अंतरराष्ट्रीय
गालेना पार्क (अमेरिका), 20 फरवरी। अमेरिका के टेक्सास में एक गर्भवती समेत तीन किशोरियों को एक व्यक्ति ने गोली मार दी और बाद में उसने खुद को भी गोली मार ली। पुलिस ने यह जानकारी दी।
यह घटना शनिवार की रात साढ़े दस बजे ह्यूस्टन उपनगर गैलिना पार्क में बंदूकधारी की दोस्त के घर पर हुई।
हैरिस काउंटी शेरिफ एड गोंजालेज के अनुसार, इस घटना में मारी गई लड़कियों की उम्र 19, 14 और 13 है।
गोंजालेज ने कहा कि 38 वर्षीय व्यक्ति ने फिर 12 वर्षीय पर लड़की पर हमला किया और इसके बाद वह एक वर्षीय बच्ची को लेकर भाग गई।
गैलेना पार्क पुलिस के एक बयान के अनुसार, दोनों लड़कियों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
एपी देवेंद्र शफीक शफीक 2002 0020 गालेनापार्क (एपी)
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा है कि यूक्रेन युद्ध के मद्देनज़र चीन रूस को हथियार और गोला बारूद देने पर विचार कर रहा है.
एंटनी ब्लिंकन ने सीबीएस न्यूज़ को दिए इंटरव्यू में कहा, ''चीनी कंपनियां पहले से ही रूस की मदद करती रही हैं. ये मदद ऐसी थी जिससे किसी तरह का विध्वंस या विनाश ना हो. लेकिन अब जो नई जानकारी सामने आई है, उससे लगता है कि चीन अब रूस की हथियारों या विनाश फैलाने वाले गोला बारूद मुहैया करवाकर भी मदद कर सकता है.''
ब्लिंकन ने कहा कि अगर चीन ऐसा करता है तो उसे इसके गंभीर नतीजे भुगतने होंगे.
चीन ने ऐसी रिपोर्ट्स को ख़ारिज किया है जिनमें कहा गया था कि रूस ने सैन्य हथियारों की मांग की है.
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन एक-दूसरे के सहयोगी हैं. जिनपिंग ने अब तक रूस के यूक्रेन पर आक्रमण की निंदा नहीं की है.
हालांकि वो इस मुद्दे पर शांति की अपील कर चुके हैं.
रूस के यूक्रेन पर आक्रमण किए हुए एक साल हो रहा है.
चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि रूस से रिश्तों के मुद्दों पर अमेरिका का उंगली उठाना बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
ब्लिंकन ने म्यूनिख सिक्योरिटी कॉन्फ़्रेंस में चीनी डिप्लोमैट वांग यी से मुलाकात की थी और इसके बाद ही उन्होंने सीबीएस को दिए इंटरव्यू में चीन-रूस पर टिप्पणी की.
बीते दिनों जासूसी ग़ुब्बारे को लेकर अमेरिका और चीन के रिश्तों में तल्खी आई है.
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने ग़ुब्बारे के चलते अपना चीन दौरा भी रद्द किया था. (bbc.com/hindi)
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ़ ने देश की ख़राब आर्थिक स्थिति को लेकर कहा है कि हम पहले ही ''दिवालिया हो चुके हैं और एक दिवालिया देश में रह रहे हैं.''
पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) के नेता ख्वाजा आसिफ़ सियालकोट में एक निजी कॉलेज के कॉन्वोकेशन को संबोधित कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने देश में हो रही चरमपंथी घटनाओं का ज़िक्र करते हुए पिछली सरकारों पर चरमपंथ को बढ़ावा देने का आरोप लगाया.
रक्षा मंत्री ने कहा, ''कल सारी रात दहशतगर्दी का मुक़ाबला हमारे सिक्योरिटी के लोग करते रहे. कीमती जानें गईं. कौन हमारे मुल्क में दहशतगर्दी लेकर आया. किसने ऐसे खेल खेले कि दहशतगर्दी हमारा मुक़द्दर बन गई.''
''हम एक दिवालिया मुल्क के रहने वाले हैं. आपने सुना होगा कि डिफॉल्ट हो रहा है या दिवालिया हो रहा है या मेल्टडाउन हो रहा है. वो हो चुका है. हमारे हुक्मरानों ने पाकिस्तान के अंदर दहशतगर्दी ईजाद की. हम खुद इसे लेकर आए हैं. साल-डेढ़ साल पहले इन्हें दोबारा लाकर पाकिस्तान की सरज़मीं पर बसाया गया था. ये कहकर कि ये अमनपसंद हो गए हैं और पाकिस्तान के क़ानून के मुताबिक ज़िंदगी गुज़ारेंगे. ''
पाकिस्तान में बिगड़ी आर्थिक हालत के बीच चरमपंथी हमले भी बढ़ गए हैं. पाकिस्तान के पास लगभग 8.70 अरब डॉलर विदेशी मुद्रा भंडार है जिससे करीब दो हफ़्ते के आयात का भुगतान हो सकता है.
ऐसे में पाकिस्तान की सरकार को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से राहत पैकेज की उम्मीद है लेकिन अभी उसे लेकर कोई अंतिम फ़ैसला नहीं हो पाया.
वहीं, इस बीच पाकिस्तान में लगातार चरमपंथी हमले भी हुए हैं. इनमें खासतौर से पुलिसकर्मियों को निशाना बनाया गया है. (bbc.com/hindi)
फ्रांस, 19 फरवरी । म्यूनिख़ सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा कि यूक्रेन के साथ चल रहे युद्ध में रूस की हार होनी चाहिए लेकिन उन्होंने चेतावनी दी है कि रूस को 'पूरी तरह तबाह' नहीं किया जाना चाहिए.
फ्रांसीसी मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात का भरोसा है कि सैन्य कार्रवाई के ज़रिए इस युद्ध का समाधान नहीं निकलेगा.
जर्मनी में हो रहे म्यूनिख़ सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने के लिए जी-7 देशों के आला नेता और विदेश मंत्री पहुंचे हैं.
अमेरिकी उप राष्ट्रपति कमला हैरिस ने कहा है कि उनकी सरकार यूक्रेन को लंबे वक्त के लिए मदद देने के लिए तैयार है.
ब्रिटेन के राष्ट्रपति ऋषि सुनक ने कहा रूस को बूचा, इरपुन, मारियोपोल और दूसरी जगहों पर युद्ध अपराधों के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिए और उस पर इस बात का दवाब बनाया जाना चाहिए कि यूक्रेन के पुनर्निमाण के लिए वो फंड दे.
वहीं पश्चिमी देशों के सैन्य गठबंधन नेटो के महासचिव जेन्स स्टोल्टनबर्ग ने कहा, "अगर पुतिन ये लड़ाई जीत गए तो इससे उन्हें और दुनिया के दूसरे तानाशाह नेताओं को ये संदेश जाएगा कि वो ताकत का इस्तेमाल कर कुछ भी हासिल कर सकते हैं."
उन्होंने कहा कि रूस को एक ऐसा यूरोप चाहिए, जहां वो अपने पड़ोसियों पर नियंत्रण कर सके.
उन्होंने चीन की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, "रूस हारता है या जीतता है इस पर चीन की भी नज़र है. आज जो यूरोप में हो रहा है वो कल एशिया में हो सकता है."
यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेन्स्की ने समर्थन के लिए पश्चिमी मुल्कों का धन्यवाद दिया है और कहा है कि रूस की आक्रामकता को ख़त्म करने में उनकी मदद बेहद महत्वपूर्ण होगी.
उन्होंने कहा, "दुनिया के कई देशों के नेताओं ने हमें समर्थन दिया है और हमारी सेना को हथियार देकर उन्हें और मज़बूत करने के संकेत दिए हैं. हमें रूस को जल्द से जल्द हराने के लिए सब कुछ करना चाहिए. दुनिया को रूस पर दवाब बनाना चाहिए ताकि उसे डराने के नए तरीके खोजने का वक्त न मिले." (bbc.com/hindi)
सीरिया, 19 फरवरी । सीरिया ने कहा है कि राजधानी दमिश्क और उसके आसपास के इलाक़ों पर किए गए इसराइल के मिसाइल हमले में कम से कम 13 लोगों की मौत हो गई है.
इस हमले में 28 लोगों के घायल होने की भी ख़बर है.
सरकारी टीवी पर दिखाए गए वीडियो में क्षतिग्रस्त दशा में एक 10 मंज़िल की इमारत को दिखाया गया है.
इसराइल ने जिस इलाक़े पर हमले किए, वहां सुरक्षा के भारी बंदोबस्त वाले रिहाइशी परिसर बने हैं. यह इलाक़ा घनी आबादी वाला बताया जाता है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, इसराइल ने इस हमले पर अपना बयान देने से इनकार कर दिया है.
ईरान और हिज़्बुल्ला विद्रोहियों से जुड़े सीरिया के ठिकानों पर इसराइल अक्सर हमले करता रहा है. हालांकि उसने बहुत कम बार अपनी कार्रवाइयों को स्वीकार किया है. (bbc.com/hindi)
(सज्जाद हुसैन)
इस्लामाबाद, 19 फरवरी। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा है कि देश पहले ही दिवालिया हो चुका है। उन्होंने मौजूदा आर्थिक संकट के लिए सेना, नौकरशाही और राजनीतिक नेताओं को जिम्मेदार ठहराया।
अपने गृह नगर सियालकोट में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को खुद को स्थिर करने के लिए अपने पैरों पर खड़ा होना जरूरी है।
‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ अखबार ने उनके हवाले से कहा, “आपने सुना होगा कि पाकिस्तान दिवालिया हो रहा है। यह पहले ही हो चुका है। हम एक दिवालिया देश में रह रहे हैं।”
उन्होंने कहा, “हमारी समस्याओं का समाधान देश के भीतर है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के पास पाकिस्तान की समस्याओं का समाधान नहीं है।”
उन्होंने कहा कि सेना, नौकरशाही और राजनीतिक नेताओं समेत हर कोई मौजूदा आर्थिक बदहाली के लिए जिम्मेदार है क्योंकि पाकिस्तान में कानून और संविधान का पालन नहीं किया जाता।
पूर्ववर्ती सरकार पर हमलावर रुख अपनाते हुए आसिफ ने कहा कि ढाई साल पहले पाकिस्तान में आतंकवादी लाए गए थे, जिसके परिणामस्वरूप आतंकवाद की मौजूदा लहर चली।
शुक्रवार को कराची में पुलिस कार्यालय पर हुए हमले के बारे में उन्होंने कहा कि सुरक्षा एजेंसियों ने हमलावरों का बहादुरी से मुकाबला किया। (भाषा)
ब्रिटेन से संचालित फ़ारसी भाषा के स्वतंत्र न्यूज़ चैनल 'ईरान इंटरनेशनल' ने लंदन स्थित अपने पत्रकारों को मिली धमकियों के कारण ब्रिटेन में अपना संचालन निलंबित करने का एलान किया है.
चैनल का कहना है कि उसका यह फ़ैसला 'ईरान से सरकार समर्थित ख़तरों में हुई अहम बढ़ोतरी' के कारण लिया गया है.
चैनल के अनुसार, "धमकियां इस हद तक बढ़ गई थीं कि यह महसूस होने लगा कि चैनल के कर्मचारियों की सुरक्षा करना अब संभव नहीं है."
हालांकि चैनल ने कहा है कि अमेरिका में वॉशिंगटन डीसी स्थित अपने कार्यालय से काम करना वो जारी रखेगा.
इससे पहले नवंबर में चैनल के दो ब्रितानी-ईरानी पत्रकारों को पुलिस ने सतर्क किया था कि उनकी ज़िंदगी को ख़तरा हो सकता है.
उसके बाद पश्चिम लंदन के चिसविक स्थित चैनल के स्टूडियो के पास पुलिस का एक सुरक्षा गार्ड तैनात किया गया था. साथ ही उसकी इमारत के बाहर कंक्रीट के अवरोध खड़े किए गए थे.
वहीं लंदन की मेट्रोपॉलिटन पुलिस के अनुसार, पिछले एक साल में अपहरण और हत्या के क़रीब 15 साज़िशों को नाकाम कर दिया गया. पुलिस ने बताया कि ब्रिटेन में रह रहे ईरान की सरकार के कथित दुश्मनों को ख़तरा हो सकता है.
नेटवर्क के महाप्रबंधक महमूद इनायत ने कहा, "मुझे यकीन नहीं हो रहा है कि यह मामला इस हद तक पहुंच गया है. एक विदेशी सरकार ने ब्रिटेन की धरती पर ब्रितानी जनता के लिए इतना बड़ा ख़तरा पैदा कर दिया है कि हमें अपना काम रोकना होगा."
उन्होंने कहा, "यह साफ़ कर दूं कि यह ख़तरा न केवल हमारे टीवी स्टेशन, बल्कि ब्रिटेन की बहुतायत जनता के लिए भी है." (bbc.com/hindi)
उत्तर कोरिया के सरकारी मीडिया ने कहा है कि हथियार की विश्वसनीयता परखने के लिए शनिवार को एक इंटर-कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) का परीक्षण किया गया है.
बयान के अनुसार, यह मिसाइल 67 मिनट में 900 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय कर जापान सागर में जा गिरा.
उत्तर कोरिया के अनुसार, इस परीक्षण से पता चला है कि यह अमेरिका और दक्षिण कोरिया जैसे दुश्मनों का मुक़ाबला करने में सक्षम है.
मिसाइल का यह परीक्षण अगले महीने होने वाले अमेरिका और दक्षिण कोरिया के संयुक्त युद्धाभ्यास से पहले हुआ है.
उत्तर कोरिया ने शुक्रवार को आयोजित एक परेड में अपनी विशाल सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया था. इसमें एक दर्जन से अधिक आईसीबीएम शामिल थे.
उत्तर कोरिया के अधिकारियों ने कहा है कि उत्तर कोरिया पर हमला करने की तैयारी के लिए की जाने वाली किसी भी कवायद का 'अप्रत्याशित रूप से मज़बूत' जवाब दिया जाएगा.
