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‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 27 अगस्त। सीएम हाउस में पोरा,तीजा पर्व के लिए पहुंची महिलाओं को इस वर्ष भी सीएम बघेल ने साड़ी भेंट में दिया। साड़ी वितरण के लिए एक काउंटर की व्यवस्था की गई थी। कार्यक्रम में महिलाओं की भारी भीड़ के चलते साड़ी काउंटर में रस्साकसी की स्थिति रही।
बेंगलुरु, 27 अगस्त (भाषा) कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एम. मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा है कि राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में वापसी के लिए प्रयास किया जाएगा, क्योंकि पार्टी में उनके अलावा कोई ऐसा नहीं है जिसकी अखिल भारतीय अपील हो।
राज्यसभा में विपक्ष के नेता ने कहा कि पार्टी का नेतृत्व करने के इच्छुक किसी भी व्यक्ति को पूरे देश में जाना जाना चाहिए और उसे कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर और पश्चिम बंगाल से गुजरात तक समर्थन प्राप्त होना चाहिए।
खड़गे ने शुक्रवार को यहां ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘वह (कांग्रेस अध्यक्ष को) पूरी कांग्रेस पार्टी में जाना-पहचाना, स्वीकृत व्यक्ति होना चाहिए। ऐसा (इस तरह के कद के साथ पार्टी में) कोई नहीं है।’’
उन्होंने कहा कि सभी वरिष्ठ नेताओं ने सोनिया गांधी को पार्टी में शामिल होने और काम करने के लिए ‘‘विवश’’ किया था और राहुल गांधी से ‘‘सामने आने और लड़ने’’ का अनुरोध किया था।
खड़गे ने पूछा, ‘‘आप मुझे विकल्प बताएं। (राहुल गांधी के अलावा पार्टी में अन्य) कौन है?’’ इन खबरों पर कि राहुल गांधी पद संभालने को तैयार नहीं हैं, खड़गे ने कहा कि उनसे अनुरोध किया जाएगा और उन्हें ‘‘पार्टी की खातिर, देश की खातिर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस)-भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से लड़ने और देश को एकजुट बनाए रखने के लिए कार्यभार संभालने के लिए कहा जाएगा।’’
खड़गे ने पार्टी की आगामी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का भी जिक्र किया और कहा कि ‘जोड़ो भारत’ के लिए राहुल गांधी की जरूरत है। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘‘हम उनसे पूछेंगे, हम उन्हें मजबूर करेंगे और उनसे (कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में लौटने के लिए) अनुरोध करेंगे। हम उनके साथ खड़े हैं। हमें उन्हें मनाने की कोशिश करेंगे।’’
कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की तारीखों के कार्यक्रम को मंजूरी देने के लिए पार्टी की निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) रविवार को एक डिजिटल बैठक करेगी।
सीडब्ल्यूसी की बैठक की अध्यक्षता सोनिया गांधी करेंगी। कई नेता राहुल गांधी को फिर से पार्टी प्रमुख बनने के लिए सार्वजनिक रूप से प्रोत्साहित कर रहे हैं। हालांकि, इस मुद्दे पर अनिश्चितता और रहस्य बरकरार है। पार्टी के कई अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी अपने रुख पर कायम हैं कि वह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) अध्यक्ष नहीं बनेंगे।
2019 में संसदीय चुनावों में पार्टी के लगातार दूसरी हार का सामना करने के बाद उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया था। सोनिया गांधी, जिन्होंने अंतरिम अध्यक्ष के रूप में फिर से पार्टी की बागडोर संभाली, ने भी अगस्त 2020 में जी-23 नाम से जाने जाने वाले नेताओं के एक वर्ग द्वारा खुले विद्रोह के बाद पद छोड़ने की पेशकश की, लेकिन सीडब्ल्यूसी ने उनसे पद पर बने रहने का आग्रह किया था।
डिंडोरी (मप्र), 27 अगस्त मध्य प्रदेश के डिंडोरी में एक सरकारी स्कूल के शिक्षक ने अपनी पत्नी की मौत के बाद उसके शव को अपने घर में दफना दिया और पड़ोसियों के विरोध के बाद प्रशासन ने शव को निकालकर मुक्तिधाम में उसका अंतिम संस्कार कराया।
डिंडोरी के तहसीलदार गोविंदराम सलामे ने शनिवार को बताया कि शिक्षक ओंकार दास मोगरे (50) ने बीमारी से 45 वर्षीय अपनी पत्नी की मौत हो जाने के बाद उसके शव को घर के अंदर ही एक कमरे में दफना दिया था। स्थानीय लोगों ने इसका विरोध करते हुए बुधवार को प्रशासन को इसकी जानकारी दी।
उन्होंने बताया कि सूचना मिलने पर 24 घंटे के अंदर ही शव को स्थानांतरित कर निर्दिष्ट स्थान पर उसका अंतिम संस्कार करवाया गया।
सूत्रों ने बताया कि स्थानीय लोगों ने और मोगरे के रिश्तेदारों ने घर के अंदर शव को दफन करने से शिक्षक को रोका था, लेकिन उसने किसी की बात नहीं मानी और कहा कि पत्नी से प्यार के कारण वह ऐसा कर रहा है। शिक्षक ने ऐसा करने के लिए अपने पनिका समुदाय की परंपरा का भी हवाला दिया।
अधिकारियों ने बताया कि पनिका समुदाय के लोग मृतक परिवार के सदस्यों के शवों को ग्रामीण इलाकों में रिहायशी परिसर में ही दफना देते हैं।
कोतवाली थाना प्रभारी सी के सिरामे ने बताया कि मोगरे ने अपने समुदाय के रीति-रिवाजों का हवाला देकर शव को 23 अगस्त को अपने घर में ही दफना दिया था।
हालांकि स्थानीय नगर निकाय और जिला प्रशासन ने पड़ोसियों की शिकायत के बाद हस्तक्षेप किया। (भाषा)
ज्यूरिख/नयी दिल्ली, 27 अगस्त विश्व फुटबाल की संचालन संस्था फीफा के अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) पर लगाए गए प्रतिबंध को हटाने के फैसले को खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने प्रशंसकों की जीत करार दिया।
फीफा ने एआईएफएफ पर 11 दिन पहले ‘तीसरे पक्ष के अनुचित प्रभाव’ के कारण लगाए गए प्रतिबंध को हटा दिया है जिससे भारत को इस साल अक्टूबर में महिला अंडर-17 विश्व कप की मेजबानी की मंजूरी भी मिल गई है।
ठाकुर के मंत्रालय ने फीफा और उच्चतम न्यायालय के बीच समन्वय बिठाकर प्रतिबंध को हटाने में अहम भूमिका निभाई। उच्चतम न्यायालय ने प्रशासकों की समिति (सीओए) का कार्यकाल समाप्त कर दिया था जो कि प्रतिबंध हटाने की पहली शर्त थी।
ठाकुर ने ट्वीट किया,‘‘ यह बात साझा करते हुए मैं प्रसन्न हूं कि फीफा परिषद के ब्यूरो ने एआईएफएफ पर लगाया गया प्रतिबंध तुरंत प्रभाव से हटाने का फैसला किया है। फीफा अंडर-17 महिला विश्वकप अब पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार 11 से 30 अक्टूबर तक भारत में होगा। यह फुटबॉल प्रशंसकों की जीत है।’’
फीफा ने 15 अगस्त को भारत पर प्रतिबंध लगाया था और स्पष्ट किया था कि इसका मतलब भारत अंडर-17 महिला विश्व कप की मेजबानी नहीं कर सकता है। लेकिन अब भारत का इस प्रतियोगिता की मेजबानी करने का रास्ता साफ हो गया है।
एआईएफएफ के चुनाव अब दो सितंबर को होंगे जिसमें दिग्गज फुटबॉलर बाइचुंग भुटिया और पूर्व गोलकीपर कल्याण चौबे अध्यक्ष पद के लिए आमने-सामने हैं।
एआईएफएफ को 85 साल के उसके इतिहास में पहली बार प्रतिबंधित किया गया था लेकिन उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को तीन सदस्य प्रशासकों की समिति (सीओए) को बर्खास्त कर दिया था जिससे प्रतिबंध हटाने का रास्ता साफ हो गया था।
सीओए की नियुक्ति मई में की गई थी ताकि भारत 11 से 30 अक्टूबर तक होने वाले फीफा अंडर-17 महिला विश्वकप का सुचारू रूप से मेजबानी कर सके।
फीफा ने बयान में कहा,‘‘ फीफा परिषद के ब्यूरो ने अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) तीसरे पक्ष के प्रभाव के कारण लगाए गए प्रतिबंध को हटाने का फैसला किया है।’’
इसमें कहा गया है,‘‘ फीफा के यह पुष्टि प्राप्त करने के बाद कि एआईएफएफ कार्यकारी समिति की शक्तियों को ग्रहण करने के लिए स्थापित की गई प्रशासकों की समिति को भंग कर दिया गया है, यह फैसला किया गया।’’
फीफा ने कहा,‘‘ इसके परिणाम स्वरूप फीफा अंडर-17 महिला विश्वकप पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार 11 से 30 अक्टूबर 2022 के बीच भारत में ही खेला जाएगा।’’
विश्व फुटबॉल की सर्वोच्च संस्था ने कहा कि वह और एशियाई फुटबाल परिसंघ (एएफसी) स्थिति पर निगरानी जारी रखेंगे और सही समय पर चुनाव कराने में एआईएफएफ की मदद करेंगे।
एआईएफएफ के कार्यवाहक महासचिव सुनंदो धर ने इस फैसले का स्वागत किया तथा फीफा, एएफसी और ठाकुर का उनकी भूमिकाओं के लिए आभार व्यक्त किया।
धर ने कहा, ‘‘भारतीय फुटबॉल का सबसे काला समय आखिरकार खत्म हो गया है। एआईएफएफ पर 15 अगस्त की मध्यरात्रि को जो निलंबन लगाया गया था, उसे फीफा ने हटा दिया है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हम इस तरह के मुश्किल समय में हमारा मार्गदर्शन करने के लिए फीफा और एएफसी, विशेष रूप से एएफसी के महासचिव दातुक सेरी विंडसर जॉन का आभार व्यक्त करते हैं। हम युवा मामले और खेल मंत्रालय और माननीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर का इस मुश्किल समय में हमारे साथ मजबूती से खड़े होने के लिए आभार व्यक्त करते हैं।’’
धर ने मंगलवार को फीफा महासचिव फातमा समोरा से एआईएफएफ को निलंबित करने के फैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया था। (भाषा)
वाशिंगटन, 27 अगस्त अमेरिका के वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अपनी भारत यात्रा के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण समेत अन्य अधिकारियों से मुलाकात की और ऊर्जा मूल्यों सहित यूक्रेन के मुद्दे पर बातचीत की।
अमेरिका के उप वित्त मंत्री वैली अडेयेमो ने 26 अगस्त को नयी दिल्ली में सीतारमण, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पी के मिश्रा, वित्त सचिव अजय सेठ, विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा और पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस सचिव पंकज जैन से मुलाकात की थी।
अमेरिकी वित्त मंत्रालय की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया कि बैठक के दौरान अडेयेमो ने खाद्य असुरक्षा और ऊर्जा की बढ़ती हुई कीमतों की साझा वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए अमेरिका और भारत के मिलकर काम करने के तरीके तलाशने पर चर्चा की। अडेयेमो ने कहा कि इन मुद्दों को सुलझाने के लिए यूक्रेन पर रूस के हमले का अंत होना जरूरी है।
उन्होंने भारत, अमेरिका और विश्व में उपभोक्ताओं तथा व्यवसाय के लिए ऊर्जा कीमतें घटाने पर अमेरिका का दृष्टिकोण भी साझा किया। विज्ञप्ति के अनुसार, अडेयेमो ने क्वाड तथा हिंद-प्रशांत आर्थिक ढांचे जैसे मंचों के जरिये अमेरिका और भारत के बीच संबंध और प्रगाढ़ करने पर चर्चा की। (भाषा)
