुछ समूह खोजे हैं जो विशालकाय आकाशगंगाएं प्रतीत होती हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि बिग बैंग के 60 करोड़ साल बाद ब्रह्मांड की रफ्तार को और तेजी मिली होगी, जिससे ये विराट आकाशगंगाएं बनीं.
वैज्ञानिकों ने विराट आकाशगंगाएं खोजी हैं जिनका निर्माण बिग बैंग के सिर्फ साठ करोड़ साल बाद हुआ होगा. ये बेहद विशाल आकाशगंगाएं हैं जिन्हें जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप के जरिए खोजा गया है. हालांकि जेम्स वेब इनसे भी पुरानी आकासगंगाएं खोज चुका है जिनका निर्माण बिग बैंग के 30 करोड़ साल बाद हुआ हो सकता है. लेकिन नई खोजी गईं आकाशगंगाएं अपने आकार और परिपक्वता के कारण विशेष हैं.
22 फरवरी 2023 को प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया कि जेम्स वेब की इस खोज से वैज्ञानिक हैरान हैं. मुख्य शोधकर्ता ऑस्ट्रेलिया की स्वाइनबर्न यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के आइवो लाबे और उनकी टीम ने यह खोज की है. हालांकि इस दल को उम्मीद थी कि ब्रह्मांड के निर्माण की शुरुआत में छोटी-छोटी आकाशगंगाएं बनी होंगी. उन्हें इतनी बड़ी आकाशगंगा मिलने की उम्मीद नहीं थी.
लाबे बताते हैं, "उस युग की ज्यादातर आकाशगंगाएं अब भी छोटी हैं और धीरे धीरे उनका आकार बढ़ रहा है. लेकिन कुछ विराटकाय समूह हैं जिन्होंने ब्रह्मांड को तेज गति दी. ऐसा क्यों हुआ और कैसे हुआ होगा, इस बारे में कोई जानकारी फिलहाल नहीं है.”
नेचर पत्रिका में छपे इस अध्ययन में कहा गया है कि इस खोज में कुल छह तारा समूह मिले हैं जिनका वजन हमारे सूर्य से कई अरब गुना ज्यादा है. उनमें से एक तो इतनी बड़ी है कि उसमें मौजूद कुल सितारों का वजन हमारे सूर्य से 100 अरब गुना ज्यादा है. फिर भी, वैज्ञानिक मान रहे हैं कि ये आकाशगंगाएं बहुत सघन हैं. इनमें भी तारों की संख्या तो उतनी ही है जितनी हमारी आकाश गंगा मिल्की वे में है लेकिन वे बहुत पतली पट्टी में सिमटे हुए हैं.
हैरतअंगेज नतीजे
लाबे ने कहा कि उन्हें जब नतीजे मिले तो उन्हें और उनके साथियों को तो उन पर यकीन ही नहीं हुआ कि समय के इतने शुरुआती दौर में भी मिल्की वे जैसी परिपक्व आकाशगंगाएं हो सकती हैं. इसलिए उनकी दोबारा पुष्टि की गई. वे चीजें इतनी बड़ी और चमकदार थीं कि कुछ वैज्ञानिकों को तो नतीजे ही गलत लगने लगे.
लाबे ने कहा, "हमारा तो दिमाग हिल गया था. यह हास्यास्पद था.”
इस शोध में शामिल रहे पेनसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के जोएल लेया कहते हैं कि ये आकाशगंगाएं ‘ब्रह्मांड के पथद्रष्टा' हैं. उन्होंने बताया, "यह रहस्योद्घाटन की ब्रह्मांड के इतिहास की इतनी शुरुआत में ही विशाल आकाशगंगाओं का निर्माण शुरू हो गया था, विज्ञान में मौजूद अवधारणओं को बदल देता है. जो हमने खोजा है, उससे विज्ञान के सामने बड़ी समस्याएं पैदा होती हैं. शुरुआती आकाशंगगाओं के निर्माण की प्रक्रिया पर ही सवाल खड़े हो जाते हैं.”
जेम्स वेब का एक और कमाल
दस अरब डॉलर की लागत वाले जेम्स वेब टेलीस्कोप से जो शुरुआती डेटा मिला था, वह आकाशगंगाओं के बारे में ही था.एक साल पहले ही नासा और यूरोपीय स्पेस एजेंसी ने अब तक के सबसे बड़े टेलीस्कोप को अंतरिक्ष में भेजा था. इसे हबल टेलीस्कोप का उत्तराधिकारी माना जाता है, जिसे 33 साल पूरे हो रहे हैं.