वहीं देश के शासक किम जोंग-उन की बहन किम यो-जोंग ने रविवार को कहा कि किसी भी शत्रुतापूर्ण कार्रवाई का 'मज़बूत और कड़ा' जवाब दिया जाएगा.
उन्होंने अमेरिका से उत्तर कोरिया की सरकार के ख़िलाफ़ 'ख़तरे' को ख़त्म करने की भी अपील की है. हालांकि उन्होंने ज़ोर दिया कि दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल को उत्तर कोरिया की मिसाइलें निशाना बनाएगी.
जापान ने क्या कहा?
जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने इस मिसाइल के बारे में बताया है कि यह जापान के विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) में होक्काइडो के पश्चिम में स्थानीय समय के अनुसार शाम 6 बजकर 27 मिनट पर गिरी.
जापान की सरकार के प्रवक्ता हिरोकाजू मत्सुनो ने राजधानी टोक्यो में बताया कि यह 5,700 किलोमीटर की ऊंचाई तक पहुंचा. (bbc.com/hindi)
इस्तांबुल, 19 फरवरी। तुर्किये और सीरिया के कुछ हिस्सों में आए 7.8 तीव्रता के भूकंप के 12 दिनों से अधिक समय बाद एक इमारत के मलबे से एक दंपति और उनके बेटे को जिंदा निकाला गया। हालांकि, बच्चे की बाद में एक अस्पताल में मौत हो गई। मीडिया की एक खबर में शनिवार को यह जानकारी दी गई है।
समाचार एजेंसी ‘अनादोलु’ की खबर के अनुसार किर्गिस्तान के एक विदेशी खोजी दल ने 49 वर्षीय समीर मोहम्मद अक्कार, उनकी 40 वर्षीय पत्नी रागड़ा अक्कार और उनके 12 वर्षीय बेटे को दक्षिणी तुर्किये के अंताक्य शहर में एक इमारत के मलबे से निकाला।
खबर के अनुसार इन लोगों को अस्पताल ले जाया गया। हालांकि बाद में बच्चे की मौत हो गई।
बचाव दल ने बताया कि दो बच्चों के शव भी मिले हैं।
अनादोलु की खबर में बताया गया कि वे भी समीर मोहम्मद और रागड़ा अक्कार के बच्चे थे। (एपी)
अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने कहा है कि उनके देश ने औपचारिक रूप से यह तय कर लिया है कि रूस ने यूक्रेन में मानवता के ख़िलाफ़ अपराध किए हैं.
म्यूनिख़ सिक्योरिटी कॉन्फ्रेन्स में कमला हैरिस ने रूस पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं. उन्होंने कहा है कि जब से यूक्रेन पर हमले हुए हैं, तब से रूस ने 'हत्या, जुल्म, बलात्कार और निर्वासन जैसे जघन्य काम' किए हैं.
इस सम्मेलन के दौरान दुनिया के तमाम नेताओं ने यूक्रेन का लंबे समय तक समर्थन करने की अपील की है.
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने यूक्रेन का सैन्य समर्थन और बढ़ाने की ज़रूरत बताई है. उन्होंने कहा है कि यूक्रेन के पश्चिमी सहयोगियों को उसके भविष्य की सुरक्षा के लिए योजना बनाने और यूक्रेन को हथियार भेजने की ज़रूरत है.
कमला हैरिस के आरोप
इस सम्मेलन में कमला हैरिस ने कहा है कि यूक्रेन में हुए कथित अपराधों के लिए ज़िम्मेदार लोगों को इसके लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए.
हैरिस ने कहा, "उनके कृत्य हमारे सामान्य मूल्यों और हमारी मानवता पर हमला हैं."
उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, एक ख़ास नागरिक समाज पर 'व्यापक या सिस्टमैटिक हमला' मानवता के ख़िलाफ़ अपराध है.
अमेरिका की उपराष्ट्रपति ने कहा, "यूक्रेन में रूस की कार्रवाई को लेकर हमने सबूतों की जांच की. हम क़ानूनी मानकों को जानते हैं और इसमें कोई संदेह नहीं है कि ये मानवता के ख़िलाफ़ अपराध हैं."
उन्होंने यूक्रेन में युद्ध के दौरान बूचा और मारियोपोल में हुए 'बर्बर और अमानवीय' अत्याचारों का हवाला दिया.
कमला हैरिस ने कहा, "हम सभी सहमत हैं कि ज्ञात और अज्ञात सभी पीड़ितों के लिए न्याय होना चाहिए."
हालांकि रूस ने अपने हमलों में नागरिकों को निशाना बनाने के आरोपों से बार-बार इनकार किया है.
जर्मनी के म्यूनिख़ में यह सम्मेलन पिछले साल 24 फरवरी को यूक्रेन पर हुए रूस के हमले की पहली सालगिरह पर आयोजित किया जा रहा है. (bbc.com/hindi)
(आदिल जवाद)
कराची, 18 फरवरी। पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर कराची में स्थित पुलिस मुख्यालय पर शुक्रवार को घातक फिदायीन हमला आतंकवादियों ने किया था। पाकिस्तानी तालिबान ने एक संक्षिप्त बयान जारी करके इस हमले की जिम्मेदारी ली है।
कई घंटों तक गोलीबारी और धमाकों की आवाज से कराची का मुख्य बाजार दहल उठा। सरकारी अधिकारियों और दक्षिणी सिंध प्रांत के पुलिस प्रमुख गुलाम नबी मेमन ने कहा कि इस हमले में तीन सुरक्षाकर्मियों और एक नागरिक की मौत हो गई, जबकि 18 सुरक्षाकर्मी घायल हो गये।
कराची दक्षिणी सिंध प्रांत के तहत आता है। अधिकारियों ने कहा कि बम से लैस दो आत्मघाती हमलावरों को मार गिराया गया, लेकिन पुलिस के इमारत में घुसने पर कम से कम एक फिदायीन ने खुद को विस्फोट करके उड़ा लिया।
सरकार के एक सलाहकार मुर्तजा वहाब ने पुष्टि की है कि पुलिस और संसदीय बलों ने एक संयुक्त अभियान के तहत शुक्रवार देर रात हुए हमले के तीन घंटों के अंदर पुलिस की इमारत को खाली करा लिया।
वहाब ने कहा, ‘‘मैं पुष्टि करता हूं कि आतंकवादियों के खिलाफ अभियान अब समाप्त हो गया है।’’
राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने एक बयान जारी करके कराची में हमले की निंदा की जो पाकिस्तान का प्रमुख वाणिज्यिक शहर है। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने सुरक्षाकर्मियों को श्रद्धांजलि दी है।
इसके पहले टीवी फुटेज में दिखाया गया था कि शहर में संट्रेल पुलिस थाने को अधिकारी घेरे हुए हैं क्योंकि निवासियों ने गोलीबारी और विस्फोट की आवाज आने की सूचना दी थी।
पाकिस्तान के आंतरिक गृह मंत्री राणा सनाउल्लाह खान ने कहा कि कुछ आतंकवादियों ने हैंड ग्रेनेड (हथगोले) फेंके क्योंकि वे पुलिस मुख्यालय में प्रवेश करने का प्रयास कर रहे थे।
पाकिस्तान में नवंबर के बाद से आतंकी हमलों में बढ़ोतरी देखी गई है जब पाकिस्तानी तालिबान ने सरकार के साथ महीनों लंबा संघर्ष विराम समझौता तोड़ा दिया था।
पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन तहरीक-ए-तालिबान एक अलग समूह है और इसे अफगानिस्तान के तालिबान समूह का कथित सहयोगी माना जाता है। तहरीक-ए-तालिबान को पाकिस्तानी तालिबान के नाम से जाना जाता है। (एपी)
अमेरिका के मिसिसिपी में एक शख़्स ने तीन बंदूकों से अपनी पूर्व पत्नी और पांच अन्य लोगों की हत्या कर दी.
पुलिस के मुताबिक ये घटना मिसिसिपी के एक छोटे से गांव अर्कबतला में हुई है. इस घटना के दौरान इलाक़े में भगदड़ मच गई.
इलाक़े में अलग-अलग जगहों पर शव मिले हैं. एक स्टोर और दो घरों में भी शव मिले हैं. इस गांव में करीब 300 लोग रहते हैं.
पुलिस ने इस मामले में 52 साल के एक शख़्स को गिरफ़्तार किया है. हत्या के पीछे की वजह का अभी पता नहीं चला है.
मिसिसिपी के गवर्नर टेट रीव्स ने कहा कि ऐसा लगता है कि अभियुक्त ने ये काम अकेले किया है.
शेरिफ ब्रैड लैंस ने बताया कि ये भगदड़ तब शुरू हुई जब एक पेट्रोल स्टेशन पर एक बंदूकधारी घुस आया और उसने एक अनजान शख़्स को गोली मार दी.
इसके बाद वो पास के घर में गया और अपनी पूर्व पत्नि को गोली मार दी और न्यूज़ चैनल सीएनएन के मुताबिक उसने पूर्व पत्नि के मंगेतर को गोली नहीं मारी.
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक जांचकर्ताओं का कहना है कि अभियुक्त इसके बाद दूसरे घर में गया और अपने सौतले पिता और एक अनजान महिला को गोली मार दी.
इसके बाद उसने कार में बैठे एक शख़्स और सड़क पर मौजूद एक अन्य शख़्स को गोली मारी.
शैरिफ़ लैंस के मुताबिक अभियुक्त के पास एक शॉटगन और दो हैंडगन थी. (bbc.com/hindi)
यूरोप के तीन सबसे बड़े फेस्टिवल में से एक बर्लिन फिल्म फेस्टिवल की शुरुआत हो चुकी है. राजनीति और कला को साथ लाने वाले इस फेस्टिवल में इस बार फोकस यूक्रेन युद्ध और ईरान के सत्ता विरोधी प्रदर्शनों पर है.
डॉयचे वैले पर अविनाश द्विवेदी की रिपोर्ट-
राजनीति और कला, ये दोनों विषय इंसानों को अनंत काल से अपनी ओर खींचते रहे हैं. बल्कि कहें तो यही दोनों इंसानों को इंसान होने की खासियत देते हैं. जब इन दोनों को जोड़ दिया जाए, तो जमीन तैयार होती है दुनिया के सबसे राजनीतिक फिल्म फेस्टिवल बर्लिनाले की. जर्मनी की राजधानी बर्लिन में इसकी शुरुआत हो चुकी है.
दुनिया के पांच सबसे बड़े फिल्म फेस्टिवल्स में शुमार बर्लिनाले अपने राजनीतिक रुझान के लिए चर्चित है. शाहरुख खान की 'माई नेम इज खान' और रणवीर सिंह की 'गली बॉय' को पहली बार यहीं प्रदर्शित किया गया था. चूंकि अभी दुनिया में सबसे बड़े राजनीतिक मुद्दे यूक्रेन में रूस की घुसपैठ और हमला, ईरान में सत्ता विरोधी प्रदर्शन और अफगानिस्तान में तालिबान के दकियानूसी कानून हैं, तो फिल्म फेस्टिवल भी इन्हीं मुद्दों के इर्द-गिर्द घूम रहा है.
राजनीति और कला का संतुलन
फिल्म फेस्टिवल का आगाज मजेदार रहा. कला और राजनीति का बेहतरीन संतुलन दिखाते हुए जहां फेस्टिवल का आगाज यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के भाषण से हुआ, वहीं ओपनिंग सेरेमनी में रोमैंटिक फिल्म 'शी केम टू मी' दिखाई गई. फिल्म फेस्टिवल ऐसे समय में हो रहा है, जब यूक्रेन पर रूस के हमले का एक साल पूरा हो रहा है. ऐसे में फेस्टिवल के कई इवेंट यूक्रेन युद्ध के ही इर्द-गिर्द हैं.
इनमें यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की पर बनी फिल्म 'सुपरपॉवर' का वर्ल्ड प्रीमियर भी शामिल है. 'इन टू द वाइल्ड' जैसी बेहतरीन फिल्म बनाने वाले सीन पेन 'सुपरपावर' के डायरेक्टर हैं. फेस्टिवल की ओपनिंग में जेलेंस्की के वर्चुअल भाषण के समय भी वह मंच पर मौजूद थे. ओपनिंग में जेलेंस्की ने कहा, "फिल्में दुनिया को नहीं बदल सकतीं, लेकिन ये उन्हें प्रभावित और प्रेरित कर सकती हैं, जो दुनिया को बदल सकते हैं."
रूसी और ईरानी सरकार से जुड़े लोगों पर बैन
ओपनिंग में जर्मन संस्कृति मंत्री क्लाउडिया रोथ ने यूक्रेन, ईरान और अफगानिस्तान के लोगों के साथ एकजुटता की बात भी कही. रूसी और ईरानी सरकार से सीधे संबंध रखने वाले डायरेक्टर, प्रोडक्शन कंपनियों और पत्रकारों को 73वें बर्लिनाले में शामिल नहीं होने दिया गया है. साथ ही उन्हें फेस्टिवल के यूरोपियन फिल्म मार्केट से भी बैन कर दिया है, जहां बड़ी मात्रा में फिल्म डिस्ट्रीब्यूशन से जुड़े सौदे होते हैं.
इस बार बर्लिन फिल्म फेस्टिवल की ओपनिंग में चार चांद लगाने के लिए "गेम ऑफ थ्रोन्स" फेम पीटर डिंकलेज, इंटरस्टेलर फेम एनी हैथवे, ट्वाइलाइट फेम क्रिस्टीन स्टीवर्ट, ईरानी एक्ट्रेस गोलशिफ्ते फरहानी भी मौजूद रहे. फिल्म फेस्टिवल 26 फरवरी को अवॉर्ड सेरेमनी के साथ खत्म होगा. इन 11 दिनों में दुनियाभर की करीब 300 फिल्में दिखाई जाएंगी. (dw.com)
अफ्रीका की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और सबसे अधिक आबादी वाले देश नाइजीरिया में आम चुनाव होने वाले हैं. जनता देश के नए राष्ट्रपति का चुनाव करने वाली है. सुरक्षा, तेल चोरी और बढ़ती महंगाई इस चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा है.