तोक्यो, 27 अगस्त सात्विकसाईराज रंकीरेड्डी और चिराग शेट्टी की भारतीय पुरुष युगल जोड़ी ने शनिवार को यहां सेमीफाइनल में मलेशिया के आरोन चिया और सोह वूई यिक की छठी वरीयता प्राप्त जोड़ी से हारने के कारण विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप में अपना पहला कांस्य पदक जीतकर अभियान का अंत किया।
विश्व में सातवें नंबर की भारतीय जोड़ी पहले गेम में जीत का फायदा नहीं उठा पाई और 77 मिनट तक चले मैच में 22-20, 18-21, 16-21 से हार गई।
यह सात्विक और चिराग की मलेशियाई जोड़ी के हाथों लगातार छठी हार है। इस महीने के शुरू में राष्ट्रमंडल खेलों के मिश्रित टीम फाइनल में भी उन्हें इस जोड़ी से हार का सामना करना पड़ा था।
इस हार के बावजूद भारतीय जोड़ी ने विश्व चैंपियनशिप में प्रभावशाली प्रदर्शन किया और भारत का एक पदक सुनिश्चित किया। भारत ने 2011 के बाद इस प्रतियोगिता में हमेशा पदक जीता है।
यह भारत का विश्व चैंपियनशिप में युगल में दूसरा पदक है। इससे पहले ज्वाला गुट्टा और अश्विनी पोनप्पा की जोड़ी ने 2011 में महिला युगल में कांस्य पदक जीता था।
भारत का यह विश्व चैंपियनशिप में कुल मिलाकर 13वां पदक है। पीवी सिंधू ने 2019 में स्वर्ण पदक सहित इस प्रतियोगिता में कुल पांच पदक जीते हैं जबकि साइना नेहवाल ने एक रजत और एक कांस्य पदक हासिल किया है। इनके अलावा किदांबी श्रीकांत ने रजत, लक्ष्य सेन, बी साई प्रणीत और प्रकाश पादुकोण ने कांस्य पदक जीते हैं।
सेमीफाइनल मुकाबले में चिराग का अपनी सर्विस और रक्षण पर नियंत्रण नहीं रहा। सात्विक ने भरपाई करने की कोशिश की लेकिन मलेशियाई जोड़ी के सधे हुए खेल के सामने उनकी एक नहीं चली।
भारतीय जोड़ी ने इससे पहले मलेशिया के खिलाड़ियों के खिलाफ पांचों मुकाबले गंवाए थे और इस बार भी कहानी में कोई बदलाव नहीं हुआ। भारतीयों ने हालांकि अच्छी शुरुआत की और पहले गेम में इंटरवल तक 11-5 से बढ़त हासिल कर ली थी।
मलेशियाई जोड़ी ने हालांकि वापसी करके स्कोर 11-12 कर दिया और जल्द ही दोनों टीमें 16-16 से बराबरी पर पहुंच गई। सोह के करारे शॉट से मलेशियाई जोड़ी ने 18-17 से बढ़त बनाई लेकिन जल्द ही स्कोर 20-20 से बराबर हो गया। चिराग ने गेम प्वाइंट हासिल किया और आरोन की गलती से भारत पहला गेम अपने नाम करने में सफल रहा।
दूसरे गेम में मलेशियाई जोड़ी के खेल में अधिक निखार दिखाई दिया लेकिन भारतीयों ने भी उन्हें आसानी से जीत दर्ज नहीं करने दी। मलेशिया हालांकि 16-11 की बढ़त लेकर मजबूत स्थिति में पहुंच गया और फिर उसने यह गेम जीतने में देर नहीं लगाई।
तीसरे और निर्णायक गेम में दोनों जोड़ियों के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला। भारतीय जोड़ी एक समय 6-5 से आगे थी लेकिन मलेशिया ने जल्द ही स्कोर 10-8 कर दिया। इसके बाद भी दोनों जोड़ियों ने एक दूसरे को कड़ी चुनौती दी और बीच में स्कोर 13-14 और 15-16 भी रहा।
मलेशियाई जोड़ी ने हालांकि चिराग की एक और गलती का फायदा उठाकर चार मैच प्वाइंट हासिल किए और सात्विक का रिटर्न नेट पर लगने के साथ ही मैच का अंत हो गया। (भाषा)
नयी दिल्ली, 27 अगस्त न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित ने भारत के 49वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में शनिवार को शपथ ग्रहण की।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित संक्षिप्त समारोह में न्यायमूर्ति ललित को शपथ दिलाई। शपथ ग्रहण करने के बाद न्यायमूर्ति ललित ने शपथ रजिस्टर पर हस्ताक्षर किए। इसके बाद राष्ट्रपति मुर्मू ने उन्हें बधाई दी।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद, पूर्व उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू और किरेन रीजीजू समेत कई केंद्रीय मंत्री इस समारोह में शामिल हुए। न्यायमूर्ति ललित से पहले प्रधान न्यायाशीध के रूप में सेवाएं देने वाले न्यायमूर्ति एन वी रमण भी इस मौके पर मौजूद थे।
न्यायमूर्ति ललित ने शपथ ग्रहण करने के बाद अपने 90 वर्षीय पिता एवं उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश उमेश रंगनाथ ललित समेत परिवार के अन्य बड़े-बुजुर्गों के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया।
प्रधान न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति ललित का कार्यकाल 74 दिन का होगा। वह 65 वर्ष के होने पर इस साल आठ नवंबर को सेवानिवृत्त होंगे।
न्यायमूर्ति ललित के बाद सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ अगले प्रधान न्यायाधीश हो सकते हैं।
न्यायमूर्ति रमण को विदाई देने के लिए सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) की ओर से आयोजित एक समारोह में न्यायमूर्ति ललित ने शुक्रवार को कहा था कि उनका हमेशा से मानना रहा है कि शीर्ष अदालत की भूमिका स्पष्टता के साथ कानून बनाना है और ऐसा करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि जितनी जल्दी हो सके, बड़ी पीठें गठित हों, ताकि मुद्दों का तुरंत समाधान किया जा सके।
न्यायमूर्ति ललित ने कहा था, ‘‘इसलिए हम यह कहने के लिए कड़ी मेहनत करेंगे कि हां, हमारे पास कम से कम एक संविधान पीठ है, जो पूरे वर्ष काम करेगी।’’
उन्होंने कहा था कि वह जिन क्षेत्रों में काम करना चाहते हैं, उनमें से एक संविधान पीठों के समक्ष मामलों को सूचीबद्ध करना और विशेष रूप से तीन न्यायाधीशों की पीठ को भेजे जाने वाले मामलों से संबंधित विषय हैं।
मामलों को सूचीबद्ध करने के मुद्दे पर उन्होंने कहा था, ‘‘ मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूं कि हम मामलों को सूचीबद्ध करने की प्रक्रिया को यथासंभव सरल, स्पष्ट और पारदर्शी बनाने के लिए कड़ी मेहनत करेंगे।’’
अत्यावश्यक मामलों का उल्लेख करने के संबंध में न्यायमूर्ति ललित ने कहा था कि वह निश्चित रूप से इस पर गौर करेंगे।
उन्होंने कहा था, ‘‘मैं पीठ पर अपने सभी विद्वान सहयोगियों के साथ विचार-विमर्श करूंगा और हम निश्चित रूप से बहुत जल्द इसे सुलझा लेंगे। इससे आपके पास एक स्पष्ट व्यवस्था होगी, जहां संबंधित अदालतों के समक्ष किसी भी अत्यावश्यक मामले का स्वतंत्र रूप से उल्लेख किया जा सकता है।’’
प्रधान न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति ललित के कार्यकाल में संविधान पीठ के मामलों समेत कई अहम मामले शीर्ष अदालत के समक्ष सुनवाई के लिए आने की संभावना है।
शीर्ष अदालत ने हाल में अधिसूचित किया था कि 29 अगस्त से पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष सूचीबद्ध 25 मामलों पर सुनवाई शुरू की जाएगी। (भाषा)
मनीला, 27 अगस्त मनीला के दक्षिण में स्थित एक बंदरगाह की तरफ जाते समय एक नौका में आग लगने के बाद तटरक्षक और अन्य बचावकर्मियों ने 80 से ज्यादा यात्रियों और चालक दल के सदस्यों को बचाया। हवा के कारण आग की लपटें तेजी से फैलने लगी थी, जिससे बचने के लिए कई लोग पानी में कूद गए थे। अधिकारियों ने शनिवार को यह जानकारी दी।
तटरक्षक बल ने कहा कि केवल दो यात्रियों का कोई पता नहीं है और अधिकारी जांच कर रहे हैं कि क्या दोनों लापता हैं या उन्हें बचा लिया गया है और वे शुक्रवार को तलाशी अभियान का नेतृत्व करने वाले अधिकारियों को सूचित किए बिना तुरंत घर चले गए। प्राप्त सूचना के अनुसार, एम/वी एशिया फिलीपींस में 49 यात्री और चालक दल के 38 सदस्य थे।
बचाये गए यात्रियों में से एक के अनुसार, ओरिएंटल मिंडोरो प्रांत के कालापन शहर से आई नौका बटांगस बंदरगाह से करीब एक किलोमीटर दूर थी, तभी नौका के दूसरे डेक से धुआं निकलने लगा और आग की लपटें उठीं।
बंदरगाह से नौका की निकटता की वजह से तटरक्षक जहाजों और आसपास के जहाजों और टगबोट द्वारा यात्रियों और अन्य को तेजी से बचाने में मदद मिली। तटरक्षक बल के अधिकारियों ने कहा कि एक जहाज ने आग बुझाने में तटरक्षकों की मदद की। नौका पर कम से कम 16 कारें और ट्रक भी थे।
बेनेडिक्ट फर्नांडीज नामक यात्री ने शुक्रवार रात को ‘डीजेडएमएम’ रेडियो से कहा, ‘‘मैंने अपने बच्चों को पानी में धक्का दे दिया क्योंकि अगर हम ऊपर से नहीं कूदते, तो हम वास्तव में झुलस जाते क्योंकि हमारे पैर आग की जलन महसूस कर रहे थे।’’ उन्होंने कहा कि उन्हें आग लगी नौका के पास पहुंची अन्य नौका के जरिए बचाया गया और फिर उन्हें टगबोट तक ले जाया गया जो उन्हें तट तक लेकर गया।
तटरक्षक द्वारा जारी बचाव की तस्वीर में 43 वर्षीय महिला यात्री को दिखाया गया जिसे बाद में अस्पताल ले जाया गया। फर्नांडीज ने कहा कि उन्हें और उनके दो बच्चों को अधिकारी होटल ले गए।
तटरक्षक बल ने कहा कि नौका 400 यात्रियों को ले जाने की क्षमता रखती है। उन्होंने कहा कि मामले में जांच जारी है। (एपी)
नई दिल्ली, 27 अगस्त । अंतरराष्ट्रीय फ़ुटबॉल संघ (फीफा) ने अखिल भारतीय फ़ुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) के निलंबन को तत्काल प्रभाव से हटाने का एलान किया है.
एआईएफएफ के आधिकारिक ट्विटर हैंडल ‘इंडियन फ़ुटबॉल टीम’ से किए गए एक ट्वीट में यह जानकारी दी गई है. संस्था ने इस बारे में फीफा की ओर से एआईएफएफ को भेजा गया एक पत्र भी साझा किया है.
वहीं एक अन्य ट्वीट में एआईएफएफ ने यह भी बताया है कि अब अंडर 17 महिला विश्व कप फ़ुटबाॅल 2022 का आयोजन पहले से तय कार्यक्रम के अनुसार होगा.
इस ख़बर के आने के तुरंत बाद केंद्रीय युवा मामलों और खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी शुक्रवार रात एक ट्वीट करके अपने ख़ुशी जताई है.
उन्होंने लिखा, ‘‘फीफा काउंसिल के ब्यूरो ने आज एआईएफएफ के निलंबन को तत्काल प्रभाव से हटाने का फ़ैसला किया है. अब 11 से 30 अक्तूबर, 2022 के बीच होने वाला फीफा अंडर 17 महिला विश्व कप 2022 का आयोजन पहले से तय योजना के अनुसार किया जाएगा. फ़ुटबॉल के सभी प्रशंसकों की यह जीत है!’’
एआईएफएफ ने अपने बयान में कहा है कि तीसरे पक्ष के अनुचित प्रभाव के चलते एआईएफएफ का किया गया निलंबन फीफा काउंसिल ने हटाने का फ़ैसला लिया है.
बयान के अनुसार यह फ़ैसला इसलिए आया क्योंकि ‘‘फीफा को यह स्पष्ट हो गया कि एआईएफएफ एक्ज़ीक्यूटिव कमेटी की शक्तियों को लेने के लिए बनाई गई प्रशासकों की समिति के आदेश का ख़त्म कर दिया गया है और एआईएफएफ प्रशासन ने अपने दैनिक मामलों पर पूरा नियंत्रण हासिल कर लिया है.’’
बयान में यह भी कहा गया है कि फीफा और एशियाई फ़ुटबॉल महासंघ यानी एएफसी हालात की निगरानी करना जारी रखेंगे और सही समय पर चुनाव हासिल कराने में एआईएफएफ की मदद करेंगे.