हबल के उलट जेम्स वेब बहुत ज्यादा बड़ा और कहीं ज्यादा ताकतवर है. अपने इंफ्रारेड कैमरों के जरिए यह अंतरीक्षीय धुंध के पार भी देख सकता है. इस तरह जेम्स वेब ने वे आकाशगंगाएं खोजी हैं जिन्हें अब से पहले देखा ही नहीं गया था. वैज्ञानिक उम्मीद कर रहे हैं कि इस टेलीस्कोप के जरिए वे सबसे पहले बने तारे और सबसे पहली आकाशगंगाओं का निर्माण देख पाएंगे जो बिग बैंग के वक्त यानी 13.8 अरब साल पहले बने होंगे.
वैज्ञानिक आधिकारिक तौर पर इन तारा समूहों को आकाशगंगा कहने के लिए आधिकारिक पुष्टि का इंतजार कर रहे हैं. लेया कहते हैं कि संभव है कि कुछ तारा समूहों को आकाशगंगा ना कहा जाए बल्कि ये अति विशाल ब्लैक होल हों. वह कहते हैं कि इसका पता अगले साल तक ही चल पाएगा.
वीके/एए (रॉयटर्स)
वॉरसॉ (पालैंड), 23 फरवरी। अमेरिका के राष्ट्रपति जो. बाइडन की यूक्रेन-रूस युद्ध के बीच हुई यूरोप यात्रा बुधवार को समाप्त हो गई और इस दौरान उन्होंने उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के अपने पूर्वी सहयोगियों के साथ साझेदारी मजबूत करने की कोशिश की।
इस बीच, यूक्रेन पर जारी रूस के हमलों के करीब एक साल पूरा होने के बीच रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की चीन से नजदीकियां बढ़ रही हैं।
बाइडन ने यूक्रेन और पोलैंड की अपनी चार दिवसीय यात्रा में अपने सहयोगी देशों को आश्वस्त किया कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बावजूद अमेरिका उनके पक्ष में खड़ा रहेगा। इस यात्रा के अंत में बाइडन ने वॉरसॉ में ‘बुखारेस्ट नाइन’ के नेताओं से मुलाकात की।
नाटो गठबंधन के पूर्वी क्षेत्र के नौ देशों को ‘बुखारेस्ट नाइन’ कहा जाता है। ये देश 2014 में उस वक्त एक साथ आए थे, जब पुतिन ने यूक्रेन से क्रीमिया को अलग करके उस पर कब्जा कर लिया था। इन नौ देशों में चेक गणराज्य, एस्टोनिया, हंगरी, लातविया, लिथुआनिया, पोलैंड, रोमानिया और स्लोवाकिया शामिल हैं।
इस बीच, पुतिन ने बुधवार को मॉस्को में ‘चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी’ के वरिष्ठतम विदेश नीति अधिकारी वांग यी की मेजबानी की। अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने सचेत किया है कि चीन रूसी सेना को हथियार एवं गोला-बारूद की आपूर्ति करने पर विचार कर रहा है।
दोनों पक्षों की ओर से की गई कवायद इस बात का संकेत देती है कि यूक्रेन में संघर्ष अभी और बढ़ने की आशंका है।
बाइडन इस यात्रा के दौरान अचानक कीव पहुंचे और उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की से मुलाकात की तथा इसके बाद उन्होंने मंगलवार को वॉरसॉ में पश्चिमी एकता को लेकर भाषण दिया। बाइडन के पोलैंड में भाषण देने के बीच पुतिन ने घोषणा की कि रूस ‘न्यू स्टार्ट’ संधि में अपनी भागीदारी निलंबित कर रहा है। यह संधि अमेरिका के साथ रूस का आखिरी बचा हुआ परमाणु हथियार नियंत्रण समझौता है।
बाइडन ने बुधवार को कहा कि पुतिन ने अमेरिका एवं रूस के बीच परमाणु हथियारों की नियंत्रण संधि के आखिरी बचे हिस्से से अपने देश की भागीदारी निलंबित करके ‘‘बड़ी भूल’’ की है।
उन्होंने बुधवार को ‘बुखारेस्ट नाइन’ के नेताओं से मुलाकात की। जैसे-जैसे यूक्रेन में युद्ध खिंचता जा रहा है, ‘बुखारेस्ट नाइन’ देशों की चिंताएं बढ़ गई हैं। कई देशों को चिंता है कि यूक्रेन में सफल होने के बाद पुतिन उन देशों के खिलाफ भी सैन्य कार्रवाई कर सकते हैं।
बाइडन ने इस डर को दूर करने की कोशिश करते हुए कहा कि नाटो का आपसी रक्षा समझौता ‘‘पवित्र’’ है और ‘‘हम नाटो के हर इंच की रक्षा करेंगे।’’
बाइडन बुधवार देर रात वाशिंगटन लौटे। (एपी)
एपी सिम्मी नेत्रपाल नेत्रपाल 2302 1038 वॉरसॉ
-विनीत खरे
पिछले कुछ महीने पाकिस्तान के लिए अच्छे नहीं रहे हैं. देश में लगातार राजनीतिक और आर्थिक संकट का दौर बना हुआ है.