डॉयचे वैले पर इसाक मुगाबी की रिपोर्ट-
नाइजीरिया में 25 फरवरी को राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होना है. मौजूदा राष्ट्रपति मुहम्मदु बुहारी इस बार चुनाव में शामिल नहीं हो रहे हैं, क्योंकि मई महीने में वे संवैधानिक तौर पर अपने दो कार्यकाल पूरे कर लेंगे. देश की जनता इस बार नए राष्ट्रपति का चुनाव करेगी, ताकि वे उन सभी समस्याओं को दूर कर सकें जिनसे नाइजीरिया के लोग जूझ रहे हैं.
इसके अलावा, मतदाता इस चुनाव में हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के लिए नए सीनेटर और सदस्य भी चुनेंगे. ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि देश की राजनीति में काफी ज्यादा उथल-पुथल मच सकती है. वहीं, 11 मार्च को नाइजीरिया के 36 में से 28 राज्यों के राज्यपाल के लिए भी चुनाव होगा.
आइए जानते हैं कि इस चुनाव को लेकर नाइजीरिया में कैसा माहौल है.
किसके-किसके बीच मुकाबला है?
राष्ट्रपति पद के लिए कुल 18 प्रत्याशी मैदान में हैं. कुछ चुनावी अनुमानों से पता चलता है कि मुख्य मुकाबला सत्तारूढ़ पार्टी ऑल प्रोग्रेसिव कांग्रेस (एपीसी) के बोला टीनुबु, मुख्य विपक्षी पार्टी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के अतीकु अबुबकर और लेबर पार्टी के पीटर ओबी के बीच है.
फिलहाल पक्के तौर पर यह कहना मुश्किल है कि सत्ता पर कौन काबिज होगा. हालांकि, सत्तारूढ़ पार्टी को इस चुनाव में बड़ा फायदा मिलता दिख रहा है. इसकी वजह यह है कि वह समर्थन जुटाने के लिए सरकारी तंत्र का इस्तेमाल कर सकती है.
बोला टीनुबु और अतीकु अबुबकर का पूरे नाइजीरिया में मजबूत जनाधार है. जबकि, पीटर ओबी देश की अर्थव्यवस्था और सामान्य लोगों की सुरक्षा को लेकर बढ़ती चिंता को मुद्दा बनाते हुए दोनों बड़ी पार्टियों के खिलाफ मतदाताओं को गोलबंद करने की कोशिश कर रहे हैं.
मुख्य मुद्दे क्या हैं?
नाइजीरिया अफ्रीका का सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है. साथ ही, वह पश्चिम अफ्रीका में इस्लामवादी विद्रोहियों के खिलाफ लड़ाई में पश्चिमी देशों का प्रमुख सहयोगी है. देश में तेजी से बढ़ रही असुरक्षा इस बार के चुनाव में नाइजीरियाई मतदाताओं का सबसे बड़ा मुद्दा है.
दरअसल, नाइजीरिया के लोग असुरक्षा और अस्थिरता से जूझ रहे हैं. देश के उत्तर-पश्चिम इलाके में फिरौती के लिए अपहरण के मामले बढ़ गए हैं. उत्तर-पूर्व इलाका 13 साल से इस्लामवादी विद्रोह से जूझ रहा है. दक्षिण-पूर्व में अलगाववादी हिंसा चरम पर है. उत्तर-मध्य क्षेत्र में चरवाहों और किसानों के बीच दशकों पुराना जातीय तनाव बरकरार है.
इसके अलावा, महंगाई पिछले दो दशकों में अपने उच्च स्तर पर पहुंच गई है. मुद्रास्फीति की दर दो अंकों के आंकडों को छू रही है. नाइजीरिया के कुछ लोगों का यह भी कहना है कि 2015 में बुहारी के सत्ता में आने के बाद से जिंदगी और कठिन हो गई है. देश की मुद्रा नाइरा की कीमत अपने निम्न स्तर पर पहुंच चुकी है, क्योंकि तेल की काफी ज्यादा चोरी से कच्चे तेल का निर्यात प्रभावित हुआ है. हर जगह भ्रष्टाचार बढ़ चुका है.
खराब होती अर्थव्यवस्था को देखते हुए नाइजीरिया के सैकड़ों मेधावी लोगों ने देश से पलायन करने का फैसला किया है. इससे देश की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली कमजोर हो रही है. बैंकिंग से लेकर तकनीकी सेवाएं तक बाधित हो रही हैं.
क्या वादे कर रहे राजनीतिक दल?
देश की दोनों प्रमुख पार्टियों के बीच कोई स्पष्ट वैचारिक मतभेद नहीं है. हकीकत यह है कि वे विचारधारा के बजाय अन्य मुद्दों के सहारे अपनी राजनीति करते हैं. तेल से घटता राजस्व, सुरक्षा, जातीय प्रतिद्वंद्विता जैसे मुद्दे आमतौर पर नाइजीरिया के चुनावों में बड़ी भूमिका निभाते हैं.
ओबी पहले पीडीपी में थे. पिछले साल वे पुरानी पार्टी को छोड़ लेबर पार्टी में शामिल हुए थे. 2019 के चुनाव में वे अबुबकर के रनिंग मेट थे. आसान शब्दों में कहें, तो जिस व्यक्ति को रनिंग मेट चुना जाता है वह उप-राष्ट्रपति का उम्मीदवार होता है. अगर अबुबकर उस समय चुनाव जीत जाते और राष्ट्रपति बनते, तो ओबी उनकी सरकार में उप-राष्ट्रपति बनते.
इस बार के चुनाव में ओबी ने खुद को सुधारवादी के तौर पर पेश किया है. उन्होंने कहा कि वे नाइजीरिया की राजनीतिक व्यवस्था में सुधार करना चाहते हैं. हालांकि, नीति के मामले में देखें, तो मुख्य पार्टियों के नेताओं और इनके बीच काफी ज्यादा फर्क नहीं है.
टीनुबु, अबुबकर और ओबी सभी का कहना है कि अर्थव्यवस्था को फिर से बेहतर बनाना और देश में असुरक्षा की भावना को खत्म करना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता होगी. साथ ही, उन्होंने सुरक्षा बलों को बेहतर वेतन और विद्रोहियों का सफाया करने के लिए अधिक सैन्य उपकरण उपलब्ध कराने का वादा किया है.
टीनुबु, अबुबकर और ओबी सभी का कहना है कि अर्थव्यवस्था को फिर से बेहतर बनाना है
उनके घोषणापत्र में कहा गया है कि वे ईंधन सब्सिडी को समाप्त कर देंगे. पिछले साल इस सब्सिडी पर 10 अरब डॉलर की लागत आयी थी. हालांकि, सब्सिडी को समाप्त करने के समय को लेकर उनकी राय अलग-अलग है. इन सभी उम्मीदवारों ने विदेशी मुद्रा बाजार में सुधार करने और शिक्षा में अधिक निवेश करने का वादा किया है।
किस तरह संपन्न होगा चुनाव?
देश में करीब 9.34 करोड़ लोगों ने वोट देने के लिए पंजीकरण कराया है. इनमें से तीन-चौथाई की उम्र 18 से 49 वर्ष के बीच है. हालांकि, पार्टियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती वोट पाना है. कई युवा नाइजीरियाई कहते हैं कि वे दो सबसे बड़ी पार्टियों के उम्मीदवार से जुड़ाव महसूस नहीं करते हैं. दोनों उम्मीदवार सत्तर वर्षीय राजनीतिक दिग्गज हैं.
चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि 2019 में महज 35 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था.
पर्यवेक्षकों ने इस तथ्य पर चिंता व्यक्त की है कि नाइजीरिया में चुनावी धोखाधड़ी का एक लंबा इतिहास रहा है. हालांकि, इस वर्ष स्वतंत्र राष्ट्रीय चुनाव आयोग (आईएनईसी) बिमोडल वोटर एक्रेडिटेशन सिस्टम (बीवीएएस) का इस्तेमाल करके, फिंगरप्रिंट और फेशियल रिकग्निशन के जरिए मतदाताओं की पहचान करेगा. उम्मीद जताई जा रही है कि इससे चुनाव में किसी तरह की धांधली नहीं होगी.
मतदान के दिन मतदान केंद्रों के बाहर नतीजे चिपकाए जाएंगे. साथ ही, बीवीएएस के जरिए उन्हें राजधानी अबूजा स्थित आईएनईसी के पोर्टल पर भेजा जाएगा. थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद पोर्टल को अपडेट किया जाएगा, ताकि जनता उन नतीजों को देख सके.
चुनाव के पांच दिनों के अंदर आधिकारिक परिणाम जारी किए जाने की उम्मीद है. सबसे ज्यादा वोट पाने वाले प्रत्याशी को विजयी घोषित किया जाएगा. हालांकि, इसके लिए जरूरी शर्त ये है कि उसे नाइजीरिया के 36 राज्यों और राजधानी के दो-तिहाई हिस्सों में एक-चौथाई वोट मिले हों. अगर ऐसा नहीं होता है, तो 21 दिनों के भीतर सबसे ज्यादा वोट पाने वाले दो उम्मीदवारों के बीच रन-ऑफ होगा.
मतदान से पहले सुरक्षा से जुड़ी चिंता
तमाम व्यवस्थाओं के बावजूद सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं बनी हुई हैं. पिछले हफ्ते, अधिकारियों ने सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए सभी विश्वविद्यालयों को राष्ट्रपति चुनाव से लगभग तीन सप्ताह पहले बंद करने का निर्देश दिया था.
राष्ट्रीय विश्वविद्यालय आयोग ने कहा कि ऐसा कर्मचारियों, छात्रों और संस्थानों की संपत्ति की सुरक्षा को लेकर किया गया है. 22 फरवरी से 14 मार्च तक देश के 200 से अधिक विश्वविद्यालयों को बंद करने का निर्णय "संबंधित सुरक्षा एजेंसियों के साथ व्यापक परामर्श” के बाद लिया गया.
नाइजीरिया का उत्तर-पश्चिम और दक्षिण-पूर्व इलाका विभिन्न सशस्त्र समूहों से जूझ रहा है. वहीं, उत्तर-पूर्व में एक दशक से चली आ रही चरमपंथी हिंसा से सुरक्षा बल जूझ रहे हैं. हाल के वर्षों में हथियारबंद समूहों ने अशांत उत्तरी क्षेत्र के विश्वविद्यालयों को निशाना बनाया है, जिसमें सैकड़ों छात्रों का अपहरण कर लिया गया और बाद में उन्हें मुक्त किया गया. कभी-कभी इस रिहाई के एवज में फिरौती भी वसूली की गई.
विश्वविद्यालय आयोग के सार्वजनिक मामलों के निदेशक हारुना लवाल अजो ने समाचार एजेंसी एपी को बताया कि विश्वविद्यालय बंद होने से छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी. साथ ही, वहां काम करने वाले लोगों को मतदान करने के लिए अपने मूल स्थान लौटने का मौका भी मिलेगा.
नाइजीरिया के कानून के तहत पंजीकृत मतदाता सिर्फ उसी जगह पर मतदान कर सकते हैं जहां उन्होंने पंजीकरण कराया है. देश के कुल मतदाताओं में 28 फीसदी छात्र हैं. ऐसे में विश्वविद्यालय बंद होने से मतदाता के तौर पर पंजीकृत छात्रों को भी मतदान करने का मौका मिलेगा. साथ ही, मतदान प्रतिशत बढ़ने की भी उम्मीद है. (dw.com)
2022 में पाकिस्तान में आई बाढ़ ने सरकार पर जलवायु परिवर्तन से लड़ने का दबाव बढ़ा दिया है. लेकिन जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में काम कर रहे कई कार्यकर्ताओं को अतीत में इसके लिए सरकारी कोपभाजन का शिकार होना पड़ा है.
डॉयचे वैले पर मावरा बारी की रिपोर्ट-
बाबा जान एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में जाना-पहचाना नाम बन गए हैं. साल 2010 और 2011 में बाढ़ पीड़ितों को मुआवजा दिलाने के लिए उन्होंने अभियान चलाया था और इस तरह लोगों का ध्यान उनकी ओर गया. बाद में उन्हें ‘आतंकवाद' के आरोपों में गिरफ्तार कर लिया गया और करीब एक दशक बाद साल 2020 में वो जेल से छूटकर बाहर आए.
बाबा जान और उनकी तरह करीब एक दर्जन अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल से तभी आजादी मिली जब उनके परिवार वालों ने करीब एक हफ्ते तक धरना दिया. 45 वर्षीय जान अब गिलगिट-बाल्टिस्तान क्षेत्र में अवामी वर्कर्स पार्टी के अध्यक्ष हैं.
सामाजिक कार्यकर्ता ‘क्रांतिकारी' परिवर्तन चाहते हैं
पाकिस्तान मौसम के बदलते मिजाज के प्रति बहुत संवेदनशील है इसकी गिनती दुनिया के उन 10 देशों में होती है जो जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. पिछली गर्मियों में देश में आई विनाशकारी बाढ़ ने निश्चित तौर पर इस खतरे को और भी ज्यादा बढ़ा दिया है.
गिलगिट-बाल्टिस्तान क्षेत्र यानी जीबी संवैधानिक रूप से पाकिस्तान का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह एक वास्तविक प्रांत का दर्जा वाला एक प्रशासनिक क्षेत्र है. यहां का पारिस्थितिकी तंत्र इस लिहाज से अद्वितीय है कि दुनिया के कुछ सबसे ऊंचे पहाड़ इसी क्षेत्र में आते हैं जिनमें K2 जैसी विशाल चोटी भी शामिल है.
बाबा जान जैसे कार्यकर्ताओं का कहना है कि राजनीतिक दल अक्सर बोलने वालों को चुप कराने और उन्हें बदनाम करने का प्रयास करते हैं.
डीडब्ल्यू से बातचीत में बाबा जान कहते हैं, "मैं पूंजीवाद के चलते होने वाले जलवायु परिवर्तन के खिलाफ काम कर रहा हूं जो कि विनाश और असमानता का कारण बन रहा है. हम राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव चाहते हैं क्योंकि मौजूदा व्यवस्था हमें हमारे घरों से दूर कर दे रही है.”