इस निर्णय के बाद एआईएफएफ के कार्यवाहक महासचिव सुनंदो धर ने कहा, ‘भारतीय फ़ुटबॉल का सबसे काला समय आखि़रकार अब ख़त्म हो गया है. 15 अगस्त की आधी रात को एआईएफएफ पर लगा निलंबन फीफा ने हटा लिया है.’ (bbc.com/hindi)
नयी दिल्ली, 27 अगस्त कांग्रेस ने दिल्ली की आबकारी नीति से जुड़े कथित घोटाले को लेकर शनिवार को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया पर निशाना साधा। पार्टी ने कहा कि सिसोदिया या तो इस्तीफा दें या फिर उन्हें हटाया जाए।
कांग्रेस महासचिव अजय माकन ने आरोप लगाया कि केजरीवाल उपमुख्यमंत्री पद से सिसोदिया को इसलिए नहीं हटा रहे हैं, क्योंकि मामले के तार उनसे जुड़ जाएंगे।
माकन ने आबकारी नीति पर केजरीवाल को बहस की चुनौती भी दी। उन्होंने संवाददाताओं से कहा, “केजरीवाल जी से शराब घोटाले की बात करो तो वह शिक्षा की बात करेंगे। हम उनसे कहना चाहते हैं कि वह स्पष्ट करें कि शराब घोटाले पर उनका क्या कहना है।”
माकन ने कहा, “केजरीवाल सरकार ने जो शराब की दुकानें खोलीं, उनमें से 90 प्रतिशत से ज्यादा दुकानें आवासीय इलाकों में हैं। यह मास्टर प्लान का उल्लंघन है।”
उन्होंने कहा, “नगर निगम और डीडीए (दिल्ली विकास प्राधिकरण) इन दुकानों को सील कर सकते थे, लेकिन उन्होंने समय रहते ऐसा नहीं किया। इसलिए भाजपा पर भी सवाल खड़े होते हैं।”
कांग्रेस नेता ने दावा किया कि केजरीवाल सरकार ने शराब माफियाओं के 144 करोड़ रुपये का शराब लाइसेंस शुल्क माफ किया।
उन्होंने कहा, “यह पूरी तरह से भ्रष्टाचार का मामला है। आम आदमी पार्टी (आप) भ्रष्टाचार हटाने के नाम पर सत्ता में आई थी, लेकिन अब केजरीवाल और सिसोदिया खुद भ्रष्टाचार में संलिप्त हैं।”
माकन ने कहा, “अगर सिसोदिया इस्तीफा नहीं देते हैं तो उन्हें हटा देना चाहिए। केजरीवाल जी उन्हें नहीं हटा रहे, क्योंकि ऐसा करने बाद इस मामले के तार उनसे जुड़ जाएंगे।”
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने 19 अगस्त को सिसोदिया और दिल्ली के पूर्व आबकारी आयुक्त ए गोपीकृष्ण के आवासों सहित कई स्थानों पर तलाशी थी। इससे पहले, केंद्रीय एजेंसी ने पिछले साल नवंबर में लाई गई आबकारी नीति को तैयार करने एवं उसके क्रियान्वयन में कथित भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के आरोपों को लेकर एक प्राथमिकी दर्ज की थी। (भाषा)
नई दिल्ली, 27 अगस्त । ओलंपिक में भाला फेंक स्पर्द्धा के स्वर्ण पदक विजेता नीरज चोपड़ा ने स्विट्ज़रलैंड का लुसाने लीग जीतकर डायमंड लीग एथलेटिक्स मीट का ख़िताब अपने नाम कर लिया है.
ऐसा करने वाले वे पहले भारतीय बन गए हैं. इस जीत के साथ ही वे सितंबर की शुरुआत में स्विट्ज़रलैंड के ज़्यूरिख में होने वाले डायमंड लीग के फ़ाइनल में पहुंच गए हैं.
साथ ही उन्होंने हंगरी के बुडापेस्ट में अगले साल होने वाले विश्व चैंपियनशिप के लिए भी क्वालिफ़ाई कर लिया है.
नीरज चोपड़ा ने शुक्रवार को अपने पहले प्रयास में 89.08 मीटर दूर तक भाला फेंका. यह उनके करियर का दूसरा सबसे बढ़िया प्रयास है.
हाल ही में नीरज चोपड़ा ने वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में रजत पदक जीता था.
फ़ाइनल में नीरज ने 88.13 मीटर भाला फेंका था. ऐसा करने वाले वे अंजू बॉबी जॉर्ज (2003) के बाद केवल दूसरे भारतीय एथलीट बने थे.
इसी वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप के फ़ाइनल के दौरान नीरज को चोट लगी थी जिसकी वजह से वे कॉमनवेल्थ गेम्स में हिस्सा नहीं ले पाए थे.
एक साल पहले टोक्यो ओलंपिक में अप्रत्याशित रूप से स्वर्ण पदक जीता था. तब उन्होंने 87.58 मीटर जैवलिन थ्रो (भाला फेंक) के साथ भारत की झोली में गोल्ड मेडल डाला था. (bbc.com/hindi)
अनूपपुर, 27 अगस्त मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले में एक ट्रक और मोटरसाइकिल की टक्कर में तीन लोगों की मौत हो गई। पुलिस ने शनिवार को यह जानकारी दी।
अधिकारियों ने बताया कि घटना शुक्रवार देर रात राष्ट्रीय राजमार्ग-43 पर गोदारू नाला क्षेत्र के पास हुई।
भालुमदा थाना प्रभारी जोधन सिंह के मुताबिक, मृतकों की उम्र 20 से 22 साल के बीच है।
उन्होंने बताया कि मोटरसाइकिल पर सवार तीनों लोग अपने एक दोस्त से मिलने के बाद घर लौट रहे थे, तभी एक ट्रक ने उन्हें टक्कर मार दी।
सिंह के अनुसार, हादसे के तुरंत बाद ट्रक चालक वाहन लेकर भाग गया।
उन्होंने बताया कि उक्त घटना के संबंध में मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी गई है। (भाषा)
नयी दिल्ली, 27 अगस्त देश के 49वें प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) के रूप में शनिवार को शपथ ग्रहण करने वाले न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित न्यायपालिका के प्रमुख के रूप में अपने 74 दिन के कार्यकाल में उच्चतम न्यायालय में मामलों को सूचीबद्ध किए जाने एवं अत्यावश्यक मामलों का उल्लेख किए जाने समेत तीन अहम क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने का इरादा रखते हैं।
न्यायमूर्ति ललित देश के दूसरे ऐसे प्रधान न्यायाधीश हैं, जो बार से सीधे उच्चतम न्यायालय की पीठ में पदोन्नत हुए।
उन्होंने शुक्रवार को उन तीन क्षेत्रों का उल्लेख किया जिन पर वह देश की न्यायपालिका के प्रमुख के रूप में अपने 74 दिनों के कार्यकाल के दौरान काम करना चाहते हैं। न्यायमूर्ति ललित ने कहा कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मेहनत करेंगे कि उच्चतम न्यायालय में कम से कम एक संविधान पीठ पूरे साल कार्य करे।
न्यायमूर्ति ललित से पहले न्यायमूर्ति एस. एम. सीकरी मार्च 1964 में शीर्ष अदालत की पीठ में सीधे पदोन्नत होने वाले पहले वकील थे। वह जनवरी 1971 में 13वें सीजेआई बने थे।
न्यायमूर्ति ललित का सीजेआई के रूप में तीन महीने से भी कम का संक्षिप्त कार्यकाल होगा और वह इस साल आठ नवंबर को सेवानिवृत्त होंगे। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष है।
पूर्व सीजेआई एन वी रमण को विदाई देने के लिए सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) की ओर से आयोजित एक समारोह में न्यायमूर्ति ललित ने कहा था, ‘‘मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूं कि हम मामलों को सूचीबद्ध करने की प्रक्रिया को यथासंभव सरल, स्पष्ट और पारदर्शी बनाने के लिए कड़ी मेहनत करेंगे।’’
सीजेआई के रूप में न्यायमूर्ति ललित के कार्यकाल में संविधान पीठ के मामलों समेत कई अहम मामले शीर्ष अदालत के समक्ष सुनवाई के लिए आने की संभावना है।
शीर्ष अदालत ने हाल ही में अधिसूचित किया था कि 29 अगस्त से पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ वाले 25 मामलों पर सुनवाई शुरू की जाएगी।
पांच न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष आने वाले महत्वपूर्ण मामलों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को आरक्षण देने वाले संविधान (103वां संशोधन) अधिनियम, 2019 को चुनौती देने वाली, व्हाट्सऐप निजता नीति को चुनौती देने वाली याचिका, सदन में भाषण या वोट देने के लिए रिश्वत लेने को लेकर आपराधिक अभियोजन से छूट का दावा करने वाले सांसदों या विधायकों का मामला शामिल है।
न्यायमूर्ति ललित को 13 अगस्त, 2014 को उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। तब वह वरिष्ठ अधिवक्ता थे।
वह मुसलमानों में ‘तीन तलाक’ की प्रथा को अवैध ठहराने समेत कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे हैं। पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अगस्त 2017 में 3 : 2 के बहुमत से ‘तीन तलाक’ को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। इन तीन न्यायाधीशों में न्यायमूर्ति ललित भी थे।
उन्होंने राजनीतिक रूप से संवेदनशील अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में सुनवाई से खुद को जनवरी 2019 में अलग कर लिया था।
मामले में एक मुस्लिम पक्षकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने संविधान पीठ को बताया था कि न्यायमूर्ति ललित उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के वकील के रूप में एक संबंधित मामले में वर्ष 1997 में पेश हुए थे।
हाल ही में, न्यायमूर्ति ललित की अध्यक्षता वाली एक पीठ मामलों की सुनवाई के लिए शीर्ष अदालत के सामान्य समय से एक घंटे पहले सुबह साढ़े नौ बजे बैठी थी।
न्यायमूर्ति ललित ने कहा था, ‘‘मेरे विचार से आदर्श रूप से हमें सुबह नौ बजे बैठना चाहिए। मैंने हमेशा कहा है कि अगर हमारे बच्चे सुबह सात बजे स्कूल जा सकते हैं, तो हम नौ बजे क्यों नहीं आ सकते।’’
न्यायमूर्ति ललित की अगुवाई वाली पीठ ने 22 अगस्त को आम्रपाली घर विक्रेताओं के मामले की सुनवाई के लिए तीन सितंबर (शनिवार) को सुबह साढ़े 10 बजे से दोपहर एक बजे का समय निर्धारित किया, जबकि इस दिन शीर्ष अदालत में छुट्टी होती है।
एक अन्य महत्वपूर्ण फैसले में न्यायमूर्ति ललित की अगुवाई वाली पीठ ने कहा था कि त्रावणकोर के पूर्व शाही परिवार के पास केरल में ऐतिहासिक श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के प्रबंधन का अधिकार है।
उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) कानून के तहत एक मामले में बंबई उच्च न्यायालय के ‘‘त्वचा से त्वचा के संपर्क’’ संबंधी विवादित फैसले को खारिज कर दिया था। शीर्ष अदालत ने कहा था कि यौन हमले का सबसे महत्वपूर्ण घटक यौन मंशा है, त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं।
नौ नवंबर, 1957 को जन्मे न्यायमूर्ति ललित जून, 1983 में वकील बने और उन्होंने दिसंबर 1985 तक बंबई उच्च न्यायालय में वकालत की थी। वह जनवरी 1986 में दिल्ली आकर वकालत करने लगे और अप्रैल 2004 में उन्हें शीर्ष अदालत द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किया गया।
उन्हें 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में सुनवाई के लिए केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) का विशेष लोक अभियोजक नियुक्त किया गया था। (भाषा)
झारखंड, 27 अगस्त । झारखंड में पैदा हुए ताज़ा राजनीतिक संकट के बीच यूपीए विधायकों की बैठक लगातार दूसरे दिन शनिवार को बुलाई गई है.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा की सदस्यता पर मंडरा रहे ख़तरे के बीच हो रही इस बैठक को काफ़ी अहम माना जा रहा है. यह बैठक शनिवार की सुबह 11 बजे मुख्यमंत्री सोरेन के आवास पर बुलाई गई है.
मीडिया में चल रही कई अटकलें
यह बैठक इसलिए अहम है कि मीडिया में ख़बरें चल रही हैं कि झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को विधायक के रूप में अयोग्य ठहरा दिया है. ख़बरों के अनुसार इसकी सिफ़ारिश केंद्रीय चुनाव आयोग को भेजी जा रही है.
यह भी दावा किया गया है कि शनिवार को केंद्रीय चुनाव आयोग अधिसूचना जारी करेगा. इस अधिसूचना को राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी और राज्य विधानसभा के अध्यक्ष को भेजा जाएगा.
यदि ऐसा होता है तो हेमंत सोरेन विधायक नहीं रह जाएंगे. फ़िलहाल वे बरहेट विधानसभा सीट से विधायक हैं.
एक अन्य ट्वीट में सोरन ने लिखा, ‘‘दुर्भाग्य है हमारा, हम आदिवासियों का कि विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर देश के प्रधानमंत्री एवं आदिवासी राष्ट्रपति ने देश के आदिवासी समाज को शुभकामना सन्देश देना भी उचित नहीं समझा. इनकी नज़र में हम आदिवासी नहीं, वनवासी हैं.’’
विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त को मनाया जाता है.
हेमंत सोरेन ने किया बीजेपी पर प्रहार
इस बीच मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने ट्विटर हैंडल से किए एक ट्वीट में केंद्र सरकार और बीजेपी पर निशाना साधा है.
अपने ट्वीट में उन्होंने लिखा, ‘‘केंद्र सरकार और भाजपा ने जितना कुचक्र रचना है रच ले, कोई फ़र्क नहीं पड़ता. मैं आदिवासी का बेटा हूँ. झारखण्ड का बेटा हूँ. हम डरने वाले नहीं, लड़ने वाले लोग हैं.’’
उन्होंने एक अन्य ट्वीट में लिखा, ‘‘आदिवासी को वनवासी कहने वाले लोग हमें क्या डराएंगे! हम आदिवासी हैंए हमारे डीएनए में डर-भय नहीं है.’’