इस दौरान मुश्किलें भी कई रही हैं. बाढ़ से करीब एक-तिहाई देश का डूब जाना, पाकिस्तानी रुपए का लगतार कमज़ोर होना, बस कुछ दिनों के आयात के लिए बचा विदेशी मुद्रा भंडार, देश के कई हिस्सों में प्रदर्शन, महंगाई पर बढ़ती नाराज़गी, टीटीपी के घातक चरमपंथी हमलों में दर्जनों की मौत, जैसे संकट का सामना पाकिस्तान इन दिनों कर रहा है.
पाकिस्तान के मित्र देश भी आईएमएफ़ के साथ उसके क़रार का इंतज़ार कर रहे हैं, ऐसे वक्त जब यूनिसेफ़ की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान में करीब 40 लाख बच्चे अभी भी बाढ़ वाले दूषित पानी के नज़दीक रह रहे हैं, जिससे उनकी सेहत को ख़तरा है.
पाकिस्तान के भीतर कमेंट्री सुनें तो वहां श्रीलंका जैसे हालात पैदा होने की बात हो रही है. परमाणु हथियारों से लैस पाकिस्तान के ऐसे हालात पर भारत को कितना चिंतित होना चाहिए?
भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने समाचार एजेंसी एएनआई में स्मिता प्रकाश के साथ पॉडकॉस्ट में पाकिस्तान के मौजूदा संकट पर कहा, "पाकिस्तान का भविष्य ज़्यादातर पाकिस्तान के ऐक्शन और पाकिस्तान के विकल्पों के चुनाव पर निर्भर है. कोई भी ऐसी मुश्किल स्थिति में अचानक और बिना कारण नहीं पहुँचता. ये उन पर निर्भर है कि आगे का क्या रास्ता निकलता है. आज हमारे रिश्ते ऐसे नहीं कि हम इस प्रक्रिया में सीधे तौर पर प्रासंगिक हों."
एस जयशंकर ने यह भी कहा, "अगर हम श्रीलंका से तुलना करें तो मैं कहूँगा कि ये एक बिल्कुल अलग रिश्ता है. श्रीलंका को लेकर हमारे यहाँ बहुत मित्रभाव है."
भारत के लिए चिंता का सबब?
वहीं टाइम्स ऑफ़ इंडिया के एक पॉडकॉस्ट में जब पाकिस्तानी रक्षा विशेषज्ञ आयशा सिद्दीक़ा से ये पूछा गया तो उन्होंने कहा कि 'सालों से अफ़ग़ानिस्तान दुनिया के लिए हेल-होल (जहन्नुम जैसा) रहा है, इसमें पाकिस्तान का बहुत बड़ा योगदान रहा है लेकिन आप नहीं चाहेंगे कि पाकिस्तान भी उसी लीग में शामिल हो जाए.'
उन्होंने कहा, "मुझे पता है कि दिल्ली में पाकिस्तान से बातचीत को लेकर बहुत कम समर्थन है. सोच शायद ये है कि इस पुराने दुश्मन को सड़ने दो, इसे जहन्नुम की आग में जलने दो, लेकिन भारत को समझने की ज़रूरत है कि उसे ऐसे समझदार लोगों की ज़रूरत है जो पाकिस्तान के बारे में सोचें."
"मैं भारत से दया की भीख नहीं मांग रही. मैं कह रही हूं कि भारत अपनी आंखें न बंद करे ताकि ये पुराना दुश्मन, पड़ोसी खुद को बर्बाद न कर ले."