वकील यासिर अब्बास जीबी के मुख्यमंत्री के समन्वयक के रूप में काम करते हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहते हैं कि बाबा जान और अन्य प्रदर्शनकारियों के खिलाफ मामले को ‘गलत तरीके से संभाला गया था' और जान को सजा मिली, वो उसके हकदार नहीं थे. अब्बास कई सतत अभियानों की ओर भी
इशारा करते हैं जिनमें वर्तमान
जीबी सरकार निवेश कर रही है. वो उम्मीद जताते हैं कि युवाओं की बढ़ती संख्या के कारण जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में आने वाले दिनों में बेहतर कार्यकर्ता मिलेंगे.
अट्टम झील- जलवायु आपदा से सपनों की मंजिल तक
जान ने जनवरी 2010 में अट्टाबाद झील आपदा की घटना के बाद सामाजिक सक्रियता पर ध्यान केंद्रित करना शुरू किया, जब हुंजा घाटी में अट्टाबाद गांव में भारी भूस्खलन हुआ जिसमें 20 लोग मारे गए और 6,000 से ज्यादा ग्रामीण बेघर हो गए.
इसके बाद आई विनाशकारी बाढ़ के बाद जान ने सत्ता में बैठे लोगों की आलोचना करने और बाढ़ पीड़ितों के लिए घोषित मुआवजे को दिलाने और उसमें हुए घाल-मेल को उजागर करने का काम शुरू किया.
आज झील के इस काले इतिहास को लगभग भुला दिया गया है. यह एक प्रीमियम हॉलिडे डेस्टिनेशन बन गया है और पूरा इलाका होटलों से घिरा हुआ है. लेकिन पर्यावरण और सामाजिक कार्यकर्ता बेहद सतर्क रहते हैं.
जान कहते हैं, "आर्थिक प्रगति ही एकमात्र प्रगति नहीं है. ये बड़े होटल गिलगिट-बाल्टिस्तान के लोगों के लिए नहीं हैं क्योंकि ये व्यवसायी केवल अपने लिए मुनाफा कमा रहे हैं और हमारे पारिस्थितिक तंत्र को नष्ट कर रहे हैं. इससे हमारे बच्चों का जीवन और कठिन हो जाएगा.”
जान की चिंता इस बात को लेकर है कि अट्टाबाद झील में हो रहा अनियंत्रित विकास भविष्य में और भी कई जलवायु आपदाओं की वजह बन सकता है.
क्लाइमेट एक्शन पाकिस्तान के सह-संस्थापक अनम राठौर, अट्टाबाद झील को एक प्रमुख उदाहरण के रूप में देखते हैं कि कैसे कॉर्पोरेट के हित जीबी क्षेत्र में ‘सामुदायिक आर्थिक उत्थान' और ‘टिकाऊ पर्यटन' की आड़ में विकास परियोजनाओं को चमका रहे हैं.
जान, राठौर और उनके जैसे अन्य पर्यावरण प्रेमी विकास योजना के दौरान स्वदेशी ज्ञान और संस्कृति के साथ-साथ पारंपरिक कानूनों और प्रथाओं की वापसी की मांग कर रहे हैं.
जलवायु संरक्षण की 'अपनी कीमत है'
एक्टिविस्ट परवेज अली भी जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अपने रुख को समझाने के लिए साल 2010 की बात करते हैं. यह वह वर्ष था जब जीबी में गीजर जिले में अचानक आई बाढ़ ने उनके पूरे गांव को खत्म कर दिया. इस बाढ़ के कारण उन्हें और उनके परिवार को जलवायु शरणार्थी बनना पड़ा. वे उस वक्त सात वर्ष के थे.
अब वो 19 साल के हैं और उन्हें पता है कि साल 2022 की बाढ़ के कारण 3.3 करोड़ लोगों को अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. अब उन्हें अपने देश के ‘फ्राइडे फॉर फ्यूचर मूवमेंट' जैसे कार्यक्रमों का समन्वय करने और पिछले साल नवंबर में हुए COP27 जलवायु शिखर सम्मेलन में पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व करने का अनुभव है और इस अनुभव के आधार पर वो इस बात को स्वीकार करते हैं कि जलवायु कार्यकर्ताओं पर दबाव रहता है.
डीडब्ल्यू से बातचीत में अली कहते हैं, "जीबी क्षेत्र में रहने वाले हमेशा जोखिम में रहते हैं. मुझे निजी नंबरों से धमकियां मिल रही हैं. मुझे क्लाइमेट डिफेंडर्स से मदद लेनी पड़ी जो खतरे की स्थिति में कार्यकर्ताओं की मदद करते हैं. पाकिस्तान में यदि आप शक्तिशाली ताकतों के खिलाफ और जन समुदाय के हित में बात कर रहे हैं तो फिर इसकी सक्रियता की कीम चुकानी होगी.”
‘मुआवाजा समस्या का हल नहीं है'
पिछले साल, जलवायु परिवर्तन सम्मेलन COP27 एक नया कोष बनाने के लिए हुए एक ऐतिहासिक समझौते के साथ समाप्त हुआ, जिसके तहत उच्च कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार देशों को पाकिस्तान जैसे कमजोर और प्रभावित देशों को मुआवजा देना होगा.
हालांकि, जलवायु कार्यकर्ताओं का कहना है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस यानी 34.7 डिग्री फारेनहाइट की वैश्विक ताप सीमा को पार करने से रोकने के लिए कार्बन उत्सर्जन में कटौती पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि तापमान हो रही वृद्धि संवेदनशील क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन को और ज्यादा बढ़ा देगा.
बाबा जान जोर देकर कहते हैं, "क्षतिपूर्ति समाधान नहीं है, वह सिर्फ एक मरहम भर है. इससे होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए आर्थिक मदद करने की बजाय आपदा की ओर धकेलने वाले कार्बन के उत्सर्जन को कम करना ही बेहतर होगा. वैसे भी ऐसे नुकसान की पूरी तरह से गणना करना असंभव है. हमें पारिस्थितिक तंत्र को नष्ट करने की बजाय कोशिश यह करनी चाहिए कि परिवर्तन के लिए कोई ऐसा तंत्र विकसित करें जिससे पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे.”
पर्यावरण कार्यकर्ता स्थानीय स्तर की बजाय वैश्विक स्तर पर वितरित किए जा रहे मुआवजे से भी चिंतित हैं. जबकि पाकिस्तान सरकार के प्रतिनिधि ‘नुकसान और क्षति' फंड के लिए प्रमुख वार्ताकारों में से एक थे. सामुदायिक क्षतिपूर्ति की मांग करने वाले जान जैसे कार्यकर्ताओं को भी स्थानीय सरकार ने वैश्विक स्तर पर मुआवजे की बात करने के लिए जबरन दबाव डाला गया.
राठौर कहते हैं, "जब घरेलू स्तर की बजाय मुआवजे की मांग वैश्विक स्तर पर की जाती है तब जलवायु सक्रियता को बहुत अलग तरीके से लिया जाता है. सरकार कम उत्सर्जक देश के रूप में पाकिस्तान के लिए क्षतिपूर्ति का समर्थन करती है, लेकिन अगर हम स्थानीय विकास परियोजनाओं की आलोचना करते हैं जो लाभदायक हैं लेकिन पारिस्थितिकी के लिए खराब हैं, तो हमारी आवाज दबा दी जाती है.” (dw.com)
जर्मनी की सर्वोच्च प्रशासनिक अदालत ने फैसला सुनाया है कि देश के प्रवासन अधिकारियों को एक अफगान शरणार्थी के फोन की तलाशी लेने का कोई अधिकार नहीं है. माना जा रहा है कि इस फैसले के दूरगामी और बड़े परिणाम हो सकते हैं.
डॉयचे वैले पर यानोश डेलकर की रिपोर्ट-
जब एक अफगान महिला जर्मनी आई और वैध पासपोर्ट के बिना साल 2019 में उन्होंने शरण के लिए आवेदन किया, तो जर्मनी के फेडरल ऑफिस फॉर माइग्रेशन एंड रिफ्यूजीज यानी बीएएमएफ के अधिकारियों ने पहला काम यह किया कि उनके मोबाइल की जांच-पड़ताल की जिससे मिली जानकारी का उपयोग बाद में वो उस महिला की शरण आवेदन प्रक्रिया में करते.
गुरुवार को, लीपज़िग में संघीय प्रशासनिक न्यायालय ने फैसला सुनाया कि यह गैरकानूनी था क्योंकि अधिकारियों ने पहले ही शरणार्थी की पहचान की पुष्टि करने के लिए उसे कम परेशान नहीं किया था.
फैसले की घोषणा के बाद वादी के एक वकील और सोसाइटी फॉर सिविल राइट्स (जीएफएफ) नामक एनजीओ की कानूनी टीम की सदस्य ली बेकमैन ने डीडब्ल्यू को बताया, "अदालत ने एक व्यक्तिगत मामले पर निर्णय दिया है लेकिन जर्मनी में हमारे मुवक्किल के साथ जो हुआ वह यहां के लिए आम बात है. अब यह स्पष्ट रूप से प्रमाणित हो गया है कि बीएएमएफ में मौजूदा समय में जारी यह व्वस्था अवैध है. जिसका अर्थ है कि बीएएमएफ को इसे रोकना चाहिए.”
इस अफगान शरणार्थी ने साल 2020 में बीएएमएफ पर मुकदमा दायर किया था और इसमें एनजीओ जीएफएफ ने उनका साथ दिया. जून 2021 में, बर्लिन की एक क्षेत्रीय अदालत ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया था. लेकिन बीएएमएफ ने फैसले को चुनौती दी और लीपजिग में देश के शीर्ष न्यायाधीशों से इस फैसले को फिर से देखने की अपील की.
गुरुवार को लीपजिग में जजों ने पहले फैसले को जांचा-परखा. उन्होंने कहा कि वादी के फोन की तलाशी लेने से पहले बीएएमएफ को अन्य दस्तावेजों की जांच करनी चाहिए थी जो उसने अपनी राष्ट्रीयता के प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किए थे. मसलन, उनके विवाह प्रमाण पत्र या एक अफगानी पहचान से संबंधित दस्तावेज जिसमें बायोमेट्रिक डेटा की कमी थी.
डेटा संरक्षण के मामले में जर्मनी की दुनिया भर में एक अलग साख है. दुनिया भर के उन प्रवासन अधिकारियों ने जर्मनी जैसे देश के इस मामले में बहुत बारीकी से नजर रखी थी जो कि आश्रय संबंधी आवेदनों की जांच-पड़ताल करने में ऐसे ही तरीकों का उपयोग करते हैं. मार्च 2022 में, यूके की एक अदालत ने फैसला सुनाया था कि ब्रिटिश अधिकारियों ने शरणार्थियों के फोन से डेटा जब्त और डाउनलोड करके कानून तोड़ा है.
जर्मनी में भी इस फैसले के बड़े परिणाम होंगे. पीड़ित महिला के एक दूसरे वकील मैथियास लेहनर्ट कहते हैं, "इस फैसले के बाद, यह स्पष्ट है कि बीएएमएफ अब मौजूदा रवैये को बदलेगा. उन्हें सबसे पहले अन्य दस्तावेजों की चांच करनी चाहिए और किसी के सेल फोन डेटा तक पहुंचने से पहले उनकी बात भी सुननी चाहिए. और और चूंकि राष्ट्रीयता साबित करने के लिए कई अन्य साधन भी हैं, इसलिए मुझे लगता है कि यह पूरा तरीका ही बदल जाएगा.”
बीएएमएफ ने इस फैसले पर यह कहते हुए कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि वो अदालत के फैसले के प्रकाशित होने से पहले उस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देता. लेकिन आने वाले दिनों में वो प्रतिक्रिया जरूर देगा. हालांकि अदालत में यह मामला जाने से पहले, बीएएमएफ के एक प्रवक्ता ने डीडब्ल्यू को फोन पर दिए एक बयान में फोन की जांच करने को सही ठहराया था और कहा था, "यह हमारे देश की सुरक्षा और शरण निर्णयों की सटीकता के लिए महत्वपूर्ण है.”
फोन जांच की प्रक्रिया कैसे काम करती है
2017 में जर्मनी ने अपने शरण कानून में एक पैराग्राफ जोड़ा, जो अधिकारियों को यह अनुमति देता है कि यदि शरण चाहने वालों के पास पासपोर्ट जैसे कोई वैध पहचान पत्र नहीं हैं और उनकी पहचान हल्के तरीकों से नहीं हो पा रही है तो ये अधिकारी उनके सेल फोन, लैपटॉप और टैबलेट की जांच कर सकते हैं.
उपकरणों के भीतर, सॉफ़्टवेयर का उपयोग करके ये अधिकारी फाइलों को स्कैन करके ये पता लगते है कि फोन कहां था. इस तरह के डिजिटल साक्ष्य में फोटो से जुड़ा स्थान मेटाडेटा, फोन पर सहेजे गए नंबरों का देश कोड या टेक्स्ट संदेशों में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा शामिल है.
इस तरीके से अपने आप रिपोर्ट तैयार हो जाती है. उस दस्तावेज़ को तब तक गोपनीय रखा जाता है जब तक कि बीएएमएफ का कोई वकील केस वर्कर्स को नहीं दे देता. इस रिपोर्ट का इस्तेमाल वो शरण देने या न देने का फैसला लेने में कर सकते हैं.
गुरुवार के परीक्षण के दौरान बीएएमएफ के एक प्रतिनिधि ने कहा कि साल 2017 में इस नियम के लागू होने के बाद से अब तक बीएएमएफ कार्यालय ने शरणार्थियों के 80,000 से भी ज्यादा उपकरणों की जांच की है.
जर्मनी के नागरिक समाज की प्रतिक्रिया
चूंकि इस नियम को पहली बार लागू किया गया था, इसलिए इसे जर्मनी में नागरिक स्वतंत्रता के पक्षधरों की कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा. इस देश में दो बार के अधिनायकवादी शासनों के अनुभव ने लोगों को निजता के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील बना दिया है. जर्मनी वह देश है जहां दुनिया का पहला डेटा संरक्षण कानून 1970 में पारित किया गया था.