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार और कुर्सी का भूखा नहीं हूं. (bbc.com/hindi)
इंसान भी एक हद तक मौसम को प्रभावित कर सकते हैं. आज क्लाउड सीडिंग यानी कृत्रिम बारिश का ज्यादातर इस्तेमाल सूखाग्रस्त इलाकों में पानी पहुंचाने के लिए किया जाता है. लेकिन अतीत में इसका दुरुपयोग भी हुआ है.
डॉयचे वैले पर कार्ला ब्लाइकर की रिपोर्ट-
उत्तरी गोलार्ध के देश लू, जंगल की आग और बेतहाशा सूखे से लगातार जूझते आ रहे हैं. इन कुदरती आफतों ने वैज्ञानिकों को मौसम में खुद ही बदलाव लाने की कोशिश के लिए उकसाया है.
चीन इस समय रिकॉर्ड स्तर की गर्म हवाओं से जूझ रहा है. पिछले दो महीनों से सिहुआन प्रांत में तापमान नियमित रूप से 40 डिग्री सेल्सियस के पार जा रहा है. एशिया की सबसे लंबी नदी, यांगत्सी के जलस्तर में भी रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गई है. चीन के जल संसाधन मंत्रालय के मुताबिक इस वजह से इलाके में पड़े सूखे ने, "ग्रामीणों और मवेशियों की पीने के पानी की किल्लत बढ़ा दी है और फसल को भी खराब किया है."
गंभीर हालात से निपटने के लिए चीन सरकार ने "क्लाउड सीडिंग" की मदद से बारिश लाने की कोशिश शुरू की है.
क्लाउड सीडिंग कैसे काम करती है?
भाप वाली हवा वायुमंडल में ऊपर उठती जाती है, ठंडी होती है और बर्फीले कण बनाती है जब ये कण पर्याप्त मात्रा में एक साथ आ जुड़ते हैं तो बादल बन जाता है. बादल के भीतर, बर्फीले कण जुड़े होते हैं.
जब आपस में गुंथी हुई बूंदे आकार में पर्याप्त रूप से बड़ी और भारी हो जाती हैं, तो वो वर्षा के रूप में जमीन पर गिरती हैं. वो बारिश हो सकती है, या बर्फ या फिर बौछारें. ये निर्भर करता है तापमान और दूसरी मौसमी स्थितियों पर.
क्लाउड सीडिंग में, बर्फ जैसे ही एक पारदर्शी क्रिस्टल सरीखे नमक यानी सिल्वर आयोडाइड के छोटे कण, बादलों में मिला दिए जाते हैं. इस प्रक्रिया में विमान या ड्रोन से ये कण बादलों पर गिराए जाते हैं कणों को जमीन से भी बादलों में दागा जा सकता है.
कई देशों में मौसम वेबसाइटें चलाने वाली स्पानी कंपनी मीटियोर्ड से जुड़े मौसमविज्ञानी होहे मिग्युल वाइनस ने डीडब्लू को बताया कि इस तरीके के तहत, बादल के भीतर स्थित भाप, सिल्वर आयोडाइड कणों के इर्दगिर्द बूंदे बनाने लगती हैं.
सिल्वर आयोडाइड मिलाते ही बूंदे आपस में जुड़कर पर्याप्त भारी हो जाती हैं. और बादलों से बारिश बनकर गिरने लगती हैं.
जिस तरीके से ये प्रक्रिया काम करती है उससे पता चलता है कि चीन को बादलों को पानी से भरने के लिए फिलहाल इतना क्यों जूझना पड़ रहा है. आसमान के कुछ हिस्सों में, जहां आप बारिश तैयार करना चाहते हैं, वहां कम से कम कुछ बादलों का पहले से होना भी जरूरी है. लेकिन चीन के कुछ इलाकों में जहां पानी की सबसे सख्त जरूरत है, वहां ये तरीका कारगर नहीं हो पा रहा क्योंकि उतना बादल कवर मिल ही नहीं रहा है. बारिश के बादलों को अपने स्तर पर बना सकना इंसानो के बस में अभी नहीं है.
कौन कराता है बारिश – और क्यों?
1940 के दशक में जनरल इलेक्ट्रिक रिसर्च लैबोरेटरी में अमेरिकी वैज्ञानिकों ने पहली बार क्लाउड सीडिंग की कोशिशें शुरू की थीं. आज दुनिया के कई मुल्कों में ये तरीका इस्तेमाल किया जाता है. चीन का उदाहरण सबसे ताजा है. उसने 2008 में ओलम्पिक खेलों से पहले बारिश बनाने की इस तकनीक का उपयोग किया था.
रूस भी छुट्टियों के बड़े अवसरों से पहले क्लाउड सीडिंग कराने के लिए जाना जाता है ताकि सार्वजनिक समारोहों के रंग में बारिश से भंग न पड़ जाए. 2016 में मई दिवस की छुट्टी को बारिश-मुक्त रखने के लिए रूस ने क्लाउड सीडिंग पर 8 करोड़ 60 लाख रूबल (करीब 14 लाख डॉलर) खर्च कर डाले थे. समारोह के दिन मॉस्को में मौसम खिला हुआ था.
आज इस तरीके का इस्तेमाल सूखा-ग्रस्त इलाकों में बारिश लाने के लिए किया जाता है. चीन के अलावा, अमेरिका भी क्लाउड सीडिंग का इस्तेमाल करता रहा है. अभी हाल फिलहाल, सूखे की चपेट में आए उसके दो पश्चिमी राज्यों- इडाहो और व्योमिंग में क्लाउड सीडिंग की गई थी.
थोड़ा और पीछे मुड़कर देखें, अमेरिका ने वियतनाम युद्ध के समय भी मॉनसून की अवधि को बढ़ाने के लिए क्लाउड सीडिंग को हथियार की तरह इस्तेमाल किया था. वियतनामी सेना की सप्लाई चेन को अवरुद्ध कर दिया गया था और ज्यादा बारिश से जमीन को दलदली बनाकर आवाजाही भी ठप कर दी थी.
अप्रैल 1986 में सोवियत वायु सेना के पायलटों ने चेर्नोबिल के आसमान से निकलते बादलों की सीडिंग की थी. वहां एटमी ऊर्जा संयंत्र में विस्फोट हो गया था, और बादलों को रूस की राजधानी मॉस्को की ओर उड़ने से रोका जाना था. शासन ने उस अभियान को कामयाब बताया था. रेडियोएक्टिव बादल रूसी शहरों का रुख नहीं कर सके. बल्कि उनमें भरा एटमी कचरा, बेलारूस के ग्रामीण इलाकों और वहां रहने वाले सैकड़ों हजारों लोगों पर जा गिरा.
क्लाउड सीडिंग विवादित क्यों है?
जिन दो घटनाओं का उल्लेख ऊपर किया गया है, ये दो उदाहरण बताते हैं कि एक बड़ी भलाई के लिए विकसित की गई तकनीकी का सत्ताधारी गलत इस्तेमाल भी कर सकते हैं. लेकिन कुछ और कारक भी हैं जिनकी बिना पर जानकारों के मन में क्लाउड सीडिंग के प्रभावों को लेकर संदेह हैं.
एक दलील ये है कि अगर सूखे से निपटने के लिए अपने इलाके के ऊपर आप बादलों में पानी तैयार करते हैं तो वे बादल दूसरे इलाकों की ओर बारिश नहीं ले जाएंगें जहां उससे मिलने वाले बड़ी राहत की ज्यादा जरूरत हो सकती थी.
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में अप्लाइड फिजिक्स के प्रोफेसर डेविच कीथ कहते हैं, "अगर आप एक जगह पर ही बारिश करा देते हैं तो आगे के लिए उसका प्रवाह कम कर देते हैं." प्रोफेसर कीथ की रिसर्च- जलवायु विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नीति के बीच अंतर्संबंधों और तालमेल की छानबीन करती है. वो इस प्रक्रिया को "इसकी टोपी उसके सिर" वाले मुहावरे से जोड़ कर देखते हैं. वो कहते हैं, "इसमें जीतने वाले और गंवाने वाले दोनों ही अंतर्निहित हैं."
जानकार इस बारे में भी आगाह करते है कि मौसम को नियंत्रण करना, इंसानी बूते के बाहर है. इसमें गड़बड़ी तय है. और चिंता भी है कि ऐसा करने से जलवायु परिवर्तन से निपटने के ज्यादा पारंपरिक उपायों की ओर से ध्यान हट सकता है.
मौसमविज्ञानी होहे मिग्वुअल वाइनस कहते हैं, "बड़े पैमाने पर क्लाउड सीडिंग समेत तमाम जियोइंजीनियरिंग, एक खतरनाक प्रयोग है जो बेकाबू होकर अनचाहे, अवांछित नतीजों की ओर धकेल सकता है."
वो कहते हैं, "अगर हम सूखे या तूफान के असर को कम करना चाहते हैं, जो कि खासतौर पर मौजूदा ग्लोबल वॉर्मिंग के संदर्भ में काफी तीव्र हैं, तो हमें अनुकूलन और न्यूनीकरण के उपायों में निवेश करना चाहिए." (dw.com)
जंगल की आग और बाढ़ जैसी मौसमी आपदाओं से उलट सूखा धीरे धीरे रेंगते हुए आता है, और चुपचाप बहुत बड़े पैमाने पर तबाही मचाता है. आखिर किसे कहते हैं सूखा? और इससे खुद को सुरक्षित रखने के लिए हम क्या कर सकते हैं?
डॉयचे वैले पर नताली मुलर की रिपोर्ट-
प्रचंड तपिश के गर्मियों के मौसम और बारिश की किल्लत से जंगल के जंगल और खेतीबाड़ी झुलस कर रह जाती है. वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि यूरोप कम से कम 500 साल में पहली बार अब तक के सबसे बुरे सूखे की चपेट में है.
यूरोपीय आयोग की साइंस और नॉलेज सर्विस के शुरुआती निष्कर्ष इस हफ्ते प्रकाशित हुए हैं. उपरोक्त आकलन उन्हीं नतीजों पर आधारित है. यह ऐसे समय में आया है जब नदियों के जलस्तर में कमी से जलबिजली उत्पादन और जहाजों से माल की ढुलाई पर असर पड़ा है.
सिर्फ यूरोप ही अकेला प्रभावित क्षेत्र नहीं है. संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि हर साल दुनिया भर में साढ़े पांच करोड़ लोग सूखे से प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित होते हैं. सबसे ज्यादा प्रभावित महाद्वीप अफ्रीका है जो 44 फीसदी सूखे की चपेट में है.
हालांकि वैज्ञानिक जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन की वजह से सूखे की आवृत्तियां बढ़ गई हैं, वह और तीव्र होने लगा है और उसकी मियाद भी लंबी होने लगी है. इसके बावजूद सूखे का अंदाजा लगाना या निगरानी करना आसान काम नहीं है.
तो फिर सूखा ठीक ठीक क्या है?
संक्षेप में, सूखे से आशय, वर्षा की कमी से बनने वाली सामान्य से अधिक शुष्क स्थितियों की अवधि से है.
सूखा एक पेचीदा परिघटना है जो हफ्तों, महीनों या कई बार सालों तक खिंच सकता है और अक्सर लोगों के जीवन और अर्थव्यवस्थाओं पर उसके बहुत बड़े निहितार्थ होते हैं. वैज्ञानिक आमतौर पर सूखे को चार श्रेणियों में बांटते हैं. मीटिरियोलॉजिकल ड्राउट यानी मौसमी सूखा जिसे कहा जाता है वह शुष्क मौसम पैटर्नों, औसत से कम बारिश और बर्फबारी की एक लंबी खिंची अवधि के बाद आता है. जब झरनों, नदियों, जलाशयों और भूजल के स्तर में उल्लेखनीय गिरावट आ जाती है तो उसे हाइड्रोलॉजिकल ड्राउट यानी जलीय सूखा कहते हैं.
एग्रीकल्चरल ड्राउट यानी कृषि सूखा तब होता है जब मिट्टी में नमी कम होने लगती है और उसका असर पौधों और फसलों पर होने लगता है. जब पानी की किल्लत, चीजों की मांग और आपूर्ति पर असर डालती है, जैसे कि जहाजों से माल ढुलाई या जलबिजली उत्पादन में, तो उसे सोशियोइकोनमिक ड्राउट यानी सामाजिकआर्थिक सूखा कहा जाता है.
जर्मनी के लाइपजिष शहर के हेल्महोल्त्स पर्यावरण शोध केंद्र में वैज्ञानिक ओल्डरिष राकोवेक कहते हैं कि उपरोक्त चारों के चारों परिदृश्य या मौसमी बदलाव अक्सर एक साथ टूट पड़ते हैं लेकिन यह हमेशा नहीं होता. यूरोप में मौजूदा हालात ऐसे ही हैं.
राकोवेक कहते हैं, "लेकिन आमतौर पर सबसे पहले मौसमी सूखा ही पड़ता है." बारिश का रिकॉर्ड ही सामान्य रूप से सूखे का पहला संकेत होता है और उसके कुछ समय बाद नदियां सिकुड़ने लगती हैं और वनस्पति सूखने लगती है.