आयशा ने कहा कि पाकिस्तान में जब तक सकारात्मक सोच उभरे, भारत को भी चाहिए कि वो जहां तक हो सके पाकिस्तान को सहानुभूति की निगाह से देखे. उन्होंने कहा कि वो पाकिस्तान को आर्थिक मदद देने की बात नहीं कर रही हैं.
आयशा के मुताबिक़, उन्हें पता है कि दिल्ली और वॉशिंगटन में एक मान्यता है कि पाकिस्तान ने अपनी पीड़ित स्थिति या विक्टिमहुड का फ़ायदा उठाया है, लेकिन आज की स्थिति गंभीर है.
अर्थशास्त्री अजीत रानाडे ने एक लेख में लिखा कि परमाणु हथियार से लैस पाकिस्तान का ढहना भारत के लिए अच्छी ख़बर नहीं है.
वो लिखते हैं, "अस्थिर पाकिस्तान का मतलब है उग्रवादी इस्लाम और भारत-विरोधी ज़हर और ज़्यादा पैदा होना. इसका मतलब है कि भारत को अपनी पश्चिमी सीमा की रक्षा करने के लिए ज़्यादा संसाधन लगाने पड़ेंगे, जिससे आपको चीन की सीमा से संसाधन हटाने होंगे."
रिश्तों में सुधार के संकेत नहीं
पाकिस्तान में जहां कर्ज़ों पर डिफ़ॉल्ट का डर जताया जा रहा है. रक्षा मंत्री आसिफ़ ख़्वाजा ने ये भी कह दिया कि पाकिस्तान ने डिफॉल्ट कर दिया है.
हालांकि बीबीसी से बातचीत में पाकिस्तानी अर्थशास्त्री और पूर्व केयरटेकर वित्त मंत्री सलमान शाह ने भरोसा दिलाया कि पाकिस्तान स्थिति को नियंत्रित करने में सफल होगा.
सलमान शाह ने कहा, "हमें अपने आर्थिक सिस्टम्स को ठीक करना है. यहां बहुत कुशासन है जिसे ठीक करने की ज़रूरत है. अगर ऐसा होता है तो पाकिस्तान धीरे-धीरे अपने पैरों पर खड़ा हो जाएगा. अगर हम लंबे वक्त की बात करें तो दक्षिण एशिया के लिए हमें सभी पड़ोसी मुल्कों के साथ अच्छे आर्थिक रिश्तों की ज़रूरत है."
लेकिन आज की स्थिति ये है कि पाकिस्तान के हालात बेहद ख़राब हैं और बढ़ती राजनीतिक कटुता चीज़ों को बेहतर होने में बाधा डाल रही है. भारत-पाकिस्तान रिश्ते लंबे वक्त से ठंडे बस्ते में है, और विवादों और शिकायतों की फ़ेहरिस्त लंबी है.
भारत का कहना है कि आतंकवाद और बातचीत साथ नहीं चल सकती और साल 2014 में प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण पर नवाज़ शरीफ़ को निमंत्रण और साल 2015 में उनका लाहौर जाना इस बात का उदाहरण था कि भारत ने रिश्तों को सुधारने के लिए कोशिशें कीं लेकिन उरी और पुलवामा जैसे चरमपंथी हमले दिखाते हैं कि पाकिस्तान के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया.
पाकिस्तान जम्मू और कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने से ख़फ़ा है. पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने आरएसएस की तुलना हिटलर की नाज़ी पार्टी से की.
जम्मू और कश्मीर पर भारतीय क़दम के बाद पाकिस्तान ने भारत से व्यापार रोक दिया, हालांकि आधिकारिक और अनाधिकारिक तौर पर ये व्यापार जारी है.
इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकॉनॉमिक रिलेशंस (इक्रियार) की डॉक्टर निशा तनेजा कहती हैं कि भारत ने अपनी नीति के अंतर्गत पाकिस्तान से आयात पर 200 प्रतिशत शुल्क लगाया है लेकिन निर्यात पर कोई रोक नहीं है.
उनके मुताबिक, पाकिस्तान की आधिकारिक नीति है कि व्यापार को रोक दिया जाए, लेकिन अगर व्यापार हो रहा है तो उसे होने दो.
निशा तनेजा को उम्मीद है कि अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां पाकिस्तान की मदद करेंगी और उन्हें नहीं लगता कि भारत पाकिस्तान की आर्थिक मदद करेगा.
वो कहती हैं, "अगर पाकिस्तान व्यापार से रोक हटाता है तो कम से कम वो सस्ता सामान आयात कर सकता है."