उस लड़ाई में बर्लिन स्थित गैर-लाभकारी संगठन जीएफएफ सबसे आगे है. साल 2019 में, इस समूह ने यह तर्क देते हुए एक जांच रिपोर्ट प्रकाशित की थी कि फोन जांच अप्रभावी भी है और निजता में घुसपैठ भी है.
साल 2020 तक, समूह ने बीएएमएफ पर मुकदमा करने के लिए सीरिया, अफगानिस्तान और कैमरून के तीन शरणार्थियों को तैयार कर लिया था. तीन अलग-अलग मुकदमों में, उन्होंने तर्क दिया कि एजेंसी ने कानूनी आवश्यकताओं को पूरा किए बिना उनके फोन में मौजूद बेहद अंतरंग डेटा जांचने की मांग की और इस तरह उनकी निजता के मौलिक अधिकार का अतिक्रमण किया. बीएएमएफ ने 20 महीनों में अपने तरीके को नहीं बदला है, लेकिन लीपजिग के फैसले से दबाव जरूर बढ़ेगा.
जर्मनी के प्रहरी क्या कर रहे हैं?
इस फैसले का असर जीएफएफ द्वारा दायर एक अन्य शिकायत पर भी पड़ेगा जो फोन जांच की प्रक्रिया को खत्म कर सकता है.
साल 2021 की शुरुआत में, एनजीओ ने जर्मनी के डेटा सुरक्षा प्रहरी और फेडरल कमिश्नर फॉर डेटा प्रोटेक्शन एंड फ्रीडम ऑफ इनफॉर्मेशन से फोन जांच की प्रक्रिया पर गौर करने के लिए कहा. अदालतों के विपरीत, फेडरल कमिश्नर ऑफिस के पास बीएएमएफ को सीधे यह आदेश देने की शक्ति है कि वो जांच के तरीके को बंद कर दे.
दो साल बाद, वॉचडॉग ने अभी तक इस मुद्दे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. सोसाइटी फॉर सिविल राइट्स के वकील ली बेकमैन कहती हैं कि यह ‘निराशाजनक' है.
गुरुवार के फैसले के बाद, बेकमैन ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि वॉचडॉग ‘अदालत की लिखित राय का इंतजार करेगा जिसमें स्पष्ट होगा कि इस फैसले के पीछे वास्तविक वजह क्या हैं.'
वो आगे कहती हैं, ‘लेकिन उसके बाद, अब और इंतजार करने का कोई कारण नहीं है.'
नतीजों के डर से महिला का नाम उनके वकीलों के अनुरोध पर प्रकाशित नहीं किया जा रहा है. (dw.com)
तुर्की और सीरिया के भीषण भूकंपों में जिंदा बच जाने वाले लोग भी थे. वे मदद के इंतजार में मलबे के नीचे कई दिनों तक दबे रहे, उन्हें बचा भी लिया गया. लेकिन जल्द ही उनकी मौत हो गई. बचाव के बाद होने वाली मौतों की वजह क्या है?
डॉयचे वैले पर यूलिया फैर्गिन की रिपोर्ट-
सीरिया और तुर्की के भीषण भूकंपों के बाद जैनब एक ढह चुके मकान के मलबे में 100 घंटे से भी ज्यादा गुजार चुकी थीं. उन्हें बचावकर्मियों ने खोज निकाला. सहायता संगठन आईएसएआर (इंटरनेशनल सर्च एंड रेस्क्यू) जर्मनी ने 10 फरवरी को एक प्रेस रिलीज में बताया, "सूरतेहाल को देखते हुए महिला अच्छी स्थिति में है." लेकिन बचाए जाने के कुछ ही देर बाद जैनब की मौत हो गई.
उन्हें मलबे से निकालने के अभियान में शामिल और सहायता संगठन से जुड़े इमरजेंसी डॉक्टर बास्टियान हैर्ब्स्ट ने बताया, "वो अस्पताल ले जाते हुए हंस रही थीं." वे कहते हैं कि महिला की मौत की 120000 वजहें हो सकती हैं. शायद उन्हें अंदरूनी चोटें आई थीं जिनका पता फौरन नहीं चल पाया या कथित रूप से उनकी "रेस्क्यू" मौत हुई.
एक ठंडी मौत
हैर्ब्स्ट कहते हैं "रेस्क्यू यानी बचाव मृत्यु के कई कारण होते हैं." उनमें से एक है हाइपोथर्मिया. भूकंपग्रस्त इलाकों के बर्फीले तापमान की वजह से मलबे में फंसे लगों की रक्त नलिकाएं सिकुड़ जाती हैं. सिकुड़ी हुई नसें सुनिश्चित करती हैं कि त्वचा या हाथ-पैर के जरिए बेशकीमती शारीरिक ऊष्मा बाहर बिल्कुल न निकल पाए. लिहाजा शरीर के इन हिस्सों में खून का तापमान गिर जाता है, जबकि शरीर के केंद्रीय भाग में बहते गरम खून से महत्वपूर्ण अंगों में हरकत बनी रहती है.
जैनब की हालत में सुधार इसीलिए पेचीदा था. हैर्ब्स्ट कहते हैं, "हमें उनके शरीर के कसाव को ढीला करने के लिए उन्हें बहुत ज्यादा हिलाना डुलाना पड़ा." इस हरकत के जरिए, डॉक्टर के मुताबिक, जैनब की रक्त नलिकाएं खुल गई होंगी और वहां जम चुका ठंडा खून उसके शरीर के केंद्रीय भाग की ओर बहने लगा होगा. वही बेकाबू और असामान्य हृदय गति का कारण बना होगा, जिससे उनकी मौत हो गई.
गुर्दे का नुकसान और वेंट्रिकुलर फिब्रिलेशन
या हो सकता है कि दिल की असामान्य धड़कन के साथ उनके गुर्दे फेल हो गए हों. वो अपने पांव हिलाने में सक्षम तो थीं, लेकिन हैर्ब्स्ट के मुताबिक, "उनके पांव पत्थरों और मलबे में दबे हुए थे." ये संभव है कि उनके पांव के टिश्यू नष्ट हो जाने से मायोग्लोबिन प्रोटीन बनना बंद हो गया हो. ये प्रोटीन ऊतक के जख्मी होने की स्थिति में मांसपेशियों की कोशिकाओं के भीतर ऑक्सीजन की सप्लाई करता है.
एकबारगी पीड़ितों को बचा लेने के बाद खून अचानक निर्बाध बहने लगता है तो शरीर में मायोग्लोबिन की बाढ़ सी आ जाती है जिससे गुर्दे फेल हो सकते हैं और पोटेशियम का लेवल भी बढ़ सकता है. शरीर में पोटेशियम की अत्यधिक मात्रा से वेंट्रीकुलर फिब्रिलेशन हो सकता है. यानी अनियमित, असामान्य गति, हृदय को शरीर के दूसरे हिस्सों में खून पहुंचाने से रोक सकती है. जिन लोगों को दिल की पुरानी समस्या है उनके लिए ये स्थिति खासतौर पर खतरनाक हो जाती है.
तनाव कम हो जाने से भी जाती है जान
डॉक्टर हैर्ब्स्ट कहते हैं, "जहाज दुर्घटनाओं के पीड़ितों में ये देखा जाता है, वे जैसे ही बचावकर्मियों को आता देखते हैं तो खुद को डूबने से रोकने की कोशिश करने लगते हैं." इस तरह स्ट्रेस हॉर्मोन शरीर की हरकतों को बनाए रख सकता है.
बचाव हो जाने के बाद, जैसे ही ये हॉर्मोन नीचे चले जाते हैं, संचार प्रणाली ढह सकती है. जैनब के पति और बच्चे भूकंप में मारे गए थे. बास्टियान हैर्ब्स्ट कहते हैं, "शायद उन्हें इसका पता चल गया था, जिससे उनकी जीने की रही-सही इच्छा भी चली गई. हमें नहीं पता." (dw.com)
लंदन, 18 फरवरी। उत्तरी लंदन में भारतीय मूल के एक व्यक्ति को पिता की हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
आरोपी डीकन पॉल सिंह विज (54) को पिछले महीने ओल्ड बेली अदालत में सुनवाई के बाद दोषी पाया गया और शुक्रवार को उसी अदालत में विज को 18 साल की सजा सुनाई गई।
जांच में शामिल एक पुलिस अधिकारी ने बताया, ‘‘डीकन पॉल सिंह विज के इस कृत्य ने उसके परिवार को तबाह कर दिया। उन्हें हमेशा अपने प्रियजन के जाने के गम का सामना करना होगा जबकि विज को जेल में अपनी सजा काटनी होगी।’’
पुलिस अधिकारी ने बताया, ‘‘अर्जन सिंह विज (86) उत्तरी लंदन के साउथगेट में अपने बेटे के साथ रहते थे, जहां 2021 में हुई घटना के बाद पुलिस को बुलाया गया था। पुलिस ने उन्हें (अर्जन सिंह विज को) घटनास्थल पर ही मृत घोषित कर दिया था।’’
पुलिस के मुताबिक, ‘‘पोस्टमार्टम में मौत का कारण सिर पर किसी चीज से तेज प्रहार बताया गया।’’
‘इवनिंग स्टैंडर्ड’ अखबार के मुताबिक, उनका बेटा निर्वस्त्र था और शैम्पेन की लगभग 100 बोतलों से घिरा हुआ था, जिसमें वीउवे क्लिकॉट और बोलिंगर की खून से सनी बोतलें भी शामिल थीं।
पुलिस की जांच के दौरान आरोपी ने हत्या की बात से इनकार किया था, लेकिन जांच के दूसरे ही दिन उसने आरोप स्वीकार करते हुए कहा, ‘‘मैंने बोलिंगर शैम्पेन की बोतल से अपने पिता के सिर पर वार कर उनकी हत्या कर दी।’’ आरोपी ने कहा कि उसका इरादा अपने पिता को गंभीर नुकसान पहुंचाना नहीं था।
ज्यूरी ने मामले में फैसले को लेकर विचार-विमर्श करने के लिए एक दिन से भी कम का समय लिया और आरोपी को हत्या का दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई। (भाषा)
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने कराची पुलिस मुख्यालय पर हमले की निंदा की है और कहा है कि उनका देश आतंकवाद को जड़ से ख़त्म कर देगा.
अपने ट्विटर हैंडल से किए ट्वीट में उन्होंने लिखा, "मैं कराची में पुलिस पर हुए आतंकी घटना की कड़ी निंदा करता हूं और इस हमले को विफल करने वाले साहसी पुलिस और लॉ एनफोर्समेंट अधिकारियों को सलाम करता हूं."
शरीफ़ ने लिखा है कि आतंकवादी शायद भूल गए होंगे कि पाकिस्तान ही वो मुल्क है, जिसने अपने शौर्य और साहस से आतंकवाद को हराया है.
उन्होंने दावा किया है कि "पाकिस्तान न केवल आतंकवाद को जड़ से ख़त्म कर देगा, बल्कि आतंकवादियों को भी न्याय के कठघरे में लाकर उन्हें ख़त्म कर दिया जाएगा."
शहबाज़ शरीफ़ के अनुसार, "पिछले दो दशकों के दौरान इस देश ने अपने ख़ून से आतंकवाद का मुक़ाबला किया है. यह महान देश संकट की घड़ी में भी यह संकट हमेशा के लिए ख़त्म करने के लिए दृढ़ संकल्पित है." (bbc.com/hindi)
पाकिस्तान सिंध प्रांत के मुख्यमंत्री मुराद अली शाह ने कहा है कि कराची पुलिस ऑफ़िस पर हुए चरमपंथी हमले का पाकिस्तान सुपर लीग (पीएसएल) पर कोई असर नहीं होगा.
उन्होंने कहा कि "ये आतंकवादी हमला था और हमलावरों ने नुक़सान पहुंचाने की कोशिश तो की, लेकिन हमारी पुलिस, रेन्जर्स और फौज की मदद से उनके इरादों को नाकाम कर दिया गया. ये लोग पुलिस का मनोबल गिराना चाहते थे."
उन्होंने पुष्टि की शुक्रवार हुए इस हमले में चार लोगों की मौत हुई है. उन्होंने कहा "हमारे पुलिस के तीन जवान और एक रेन्जर की मौत हुई है, लेकिन इस हमले को नाकाम कर दिया गया है."
उन्होंने कहा कि "ऐसा नहीं लगता कि इसका असर पीएसएल पर पड़ेगा, अगर ऐसा हुआ तो चरमपंथी अपने इराद में कामयाब हो जाएंगे. हम ऐसा नहीं होंने देंगे और हम सुरक्षा के ज़्यादा इंतज़ाम करेंगे."
पाकिस्तान सुपर लीग के मैच 13 फरवरी से शुरू हो गए हैं और ये टूर्नामेन्ट 19 मार्च को ख़त्म होगा.