शुष्क स्थितियों को आधिकारिक रूप से सूखा कब कहते हैं?
अन्य चीजों के साथ साथ वर्षा, वनस्पति की सेहत और मिट्टी की नमी का प्रतिनिधित्व करने वाले अलग अलग सूचकांकों का उपयोग करते हुए वैज्ञानिक सूखे को मॉनीटर करते हैं. राकोवेक कहते हैं कि लंबी अवधि के डाटा के निरीक्षण के बाद, जब स्थितियां सामान्य कही जाने वाली लकीर को पार कर लेती हैं- तो ये स्पष्ट हो जाता है कि सूखा शुरू हो चुका है. इसी तरह, जब स्थितियां अपनी स्वाभाविक या प्रचलित अवस्था में लौट आती हैं तो सूखे की अवधि समाप्त मान ली जाती है.
हेल्महोल्त्स पर्यावरण शोध केंद्र में जर्मनी का सूखा मॉनीटर मिट्टी में नमी को खंगालकर, कृषि सूखे का आकलन करता है. उसके मॉडल के मुताबिक सूखा तब शुरू हुआ मान लिया जाता है जब मिट्टी की नमी उस स्तर पर पहुंच जाती है जो एक लंबी अवधि के दौरान सिर्फ 20 फीसदी वर्षों में ही देखा गया हो.
इस सप्ताह प्रकाशित यूरोपीय कमीशन के सूखे से जुड़े आकलन में शोधकर्ताओं ने, वर्षा, मिट्टी की नमी और पौधों पर दबाव को मापने वाले एक समन्वित सूखा संकेतक का उपयोग किया था. इसके जरिए उन्होंने ये नतीजा निकाला कि मौजूदा हालात पांच सदियों में सबसे खराब दिखते हैं.
रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि यूरोप का करीब आधा भूभाग सूखे के लिहाज से चेतावनी के स्तर पर पहुंच चुका है यानी मिट्टी की नमी में साफतौर पर कमी आ चुकी है. 17 फीसदी अलर्ट की अवस्था में था जहां वनस्पति भी प्रभावित हो चुकी है.
सुधार और भविष्य की जरूरतें
किसी क्षेत्र में सुधार की क्षमता इस पर निर्भर करेगी कि वहां पड़ा सूखा कितना गंभीर और कितनी लंबी मियाद वाला है. यह भी, कि मिट्टी को फिर से तर करने लायक, भूजल को रिचार्ज करने लायक और जलाशयों को सराबोर करने लायक, पर्याप्त बारिश हुई है या नहीं.
यूरोपीय आयोग के संयुक्त शोध केंद्र में वरिष्ठ शोधकर्ता आंद्रेया टोरेटी कहते हैं कि सूखों से निपटने के लिए जल प्रबंधन तरीकों में सुधार करना होगा, लोगों को उसमें जोड़ना होगा और ग्लोबल वॉर्मिंग को पूर्व औद्योगिक स्तरों से ऊपर डेढ़ डिग्री सेल्सियस पर सीमित करना होगा.
टोरेटी कहते हैं, "मध्यम से दीर्घ अवधि में वैश्विक स्तर पर हमें ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में इतनी कटौती करनी होगी कि वे कम से कम पैदा हों और अतिरिक्त ग्लोबल वॉर्मिंग के जोखिम को कम किया जा सके."
राकोवेक ने जोर देकर कहा कि "प्रचंड सूखे के हालात से निपटने के लिए नये प्रौद्योगिकीय विकास" की जरूरत है.
क्षेत्रीय स्तर पर विशाल जलाशयों का निर्माण, भूमिगत भंडारण, जरूरत के लिए पानी को बचाए रख सकता है. जड़ों तक पहुंचने वाली सिंचाई की स्मार्ट, तेज तकनीक पानी को बेकार जाने से भी रोक सकती है और पौधों को स्वस्थ रख सकती है. राकोवेक कहते हैं कि ताप-निरोधी फसलों को उगाने से सूखे के दौरान होने वाले नुकसान कम किए जा सकते हैं.
एकल पेड़ों के बजाय मिश्रित वनों को उगाना भी एक अच्छा विचार है. क्योंकि विविध प्रजातियां पानी को बेहतर ढंग से संरक्षित रख सकती हैं और सूखे से बच सकती हैं.
राकोवेक कहते हैं कि अंततः यूरोप को प्रचंडताओं के हिसाब से ढलना ही होगा. (dw.com)
दक्षिण कोरिया के संगीत के-पॉप के प्रशंसकों की संख्या पूरी दुनिया में लगातार बढ़ रही है. भारत से लेकर जर्मनी तक लोग इसे पसंद कर रहे हैं. आखिर इसकी वजह क्या है?
डॉयचे वैले पर मारिया जॉन सांचेज की रिपोर्ट-
दक्षिण कोरिया दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ते म्यूजिक मार्केटों में से एक बन चुका है. इसकी वजह है के-पॉप. कोरियाई ड्रामा और संगीत को के-पॉप के तौर पर जाना जाता है. पूरी दुनिया में तेजी से लोकप्रिय हो रहे के-पॉप म्यूजिक की वजह से देश को हर साल अरबों यूरो की कमाई हो रही है.
दक्षिण कोरियाई पॉप म्यूजिक इतना लोकप्रिय हो चुका है कि जर्मनी सहित पूरी दुनिया में सोशल मीडिया और दूसरे नेटवर्क पर इसके प्रशंसकों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. इस म्यूजिक को लेकर लोग काफी उत्साहित हो रहे हैं. आखिर इसकी वजह क्या है? इस म्यूजिक को पसंद करने वाले लोगों की संख्या इतनी ज्यादा क्यों बढ़ रही है?
मस्ती और समुदाय का मेल
मेलिसा नदुग्वा कहती हैं, "के-पॉप कुछ ऐसा है जिससे मुझे काफी खुशी मिलती है.” 21 वर्षीय नदुग्वा के-फ्यूजन एंटरटेनमेंट की सह-संस्थापक हैं. यह जर्मनी का सबसे बड़ा के-पॉप प्रशंसक समूह है. आखिर के-पॉप में ऐसी क्या खासियत है जो नदुग्वा को उत्साहित करता है?
वह कहती हैं, "संगीत सुनना, कोरियोग्राफी का अभ्यास करना और फिर दूसरों के साथ मिलकर डांस करना काफी मजेदार लगता है.” एक साथ मिलकर डांस करना न सिर्फ के-पॉप के प्रशंसकों के बीच लोकप्रिय गतिविधि है, बल्कि यह इस म्यूजिक का मूल हिस्सा भी है.
कोरियन पॉप स्टार को के-पॉप आइडॉल (कलाकार) भी कहा जाता है. इनका प्रदर्शन भी उतना ही मायने रखता है जितना म्यूजिक. ये कलाकार सब कुछ करते हैं, जैसे कि गाते हैं, एक्टिंग करते हैं, डांस करते हैं और मॉडल भी बनते हैं. इस म्यूजिक की सफलता का रहस्य आकर्षक धुन, विशेष तरह की कोरियोग्राफी, और बेहतर प्रदर्शन करने वाले कलाकार हैं.
जर्मनी के फ्रैंकफर्ट में के-पॉप के सबसे ज्यादा प्रशंसक
के-पॉप के कई स्टार को उनके प्रशंसक बेहतर दिखने को लेकर उन्हें अपना आदर्श मानते हैं. पिछले कुछ वर्षों से, जर्मनी में कोरियाई ब्यूटी एंड केयर प्रॉडक्ट की मांग में काफी तेजी देखने को मिली है. फ्रैंकफर्ट सहित जर्मनी के कई शहर में ऐसे सैलून की संख्या बढ़ी है जो कोरियाई ब्यूटी केयर प्रॉडक्ट बेच रहे हैं और त्वचा से जुड़ी सेवाएं उपलब्ध करा रहे हैं. जर्मनी में सबसे ज्यादा कोरियाई लोग फ्रैंकफर्ट में ही रहते हैं. यह शहर अब जर्मनी का के-पॉप महानगर बन गया है.
मई 2022 में, यूरोप का पहला सबसे बड़ा के-पॉप कार्यक्रम फ्रैंकफर्ट में आयोजित किया गया था. इसमें 70,000 दर्शक शामिल हुए थे. इसका नाम था KPop.Flex. इस कार्यक्रम में मॉनस्टा एक्स, ममामो, और एनसीटी ड्रीम जैसे के-पॉप स्टार शामिल हुए थे. दक्षिण कोरिया का निजी टेलीविजन और रेडियो स्टेशन सियोल ब्रॉडकास्टिंग सिस्टम (एसबीएस) भी इस आयोजन में शामिल था. उसे शायद ही उम्मीद थी कि जर्मनी में के-पॉप इतना लोकप्रिय हो सकता है.
के-पॉप डांस ग्रुप शापगैंग की लीडर कोकी बी ने कहा, "अमेरिका, एशियाई और अन्य यूरोपीय देशों की तुलना में जर्मनी में के-पॉप समुदाय अभी भी छोटा है. हालांकि, इस साल हमने एक बड़ा बदलाव देखा है. कोरियाई कलाकारों ने कई अन्य जगहों पर भी कार्यक्रम किए हैं, लेकिन फ्रैंकफर्ट जैसा आयोजन कहीं और देखने को नहीं मिला.”
फ्रैंकफर्ट का 12 लोगों का यह ग्रुप कई प्रतियोगिताओं के साथ-साथ टिक-टॉक पर भी प्रदर्शन करता है. ये लोग लोकप्रिय के-पॉप बैंड कोरियोग्राफी पर डांस करते हैं. साथ ही, वे खुद से भी कोरियोग्राफी करते हैं.
बेहतर प्रदर्शन की वजह से हो रहा लोकप्रिय
कोकी बी कहती हैं कि के-पॉप संगीत के प्रति उनके आकर्षण की वजह यह है कि इसमें डांस, रंग, चेहरे की भाव-भंगिमा पर ध्यान केंद्रित किया जाता है. साथ ही, इसे इस तरह प्रस्तुत किया जाता है जिससे लोगों को मजा आता है. जबकि, पश्चिमी संगीत में ऐसा देखने को नहीं मिलता.
वह आगे कहती हैं, "जब हमने शुरुआत की थी, तब कुछ ही लोगों को के-पॉप के बारे में जानकारी थी. डांस के दौरान लोगों को हंसाने के लिए के-पॉप का प्रदर्शन किया जाता था. अब यह स्थिति काफी बदल गई है. अब के-पॉप इंडस्ट्री डांस करने वालों के लिए नौकरी के मौके उपलब्ध करा रही है. लोगों को यह महसूस होने लगा है कि यह कितना महत्वपूर्ण बाजार बन चुका है. कोरियोग्राफी तैयार करने के लिए, के-पॉप इंडस्ट्री पश्चिमी संगीत पर डांस करने वालों को काम पर रखती है.”
जर्मन पॉप कल्चर पत्रिका के ‘के*बैंग' की संपादकीय निदेशक इसाबेल ओपित्ज बताती हैं कि के-पॉप कोरियोग्राफी में स्टार बिना किसी गलती के लगातार एक जैसा डांस करते हैं. इसमें एक ही समय पर वे अलग-अलग तरीके से प्रदर्शन करते हैं. वे 20 लोगों वाले समूह में भी ऐसा ही करते हैं. यह सब बेहतर प्रदर्शन क्षमता, निपुणता और सामुदायिक भावना को दिखाता है. यही सारी बातें के-पॉप म्यूजिक पर भी लागू होती है. वह आगे कहती हैं, "के-पॉप म्यूजिक भी काफी उच्च मानकों के आधार पर तैयार किया जाता है. इसमें अक्सर यूरोपीय क्षेत्र के गीतकार भी शामिल होते हैं.”
भारत में भी बढ़ी है लोकप्रियता
के-पॉप यानी कोरियन पॉप म्यूजिक को 2016 में ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में शामिल किया गाया था. पिछले एक दशक में कई बार इसने दुनिया भर में धूम मचाई है. इसे ‘कोरियन वेव' कहा गया. भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों के युवा और छात्र-छात्राएं इससे काफी प्रेरित हुए हैं. वे कोरियाई ड्रामे की कहानियों, खान-पान और टीवी स्टार के फैशन को फॉलो करने लगे हैं.
भारत में कोरोना लॉकडाउन के दौरान नेटफ्लिक्स और अमेजन प्राइम जैसी स्ट्रीमिंग सेवाओं का इस्तेमाल बढ़ा. कोरियाई ड्रामा देखने वालों की तादाद भी बढ़ी. साथ ही, कोरियन खाने का बाजार भी बढ़ा है और कोरियाई भाषा सीखने वालों की संख्या भी.
सोशल मीडिया की अहम भूमिका
ओपित्ज कहती हैं, "के-पॉप इसलिए भी लोकप्रिय हो रहा है, क्योंकि यह एक-दूसरे को जानने, समझने और बातचीत करने के लिए बड़ा अवसर उपलब्ध कराता है. प्रशंसक हर एक म्यूजिक वीडियो और इंटरव्यू देखते हैं. साथ ही, उन्हें हर समूह के सदस्यों के बारे में जानकारी होती है.