अतीत में मदद
दोनो देशों में आम चुनाव नज़दीक हैं, इसलिए दोनो देशों की बीच किसी राजनीतिक गतिविधि के आसार नहीं के बराबर लगते हैं.
पाकिस्तानी विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो के 2002 गुजरात दंगों को लेकर प्रधानमंत्री मोदी पर तीखी टिप्पणी करने से भी संभावित बातचीत या बेहतर रिश्तों की उम्मीदें धूमिल ही हुई है.
और ख़राब रिश्तों का असर मानवीय स्थिति पर भी पड़ रहा है.
साल 2010 में जब पाकिस्तान में बाढ़ से तबाही हुई तब भारत ने आर्थिक मदद की घोषणा की थी.
साल 2005 में पाकिस्तान में भूकंप से आई तबाही पर भी भारत ने आर्थिक मदद का वायदा किया था.
साल 2001 में गुजरात में आए भूकंप में पाकिस्तान ने मदद की पेशकश की थी.
लेकिन पिछले साल जब बाढ़ से करीब एक तिहाई पाकिस्तान प्रभावित हुआ तब कोई भारतीय मदद की घोषणा नहीं हुई.
बाढ़ पर प्रधानमंत्री मोदी ने दुख जताया और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीब ने उनका शुक्रिया अदा किया.
जब एक साक्षात्कार में पाकिस्तानी विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो से पूछा गया क्या उन्होंने बाढ़ से हुई तबाही पर भारत से मदद मांगी है, या फिर उन्हें मदद की पेशकश की गई, तो उन्होंने दोनों सवालों का जवाब "नहीं" में दिया.
भारतीय मीडिया में विदेश मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से कहा गया कि अगर पाकिस्तान से मदद की गुहार आती है तो भारत मदद करेगा.
याद रहे कि तुर्की में भूकंप पर भारतीय मदद ऐसे वक्त की जा रही है जब भारतीय विरोध के बावजूद तुर्की वैश्विक मंचों पर कश्मीर का मुद्दा उठाता रहा है और पाकिस्तान से उसके रिश्ते मज़बूत हुए हैं.
क्या कर सकता है भारत?
बीबीसी से बातचीत में अर्थशास्त्री अजीत रानाडे कहते है, "अगर हम श्रीलंका, सीरिया और तुर्की को मानवीय आधार पर सहायता दे सकते हैं तो हमें पाकिस्तान के बारे में भी ऐसा सोचना चाहिए. 50 मिलियन डॉलर भी अच्छी शुरुआत हो सकती है. इसका क्या नुकसान हो सकता है? हम जी-20 के अध्यक्ष हैं. हम वैश्विक शक्ति बनना चाहते हैं और ऐसी मदद देना उसकी सोच के अनुरूप है."
रानाडे के मुताबिक भारत हर साल 60 से 70 अरब डॉलर रिफ़ाइंड पेट्रोल और डीज़ल दुनिया को निर्यात करता है, और पाकिस्तान इसका फ़ायदा उठा सकता है, जिससे दोनो देशों के बीच व्यापार बढ़ सकता है.
अर्थशास्त्री अजीत रानाडे के मुताबिक भारत मानवीय आधार पर पाकिस्तान की मदद की सोच सकता है, क्योंकि पाकिस्तान के मानवीय हालात खराब होने से लोगों की भीड़ का भारत आने का खतरा है.
वो कहते हैं, "आपको याद होगा कि बांग्लादेश युद्ध में क्या हुआ?" लेकिन क्या भारत-श्रीलंका और भारत-पाकिस्तान रिश्तों को एक स्तर पर रखना ठीक है?
इक्रियार की डॉक्टर निशा तनेजा के मुताबिक, "श्रीलंका के साथ भारतीय मदद, निवेश का इतिहास रहा है और दोनों देशों के बीच ऐसे चैनल्स हैं जिनका इस्तेमाल होता रहा है."
उधर पाकिस्तानी अर्थशास्त्री सलमान शाह के मुताबिक़, आज के हालात में कोई भी पाकिस्तानी सरकार भारत से मदद नहीं लेगी.
वो कहते हैं, "मुझे नहीं लगता है कि किसी भी सरकार के लिए राजनीतिक समझदारी होगी कि वो कि वो भारत से कोई मदद या समर्थन ले. अभी ये मुमकिन नहीं क्योंकि पाकिस्तान के लिहाज़ से भारत में सरकार पाकिस्तान की दोस्त नहीं है." (bbc.com/hindi)