इस टूर्नामेंट के दौरान कई मैच कराची में खेले जाने हैं. इसका फ़ाइनल लाहौर में होगा. (bbc.com/hindi)
अर्काबुतला (अमेरिका), 18 फरवरी। अमेरिका में मिसिसिपी के टेट काउंटी स्थित अर्काबुतला नगर में विभिन्न स्थानों पर छह व्यक्तियों की गोली मार कर हत्या कर दी गई। प्राधिकारियों ने इन हत्याओं के लिए एक व्यक्ति पर आरोप लगाया है।
प्राधिकारियों ने कहा कि हत्या के आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है।
मिसिसिपी के जनसुरक्षा विभाग के प्रवक्ता बेली मार्टिन ने टेट काउंटी के अर्काबुतला में हत्याओं की पुष्टि की। काउंटी शेरिफ ब्रैड लांस ने स्थानीय मीडिया को बताया कि ये हत्याएं एक दुकान और दो घरों में हुईं।
शेरिफ विभाग की एक प्रशासनिक कर्मचारी कैथरीन किंग ने कहा कि 52 वर्षीय रिचर्ड डेल क्रुम को हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।
गवर्नर टेट रीव्स के कार्यालय ने कहा कि उन्हें गोलीबारी की घटना के बारे में जानकारी दे दी गई है। रीव्स ने एक बयान में कहा, ‘‘इस समय, हम मानते हैं कि आरोपी व्यक्ति ने अपराध को अकेले ही अंजाम दिया। उसका मकसद अभी ज्ञात नहीं है।’’ (एपी)
एपी अमित सुरभि सुरभि 1802 0827 अर्कबुतला
कराची, 17 फरवरी। पाकिस्तान के सबसे घनी आबादी वाले शहर कराची में शुक्रवार को हथियारबंद आतंकवादियों ने पुलिस प्रमुख कार्यालय पर हमला कर दिया, जिसके बाद सुरक्षाकर्मियों और हमलावरों के बीच शुरू हुई भीषण गोलीबारी में तीन आतंकवादी और चार अन्य लोग मारे गए।
देशभर में आतंकवादी हमलों में वृद्धि के बीच सुरक्षा बलों पर हुआ यह ताजा हमला है। हमला स्थानीय समयानुसार शाम लगभग 7 बजकर 10 मिनट पर हुआ।
कराची पुलिस के एक प्रवक्ता ने एक बयान में पुष्टि की कि कराची पुलिस प्रमुख के मुख्यालय पर हमला हुआ है।
कराची के पुलिस प्रमुख जावेद ओदहो ने भी एक ट्वीट कर पुष्टि की कि उनके कार्यालय पर हमला हुआ है। उन्होंने कहा कि सुरक्षा बलों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने करीब चार घंटे के अभियान के बाद शहर के पुलिस प्रमुख के पांच मंजिला कार्यालय को खाली करा लिया।
सिंध सरकार के प्रवक्ता मुर्तजा वहाब ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया कि इमारत को खाली करा लिया गया है।
उन्होंने कहा, “तीन आतंकवादियों को मार गिराया गया है।”
ट्विटर पर साझा किए गए एक वीडियो में उन्होंने कहा कि दो पुलिस अधिकारियों समेत चार लोगों की भी मौत हो गई। हमले में सुरक्षाकर्मियों समेत 14 लोग घायल हो गए।
पुलिस सूत्रों ने पहले कहा था कि इमारत में आठ आतंकवादी थे।
वरिष्ठ पुलिस अधिकारी डीआईजी (दक्षिण) इरफान बलूच ने कहा, “कुछ आतंकवादी इमारत के पिछले हिस्से से दाखिल हुए, जबकि दो पुलिस की वर्दी पहनकर मुख्य द्वार से घुसे।”
उन्होंने कहा, “हमें दो कार भी मिलीं जिनके दरवाजे खुले हुए थे, एक इमारत के पिछले प्रवेश द्वार पर और दूसरी सामने खड़ी थी, जिसमें आज 7 बजकर 10 मिनट के आसपास आतंकवादी आए थे।”
खूंखार आतंकी समूह पाकिस्तान तालिबान ने हमले की जिम्मेदारी ली है।
आतंकवादियों ने पहले कराची पुलिस प्रमुख कार्यालय की इमारत के मुख्य परिसर में छह हथगोले फेंके और फिर परिसर में घुस गए।
कराची पुलिस प्रमुख का कार्यालय शहर की मुख्य सड़क के पास स्थित है जो हवाई अड्डे तक जाती है।
पाकिस्तान में नवंबर के बाद से आतंकवादी हमलों में वृद्धि देखी गई है, जब पाकिस्तान तालिबान ने सरकार के साथ एक महीने का संघर्ष विराम समाप्त कर दिया था।
गौरतलब है कि पिछले महीने, तालिबान के एक आत्मघाती हमलावर ने उत्तर-पश्चिमी पेशावर शहर में उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्र में एक मस्जिद में खुद को बम से उड़ा लिया था, जिसमें 100 से अधिक लोग मारे गए थे। मरने वालों में ज्यादातर पुलिसकर्मी थे। (भाषा)
पाकिस्तान के कराची में पुलिस मुख्यालय पर कई बंदूकधारियों ने हमला कर दिया है. पुलिस और हमलावरों के बीच भारी गोलीबारी चल रही है.
हमलावरों ने हैंड ग्रेनेडों का भी इस्तेमाल किया है.
मुख्यालय के भीतर मौजूद स्टाफ़ ने बिल्डिंग की बिजली बंद कर दी है और इमारत में दाखिल होने के रास्तों को ब्लॉक कर दिया है.
शहर के बाक़ी इलाकों से पुलिसकर्मियों को मुख्यालय की ओर भेजा जा रहा है.
स्थानीय मीडिया क्या कह रहा है?
सिधं सरकार के प्रवक्ता मुर्तज़ा वहाब ने रॉयटर्स को बताया है कि इस वक्त उनके पास घटना की अधिक जानकारी नहीं है.
समाचार एजेंसी एफ़पी के मुताबिक़ पाकिस्तानी न्यूज़ चैनल जियो टीवी से बात करते हुए सिंध प्रांत के सूचना मंत्री शरजील इमाम मेनन ने कहा है कि “हमालावरों की तादाद की जानकारी अब तक हमारे पास नहीं है.”
हालांकि कुछ स्थानीय मीडिया के मुताबिक आठ से दस हमलावर गोलियां चला रहे हैं.
बीते दिनों से पेशावर की मस्जिद पर हुए हमले में कम से कम 100 लोगों की मौत हुई थी. (bbc.com/hindi)
-विनीत खरे
- नेट एंडरसन ने 2017 में हिंडनबर्ग रिसर्च की स्थापना की थी.
- हिंडनबर्ग ने अब तक कई अमेरिकी कंपनियों को निशाना बनाया है.
- कंपनी का नाम नाज़ी जर्मनी के एक नाकाम स्पेस प्रोजेक्ट पर रखा गया है.
- अदानी वाली रिपोर्ट हिंडनबर्ग की 19वीं रिपोर्ट है.
- हिंडनबर्ग का कहना है कि अदानी समूह ने 88 में से 62 सवालों के जवाब नहीं दिए हैं.
हिंडनबर्ग जैसी शॉर्ट सेलिंग कंपनियाँ अपने रिसर्च से निवेशकों का पैसा डूबने से बचाती हैं जैसा कि उनका दावा है, या फिर वो शेयर बाज़ार को नुक़सान पहुँचाकर अपनी जेब भरती हैं?
ये बहस अमरीका में सालों से चल रही है जहाँ हिंडनबर्ग जैसी कंपनियाँ क़ानूनन काम कर रही हैं. उन्हें पसंद करने वाले भी हैं और उनके दुश्मनों की भी कमी नहीं है.
हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट की सनसनीखेज़ हेडलाइन दी थी--'कॉर्पोरेट इतिहास में सबसे बड़ा धोखा', अदानी समूह ने रिपोर्ट को झूठ क़रार दिया.
हिंडनबर्ग के आलोचक कह रहे हैं कि उसकी रिपोर्ट 'तेज़ी से आगे बढ़ते भारत को नीचे खींचने की कोशिश' है.
आम तौर पर शेयर के दाम ऊपर जाने पर पैसा बनता है, लेकिन शॉर्ट सेलिंग में दाम गिरने पर पैसा कमाया जाता है. इसमें किसी ख़ास शेयर में गिरावट के अनुमान पर दांव लगाया जाता है.
दरअसल, हिंडनबर्ग जैसे ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर्स कुछ ख़ास कंपनियां के शेयर की क़ीमत में गिरावट पर दांव लगाते हैं, फिर उनके बारे में रिपोर्ट छापकर निशाना साधते हैं.
वे इस काम के लिए ऐसी कंपनियों को चुनते हैं जिनके बारे में उन्हें लगता है कि उनके शेयरों की क़ीमत वास्तविक मूल्य से बहुत ज़्यादा है, या फिर उनकी नज़र में वो कंपनी अपने शेयर-धारकों को धोखा दे रही है.
नेट एंडरसन ने साल 2017 में हिंडनबर्ग रिसर्च की स्थापना की थी.
अमेरिका की एक शॉर्ट सेलिंग कंपनी स्कॉर्पियन कैपिटल के चीफ़ इन्वेस्टमेंट ऑफ़िसर कीर कैलॉन के मुताबिक़, हिंडनबर्ग प्रतिष्ठित संस्था है और उनकी रिसर्च को भरोसेमंद माना जाता है. उसकी वजह से अमेरिका में कई मौक़ों पर भ्रष्ट कंपनियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई हुई है.
न्यूयॉर्क से शॉर्ट सेलिंग पर न्यूज़ लेटर "द बीयर केव" निकालने वाले एडविन डॉर्सी बताते हैं हिंडनबर्ग रिसर्च जैसी ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलिंग फ़र्म के रिपोर्ट जारी करने के दो प्रमुख कारण होते हैं. पहला, ग़लत काम की कलई खोलकर मुनाफ़ा कमाना और दूसरा, न्याय और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना.
एडविन डॉर्सी कहते हैं, "ये देखकर बेहद निराशा होती है कि चंद लोग शेयरधारकों की क़ीमत पर अमीर हो रहे हैं, और शायद धोखेबाज़ी कर रहे हैं. ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलिंग की रिपोर्टें एक तरह की खोजी पत्रकारिता है, लेकिन मुनाफ़े की प्रेरणा थोड़ी अलग है. मैं नेट और हिंडनबर्ग को काफ़ी सराहनीय मानता हूँ."
ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर रिपोर्ट के साथ-साथ सोशल मीडिया का भी जमकर इस्तेमाल करते हैं, लेकिन कई आम निवेशक ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलिंग फ़र्म्स को पसंद नहीं करते क्योंकि दाम नीचे गिरने से उनके निवेश पर बुरा असर पड़ता है.
आश्चर्च की बात नहीं कि कई कंपनियां भी उन्हें पसंद नहीं करतीं. साल 2021 में एलन मस्क ने शॉर्ट सेलिंग को एक घोटाला बताया था.
शॉर्ट सेलिंग कंपनी स्कार्पियन कैपिटल के चीफ़ इन्वेस्टमेंट ऑफ़िसर कीर कैलॉन अदानी मामले को भारत का 'एनरॉन मोमेंट' बताते हैं.
वो कहते हैं, "ये रोचक बात है कि अडानी और एनरॉन दोनो इन्फ़्रास्ट्रक्चर कंपनियां हैं जिनके मज़बूत राजनीतिक संबंध रहे हैं."
साल 2001 में एनरॉन भारी आर्थिक नुक़सान छिपाने के बाद दीवालिया हो गई थी, उस वक्त अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के एनरॉन प्रमुख केन ले और कंपनी अधिकारियों से नज़दीकी संबंध थे.
अदानी की आर्थिक हालत एनरॉन जैसी तो नहीं है, लेकिन उन पर केन ले की तरह सरकार से अतिरिक्त निकटता के आरोप लग रहे हैं.
कैलॉन कहते हैं, "मज़बूत और साफ़-सुथरी कंपनियों को शॉर्ट सेलर रिपोर्टों से कोई फ़र्क नहीं पड़ता. अगर कोई व्यक्ति गूगल, फ़ेसबुक या माइक्रोसॉफ़्ट के बारे में लिखेगा तो लोग उस पर हँसेंगे और स्टॉक पर कोई असर नहीं पड़ेगा."
हिंडनबर्ग प्रमुख नेट ऐंडरसन के बारे में वो कहते हैं, "उनकी ज़बर्दस्त साख है. उनके शोध की विश्वसनीयता है. उसका बहुत असर हुआ है."
अमेरिका में कोलंबिया लॉ स्कूल के प्रोफ़ेसर जोशुआ मिट्स ने शॉर्ट सेलिंग की आलोचना करने वाला एक चर्चित पेपर 'शॉर्ट ऐंड डिस्टॉर्ट' लिखा.
जोशुआ कहते हैं, "जिस वजह से वॉल स्ट्रीट में कई लोग नेट एंडरसन की इज़्ज़त करते हैं वो ये है कि वो अपने बारे में खुलकर बोलते हैं. इसका ये मतलब नहीं कि खुलकर बोलने वाला सच ही बोल रहा हो. कुछ लोगों ने उन पर सवाल उठाए हैं, लेकिन उन्होंने हाल के सालों में अमेरिका की सबसे बड़ी धोखेबाज़ियों को उजागर किया है."
अमेरिका में जस्टिस डिपार्टमेंट को सलाह देने वाले जोशुआ मिट्स कहते हैं, "हम कहते हैं कि कंपनियों को पारदर्शी होना चाहिए, सीधी बात करनी चाहिए कि वो निवेशकों के पैसे से क्या कर रहे हैं. उसी तरह हमें ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर्स से भी कहना चाहिए कि वो पारदर्शी रहें और सीधी बात करें."
हिंडनबर्ग की सबसे नामी रिपोर्ट
हिंडनबर्ग पर इस रिपोर्ट की टाइमिंग, या फिर उन्हें कितना मुनाफ़ा हुआ, इस पर कई सवाल उठे हैं. हमने नेट ऐंडरसन से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन हमें कोई जवाब नहीं मिला.
हिंडनबर्ग की वेबसाइट के मुताबिक़ अभी तक अदानी वाली रिपोर्ट को मिलाकर 19 रिपोर्टें लिखी हैं, और सबसे नामी रिपोर्ट सितंबर 2020 में जारी हुई थी. इसमें निकोला नाम की अमेरिकी इलेक्ट्रिक ऑटो कंपनी का भंडाफोड़ किया गया था.
एक वक्त 30 अरब डॉलर की मार्केट कैपिटल वाली कंपनी निकोला ने ज़ीरो कॉर्बन उत्सर्जन के भविष्य का सपना दिखाया और जनवरी 2018 में एक हाइवे पर बैटरी से चलने वाले 'निकोला वन सेमी-ट्रक' के तेज़ रफ़्तार से चलने का वीडियो जारी किया.
हिंडनबर्ग ने जाँच के बाद अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि दरअसल सेमी-ट्रक को पहाड़ के ऊपरी हिस्से पर घसीटकर ले जाया गया और फिर ढलान पर फ़िल्म किया गया.