इसके अलावा, सीरीज और फिल्मों में काम करने वाले कई के-पॉप स्टार सोशल मीडिया पर पूरी तरह सक्रिय हैं. ओपित्ज कहती हैं, "स्पॉटिफाई और यूट्यूब जैसे प्लैटफॉर्म और ट्विटर जैसे सोशल नेटवर्क की वजह से के-पॉप की लोकप्रियता बढ़ी है. यह समुदाय अब आपस में बेहतर तरीके से जुड़ा हुआ है. भले ही आपका के-पॉप से कोई लेना-देना न हो, यूट्यूब आपको के-पॉप कॉन्टेंट का सुझाव दिखाता है. आज जर्मनी के स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों के बीच के-पॉप लोकप्रिय हो चुका है.”
के-पॉप कलाकर रोल मॉडल हैं?
के-पॉप की इस सफलता का यह मतलब नहीं है कि इसमें कमियां नहीं हैं. मनोरंजन जगत से जुड़े कॉरपोरेशन बैंड को एक साथ रखते हैं. युवा लोगों से समझौते पर हस्ताक्षर कराया जाता है और उन्हें लक्ष्य के मुताबिक प्रशिक्षित किया जाता है. कभी-कभी यह काफी ज्यादा थकाऊ और कुछ हद तक संदिग्ध कार्यक्रमों में शामिल होने जैसा भी लगता है. जो लोग इनसे समझौता करने को तैयार होते हैं उन्हें ग्रुप में जगह मिलती है.
इस क्षेत्र में भी सफल होने के लिए बड़ी कीमत चुकानी होती है. बार-बार समझौते पर हस्ताक्षर कराए जाते हैं कि कलाकारों को आम लोगों से दूरी बनाकर रखना होगा. कई बार के-पॉप स्टार की आत्महत्या और खाने से जुड़ी कमियों की खबरें भी आयी हैं.
मेलिसा नदुग्वा कहती हैं, "पहले की तुलना में, के-पॉप समुदाय इस उद्योग की हकीकत के प्रति ज्यादा चौकस हो गया है. के-पॉप कलाकार अभी भी रोल मॉडल हैं, लेकिन अब उनका उतना महिमामंडन नहीं किया जाता है. अगर कोई के-पॉप कलाकार किसी के साथ डेट पर जाता है, तो यह स्कैंडल बन जाता है. कई स्टार के नाम ऐसे स्कैंडल में सामने आए. इसकी वजह से उनका काफी विरोध हुआ. कईयों का करियर समाप्त हो गया. अब वे सामान्य (dw.com)
फिनलैंड की प्रधानमंत्री सना मरीन का हालिया ‘पार्टीगेट’ कई मायनों में सामान्य फिनिश स्कैंडल है. मिन्ना अलांडर कहती हैं कि वहां की राजनीति इतनी आलोचनात्मक होती है कि थोड़ा-बहुत कुछ अलग होने पर ही विवाद पैदा हो जाता है.
डॉयचे वैले पर मिन्ना अलांडर की रिपोर्ट-
फिनलैंड की प्रधानमंत्री सना मरीन ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां बटोरीं. इस बार उनका एक वीडियो सामने आया है, जिसमें वह निजी पार्टी में दोस्तों के साथ डांस करती हुई दिख रही हैं. इसके बाद जो हुआ वह एक पारंपरिक ‘फिनिश स्कैंडल' है, जो वाकई में किसी तरह का स्कैंडल नहीं है. हालांकि, फिनलैंड की राजनीति इतनी आलोचनात्मक और थोड़ी उबाऊ होती है कि आपके थोड़ा-बहुत कुछ अलग करने पर ही विवाद पैदा हो जाता है. यह मामला काफी उच्च नैतिक आचरण की ओर इशारा करता है, जो राजनेताओं पर लागू होते हैं. साथ ही, उम्मीद की जाती है कि राजनेता इसी आचरण का पालन करते हुए जिंदगी जीएं. इसका नतीजा यह होता है कि दूसरी जगहों पर जिन घटनाओं को काफी ज्यादा सामान्य माना जाता है उन मामूली घटनाओं के लिए फिनलैंड के नेताओं को इस्तीफा देना पड़ जाता है.
उदाहरण के लिए, 2008 में फिनलैंड के तत्कालीन विदेश मंत्री इल्का कनेर्वा को टेक्स्ट मैसेज स्कैंडल की वजह से इस्तीफा देना पड़ा था. वे एक विवादास्पद महिला सेलिब्रिटी को टेक्स्ट मैसेज भेज रहे थे. सना मरीन भी एक ‘स्कैंडल' की वजह से ही प्रधानमंत्री बनी हैं. दरअसल, सना से पहले देश के पीएम अंती रीन्ने थे. डाकघर की हड़ताल से जुड़े एक स्कैंडल की वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था. उस समय सना परिवहन और संचार मंत्री थीं.
27 वर्ष की उम्र में अपने गृहनगर टाम्पेरे की नगर परिषद का प्रमुख चुने जाने के बाद सना ने फिनलैंड की राजनीति में तेजी से ऊंचाइयां हासिल कीं. एक के बाद एक पायदान ऊपर चढ़ते हुए वह दिसंबर 2019 में देश की प्रधानमंत्री बनीं. उस समय उनकी उम्र महज 34 साल थी. वे फिनलैंड की अब तक की सबसे युवा प्रधानमंत्री हैं और दुनिया की अब तक की सबसे कम उम्र महिला सरकार प्रमुख भी. 2019 के बाद से, महिला नेतृत्व वाली यह सरकार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रही है.
नाटो स्ट्रैटेजिक कम्युनिकेशंस सेंटर ऑफ एक्सीलेंस ने 2021 में एक अध्ययन किया. इसमें पाया गया कि मरीन सरकार की महिला मंत्रियों को काफी ज्यादा संख्या में आपत्तिजनक संदेश भेजे जाते हैं. मरीन खुद भी अक्सर घरेलू ‘स्कैंडल' में घिरी रही हैं. जैसे, इंस्टाग्राम पर कुछ खास सेल्फी पोस्ट करने को लेकर या पार्टी करने से जुड़ी घटनाओं को लेकर. इस वजह से मीडिया ने उन्हें ‘पार्टी सना' का नाम भी दिया है.
सना के कुछ चर्चित ‘स्कैंडल' में ‘ब्रेकफास्टगेट' है जिसमें उनके नाश्ते के खर्च को लेकर विवाद हुआ था. इसी तरह का एक विवाद सफाई को लेकर सामने आया था कि वह खुद से सफाई करना पसंद करती हैं. यहां तक कि वह अपने कार्यालय को भी खुद से साफ करती हैं.
गलतफहमी की बू
बहुत से घरेलू बेतुके विवादों में गलतफहमी की बू आती है, क्योंकि मरीन असाधारण परिस्थितियों में लगातार फिनलैंड का नेतृत्व कर रही हैं, जो महामारी से शुरू हुई थी और अब नाटो में शामिल होने तक जा पहुंची है.
यह अपने-आप में बड़ी बात है कि एक 36 वर्षीय महिला सक्षम प्रधानमंत्री हो सकती हैं, एक छोटे बच्चे की मां हो सकती हैं, जो देश की सबसे कठिन नौकरी में रहते हुए भी सामाजिक जिंदगी जीने के लिए समय निकालती हैं, त्योहारों में शामिल होती हैं, और यहां तक कि कभी-कभी पार्टी भी करती हैं.
आमतौर पर, घरेलू ‘स्कैंडल' अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां नहीं बटोरते हैं. इस बार उनके ऊपर ड्रग्स लेने का आरोप लगा था. इसकी वजह यह थी कि मरीन का पार्टी करते हुए वीडियो लीक हुआ. उसमें सुनाई दे रहे एक वाक्य की वजह से यह पूरा विवाद पैदा हुआ, जिसे "जौहोजेंगी" ("फ्लोर गैंग") के रूप में गलत सुना गया था और इसका अर्थ ‘ड्रग्स' निकाला गया.
दरअसल, मरीन और उनके दोस्त वीडियो में फिनिश पॉप गीत के बोल गाते हुए दिख रहे हैं, जिसमें फिनलैंड में मिलने वाले शराब ‘जल्लू' का जिक्र है. वैसे भी फिनलैंड में कोई भी ड्रग्स को ‘फ्लोर' नहीं कहेगा. इससे इस कारोबार के बारे में लोग और भी नहीं समझ पाएंगे.
गलत सूचना तेजी से फैलती है
यह घटना अंतरराष्ट्रीय मीडिया में तेजी से फैली. बिना सोचे-समझे और जांचे-परखे कई विदेशी मीडिया संस्थानों ने यह भी आरोप लगाया कि बैकग्राउंड में ‘कोकीन' शब्द बोला जा रहा था.
कई विपक्षी नेताओं ने पीएम की आलोचना की. गठबंधन में शामिल दल के एक नेता ने उनका ड्रग टेस्ट करवाए जाने की भी मांग की. 19 अगस्त को उनका यूरीन सैंपल जांच के लिए भेजा गया. उनकी ड्रग टेस्ट रिपोर्ट नेगेटिव आई. फिनलैंड सरकार की ओर से जारी बयान के मुताबिक, इसमें किसी ड्रग्स के अंश नहीं मिले. साथ ही, यह भी जानकारी दी गई कि पीएम मरीन ने इस जांच का खर्च खुद उठाया.
इस मामले में मीडिया से बात करते हुए मरीन ने कहा कि उनके व्यवहार को लेकर किसी को कोई संदेह या गलतफहमी न हो, इसके लिए उन्होंने ड्रग टेस्ट कराया है. उन्होंने यह भी कहा कि वीकेंड पर अपने दोस्तों के साथ पार्टी की थी और तब उनकी कोई मीटिंग नहीं थी.
इस मामले में मरीन को अंतरराष्ट्रीय और घरेलू स्तर पर समर्थन भी मिला और इससे यह भी पता चलता है कि कितनी आसानी से गलत सूचना जंगल की आग की तरह तेजी से फैल सकती है. इससे नुकसान तो आसानी से हो जाता है, लेकिन छवि को सुधारने के लिए काफी कुछ करना पड़ता है.
किसी संस्थान की छवि में सुधार करना, नेता के लिए बड़ी चुनौती के समान होता है. जैसे कि प्रधानमंत्री क्या है और कौन हो सकता है. मरीन के लिए भी यह इसी तरह की चुनौती थी. प्रधानमंत्री के पद पर आसीन किसी व्यक्ति के लिए, यह शायद ही आखिरी फिनिश स्कैंडल होगा और शायद यह आखिरी हो भी सकता है. यह एक अच्छी बात है. (dw.com)
तिब्बत के पठार को एशिया की "जल मीनार" भी कहा जाता है. ये लगभग 2 अरब लोगों को पीने का पानी देता है. विशेषज्ञों को डर है कि इस क्षेत्र में 2050 तक पानी के ज्यादातर भंडार खत्म हो सकते हैं.
डॉयचे वैले पर आकांक्षा सक्सेना की रिपोर्ट-
इस सदी के मध्य तक, पूरा तिब्बती पठार अपने जल मीनार का एक बड़ा हिस्सा खो देगा. यह जानकारी एक अध्ययन से पता चली है. ये इस मुद्दे पर अब तक का सबसे व्यापक शोध है. रिसर्च पेपर प्राकृतिक जलवायु परिवर्तन पत्रिका 'नेचर' में प्रकाशित हुआ है.
अमु दरिया बेसिन - जो मध्य एशिया और अफगानिस्तान को पानी की आपूर्ति करता है, शोध उसकी जल आपूर्ति क्षमता में 119% की गिरावट दर्शाता है. सिंधु बेसिन - जो उत्तर भारत, कश्मीर और पाकिस्तान को पानी देता है - उसकी जल आपूर्ति क्षमता में 79% की गिरावट दर्शायी गई है. कुल मिलाकर, पूरी इंसानी आबादी के एक चौथाई हिस्सा इससे प्रभावित होगा.
पेन स्टेट, सिंघुआ विश्वविद्यालय और ऑस्टिन के टेक्सस विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की एक टीम ने पाया कि हाल के दशकों में जलवायु परिवर्तन से स्थलीय जल भंडारण (टेरेस्ट्रियल वाटर स्टोरेज, TWS) में भारी कमी आई है, जिसमें जमीन के ऊपर और नीचे का पानी शामिल है. तिब्बती पठार के कुछ क्षेत्रों में प्रति वर्ष 15.8 गीगाटन के पानी की कमी दर्ज हुई है.
इस पैटर्न के आधार पर, टीम ने भविष्यवाणी की है कि कार्बन के मध्यम उत्सर्जन के बावजूद पूरे तिब्बती पठार को 21 वीं सदी के मध्य तक लगभग 230 गीगाटन पानी का नुकसान हो सकता है. पेन स्टेट यूनिवर्सिटी में वायुमंडलीय विज्ञान के प्रोफेसर माइकल मान कहते हैं कि यह पूर्वानुमान अच्छा नहीं है.
प्रोफेसर मान ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "हम आने वाले दशकों में जीवाश्म ईंधन के जलने को सार्थक रूप से कम करने में विफल रहते हैं तो हम तिब्बती पठार के निचले क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता के लगभग पतन - यानी लगभग 100% नुकसान की उम्मीद कर सकते हैं. मुझे आश्चर्य हुआ कि मामूली जलवायु नीति के परिदृश्य में भी अनुमानित कमी कितनी बड़ी है,"
जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता
तिब्बती पठार के बेहद ऊंचाई वाले इलाके, मानसून और ऊपरी स्तर की पश्चिमी हवाओं के प्रभुत्व वाला वायुमंडलीय सिस्टम इस क्षेत्र में बहुमूल्य मीठे पानी से समृद्ध करता है. मानवीय गतिविधियों से बहुत ही कम प्रभावित ये इलाका एशियाई मानसून प्रणाली के लिए महत्वपूर्ण है. जल उपलब्धता और आपूर्ति में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद, यह क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है.
सिंघुआ विश्वविद्यालय में हाइड्रोलॉजिकल इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर डी लॉन्ग ने कहा, "इस क्षेत्र में पानी की उपलब्धता निर्धारित करने में स्थलीय जल भंडारण महत्वपूर्ण है, और यह जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है."
अध्ययन के निष्कर्ष विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं क्योंकि जलवायु परिवर्तन ने तिब्बती पठार के TWS को कैसे प्रभावित किया है, इस पर विस्तृत जानकारी पहले उपलब्ध नहीं थी. हालांकि, ग्रेविटी रिकवरी एंड क्लाइमेट एक्सपेरिमेंट (GRACE) उपग्रह मिशनों में प्रगति ने बड़े पैमाने पर TWS परिवर्तनों की मात्रा निर्धारित करने के अभूतपूर्व अवसर प्रदान किए हैं.
'साहसिक जलवायु नीति की जरूरत'
इससे पहले, TWS के विश्वसनीय अनुमानों का अभाव, जलवायु परिवर्तन हॉटस्पॉट पर नीति निर्धारण में बहुत ही कम भूमिका निभाता था. शोधकर्ता डी लॉन्ग ने कहा, "जलवायु परिवर्तन और TWS की जांच करके यह अध्ययन भविष्य के अनुसंधान और सरकारों व संस्थानों द्वारा बेहतर रणनीतियों का मार्गदर्शन करने में नींव की तरह काम करता है."
तिब्बती पठार को कभी-कभी "दुनिया की छत" कहा जाता है और इसमें झीलों और नदियों का एक समृद्ध नेटवर्क है जो एशिया के एक बड़े हिस्से में पीने के पानी की आपूर्ति करता है.
प्रोफेसर मान के मुताबिक, "सबसे अच्छी स्थिति में भी नुकसान होने की संभावना है, जिसके लिए दुनिया के इस अत्यधिक आबादी वाले क्षेत्र में जल संसाधनों को कम करने के लिए पर्याप्त अनुकूलन की आवश्यकता होगी"
शोध में सात नदी बेसिन प्रणालियों का अध्ययन किया गया. अध्ययन में चीन के राष्ट्रीय प्राकृतिक विज्ञान फाउंडेशन और दूसरे तिब्बती पठार वैज्ञानिक अभियान व अनुसंधान कार्यक्रमों की भी मदद ली गई.
अमु दरिया बेसिन, सिंधु, गंगा-ब्रह्मपुत्र, साल्विन-मेकॉन्ग, यांग्त्से और येलो रिवर को बड़ी आबादी और डाउनस्ट्रीम क्षेत्रों में पानी की मांग के कारण इस विश्लेषण के लिए चुना गया. यह पाया गया कि गंगा-ब्रह्मपुत्र, साल्विन-मेकॉन्ग और यांग्त्से घाटियों में, डाउनस्ट्रीम क्षेत्रों में पानी की कुल मांग को अन्य कारकों से पूरा किया जा सकता है. हालांकि, अमू दरिया और सिंधु घाटियों में, अपस्ट्रीम TWS में बदलाव से डाउनस्ट्रीम पानी की उपलब्धता को गंभीर खतरा होगा.
पानी शुरू कर सकता है भौगोलिक संघर्ष
साझा जल संसाधनों पर बांध निर्माण का मुद्दा, जलवायु परिवर्तन से बढ़ गया है, जिसके परिणामस्वरूप देशों के बीच संभावित संघर्ष हो सकते हैं. हालांकि नवीनतम अध्ययन पश्चिम और दक्षिण एशियाई देशों में जलवायु-प्रेरित जल संकट के बारे में सूचित करता है, अतीत में कई अध्ययनों ने तिब्बती पठार से निकलने वाली नदियों पर बांध निर्माण के प्रभावों पर चिंता जाहिर की गई है.
मेकॉन्ग नदी भी तिब्बती पठार से निकलती है और म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया और वियतनाम से गुजरते हुए दक्षिण चीन सागर में मिलती है. लगभग छह करोड़ लोग मछली पकड़ने, खेती और परिवहन के लिए इस नदी पर निर्भर हैं. 2010 से नदी के ऊपर और नीचे सैकड़ों बांध बनाए गए हैं, और इनमें से ज्यादातर चीन और लाओस में हैं.
स्टिमसन सेंटर के दक्षिण पूर्व एशिया कार्यक्रम निदेशक ब्रायन आयलर कहते हैं,"चीन का ग्यारह-बांधों का समूह मेकॉन्ग में आधे तलछट प्रवाह को अवरुद्ध करता है- प्रति वर्ष 165 मिलियन टन तलछट का आधा. इसका कोई हल नहीं है." आयलर ने डीडब्ल्यू को बताया, "मेकॉन्ग की मुख्य धारा पर बांध का निर्माण डाउनस्ट्रीम देशों के परामर्श के बिना किया गया है. डाउनस्ट्रीम देशों को यह भी नहीं पता है कि एक नया बांध कब बनाया गया है."
लोअर मेकॉन्ग इनिशिएटिव का 2020 का एक अध्ययन, जिसमें मेकॉन्ग नदी आयोग और रिमोट सेंसिंग प्रक्रिया से रिवर गेज सबूत का इस्तेमाल किया गया, बताता है कि 2019 में पांच महीनों के लिए, चीन के बांधों में इतना पानी था कि उसने थाईलैंड में चियांग सेन में नदी की मानसून बाढ़ को रोक दिया.
पानी की कमी के कारण भौगोलिक संघर्ष भी हो सकते हैं. भारत में मौजूद तिब्बती केंद्रीय एडमिनिस्ट्रेशन के प्रवक्ता तेनज़िन लेक्शे ने कहा, "हमें डर है कि आने वाले वर्षों में भारत और चीन के बीच तिब्बती पठार में ग्लेशियर पिघलने की वजह से बड़े पैमाने पर समस्या होगी. तिब्बत के भूगोल और पारिस्थितिक महत्व को भारत और चीन दोनों को समझना चाहिए."
दुनिया के दो सबसे अधिक आबादी वाले देशों, भारत और चीन के बीच पानी तेजी से एक संभावित फ्लैशपॉइंट के रूप में उभर सकता है. पूरे एशिया महाद्वीप के लिए भी इसके दूरगामी परिणाम होंगे. (dw.com)
दुनिया के सबसे पुराने और अनछुए जंगलों में से एक भारत के केंद्र में है. इस जंगल का नाम है हसदेव अरण्य. क्या भारत की बिजली की मांग हसदेव अरण्य को निगल लेगी?
वैभव बेमतरिहा की शादी का कार्ड देखते ही उनकी होने वाली पत्नी और न्योता पाने वालों को हैरानी हुई. कार्ड पर "सेव हसदेव" लिखा था. 38 साल के वैभव, छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में रहते हैं. भारत का एक बड़ा कोयला भंडार उनके राज्य में दबा है, वो भी हसदेव के जंगल में. हसदेव अरण्य, मध्य भारत के आखिरी समृद्ध जंगलों में से एक है. भारत के मूल निवासी कहे जाने वाले गोंड आदिवासियों की अच्छी खासी संख्या हसदेव में रहती है. जंगल के बीच से हसदेव नाम की नदी गुजरती है. वहां शताब्दियों से चला आ रहा जंगली हाथियों का कॉरिडोर भी है.
जंगल के 1,878 हेक्टेयर से ज्यादा बड़े इलाके में कोयले का भंडार है. 2010 में छत्तीसगढ़ सरकार ने जंगल से कोयला निकालने के लिए फॉरेस्ट क्लीयरेंस का आवेदन किया. मामला अदालतों तक भी पहुंचा. इसी दौरान पर्यावरण मंत्रालय की फॉरेस्ट एडवाइजरी कमेटी ने खनन के लिए वन भूमि ट्रांसफर करने पर आपत्ति जताई. इसके बावजूद 2012 में भारत के पर्यावरण मंत्रालय ने हसदेव जंगल में कोयले के खनन के लिए फॉरेस्ट क्लीयरेंस को मंजूरी दे दी. यह पारसा ईस्ट और केंते बसान (पीईकेबी) का पहला चरण था. कोयला राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को दिया गया, निगम के लिए यहां खनन काम अडानी ग्रुप करता है.
पहले चरण के 10 साल बाद मार्च 2022 में छत्तीसगढ़ सरकार ने एलान किया कि उसने पीईकेबी के दूसरे चरण के लिए भी खदान आवंटित कर दी है. इस फैसले से पहले हसदेव जंगल को बचाने के लिए करीब ढाई सौ आदिवासी 300 किलोमीटर लंबा पैदल मार्च कर रायपुर तक पहुंचे. अक्टूबर 2021 के इस पैदल मार्च का कोई असर नहीं हुआ, छह महीने बाद लोगों द्वारा चुनी गई सरकार ने दूसरे चरण को मंजूरी दे दी.
कैसे जनांदोलन बन गया सेव हसदेव
अप्रैल 2022 में हसदेव जंगल में सैकड़ों साल पुराने साल और सागवान के पेड़ों की कटाई शुरू हो गई. जब सैकड़ों पेड़ों की कटाई के वीडियो सामने आने लगे तो नाराजगी शहरों तक पसरने लगी. लोगों को आदिवासियों का पैदल मार्च याद आने लगा. सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर पर #SaveHasdeo ट्रेंड करने लगा. यूट्यूबर, कलाकार और छात्र भी खुलकर जंगल बचाने के लिए शुरू हुए आंदोलन का समर्थन करने लगे. इंटरनेट पर हो रहा विरोध जल्द ही छत्तीसगढ़ के सारे शहरों के साथ साथ देश के कई महानगरों तक फैल गया.
लक्ष्य मधुकर के नाना खनन इंजीनियर थे. लक्ष्य की मां का बचपन छत्तीसगढ़ के कोरबा में गुजरा. कोरबा को छत्तीसगढ़ में खनन का गढ़ कहा जाता है. मधुकर कहते हैं, "मेरी मां का परिवार कोरबा के एक गांव से आता है, जहां खनन ही जिंदगी जीने का तरीका है. लेकिन हमें पता है कि खनन का असर कैसा होता है." लक्ष्य कलाकार हैं और चित्रकला के जरिए वह हसदेव बचाओ का संदेश दे रहे हैं.
आलोक शुक्ला छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन नाम का एक एनजीओ चलाते हैं. शुक्ला कहते हैं, "लंबा मार्च कई लोगों के लिए आंखें खोलने वाला था. विरोध करने वाले समुदाय थक चुके थे, उन्हें नहीं मालूम था कि उनकी लड़ाई अभी कितनी लंबी चलेगी. लेकिन जिस तरह का समर्थन उन्हें मिला, उसने आंदोलन तो नई जान और लोगों को नई ऊर्जा दी."
विदेशों तक पहुंची सेव हसदेव की पुकार
प्रदर्शनकारी हसदेव अरण्य में सभी कोयला खनन प्रोजेक्टों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं. उनका आरोप है कि नकली जमीन मालिक और नकली ग्राम सभाएं बनाकर जमीन गैरकानूनी ढंग से ली गई. आंदोलन की पुकार इंग्लैंड तक भी पहुंची. मई 2022 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में एक आयोजन के दौरान कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी से हसदेव अरण्य में खनन के बारे में सवाल पूछा गया. एक छात्रा ने उनसे पूछा कि 2015 में आप खुद को आदिवासियों के साथ खड़ा बताते थे, और आज आपकी पार्टी अडानी के जंगल कटाई और खनन विस्तारीकरण के साथ है. इसके जवाब में राहुल गांधी ने कहा कि वह आदिवासियों की मांगों से सहमत हैं और कुछ ही दिन में पार्टी इसका समाधान निकाल लेगी.
गांधी परिवार के सदस्य के मुंह से निकली इस बात का असर हुआ. छत्तीसगढ़ विधानसभा ने हाल ही में एक प्रस्ताव पारित करते हुए केंद्र सरकार से हसदेव अरण्य के सभी कोयला ब्लॉकों का आंवटन रद्द करने की मांग की. इस बार राज्य सरकार ने कहा कि वहां हाथियों का कॉरिडोर है, जिस वजह से वहां से कोयला नहीं खोदा जाना चाहिए.