साल 2015 में स्थापित निकोला ने आरोपों से इनकार किया, लेकिन बाद में कंपनी प्रमुख ट्रेवर मिल्टन को इस्तीफ़ा देना पड़ा. हिंडनबर्ग की रिपोर्ट छपते ही कंपनी के शेयर करीब 24 प्रतिशत गिरे. निकोला पर 12 करोड़ डॉलर से अधिक का जुर्माना लगा.
साल 2021 में मिल्टन पर धोखेबाज़ी के आरोप साबित हुए.
अदानी की बात करें तो हिंडनबर्ग के आरोपों पर कंपनी ने सभी आरोपों से इनकार किया, जिसके जबाव में हिंडनबर्ग ने कहा कि अदानी ने उसके 88 में से 62 सवालों का जवाब नहीं दिया है.
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ अमेरिका का जस्टिस डिपार्टमेंट हिंडनबर्ग सहित क़रीब 30 शॉर्ट सेलिंग कंपनियों या उनके साथियों के बारे में व्यापार के संभावित दुरुपयोग को लेकर जानकारी इकट्ठा कर रहा है, हालांकि किसी पर कोई आरोप नहीं लगे हैं.
हिंडनबर्ग ने अदानी को क्यों चुना?
न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर अस्वत दामोदरन ने एक ब्लॉग में लिखा कि जब ये रिपोर्ट आई तो उन्हें आश्चर्य हुआ क्योंकि हिंडनबर्ग ने पूर्व में आम तौर पर ऐसी कंपनियों को निशाना बनाया है जो बहुत छोटी हों या फिर जिनके बारे में बहुत ज़्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं हो, लेकिन अडानी एक बड़ी भारतीय कंपनी है जिसके बारे में इतनी बात होती है.
हिंडनबर्ग की पुरानी रिपोर्टें देखें तो वो अमेरिकी और चीनी कंपनियों के बारे में हैं तो फिर उन्होंने अपनी 19वीं रिपोर्ट के लिए अदानी को क्यों चुना?
न्यूयॉर्क में शॉर्ट सेलिंग पर न्यूज़ लेटर "द बीयर केव" निकालने वाले एडविन डॉर्सी के मुताबिक़, उन्हें नहीं पता कि हिंडनबर्ग ने अदानी की ओर देखना क्यों शुरू किया लेकिन "ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर्स को जब कोई टिप मिलती है, कहीं से गुमनाम ईमेल आती है तो वो उस कंपनी की ओर देखना शुरू कर देते हैं."
वो कहते हैं, "कई बार कंपनी का स्टॉक जब बहुत तेज़ी से ऊपर जाता है तो ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर का ध्यान उसकी ओर जाता है."
अप्रैल 2022 की एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़, गुज़रे दो सालों में अदानी के शेयर पैंडेमिक के बावजूद 18-20 गुना बढ़ गए थे.
शॉर्ट सेलिंग कंपनी स्कॉर्पियन कैपिटल चीफ़ इन्वेस्टमेंट ऑफ़िसर कीर कैलॉन कहते हैं, "अदानी स्पष्ट तौर पर निशाने पर थे. भारत के भीतर भी सालों से अदानी कंपनियों पर फ़्रॉड के आरोप लगते रहे हैं. कुछ साल पहले हमने शॉर्ट सेलर के तौर पर उस पर स्वतंत्र रूप से रिसर्च किया, फिर हमने ये सोचकर छोड़ दिया कि इसमें बताने लायक कोई बात नहीं, सब जगज़ाहिर है."
अदानी समूह हमेशा फ़्रॉड के हर आरोप से इनकार करता रहा है.
कोलंबिया लॉ स्कूल के प्रोफ़ेसर जोशुआ मिट्स के मुताबिक़, अमेरिका में ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर्स को लेकर नियामक संस्थाओं की जांच बढ़ी है, इसलिए उन्होंने दूसरे बाज़ारों का रुख़ किया है जहाँ बाज़ार शायद इतने विकसित न हों.
वो कहते हैं, "अगर बाज़ार का रेग्युलेटर अमेरिका से पांच या दस साल पीछे हो तो, या फिर स्थानीय रेग्युलेटर बहुत स्मार्ट नहीं है तो शॉर्ट सेलर्स के इस तरह के कारनामे बहुत रोचक हो जाते हैं. ये सच है कि पिछले एक दशक में ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर्स ज़्यादा-से-ज़्यादा ग्लोबल हो रहे हैं."
न्यूयॉर्क में शॉर्ट सेलिंग पर न्यूज़ लेटर "द बीयर केव" निकालने वाले एडविन डॉर्सी के मुताबिक़, अमेरिका की सबसे पहली बड़ी कंपनी सिट्रॉन रिसर्च थी जिसकी स्थापना एंड्र्यू लेफ़्ट ने की थी.
वॉल स्ट्रीट जर्नल के एक आंकड़े के मुताबिक़ साल 2001 से 2014 के बीच में सिट्रॉन ने 111 शॉर्ट सेल रिपोर्टें लिखीं, और हर सिट्रॉन रिपोर्ट छपने के बाद टारगेट शेयर के दाम में औसतन 42 प्रतिशत की गिरावट आई.
हालांकि एंड्र्यू ने साल 2013 में टेस्ला के बारे में कहा था कि कंपनी के शेयर के दाम कुछ ज़्यादा ही हैं और इलेक्ट्रिक कार एक सनक-सी है, लेकिन उसके बाद टेस्ला के शेयर के दाम और कारों की बिक्री में बढ़ोतरी दर्ज हुई.
इस कारोबार में एक और बड़ा नाम कार्सन ब्लॉक का है जिनके बारे में अमेरिकी बाज़ारों को नियंत्रित करने वाली संस्था एसईसी के एक अधिकारी ने कहा था कि कॉर्सन ब्लॉक ने धोखेबाज़ी की घटनाओं पर एजेंसी से ज़्यादा रोशनी डाली है, और निवेशकों के पैसे बचाए हैं.
ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर्स क्लब के नए सितारे नेट एंडरसन ने कुछ वक्त इसराइल में भी गुज़ारा है और उन्हें अमेरिकी मीडिया में 'जायंट किलर' भी बुलाया गया है.
एडविन डॉर्सी के मुताबिक़, अमेरिका में ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलिंग 20-25 साल पुरानी है और वहां ऐसी क़रीब 20 बड़ी कंपनियां हैं.
ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलिंग पर एक रिपोर्ट के मुताबिक़ साल 2022 में 113 नए और बड़े शॉर्ट कैंपेन आए, और हिंडनबर्ग सबसे सफल ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलिंग फ़र्म्स में से एक थी.
लेकिन मज़ेदार बात ये है कि अमेरिकी मीडिया कह रहा है कि बड़ी-बड़ी कंपनियों को ज़मीन पर लाने वाले ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर्स पर भी अमेरिकी क़ानून की नज़र है.
साल 2018 में अमेरिकी बाज़ारों को नियंत्रित करने वाली संस्था एसईसी ने एक हेज फंड कंपनी के ख़िलाफ़ कार्रवाई की थी, जिसे बाद में हर्जाना देना पड़ा था.
अमेरिका में कोलंबिया लॉ स्कूल के प्रोफ़ेसर जोशुआ मिट्स कहते हैं, "अगर कुछ पार्टियों की जांच हो रही है, इसका मतलब ये नहीं कि पूरी इंडस्ट्री या फिर एक इंडस्ट्री के हर भागीदार की जांच हो रही है."
वे कहते हैं, "अगर भारतीय सिक्योरिटीज़ रेग्युलेटर्स को इसे लेकर चिंता है तो वो देख सकते हैं कि अमेरिका क्या कर रहा है, और यहां कई सरकारी कार्रवाइयां हुई हैं."
हिंडनबर्ग के ख़िलाफ़ चुनौती का भविष्य
फ़ाइनेंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ गौतम अदानी ने हिंडनबर्ग के ख़िलाफ़ क़ानूनी लड़ाई के लिए एक बड़ी और महंगी अमेरिकी लॉ फ़र्म को चुना है.
इससे पहले एक वक्तव्य में अदानी ने क़ानूनी रास्ता अपनाने की बात कही थी, जबकि हिंडनबर्ग ने कहा था कि अम़ेरिका में क़ानूनी प्रक्रिया के दौरान वो ढेर सारे दस्तावेज़ों की मांग करेंगे.
जानकारों के मुताबिक़, जिन कंपनियों को शॉर्ट सेलर्स निशाना बनाते हैं वो कई बार मानहानि का दावा करते हुए अदालत का रुख़ करती हैं, लेकिन वहां केस को साबित करना चुनौतीपूर्ण होता है.
वजह है अमेरिका में आज़ादी से बोलने के अधिकार को मिली क़ानूनी सुरक्षा.
अमेरिका में कोलंबिया लॉ स्कूल के प्रोफ़ेसर जोशुआ मिट्स के मुताबिक़, "अमेरिकी अदालतें बोलने की आज़ादी का बहुत ध्यान रखती हैं, और बहुत सारे ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर्स ये कहकर केस जीत गए कि उनका बोलने का अधिकार सुरक्षित रहना चाहिए. चाहे वो अपना मत व्यक्त कर रहे हों, या फिर रिपोर्ट में क्या लिखा हो, बोलने की आज़ादी शॉर्ट सेलर्स को एक कवच प्रदान करती है, चाहे कंपनी को क्यों न लगे कि रिपोर्ट ग़लत है."
हालांकि जोशुआ मिट्स ये भी कहते हैं कि "अगर शॉर्ट सेलर अपने शॉर्ट कैंपेन से जुड़े व्यवहार और आचरण को लेकर पारदर्शी नहीं है, तो ये उनके लिए क़ानूनी बोझ ज़रूर बन सकता है."
भारत में शॉर्ट सेलिंग की स्थिति
अशोका यूनिवर्सिटी में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर गुरबचन सिंह के अनुसार, भारत में शॉर्ट सेलिंग होती है लेकिन बड़े स्तर पर नहीं, शॉर्ट सेलिंग पर सेबी के शॉर्ट पेपर में इसमें संभावित धोखेबाज़ी की बात की गई है, और बताया गया है कि किन वजहों से इस पर भारत में 1998 और 2011 में प्रतिबंध लगाया गया था.
जानकार बताते हैं कि जिस तरह की रिपोर्टें हिंडनबर्ग ने लिखी हैं, वैसी रिपोर्ट भारत में लिखना चुनौतीपूर्ण है.
सेबी के साथ रजिस्टर्ड रिसर्च विश्लेषक नितिन मंगल कहते हैं, "हमारे लिए आलोचना सहना बहुत मुश्किल होता है. हम आलोचना को सकारात्मक रूप से नहीं लेते. लोग मेरे रिसर्च की बहुत आलोचना करते हैं, लेकिन मुझे फ़र्क नहीं पड़ता."
मंगल के मुताबिक़, भारत में क़ानूनी कारणों से ऐसी रिसर्च कंपनियां नहीं हैं.
वे कहते हैं, "भारत में कंपनियां आपके ख़िलाफ़ कानूनी कार्रवाई कर सकती हैं. आपके ख़िलाफ़ आपराधिक मामला दर्ज कर सकती हैं. अमेरिका में प्रक्रिया बहुत अलग है." (bbc.com/hindi)
-रजनीश कुमार
तुर्की और सीरिया में तबाही मचाने वाले भूकंप के बाद भारत मदद भेजने के लिए जिस तरह से मुखर होकर सामने आया, उसे मोदी सरकार की मध्य-पूर्व के प्रति प्रतिबद्धता से जोड़ा जा रहा है.
इससे पहले भारत ने 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस के मौक़े पर मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फ़तेह अल-सीसी को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया था.
मई 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से इसराइल से भी संबंध गहरे हुए हैं और खाड़ी के देशों से संबंधों में गर्मजोशी की बात कही जाती है. नरेंद्र मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने 2017 में इसराइल का दौरा किया था.
ईरान के साथ भारत का संपर्क पुराना है और अब तुर्की के साथ भी दोस्ती मज़बूत करने की कोशिश शुरू हो गई है.
जब इन इलाक़ों में अमेरिका की मौजूदगी कमज़ोर पड़ने की बात की जा रही है, तब भारत अपना पैर जमाने की कोशिश कर रहा है.
अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रहे हुसैन हक़्क़ानी ने 'द डिप्लोमैट' में लिखा है कि भारत आज़ादी के बाद से मध्य-पूर्व में सक्रिय रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में इन इलाक़ों में भारत की संलिप्तता की गुणवत्ता बदली है.
मोदी की प्राथमिकता मध्य-पूर्व!
हुसैन हक़्क़ानी का मानना है कि बहुध्रुवीय दुनिया में भारत एक वैश्विक शक्ति बनने की तमन्ना के साथ आगे बढ़ रहा है. हक़्क़ानी ने लिखा है, ''तुर्की और सीरिया में भारत की ओर से बड़े पैमाने पर राहत-सामग्री का आना उसकी महत्वाकांक्षा को दिखाता है. भारत अब आपदा की स्थिति में मदद अपने पड़ोसियों से आगे भी पहुँचाने के लिए तत्पर दिख रहा है.''
हुसैन हक़्क़ानी ने लिखा है, ''तुर्की में भारत ने जो हालिया मदद भेजी है, उनमें एक पूरा फ़ील्ड हॉस्पिटल और मेडिकल टीम के साथ मशीन, दवाई के अलावा हॉस्पिटल बेड भी हैं. यह एक रणनीतिक मदद है न कि केवल मानवीय मदद. भारत के इस रुख़ से पूरे मध्य-पूर्व में एक मज़बूत छवि बनेगी. पश्चिम एशिया को लेकर भारत की गंभीरता साफ़ दिख रही है. वो चाहे क्वॉड हो या आईटूयूटू. I2U2 गुट में इसराइल, इंडिया, अमेरिका और यूएई हैं.''
कई विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका का ज़्यादा फ़ोकस चीन और यूक्रेन संकट पर है. ऐसे में मध्य-पूर्व में उसकी मौजूदगी कमज़ोर पड़ रही है.
कहा जा रहा है कि भारत को डर है कि अमेरिका की जगह मध्य-पूर्व में चीन ले सकता है और अगर ऐसा हुआ तो भारत के हितों के ख़िलाफ़ होगा.