जंगल बचाने के अभियान में जुटे सभी लोग इस फैसले से थोड़ी राहत तो महसूस कर रहे हैं, लेकिन उन्हें डर है कि खनन पूरी तरह बंद नहीं होगा. भारत में गर्मियों में लगातार बिजली की मांग बढ़ती जा रही है. मध्य वर्ग की आय में इजाफा होने से एयरकंडीशनिंग का दायरा बढ़ता जा रहा है. हर साल गर्मियों में देश के अखबारों में कोयले की कमी से जूझते कोयला बिजलीघरों की खबरें आने लगती हैं. राजस्थान, दिल्ली और हरियाणा समेत कई राज्य छत्तीसगढ़ के कोयले से खुद को भले ही रोशनी दें, लेकिन कई आदिवासियों की जिंदगी में वो अंधकार भरते आ रहे हैं.
ओएसजे/एनआर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 27 अगस्त। राजधानी के फाफाडीह इलाके में स्थित एसबीआई ग्राहक सेवा केंद्र के संचालक याल्ला प्रकाश को हथौड़ी से वारकर रकम लूटने वाले लुटेरे अभिषेक यादव को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है।
पुलिस सूत्रों ने बताया कि अभिषेक को बलौदा बाजार से गिरफ्तार किया गया है। अभिषेक को उसकी गर्लफ्रेंड ने पैसे भेजे थे। उसे लेने वह की बार सेवा केंद्र गया था। हर बार प्रकाश ने रकम न आने की जानकारी देते थे। अभिषेक इससे नाराज हो कर मंगलवार को हथौड़ी लेकर गया और पैसे नहीं आए का जवाब सुनकर प्रकाश के सिर के बांईं तरफ 3 वार कर फरार हो गया।
यह पूरी घटना केंद्र में लगे सीसीटीवी कैमरे में रिकार्ड हुई थी। गंज पुलिस ने लूट का मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी थी। सीसीटीवी फुटेज की पड़ताल के दौरान आरोपी की पहचान हुई और उसे गिरफ्तार कर लिया गया है। उधर प्रकाश को गंभीर हालत में देवेंद्र नगर के निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां आपरेशन के बाद हालत सामान्य बताई जा रही है।
रागिनी नायक, अलका लांबा भी पहुंची
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 27 अगस्त। सीएम हाउस में शनिवार को तीजा-पोला कार्यक्रम में बड़ी संख्या में महिलाएं पहुंची। इस मौके पर सीएम भूपेश बघेल ने सपत्नीक पूजा-अर्चना की। कार्यक्रम में पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता रागिनी नायक, और अलका लांबा भी मौजूद थीं।
सीएम हाउस में पोला पर्व के मौके पर श्री बघेल ने पत्नी मुक्तेश्वरी बघेल के साथ परंपरागत तरीके से पूजा अर्चना की। इस दौरान नंदी बैल की पूजा अर्चना की जाती है।
सीएम ने कार्यक्रम में शामिल होने आए राष्ट्रीय प्रवक्ता रागिनी नायक, और अलका लांबा का अभिवादन किया। पार्टी के राष्ट्रीय नेत्रियों ने भी पूजा-अर्चना की। इस मौके पर महिला कांग्रेस की पदाधिकारियों के अलावा राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष श्रीमती डॉ. किरणमयी नायक भी थीं।
अस्पताल-पुलिस लाईन व वन विभाग मानपुर के हिस्से में शामिल नहीं होने से सिलसिलेवार धरना प्रदर्शन व चक्काजाम
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 27 अगस्त। अगले माह 2 सितंबर को अस्तित्व में आ रहे मोहला-मानपुर जिले में दफ्तर बंटवारे में पक्षपात किए जाने के विरोध में मानपुर में व्यापक विरोध शुरू हो गया है। जिला निर्माण संयुक्त मोर्चा के बैनर तले भाजपा-कांग्रेस के नेता एकजुट होकर शासकीय कार्यालयों को मानपुर में ही स्थापित किए जाने की मांग कर रहे हैं। यह मांग तेजी से जोर पकड़ रहा है। खबर है कि शुक्रवार देर शाम को मानपुर में दलीय एवं गैरदलीय संगठनों ने साझा रूप से बैठक की। पूरे मामले में कांग्रेस और भाजपा के क्षेत्रीय नेताओं के संग व्यापारिक और सामाजिक संगठन एक हो गए हैं।
मिली जानकारी के मुताबिक 31 अगस्त को मानपुर बंद का ऐलान किया गया है। व्यापारिक प्रतिष्ठान के शटर नहीं खुलेंगे। वहीं अलग-अलग स्तर पर विरोध किए जाने की तैयारी है। मानपुर बंद की घोषणा मोर्चे ने कर दी है। मांग पूरी नहीं होने के बाद जिला निर्माण की निर्धारित तिथि 2 सितंबर को मानपुर में धरना और चक्काजाम किया जाएगा।
बताया जा रहा है कि मानपुर में सरकारी ऑफिसों की स्थापना नहीं किए जाने से कस्बे के बाशिंदे आक्रोशित हैं। उनकी मांग है कि जिला अस्पताल, आरटीईओ, पुलिस लाईन और वन विभाग के दफ्तर मानपुर में खोले जाएं। क्षेत्रीय विधायक इंद्रशाह मंडावी को लेकर मानपुर में नाराजगी बढ़ रही है। उन्होंने क्षेत्रीय नेताओं और संगठनों को उक्त मांगों के आधार पर कार्यालय खोले जाने का भरोसा दिया था। अब मंडावी ने पूरे मुद्दे से किनारा कर लिया है।
इस संबंध में भाजपा मंडल के अध्यक्ष व मोर्चा के सदस्य राजू टांडिया ने ‘छत्तीसगढ़’ से कहा कि पूर्व में किए गए वादों का अनुशरण नहीं करना क्षेत्र की जनता के साथ खिलवाड़ है। इसी मांग को लेकर बैठक की गई है। मानपुर बंद, धरना और चक्काजाम सिलसिलेवार किए जाएंगे। यहां यह बता दें कि मोहला-मानपुर में अंबागढ़ चौकी को शामिल किए जाने का पहले विरोध हो चुका है। अंबागढ़ चौकी में भी कार्यालयों के बंटवारे को लेकर विवाद है। इससे पहले मानपुर में दफ्तरों के मुद्दे को लेकर क्षेत्रीय नेताओं और प्रशासनिक अफसरों के साथ टकराव बढ़ रहा है।
मुंबई, 27 अगस्त। शिवसेना के नेता आदित्य ठाकरे ने बागी धड़े पर अपना हमला तेज करते हुए उन्हें ‘गद्दार’ बताया, जबकि असंतुष्ट धड़े ने ठाकरे परिवार के किसी सदस्य को निशाना नहीं बनाने का संकल्प तोड़ते हुए पूर्व मंत्री को ‘युवराज’ करार दिया।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले धड़े के विधायकों को लगता है कि आदित्य ठाकरे ने ‘सीमा पार की है’ और वह उनके खिलाफ झूठ फैला रहे हैं, जिसस उन पर पलटवार करने का समय आ गया है।
असंतुष्ट विधायकों ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य पर निशाना साधते हुए विधानसभा सत्र के आखिरी दिन विधान भवन की सीढ़ियों पर बैठकर उनके खिलाफ बैनर दिखाए, जिन पर लिखा था, ‘युवराजांची दिशा चुकली (युवराज रास्ता भटक गया है)।’
आदित्य ने पलटवार करते हुए बागी विधायकों पर पैसे के लिए पार्टी से बगावत करने का आरोप लगाते हुए ‘50 खोखे, एकदम ओके’ के नारे लगाए। इन विधायकों की बगावत के कारण उद्धव नीत महा विकास आघाडी (एमवीए) सरकार जून में गिर गई थी और एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की थी।
सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और शिंदे के वफादारों ने पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव और आदित्य पर निशाना साधते हुए बुधवार को भी इसी प्रकार विरोध किया था। उन्होंने शिवसेना के नियंत्रण वाली बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए बैनर दिखाए थे। साथ ही आरोप लगाया था कि ठाकरे पिता-पुत्र ने सत्ता के लिए हिंदुत्व से समझौता किया।
कुछ बैनर पर लिखा था, ‘राजा (उद्धव) कोविड-19 के डर से घर में रहे, जबकि ‘युवराज’ (आदित्य) ने खजाना लूटा।’
शिंदे गुट ने बीएमसी में ठाकरे पिता-पुत्र के सहयोग से भ्रष्टाचार होने का आरोप लगाते हुए नारेबाजी भी की।
शिवसेना नेतृत्व के खिलाफ जून में विद्रोह करने के बाद से विधायकों ने संभवत: पहली बार ठाकरे पिता-पुत्र को निशाना बनाया है।
आदित्य पिछले कुछ दिन से बागी विधायकों के निर्वाचन क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं और उन्हें ‘गद्दार’ बताते हुए उन पर ऐसे समय में उनके पिता की पीठ पर छुरा घोंपने का आरोप लगा रहे हैं, जब वह बीमार थे।
मुंबई के माहिम से विधायक एवं शिवसेना के बागी धड़े में शामिल सदा सर्वांकर ने कहा, ‘‘वह (आदित्य) हमें गद्दार कहते हैं, लेकिन उन्होंने ही राकांपा (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) और कांग्रेस के साथ हाथ मिलाकर हिंदुत्व की पीठ में छुरा घोंपा है। हम कब तक उनके इन आरोपों को सुनेंगे।’’
शिवसेना के एक अन्य बागी विधायक संजय शिरसाट ने कहा कि आदित्य द्वारा फैलाए जा रहे ‘झूठ का मुलाबला’ करने के लिए उन पर हमला करना आवश्यक है।
शिवसेना के एक अन्य बागी विधायक योगेश कदम ने भी कहा, ‘‘अभी तक हम चुप थे, क्योंकि ठाकरे उपनाम उनके साथ जुड़ा है। लेकिन अगर अब आप हम पर हमला करेंगे तो हम चुप नहीं बैठेंगे।’’
बहरहाल, शिवसेना इसे आदित्य की जीत के तौर पर देख रही है। पार्टी ने शुक्रवार को अपने मुखपत्र ‘सामना’ में दिखाया कि किस तरह बागी धड़े को राज्य विधान भवन की सीढ़ियों पर बैठने के लिए मजबूर होना पड़ा और वह आदित्य से कितना ‘डरा हुआ’ है। (भाषा)
जयपुर, 27 अगस्त। राजस्थान के पाली जिले में 14 वर्षीय दलित छात्र की कथित तौर पर पिटाई करने के आरोप में एक सरकारी स्कूल के शिक्षक को हिरासत में लिया गया और उसे निलंबित कर दिया गया। पुलिस ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।
पुलिस ने बताया कि राजस्थान के दौसा जिले में इसी तरह की एक घटना में पांचवीं कक्षा के एक दलित छात्र की स्कूल के शिक्षक ने कथित तौर पर पिटाई कर दी।
पुलिस ने दोनों घटनाओं के संबंध में शिक्षकों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। पाली जिले के बगड़ी थाना प्रभारी भंवरलाल ने बताया कि पाली जिले में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के शिक्षक भंवर सिंह के खिलाफ बृहस्पतिवार रात 14 वर्षीय दलित छात्र के साथ कथित मारपीट का मामला दर्ज किया गया है।
उन्होंने बताया कि नौवीं कक्षा के दलित छात्र के परिजनों की ओर से दर्ज शिकायत के आधार पर शिक्षक भंवर सिंह के खिलाफ मामला दर्ज कर उसे हिरासत में ले लिया गया है। वहीं शिक्षा विभाग ने आरोपी शिक्षक को निलंबित कर दिया है।
दौसा के सिकंदरा थाना क्षेत्र में एक सरकारी स्कूल के शिक्षक रामेश्वर गुर्जर के खिलाफ बृहस्पतिवार को पांचवीं कक्षा के एक दलित छात्र की कथित तौर पर पिटाई का मामला सिकंदरा थाने में दर्ज किया गया है।
मानपुर के सर्किल अधिकारी संतराम ने बताया कि घटना छह अगस्त की है और परिजनों की ओर से घटना के 19 दिन बाद इस संबंध में बृहस्पतिवार को सिंकदरा थाने में मामला दर्ज करवाया गया है। उन्होंने बताया कि छात्र का चिकित्सकीय परीक्षण कराया गया है और मामले की जांच जारी है।
उल्लेखनीय है कि बाड़मेर के कोतवाली थाना क्षेत्र में बुधवार को एक सरकारी स्कूल में एक शिक्षक ने कक्षा सात के एक दलित छात्र की कथित रूप से पिटाई इसलिये कर दी क्योंकि वह पूछे गए सवालों का उत्तर नहीं दे पाया था। विभिन्न दलित संगठनों ने इस मामले में अपना विरोध दर्ज कराया है, जिसके बाद पुलिस ने आरोपी शिक्षक को हिरासत में ले लिया था।
इससे पूर्व जालोर में एक नौ वर्षीय दलित छात्र की 20 जुलाई को स्कूल के शिक्षक ने पीने के पानी के बर्तन को छूने पर कथित तौर पर पिटाई कर दी थी। बाद में 13 अगस्त को छात्र की अस्पताल में उपचार के दौरान मौत हो गई थी। (भाषा)