मध्य-पूर्व में भारत के हित
भारत के लिए मध्य-पूर्व निवेश, ऊर्जा और रेमिटेंस का अहम स्रोत है. यह इलाक़ा भारत के सुरक्षा दृष्टिकोण से भी अहम माना जाता है क्योंकि इस्लामिक अतिवाद को लेकर चिंताएं अभी ख़त्म नहीं हुई हैं. भारत चाहता है कि मध्य-पूर्व में अमेरिका कमज़ोर पड़े तो वह इसके लिए पहले से तैयार रहे.
खाड़ी के देशों में भारत के क़रीब 89 लाख लोग रहते हैं. इनमें से 34 लाख भारतीय यूएई में रहते हैं और 26 लाख सऊदी अरब में. पिछले साल विदेशों में रहने वाले भारतीयों ने 100 अरब डॉलर कमाकर भारत भेजे थे, इनमें से आधी से ज़्यादा कमाई खाड़ी के देशों से थी.
पिछले एक दशक में भारत का मध्य-पूर्व से कारोबार भी तेज़ी से बढ़ा है. यूएई भारत का तीसरा सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है और सऊदी अरब चौथे नंबर पर है.
2022 में भारत और यूएई के बीच कॉम्प्रीहेंसिव इकनॉमिक पार्टनर्शिप एग्रीमेंट (सीईपीए) हुआ था. इसके बाद से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार में 38 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है. भारत और यूएई के बीच द्विपक्षीय व्यापार 88 अरब डॉलर तक पहुँच गया है.
सऊदी अरब से भारत अपनी ज़रूरत का 18 फ़ीसदी कच्चा तेल आयात करता है. दूसरी तरफ़ सऊदी अरब का भारत के इन्फ़ास्ट्रक्चर में निवेश लगातार बढ़ रहा है.
भारत अपनी ज़रूरत का 80 फ़ीसदी तेल और गैस आयात करता है और 60 फ़ीसदी आयात खाड़ी के देशों से है. यूएई भारत के रणनीतिक तेल भंडार में भी मदद कर रहा है. भारत का मिस्र के साथ द्विपक्षीय व्यापार 7.26 अरब डॉलर का है और मिस्र में 50 भारतीय कंपनियों ने 3.15 अरब डॉलर का निवेश किया है.
भारत का इसराइल के साथ भी सुरक्षा संबंध काफ़ी मज़बूत हुआ है. भारत में रक्षा उपकरणों की आपूर्ति में इसराइल तीसरा सबसे बड़ा देश है.
इसराइल का 43 प्रतिशत हथियार निर्यात भारत में है. इसराइल के साथ भारत ईरान की भी उपेक्षा नहीं करता है जबकि ईरान और इसराइल दोनों से एक साथ संबंध बनाए रखना आसान नहीं है. यह जगज़ाहिर है कि ईरान और इसराइल के बीच ऐतिहासिक दुश्मनी है जो हर दिन बढ़ ही रही है.
भारत और तुर्की दोस्त क्यों नहीं बनते?
तुर्की का पाकिस्तान परस्त रुख़ रहा है. कहा जाता है कि इसकी शुरुआत 1950 के शुरुआती दशक या फिर शीत युद्ध के दौर में होती है.
इसी दौर में भारत-पाकिस्तान के बीच दो जंग भी हुई थी. तुर्की और भारत के बीच राजनयिक संबंध 1948 में स्थापित हुआ था. तब भारत के आज़ाद हुए मुश्किल से एक साल ही हुआ था.
इन दशकों में भारत और तुर्की के बीच क़रीबी साझेदारी विकसित नहीं हो पाई. कहा जाता है कि तुर्की और भारत के बीच तनाव दो वजहों से रहा है. पहला कश्मीर के मामले में तुर्की का पाकिस्तान परस्त रुख़ और दूसरा शीत युद्ध में तुर्की अमेरिकी खेमे में था जबकि भारत गुटनिरपेक्षता की वकालत कर रहा था.
नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन यानी नेटो दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1949 में बना था. तुर्की इसका सदस्य था. नेटो को सोवियत यूनियन विरोधी संगठन के रूप में देखा जाता था.
इसके अलावा 1955 में तुर्की, इराक़, ब्रिटेन, पाकिस्तान और ईरान ने मिलकर 'बग़दाद पैक्ट' किया था. बग़दाद पैक्ट को तब डिफ़ेंसिव ऑर्गेनाइज़ेशन कहा गया था.
इसमें पाँचों देशों ने अपनी साझी राजनीति, सेना और आर्थिक मक़सद हासिल करने की बात कही थी. यह नेटो की तर्ज़ पर ही था.
1959 में बग़दाद पैक्ट से इराक़ बाहर हो गया था. इराक़ के बाहर होने के बाद इसका नाम सेंट्रल ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन कर दिया गया था. बग़दाद पैक्ट को भी सोवियत यूनियन के ख़िलाफ़ देखा गया. दूसरी तरफ़ भारत गुटनिरपेक्षता की बात करते हुए भी सोवियत यूनियन के क़रीब लगता था.
जब शीत युद्ध कमज़ोर पड़ने लगा था तब तुर्की के 'पश्चिम परस्त' और 'उदार' राष्ट्रपति माने जाने वाले तुरगुत ओज़ाल ने भारत से संबंध पटरी पर लाने की कोशिश की थी.
1986 में ओज़ाल ने भारत का दौरा किया था. इस दौरे में ओज़ाल ने दोनों देशों के दूतावासों में सेना के प्रतिनिधियों के ऑफिस बनाने का प्रस्ताव रखा था. इसके बाद 1988 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तुर्की का दौरा किया था. राजीव गांधी के दौरे के बाद दोनों देशों के रिश्ते कई मोर्चे पर सुधरे थे.
लेकिन इसके बावजूद कश्मीर के मामले में तुर्की का रुख़ पाकिस्तान के पक्ष में ही रहा इसलिए रिश्ते में नज़दीकी नहीं आई.
1991 में इस्लामिक देशों के संगठन ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन यानी ओआईसी के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई थी और इस बैठक में तुर्की के विदेश मंत्री ने कश्मीर को लेकर भारत की आलोचना की थी.
2003 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने तुर्की का दौरा किया था. इस दौरे में दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों के बीच संपर्क बनाए रखने को लेकर सहमति बनी थी.
द मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट के अनुसार, ''बुलांत एजेवेत एकमात्र टर्किश प्रधानमंत्री थे जिन्हें 'भारत-समर्थक' प्रधानमंत्री के रूप में देखा जा सकता है क्योंकि उन्होंने पाकिस्तान में जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ के तख़्तापलट को मंज़ूरी नहीं दी थी. एजेवेत ने अप्रैल 2000 में भारत का दौरा किया था. पिछले 14 सालों में किसी टर्किश राष्ट्रपति का यह पहला दौरा था. एजेवेत ने पाकिस्तान के दौरे का निमंत्रण अस्वीकार कर दिया था.''
''सबसे अहम यह है कि एजेवेत ने कश्मीर पर तुर्की के पारंपरिक रुख़ को संशोधित किया था. तुर्की का कश्मीर पर रुख़ रहा है कि इसका समाधान संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में होना चाहिए. लेकिन एजेवेत ने इसका द्विपक्षीय समाधान तलाशने की वकालत की थी. तुर्की के इस रुख़ के कारण भारत से संबंधों को बल मिला था.''
द मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट का कहना है, ''तुर्की में जब जस्टिस एंड डिवेलपमेंट पार्टी (एकेपी) सत्ता में आई तो दोनों देशों में संबंध गहराने की संभावनाएं और बनीं. एकेपी ईयू के साथ चलने की बात करती थी और ट्रेड रिलेशन को मध्य-पूर्व से बाहर ले जाना चाहती थी. भारत एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था थी और पाकिस्तान के साथ ट्रेड के मामले में बहुत संभावना नहीं थी. एकेपी ने भारत से संबंध बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन पाकिस्तान से रिश्ते ख़राब होने की शर्त पर नहीं.''
2008 में रेचेप तैय्यप अर्दोआन भारत के दौरे पर आए. इस दौरे में उन्होंने भारत के साथ फ़्री ट्रेड एग्रीमेंट की बात रखी. अगले साल तुर्की का पहला नैनो सैटेलाइट भारत ने पीएसएलवी सी-14 से अंतरिक्ष में भेजा.
इसके बाद 2010 में तुर्की के तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल्लाह गुल ने भारत का दौरा किया और अंतरिक्ष रिसर्च में सहयोग बढ़ाने के लिए बात की थी.
दोनों देशों के बीच कारोबार में भी तेज़ी आने लगी. 2000 में दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार 50.5 करोड़ डॉलर का था जो 2018 में 8.7 अरब डॉलर हो गया. पूर्वी एशिया में चीन के बाद भारत तुर्की का दूसरा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर बन गया. दूसरी तरफ़ पाकिस्तान का तुर्की से व्यापार एक अरब डॉलर भी नहीं पहुँच पाया है.''
2017 में अर्दोआन राष्ट्रपति के रूप में भारत आए. अर्दोआन के साथ 100 सदस्यों वाला एक बिज़नेस प्रतिनिधिमंडल था. लेकिन नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद तुर्की का एक भी दौरा नहीं किया है.
मोदी के तुर्की नहीं जाने के पीछे भी पाकिस्तान एक अहम कारक माना जाता है. कश्मीर पर अर्दोआन का रुख़ भी पाकिस्तान की लाइन पर ही रहा है. 2010 में अफ़ग़ानिस्तान पर तुर्की के नेतृत्व वाली वार्ता से भारत को हटा दिया गया था.
इसके अलावा तुर्की ने न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप यानी एनएसजी में भारत की सदस्यता का विरोध किया था. कहा जाता है कि तुर्की का यह रुख़ पाकिस्तान के दबाव में था.
लेकिन पिछले कुछ सालों में अर्दोआन का रुख़ कश्मीर के मामले में मद्धम पड़ा है. अर्दोआन ने पिछले साल 20 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र की 77वीं आम सभा को संबोधित करते हुए कहा था, ''75 साल पहले भारत और पाकिस्तान दो संप्रभु देश बने, लेकिन दोनों मुल्कों के बीच शांति और एकता स्थापित नहीं हो पाई है. यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. हम उम्मीद और प्रार्थना करते हैं कि कश्मीर में उचित और स्थायी शांति स्थापित हो.''
अर्दोआन की इस टिप्पणी के एक हफ़्ता पहले ही उज़्बेकिस्तान के समरकंद में शंघाई कॉर्पोरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन (एससीओ) समिट से अलग भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन से मुलाक़ात हुई थी.
संयुक्त राष्ट्र आम सभा में अर्दोआन पहले भी कश्मीर का मुद्दा उठाते रहे हैं, लेकिन पिछले साल उनकी टिप्पणी बिल्कुल अलग थी. इससे पहले वह कहते थे कि कश्मीर समस्या का समाधान संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के तहत होना चाहिए.
क्या तुर्की अपना तेवर छोड़ देगा?
दिल्ली की जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में सेंटर फ़ॉर वेस्ट एशियन स्टडीज़ की प्रोफ़ेसर सुजाता ऐश्वर्या कहती हैं कि तुर्की और भारत दोनों मिडिल पावर हैं और दोनों वैश्विक शक्ति बनने की चाहत रखते हैं.
ऐश्वर्या कहती हैं, ''यूक्रेन में रूस के हमले के बाद से वैश्विक स्तर पर मिडिल पावर वाले देशों की अहमियत बढ़ी है. यूक्रेन संकट में तुर्की और भारत दोनों समाधान तलाशने की कोशिश कर रहे हैं.
कई बार दोनों देशों के हित आपस में टकराते भी हैं. भारत तुर्की में इसलिए मदद नहीं भेजता कि वह पाकिस्तान के क़रीब है, तो यह नासमझी ही होती. भारत वहाँ मानवीय मदद भेज रहा है, लेकिन इसका असर इतना निरपेक्ष नहीं होता है. इसका असर द्विपक्षीय संबंधों पर भी पड़ता है.''
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सेंटर फ़ॉर वेस्ट एशियन स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर एके महापात्रा को नहीं लगता है कि भारत की मानवीय मदद से तुर्की की विदेश नीति लंबी अवधि के लिए बदल जाएगी.
महापात्रा कहते हैं, ''तुर्की में अभी जो सत्ता है, वह इस्लाम की राजनीति करती है. उसकी राजनीति में पाकिस्तान एक पक्ष रहेगा. हाँ, इतना ज़रूर हो सकता है कि अर्दोआन संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर को लेकर भारत के ख़िलाफ़ जो बोलते हैं, उसे बोलना बंद कर दें. तुर्की जहाँ है, वह बेहद अहम इलाक़ा है. तुर्की से मध्य एशिया जाना आसान है. यूरोप से सीमा लगती है. मध्य-पूर्व में पहुँच आसान है. उसके साथ ऑटोमन साम्नाज्य की विरासत है.
इसलिए इस्लामिक दुनिया का नेता भी बनना चाहता है. तुर्की को पाकिस्तान से कोई फ़ायदा नहीं है, लेकिन इस्लाम के नाम पर साथ दिखना मजबूरी है. भारत एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था है और तुर्की इसकी उपेक्षा नहीं कर सकता है, लेकिन वह पाकिस्तान को छोड़ देगा, ऐसा नहीं होगा.''
महापात्रा कहते हैं, ''भारत की मदद से पाकिस्तान ज़रूर घबराया हुआ है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की बेचैनी साफ़ दिख रही है. वह तुर्की जा रहे हैं. पाकिस्तान को लग रहा है कि सऊदी और यूएई की तरह कहीं तुर्की भी भारत के पाले में न चला जाए. तुर्की में भारत की मदद विश्वगुरु वाली छवि को मज़बूत करने के लिए है न कि क़रीबी बढ़ाने के लिए.''
तुर्की अभी भारत को दोस्त कह रहा है, लेकिन वह पाकिस्तान को लंबे समय से भाई कहता रहा है. (bbc.com/hindi)